काशी के दारोगा राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट… वाली राष्ट्रीय मुहिम में अब काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत कुलपति तिवारी भी शामिल हो गए हैं. उन्होंने अपना दामन योगी आदित्यनाथ के सामने फैलाते इतनी भर सौगात मांगी है कि काशी का मेयर इस बार किसी संतमहंत को बनाया जाए.
कट्टर सनातनी इस धर्मगुरु ने यह सोचने की भी जहमत नहीं उठाई कि अब कहने को ही सही लोकतंत्र तो है जिस में जनप्रतिनिधि जनता चुनती है. मोदीजी प्रधानमंत्री और योगीजी मुख्यमंत्री हैं, इस का यह मतलब नहीं कि धर्म के नाम पर बिलकुल ही अंधेरगर्दी मचाई जा सकती है. यह जरूर हर कोई जानता है कि अधिकतम अंधेरगर्दी मची हुई है और हर छोटेबड़े चुनाव में वोट धर्म के नाम पर ही मांगे जा रहे हैं. अब अतिउत्साही और महत्त्वाकांक्षी कुलपति की गलती क्या जो वाकई ज्ञानी हैं, इसलिए उन्होंने यह तुच्छ पद तीनों लोकों के स्वामी देवों के देव से न मांगते, नीचे वाले देवताओं से मांगा.
मैनपुरी के विभीषण मुलायम सिंह की सीट कही जाने वाली मैनपुरी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा ने नेताजी के चेले रघुराज सिंह शाक्य पर ही दांव खेला जिस से एक बात जरूर साफ हो गई कि भाजपा का आत्मविश्वास अब लड़खड़ाने लगा है. उसे सुग्रीव, जामवंत, नल, नील, केवट, जटायु और हनुमान वगैरह से ज्यादा भरोसा विभीषणों पर है. बात सही भी है क्योंकि रामायण में दिलचस्पी न रखने वाले भी जानते हैं कि राम ने लंका महज इसलिए नहीं जीत ली थी कि वे बहुत बड़े योद्धा थे, बल्कि इस में योगदान घर के भेदियों का भी था.
विभीषण अब उन कांग्रेसियों को कहा जाने लगा है जो तिलक के लिए भाजपा जौइन कर लेते हैं. बात हर्ज की नहीं लेकिन अब सच्चे रामभक्त बड़े पैमाने पर पूछने लगे हैं कि अगर इन्हीं के भरोसे हिंदू राष्ट्र बनाना है तो हमारी जरूरत क्या, हम क्या बचपन से इन की पालकी उठाते अपने कंधे छिलवा रहे थे. बढ़ती का नाम दाढ़ी जैसेजैसे ‘भारत जोड़ो यात्रा’ आगे बढ़ती जा रही है वैसेवैसे राहुल गांधी का आत्मविश्वास और दाढ़ी दोनों बढ़ते जा रहे हैं. दाढ़ी तो घर की खेती है जो कभी भी कटाई जा सकती है लेकिन आत्मविश्वास कोई बालों का ?ांड नहीं जिसे उस्तरे से काटा जा सके. देशभर के हैरानपरेशान और दुखियारे इस यात्रा से खुद से जुड़ रहे हैं जिस से भगवा खेमे में तनाव है क्योंकि बीचबीच में राहुल सावरकर की चिट्ठी उजागर करने जैसे अप्रत्याशित विवाद भी खड़े कर देते हैं.
दाढ़ी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बढ़ाई थी जिसे ले कर भक्तों ने हवा फैला दी थी कि उन्होंने कसम खाई है कि अब राममंदिर निर्माण के बाद ही इसे कटाएंगे. यह तो राम ही जाने कि सच क्या है लेकिन राहुल की खिचड़ी दाढ़ी देख लगता है कि कहीं वे भी प्रधानमंत्री बन जाने तक इसे धारण करने की कसम खाए तो नहीं चल रहे. पीयू में जदयू के माने बिहार की राजनीति में युवाओं का रोल हमेशा ही अहम और बदलाव वाला रहा है. राज्य के तमाम बड़े नेता लालू प्रसाद यादव,
नीतीश कुमार, रामविलास पासवान, सुशील कुमार मोदी छात्र राजनीति की ही देन हैं. हालिया पटना यूनिवर्सिटी यानी पीयू के चर्चित और टसल वाले छात्र संघ चुनाव में जनता दल यूनाइटेड की एक तरफा जीत से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वेवजह उत्साहित नहीं हैं. युवाओं ने उन के पैनल पर भरोसा जता कर यह संकेत तो दे ही दिया है कि 2024 उस का और राजद का ही होगा. इस जीत से भगवा खेमा मायूस है जो यह नहीं सम?ा पा रहा कि हिंदी पट्टी के राज्यों में बिहार इकलौता राज्य है जहां के युवा भगवा गमछे और जयजय श्रीराम वाली राजनीति में ज्यादा यकीन नहीं करते. उन की प्राथमिकता रोजगार और अमनचैन की जिंदगी है. इस बाबत उन्हें नीतीश व तेजस्वी की जोड़ी मुफीद लग रही है तो उसे ही अपना ट्रैक बदल लेना चाहिए.