अभी अगले दोतीन महीने तक किसी को घर पर मत बुलाना. मैं चाहती हूं पहले ये दोनों मु झे तो स्वीकार लें. मैं इन के साथ जीना चाहती हूं. मु झे इस समय सिर्फ ये चाहिए. अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं आप तो मैं इन्हें ले कर जौनपुर लौट रही हूं.’ ‘अरे नहीं, ऐसा मत कहो. तुम्हें जो अच्छा लगे, करो. मैं भी अब इन से दूर नहीं रह सकता. एक काम करते हैं,
जब हम इन के साथ खूब अच्छे से रहना शुरू कर लेंगे तब एक पार्टी करेंगे. सब को बुलाएंगे. तब तक सिर्फ तुम, मैं और हमारे अंशुल-रोली,’ यह कहते हुए प्रभाष की आंखें नम हो गईं. प्रभाष ने डा. लतिका की मदद से एक एजेंसी से बात कर के 24 घंटे साथ रहने वाली एक आया ढूंढ़ी जो कल से घर आ जाएगी. उस दिन शाम से माधुरी का मातृत्व जीवन शुरू हुआ. प्रभाष ने सरोजिनी नगर की सभी दुकानों में मिठाई के डब्बे भिजवाए. उधर, इस खबर के बाद माधुरी को जानने वालों के दनादन फोन आने लगे.
प्रभाष ने उसे मना किया था कि किसी की कौल उठाने से. उस ने माधुरी से कहा कि धीरेधीरे सब को बताएंगे, अभी वह अपनी खुशियों पर ग्रहण नहीं लगाना चाहता है. माधुरी ने भी इस समय बहस करना उचित नहीं सम झा. दोनों ने तय किया कि 3 महीने तक वे न तो कोई पार्टी देंगे और न ही बच्चों को कहीं बाहर ले जाएंगे. प्रभाष ने सब से यही कहा कि हमारे यहां रिवाज है 3 महीने बच्चे सिर्फ मांबाप के पास घर में रहते हैं. लोगों ने भी सोचा कि इतने साल बाद बच्चे हुए हैं, सो, प्रभाष का इतना सशंकित होना जायज है. सब ने खूब बधाइयां दीं. घर आ कर माधुरी ने सब से पहले अपना कमरा बच्चों के अनुकूल किया. प्रभाष को उस ने एक लंबी लिस्ट पकड़ा कर बाजार भेजा. सूती कपड़े की लंगोट, बेबी डाइपर, दूध की 4 बोतलें, बिस्तर पर बिछाने का प्लास्टिक,
कई सारे कपड़े जिन में सामने बटन हों ताकि पहननेउतारने में आराम रहे. बच्चों के साथ पहली रात माधुरी एक मिनट भी नहीं सोई. हर 2 घंटे पर उन्हें दूध पिलाना होता, एक सोता तो दूसरी जाग जाती. माधुरी के साथसाथ प्रभाष भी सारी रात जगा. सुबह 5 बजे माधुरी ने प्रभाष को सोने के लिए भेजा और खुद बच्चों के पास लेट गई. अगले दिन दोपहर में एक आया आई जिस का नाम रश्मि था. रश्मि बहराइच से है और अब वह 24 घंटे बच्चों के साथ रहेगी. तय यह हुआ कि बच्चों की लंगोट या उन के कपड़े बदलना, धोना आदि रश्मि देखेगी. उन की दूध की बोतल उबालना, उन का दूध बनाना, उन्हें नहलाना ये सब काम माधुरी स्वयं करेगी.
साफसफाई को ले कर माधुरी काफी संजीदा है. प्रभाष भी घर आ कर पहले हाथ, पैर और मुंह धोता है, उस के बाद ही वह बच्चों को गोद में ले सकता है. माधुरी ने अपना पूरा वजूद बच्चों की देखभाल में लगा दिया. 15-20 दिनों में हालत यह हो गई कि माधुरी की आंखों के नीचे काले धब्बे आ गए. उसे हमेशा सिर में दर्द रहने लगा. रश्मि कहने को तो हमेशा साथ रहती पर माधुरी उसे भी रात को सोने भेज देती. हर 2 घंटे पर जागने से हालत यह हुई कि माधुरी ने पिछले कई दिनों से एक बार भी पूरी नींद नहीं ली. दिन बीतते गए और माधुरी का बच्चों के प्रति समर्पण बढ़ता गया.
उस ने किसी का फोन उठाना, कहीं बात करना सब बंद कर दिया. उसे समय भी नहीं मिलता था. एकसाथ 2 छोटे बच्चे संभालना बहुत कठिन कार्य है. महीनेभर बाद प्रभाष की मां रजनी देवी आईं. उन्हें भी दोनों ने महीनेभर आने से मना किया हुआ था. उन के आने से भी माधुरी को कोई खास मदद नहीं मिली क्योंकि सब से ज्यादा जरूरत रात में संभालने की थी. वह सिर्फ और सिर्फ माधुरी करती थी. महीनेभर बाद माधुरी इतनी बीमार पड़ी कि उसे डा. सरोज को दिखाना पड़ा. डा. सरोज ने साफ कहा कि अगर रोज माधुरी की नींद नहीं पूरी होगी तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं.
उसे कम से कम 6-7 घंटे सोना ही पड़ेगा. माधुरी की बिगड़ती हालत के बाद प्रभाष और मां ने तय किया कि दिन में माधुरी सोए, वे देखभाल करेंगे. प्रभाष ने दुकान का काम देखना कम कर दिया. फोन से ही दुकान संभालता और दिन में एक बार जाता. धीरेधीरे दिन बीतते गए. अंशुल और रोली 3 महीने के हो गए. अब वे एक बार में तीनचार घंटे सोते थे. सो, माधुरी को भी उसी बीच सोने का समय मिल जाता. बच्चों के जागने से पहले वह उठती, उन का दूध तैयार करती और उन के सोने के बाद सोती. इन 3 महीनों में माधुरी का 9 किलो वजन कम हो गया और कई सारी दवाएं शुरू हो गईं. 14 मार्च को अंशुल और रोली के 3 महीने के होने पर शाम को एक भोज का आयोजन हुआ.
सारे रिश्तेदार, मित्र और महल्ले के लोग आमंत्रित किए गए. लोगों को धीरेधीरे पता लग गया था कि ये बच्चे सरोगेसी से किए गए हैं. भोज का आयोजन प्रभाष के घर के सामने वाले पार्क में किया गया. दोनों बच्चों को अलगअलग ट्रौली पर बिठा कर प्रभाष और माधुरी रात 8 बजे पंडाल में आए. लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा उन की तरफ, हर कोई बधाई देने लग गया. ‘किस पर गए हैं? लड़का माधुरी पर है और लड़की प्रभाष पर,’ कहते हुए प्रभाष के फूफा कुशवाहाजी ने दोनों के लिए लाए उपहार दिए. ‘प्रकृति ने हमारी सुन ली है. आप सब बच्चों को खूब आशीर्वाद दीजिए. ये हमेशा स्वस्थ रहें, तरक्की करें,’ हर किसी से कहती फिर रही थीं प्रभाष की मां. प्रभाष और माधुरी हर अतिथि से मिलते, उन का धन्यवाद करते और खाना खा कर ही वापस जाने का आग्रह करते.
सब ठीक चल रहा था कि पड़ोस की मंजुला भाभी ने आखिर पूछ ही लिया, ‘माधुरी, तुम जब मायके गईं तब तो तुम्हारा पेट उतना नहीं निकला था. जबकि, सुना है कि जुड़वां बच्चों में ज्यादा निकलता है.’ प्रभाष सम झ गया कि ये मजे लेने के लिए कह रही हैं. उस ने माधुरी की तरफ देखा और सिर हिलाते हुए हामी भरी. माधुरी सम झ गई. उस ने मंजुला भाभी से कहा, ‘भाभी, मेरे पेट निकलने का सवाल ही नहीं उठता है. हम ने सरोगेसी का सहारा लिया है. आप को नहीं पता है क्या?’ ‘सरोगेसी! ओह मु झे नहीं पता था. मु झे लगा तुम ने जन्म दिया है इन को.’ ‘इन की मां मैं ही हूं,’
कहती हुई माधुरी ने अपना लहजा सख्त किया. मंजुला भाभी मौके की नजाकत सम झ गईं, बोलीं, ‘हां भई, इस में दोराय नहीं है. तुम ही इन की मां हो. देखो तो, कितने प्यारे लग रहे हैं. आज इन की नजर जरूर उतारना.’ ‘नजर तो पक्का उतारूंगी इन बच्चों की भी और हम दोनों की भी,’ कह कर माधुरी आगे बढ़ गई. भोज में आमंत्रित कई लोगों को मालूम तो था ये सब पर ज्यादातर लोग खुश थे. प्रभाष और माधुरी का व्यवहार ही ऐसा है. कभी किसी से कोई विवाद नहीं, अपनी जिंदगी में व्यस्त. लेकिन मंजुला भाभी जैसे लोग भी हैं जिन को माधुरी ने उचित जवाब दिया. धीरेधीरे सब ने स्वीकार कर लिया और माधुरी अपने मातृत्व में रम गई. उस की दुनिया अंशुल व रोली के इर्दगिर्द सिमट गई. किसी के भी बीमार होने पर माधुरी बदहवास सी हो जाती. लोगों ने यहां तक कहना शुरू कर दिया कि ‘ऐसा तो कभी देखा ही नहीं, माधुरी अपने बच्चों के लिए पागल है.’
वैसे, इन सब बातों से माधुरी को कोई फर्क नहीं पड़ता था. दिन, हफ्ते और महीने बीतने लगे और बच्चे एक साल के हो गए. इस बार प्रभाष ने अपने गृह जनपद भदोही में इन के एक वर्ष पूरे होने पर पार्टी का आयोजन किया. वहां से लौटे महीनाभर हुआ था कि माधुरी का मासिकधर्म अनियमित हुआ. पिछले 13 महीने की एकएक घटना को सोचती माधुरी की आंख लग गई. प्रभाष ने घर आ कर चाय पी और बैठक के कमरे में सोफे पर पसर गया. माधुरी 9 बजे के करीब उठी तो देखा प्रभाष समाचारपत्र पढ़ रहा है. रश्मि ने बताया कि उस ने चाय दे दी है. ‘‘मु झे जगाया क्यों नहीं?’’ ‘‘तुम अंशुल व रोली की देखभाल में थक जाती हो,’’ रश्मि ने कहा. ‘‘तुम 9 बजे का अलार्म लगा कर सोई हो और दोनों बच्चे भी सो रहे थे. सो, मैं ने जगाया नहीं तुम्हें.’’ यह कह कर प्रभाष चाय पीने लगा. माधुरी चुपचाप वहीं बैठी रही. वह सोचे जा रही थी. उस के दिमाग में वे सारे ताने, वे सारी लांछनें घूम रही थीं. वह दिन कभी नहीं भूलता है उसे जब मिसेज खन्ना ने अपने बच्चे की छठी में माधुरी को बच्चा गोद में नहीं लेने दिया.
मिसेज खन्ना का मानना था कि शुभ काम में बां झ औरतों को दूर रखना चाहिए. सब ने बच्चे को गोद में लिया. जब माधुरी की बारी आई तो मिसेज खन्ना ने बच्चा उस की गोद में नहीं डाला और आगे बढ़ गई. माधुरी बिना कुछ कहे अपमान का घूंट पी कर वहां से वापस आ गई. कई लोगों ने मिसेज खन्ना को इस बरताव के लिए टोका पर वह वैसी ही रही. घर आ कर माधुरी बहुत रोई. सारी रात रोती रही. प्रभाष ने बहुत सम झाया पर वह सिसकती रही. प्रभाष ने खन्नाजी को फोन कर के एतराज जताया. उन्होंने मिसेज खन्ना के बरताव के लिए माफी मांगी. ऐसी अनगिनत घटनाओं को सोच रही थी माधुरी. काफी समय बीतने के बाद प्रभाष ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा,
‘‘वह टैस्ट का बता रही थीं तुम?’’ ‘‘हां, प्रेगाकिट वाला पौजिटिव आया है. कल लैब टैस्ट कराती हूं.’’ ‘‘हां, करवा लो. वैसे, अंशुल व रोली तो हैं ही.’’ ‘‘पता नहीं क्यों मु झे डर लग रहा है?’’ माधुरी ने अपनी हालत बयां करते हुए कहा. ‘‘इस में डरना क्या है. कितनी बार ये टैस्ट हो चुके हैं. आधी स्त्री रोग विशेषज्ञ तो तुम खुद ही हो चुकी हो. चिंता मत करो, सब अच्छा होगा.’’ ‘‘मु झे लग रहा है इस बार मैं…’’ कहती हुई चुप हो गई माधुरी. ‘‘ज्यादा सोचो मत. अभी लैब टैस्ट कराओ, फिर देखते हैं.’’ अगले दिन माधुरी ने लैब टैस्ट कराया, वह भी पौजिटिव. इस के बाद उस ने सीटी स्कैन भी कराया. स्कैन में भी माधुरी गर्भवती पाई गई. जिस अवस्था को पाने के लिए उस ने क्याक्या जतन नहीं किए, क्याक्या नहीं सहा वह आज अपनेआप उसे मिलने जा रही है. प्रभाष ने यह बात किसी को नहीं बताई सिवा मां के और मां को भी हिदायत दी कि वे किसी से न बताएं. मां ने भी परिस्थिति को सम झते हुए उसे माधुरी का ध्यान रखने को कहा. अब तो माधुरी को उलटियां भी आने लगीं. माधुरी लगातार उलटी करती थी.
प्रभाष माधुरी का विशेष ध्यान रखने लगा. मां भदोही से आ गईं. इन सब के बीच माधुरी चुपचुप सी रहने लगी. वह किसी से बहुत ज्यादा बात न करती. प्रभाष से भी कामभर की बात होती. प्रभाष ने कई बार कोशिश की माधुरी का मिजाज सही करने की पर असफल रहा. एक दिन मां ने सुबह खाने की टेबल पर कहा, ‘‘बहू, आजकल तू उदास क्यों रहती है? अरे, प्रकृति कितनी दयावान है हम पर. यह बच्चा सही से हो जाए तो ग्रैंड पार्टी आयोजित की जाएगी. खुश रहा करो. अब तेरी अपनी कोख का बच्चा तेरी गोद में खेलेगा. एक छोटी सी कमी रह गई थी वह भी पूरी होने वाली है.’’ माधुरी ने कुछ नहीं कहा, प्रभाष की ओर देखा. वह नाश्ता करने में व्यस्त था. फिर माधुरी अपने कमरे में चली गई
. दिन गुजरने के बाद रात को 1 बजे माधुरी ने प्रभाष को नींद से जगाया और कहा, ‘‘सुनिए, मैं बहुत परेशान हूं. आप से बात करनी है.’’ ‘‘कहो, क्या बात है, क्यों परेशान हो, तुम?’’ ‘‘जब से मैं गर्भवती हुई हूं, मु झे एक चिंता खाए जा रही है. मैं जानती हूं कि यह एक चमत्कार से कम नहीं है. डा. लतिका ने भी कहा ही है कि अपनी मैडिकल लाइफ में उन्होंने ऐसा नहीं देखा, 4 आईवीएफ फेल के बाद सरोगेसी और फिर नौर्मल गर्भाधान.’’ प्रभाष ने बीच में टोकते हुए कहा, ‘‘उस दिन हैरान तो थी डा. लतिका. सही भी है.’’ ‘‘आप सम झ नहीं रहे. मेरी चिंता अंशुल व रोली को ले कर है,’’ कह कर माधुरी चुप हो गई और प्रभाष की ओर देखने लगी. ‘‘उन को ले कर क्यों चिंतित हो? उन की जितनी देखभाल तुम करती हो उतना कोई और नहीं कर सकता. अगर सब अच्छा रहा तो हमारे 3 बच्चे होंगे. कहां कभी हम एक के लिए क्याक्या नहीं सहे और आज तीसरे का तोहफा मिलने जा रहा है. प्रकृति की कृपा बनी रहे.’’ ‘‘आप को नहीं लगता कि मेरी कोख से जन्मे इस बच्चे के कारण अंशुल और रोली का हक मारा जाएगा?’
’ माधुरी के इस सवाल पर प्रभाष अचंभित हो गया. उस ने कहा, ‘‘इस से अंशुल और रोली का हक क्यों मारा जाएगा. वे भी हमारे बच्चे हैं और यह तो हमारा है ही. तुम्हें नाहक ऐसा लग रहा है. यह तुम्हारे दिमाग का फितूर है, बस, और कुछ नहीं.’’ ‘‘आप ने अभी क्या कहा, वे भी हमारे बच्चे हैं और यह तो हमारा है ही. यह ‘भी’ का क्या मतलब है और फिर क्या कहा, ‘यह तो हमारा है ही’. आप अभी से भेद कर रहे हो. यही सब मेरी चिंता है.’’ प्रभाष बचाव की मुद्रा में आते हुए तुरंत बोला, ‘‘अरे, भी का मतलब इतना गहरा मत निकालो. ऐसे ही कहा है.’’ ‘‘भेदभाव भी ऐसे ही होता है. मम्मीजी जब से आई हैं तब से कितनी बार कह चुकी हैं कि तुम्हारी कोख का यह जो होगा, देखना कितना तेज होगा.
अपना जना अपना ही होता है. अंशुल व रोली मेरा जीवन हैं. इन्होंने मु झे पहली बार अपने स्त्री होने का एहसास कराया है. मेरा सारा जीवन इन पर न्योछावर है. मेरे कलेजे का टुकड़ा हैं. मु झे लगता है कि तीसरे बच्चे के आने पर आप का, समाज का सब का नजरिया अंशुल और रोली के लिए बदल जाएगा. ये दोयम दर्जे की संतानें मानी जाएंगी,’’ कहतेकहते माधुरी की आंखें नम हो गईं. ‘‘मैं फिर कह रहा हूं, तुम्हारा वहम है यह सब. जहां तक मेरा सवाल है, मैं तीनों बच्चों को एकसमान मानूंगा और मम्मी से मैं कल ही बात करता हूं. उन्होंने भी ऐसे ही कहा होगा. कितना प्यार करती हैं वे अंशुल व रोली से. कहांकहां की मन्नतें इन के होने के बाद उन्होंने पूरी की हैं. सब भूल गईं. कोई भेदभाव नहीं होगा. हम सब पढ़ेलिखे, सम झदार लोग हैं. ऐसा मत सोचो.’’ ‘‘आप फिर वही भेद कर रहे हैं. आप ने फिर कहा,
‘मैं तीनों बच्चों को एकसमान मानूंगा’. मतलब, आप एक एहसान करेंगे. तीनों एकसमान नहीं हैं पर आप मानेंगे और रही बात पढ़ेलिखे होने की तो उस का भेदभाव से कोई नाता नहीं होता. इतनी शिक्षा के बाद भी आज समाज में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर कितना भेदभाव है. आप बुरा मत मानिए मेरी बात का, लेकिन सोचिए, इन दोनों मासूमों की क्या गलती है. जब हम अपने बच्चे पैदा नहीं कर पाए तब हम ने सरोगेसी का सहारा लिया. अब जब हमारे पास अंशुल व रोली हैं तो क्या जरूरत है एक और बच्चे की? नए बच्चे के जन्म लेते ही एक पल में सब का प्यार बंट जाएगा. आप का कोई कुसूर नहीं है और आप को मैं क्या कहूं, अपने बारे में मैं खुद नहीं जानती. आज जिस बेबाकी से मैं आप से बोल रही हूं,
मु झे नहीं पता कि 9 महीने अपनी कोख में रखने के बाद बोल पाऊंगी या नहीं. 9 महीने यह मेरे शरीर में पलेगा. मेरा खाया उसे मिलेगा, मेरी हर हरकत से जुड़ा रहेगा. ऐसे में मैं खुद उस से जुड़ जाऊंगी. क्या आप, मैं भेदभाव नहीं करूंगी, इस की गारंटी ले सकते हैं? ले सकते हैं आप मेरी गारंटी?’’ प्रभाष गंभीर हो गया और सोचने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी यह बात सही है. 9 महीने गर्भ में रखने के बाद जाहिर है तुम्हें उस से ज्यादा प्यार हो सकता है. मैं ने इस दृष्टिकोण से सोचा ही नहीं था. लेकिन जब तुम अभी इतना प्यार करती हो तो तब भी करोगी, ऐसा मेरा विश्वास है.’’ ‘‘आप का मु झ पर विश्वास है पर मेरा खुद पर नहीं है. बच्चा गर्भ में मातापिता दोनों के अंश ले कर आता है,
विकसित होता है, फिर मां को अपने अनुसार ढालता है. अकसर आप ने सुना होगा गर्भावस्था में स्त्री अपने व्यवहार से उलटा खानपान करने लगती है. जिसे मीठा नहीं पसंद वह मीठा खाने लगती है, जो फल या सब्जी कभी नहीं छूती वे फलसब्जियां पसंदीदा हो जाते हैं. ये सब पेट में पल रहे बच्चे की पसंद के हिसाब से होता है. ‘‘कहते हैं, एक स्त्री के 3 जन्म होते हैं. पहला, जब वह एक शिशु के रूप में पैदा हुई. दूसरा, जब वह ब्याह कर के ससुराल आई और तीसरा तब जब उस ने एक बच्चे को जन्म दिया. इन तीनों में उसे नए लोग, नया माहौल, नई परिस्थितियों में जीना होता है. खुद को उस के अनुरूप ढालना होता है. अंशुल व रोली में मैं ने वह तीसरा जन्म जिया है. ‘
‘यह आने वाला मेरे में क्या बदलाव लाएगा, मैं नहीं जानती. हो सकता है, मैं अंशुल व रोली को पहले जैसे ही प्यार करूं पर यह भी हो सकता है कि मैं होने वाले बच्चे को ज्यादा प्यार दूं और इन से सौतेला व्यवहार करूं. उस दशा में इन का क्या होगा? यह सोचसोच कर मेरा सिर फटा जा रहा है. आप को इतनी रात जगाया, इस के लिए क्षमा पर दिन में सब लोग होते हैं, कब बात करूं.’’ प्रभाष को माधुरी की चिंता का कारण अब सम झ में आया. वह भी सोच में पड़ गया कि वाकई में ऐसा हुआ तो अंशुल व रोली के साथ अन्याय होगा. ‘‘तुम्हारा सोचना सही है, माधुरी. अच्छा किया तुम ने अपने दिल की बात कही. मैं भी सोचता हूं इस पर. मैं ने कह तो दिया है कि मेरे लिए तीनों बच्चे बराबर होंगे पर तुम्हारी पूरी बात सुनने के बाद मेरा भी आत्मविश्वास डगमगा गया है. तुम इस समय चिंता मत करो,
अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दो. इस पर फिर बात करते हैं.’’ ‘‘फिर कब बात करेंगे, आने वाले 5-7 हफ्तों में ही निर्णय लेना है. उस के बाद तो यह बच्चा पैदा ही करना पड़ेगा.’’ ‘‘मैं सम झा नहीं, तुम क्या कहना चाहती हो कि आने वाले हफ्तों में ही निर्णय लेना है?’’ झुं झला कर प्रभाष ने कहा. ‘‘20 हफ्तों के अंदर हम गर्भपात करा सकते हैं. अभी 11 हफ्ते ही हुए हैं. इसलिए मैं कह…’’ ‘‘पागल हो गई हो क्या? क्या बक रही हो? होश है?’’ प्रभाष ने चिल्लाते हुए कहा. ‘‘चिल्लाइए मत, पूरे होशोहवास में कह रही हूं. एक मां बनने की तड़प मैं ने जी है. मैं ने सुने हैं बां झ होने के ताने और आने वाले 9 महीने मु झे ही सहना है सबकुछ. गर्भधारण में पुरुष सिर्फ सहारा दे सकता है, साथ नहीं. जब आप खुद मान रहे हो कि अंशुल व रोली से भेदभाव हो सकता है तो क्या आप उन के जीवन के साथ यह जोखिम लेने को तैयार हो?’’ माधुरी ने भी चिल्ला कर कहा और फूटफूट कर रोने लगी. ‘‘इस का मतलब यह तो नहीं कि हम अपना बच्चा गिरा दें. हम कोशिश करेंगे तीनों को समान प्यार देने की. तीनों हमारे लिए बराबर होंगे,’’
प्रभाष ने माधुरी का चेहरा हाथों में ले कर ऊपर उठाया और उसे अपनी बांहों में समेट लिया. ‘‘आप सम झ नहीं रहे हैं. यह एक जुआ है उन की जिंदगी के साथ. एक तरफ अंशुल व रोली के प्रति मेरी ममता है और दूसरी तरफ मेरी कोख है. इस जुए में चाहे जो जीते, हारेगी एक मां ही. अगर मैं नए बच्चे को कम प्यार दूंगी तो उस का हक भी मारूंगी. आप पुरुष हैं, आप नहीं सम झ सकते. एक नन्हे के आंगन में आने से ले कर उस के बड़े होने तक, अनवरत रहती है मां. ‘‘आज से 2 साल पहले हमें सिर्फ अपना एक बच्चा चाहिए था चाहे जैसे. प्रकृति ने हमें जुड़वां दिए, वे कम हैं क्या? अंशुल व रोली के मेरी गोद में आने के बाद मेरी कोख को तृप्ति मिल गई. इस बार शुरू में मैं बहुत खुश हुई पर जब इन का चेहरा देखती हूं तो रुलाई छूटती है क्योंकि आने वाले कुछ महीनों में मैं खुद इन के लिए कितना बदल जाऊंगी, नहीं जानती. जिस माधुरी सक्सेना ने प्रैग्नैंट होने के लिए इतना सहा है वही आप से हाथ जोड़ कर विनती कर रही है कि यह बच्चा गिरवा दीजिए,’’
कहती हुई माधुरी ने हाथ जोड़े और रोने लगी. रोतेरोते उस ने अपना सिर प्रभाष की गोद में रख दिया. प्रभाष की आंखें भर आईं. वह माधुरी के सिर पर हाथ फेरने लगा. दोनों उसी तरह पड़े रहे, माधुरी सिसकती रही और प्रभाष खामोश. कुछ समय बाद प्रभाष ने कहा, ‘‘तुम ठीक कह रही हो, माधुरी. हम कुछ ज्यादा ही स्वार्थी हो गए हैं. हम इस बारे में अब किसी और से चर्चा नहीं करेंगे. मैं सम झ ही नहीं पा रहा था तुम जो सम झाना चाह रही थीं. मम्मी से कल मैं बात करूंगा. बच्चा गिराने के इस निर्णय में मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ इसी के साथ प्रभाष की आंखों से दो बूंदें माधुरी के गालों पर पड़ीं, जो इस बात की गवाह हैं कि मां ‘यशोदा’ का आज जन्म हुआ है.