उदार लोकतंत्र का बुनियादी फर्ज है कि वह किसी भी मनुष्य को बिना कोई भेदभाव किए मूलभूत सुविधाओं को आसानी से मुहैया कराए, अपने देश के नागरिकों की ही नहीं, दुनिया के किसी भी निवासी की मौलिक स्वतंत्रता पर किसी तरह का अंकुश न लगाए और अधिकतम जन समुदाय का अधिकतम कल्याण किए जाने का उस का लक्ष्य हो. निर्वासित जिंदगी बिता रही बंगलादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन के वीजा मामले में भारत की देरी और रवैए से विश्व में अच्छा संदेश नहीं गया. लोकतंत्र समर्थकों और प्रगतिशील नागरिकों ने इस मामले में हैरानी जताई है.
विश्व के सब से बड़े लोकतंत्र भारत में वीजा मियाद बढ़ाने के लिए निर्वासित तस्लीमा नसरीन को काफी परेशान होना पड़ा. केंद्रीय गृहमंत्री से मिल कर भारत में रहने की भीख मांगनी पड़ी. सरकार ने पहले तो रैजिडैंट वीजा मियाद बढ़ाने की तस्लीमा की गुजारिश पर काफी दिनों तक कोई कार्यवाही ही नहीं की और फिर राहत भी दी तो टूरिस्ट वीजा के नाम पर 2 माह और रहने की मोहलत दी. नानुकुर और एहसान जताने जैसे रवैए के बाद 1 साल की वीजा अवधि बढ़ाई गई है.
1994 से निर्वासन में रह रहीं तस्लीमा ने कुछ समय पहले रैजिडैंट वीजा के नवीनीकरण के लिए आवेदन किया था. उन की वीजा अवधि 17 अगस्त को खत्म हो रही थी. तस्लीमा ने यह आशंका जताई थी कि अगर वीजा अवधि नहीं बढ़ाई गई तो वे ब्रिटेन से लौट नहीं पाएंगी जहां वे औक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान देने जा रही हैं. उन्होंने 26 जुलाई को लिखा कि सरकार को आवेदन किए हुए 1 महीना हो गया है लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था.
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