नेपाल भारत को अपना बड़ा भाई मानते हुए एक ओर जहां उस से राहत पाने की जुगाड़ में लगा रहता है वहीं दूसरी ओर भारत को आफत देने में जरा भी संकोच नहीं करता है. नेपाल एक दशक से भारत से राहत लेने और उसे आफत देने का खेल बड़ी ही चालाकी से खेल रहा है. भारत खुद को बड़ा भाई मानते हुए छोटे भाई नेपाल की बदमाशियों की अनदेखी करता रहा है. नेपाल पिछले कई सालों से इस बात की रट लगा कर भारत का सिरदर्द बढ़ाता रहा है कि ‘भारतनेपाल समझौता 1950’ से भारत को ही ज्यादा फायदा होता रहा है. फिर चाहे नेपाल के चीन के साथ पींगें बढ़ाने का मामला हो, भारतीय जमीन पर कब्जे का मसला हो या नेपाल की नदियों से पानी छोड़ने के बाद भारत के कई इलाकों में बाढ़ की तबाही मचने की बात हो, नेपाल ऐसे कई मामलों में भारत को सिरदर्द देने में कोई कोताही नहीं बरतता है जबकि भारत शांति और दोस्ती की रट लगाए रह जाता है. पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 2 दिवसीय नेपाल दौरे के दौरान जहां नेपाल पर राहतों की बरसात कर रहे थे वहीं नेपाल अपनी नदियों का पानी बड़े पैमाने पर छोड़ भारतीय इलाकों में तबाही मचा रहा था.

मोदी के नेपाल दौरे की सब से बड़ी खासीयत यह है कि मोदी ने नेपाल को बिजली, सड़क, रेल, बांध, कारोबार आदि योजनाओं में माली मदद की झड़ी लगा कर नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने की पुरजोर कोशिश की. नेपाल को 1 अरब डौलर का रिआयती कर्ज दे कर भारत ने नेपाल को यह साफतौर पर बता दिया कि माली मदद के लिए उसे चीन के सामने हाथ पसारने की जरूरत नहीं है. आईबी के एक बड़े अफसर बताते हैं कि भारत ने काफी लंबे समय तक नेपाल की अनदेखी की है.

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