बात 5 अगस्त 2013 की है. इस दिन इलाहाबाद के गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान ने दावा किया था कि राहुल गांधी ने उनके एक समारोह में यह बयान दिया है कि गरीबी सिर्फ एक मानसिक अवस्था है. बक़ौल राहुल गांधी, जब तक कोई शख्स खुद में आत्मविश्वास नहीं लाएगा तब तक वह गरीबी के मकड़जाल से बाहर नहीं निकल पाएगा. कोई शक न करें इसलिए तब उक्त संस्थान ने बाकायदा प्रेस नोट जारी भी किया था जिसकी लोकतन्त्र में अहमियत किसी हलफनामे से कम नहीं होती.
तब तमाम भाजपाई नेताओं, जिनमें नरेंद्र मोदी का नाम प्रमुखता से शुमार है. उन्होंने राहुल गांधी की जमकर खिल्ली उड़ाई थी और तरह तरह से उड़ाई थी. राहुल गांधी ने किस संदर्भ प्रसंग में यह बात कही थी उससे पहले यह जान लेना जरूरी और दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब कहीं जाकर उनसे सहमत क्यों हुये हैं. काशी में भाजपा सदस्यता अभियान की शुरुआत करते हुये उन्होंने भी कहा कि गरीबी एक मानसिक अवस्था है. अब अगर इन दोनों नेताओं की मानसिक अवस्था देखें तो लगता क्या है, बल्कि साफ साफ साबित होता है कि 5 साल 11 महीने बाद मोदी जी ने हूबहू अपने प्रबल प्रतिद्वंदी नेता के बयान में शाब्दिक फेरबदल कर उसे दोहरा दिए हैं. इस पर कोई कापी राइट कानून लागू नहीं होता.
राहुल गांधी तब गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के दलित रिसोर्स सेंटर द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में बोल रहे थे. इस कार्यक्रम का नाम ही संस्कृत नुमा था– संस्कृति – जनतंत्र का प्रसार और अति उपेक्षित समूह. इसमें अति उपेक्षित जातियों कंजर, सपेरा, नट – मुसहर, धरिकार, चमरमंगता और बांसफोड़ आदि के प्रतिनिधि मौजूद थे .
राहुल गांधी ने लोगों से कुछ बड़ी बड़ी बातें कह दी थीं मसलन गरीबी को तब तक खत्म नहीं किया जा सकता जब तक कि गरीब लोग अपने आत्मविश्वास और आत्मबल के जरिये इससे बाहर नहीं निकलना चाहेंगे. इसी बात को मोदी ने इन शब्दों में कहा कि हम जब तक कम आय और कम खर्च के चक्र में फंसे रहते हैं तब तक यह यानि प्रति व्यक्ति आय न बढ़ने की स्थिति बनी रहती है. हमारे दिलो दिमाग में गरीबी गर्व का विषय और मानसिक अवस्था बन गई है .
राहुल गांधी का कहना यह भी था कि सिर्फ खाना और पैसा मुहैया हो जाने से लोग गरीबी से उबर नहीं सकते हैं. इस बात को विस्तार देते मोदी का कहना यह है कि ज्यादातर विकासशील देशों के इतिहास को देखें तो वहां भी एक समय में प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक नहीं होती थी लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब प्रति व्यक्ति आय ने जबरजस्त छलांग लगाई. यह और बात है कि उन्होंने ऐसे किसी देश का नाम सहित उदाहरण नहीं दिया और न ही प्रति व्यक्ति व्यय की बात की.
नरेंद्र मोदी दरअसल में अपनी महत्वाकांक्षी 5 लाख करोड़ रु वाली अर्थव्यवस्था की बात करते बेवजह ही विरोधियों खासतौर पर कांग्रेस पर निशाना साध रहे थे कि कुछ लोग पेशेवर निराशावादी होते हैं और भारतीयों की सामर्थ पर शक करते हैं. अपनी जानी पहचानी शैली में उन्होने ज्योमेट्री का सा फार्मूला सुझाया कि परिवार की आमदनी जितनी ज्यादा होगी उसी अनुपात में सदस्यों की आय भी अधिक होगी .
फर्क यह है –
इसमें कोई शक नहीं कि राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी दोनों यह मानते हैं कि गरीबी हटाने जरूरी है कि गरीब लोग ज्यादा से ज्यादा मेहनत करें लेकिन दोनों के आइडिये और फलसफे में बड़ा फर्क है. इलाहाबाद में राहुल छोटी जाति वाले मेहनतकश लोगों को एकोनामी की रीढ़ बता रहे थे तो नरेंद्र मोदी ने सत्यनारायन की कथा बाले ब्राह्मण का उदाहरण पेश किया. क्या सत्यनारायन की कथा जैसे चमत्कारों से गरीबी दूर हो सकती है. कम से कम नरेंद्र मोदी तो यह स्वीकारते हैं शायद इसलिए कि उनका राजनैतिक जीवन ऐसे ही चमत्कारों से भरा पड़ा है. 2014 में उनका प्रधानमंत्री बन जाना किसी चमत्कार से कम नहीं था और न ही 2019 में उसका दोहराब साधारण बात थी.
अगर 5 लाख करोड़ वाली अर्थव्यवस्था का लक्ष्य यज्ञ, हवन और कथाओं से छुआ जा सकता है तो फिर गरीबों को उपदेश देना और निराशावाद को पेशेवर बताना एक फिजूल की बात है. यह सच है कि ब्राह्मण तो कथा बांचकर अपनी दरिद्रता दूर कर लेता है लेकिन दलित बेचारा कैसे अमीर बने यह नरेंद्र मोदी शायद ही कभी बता पाएं. हां एक रास्ता है कि सभी पुरोहितयाई करने लगें लेकिन फिर यजमान कौन होगा इस सवाल का जबाब ही निराशा दूर कर सकता है.
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जिस देश में गरीब अपने पिछले और इस जन्म के पापों का फल भोग रहा हो उसे और ज्यादा मेहनत कर पंडे पुजारियों को दक्षिणा चढ़ाने का मशवरा नरेंद्र मोदी ही दे सकते हैं आखिरकार लोगों ने उन्हें प्रचंड बहुमत से यूं ही नहीं चुन लिया है.
लोग चूंकि 5 लाख करोड़ बाली अर्थव्यवस्था के बाबत सवाल कर रहे हैं इसलिए नरेंद्र मोदी को तकलीफ हो रही है कि आखिर सवाल करने बालों में यह हिम्मत आई तो आई कैसे क्या उनका कह देना ही काफी नहीं क्या.
जबाब 130 करोड़ देशवासियों को देना है कि वे कौन सी अर्थ या अनर्थव्यवस्था चाहते हैं यज्ञ- हवन, पूजा पाठ, आरती और सत्यनारायन की कथा वाली या फिर सड़क, कारखानें, उदद्योग धंधों और रोजगार वाली, लेकिन हैरत वाली बात यह है कि अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ के नामुमकिन लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए क्यों नरेंद्र मोदी को राहुल गांधी का बयान या दर्शन चुराना पड़ा और इसी तरह वे इस भूतपूर्व पप्पू के नक्शे कदम पर चलते रहे तो कल को क्या प्रेम की राजनीति की भी बात करेंगे या फिर दिलोदिमाग में पसरी नफरत को जिंदा रखेंगे जिसमें हालफिलहाल उनका ज्यादा फायदा है क्योंकि धर्म, रंग, जाति कुल और गोत्र के आधार पर घृणा भी तो एक आदिम मानसिक अवस्था है.