मुलायम सिंह यादव केवल इसलिए लोकप्रिय नहीं थे कि वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री रहे थे बल्कि पिछड़ों में उन की पूछपरख इसलिए भी थी कि उन्होंने समाज को पिछड़ा रखने वाली कुछ कुरीतियों का भी विरोध और बहिष्कार किया था. ब्राह्मण भोज और मृत्यु भोज इन में से एक हैं जिस के दिखावे में लोगों के घर, जमीन और गहने तक बिक जाते हैं. मुलायम की मौत के बाद उन की तेरहवीं उन के वारिस और अब सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने इसीलिए नहीं की. तेरहवीं की आड़ में राजनीति आम है. पिछले साल सितंबर में एक और पूर्व मुख्यमंत्री व राममंदिर के प्रमुख आंदोलनकारी कल्याण सिंह की तेरहवीं में एक लाख से भी ज्यादा लोग जमा किए गए थे.

बिहार में लोजपा के चिराग पासवान ने भी पिता रामविलास की तेरहवीं धूमधाम से की थी बावजूद इस के कि उन के पिता भी कर्मकांडों के विरोधी थे. जिहाद ए गीता 87 के हो चले पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल को न केवल राजनीति बल्कि दीगर विषयों की भी गहरी जानकारी है जिसे ज्ञान की शक्ल में उन्होंने दिल्ली में एक किताब के विमोचन के दौरान यह कहते हुए उड़ेला कि, दरअसल कुरुक्षेत्र में कृष्ण ने जो उपदेश अर्जुन को दिया था वह जिहाद था. शाब्दिक तौर पर धर्मयुद्ध और जिहाद में कोई फर्क नहीं है और यह भी सच है कि अपने ही भाइयों से लड़ने के लिए कृष्ण ने ही तरहतरह के डर दिखा कर अर्जुन को उकसाया था लेकिन हिंदूवादियों ने भड़काने का अपना काम बदस्तूर किया.

महाभारत काल में मुसलमान नहीं थे. यवन शब्द का जिक्र श्रीमदभगवद्गीता में एक बार ही आया है जिस के माने भी अलग हैं. अब सहूलियत के लिए कौरवों को ही मुसलमान माना जाना ठीक होगा कि नहीं, इस पर भी असहमति की संभावनाएं मौजूद हैं कि कौरव मुसलमानों की तरह अछूत हैं या नहीं. इसी बहाने सही, शिवराज पाटिल कुछ वक्त के लिए सुर्खियों में तो रहे. उमा का साइड रोल कभी ‘एक धक्का और दो बाबरी मसजिद तोड़ दो’ का नारा बुलंद करने वाली साध्वी उमा भारती इन दिनों भोपाल में शराब की दुकानें तुड़वाने के लिए उन के बाहर कुरसी डाल कर बैठ जाती हैं तो उन की इस हालत पर तरस भी आता है. लगता ऐसा है मानो कोई नंबर वन अभिनेता काम की कमी के चलते साइड रोल निभाने को मजबूर हो चला है.

शराब के नशे ने कइयों को तबाह कर रखा है लेकिन यह तादाद धर्म के नशे से बरबाद लोगों के मुकाबले कुछ भी नहीं है. उमा ने नया डर यह जताया है कि शराब माफिया उन की हत्या करवा सकता है. इस पर भी हाहाकार नहीं मचा तो वे मीडिया की तरफ से भी निराश हो चली हैं. अब कौन उन्हें सम?ाए कि एकाधदो दुकानों के सामने हल्ला मचाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला.

कुछ करना है तो भट्टियां और कारखाने बंद करवाएं, नहीं तो उन्हें भी मार्गदर्शक मंडल में ढकेल दिया जाएगा जिसे राजनीति का वृद्धाश्रम कहा जाता है. एक और एक ग्यारह राजद प्रमुख लालू यादव ने पार्टी का नाम और निशान के कौपीराइट बेटे तेजस्वी को क्या सौंपे कि चर्चा चल पड़ी है कि जल्द ही नीतीश की जेडीयू का उस में विलय हो जाएगा और एक नई पार्टी आकार लेगी जिस का नाम जनता परिवार हो सकता है. पहले भी लालू, मुलायम और नीतीश मिल कर यह अधूरा प्रयोग कर चुके हैं लेकिन इस बार वजह भाजपा का डर है कि वह कभी भी इन के गठबंधन के विधायक फोड़ महाराष्ट्र का नजारा दोहरा सकती है, इसलिए दोनों पार्टी मिल कर एक तीसरी पार्टी बना लें तो विधायकों की संख्या 123 हो जाएगी. अनुभवी लालू का यह सोचना अपनी जगह ठीक है कि बड़ी पार्टी में फूट डालना आसान नहीं होगा और ऐसी स्थिति में कई छोटेमोटे दल भी जनता परिवार का आधार कार्ड बनवा सकते हैं.

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