एक जमाना था जब नौजवान अपने देश के लिए लड़ते थे. अब ग्लोबलाइजेशन का जमाना है तो युद्ध भी ग्लोबल हो गए हैं और जिहाद भी. सीरिया और इराक में हो रहे शियासुन्नी गृहयुद्ध में लगभग 80 देशों से आए लड़ाके लड़ रहे हैं. इधर, भारत में ऐसा समझा जाता था कि यहां के मुसलमान अपनी समस्याओं में ऐसे उलझे हुए हैं कि उन का सीरिया या इराक के गृहयुद्ध से कोई लेनादेना क्यों होने लगा लेकिन अब यह सुदूर मध्यपूर्व का युद्ध नहीं रहा. वह हमारी देहरी लांघ कर अंदर आ पहुंचा है.
पहले खबर आई कि हमारे देश के 18 सुन्नी नौजवान इराक व सीरिया में सुन्नी जिहादियों की तरफ से लड़ रहे हैं. फिर खबर आई कि मुंबई के पास के कल्याण शहर के 4 मुसलिम युवा सुन्नी आतंकी संगठन आईएसआईएस की तरफ से लड़ने के लिए वहां पहुंच गए हैं. उन में से एक तो लड़ते हुए मारा गया. उस के बाद लड़ने के लिए इराक ले जाए जा रहे 4 युवाओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. तो दूसरी तरफ हजारों शिया करबला और नजफ शहरों में बने अपने धर्मस्थलों की रक्षा के लिए इराक जाने को तैयार हैं. वे इस बाबत एक फौर्म पर हस्ताक्षर भी कर चुके हैं.
भारत में इस का प्रभाव
इस तरह शिया और सुन्नी जो भारत में शांति के साथ रहते हैं वे इराक में जा कर मरनेमारने को उतारू हैं. कोई दावे के साथ अब यह नहीं कह सकता कि उन की दुश्मनी केवल इराक तक ही सीमित रहेगी और भारत में इस का प्रभाव नहीं पड़ेगा. गौरतलब है कि इसलामिक स्टेट इन इराक ऐंड सीरिया यानी आईएसआईएस एक खूंखार आतंकवादी संगठन है. इस के आतंकवादी सीरिया व इराक में वहां की सरकारों से लड़ रहे हैं. आईएसआईएस वहां कट्टरपंथी हुकूमत कायम करना चाहता है. उस के लड़ाके वहां के शिया मुसलमानों, ईसाइयों व दूसरे धर्मों के मानने वालों को सुन्नी मुसलमान बनने को मजबूर कर रहे हैं अगर वे इन की बात नहीं मानते हैं तो उन्हें मार डालते हैं.