2019 का आम चुनाव एक फूहड़ और घटिया कौमेडी शो के तौर पर याद किया जाएगा जिसमें तुक की कोई बात नहीं हो रही है. यह सारा चुनाव नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच सिमट कर रह गया है, जो हर्ज की बात नहीं  है. लेकिन ये दोनों ही नेता नितांत अप्रभावी और अपरिपक्व साबित हो रहे हैं. भाजपा की तरफ से नितिन गडकरी और कांग्रेस की तरफ से गुलाम नबी आजाद जैसे कुछ गिने चुने नेता ही हैं जिन्हें सही मायनों में बुद्धिजीवी और परिपक्व कहा जा सकता है नहीं तो तमाम नेता अपनी फूहड़ता दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं.

पुरानी कहावत है कि यथा राजा तथा प्रजा जो अब यथा नेता तथा जनता में तब्दील हो रही है . चुनाव प्रचा में गौर से देखें तो मुद्दे की कोई बात नहीं हो रही है. कहीं अली-बजरंग बली रंग जमा रहे हैं तो कहीं डिग्रियों और शैक्षणिक योग्यताओं पर चुटकियां ली जा रहीं हैं. ऐसे कई बेहूदे विवाद और बातें 2019 के चुनाव की शान हैं जिनका देश के भविष्य से कोई वास्ता नहीं है. फिर भी लोग इसी छिछोरे प्रचार का न केवल लुत्फ उठा रहे हैं बल्कि सोशल मीडिया पर उसमें अपना योगदान भी दे रहे हैं. राहुल गांधी पप्पू तो नरेंद्र मोदी गप्पू के विशेषण से नवाजे जा चुके हैं .

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नरेंद्र मोदी इस चुनाव के सबसे बड़े बाहुबली हैं जिन्हें खुद को बुद्धिमान और रहस्यमय जताने का बड़ा शौक है. वे साल 2014 से ही राहुल गांधी को आदर्श पैमाना मानकर बात करते रहे हैं उनकी नजर में नेहरू गांधी परिवार जिसने सबसे ज्यादा राज किया सर्वाधिक चोर, भ्रष्ट और बेईमान है. यह देश को लूटने का ही काम करता रहा है. 2014 में तो लोगों ने मान लिया था तब हालांकि भाजपा के जीतने की वजहें कुछ और थीं लेकिन अब लोग सोचने लगे हैं कि कब तक एक ही बात तरह तरह से दोहराए जाएंगे. तुमने क्या किया यह भी बता दो तो मोदी जी की बोलती बंद होने लगती है क्योंकि उन्हें मालूम है कि इस सवाल ने ज़ोर पकड़ा तो अजय अग्रवाल जैसे तृतीय श्रेणी के नेताओं की यह भविष्यवाणी सच भी हो सकती है कि भाजपा इस बार 40 पर सिमट कर रह जाएगी.

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