न्यूयौर्क ने 2024 में सब से अधिक अरबपतियों वाले शहर के रूप में बीजिंग को पीछे छोड़ दिया है. लंदन के बाद भारत का मुंबई शहर अरबपतियों की सब से अधिक संख्या वाला शहर बन गया है. बीते साल मुंबई में 26 नए अरबपति बने और मुंबई अरबपतियों के मामले में दुनिया की लिस्ट में तीसरे नंबर पर आ गया. जी हां, हुरुन रिसर्च की ‘2024 ग्लोबल रिच लिस्ट’ के मुताबिक, मुंबई में 92 अरबपति रहते हैं और यह एशिया में सब से ज्यादा अरबपतियों वाला शहर बन चुका है. मुंबई ने चीन की राजधानी बीजिंग को पीछे छोड़ कर यह मुकाम हासिल किया है, जहां 91 अरबपति हैं. हालांकि, अगर चीन की बात करें, तो भारत के 271 अरबपतियों के मुकाबले चीन में कुल 814 अरबपति हैं. न्यूयौर्क में 119 और लंदन में 97 अरबपति हैं. अरबपतियों के मामले में दिल्ली ने भी अपना मान बढ़ाया है और पहली बार अरबपतियों की लिस्ट में शामिल हुई है. दिल्‍ली का नाम भी पहली बार टौप 10 में शामिल हुआ है.

देश के अरबपतियों में सब से ऊपर रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी (115 अरब डौलर) हैं. इस के बाद नंबर आता है गौतम अडानी (86 अरब डौलर) का. इन की संपत्ति भी 34 फीसदी बढ़ गई है. देश में कुल मिला कर 94 अरबपतियों की संख्या बढ़ी है. इस तरह, कुल अरबपतियों की संख्या 271 पहुंच गई है. इन में से 26 नए अरबपतियों की संख्या सिर्फ मुंबई में ही जुड़ी है.

अरबपतियों की सूची में रोहिका साइरस मिस्‍त्री (साइरस मिस्‍त्री की पत्नी), इना अश्विन दानी (एशियन पेंट्स) जैसे नाम शामिल हैं. नए अरबपतियों में फार्मा, औटोमोबाइल, कैमिकल इंडस्ट्री जैसे सैक्‍टर्स के लोग ज्यादा शामिल हैं. मुंबई के सभी अरबपतियों की कुल संपत्ति 445 अरब डौलर है. यह पिछले साल की तुलना में 47 फीसदी अधिक है जबकि बीजिंग के अरबपतियों की कुल संपत्ति 265 अरब डौलर है. यह पिछले साल की तुलना में 28 फीसदी कम है. मुंबई पर एनर्जी और फार्मास्युटिकल्स जैसे सैक्टर से पैसों की बारिश हो रही है. इस में मुकेश अंबानी जैसे अरबपति खूब मुनाफ़ा बटोर रहे हैं. रियल एस्टेट के खिलाड़ी मंगल प्रभात लोढ़ा एंड फैमिली फीसदी (116 फीसदी) के लिहाज से मुंबई के सब से बड़े वैल्थगेनर थे. अगर दुनिया के अमीरों की लिस्ट की बात करें तो मुकेश अंबानी की संपत्ति में अच्छी ग्रोथ हुई है. इस का श्रेय मुख्य रूप से रिलायंस इंडस्ट्रीज़ को जाता है.

इसी तरह गौतम अडानी की संपत्ति में भी उल्लेखनीय वृद्धि ने उन्हें वैश्विक स्तर पर 8 पायदान ऊपर 15वें स्थान पर पहुंचा दिया है. एचसीएल के शिव नादर और उन के परिवार की संपत्ति और वैश्विक रैंकिंग दोनों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. वे 16 स्थान की छलांग लगाते हुए 34वें पर पहुंचने में कामयाब रहे. इस के विपरीत सीरम इंस्टिट्यूट के साइरस एस पूनावाला की कुल संपत्ति मामूली गिरावट के साथ 82 अरब डौलर पर रही. वे 9 पायदान गिर कर 55वें स्थान पर आ गए हैं. मुंबई को यह रुतबा हासिल कराने में सन फार्मास्युटिकल्स के दिलीप सांघवी (61वें स्थान) और कुमार मंगलम बिड़ला (100वें स्थान) का भी योगदान है. इन अरबपतियों की वजह से मुंबई ने आज अरबपतियों के शहर के मामले में चीन को पछाड़ा है.

कोविड महामारी के वक्त 9 करोड़ रुपयों का नुकसान उठाने वाले नोएडा बेस्ड एक ट्रेडिंग कंपनी के मालिक कहते हैं- ‘मोदी जी सिर्फ टौप के 10 उद्योगपतियों के मित्र हैं जो उन को पैसा देते हैं और दूसरी तरफ वे उन गरीबों के बारे में बात करते हैं जो उन को वोट देते हैं मगर उन को गरीबी से निकालने का उन का कोई इरादा नहीं है. वे उन को गरीब ही रखना चाहते हैं. मुफ्त राशन भी इसलिए दे रहे हैं ताकि यह वोटबैंक कहीं मर न जाए या बगावत न कर बैठे क्योंकि इन्हीं गरीबों की वजह से मोदी सत्ता में हैं.

ताज्जुब की बात है, एक ओर देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है दूसरी ओर देश में वे अस्सी करोड़ गरीब हैं जो अपने लिए दो वक्त का भोजन भी खुद नहीं जुटा पा रहे. मोदी सरकार अस्सी करोड़ लोगों को हर महीने मुफ्त राशन बांट कर गर्व महसूस कर रही है. उस का बढ़ चढ़कर बखान कर रही है. लेकिन यह गर्व की नहीं, शर्म की बात है कि एक तरफ देश की अस्सी करोड़ जनता भूखी और बदहाल है जबकि दूसरी ओर सारा पैसा कुछ सौ अरबपतियों की तिजोरियों में जमा हो गया है. यह शर्म की बात है कि आज़ादी के 75 साल बाद भी भारत के लोगों के घरों में उन की बहूबेटियों की इज्जत ढंकने के लिए अपना शौचालय नहीं है. सरकार उन को शौचालय बना कर दे रही है और बड़े गर्व से यह बात पूरी दुनिया को बता रही है. धिक्कार है. दुनिया की क्या राय बनी होगी भारत के बारे में.

जो मुंबई आज अरबपतियों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर आ पहुंचा है उसी मुंबई में धारावी भी है जो एशिया का दूसरा सब से बड़ा स्लम एरिया है. इस की आबादी लगभग एक मिलियन है. धारावी को भारत की सब से बड़ी झुग्गी और दुनिया की तीसरी सब से बड़ी झुग्गी बस्ती एरिया कहा जाता है जहां इतने गरीब परिवार भी हैं जिन को एक वक्त खाना मिल गया तो दूसरे वक्त वे खाली पेट रहने को मजबूर हैं.

आज दुनिया के हर 3 गरीब में से 1 भारत में है. पढ़नेलिखने के बाद भी यहां ज्यादातर युवाओं को एक अदद नौकरी के लिए पापड़ बेलने पड़ते हैं. दरदर की ठोकरें खा कर भी पढ़ेलिखे ज्यादातर लोगों को नौकरी नहीं मिलती और वे छोटेमोटे कामधंधे कर के या ठेला-रेहड़ी-खोमचा लगा कर किसी तरह अपनी जिंदगी काटते हैं.

लगातार बढ़ती कीमतों के कारण बुनियादी जरूरत की चीजें भी गरीबों के हाथ से निकली जा रही हैं. गरीबीरेखा के नीचे रहने वाले व्यक्ति के लिए जीवित रहना एक चुनौती बन गया है. आय के संसाधनों का असमान वितरण गरीबी में वृद्धि का मुख्य कारण है. पूरे दिन मेहनत करने वाले मजदूर की आय 200 रुपए से ज़्यादा नहीं है. उन्हें रोज काम भी नहीं मिलता है. मालिकों को मजदूरों की कम आय और खराब जीवनशैली की कोई परवा नहीं है. उन की चिंता सिर्फ लागत में कटौती और अधिक से अधिक लाभ कमाना है. अकुशल कारीगरों के पास कम पैसों में काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

हाल ही में देश के सब से बड़े अरबपति मुकेश अंबानी के बेटे की शादी की बड़ी चर्चा रही. मुकेश और नीता अंबानी ने अपने छोटे बेटे अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की प्रीवैडिंग सेरेमनी में 1,260 करोड़ रुपए खर्च कर डाले. शादी अभी बाकी है जो जुलाई में होगी. अनंत अंबानी की प्रीवैडिंग में कई नैशनल और इंटरनैशनल सेलिब्रिटीज को बुलाया गया. इस सेरेमनी में हौलीवुड सिंगर रिहाना ने परफौर्म करने के लिए 74 करोड़ रुपए चार्ज किए. इस मौके पर मुकेश अंबानी ने अनंत और राधिका को 4.5 करोड़ रुपए की कार गिफ्ट की. इस प्रीवैडिंग में जिस खाने के मैन्यू की खूब चर्चा हुई उस पर भी 210 करोड़ रुपए खर्च किए गए. मजे की बात यह है कि इतना खर्च करने के बाद भी मुकेश अंबानी ने अपनी कुल संपत्ति का मात्र 0.1 फीसदी ही खर्च किया. लेकिन यह बात शायद आम लोगों तक नहीं पहुंची. उन्हें, बस, शानोशौकत दिखी जहां मार्क जुकरबर्ग से ले कर बौलीवुड के तीनों खानों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.

अंबानी फैमिली ने इस से पहले अपने बड़े बेटा-बेटी की शादी में भी इसी तरह खूब पैसा लुटाया था. मुकेश अंबानी की इकलौती बेटी ईशा अंबानी की शादी अरबपति उद्योगपति अजय पीरामल के बेटे आनंद पीरामल से हुई थी. ईशा अंबानी के कपड़ों से ले कर कार्ड तक पर अंबानी फैमिली ने जम कर खर्च किया था. फाइनैंशियल एक्सप्रैस के मुताबिक, ईशा की शादी भारत की सब से महंगी शादी मानी जाती है. उन की शादी में कुल 700 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे. ईशा अंबानी की शादी का लहंगा ही 90 करोड़ रुपए का था.

इंटरनैशनल बिजनैस टाइम्स के अनुसार, मुकेश अंबानी ने अपने बड़े बेटे आकाश अंबानी की शादी के लिए स्विट्जरलैंड में एक हफ्ते के लिए आलीशान होटल बुक किया था, जिस के एक दिन का चार्ज 1 लाख रुपए था. यह होटल का सब से सस्ता रूम था, जो 500 मेहमानों के लिए बुक किया गया. शादी के एक कार्ड पर 1.5 लाख रुपए खर्च किए गए थे. नीता अंबानी ने अपनी बहू श्लोका अंबानी को शादी के तोहफे के तौर पर 451 करोड़ रुपए का मौवाड एल इंकम्पेरेबल हार दिया था. उस में 91 डायमंड जड़े हैं.

इस तरह की अमीर शादियों का प्रसारण तमाम टीवी चैनल और सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर होता है जो मध्यवर्ग को भी दिखावे और खर्चे के लिए प्रेरित करता है. मध्यवर्ग की शादियां निम्नवर्ग के सामने गलत उदाहरण प्रस्तुत करती हैं. यही वजह है कि रूढ़िवादी परंपराओं को निभाना, धर्म और दिखावे के कारण गरीब और मध्यवर्ग वाले कर्ज में डूबे रहते हैं. वे अमीरों की देखादेखी तड़कभड़क वाली शादी करते हैं. कर्ज ले कर बेवजह का खर्च करते हैं. शादी में दिए जाने वाला दहेज हो, मृत्युभोज हो या फिर आएदिन आने वाले तीजत्योहार हों, सब पर समाज में अपना मुंह दिखाने और अपनी हैसियत बताने के नाम पर वे भी अनापशनाप खर्च करते हैं. गरीबी का कुचक्र इसी प्रकार के खर्चों के कारण बना रहता है.

मध्य आयवर्ग में तो आजकल अपनी हैसियत से ज्यादा दिखावा करने और अपनी क्षमता से ज्यादा खर्च करने का ट्रैंड बन गया है. इस में बच्चों को महंगी शिक्षा, कार खरीदना, विदेशयात्रा, दानदहेज़ देना, धर्म के नाम पर मंदिरों में बड़ेबड़े चढ़ावे चढ़ाना, भंडारे करना, तीजत्योहारों में हैसियत से ज़्यादा खर्चा करना इत्यादि शामिल हैं. उधार चुकातेचुकाते अपनी मेहनत की कमाई लोग ऐसे ही कामों में लगा देते हैं और गरीबी में आ जाते हैं.

गरीब तबके में जनसंख्या भी बेहिसाब बढ़ रही है. स्लम एरिया, गांवदेहातों और झुग्गियों में रहने वाले लोग बेहिसाब बच्चे पैदा कर रहे हैं. उन के पास खाने को नहीं है, बच्चों को पढ़ाने के लिए पैसा नहीं है फिर भी एकएक परिवार में चारचार छहछह बच्चे पैदा हो रहे हैं. सरकार का कोई जनजागरूकता अभियान इन के कानों तक नहीं पहुंचता. सरकार सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण और गरीबी उन्मूलन का राग ही अलापती है, करती कुछ नहीं है.

मोदी सरकार में नोटबंदी पहला ऐसा कदम था जिस की वजह से अमीरों की अमीरी बढ़ी और गरीब और अधिक गरीब हो गए. छोटे धंधे करने वालों की कमर टूट गई. दूसरा कदम जीएसटी को लागू करना था. असंगठित क्षेत्र के सारे व्यापारधंधे ठप हो कर रह गए. तीसरा कारण जब देशभर में कोरोना के 500 मामले हर रोज़ आ रहे थे तो संपूर्ण लौकडाउन लागू करना था. इस के कारण संगठित क्षेत्र से बड़ी संख्या में कर्मचारियों की छंटनी हुई, जो नौकरी में रह गए उन कर्मचारियों की तनख्वाह कम की गई और वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि की गई. सरकार के इन 3 कदमों ने अमीरों के और अमीर होने और गरीबों के और गरीब होने की गति कई गुणा बढ़ा दी. और अब सरकार का गरीबी उन्मूलन का कोई इरादा नहीं है. मुफ्त राशन बांट कर गरीबों को मुफ्तखोर और निठल्ला बनाने की योजना पर काम चल रहा है. गरीब को गुलाम बनाने और किसान को मजदूर बनाने के अभियान पर तेजी से काम हो रहा है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...