सीएए को भारत की संसद ने 11 दिसंबर, 2019 को पारित किया था. शुरू से ही यह कानून व्यापक बहस और विरोध का विषय रहा है. इस के खिलाफ बाकायदा आंदोलन हुए हैं. अब तक नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 200 से अधिक याचिकाएं दायर हो चुकी हैं. नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियमों को लागू करने पर रोक लगाने की मांग को ले कर ये याचिकाएं दायर की गई हैं.
केरल सरकार पहली राज्य सरकार थी जिस ने 2020 में सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और कहा था कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत 'समानता के अधिकार' के प्रावधानों के खिलाफ है. राज्य ने सीएए नियमों को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में एक और मामला भी दायर किया था.

कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि सीएए धर्म के आधार पर मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है. एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी याचिका में कहा है कि सीएए लागू करने के पीछे सरकार का असली मकसद एनआरसी के जरिए मुसलिम समुदाय को निशाना बनाना है, जिसे 2019 में अपडेट किया गया था.

याचिकाकर्ताओं में केरल की इंडियन यूनियन मुसलिम लीग, तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा, कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, औल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलिमीन प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, एनजीओ रिहाई मंच और सिटीजन्स अगेंस्ट हेट, असम एडवोकेट्स एसोसिएशन और कानून के कुछ छात्र शामिल हैं. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ इन तमाम याचिकाओं पर इकट्ठा सुनवाई करेगी. संसद से पारित होने के 4 वर्षों बाद इस के नियमों को ऐसे समय अधिसूचित करना सरकार की मंशा को संदिग्ध बनाता है, जब देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं.

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