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Winters 2021: क्या आप को भी लगती है ज्यादा ठंड

क्या आप को जरूरत से ज्यादा ठंड लगती है, हमेशा आप के हाथपैर ठंडे रहते हैं और जाड़े के मौसम में स्वेटर्स की 2-3 लेयर्स से कम में आप का काम नहीं चलता? आइए जानते हैं क्यों लगती है कुछ लोगों को अधिक ठंड.

थायराइड की समस्या

हाइपोथायराइडिज्म एक स्थिति है जब थायराइड ग्लैंड कम एक्टिव होता है. थायराइड ग्लैंड बहुत सारे मेटाबौलिज्म प्रक्रियाओं के लिए उत्तरदायी है.

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इस का एक काम शरीर के तापमान का नियंत्रण करना भी है. जाहिर है हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित व्यक्ति ज्यादा ठंड महसूस करते हैं क्यों कि उन के शरीर में थायराइड हार्मोन की कमी रहती है.

अधिक उम्र

अधिक उम्र में ठंड अधिक लगती है. खासकर 60 साल के बाद व्यक्ति का मेटाबोलिज्म स्लो हो जाता है. इस वजह से शरीर कम हीट पैदा करता है.

एनीमिया

आयरन की कमी से शरीर का तापमान गिरता है क्यों कि आयरन रेड ब्लड सेल्स का प्रमुख स्रोत है. शरीर को पर्याप्त आयरन न मिलने से रेड ब्लड सेल्स बेहतर तरीके से काम नहीं कर पाते और हमें ज्यादा ठंड लगने लगती है.

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खानपान

यदि आप गर्म चीजें ज्यादा खाते हैं जैसे ड्राई फ्रूट्स, नौनवेज, गुड, बादाम आदि तो आप को ठंड कम लगेगी. इस के विपरीत ठंडी चीजें जैसे, सलाद, आइसक्रीम, वेजिटेबल्स, दही आदि अधिक लेने से ठंड ज्यादा लगती है.

प्रेगनेंसी

प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को एनीमिया और सरकुलेशन की शिकायत हो जाती है. इस वजह से कई बार ठंड लगने खासकर हाथ पैरों के ठंडा होने की शिकायत करती है.

डीहाइड्रेशन

पानी कम मात्रा में पीने से शरीर का मेटाबौलिज्म घट जाता है और शरीर खुद को गर्म रखने के लिए आवश्यक एनर्जी और हीट तैयार नहीं कर पाता.

हारमोंस

अलगअलग तरह के हार्मोन्स भी हमारे शरीर के तापमान को प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए एस्ट्रोजेन साधारणतः डाइलेटेड ब्लड वेसल्स और बौडी टेंपरेचर प्रमोट करता है. जबकि पुरुषों में मौजूद टेस्टोस्टेरोन हार्मोन इस के विपरीत कार्य करता है. इस वजह से महिलाओं का शरीर ज्यादा ठंडा होता है. एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं के हाथ पैर पुरुषों के देखे लगातार अधिक ठंडे रहते हैं. यही नहीं महिलाओं में थायराइड और अनीमिया की समस्या भी अधिक होती है. दोनों ही ठंड लगने के लिए अहम् कारक हैं.

पुअर सर्कुलेशन

यदि आप का पूरा शरीर तो आरामदायक स्थिति में है मगर हाथ और पैर ठंडे हो रहे हैं तो इस का मतलब है कि आप को सरकुलेशन प्रौब्लम है जिस की वजह से खून का प्रवाह शरीर के हर हिस्से में सही तरीके से नहीं हो रहा. हार्ट भी सही तरीके से काम नहीं कर रहा. ऐसी स्थिति में भी ठंड अधिक लगने की समस्या पैदा हो सकती है.

तनाव और चिंता

जिन लोगों की जिंदगी में अधिक तनाव और डिप्रेशन होता है वे अक्सर ठंड अधिक महसूस करते हैं क्यों कि तनावग्रस्त होने की स्थिति में हमारे मस्तिष्क का वह भाग सक्रिय हो जाता है जो खतरे के समय आप को सचेत रखता है.ऐसे में शरीर अपनी सारी ऊर्जा खुद को सुरक्षित रखने के लिए रिज़र्व रखता है और हाथपैर जैसे हिस्सों तक गर्मी नहीं पहुंच पाती.

जब बीएमआई कम हो

न केवल बीएमआई और वजन कम होने के कारण आप को ठंड ज्यादा लग सकती है बल्कि आप के शरीर में फैट और मसल्स की मात्रा भी उस की वजह बनती है. मसल्स अधिक मात्रा में होने से शरीर अधिक हीट पैदा करता है और फैट की वजह से भी शरीर से हीट लौस कम होता है जिस से ठंड कम लगती है.

यदि आप को लगता है कि दूसरों के मुकाबले आप का शरीर हमेशा ही ज्यादा ठंडा रहता है या फिर पहले कभी आप ने ठंड महसूस नहीं किया मगर अब हमेशा ही ऐसा लगने लगा है तो आप को मेडिकल चेकअप कराना चाहिए. यदि ठण्ड के साथ आप के वजन में तेजी से बढ़ोतरी या कमी हो रही है, बाल झड़ रहे हैं और कब्ज की शिकायत रहने लगी है ,तो भी किसी अच्छे डाक्टर से जरूर मिलें.

अच्छे लोग : भाग 3

रिचा ने चाय बनाई. तीनों ने साथसाथ चाय पी. चाय खत्म हुर्ई तो बाई आ गई. वह उदास सी खड़ी शारदा और रमाकांत को देख रही थी. कर्ई सालों से वह उन के घर में काम कर रही थी. अच्छी तरह सब के स्वभाव से परिचित थी. उन के ऊपर आई विपत्ति से वह परिचित थी. उसे दुख था कि कुदरत भी अच्छे लोगों को परेशान करती है, उन्हें कष्ट देती है.

रिचा ने उस से कहा, ‘‘माला, किचन में थोड़ी चाय बची है, उसे गरम कर के पी लो. फिर घर की सफाई करो. मैं तब तक खाना बना लूंगी.’’‘‘दीदी, चाय मैं बाद में पी लूंगी. पहले घर की सफाई करती हूं, बहुत गंदा हो गया है.’’‘‘ठीक है,’’ फिर रिचा ने मम्मीपापा से कहा, ‘‘आप दोनों तब तक नहाधो लीजिए. अभिनव औफिस से हो कर अभी थोड़ी देर में आ जाएंगे.’’

सुबह अभिनव उन के साथ ही था. रिचा को मम्मीपापा के साथ घर भेज कर वह औफिस चला गया था.अभिनव आया तो सभी लोगों ने साथसाथ खाना खाया. खाते समय आगे की कार्रवाई पर विचार किया गया.शारदा ने पूछा, ‘‘आगे क्या होगा?’’‘‘मुकदमा चलेगा, उस की चिंता नहीं है. हमें सब से पहले प्रियांशु की जमानत करवानी होगी. कैसे होगी क्योंकि हमारे पास हमारी बेगुनाही का कोई सुबूत नहीं है,’’ शारदा ने मायूसी से कहा.

‘‘मारपीट का सुबूत तो अखिला के पास भी नहीं है,’’ रिचा ने तर्क दिया.‘‘सही है, परंतु नवविवाहिता है. उसी ने मुकदमा लिखवाया है. जब तक हम कोई सुबूत नहीं देंगे, उसी की बात सच मानी जाएगी. यह तो गनीमत समझो कि उस ने हमारे खिलाफ  दहेज का मुकदमा दर्ज नहीं करवाया, वरना कभी जमानत न हो पाती.’’

‘‘तो फिर अब क्या होगा?’’ शारदा ने ही पूछा.‘‘कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा. वकील का कहना है कि अखिला के बयान से यह स्पष्ट नहीं है कि हमारा उस के साथ मारपीट करने का क्या कारण है. केस की यही कमजोर कड़ी हमारे पक्ष में जाएगी.’’

‘‘परंतु बेटा, मुकदमा तो न जाने कितना लंबा चले. इतनी जल्दी फैसला कहां आएगा? तुम तो प्रियांशु की जमानत के लिए कुछ करो.’’‘‘मम्मी, आप इन जैसी शातिर लड़कियों को नहीं जानतीं,’’ अभिनव ने हंस कर कहा, ‘‘जब मांबाप पर इन का जोर नहीं चलता, तो ये ससुराल के लोगों को परेशान करती हैं. घरेलू हिंसा और दहेज का मुकदमा दर्ज करवा कर ये पति से अलग हो जाती हैं. फिर मांबाप भी अपनी मरजी इन पर नहीं चला पाते और तब ये अपने प्रेमी के साथ शादी कर लेती हैं.’’

‘‘अखिला को उलटी पट्टी पढ़ाने में अवश्य उस के प्रेमी का हाथ होगा,’’ रिचा ने कहा, ‘‘हमें अखिला के प्रेमी का पता चल जाए, तो हमारा केस मजबूत हो जाएगा.’’‘‘हां, अवश्य.’’‘‘परंतु पता कैसे चलेगा? अखिला के मांबाप तो बताएंगे नहीं. तुम पता करो, कैसे भी?’’ शारदा ने उत्साह से कहा, जैसे अभी सबकुछ सुलझ जाएगा.

‘‘मैं तो पता नहीं कर पाऊंगा. किसी प्राइवेट जासूस की सेवा लेनी पड़ेगी.’’‘‘तो जल्दी करो, बेटे.’’प्राइवेट जासूस बहुत कुशल था. एक सप्ताह के अंदर ही उस ने एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ला कर दी. केवल रिपोर्ट ही नहीं दी, साथ में सुबूत भी दिए. अखिला की कौल डिटेल्स और उस की बातचीत की रिकौर्डिंग के साथसाथ अखिला के साथ उस के प्रेमी की तसवीरें भी प्रस्तुत कीं. रिपोर्ट देख कर सब के हृदय को भारी धक्का लगा कि एक लडक़ी अपने प्रेम के लिए किस तरह मांबाप की इज्जत और अपना दांपत्य जीवन चौपट कर सकती है. अखिला इस की जीतीजागती मिसाल थी.

रिपोर्ट से यह साबित हो गया था कि अखिला किसी लडक़े को प्यार करती थी, परंतु जाति अलग होने के कारण उस के पिता उस के साथ अखिला की शादी के लिए तैयार नहीं हुए थे. अखिला का प्रेमी कोई अच्छा काम भी नहीं करता था. वह किसी कैटरिंग वाले के यहां काम करता था और किसी शादीब्याह में अखिला से उस की जानपहचान हुई थी. समझ में नहीं आता, लड़कियां किस प्रकार प्रेम में अंधी हो जाती हैं कि उन्हें अपनी पारिवारिक मर्यादा और स्वयं के भविष्य का ख़याल नहीं रहता.

प्रियांशु की जमानत के लिए रास्ता आसान हो गया था. अभिनव ने सारे सुबूत अपने वकील के माध्यम से कोर्ट में जमा करवा दिए थे. कोर्ट ने सुनवाई के लिए एक सप्ताह की तारीख दी थी.शारदा और रमाकांत बहुत हैरान थे. कितने अरमानों से उन्होंने बेटे की शादी की थी, अपने व्यवहार और चरित्र से एक सुखी परिवार की स्थापना की थी. अपने बच्चों को ऐसे संस्कार दिए थे कि गलती से भी किसी को कष्ट न पहुंचे. परंतु उन्हें ऐसी बहू मिली थी जिस के लिए एक घटिया लडक़े का प्यार महत्त्वपूर्ण था और उस का प्यार पाने के लिए वह अपने सुखी दांपत्य जीवन को भी आग में झोंकने पर आमादा थी.

उन्हें जेल की यातना परेशान नहीं कर रही थी. उन्हें तो अखिला का व्यवहार परेशान कर रहा था. क्या इस के बाद वे किसी लडक़ी पर भरोसा कर सकेंगे. उसे बहू बना कर अपने घर में ला सकेंगे.एक सप्ताह बाद जब कोर्ट में सुनवाई हुई, तो शारदा, रमाकांत, अभिनव और रिचा कोर्ट में मौजूद थे. अखिला भी अपने वकील और मांबाप के साथ आई थी. उस के वकील को प्रतिवादी पक्ष का नोटिस मिल चुका था.

अच्छे लोग : भाग 2

‘‘बेटा, तुम कुछ बताते नहीं हो. आखिर बहू को इस घर से या हम से क्या परेशानी है? हम तो उसे एक शब्द भी नहीं कहते. वह अपने मन की करती है, फिर तुम्हारे बीच लड़ाईझगड़ा…?’’ इतना कह कर शारदा चुप हो गई. रमाकांत ध्यान से प्रियांशु का मुंह ताक रहे थे.

प्रियांशु ने अपना हाथ रोक कर कहा, ‘‘मम्मी, मैं स्वयं हैरान और परेशान हूं. वह कुछ बताती ही नहीं. बस, बातबात में गुस्सा करना और बात को बढ़ाते चले जाना उस का स्वभाव है. मैं चुप रहता हूं, तब भी चिल्लाती रहती है.’’‘‘क्या वह स्वभाव से ही गुस्सैल और चिड़चिड़ी है?’’‘‘हो सकता है, परंतु हम कुछ भी तो ऐसा नहीं करते, जिस से उसे गुस्सा आए.’’

‘‘कुछ समझ में नहीं आता,’’ रमाकांत ने पहली बार अपना मुंह खोला, ‘‘क्या मैं उस से बात करूं?’’‘‘कर सकते हैं, परंतु वह बहुत बदतमीज है. जब मेरी नहीं सुनती, तो आप की क्या सुनेगी? कहीं गुस्से में आप की बेइज्जती न कर दे,’’ प्रियांशु ने कहा.‘‘तो फिर उस के मम्मीपापा से बात कर के देखते हैं. कुछ तो उस के स्वभाव के बारे में पता चले,’’ रमाकांत ने आगे सुझाव दिया.

‘‘देख लीजिए, जैसा आप उचित समझें. मुझे तो कुछ समझ में नहीं आता. पर यही भय बना रहता है कि पता नहीं किस बात पर वह भडक़ जाए.’’सच, प्रियांशु मानसिक रूप से बहुत परेशान था. अखिला के सारे प्रत्यक्ष प्रहार वही झेलता था. शारदा और रमाकांत, बस, उसे धीरज बंधा सकते थे.

रमाकांत ने फोन पर अखिला के पिता अवनीश से बात की. अखिला के व्यवहार के बारे में विस्तार से बताने के बाद पूछा, ‘‘भाईसाहब, हम अपनी तरफ से कोई ऐसा काम नहीं करते कि उसे कोई कष्ट हो, परंतु पता नहीं उसे किस बात की तकलीफ है कि हर पल झगड़े के मूड में रहती है.’’

अवनीश जी ने बताया, ‘‘भाईसाहब, अखिला बचपन से ही क्रोधी और जिद्दी स्वभाव की है. हर काम में अपनी मनमानी चलाती है, चीखचिल्ला कर अपनी ही गलतसही बात मनवा लेती है. हमने सोचा था- शादी के बाद ठीक हो जाएगी, परंतु…’’‘‘भाईसाहब, हम तो उसे किसी बात के लिए नहीं टोकते, न उसे कुछ करने के लिए कहते हैं. हमारा बेटा तो ऊंची आवाज में भी बात नहीं  करता, फिर भी…और वह कुछ बताती भी नहीं. कुछ कहे तो हम उस के मन की बात भी समझें.’’‘‘किसी दिन मैं पत्नी के साथ आ कर उसे समझाऊंगा,’’ कह कर अवनीश ने बात समाप्त कर दी.

अगले सप्ताह अवनीश पत्नी के साथ रमाकांत के घर आए. उन्होंने अकेले में अखिला से बात की और दोपहर का खाना खा कर चले गए.उन के जाते ही जैसे घर में तूफान आ गया. अखिला ने अपना रौद्र रूप दिखाते हुए कहा, ‘‘आप लोग क्या समझते हैं अपने को. मैं क्रोधी हूं, जिद्दी हूं, झगड़ालू हूं, तो आप को क्या? यह मेरा स्वभाव है, मैं इसे नहीं बदल सकती. अगर आप को मुझ से कोई तकलीफ है, तो अपना बोरियाबिस्तर उठाइए और कोई दूसरा ठिकाना ढूंढ़ लीजिए. मेरे मम्मीपापा से मेरी शिकायत कर के आप ने अच्छा नहीं किया.’’ अखिला के वाक्वाण सीधे रमाकांत और शारदा के ऊपर चल रहे थे.

शारदा और रमाकांत ने एकसाथ आंखें फैला कर अखिला को देखा. मन में लज्जा और ग्लानि का भाव भी उपजा. यह उन की बहू थी. कैसा सम्मान दे रही थी उन्हें? उन के मन में उस के प्रति कोई द्वेष न था. आज तक उस से ओछी बात न की थी, परंतु वह पता नहीं किस बात का बदला ले रही थी उन से? उन की क्या गलती थी. बस, यही न कि वह उन की पुत्रवधू थी. अगर उसे इस घर में ब्याह कर नहीं आना था, तो न आती. मना कर देती. उन्होंने कौन सी जबरदस्ती की थी. ब्याह में उस की भी सहमति थी.

रमाकांत ने कुछ कहना उचित नहीं समझा. परंतु शारदा से पति का अपमान सहन नहीं हुआ, थोड़ा तेज आवाज में बोली, ‘‘बेटा, तू बेजान गुड्डे की तरह बैठा है. तुझे दिखाई नहीं दे रहा है, यह किस तरह हमारी इज्जत उतार रही है. किस जन्म का बदला ले रही है ये? हम ने इस का क्या बिगाड़ा है?’’प्रियांशु को मां की बात से दुख हुआ. उस ने मन में साहस की बिखरी कडिय़ां जोड़ीं और कुछ तेज आवाज में कहा, ‘‘अखिला, मम्मीपापा से इस  तरह बात करते हैं? तुम्हें जो कहना है, मुझ से कहो. मम्मीपापा की बेइज्जती मैं बरदाश्त नहीं  करूंगा.’’

‘‘वाह रे श्रवण कुमार,’’ अखिला ने उस का उपहास उड़ाते हुए कहा, ‘‘आज पहली बार देख रही हूं, मुंह में जबान भी है तुम्हारे. कल तक तो मेरे सामने मिमियाते रहते थे.’’प्रियांशु को क्रोध आ गया, ‘‘अखिला, अपनी सीमा पार मत करो. कल तक बात मेरी और तुम्हारी थी. आज तुम ने मम्मीपापा को गाली दी है, उन का अपमान किया है. वह भी अकारण. मेरी समझ में नहीं आता, तुम बेवजह घर में झगड़ा क्यों करती रहती हो? इस से तुम्हें कौन सा सुख मिलता है. परंतु एक बात समझ लो, तुम्हारे कर्म तुम्हें कोई सुख नहीं देंगे. एक दिन तुम पछताओगी.’’

‘‘क्या कर लोगे तुम मेरा?’’ अखिला ने उसे चैलेंज किया.‘‘मैं क्या करूंगा, यह मैं नहीं जानता, परंतु शांत जल के अंदर हलचल नहीं होती. उस में लहरें नहीं उठतीं, यह मत भूलना.’’‘‘ओह, तो मुझे तूफान की धमकी दे रहे हो. यही तो मैं चाहती हूं, तूफान आए और तुम सब उस की चपेट में आ कर तहसनहस हो जाओ.’’

अपराधबोध : कोमल किसके इंतजार में थी

अपनी मरजी की लड़की से बेटे की शादी न होता देख एक मां ने कैसी चाल चली कि पासा उलटा पड़ गया और अब न वह घर की रही न घाट की. सुबह का शांत समय था. कोमल खिड़की से बाहर देख रही थी. यह बरसात का महीना था. बाहर के लौन में घास हरीभरी और ताजी लग रही थी. हवा ठंडी और दिल खुश करने वाली गीली मिट्टी की महक लिए वातावरण को सुगंधित कर रही थी. कोमल को 30 साल पहले के ऐसे ही बारिश से भीगे हुए दिन की याद आई… ‘मुबारक हो मैडम, बेटा हुआ है,’ नर्स ने कोमल से कहा.

यह सुन कर कोमल ने चैन की सांस ली. उस को बेहद डर था कि कहीं बेटी पैदा हुई तो पति के परिवार की नजरों में उस का दर्जा गिर जाएगा. इस के 2 कारण थे. पहला था कि लाखों और लोगों की तरह उस के सासससुर के सिर पर अपने वंश को आगे बढ़ाने का भूत सवार था. दूसरा, कोमल से पहले घर में आने वाली बहू, उस के जेठ की पत्नी ने बेटा पैदा किया था. जल्द ही सारे खानदान में बेटा पैदा होने का शुभ समाचार फैल गया. सब से पहले कोमल के सासससुर अस्पताल पहुंचे. उसे बधाई देने के बाद उस के ससुर ने कहा ‘मुझे जैसे ही समाचार मिला, मैं ने यश को जरमनी फोन कर दिया.

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वह बेहद खुश था.’ यश उन का बेटा और कोमल का पति था. वह उस समय कारोबार के सिलसिले में यूरोप का दौरा कर रहा था. उस के सासससुर के आने के कुछ ही देर पश्चात एक के बाद एक दोस्त और रिश्तेदार अस्पताल पहुंचने लगे. साथ में फूलों के गुलदस्ते, मिठाई, बच्चे के लिए कपड़े और खिलौने लाए पर अस्पताल उच्च श्रेणी का था. उस के नियम बहुत कड़े थे. कोमल के सासससुर के अलावा एक समय पर केवल 2 लोग ही उस के कमरे में जा सकते थे और जितने तोहफे और फूल वगैरह आए थे, उन सब को अलग एक छोटे कमरे में रखवा दिया गया. कमरे में ताला लगा कर चाबी कोमल की सास को पकड़ा दी गई. 2 दिनों बाद कोमल अपने बेटे को ले कर घर आई. यश भी उसी शाम को जरमनी से लौटा. फिर कई दिनों तक बच्चे के पैदा होने का जश्न मनाया गया.

कोमल की ससुराल का बहुत बड़ा भव्य घर था, पर उस के ससुर को लगा कि एक ही दिन सारे रिश्तेदारों और सब के दोस्तों को बुलाना तो मेले की भीड़ की तरह होगा, किसी से खुल कर बातचीत भी न हो सकेगी. सो, हर दूसरे दिन पार्टी रखी गई. एक दिन उन के रिश्तेदारों को बुलाया गया. 2 दिनों बाद सुसर के व्यापारी मित्र आए थे. उस के बाद कोमल की सास की सहेलियां पार्टी में आईं. अब आया वह दिन, जब यश और कोमल के मित्रगण खुशी मनाने आए. कोमल के बेटे के नामकरण पर बच्चे के दादाजी ने उस का नाम महावीर रखा. धीरेधीरे महावीर बड़ा हुआ. पढ़ाई में काफी तेज था और हमेशा अपनी कक्षा में पहले या दूसरे स्थान पर आता था पर बचपन से ही वह काफी अडि़यल स्वभाव का था और अपनी मनमरजी के मुताबिक ही काम करता था. 10वीं कक्षा पास करने के बाद जब वह 11वीं में जा रहा था तो उस के पिता यश ने चाहा कि वह कौमर्स और इकोनौमिक्स पढ़े, ताकि आगे जा कर कालेज में वह ‘सीए’ या ‘एमबीए’ कर सके और डिगरी हासिल करने के बाद महावीर उन के कपड़ों के निर्यात के कारोबार में उन का साथ दे. महावीर के कुछ और ही इरादे थे.

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वह एक शानदार फाइवस्टार होटल खोलना चाहता था. इस कारण उस ने 11वीं कक्षा में होम साइंस लिया और 12वीं करने के बाद वह होटल मैनेजमैंट में चला गया. लगभग 3 साल हो गए, तब महावीर की पढ़ाई और ट्रेनिंग पूरी होने वाली थी. एक शाम जब वह घर आया तो बहुत प्रसन्न लग रहा था. ‘मम्मीजीपापाजी, मैं आप के लिए एक खुशखबरी लाया हूं.’ ‘क्या तुम अपने सालाना इम्तिहान में अव्वल नंबर पर आए हो?’ कोमल ने पूछा. ‘नहीं मम्मी, इस इम्तिहान में नंबर जैसी छोटी चीज की बात नहीं है,’ बेटे ने जवाब दिया, ‘यह मेरे जीवन और भविष्य के बारे में बात है.’ ‘अब हमें और लटका कर मत रखो,’ यश बोला, ‘बता ही दो क्या बात है.’ ‘तो सुनिए,’ महावीर ने कहा, ‘मैं ने शादी के लिए एक लड़की ढूंढ़ ली है. मैं ने उस से बात भी कर ली है और उस को यह रिश्ता मंजूर है.’

यश और कोमल को जोर का झटका लगा. थोड़ी देर तक दोनों कुछ बोल न सके. फिर बड़ी मुश्किल से यश ने अपनी आवाज पाई, ‘यह क्या कह रहे हो बेटा? तुम हमारे साथ मजाक तो नहीं कर रहे हो?’ ‘नहीं पापाजी. मैं आप लोगों के साथ भला ऐसा कैसे कर सकता हूं,’ महावीर ने जवाब दिया. ‘यह लड़की कौन है? उस का बाप क्या करता है? क्या वह हमारी तरह राजपूत खानदान की है?’ सवाल पर सवाल महावीर की तरफ फेंके गए. ‘लड़की का नाम पूनम है. वह मेरे साथ होटल मैंनेजमैंट सीख रही है. उस का पिता औटोरिकशा चलाता है. उस की जात और खानदान के बारे में मैं ने कभी पूछा नहीं. शायद वह दलित है, पर इस से क्या फर्क पड़ता है.’ महावीर का जवाब सुनते ही यश आगबबूला हो गया.

‘क्या यश राठौर जैसे करोड़पति का इकलौता बेटा एक रिकशा चलाने वाले की बेटी के साथ शादी करेगा?’ वे गुस्सीले स्वर में चिल्लाए, ‘क्या एक राठौर खानदान का सुपुत्र एक दलित लड़की से रिश्ता जोड़ेगा? यह मैं कभी होने नहीं दूंगा. सारे समाज में हमारी नाक कट जाएगी. लोग हम पर हंसेंगे. तुम यह शादी नहीं कर सकते.’ यह कह कर यश पैर पटकता हुआ उस कमरे से चला गया. ‘बेटा, तुम यह बहुत गलत काम कर रहे हो. उस दलित लड़की का खयाल छोड़ दो,’ कह कर कोमल भी कमरा छोड़ कर चली गई. महावीर की बचपन की पुरानी आदत अब भी थी कि वह अपने मन की मरजी करता था,

चाहे उस के मातापिता कुछ भी कहें. उसे और पूनम को एक फाइवस्टार होटल में नौकरी का बुलावा मिल चुका था, जिस के बारे में उस ने डर के मारे अपने मातापिता को नहीं बताया था. पूनम ने तो प्रस्ताव मिलते ही होटल को ‘हां’ कह दिया था. उस दिन मातापिता के विचारों को सुनने के बाद महावीर ने तय किया कि वह भी उसी होटल की नौकरी स्वीकार कर लेगा. फिर जल्दी ही वह एक छोटा सा मकान किराए पर ले लेगा. अगला कदम भी उस के विचारों में था कि वह तब पूनम से कोर्ट में शादी कर के अपनी गृहस्थी बसाएगा. पूनम को महावीर की योजना सही लगी पर वह पहले अपने पिता से अनुमति लेना चाहती थी.

जब पूनम के पिता को पता चला कि उस की बेटी किस से शादी करने जा रही है तो शुरूशुरू में तो वह डर गया. उसे पता था कि यश राठौर बड़ा आदमी था और उस की जानपहचान शहर के वरिष्ठ पुलिस आईपीएस अफसरों से थी. वे चाहते तो उस का लाइसैंस जब्त करवा सकते थे या उसे किसी बहाने जेल भिजवा सकते थे. महावीर ने उसे आश्वासन दिया कि उस का पिता गुस्सैल जरूर है और उसे जब गुस्सा आ जाता है तो वह कुछ भी कर सकता है लेकिन वह सब स्थिति संभाल लेगा. मुश्किल से पूनम के पिता शादी के लिए राजी हो गए. पहले दिन के झगड़े के बाद महावीर ने अपने पिता के सामने अपनी शादी की बात कभी न उठाई और न ही अपनी मां को कुछ बताया.

ट्रेनिंग खत्म होने के बाद पूनम और महावीर की नौकरी लग गई. अपनी योजना के अनुसार दोनों ने कोर्ट में नोटिस दे दिया कि वे शादी करना चाहते हैं. कानून के अनुसार पहला नोटिस देने के 3 महीने के बाद ही वे शादी कर सकते थे. कायदे के मुताबिक, उन की अर्जी कोर्ट के नोटिस बोर्ड पर लग गई. धीरेधीरे दिन गुजरने लगे. लगभग एक महीने बाद अदालत के ही एक मुलाजिम ने कुछ पैसे ऐंठने की नीयत से कोमल का पता कर उस को फोन किया और बता दिया कि उस का बेटा कोर्ट में शादी करने जा रहा है. महावीर की होने वाली शादी की खबर सुनते ही कोमल के होश उड़ गए.

वह जानती थी कि उस के पति यश बेटे महावीर से पहले ही नाराज थे, क्योंकि उस ने उन के साथ काम करने से इनकार कर दिया था और उस की जगह एक होटल में नौकरी कर रहा था. इस के ऊपर अगर वे यह सुनेंगे कि उन का बेटा एक ओटोरिकशा चलाने वाले की लड़की से शादी कर रहा है तो गुस्से में आ कर महावीर को अपनी जायदाद से वंचित कर सकते थे. कोमल किसी हालत में यह नहीं सह सकती थी. आखिर महावीर उस का एकलौता बेटा था. कोमल सोचने लगी कि वह क्या करे ताकि महावीर और पूनम अलग हो जाएं. वह चाहती थी कि उस का कारगर उपाय कुछ ऐसा हो कि वे दोनों इस शादी के बंधन में न उलझे रहें. धीरेधीरे कोमल के दिमाग में एक उपाय सब से ऊंचा बन कर पांव जमाने लगा. वह यश को इस उपाय में सांझी नहीं बनाना चाहती थी. वह नहीं चाहती थी कि यश का गुस्सा महावीर को सुधारने में और भी भड़क जाए. अकसर अपना कारोबार बढ़ाने के सिलसिले में यश विदेशों के लंबे टूर पर जाते थे. एक ऐसे ही अवसर पर कोमल ने महावीर को फोन किया और कहा, ‘बेटे, तुम्हें देखने को मेरी आखें तरस गई हैं. कल शाम को चाय पर घर आ कर मुझ से कुछ देर बातें कर लो.

तुम्हारे पिताजी इस समय हिंदुस्तान से बाहर हैं. इसलिए, जिस लड़की से तुम शादी करने की बात कर रहे थे, उस को भी साथ ले आओ. कम से कम मैं अपने बेटे की पसंद से मिल तो लूं.’ वह मान गया कि कल शाम को पूनम को साथ ले कर आएगा. अगले दिन सुबह अपनी योजना के अनुसार कोमल बाजार गई. ड्राइवर को कार पार्किंग में छोड़ वह खरीदारी करने पैदल निकल गई, ताकि किसी को कोई शक न हो कि वह असल में क्या लेने आई थी. उस ने एक जोड़ी चप्पल, कुछ रूमाल और एक पर्स खरीदा. फिर अपने मन में उठ रही योजना को पूरा करने के विचार से एक चीज खरीदी- चूहा मारने की दवा. शाम को, कहने के मुताबिक, महावीर और पूनम उस से मिलने आए. कोमल ने उन से काफी बातचीत की. उस ने पूनम की प्रशंसा की और उस से मिल कर बहुत खुश होने का नाटक भी रचा. फिर नौकर से चाय मंगाई. जब चाय आई तो कोमल ने उसे अलग टेबल पर रखने को कहा और खुद उठी चाय बनाने के लिए.

कोमल जानती थी कि उस की खरीदी हुई दवा, चूहों का खून पतला कर के उन को मारती थी. मनुष्यों को भी जब खून में थक्का आ जाने का डर होता तो इसी तरह की दवा बहुत कम मात्रा में दी जाती थी, ताकि खून पतला हो जाए. यदि किसी इंसान को चूहे मारने वाली दवा काफी मात्रा में दी जाए तो उस का खून इतना पतला हो जाता है कि उस की मौत निश्चित थी पर मौत आने में कुछ घंटे लगते हैं. कोमल ने एक प्याले में चाय डाली, अपनी लाई हुई दवा की चार चुटकियां डाल दीं, फिर दूध और चीनी मिला कर प्याला पूनम के सामने रख दिया. वह दूसरे प्याले में चाय डाल ही रही थी कि दूसरे कमरे में फोन बजा. ‘मैं अभी आती हूं’ कह कर वह दूसरे कमरे में फोन सुनने चली गई.

पूनम ने अपनी चाय का प्याला महावीर को पकड़ाया और उठ कर अपने लिए एक और प्याला बनाया. कोमल को आने में देर लग रही थी तो दोनों ने अपनीअपनी चाय पीनी शुरू कर दी. कोमल वापस आई तो देरी के लिए माफी मांगी और अपने लिए चाय बना कर पीने लगी. उस ने सोचा कि पूनम ने महावीर के लिए चाय बना दी होगी. चाय खत्म होने के बाद पूनम और महावीर ने अपनेअपने घर जाने की इजाजत मांगी और निकल पड़े. कोमल के मन में विचार उठा कि जल्दी ही उस का बेटा आजाद हो जाएगा. आकाश की तरफ उस ने निगाहें उठाईं तो देखा कि बादल घिर रहे थे पर लगता था कि अभी वर्षा शुरू होने में समय लगेगा. रात हो गई. कोमल खाना खाने बैठी ही थी कि फोन की घंटी बजी. फोन पर पूनम थी.

उस ने कहा कि वह अस्पताल से बोल रही है. उस की आवाज कांप रही थी और लगता था कि वह किसी क्षण रोने लगेगी. उस ने बताया कि जब वह और महावीर कोमल को छोड़ कर निकले तो वे दोनों काफी देर तक शहर के एक बड़े पार्क में घूम रहे थे, गप्पें हांक रहे थे और भविष्य के लिए योजनाएं भी बना रहे थे. अचानक महावीर की तबीयत खराब हो गई. पूनम उसे टैक्सी में अस्पताल ले गई. वहां डाक्टरों ने कहा कि लगता था कि महावीर ने किसी किस्म का जहर खाया था. उस का बचना मुश्किल था. यह सब सुन कर कोमल को जोर का झटका लगा. यह क्या अनर्थ हो गया था. उस ने सोचा कि जो जाल उस ने पूनम के लिए फैलाया था, उस जाल में उसी का बेटा फंस गया था. उस ने तुरंत ड्राइवर को बुलवाया और अपनी कार से अस्पताल के लिए रवाना हो गई. रास्ते में बारिश शुरू हो गई और जल्दी ही घनघोर वर्षा होने लगी. उस समय सड़कें वाहनों से खचाखच भरी हुई थीं. लंबा ट्रैफिक जाम था. कोमल का मोबाइल उस के पर्स में था. रास्ते में उस का फोन 2-3 बार बजा पर बाहर के शोर के कारण कोमल ने नहीं सुना. कोमल को अस्पताल पहुंचने में लगभग एक घंटा लग गया. वहां उसे पूनम मिली. वह रो रही थी.

‘‘मांजी, महावीर हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए,’’ सिसकियों के बीच में उस ने कहा. कोमल वहीं पास में एक बैंच पर बैठ गई. उसे लगा कि उस ने अपने सपनों को स्वयं ध्वस्त कर दिया, वह क्या करना चाह रही थी पर जाने क्यों मामला उलट गया. बड़ी हिम्मत कर के उस ने यश को फोन लगाया. कोमल की बात सुन कर उस का भी दिल बैठ गया. उस ने कहा कि वह अगली फ्लाइट से वापस आ रहा है. अस्पताल के डाक्टर महावीर के शव का पोस्टमार्टम करना चाहते थे पर कोमल ने मना कर दिया. वहां के बड़े डाक्टर उस के पति यश को जानते थे. कोमल के दबाव में आ कर मौत का कारण उन्होंने ‘दिल का दौरा’ लिख दिया. आखिर वह बड़े उद्योगपति की बीवी होने के अलावा मृतक की मां भी थी.

कोमल आज बरसात की सुबह खिड़की के पास बैठ कर सोच रही थी. महावीर को मरे हुए 7 साल हो गए थे. उस ने महावीर का पोस्टमार्टम रुकवा कर शायद अपनेआप को कई साल कानून के कारागार में कैद होने से बचा लिया था. उस ने यश को भी सचाई नहीं बताई थी. पर उसे अपने मन, खयालात और दिमाग की कैद से कौन बचा सकता था. उस के अपराधबोध ने उसे आजीवन कैद की सजा सुना दी थी. जब तक वह जिंदा रहेगी तब तक सलाखें उस के इर्दगिर्द रहेंगी. जाति, धर्म और पाखंड की.

अच्छे लोग : भाग 1

रिचा ने मम्मीपापा को सहारा दे कर कार से उतारा. फिर उन के आगेआगे मकान की तरफ बढ़ी. मकान सन्नाटे में डूबा था. उस के आगे धूल और गंदगी का साम्राज्य था, जैसे महीनों से वहां सफाई नहीं की गई थी. सच भी था, यह मकान लगभग डेढ़ महीने से बंद पड़ा था.

रिचा ने पर्स से चाबी निका लकर ताला खोला. मकान के अंदर का हाल भी बहुत बुरा था. बंद रहने के बावजूद सारी चीजें धूल से ढकी पड़ी थीं. नमी के कारण एक अजीब भी बदबू हवा में विराजमान थी.

मम्मीपापा को सोफे पर बिठा कर रिचा कुछ सोचने लगी. उस के मम्मीपापा तो जैसे गूंगे और बहरे हो गए थे. वे बिलकुल संज्ञाशून्य थे. आंखें खोईखोई थीं और वे सोफे पर गुड्डेगुडिय़ा की तरह अविचल बैठे हुए थे.रिचा ने जल्दीजल्दी मम्मीपापा के कमरे की थोड़ीबहुत सफाई कर दी. फिर उन्हें उन के कमरे में बैठा कर बाई को फोन कर के उसे जल्दी घर आने के लिए कहा. मम्मीपापा तब तक चुपचाप बैठे रहे.

‘‘पापा, आप अपने को संभालो, इतना सोचने से कोई फायदा नहीं. मम्मी आप लेट जाओ. मैं बाहर से दूधब्रैड ले कर आती हूं. तब तक बाई आ जाएगी. फिर आगे क्या करना, सोचा जाएगा.’’रिचा के बाहर जाने के बाद भी उस के मम्मीपापा वैसे ही बैठे रहे, परंतु अंदर से वे दोनों ही बहुत अशांत थे. उन के हृदय में एक तूफान मचल रहा था. दिमाग में हाहाकार मचा हुआ था. वे समझ नहीं पा रहे थे, उन्हें किस पाप की सजा मिली थी. जीवन में उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया था जो उन्हें हवालात की सीखचों के पीछे पहुंचा सकता. फिर भी उन्हें सजा मिली थी, एक महीने तक वे पत्नी और बेटे के साथ जेल के अंदर रहे थे. आज जमानत पर छूट कर आए थे. बेटा अभी भी बंद था.

उन के दिमाग में एकजैसे विचार घुमड़ रहे थे-रमाकांत और शारदा का दांपत्य जीवन बहुत सुखमय था. दोनों ही सरकारी सेवा में थे. संतानें 2 ही थीं. बड़ी बेटी रिचा की ग्रेजुएशन के बाद शादी कर दी थी. दामाद अभिनव एक अच्छी कंपनी में एक्जीक्यूटिव था. बेटी ससुराल में सुखी थी.

उन का बेटा प्रियांशु एमटैक करने के बाद नोएडा की एक कंपनी में अच्छी सैलरी पर नौकरी करने लगा था. कहीं कोई दुख या अभाव उन के जीवन में न था. बेटे की नौकरी लगते ही उस के रिश्ते की बातें चलने लगी थीं. रमाकांत और शारदा अच्छी लडक़ी की तलाश में थे, परंतु शादी के पहले अच्छीबुरी लडक़ी का पता कहां चलता है.

प्रियांशु की शादी एक रिश्तेदार की बेटी अखिला से हो गई. परंतु बेटे की शादी के बाद से ही रमाकांत के सुखमय परिवार में जैसे राहुकेतु की कुदृष्टि पड़ गई. जिस लडक़ी को अच्छी बहू समझ कर वे घर में लाए थे, उस ने ससुराल की चौखट में कदम रखते ही अपना रूप दिखाना आरंभ कर दिया.

रमाकांत का परिवार बहुत शांतप्रिय परिवार था. घर का कोई भी सदस्य ऊंची आवाज में बात नहीं करता था, लड़ाईझगड़ा तो बहुत दूर की बात थी. परंतु बहू ने घर में आते ही घर के शांत माहौल को आग लगा दी. घर के अन्य सदस्य उस आग को बुझाने का प्रयत्न करते, परंतु अखिला हर घड़ी उस में ज्वलनशील पदार्थ डालती रहती थी.

अखिला को पता नहीं क्या परेशानी थी, कोई समझ नहीं पा रहा था. घर के किसी काम में वह हाथ नहीं बंटाती थी. सारा दिन कमरे में पड़ी रहती थी. प्रियांशु के दफ्तर जाने के बाद भी वह अपने कमरे से कम ही निकलती थी, सास से नाकभौं सिकोड़ कर बात करती. शारदा बहुत समझदार और सहनशील महिला थीं. वे सोचतीं, बहू नए घर में आई है. नए लोग और नए माहौल में शायद समन्वय नहीं बिठा पा रही होगी. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

परंतु सबकुछ ठीक नहीं हुआ. अखिला ने साफसाफ कह दिया, वह घर के किसी काम में हाथ नहीं बंटाएगी. वह घर की बहू थी, नौकरानी नहीं. सब ने एकदूसरे का मुंह देखा और बिना कुछ बोले जैसे सबकुछ समझ गए. अखिला आलसी और कामचोर थी, परंतु अपने पेट के लिए तो कीड़ेमकोड़े और जानवर भी मेहनत करते हैं. अखिला को कब तक कोई बना कर खिला सकता था. इस के बाद भी सभी आशान्वित थे कि अखिला एक दिन दुनियादारी का निर्वाह करेगी.

रमाकांत आदतन सवाल कम करते थे, परंतु शारदा ने प्रियांशु से पूछा, ‘‘बहू ऐसा क्यों कर रही है?’’‘‘पता नहीं,’’ प्रियांशु ने मुंह लटका कर कहा.‘‘बेटा, तुम उस के पति हो. उस के दिल को टटोल कर देखो. शादी में उस की भी मरजी थी. फिर क्यों घर में अशांति फैला रही है?’’‘‘ठीक है, पता करूंगा,’’ कह कर उस ने बात को टाल दिया.

परंतु बात टली नहीं, बल्कि और बिगड़ती गई. अब रात में प्रियांशु के कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगी थीं. इन आवाजों में अखिला की आवाज ही प्रमुख होती. प्रियांशु का स्वभाव ऐसा नहीं था कि वह किसी से लड़ाई कर सकता. न उस के संस्कारों ने उसे मारपीट करना सिखाया था. फिर अखिला के चीखनेचिल्लाने का कारण क्या था?

रमाकांत और शारदा की समझ में कुछ न आता, परंतु उन के मन में भय पसरने लगा था. क्या प्रियांशु की अखिला के साथ शादी कर उन्होंने कोई गलती की थी. परिवार में रोजरोज की कलह कोई अच्छी बात नहीं थी. सभी अवसादग्रस्त रहने लगे थे.

प्रियांशु मांबाप से कोई बात नहीं बताता था. पता नहीं क्यों? आखिरकार, रमाकांत और शारदा ने तय किया कि वही बेटे से बात करेंगे. अलगे रविवार को सभी लोग नाश्ता कर रहे थे. अखिला उन के साथ न नाश्ता करती थी, न खाना खाती थी. प्रियांशु उस का नाश्ताखाना उस के कमरे में दे आता था.

Bigg Boss स्टार अर्शी खान का हुआ भयंकर एक्सीडेंट, फैंस मांग रहे हैं दुआ

बिग बॉस से मशहूर हुईं अदाकारा अर्शी खान को लेकर एक बड़ी खबर आ रही है. अर्शी खान एक एक्सीडेंट में घायल हो गई है. मीडिया रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि दिल्ली में अर्शी खान का भयंकर एक्सीडेंट हो गया है.

खबर है कि यह एक्सीडेंट दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में हुआ है, एक्सीडेंट के समय अर्शी खान अपनी मर्सीडीज कार में थी. एयर बैग ओपन होने से अर्शी खान को ज्यादा नुकसान हुआ है. हालांकि अर्शी खान के सीने में दर्द होने से उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाया गया है.

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फैंस लगातार सोशल मीडिया पर अर्शी खान के हालचाल पूछ रहे हैं. बता दें कि अर्शी खान दिल्ली में कुछ शूटिंग के सिलसिले में दिल्ली आई थी. फैंस लगातार अर्शी खान का हाल चाल पूछ रहे हैं. वह अपने बेबाक अंदाज के लिए जानी जाती हैं.

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उनकी सलामति के लिए फैंस लगातार दुआएं मांग रहे हैं. अर्शी खान बिग बॉस की जानी मानी कंटेस्टेंट हैं. अफगानिस्तान और तालिबान पर कब्जा पर अर्शी खान ने अपना बयाय दिया था. अर्शी खान तालिबान महिलाओं की सपोर्ट में आ गई थी. अर्शी खान ने तालिबान महिलाओं के लिए आजादी की बात की थीं.

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इसके अलावा बिग बॉस के घर में वह हलचल मचा चुकी हैं. इसके अलावा अर्शी खान बिग बॉस के घर में वह विकास गुप्ता के बारे में खुलासा किया था. इसके अलावा विकास गुप्ता ने उन्हें सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था.

Priyanka Chopra ने हटाया जोनस सरनेम तो फैंस ने पूछा ये सवाल

बॉलीवुड स्टार प्रियंका चोपड़ा और उनके पति निक जोनस की तलाक की खबर ने सभी को हैरान कर दिया है.  हाल ही में प्रियंका चोपड़ा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से अपने पति निक जोनस का सर नेम हटा दिया है.

प्रियंका चोपड़ा को ऐसा करते देखकर फैंस को लग रहा है कि प्रियंका और निक जल्द तलाक लेने वाले हैं. जिसके बाद से यह खबर चर्चा में बना हुआ है. इसके साथ ही फैंस यह भी कयास लगा रहे हैं कि इनके शादी शुदा जिंदगी में कुछ तो दिक्कत चल रही है.

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हालांकि प्रियंका चोपड़ा की मां ने इस बात को साफ कर दिया है कि प्रियंका और निक के बीच में ऐसा कुछ भी नहीं चल रहा है. दोनों अपनी शादी शुदा जिंदगी में काफी ज्यादा खुश हैं. लेकिन फैंस को इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा है. उनके मन में खलबली मची हुई है.

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वहीं कुछ लोग कयास लगा रहे हैं कि प्रियंका चोपड़ा ने ऐसा इसलिए किया है ताकी उनके पति चर्चा में आ जाएं, जोनस ब्रदर्स नेटफ्लिक्स पर जल्द अपने नए प्रोजेक्ट के साथ चर्चा में आने वाले हैं. जब भी जोनस ब्रदर्स के प्रोजेक्ट की बात आती है प्रियंका चोपड़ा काफी ज्यादा एक्टिव रहती हैं.

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वह आएं दिन सोशल मीडिया पर एक्टिव भी रहती हैं. अगर प्रियंका चोपड़ा की वर्कफ्रंट की बात करें तो प्रियंका चोपड़ा कुछ दिन पहले अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर हॉलीवुड फिल्म ‘मैट्रिक्स’ का पोस्ट शेयर की थीं. जिसे लोगों ने खूब लाइक किया था.

कसौटी: जब झुक गए रीता और नमिता के सिर

लेखिका- डॉ कासमा चतुर्वेदी

मां के फोन वैसे तो संक्षिप्त ही होते थे पर इतना महत्त्वपूर्ण समाचार भी वह सिर्फ 2 मिनट में बता देंगी, मेरी कल्पना से परे ही था. ‘‘शुचिता की शादी तय हो गई है. 15 दिन बाद का मुहूर्त निकला है, तुम सब लोगों को आना है,’’ बस, इतना कह कर वह फोन रखने लगी थीं.

‘‘अरे, मां, कब रिश्ता तय किया है, कौन लोग हैं, कहां के हैं, लड़का क्या करता है?’’ मैं ने एकसाथ कई प्रश्न पूछ डाले थे. ‘‘सब ठीकठाक ही है, अब आ कर देख लेना.’’

मां और बातें करने के मूड में नहीं थीं और मैं कुछ और कहती तब तक उन्होंने फोन रख दिया था. लो, यह भी कोई बात हुई. अरे, शुचिता मेरी सगी छोटी बहन है, इतना सब जानने का हक तो मेरा बनता ही है कि कहां शादी तय हो रही है, कैसे लोग हैं. अरे, शुचि की जिंदगी का एक अहम फैसला होने जा रहा है और मुझे खबर तक नहीं. ठीक है, मां का स्वास्थ्य इन दिनों ठीक नहीं रहता है, फिर शुचिता की शादी को ले कर पिछले कई सालों से परेशान हो रही हैं. पिताजी के असमय निधन से और अकेली पड़ गई हैं. भाई कोई है नहीं, हम 3 बहनें ही हैं. मैं, नमिता और शुचिता. मेरी और नमिता की शादी हुए काफी अरसा हो गया है पर पता नहीं क्यों शुचिता का हर बार रिश्ता तय होतेहोते रह जाता था. शायद इसीलिए मां इतनी शीघ्रता से यह काम निबटाना चाह रही हों.

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जो भी हो, बात तो मां को पूरी बतानी थी. शाम को मैं ने फिर शुचिता से ही बात करनी चाही थी पर वह तो शुरू से वैसे भी मितभाषी ही रही है. अभी भी हां-हूं ही करती रही. ‘‘दीदी, मां ने बता तो दिया होगा सबकुछ…’’ स्वर भी उस का तटस्थ ही था.

‘‘अरे, पर तू तो पूरी बात बता न, तेरे स्वर में भी कोई खास उत्साह नहीं दिख रहा है,’’ मैं तो अब झल्ला ही पड़ी थी. ‘‘उत्साह क्या, सब ठीक ही है. मां इतने दिन से परेशान थीं, मैं स्वयं भी अब उन पर बोझ बन कर उन की परेशानी और नहीं बढ़ाना चाहती. अब यह रिश्ता तो जैसे एक तरह से अपनेआप ही तय हो गया है, तो अच्छा ही होगा,’’ शुचिता ने भी जैसेतैसे बात समाप्त ही कर दी थी.

राजीव तो अपने काम में इतने व्यस्त थे कि उन को छुट्टी मिलनी मुश्किल थी. मेरा और बच्चों का रिजर्वेशन करवा दिया. मैं चाह रही थी कि 4-5 दिन पहले पहुंचूं पर मैं और नमिता दोनों ही रिजर्वेशन के कारण ठीक शादी वाले दिन ही पहुंच पाए थे. मेरी तरह नमिता भी उतनी ही उत्सुक थी यह जानने के लिए कि शुचि का रिश्ता कहां तय हुआ और इतनी जल्दी कैसे सब तय हो गया पर जो कुछ जानकारी मिली उस ने तो जैसे हमारे उत्साह पर पानी ही फेर दिया था.

जौनपुर का कोई संयुक्त परिवार था. छोटामोटा बिजनेस था. लड़का भी वही पुश्तैनी काम संभाल रहा था. उन लोगों की कोई मांग नहीं थी. लड़के की बूआ खुद आ कर शुचिता को पसंद कर गई थीं और शगुन की अंगूठी व साड़ी भी दे गई थीं.

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‘‘मां,’’ मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘जब इतने समय से रिश्ते देख रहे हैं तो और देख लेते. आप को जल्दी क्या थी. ऐसी क्या शुचि बोझ बन गई थी? अब जौनपुर जैसा छोटा सा पुराना शहर, पुराने रीतिरिवाज के लोग, संयुक्त परिवार, शुचि कैसे निभेगी उस घर में.’’ ‘‘सब निभ जाएगी,’’ मां बोलीं, ‘‘अब मेरे इस बूढ़े शरीर में इतनी ताकत नहीं बची है कि घरघर रिश्ता ढूंढ़ती रहूं. इतने बरस तो हो गए, कहीं जन्मपत्री नहीं मिलती, कहीं दहेज का चक्कर… और तुम दोनों जो इतनी मीनमेख निकाल रही हो, खुद क्यों नहीं ढूंढ़ दिया कोई अच्छा घरबार अपनी बहन के लिए.’’

मां ने तो एक तरह से मुझे और नमिता दोनों को ही डपट दिया था. यह सच भी था, हम दोनों बहनें अपनेअपने परिवार में इतनी व्यस्त हो गई थीं कि जितने प्रयास करने चाहिए थे, चाह कर भी नहीं कर पाए.

खैर, सीधेसादे समारोह के साथ शुचिता ब्याह दी गई. मैं और नमिता दोनों कुछ दिन मां के पास रुक गए थे पर हम रोज ही यह सोचते कि पता नहीं कैसे हमारी यह भोलीभाली बहन उस संयुक्त परिवार में निभेगी. हम लोग ऐसे परिवारों में कभी रहे नहीं. न ही हमें घरेलू काम करने की अधिक आदत थी. पिताजी थे तब काफी नौकरचाकर थे और अभी भी मां ने 2 काम वाली बाई लगा रखी थीं और खाना भी उन्हीं से बनवा लेती थीं.

फिर शुचि का तो स्वभाव भी सरल सा है. तेजतर्रार सास, ननदें, जेठानी सब मिल कर दबा लेंगी उसे. जब चचेरा भाई रवि विदा कराने गया तब हम लोग यही सोच कर आशंकित थे कि पता नहीं शुचि आ कर क्या हालचाल सुनाए. पर उस समय तो उस की सास ने विदा भी नहीं किया. रवि से यह कह कर कि महीने भर बाद भेजेंगी, अभी किसी बच्चे का जन्मदिन है, उसे भेज दिया था.

उधर रवि कहता जा रहा था, ‘‘दीदी, शुचि दीदी को आप ने कैसे घर में भेज दिया, वह घर क्या उन के लायक है. छोटा सा पुराने जमाने का मकान, उस में इतने सारे लोग…अब आजकल कौन बहुओं से घूंघट निकलवाता है, पर शुचि दीदी से इतना परदा करवाया कि मेरे सामने ही मुश्किल से आ पाईं. ‘‘ऊपर से सास, ननदें सब तेजतर्रार. सास ने तो एक तरह से मुझे ही झिड़क दिया कि बहू से घर का कामकाज तो होता नहीं है, इतना नाजुक बना कर रख दिया है लड़की को कि वह चार जनों का खाना तक नहीं बना सकती, पर गलती तो इस की मां की है जो कुछ सिखाया नहीं. अब हम लोग सिखाएंगे.

‘‘सच दीदी, इतनी रोबीली सास तो मैं ने पहली बार देखी.’’ रवि कहता जा रहा है और मेरा कलेजा बैठता जा रहा था कि इतने सीधेसादे ढंग से शादी की है, कहीं लालची लोग हुए तो दहेज के कारण मेरी बहन को प्रताडि़त न करें. वैसे भी दहेज को ले कर इतने किस्से तो आएदिन होते रहते हैं.

शुचि से मिलना भी नहीं हो पाया. मां से भी इस बारे में अधिक बात नहीं कर पाई. वैसे भी हृदय रोग की मरीज हैं वे.

शुचि से फोन पर कभीकभार बात होती तो जैसा उस का स्वभाव था हांहूं में ही उत्तर देती. बीच में दशहरे की छुट्टियों में फिर मां के पास जाना हुआ था. सोचा कि शायद शुचि भी आए तो उस से भी मिलना हो जाएगा पर मां ने बताया कि शुचि की सास बीमार हैं…वह आ नहीं पाएगी.

‘‘मां, इतने लोग तो हैं उस घर में फिर शुचि तो नईनवेली बहू है, क्या अब वही बची है सास की सेवा को, जो चार दिन को भी नहीं आ सकती,’’ मैं कहे बिना नहीं रह पाई थी. मुझे पता था कि उस की ननदें, जेठानी सब इतनी तेज हैं तो शुचि दब कर रह गई होगी. उधर मां कहे जा रही थीं, ‘‘सास का इलाज होना था तो पैसे की जरूरत पड़ी. शुचि ने अपने कंगन उतार कर सास के हाथ पर धर दिए…सास तो गद्गद हो गईं.’’

मैं ने माथे पर हाथ मारा. हद हो गई बेवकूफी की भी. अरे, छोटीमोटी बीमारी का तो इलाज यों ही हो जाता है फिर पुश्तैनी व्यापार है, इतने लोग हैं घर में… और सास की चतुराई देखो, जो थोड़ा- बहुत जेवर शुचि मायके से ले कर गई है उस पर भी नजरें गड़ी हैं. उधर मां कहती जा रही थीं, ‘‘अच्छा है उस घर में रचबस गई है शुचि…’’

मां भी आजकल पता नहीं किस लोक में विचरण करने लगी हैं. सारी व्यावहारिकता भूल गई हैं. शुचि के पास कुछ गहनों के अलावा और है ही क्या. मेरा तो मन ही उचट गया था. घर आ कर भी मूड उखड़ाउखड़ा ही रहा. राजीव से यह सब कहा तो उन का तो वही चिरपरिचित उत्तर था.

‘‘तुम क्यों परेशान हो रही हो. सब का अपनाअपना भाग्य है. अब शुचि के भाग्य में जौनपुर के ये लोग ही थे तो इस में तुम क्या कर सकती हो और मां से क्या उम्मीद करती हो? उन्होंने तो जैसे भी हो अपना दायित्व पूरा कर दिया.’’ फोन पर पता चला कि शुचि बीमार है, पेट में पथरी है और आपरेशन होगा. दूसरी कोई शिकायत हो सकती है तो पहले सारे टेस्ट होंगे, बनारस के एक अस्पताल में भरती है.

‘‘तुम लोग देख आना, मेरा तो जाना हो नहीं पाएगा,’’ मां ने खबर दी थी. नमिता भी छुट्टी ले कर आ गई थी. वहीं अस्पताल के पास उस ने एक होटल में कमरा बुक करा लिया था.

‘‘रीता, मैं तो 2 दिन से ज्यादा रुक नहीं पाऊंगी, बड़ी मुश्किल से आफिस से छुट्टी मिली है,’’ उस ने मिलते ही कहा था. ‘‘मैं भी कहां रुक पाऊंगी, छोटू के इम्तहान चल रहे हैं, नौकर भी आजकल बाहर गया हुआ है. बस, दिन में ही शुचि के पास बैठ लेंगे, रात को तो जगना भी मुश्किल है मेरे लिए,’’ मैं ने भी अपनी परेशानी गिना दी थी.

सवाल यह था कि यहां रुक कर शुचि की देखभाल कौन करेगा? कम से कम 10 दिन तो उसे अस्पताल में ही रहना होगा. अभी तो सारे टेस्ट होने हैं. हम दोनों शुचि को देखने जब अस्पताल पहुंचे तो पता चला कि उस की दोनों ननदें आई हुई हैं. बूढ़ी सास भी उसे संभालने आ गई हैं और उन लोगों ने काटेज वार्ड के पास ही कमरा ले लिया था.

दबंग सास बड़े प्यार से शुचि के सिर पर हाथ फेर रही थीं. ‘‘फिक्र मत कर बेटी, तू जल्दी ठीक हो जाएगी, मैं हूं न तेरे पास. तेरी दोनों ननदें भी अपनी ससुराल से आ गई हैं. सब बारीबारी से तेरे पास सो जाया करेंगे. तू अकेली थोड़े ही है.’’

उधर शुचि के पति चम्मच से उसे सूप पिला रहे थे, एक ननद मुंह पोंछने का नैपकिन लिए खड़ी थी. ‘‘दीदी, कैसी हो?’’ शुचि ने हमें देख कर पूछा था. मुझे लगा कि इतनी बीमारी के बाद भी शुचि के चेहरे पर एक चमक है. शायद घरपरिवार का इतना अपनत्व पा कर वह अपनी बीमारी भूल गई है.

पर पता नहीं क्यों मेरे और नमिता के सिर कुछ झुक गए थे. कई बार इनसानों को समझने में कितनी भूल कर देते हैं हम. मैं ऐसा ही कुछ सोच रही थी.

जब खुला बंद बोरे का राज

सौजन्या- सत्यकथा

8जून, 2021 की बात है. आगरा के थाना सदर के सेवला में रात के 11 बजे एक आदमी कंधे पर बोरा
ले कर जा रहा था. अचानक बोरे के वजन के कारण उस का पैर फिसला और वह बोरे सहित गिर पड़ा. इस पर वहां से निकल रहे लोगों की नजरें उस आदमी की तरफ गईं.वह किसी तरह उठा और बोरे को उठाने का प्रयास करने लगा. उसी समय बोरा खुल गया और उस में से एक हाथ बाहर निकल आया. यह देखते ही लोग उस की ओर दौड़े और उसे पकड़ लिया. बोरे को खुलवा कर देखा तो उस में एक युवक का शव था जिसे देख कर सभी के होश उड़ गए.

बोरे में युवक की लाश मिलने से वहां सनसनी फैल गई. इस घटना की सूचना तुरंत पुलिस को दे दी गई.
सूचना मिलते ही थाना सदर के थानाप्रभारी अजय कौशल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां लोग एक व्यक्ति को पकड़े हुए थे. यह माजरा देखते ही उन्होंने वहां मौजूद लोगों से जानकारी ली. लोगों ने बताया कि यही व्यक्ति कंधे पर बोरे में किसी की लाश ले कर जा रहा था. वजन के कारण वह बोरा सहित गिर गया. बोरा खुलने से लाश के बारे में पता चला.

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पुलिस ने देखा तो बोरे में एक युवक की लाश थी. उस लाश की पहचान 40 वर्षीय जूता कारीगर संजय के रूप में हुई. पुलिस ने शव की पहचान होने के बाद उस के घरवालों को सूचना दी. जानकारी होते ही परिवार में कोहराम मच गया.इस बीच घटना की जानकारी थानाप्रभारी द्वारा अपने उच्च अधिकारियों को दी गई. सूचना मिलते ही एसपी (सिटी) रोहन प्रमोद बोत्रे वहां पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. युवक के गले पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे. मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर पुलिस ने शव को मोर्चरी भिजवा दिया.

पुलिस पकड़े गए युवक मान सिंह को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. थाने पर उस से पूछताछ की गई. जानकारी देने पर पुलिस ने रात में ही मृतक संजय के घर पहुंच कर उस की 35 वर्षीय पत्नी सुनीता उर्फ सुषमा से पूछताछ की.सुनीता ने बताया कि वह दवा लेने गई हुई थी. जब लौट कर आई तो पति संजय घर पर नहीं मिले. उस ने सोचा कि कहीं गए होंगे. जब देर हो गई तो उस ने पति की तलाश शुरू की. बाद में पता चला कि उस के जाने के बाद पति की किसी ने हत्या कर दी थी.

उधर हिरासत में लिए गए युवक ने बिना कुछ छिपाए पुलिस को सच्चाई बता दी. उस ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि मृतक संजय की पत्नी से उस के प्रेम संबंध हैं. पति संजय इस का विरोध करता था. हम दोनों के प्यार के बीच संजय रोड़ा बना हुआ था. वह अपनी पत्नी के साथ मारपीट करता था. मुझे भी घर आने से मना करता था. इसलिए हम दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी.
वह शव को बोरे में बंद कर ठिकाने लगाने ले जा रहा था. लेकिन बोरे के गिर जाने से भेद खुल गया.
पुलिस समझ गई कि मृतक की पत्नी सुनीता इस हत्याकांड में शामिल होने के बावजूद अपने को निर्दोष बता रही है. जबकि उस के प्रेमी मान सिंह ने पुलिस को सारी हकीकत बता दी थी. पुलिस ने सुनीता को भी गिरफ्तार कर लिया और फोरैंसिक टीम को बुला लिया. टीम ने मृतक के घर से कई साक्ष्य जुटाए.
9 जून, 2021 को प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी मुनिराज जी. ने इस हत्याकांड का खुलासा करते हुए हत्या में शामिल मृतक की पत्नी सुनीता उर्फ सुषमा व उस के 38 वर्षीय प्रेमी मान सिंह की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

संजय की हत्या के पीछे जो कहानी निकल कर आई वह 2 प्रेमियों के प्यार के बीच कांटा बनने की इस प्रकार निकली—मृतक संजय आगरा की एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. वह मूलरूप से निबोहरा के मूसे का पुरा का रहने वाला है. देवरी रोड पर मकान ले कर वह परिवार सहित रहता था.
उस के परिवार में पत्नी सुनीता सुषमा के अलावा 3 बच्चे भी हैं. कुछ समय पहले संजय ने अपना मकान बेच दिया. मकान बेचने के बाद वह सेवला में किराए का मकान ले कर रहने लगा.

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संजय शराब पीने का शौकीन था. वह शराब पी कर अकसर सुनीता से झगड़ा करता और उस के साथ मारपीट करता था. सुनीता की दोस्ती थाना सदर के ही टुंडपुरा के रहने वाले मान सिंह से थी. दोनों की मुलाकात कुछ महीने पहले हुई थी. दोस्ती गहरी हो गई. एकदूसरे को पसंद करने लगे.
धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. सुनीता मान सिंह के साथ कई बार पति की गैरमौजूदगी में घूमने जा चुकी थी. संजय को यह जानकारी हो गई. वह पत्नी को भलाबुरा कहता था. उस के पास कोई सबूत नहीं था. इसलिए वह मौके की तलाश में रहता था.जब संजय पत्नी के साथ मारपीट करता तो मानसिंह बीच में पड़ कर मामला शांत करा देता. कई बार उस ने सुनीता को बचाया भी था. संजय शराब पी कर सुनीता से अभद्रता करता था. मान सिंह ने इसी बात का फायदा उठाया. सुनीता के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए उसे अपनी बातों के जाल में फंसा लिया.

पति संजय को पत्नी की मान सिंह से दोस्ती पसंद नहीं थी. वह इस का विरोध करता था. जबकि मान सिंह व सुनीता के बीच प्रेम संबंध दिनप्रतिदिन पुख्ता होते जा रहे थे. दोनों एकदूसरे के बिना रह नहीं पाते थे. पति की आदतों से अब सुनीता को वह अपना दुश्मन दिखाई देता था.सुनीता और मान सिंह को जब भी मौका मिलता दोनों तनमन की प्यास बुझा लेते थे.

संजय को दोनों पर शक हो गया. एक दिन संजय ने दोनों को घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. इस से मान सिंह तिलमिला कर रह गया.लेकिन वक्त की नजाकत को देखते हुए मान सिंह बिना कुछ बोले उस दिन वहां से चला गया. मान सिंह के जाने के बाद संजय ने सुनीता की पिटाई कर दी. वह दोनों के संबंधों का विरोध करने लगा. सुनीता खून का घूंट पी कर रह गई थी. रंगेहाथों पकड़े जाने से वह विरोध की स्थिति में भी नहीं थी.

संजय ने सुनीता को चेतावनी दी कि यदि मान सिंह से उस ने बात करते भी देख लिया तो दोनों को जान से मार देगा. सुनीता ने दूसरे दिन प्रेमी मान सिंह से पति द्वारा की गई पिटाई और धमकी के बारे में मोबाइल पर बताया. यह सुन कर मान सिंह का खून खौलने लगा.तब एक दिन सुनीता और मान सिंह ने अपने प्यार की राह के रोड़े को हटाने की योजना बनाई. सुनीता ने प्रेमी का प्यार पाने के लिए पति की हत्या की साजिश रची.घटना वाले दिन सोमवार की शाम प्रेमी मान सिंह सुनीता से मिलने उस के घर गया. उस समय संजय भी घर पर मौजूद था. मान सिंह को देखते ही उस ने कहा, ‘‘जब मना कर दिया था फिर भी तू आ गया?’

इस पर मानसिंह ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की चीज लाया हूं.’’ यह कहते हुए उस ने साथ लाई शराब की बोतल उसे दिखाई. मान सिंह जानता था कि संजय की कमजोरी शराब है. इसलिए वह बेधड़क घर आ गया था.मान सिंह और सुनीता ने संजय को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में बेसुध हो गया तब दोनों ने उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. दोनों ने गला घोट कर उस की हत्या कर दी. इस से पहले सुनीता ने बच्चों को खाना खिलाया और उन्हें कमरे में टीवी चला कर बैठा दिया. कमरे की बाहर से कुंडी लगा दी थी.

हत्या के बाद दोनों ने शव को बोरे में बंद कर दिया. सुनीता ने प्रेमी मान सिंह से पति की लाश इलाके से दूर ले जा कर किसी तालाब में फेंकने को कहा. ताकि लोगों को लगे कि पानी में डूबने से उस की मौत हुई है.
तब मान सिंह शव को बोरे में भर कर कंधे पर रख उसे फेंकने के लिए रात में ही चल पड़ा. जब वह शव को ठिकाने लगाने जा रहा था तभी रास्ते में पैर फिसलने से बोरा गिर गया और हत्या का भेद खुल गया.
प्रेमी मान सिंह द्वारा लाश फेंकने से पहले ही लोगों ने उसे रंगेहाथों दबोच लिया. आशिकी में पत्नी ने पति की हत्या करा दी थी. सुनीता को अपने पति की हत्या का कोई अफसोस नहीं था.

अपने प्यार की खातिर प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या करने वाली सुनीता के चेहरे पर गिरफ्तारी के बाद भी पछतावे के भाव नहीं दिखाई दिए.इतना ही नहीं, पति की हत्या के मामले में पकड़े जाने पर बच्चों का क्या होगा? उस ने इस बारे में भी नहीं सोचा. मगर जब उसे पता चला कि अब उस की और प्रेमी दोनों की बाकी जिंदगी जेल में कटेगी तो वह रोने लगी.

सुनीता की शादी को 10 साल से अधिक हो गए थे. 3 बच्चों में सब से बड़ा बेटा 9 साल का है. लोगों की सतर्कता के चलते पुलिस ने एक हत्या का परदाफाश घटना के कुछ घंटे बाद ही कर दिया था.
पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से फंदा लगाने वाला दुपट्टा, मृतक का मोबाइल फोन और आधार कार्ड बरामद कर दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

ब्रेकअप- भाग 1 : जब रागिनी ने मदन को छोड़ कुंदन को चुना

‘‘ब्रेकअप,’’अमेरिका से फोन पर रागिनी के यह शब्द सुन कर मदन को लगा जैसे उस के कानों में पिघलता शीशा डाल दिया गया हो. उस की आंखों में आंसू छलक आए थे.

उस की भाभी उमा ने जब पूछा कि क्या हुआ मुन्नू? तेरी आंखों में आंसू क्यों? तो वह रोने लगा और बोला, ‘‘अब सब कुछ खत्म है भाभी… 5 सालों तक मुझ से प्यार करने के बाद रागिनी ने दूसरा जीवनसाथी चुन लिया है.’’

भाभी ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘मुन्नू, तू रागिनी को अब भूल जा. वह तेरे लायक थी ही नहीं.’’

उमा मदन की भाभी हैं, जो उम्र में उस से 10 साल बड़ी हैं. वे मदन को प्यार से मुन्नू बुलाती हैं. मदन महाराष्ट्र का रहने वाला है. मुंबई के उपनगरीय छोटे शहर में उस के पिताजी राज्य सरकार में नौकरी करते थे. उन का अपना एक छोटा सा घर था. मदन की मां गृहिणी थीं. मदन के एक बड़े भाई महेश उस से 12 साल बड़े थे. मदन के मातापिता और बड़ा भाई किसी जरूरी कार्य से मुंबई गए थे. 26 नवंबर की शाम को वे लोग लौटने वाले थे. मगर उसी शाम को छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर आतंकी हमले में तीनों मारे गए थे. उस समय मदन 11वीं कक्षा में पढ़ रहा था. आगे उस की इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की इच्छा थी. पढ़ने में वह काफी होशियार था. पर उस के सिर से मातापिता और भैया तीनों का साया अचानक उठ जाने से उसे अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा था.

मदन के अभिभावक के नाम पर एकमात्र उस की भाभी उमा ही बची थीं. उमा का 5 साल का एक लड़का राजेश भी था. पर उमा ने मदन को कभी भी अपने बेटे से कम प्यार नहीं किया. उमा को राज्य सरकार में अनुकंपा की नौकरी भी मिल गई थी और सरकार की ओर से कुछ मुआवजा भी. अब उमा ही मदन की मां, पिता और भाई सब कुछ थीं. मदन भी उमा को मां जैसा प्यार और सम्मान देता था. मदन ने

पढ़ाई जारी रखी. उसे भाभी ने विश्वास दिला रखा था कि वे उसे हर कीमत पर इंजीनियर बना कर रहेंगी.

मदन का महाराष्ट्र के अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में मैरिट पर दाखिला हो गया. इस कालेज में बिहार के भी काफी विद्यार्थी थे, जो भारीभरकम डोनेशन दे कर आए थे. इन्हीं में एक लड़की रागिनी भी थी, जो मदन के बैच में ही पढ़ती थी. वह पढ़ाईलिखाई में अति साधारण थी. इसीलिए उस के पिता ने डोनेशन दे कर उस का भी ऐडमिशन करा दिया था. उस के पिता केंद्र सरकार के एक उपक्रम में थे जहां ऊपरी आमदनी अच्छी थी. रागिनी को पिता से उस के बैंक अकाउंट में काफी पैसे आते थे और उस का अपना एटीएम कार्ड था. वह दिल खोल कर पैसे खर्च करती थी. अपने दोस्तों को बीचबीच में होटल में खिलाती थी और कभीकभी मूवी भी दिखाती थी. इसलिए उस के चमचों की कमी नहीं थी. सैकंड ईयर के अंत तक उस की दोस्ती मदन से हुई. मदन वैसे तो अपना ध्यान पढ़ाई में ही रखता था, पर दोनों एक ही ग्रुप में थे, इसलिए वह रागिनी की पढ़ाई में पूरी सहायता करता था. रागिनी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. थर्ड ईयर जातेजाते दोनों में दोस्ती हो गई, जो धीरेधीरे प्यार में बदलने लगी.

रागिनी और मदन अब अकसर शनिवार और रविवार को कौफी हाउस में कौफी पर तो कभी किसी होटल में खाने पर मिलते थे पर पहल रागिनी की होती थी. दोनों ने अमेरिका में एमएस करने का निश्चय किया और इस के लिए जरूरी परीक्षा भी दी थी.

मदन अपनी भाभी से कुछ भी छिपाता नहीं था. रागिनी के बारे में भी बता रखा था. दोनों सोच रहे थे कि स्कौलरशिप मिल जाती, तो रास्ता आसान हो जाता.

अमेरिका में पढ़ाई के लिए लाखों रुपए चाहिए थे. हालांकि रागिनी को कोई चिंता न थी. उस के पिता के पास पैसों की कमी नहीं थी. रागिनी की बड़ी बहन का डोनेशन दे कर मैडिकल कालेज में दाखिला करा दिया था. खैर, रागिनी और मदन दोनों की इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो पूरी हो गई पर स्कौलरशिप दोनों में से किसी को भी नहीं मिल सकी थी.

स्टूडैंट वीजा एफ 1 के लिए पढ़ाई और रहने व खानेपीने पर आने वाली राशि की उपलब्धता बैंक अकाउंट में दिखानी होती है. रागिनी के पिता ने तो प्रबंध कर दिया पर मदन बहुत चिंतित था. उस की भाभी उमा सब समझ रही थीं.

उन्होंने मदन को भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘मुन्नू, तू जाने की तैयारी कर. मैं हूं न. तेरा सपना जरूर पूरा होगा.’’

और उमा ने गांव की कुछ जमीन बेच कर और कुछ जमा पैसे निकाल कर मदन के अमेरिका में पढ़ाई के लिए पैसे बैंक में जमा करा दिए. रागिनी और मदन दोनों को वीजा मिल गया और दोनों अमेरिका चले गए. पर दोनों का ऐडमिशन अलगअलग यूनिवर्सिटी में हुआ था.

खैरियत थी कि दोनों के कालेज मात्र 1 घंटे की ड्राइव की दूरी पर थे. रागिनी को कैलिफोर्निया की सांता क्लारा यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन मिला था जबकि मदन को उसी प्रांत की विश्वस्तरीय बर्कले यूनिवर्सिटी में. रागिनी अमीर बाप की बेटी थी. उस ने अमेरिका में एक कार ले रखी थी. दोनों वीकेंड (शुक्रवार से रविवार) में अकसर मिलते. साथ खानापीना और रहना भी हो जाता था. ज्यादातर रागिनी ही मदन के पास जाती थी. कभी मदन रागिनी के यहां बस से चला जाता तो रविवार रात को वह मदन को कार से छोड़ देती थी. दोनों एकदूसरे को जन्मदिन और वैलेंटाइन डे पर गिफ्ट जरूर देते थे. यह बात और थी कि रागिनी के गिफ्ट कीमती होते थे.

मदन ने भाभी को सब बातें बता रखी थीं. उधर रागिनी ने भी मातापिता को अपनी लव स्टोरी बता दी थी. उमा भाभी को कोई आपत्ति नहीं थी. उन्होंने मदन से बस इतना ही कहा था कि कोई गलत कदम नहीं उठाना और किसी लड़की को धोखा नहीं देना. मदन ने भी भरोसा दिलाया था कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा.

रागिनी के पिता को मदन के महाराष्ट्रियन होने पर तो आपत्ति नहीं थी, पर उस की पारिवारिक स्थिति और विशेष कर आर्थिक स्थिति पसंद नहीं थी और उन्होंने बेटी से साफ कहा था कि कोई अच्छा पैसे वाला लड़का ही उस के लिए ठीक रहेगा. शुरू में रागिनी ने कुछ खास तवज्जो इस बात को नहीं दी थी और उन का मिलनाजुलना वैसे ही जारी रहा था. दोनों ने शादी कर आजीवन साथ निभाने का वादा किया था.

मदन लगभग 2 साल बाद अपनी मास्टर डिगरी पूरी कर भारत आ गया था. उधर

रागिनी भी उसी के साथ अमेरिका से मुंबई तक आई थी.

वह 2 दिन तक मदन के ही घर रुकी थी.

उमा भाभी ने उस से पूछा भी था, ‘‘अब तुम दोनों का आगे का क्या प्रोग्राम है?’’

रागिनी ने कहा, ‘‘भाभी, अभी मास्टर्स करने के बाद 1 साल तक हम दोनों को पीटी (प्रैक्टिकल ट्रेनिंग) करने की छूट है. इस दौरान हम किसी कंपनी में 1 साल तक काम कर सकते हैं और हम दोनों को नौकरी भी मिल चुकी है. इस 1 साल के पीटी के बाद हम दोनों शादी कर लेंगे. आप को मदन ने कुछ बताया नहीं?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है. मदन ने सब कुछ बताया है. पर शादी के बाद क्या करना है, मेरा मतलब नौकरी यहां करोगी या अमेरिका में?’’ भाभी ने पूछा.

रागिनी ने कहा, ‘‘मैं ने सब मदन पर छोड़ दिया है. जैसा वह ठीक समझे वैसा ही होगा, भाभी. अब आप निश्चिंत रहिए.’’

 

2 दिन मुंबई रुक कर रागिनी बिहार अपने मातापिता के घर चली गई. रागिनी की बात सुन कर उमा को भी तसल्ली हो गई थी. उन की तबीयत इन दिनों ठीक नहीं रहती थी. उन्हें अपनी चिंता तो नहीं थी पर उन का बेटा राजेश तो अभी हाईस्कूल में ही था. मदन ने भी उन्हें भरोसा दिलाया था कि वे इस की चिंता छोड़ दें. अब भाभी और भतीजा राजेश दोनों उस की जिम्मेदारी थे. बेटे समान देवर पर तो उन्हें अपने से ज्यादा भरोसा था, चिंता थी तो दूसरे घर से आने वाली देवरानी की, जो न जाने कैसी हो, पर रागिनी से बात कर उमा थोड़ा निश्चिंत हुईं.

उधर रागिनी ने जब अपने घर पहुंच कर मदन के बारे में बताया तो पिता ने कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारी खुशी में ही हमारी खुशी है. पर सोचसमझ कर ही फैसला लेना. मदन में तो मुझे कोई खराबी नहीं लगती है… क्या तुम्हें विश्वास है कि मदन के परिवार में तुम ऐडजस्ट कर पाओगी?’’

रागिनी ने कहा, ‘‘मदन के परिवार से फिलहाल तो मुझे कोई प्रौब्लम नहीं दिखती.’’

 

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