महिलाओं के पहनावे को ले कर भारत में ही नहीं, अमेरिका जैसे आधुनिक देश में भी दकियानूसी सोच हावी है. अरब देशों की तो बात ही क्या. दिल्ली में जिस वक्त अभिजात्य कहे जाने वाले गोल्फ क्लब में असम की तैलिन लिंगदोह नामक महिला को अपनी पारंपरिक वेशभूषा में होने के कारण बाहर निकाला जा रहा था, लगभग उसी समय अमेरिकी सीनेट हाउस चैंबर से एक रिपोर्टर को सिर्फ इसलिए हटा दिया गया क्योंकि उस ने स्लीवलेस कपड़े पहन रखे थे. इस से बाद वहां ड्रेस कोड पर विवाद छिड़ गया.

घटना की शुरुआत महिला पत्रकार हैली बियर्ड को चैंबर से बाहर निकाले जाने से हुई. सत्ताधारी रिपब्लिकन पार्टी की सांसद मार्था मैकसेली ने हैली के पक्ष में बयान दे कर बहस को और बढ़ा दिया. महिला सांसद एकजुट हो गईं और 30 से अधिक महिला सांसदों ने ड्रेस कोड के विरोध में स्लीवलेस ड्रेस पहन कर प्रदर्शन किया.

इन महिला सांसदों ने स्पीकर से कहा कि ड्रेस कोड के पुराने नियम अब बदलने होंगे और हमें ‘खुले बाजू के अधिकार’ चाहिए. इन सांसदों ने खुले बाजू के अधिकार के लिए स्पीकर की लौबी में प्रदर्शन किया, जहां पर रिपोर्टर किसी सांसद या मंत्री का इंटरव्यू लेते हैं. डेमोक्रेटिक सांसद लिंडा सांचेज ने कहा कि ये नियम पुरातन काल के हैं. अगर हम परंपरा का पालन करते तो फ्लोर पर महिला शौचालय भी नहीं होता. कांग्रेस सदस्य चिली पिंग्री ने कहा कि यह 2017 है. अब महिलाएं वोट डाल रही हैं. कार्यालय चला रही हैं. अपने तरीके से रह रही हैं. अब वक्त आ गया है कि सदन के नियम बदले जाएं.

इस पर स्पीकर पौल रेयान ने कहा कि ड्रेस सेंस तो होना चाहिए पर हम ये भी नहीं चाहते कि किसी व्यक्ति को ड्रेस कोड के कारण रोका जाए. हम यह ड्रेस कोड अपडेट करने जा रहे हैं. हाउस चैंबर के ड्रेस कोड के अनुसार यहां महिला सांसदों और रिपोर्टरों को ढकी बाजू वाले और पुरुषों के लिए जैकेट व टाई पहनना जरूरी है.

दुनिया भर में सब से ज्यादा बंदिशों की शिकार महिलाएं हैं. उन पर तरह तरह के बंधन लाधे गए हैं. ये बंधन धर्म की देन हैं. उसे सदियों ने जानबूझ कर बांध कर रखा ताकि वह पुरुषों की गुलाम बनी रहे. अब जब महिलाएं पढ़ लिख रही हैं, घर से बाहर कदम रखा है तो उन में विरोध की ताकत आ रही है. सरकारें, समाज उन की शक्ति को पहचान रहा है फिर भी जिस धर्म ने महिलाओं को जकड़न में रखा, वह उसी की पिछलग्गू बनी हुई हैं. महिलाएं पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है तो वह अपनी मेहनत, काबिलियत की वजह से.

महिलाओं को बराबरी पर आने के लिए अभी बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ेगी. संघर्ष से ही आज सानिया मिर्जा, मिताली राज, गीता, बबीता फोगाट की जीत का डंका बज रहा है.

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