औफिस से घर जाते हुए मैं ने लखनऊ की मशहूर दुकान ‘छप्पनभोग’ से जीत की मनपसंद मिठाई, रसमलाई ली. आज उस की 7वीं क्लास का रिजल्ट घोषित हुआ है. मैथ्स में उस के 100 में से 90 नंबर आए हैं. पिछले साल मैथ्स में उस के नंबर इतने कम थे कि मैं ने रिजल्ट उस के मुंह पर मारा था. वह फेल होतेहोते बचा था.

घर जाने के पूरे रास्ते मैं बहुत खुश था. कल अनाथालय भी जाऊंगा, अनाथ बच्चों को उपहार दूंगा. आखिर सब प्रकृति की ही तो कृपा है जो जीत मैथ्स में अपनी मां पर नहीं गया. वैसे, मैथ्स के नाम से तो बुखार मुझे भी चढ़ता रहा है.

मैं जैसे ही अपनी सोसाइटी के अंदर घुसा, वौचमैन असलम ने मुझे सलाम किया. मेरा मूड खराब हो गया. पता नहीं, सिक्योरिटी वाले को कोई और नहीं मिला क्या, हमारी पूरी बिल्डिंग में सब हिंदू हैं, बस, यही असलम मेरा दिमाग खराब करता है. बाकी की बिल्डिंग्स में इक्कादुक्का मुसलिम हैं. अपनी बिल्डिंग से मैं इसी बात पर खुश होता हूं कि यहां एक भी मुसलिम फैमिली नहीं. बस, इस असलम की जगह कोई और आ जाए तो अच्छा रहेगा.

मेरा बस चले, तो पूरी सोसाइटी में एक भी मुसलिम फैमिली को रहने न दूं. अपने फ्लैट की डोरबैल बजाई तो पत्नी रीना ने दरवाजा खोला. उसके पीछे से जीत ने झांका और चिल्लाया, “पापा, देखो, मेरा रिजल्ट, कितने अच्छे नंबर हैं.” उस के पीछे से जीत की बड़ी बहन मेघा ने भी उत्साह से कहा, “पापा, जीत ने इस बार कमाल कर दिया. हमारे यहां तो मैथ्स में कभी किसी के इतने अच्छे नंबर नहीं आए.”

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