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Holi Special: सोने का पिंजरा- भाग 3

“यही कि आयुषी शादी के बाद जौब करने का नाम भी नहीं लेगी. और उसे उन के हिसाब से चलना पड़ेगा. अब बता, जहां इंसान को अपनी एक छोटी सी छोटी बात के लिए ससुराल वालों का मुंह ताकना पड़े, वहां कोई खुल कर सांस भी कैसे ले सकता है, भला? आयुषी के मांपापा ने तो यही सोच कर बेटी को उन के घर ब्याह दिया कि इतने बड़े घर में बेटी की शादी हो रही है तो उसे नौकरी करने की जरूरत ही क्या है. सही बात है, लेकिन इंसान की अपनी भी कोई ज़िंदगी होती है कि नहीं? शादी के बाद न तो वह अपनी ससुराल वालों से पूछे बिना अपने किसी दोस्त से मिल सकती है, न ही अपने मन का कुछ कर सकती है. यहां तक कि अपने मांपापा से मिलने के लिए भी उसे पति और सासससुर की इजाजत लेनी पड़ती है.”

“ओह, बाप रे,” दीप्ति भौचक्की सी बोली, “वैसे, सुना है बहुत बड़ा परिवार है उस का.”

“हां, सही सुना है तुम ने. आयुषी के ससुर के दोनों छोटे भाई, उन के परिवार, एक विधवा बूआ सास और 85 साल की दादी सास, सब एकसाथ एक ही घर में रहते हैं. उन का अपना कपड़े का बिजनैस है जिसे सब साथ मिल कर चलाते हैं.”

“इस का मतलब भरापूरा परिवार मिला है उसे,” दीप्ति हंसी.

“भरापूरा परिवार नहीं, बड़ा बुरा परिवार मिला है उस बेचारी को. आजाद पंछी की तरह उड़ने वाली लड़की पिंजरे में कैद हो कर रह गई है,” अफसोस जताती कनक बोली, तो हंसती हुई दीप्ति बोली कि हां, मगर सोने के पिंजरे में.

“अब पिंजरा सोने का हो या लोहे का, बना तो है कैद होने के लिए ही,” एक सांस खींचती हुई कनक बोली, “चल अब चलती हूं. कई बार मां का फोन आ चुका है. वैसे, आ कभी घर आ.”

“हां, जरूर आऊंगी. आंटीअंकल को मेरा नमस्ते कहना और चिंटू को मेरा प्यार देना,” मुसकराती हुई बोल दीप्ति भी अपने घर की ओर चल पड़ी.

कनक, आयुषी और दीप्ति, तीनों ने एक ही कालेज से ग्रेजुएशन किया था. तीनों की आपस में अच्छी ट्यूनिग थी. साथ कालेज आनाजाना, मूवी देखना, घूमने जाना उन का होता रहता था. कालेज के बाद, एमबीए कर जहां दीप्ति को एक अच्छी कंपनी में जौब मिल गई, वहीं आयुषी एक स्कूल में टीचर बन गई थी और कनक की शादी हो गई. लेकिन शादी के सालभर के अंदर ही उस का अपने पति से तलाक हो गया और अब वह अपने बेटे चिंटू के साथ अपने मांपापा के साथ रहती है.

इधर शादी के बाद आयुषी ने टीचर की जौब छोड़ दी. छोड़ क्या दी, छुड़वा दी गई. और वैसे भी, उसे जौब करने की जरूरत ही क्या थी अब. कहीं न कहीं आयुषी का वैभव देख कर कर दीप्ति को जलन होती थी कि उस के साथ पढ़ने वाली आयुषी आज ठाठ से जीवन जी रही है और वह चार पैसे कमाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रही है. काश, उसे भी कोई ऐसा पैसे वाला ससुराल मिल जाए, तो कितना अच्छा होगा.

दीप्ति के भाई के दोस्त का साला वहीं अहमदाबाद में ही एक सरकारी औफिसर था. अपने घर से भी वह काफी मजबूत था. उस के पिता राजनीति से ताल्लुकात रखते थे. सो, बड़ेबड़े नेताओं के साथ उन का उठनाबैठना था. गुजरात के पूर्व सीएम विजय रूपाणि के घर उन का आनाजाना था. सब कहते हैं, बड़े ही रुतबे वाले इंसान हैं वे. इसलिए दीप्ति का भाई चाहता था कि कैसे भी कर के उस की बहन की शादी उस के दोस्त के साले से हो जाए. लेकिन यहां समस्या यह थी कि लड़का विधुर था. शादी के 7 महीने बाद ही उस की पत्नी एक एक्सिडैंट में चल बसी थी. वैसे दीप्ति को उस के विधुर होने से कोई समस्या नहीं थी लेकिन पहले वह लड़के से मिल कर उसे अच्छे से जानसमझ लेना चाहती थी.

लेकिन दीपेश से मिलने के बाद दीप्ति को लगा कि यही है जो उस का लाइफपार्टनर बन सकता है. दीपेश का सरल व्यवहार, उस के बात करने का ढंग दीप्ति को इतना पसंद आया कि उस ने तुरंत शादी के लिए हां बोल दिया. सब से बड़ी बात इतना पैसे वाला और इतनी बड़ी पोस्ट पर होने के बावजूद दीपेश को नाममात्र भी घमंड नहीं था. एक रोज उस की दिवगंत पत्नी के बारे में पूछने पर दीपेश ने बताया कि वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था. लेकिन वह उसे ऐसे छोड़ कर चली जाएगी, नहीं पता था उसे.

एकदूसरे को अच्छे से समझ-जान लेने के बाद सगाई और फिर अगले महीने ही दोनों की शादी हो गई. शादी के बाद दोनों 10 दिनों के लिए हनीमून मनाने सिंगापुर चले गए. वे 10 दिन कैसे हवा की तरह निकल गए, पता ही नहीं चला दीप्ति को.

ससुराल में सास, ससुर ननद, देवर सब से दीप्ति को बहुत प्यार मिल रहा था. लेकिन अचानक से दीपेश का बदलाबदला व्यवहार उस की समझ से बाहर था. सुबह वह जल्दी घर से निकल जाता और देररात ही वापस आता था. उस के घर आनेजाने का कोई फिक्स टाइम नहीं था. कभीकभी तो वह कईकई दिनों तक घर नहीं आता और दीप्ति के कुछ पूछने पर उलटे जवाब देता कि वह उस की तरह कोई मामूली सा प्राइवेट जौब नहीं करता. हर हर वक़्त वह दीप्ति को नीचा गिराने की कोशिश करता रहता था. जताता कि उस ने सिर्फ उस के पैसों की खातिर उस से शादी की है.

दीप्ति को समझ नहीं आ रहा था कि शादी के पहले इतना सरल दिखने वाला इंसान एकदम से इतना सख्त कैसे बन गया और वह क्या कोई गईगुजरी है जो दीपेश उस से ऐसे बात करता है? उस की बात पर दीपेश उस से लड़ने लगता. कई बार तो उस ने दीप्ति पर हाथ भी उठा दिया था. लेकिन पति पत्नी के बीच ऐसा तो होता ही रहता है, सोच कर दीप्ति की चुप हो जाया करती थी. लेकिन दीपेश जब उस पर अपने पैसे और पोस्ट का रोब झाड़ता तो उसे बुरा लगता था.

 

राखी सावंत के पति गए हिरासत में, जानें पूरा मामला

बॉलीवुड ड्रामा क्वीन राखी सावंत की मां का निधन बीते दिनों हो गया था, जिसके बाद से राखी सावंत काफी ज्यादा परेशान थी, अब राखी के जीवन में एक और मोड़ आ गया है.

दरअसल, राखी सावंत और आदिल दुर्रानी की शादी टूटने की कगार पर है,राखी ने आदिल के खिलाफ पुलिस को शिकायत दर्ज करवाई है, अब पुलिस ने आदिल को हिरासत में ले लिया है,राखी ने ये भी कहा था कि आदिल दुर्रानी की वजह से उनकी मां का निधन हुआ था.

 

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राखी ने कहा है कि आदिल ने मुझे मारा है मेरा पैसा लूट लिया है, इस इंसान ने मेरी जिंदगी खराब कर दी है,मेरे साथ चीटिंग किया है,राखी ने आदिल की गर्लफ्रेंड का नाम भी बताया है, जिसे जानकर फैंस भी काफी ज्यादा परेशान हैं, राखी के साथ एक के बाद ऐसी घटना होती जा रही है जिससे वह परेशान हैं.

बता दें कि यह पहली बार ऐसा नहीं है कि ऐसा राखी सावंत के साथ हुआ है इससे पहले भी राखी सावंत के साथ इस तरह का हुआ है इससे पहले भी राखी के कई सारे बॉयफ्रेंड है जिन्होंने उन्हें धोखा दिया है. राखी इन दिन रो रोककर हर किसी को इंटरव्यू दे रही हैं.

परितोष को मारेगा लकवा , बा लगाएगी अनु पर इल्जाम

अनुपमा में इन दिनों दिल जीतने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है, लगातार आ रहे इस सीरियल में ट्विस्ट लोगों को हैरान करके रख दिया है. अनुपमा में जहां तक छोटी अनु की कहानी दिखाई जा रही थी वहीं अब अनुपमा में शाह परिवार पर ज्यादा फोक्स किया जा रहा है.

दरअसल बीते दिनों इस सीरियल में दिखाया गया है कि अनुपमा सहित पूरा परिवार माया से मांफी मांगता है, वहीं वनराज और बाबू जी को पता चलता है कि परितोष कारखाने के कागज को वकील को दे दिया है.जैसे ही इस बात का पता चलता है वनराज परितोष को घर से निकाल देता है जिसके बाद परितोष बेहोश हो जाता है.

 

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इतना ही नहीं वह बात करते करते नीचे गिर जाता है, बेहोश हो जाता है, लेकिन रूपाली गांगुली के अनुपमा में आने वाले ट्विस्ट यहीं खत्म नहीं होता है इसमें दिखाया जाएगा कि परितोष को डॉक्टर के पास लेकर जाते हैं जहां पता चलता है कि परितोष को लकवा मार दिया है.

 

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इस खबर को मिलते ही पूरे परिवार में मातम छा जाता है, यह बात सुनते ही अनुपमा बेहोश हो जाती है, अनुपमा  परितोष के इस हालत का जिम्मेदार बा को बताती है.वहीं बा अनुपमा को ताना मारेगी कि पहले ही किंजल औऱ परितोष की जिंदगी में आग लगाने के बाद अब जो परितोष कि हालत है उसकी जिम्मेदार सिर्फ तुम हो अनुपमा इस बात को सुनकर अनुपमा को गहरा सदमा लगेगा.

Holi Special: मिशन मोहब्बत भाग-2

कुछ ही देर में बढि़या खानेपीने का सामान आ गया और बातचीत का दिलचस्प दौर भी चल पड़ा. एक फोन आने पर कामिनी चहकी, ‘‘हां भई, विशाल यहीं पर हैं. अरे नहीं, रूहअफजा से क्यों टालूंगी? पापा नहीं हैं तो क्या हुआ, अपनी पार्टी स्पैशलिस्ट राघव और ऋतु हैं न. हां, फुरसत तो उन्हें आज भी नहीं थी लेकिन मेरे आग्रह करने पर आ गए. ऋतु से बात कर ले. ऋतु, अर्पि का फोन है.’’

ऋतु मोबाइल ले कर बाहर चली गई और राघव व विशाल बातचीत में मशगूल हो गए.

‘‘लगता है आप को अपनी शख्सीयत के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, कामिनीजी,’’ विशाल ने एक आह भर कर कहा.

‘‘आप का साथ हो तो मटके का पानी भी रंग जमा सकता है,’’ कामिनी शोखी से मुसकराई लेकिन उस के कुछ कहने से पहले ही राघव वापस आ गया. हालांकि विदा लेने से पहले विशाल ने कई बार मजेदार शाम और खाने के लिए कामिनी का शुक्रिया अदा किया था, फिर भी अगली सुबह उस ने धन्यवाद करने के लिए कामिनी को फोन किया.

‘‘आज का क्या प्रोग्राम है?’’ कामिनी ने पूछा.

‘‘दिनभर काम और शाम को एअरपोर्ट पर कल की शाम को याद करते हुए फ्लाइट का इंतजार.’’

‘‘फ्लाइट तो आप की रात को 10 बजे है न, उस से पहले आप यहां आ जाइए, मटके के पानी से

रंग जमाने,’’ कामिनी हंसी, ‘‘आप को 9 बजे एअरपोर्ट पहुंचाने की जिम्मेदारी मेरी.’’

‘‘वह मैं खुद पहुंच जाऊंगा, आप बस इतना याद करवा दीजिएगा कि एअरपोर्ट के लिए निकलने का टाइम हो गया है.’’

उस के पहुंचने से पहले ही कामिनी ने गजलों की सीडी लगा रखी थी. संगीत तो धीमा था लेकिन समय पंख लगा कर उड़ रहा था, जल्दी ही एअरपोर्ट के लिए निकलने का समय हो गया.

‘‘फिर कब आइएगा?’’ कामिनी के स्वर में औपचारिकता नहीं थी.

‘‘जल्दी ही. अभी तो जब तक हो सकता था, आना टाला करता था लेकिन अब लगता है खुद ही टूर बनाना पड़ा करेगा.’’

‘‘देखते हैं,’’ कामिनी शोखी से मुसकराई.

‘‘शौक से. जल्द ही फोन करूंगा बताने को कि कब आ रहा हूं.’’

‘‘बताने को ही क्यों, वैसे फोन नहीं कर सकते क्या?’’ कामिनी इठलाई. आज उस ने मानसी को साथ लाने का आग्रह नहीं किया. विशाल वापस आने के लिए रात 10 बजे की फ्लाइट में बैठ गया.

मानसी उसे लेने एअरपोर्ट आई हुई थी. बातचीत के क्रम में बोली, ‘‘यह सोच कर आ गई कि घर पहुंच कर तो तुम सोने की जल्दी में होगे सो ठीक से बताओगे नहीं कि समधियाना कैसा लगा? राहुल ने बताया कि तुम आज भी वहां गए थे.’’

‘‘जाना पड़ा मानसी, राहुल के बौस की बीवी फोन पर अपनी मां को न जाने क्या कहती रहती है. सर्राफ साहब टूर पर थे मगर फिर भी बेटी की जिद पर कामिनी ने अपने भतीजे और बहू को बुला कर मेरी खातिर करवाई. आज भी उस का कहना था कि उस के दामाद ने कहा है कि मुझे रेलवे क्लब दिखाए. मेरे कहने पर कि वह मैं ने देखा हुआ है, बोली, फिर भी आ जाइए, नहीं तो मेरा दामाद कहेगा कि मैं ने ठीक से बुलाया नहीं. क्लब तो खैर नहीं गया लेकिन एअरपोर्ट आते हुए कुछ देर के लिए घर चला गया था,’’ उसे स्वयं आश्चर्य हुआ कि वह किस सफाई से झूठ बोल रहा था. कामिनी के साथ कुछ देर नहीं 2 घंटे से ज्यादा रुका था, ‘‘अरे हां, राहुल की फैक्टरी की तसवीरें देखीं. बहुत बड़ी फैक्टरी है. कालोनी, क्लब वगैरह भी अच्छा है, राहुल की सेहत भी ठीक ही लग रही थी…’’

‘‘यानी उन लोगों को राहुल की तसवीर भी भेज दी गई. तुम्हें लड़की की फोटो दिखाई?’’

‘‘खासतौर पर तो नहीं लेकिन क्लब में राहुल का बौस, बीवी और साली के साथ था. ड्राइंगरूम में भी परिवार के सभी सदस्यों की तसवीरें रखी हुई थीं.’’

‘‘ड्राइंगरूम कैसा है?’’

‘‘बढि़या. जैसा रेलवे के चीफ इंजीनियर का होना चाहिए यानी बंगला भी और बीवी भी,’’ विशाल ने कहा और फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘बढि़या क्या, अच्छा भी न होता तो भी राहुल की पसंद के आगे हम क्या कहते, मानसी, सो, जो है ठीक ही है.’’

‘‘ऐसी बात है तो लड़की की तसवीर तो ले आते.’’

‘‘इस तरह की, मेरा मतलब है रिश्ते वाली, कोई बात ही नहीं की कामिनीजी ने तो मैं पहल कैसे करता?’’

‘‘यह बात भी ठीक है. वैसे अकेली औरत रिश्तेदारों के सामने यह बात करती भी कैसे?’’

‘‘तभी अगली बार तुम्हें भी जयपुर साथ लाने का आग्रह कर रही थीं.’’

‘‘मैं तो जब लड़की वहां आएगी तभी जाऊंगी. तुम्हें भी बारबार नहीं जाना चाहिए, ताकि समधियाने में दोस्ताना नहीं औपचारिकता बनी रहे.’’

विशाल क्या बताता कि समधियाना बनने से पहले ही दोस्ताना बन चुका था और उसे पुख्ता करने को वह तो अकसर वहां जाया करेगा.

कामिनी से अकसर रोज ही मोबाइल पर बात होने लगी, इस से पहले कि कामिनी उस से आने का आग्रह करती या विशाल स्वयं ही जाने की जुगाड़ भिड़ाता, कामिनी ने बताया, ‘‘हम लोग बच्चों के पास जा रहे हैं, प्रेम को बेटियों की बहुत याद आ रही है, निक्की को तो ट्रेनिंग के दौरान छुट्टी मिलेगी नहीं और अर्पि उसे अकेली नहीं छोड़ सकती, सो हम ही जा रहे हैं.’’

‘‘कितने रोज को?’’

‘‘अभी तो 3 सप्ताह का प्रोग्राम है, बच्चों ने रोका तो छुट्टी बढ़ा भी

सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, आप के लौटने के बाद ही जयपुर का टूर बनाऊंगा. फोन पर तो खैर बात होगी ही.’’

‘‘वह तो होगी ही, मगर आप भी वहां क्यों नहीं आ जाते बेटे से मिलने?’’

विशाल फड़क उठा, ‘‘क्या कमाल का आइडिया है, कामिनीजी. मानसी तो उछल पड़ेगी सुन कर लेकिन राहुल से पूछना पड़ेगा कि उस के पास हमें ठहराने की सुविधा है या नहीं?’’

‘‘उस की फिक्र मत करिए, सलिल से कह कर मैं आप के लिए कंपनी के गैस्टहाउस में बढि़या इंतजाम करवा दूंगी. आप बस पहुंचिए वहां इस सप्ताहांत तक.’’

मानसी सुन कर खुश तो बहुत हुई लेकिन शंका भी जतला दी, ‘‘राहुल तो अभी ट्रेनीज हौस्टल में रहता है, हमें कहां रखेगा?’’

‘‘उस की फिक्र मत करो, उस का बौस है न सलिल मेहरा, वह कंपनी के गैस्टहाउस में हमारी व्यवस्था करवा देगा.’’

मानसी ने चौंक कर विशाल की ओर देखा, ‘‘कभी किसी का, खासकर औफिस के लोगों और रिश्तेदारों का एहसान न लेने वाले तुम राहुल के बौस का एहसान लेने को कहोगे?’’

आगे पढ़ें- विशाल सिटपिटा गया, ‘‘एहसान कैसा? कंपनी का…

बचत प्रौपर्टी में सबसे अच्छी और सुरक्षित

खुद का घर होना व्यक्ति के लिए सब से महत्त्वपूर्ण और बड़े वित्तीय निवेशों में से एक  है. जमीन चाहे गांव में हो या शहर में, उस की कीमत लगातार बढ़ रही है. जहां बैंकों में ब्याज दर निरंतर कम होती जा रही है वहीं जमीन या घर भविष्य के लिए बड़ी वित्तीय सुरक्षा देता है.

सुधीर सिंह के पिता खजान सिंह सरकारी कर्मचारी थे. क्लर्क की पोस्ट थी. उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में कार्यरत रहे. अब सेवानिवृत्त हैं. खजान सिंह ने बैंक बैलेंस ज्यादा नहीं बनाया. बैंक में बस जरूरतभर का पैसा ही रहा मगर अपनी छोटीछोटी बचत से वे बाराबंकी के आसपास गांवदेहातों में थोड़ीथोड़ी खेती की जमीनें खरीदते रहे. जिस समय वे सर्विस में आए थे, बाराबंकी जिला काफी पिछड़ा हुआ था. ज्यादातर इलाके में खेतीबाड़ी होती थी. ज्यादातर किसान गरीब थे.

गांवदेहात में अकसर बेटी की शादीगौने के टाइम पर पैसे के लिए लोग अपनी खेती की जमीन का कोई टुकड़ा या तो बेच देते थे या गिरवी रखवा देते थे. खजान सिंह ने ऐसे लोगों से ही कुछ जमीन खरीद ली थी. धीरेधीरे जमीनों के दाम बढ़ने लगे. समय के साथ जिले का विकास हुआ तो खजान सिंह की खरीदी गई कुछ जमीनें मुख्य सड़क के किनारे आ गईं और उन के रेट आसमान छूने लगे. कुछ जमीन सरकार ने सड़क बनाने के लिए अधिग्रहीत की तो उस के एवज में उन्हें काफी पैसा मिला. खजान सिंह उस पैसे को भी जमीन में ही इन्वैस्ट करते रहे.

आज उन के पास 20 बीघा यानी करीब 5 हैक्टेयर जमीन है जिस पर उन का बेटा सुधीर सिंह औषधीय पौधों की खेती कर रहा है. इस से हर साल लाखों रुपए की आमदनी होती है. सुधीर सिंह को हायर एजुकेशन प्राप्त करने के बाद भी कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली, मगर पिता ने जो पैसा जमीनों में निवेश किया वह आज सोना उगल रही हैं. खजान सिंह यदि अपनी छोटीछोटी बचत बैंक में रखते तो घटती ब्याज दरों के चलते इतना बड़ा फायदा उन्हें व उन के परिवार को न मिलता.

पुरानी दिल्ली में रहने वाले अनुज मेहता की छोटी सी गारमैंट फैक्ट्री है. 150 एकड़ के मकान में वे पत्नी व बच्चों के साथ रहते हैं. पत्नी की सलाह पर अनुज ने बचत के पैसे से मकान की छत पर 5 कमरों, टौयलेट, बाथ, किचन और लौबी सहित दूसरी मंजिल बनवा ली. दूसरी मंजिल के कमरे उन्होंने पेइंग गेस्ट की तरह उठा दिए. हर कमरे में 2 तख्त, 2 अलमारी और दोदो कुरसीमेज डाल दीं. आज उन के 5 कमरों में 10 लड़के बतौर पीजी रहते हैं. प्रत्येक से वे 10 हजार रुपए महीना किराया लेते हैं. इस ऐक्सट्रा आमदनी से उन्होंने अपने घर के पास ही 2 छोटे फ्लैट और खरीद लिए हैं. उन को भी पीजी में कन्वर्ट कर दिया है.

अब अनुज मेहता का इरादा इसी तरह और ज्यादा फ्लैट खरीदने व उन में पीजी चलाने का है. बैंक में पैसा जमा करने के बजाय फ्लैट में पैसा इन्वैस्ट करना उन को मुनाफे का सौदा लगता है. कोरोनाकाल में जब उन की फैक्ट्री में ताला पड़ गया और वर्कर्स अपनेअपने गांव लौट गए तो वहां से होने वाली आमदनी बिलकुल ठप हो गई.

अगर अनुज मेहता ने अपना पैसा फ्लैट में इन्वैस्ट न किया होता तो शायद परिवार की गाड़ी चलाने के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ जाता. मगर डेढ़ साल फैक्ट्री बंद रहने के बावजूद अनुज मेहता का परिवार एक बेहतर जीवन जी रहा है. उन के बच्चे अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहे हैं. घर में 2 गाडि़यां हैं. अगर अनुज मेहता गारमैंट फैक्ट्री से आने वाली कमाई के भरोसे रहते तो ये सब कभी न कर सकते थे.

पहले जहां लोग अपनी बचत के पैसे से किसान विकास पत्र खरीद लेते थे या फिक्स डिपौजिट में जमा कर देते थे, समय के साथ इस सोच में अब बड़ा बदलाव आ चुका है. बैंकों में ब्याज दरें इतनी कम हो गई हैं कि उस से कोई बड़ा फायदा नहीं होता है.

इस के अलावा जिस तरह बड़ेबड़े उद्योगपति बैंकों का अरबोंखरबों रुपया ले कर उड़नछू हो रहे हैं और जिस तरह एक के बाद एक बैंक खुद को दीवालिया घोषित कर रहा है, ऐसे में अब बैंक में पैसा रखना सुरक्षित भी नहीं रह गया है. सो, जमीन और मकान को अब एक लंबी अवधि के निवेश के माध्यम के तौर पर देखा जा रहा है जो एक समय बाद अच्छा रिटर्न देता है.

कोरोना वायरस महामारी के मौजूदा हालात में इसे निवेश के बेहतर विकल्पों में से एक माना जा रहा है. घरमकान हालांकि केवल एक फिजिकल प्रौपर्टी है लेकिन आमतौर पर लोगों का इस से भावनात्मक लगाव भी जुड़ा रहता है. किसी भी रैजिडैंशियल प्रौपर्टी में निवेश करने की एक अहम वजह होती है. आइए आप को बताते हैं कि मौजूदा समय रैजिडैंशियल प्रौपर्टी में निवेश करने के लिए क्यों बेहतर है.

बेहतरीन एसेट और वित्तीय सुरक्षा : खुद का घर होना व्यक्ति के लिए सब से महत्त्वपूर्ण और बड़े वित्तीय निवेशों में से एक होता है. घरजमीन की कीमतें लगातार बढ़ती रहती हैं. इस कारण यह भविष्य के लिए वित्तीय सुरक्षा देता है. घर से निवेशक को फिजिकल सुरक्षा भी मिलती है. बड़ी जरूरत के वक्त घर को गिरवी रखा जा सकता है या बेचा जा सकता है.

दिल्ली के मोती नगर में रहने वाले सुरिंदर सिंह बवेजा की एक ही बेटी है. गत वर्ष उस की शादी से पहले बवेजा ने अपना बड़ा मकान करीब 2 करोड़ रुपए में बेच कर उस पैसे के 2 भाग किए. एक हिस्से से उन्होंने एक छोटा मकान लिया जिस में वे अपनी पत्नी के साथ सहूलियत से रह सकें और बचा हुआ पैसा उन्होंने फिक्स कर दिया. दूसरे हिस्से में से उन्होंने बेटी की शादी के खर्चे वहन किए और बचा पैसा बेटी के नाम पर फिक्स कर दिया. इस तरह जरूरत के वक्त उन की बनाई प्रौपर्टी उन के काम आई.

प्रौपर्टी की वैल्यू समय के साथ बढृती है : वैश्विक तौर पर सोना और प्रौपर्टी 2 सब से बेहतर एसेट्स हैं जिन की वैल्यू समय के साथ बढ़ती है. रियल एस्टेट में कई ऐसे फैक्टर मौजूद हैं जिन से प्रौपर्टी के मूल्य का पता चलता है जैसे भूमि, जगह, समय, इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास, ब्याज दर आदि. एक प्रौपर्टी जिस की लोकेशन अच्छी हो वह एक बेहतर विकल्प हो सकती है क्योंकि इस में निवेश करने वाले व्यक्ति को भविष्य में किराए या सीधे बेचने में ज्यादा रिटर्न मिलने की उम्मीद होती है.

ज्यादा सुरक्षित निवेश का विकल्प : इक्विटी बाजार और म्यूचुअल फंड में उतारचढ़ाव बना रहता है. इस के बारे में आम लोगों में सम झ भी कम होती है. दूसरी तरफ पारंपरिक वित्तीय बचत जैसे बैंक, पोस्ट औफिस आदि में ब्याज दर बहुत ज्यादा घट गई है. इस से वर्तमान समय में जमीन और घर बेहतर निवेश के विकल्पों में से एक बन गया है. बाजार में अस्थिरता की वजह से भी इन की कीमतें रातोंरात नहीं बदलती हैं और इस के अलावा यह कम जोखिम वाला बेहतर क्षेत्र है.

नियमित आय : रियल एस्टेट में निवेश से जितनी लागत इस में लगती है, उस से कहीं ज्यादा रेवेन्यू जमा होता है. लोग जमीन खरीद कर बाउंड्री खिंचवा कर उस पर एकदो कमरे डाल देते हैं और उसे बरात घर में तबदील कर देते हैं. मकान को पीजी के तौर पर चढ़ा देते हैं. किराए पर किसी कंपनी को दे देते हैं. इस से कैश का फ्लो हर समय बना रहता है.

प्रौपर्टी में निवेश करना पारंपरिक रूप से पुरुषों का काम माना जाता था. लेकिन अब महिलाओं की रुचि भी इस ओर बढ़ी है. वे पढ़लिख कर नौकरी या बिजनैस कर रही हैं. वे बचत करती हैं, निवेश करती हैं और पैसों से जुड़े अन्य जरूरी फैसले भी लेती हैं. पिछले कुछ समय में महिलाओं ने रियल एस्टेट में निवेश करना शुरू किया है क्योंकि यह निवेश के सब से सुरक्षित और फायदे वाले विकल्पों में से एक है. इस से महिलाओं को रैगुलर इनकम तो होती ही है, साथ में टैक्स के फायदे भी मिलते हैं.

विवाहित महिलाओं को मिलते हैं फायदे : अगर घर पति, पत्नी दोनों के नाम पर है और वे खुद उस घर में रहते हैं तो होम लोन पर दिए जाने वाले ब्याज पर टैक्स में छूट मिलती है. अगर आय के अलगअलग स्रोत हैं और अलगअलग रिटर्न भरते हैं तो पति और पत्नी दोनों ही सैक्शन 24 के तहत 2 लाख रुपए तक ही छूट पा सकते हैं. प्रिंसिपल अमाउंट के पेमेंट, स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज पर भी टैक्स में छूट मिलती है. यानी टैक्स की काफी बचत हो जाती है.

कई राज्यों ने प्रौपर्टी खरीदने वाली महिलाओं के लिए कई तरह की स्कीमें लौंच की हैं, जिन में स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन पर छूट मिलती है. ऐसा महिलाओं को प्रौपर्टी में निवेश के लिए प्रोत्साहित करने के लिए है. इसलिए जब भी प्रौपर्टी खरीदें, संबंधित राज्य की सभी योजनाओं की जानकारी जरूर लें.

प्रौपर्टी में निवेश करना रैगुलर इनकम पाने का सब से सुरक्षित माध्यम है. जैसेजैसे परिवार बढ़ता है, बच्चों की पढ़ाई, कालेज, शादी वगैरह के लिए ज्यादा फंड की जरूरत होती है. प्रौपर्टी किराए पर देने से इस की पूर्ति की जा सकती है. आमतौर पर किराए में हर साल 5 से 10 फीसदी का इजाफा भी होता है.

जीवन अनिश्चितताओं से भरा है. डिवोर्स रेट तेजी से बढ़ा है. आर्थिक जोखिम भी हैं जैसे नौकरी का जाना या व्यवसाय में घाटा हो जाना. इन सभी से शादीशुदा महिला वित्तीय समस्या में फंस सकती है. प्रौपर्टी में निवेश करने से इस से बचा सकता है.

कुछ सावधानियां भी जरूरी हैं

प्रौपर्टी कभी भी जल्दबाजी में न खरीदें. खरीदारी का कोई फैसला करने से पहले कम से कम 10 प्रौपर्टियों का पता कर लेना चाहिए. इन में किसी भी तरह की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए क्योंकि कमीशन बनाने के लिए कोई ब्रोकर अनुचित प्रौपर्टी भी खरीदवा सकता है.

प्राइस और लोकेशन के अलावा खरीदारी में स्पेस को भी ध्यान में रखना चाहिए. क्या एरिया का इंफ्रास्ट्रक्चर सुधरेगा, आने वाले समय में आसपास में और क्याक्या बनने वाला है, इस की पड़ताल कर लेनी चाहिए.

प्रौपर्टी खरीदने से पहले उस के कागजात किसी अच्छे वकील को दिखा लेने जरूरी हैं. प्रौपर्टी पर कोई मुकदमेबाजी तो नहीं है या भविष्य में उस प्रौपर्टी को ले कर किसी कानूनी अड़चन का सामना तो नहीं करना पड़ेगा, इन सभी सवालों पर माथापच्ची कर लेना जरूरी है.

जब प्रौपर्टी में निवेश करें तो अपने लक्ष्य को ले कर स्पष्ट रहें. उदाहरण के लिए अगर प्रौपर्टी खुद के इस्तेमाल के लिए ली जा रही है तो यह सुनिश्चित करें कि प्रौपर्टी एक अच्छी लोकेशन पर हो और उस का फिजिकल व सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित हो. सभी सुविधाएं भी जरूरी हैं. अगर प्रौपर्टी केवल निवेश के उद्देश्य से ले रही हैं तो ऐसे इलाके में लें जहां कीमतें ज्यादा बढ़ें और ज्यादा किराया भी मिले. बिल्डर की साख कैसी है, यह भी देखें ताकि आगे जा कर कानूनी मामले में फंसने का जोखिम न हो.

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उस की डायरी- भाग 4: आखिर नेत्रा की पर्सनल डायरी में क्या लिखा था

‘मुग्धा ने मुझे बताया कि हमारी शादी के पहले से आप दोनों का प्रेम संबंध चल रहा था और शादी के बाद भी आप दोनों के बीच का संबंध टूटा नहीं था.

‘मुग्धा ने मुझे सब सच बता दिया था शिशिर, कि किस प्रकार आप दोनों ने मुझ पर चरित्रहीन होने का झूठा आरोप लगाया था, ताकि आप मुझे आसानी से तलाक दे कर मुझ से छुटकारा पा सकें. आप ने एक बार मुझ से कहा तो होता कि आप मुग्धा से प्रेम करते हैं और उस से शादी करना चाहते हैं. मैं खुद ही सदा के लिए आप के जीवन से चली जाती. जब मैं आप से एक बार मेरी बात सुनने की मिन्नतें करती थी, उस वक्त आप और मुग्धा मेरी बेबसी और आंसुओं का मजाक उड़ाते होंगे. क्या आप के अंदर लेशमात्र भी इंसानियत बाकी नहीं रही थी?

‘खैर, अब तो आप दोनों खुश होंगे न, आखिर, आप की योजना सफल जो हो गई है. यदि मैं चाहती तो यह सच सब को बता सकती थी, शिशिर. मगर, मैं ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि आप के बूढ़े, शरीफ मातापिता आप का यह रूप देख कर खुद को संभाल न पाते. वैसे भी, आप और मुग्धा वाकई एकदूसरे के लिए ही बने हैं. आप ने मुझे चरित्रहीन कहा था न, शिशिर, तो फिर आप और मुग्धा क्या हैं? बहुत अच्छा हुआ, जो आप का असली चेहरा मेरे सामने आ गया. मैं ने आप के लिए बहुत आंसू बहा लिए. लेकिन अब, आज के बाद मेरी आंखों से आप के लिए एक भी आंसू नहीं गिरेगा, क्योंकि आप इस के लायक ही नहीं हैं. दिल तो चाह रहा था कि आप को बहुत कोसूं, लेकिन अब वह भी नहीं करूंगी.

‘मां पुकार रही हैं. सुबह जल्दी तैयार हो कर रेलवे स्टेशन पहुंचना है. जाने से पहले आप को धन्यवाद देना चाहती हूं, क्योंकि मुझे आप से बहुतकुछ मिला है. आप से मिलने के बाद मैं ने प्रेम करना सीखा, रिश्तों को निभाना सीखा, संतोष से जीना सीखा और सब से बढ़ कर, जीवन का सब से बड़ा सबक भी सीखा. वह सबक यह कि किसी पर इतना भी अंधविश्वास नहीं करना चाहिए और न ही इतना अधिक प्रेम करना चाहिए कि वह प्रेम एक दिन तुम्हें ही समाप्त कर दे.

‘मैं तो जा रही हूं शिशिर और जीवन में कभी आप से दोबारा नहीं मिलना चाहूंगी, लेकिन जाने से पहले यही चाहूंगी कि आप और मुग्धा हमेशा खुश रहें. आखिर, आप दोनों ने एकदूसरे का साथ पाने के लिए बहुत मेहनत की है.

‘और हां, आप किसी और के प्रेम में पड़ कर मुग्धा के साथ वह मत कीजिएगा जो मेरे साथ किया. अच्छा, अब मैं चलती हूं. आप अपना खयाल रखिएगा. आप के दिए सामान की तरह मैं यह डायरी भी यहीं छोड़ कर जा रही हूं. जानती हूं कि आप और मुग्धा सब से पहले मेरा सारा सामान बाहर फेंकेंगे. यह डायरी भी उसी के साथ चली जाएगी. बहरहाल, आप खुश रहें.

‘अलविदा.’

शिशिर के हाथपांव सुन्न हो गए थे. वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर यह सब क्या था? मुग्धा ने नेत्रा से झूठ क्यों बोला?

नेत्रा की डायरी पढ़ने के बाद जो कुछ उस की समझ में आया था, क्या वह सब सच था? उसे यह बात तो मालूम थी कि तलाक होने से कुछ रोज पहले मुग्धा नेत्रा से मिलने घर गई थी. मगर मुग्धा ने तो उस से यह कहा था कि नेत्रा ने किसी और आदमी के साथ प्रेम संबंध होना स्वीकार कर लिया है और वह तलाक के लिए भी तैयार है. फिर नेत्रा ने यह सब क्या लिख दिया था? उसे याद आ रहा था कि मुग्धा ने शादी के बाद उसे बताया था कि वह उस से बहुत समय से प्रेम करती थी, मगर उस के शादीशुदा होने के कारण उस ने यह बात अपने मन में ही दबाए रखी तो क्या मुग्धा उस के प्रेम को पाने के लिए इतना बड़ा खेल खेल गई थी?

शिशिर को मुग्धा से अधिक खुद पर गुस्सा आ रहा था कि आखिर उस ने एक बार नेत्रा की बात क्यों नहीं सुनी? अपने मातापिता और दोस्तों की क्यों नहीं सुनी? क्यों वह सिर्फ मुग्धा के हाथों का मोहरा बना रहा? उस ने नेत्रा को हमेशा मूर्ख और गंवार कहा था तो वह स्वयं क्या था? उस ने जिस नेत्रा पर बदनामी का दाग लगाया था, वह तो आज बेदाग साबित हो कर निकली थी? फिर मुग्धा क्या थी? शिशिर ने अपनी आंखों से छलकते आंसुओं को पोंछा. उस से बहुत बड़ा अपराध हो गया था. उस ने सोच लिया था कि वह कोई भी फैसला करने से पहले मुग्धा के लौटने का इंतजार करेगा. उसे सारा सच बता कर देखेगा कि वह अपनी गलती स्वीकार करती है या नहीं. वह अपने किए पाप का पश्चात्ताप करना चाहती है या नहीं.

यदि मृणाल की फिक्र न होती तो वह बगैर सोचे मुग्धा से अलग हो जाता. लेकिन नेत्रा के बाद अब वह अपनी बेटी के साथ नाइंसाफी नहीं करेगा. नेत्रा भी कभी ऐसा नहीं चाहेगी. उस के बाद अपने मातापिता और दोस्तों से दोबारा संपर्क कर के उन्हें सारा सच बताएगा. शायद उन में से किसी से नेत्रा का पता या फोन नंबर मिल जाए. वह बारबार माफी मांगेगा तब तक जब तक कि वह उसे माफ न कर दे. शायद इसी से उस के गुनाहों का बोझ थोड़ा कम हो जाए. अभी उसे पश्चात्ताप का बहुत लंबा सफर तय करना था. यही सोचते हुए शिशिर ने भारी मन से नेत्रा की डायरी फिर से दराज में रख दी.

दुस्वपन-भाग 2 : आखिर क्यों 30 साल बाद घर छोड़कर जाने लगी संविधा

आखिर एक दिन शाम को खाते समय बेटे ने कह ही दिया, ‘‘मम्मी, आजकल आप रोजाना शाम को कहीं न कहीं जाती हैं. आप तो एकदम से मौडर्न हो गई हैं.’’

उस समय संविधा कुछ नहीं बोली. अगले दिन वह जाने की तैयारी कर रही थी, तभी बहू ने कहा, ‘‘मम्मी, आज आप बाहर न जाएं तो ठीक है. आप बच्चे को संभाल लें, मुझे बाहर जाना है.’’

‘‘आज तो मुझे बहुत जरूरी काम है, इसलिए मैं घर में नहीं रुक सकती,’’ संविधा ने कहा.

उस दिन संविधा को कोई भी जरूरी काम नहीं था. लेकिन उस ने तो मन ही मन तय कर लिया था कि अब उस से कोई भी काम बिना उस की मरजी के नहीं करवा सकता. उस का समय अब उस के लिए है. कोई भी काम अब वह अपनी इच्छानुसार करेगी. अब वह किसी के हाथ से चलने वाली कठपुतली बन कर नहीं रहेगी.

इसलिए जब उस रात सोते समय राजेश ने कहा, ‘‘संविधा टिकट आ गए हैं,  तैयारी कर लो. इस शनिवार की रात हम काशी चल रहे हैं. तुम्हें भी साथ चलना है. उधर से ही प्रयागराज और अयोध्या घूम लेंगे. हमारे कुल पुरोहित ने कहा है. याद है न परसों आए थे. मां ने उन्हें 1000 रुपए भी चढ़ाए थे.’’

तब संविधा ने पूरी दृढ़ता के साथ कहा, ‘‘मैं आप के साथ नहीं जाऊंगी. मेरी बहन अणिमा की तबीयत खराब है. मैं उस से मिलने जाऊंगी. आप को काशी, प्रयागराज और अयोध्या जाना है, आप अकेले ही घूम आइए.’’

‘‘पर मैं तो तुम्हारे साथ जाना चाहता था, उस का क्या होगा?’’ राजेश ने झल्ला कर कहा.

‘‘आप जाइए न, मैं कहां आप को रोक रही हूं,’’ संविधा ने शांति से कहा.

‘‘इधर तुम्हें हो क्या गया है? जब जहां मन होता है चली जाती हो, आज मुझ से जबान लड़ा रही हो. अचानक तुम्हारे अंदर इतनी हिम्मत कहां से आ गई? मैं ऐसा नहीं होने दूंगा. तुम्हें मेरे साथ काशी चलना ही होगा,’’ राजेश ने चिल्ला कर कहा.

गुस्से से उस का चेहरा लालपीला हो गया था. संविधा जैसे कुछ सुन ही नहीं रही थी. वह एकदम निर्विकार भाव से बैठी थी. थोड़ी देर में राजेश कुछ शांत हुआ. संविधा का यह रूप इस से पहले उस ने कभी नहीं देखा था. हमेशा उस के अनुकूल, शांत, गंभीर, आज्ञाकारी, उस की मरजी के हिसाब से चलने वाली पत्नी को आज क्या हो गया है? संविधा का यह नया रूप देख कर वह हैरान था.

अपनी आवाज में नरमी लाते हुए राजेश ने कहा, ‘‘संविधा, तुम्हें क्या चाहिए? तुम्हें आज यह क्या हो गया है? मुझ से कोई गलती हो गई है क्या? तुम कहो तो…’’ राजेश ने संविधा को समझाने की कोशिश की.

‘‘गलती आप की नहीं, मेरी है. मैं ने ही इतने सालों तक गलती की है, जिसे अब सुधारना चाहती हूं. मेरा समग्र अस्तित्व अब तक दूसरों की मुट्ठी में बंद रहा. अब मुझे उस से बाहर आना है. मुझे आजादी चाहिए. अब मैं मुक्त हवा में सांस लेना चाहती हूं. इस गुलामी से बेचैन रहती हूं.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं, ‘‘राजेश ने कहा, ‘‘तुम्हें दुख क्यों है? घर है, बच्चे हैं, पैसा है, मैं हूं,’’ संविधा के करीब आते हुए राजेश ने बात पूरी की.

‘‘छोटी थी तो मांबाप की मुट्ठी में रहना पड़ा. उन्होंने जैसा कहा, वैसा करना पड़ा. जो खिलाया, वह खाया. जो पहनने को दिया, वह पहना. इस तरह नहीं करना, उस तरह नहीं करना, यहां नहीं जाना, वहां नहीं जाना. किस से बात करनी है और किस से नहीं करनी है, यह सब मांबाप तय करते रहे. हमेशा यही सब सुनती रही. शब्दों के भाव एक ही रहे, मात्र कहने वाले बदल गए. कपड़े सिलाते समय मां कहती कि लंबाई ज्यादा ही रखना, ज्यादा खुले गले का मत बनवाना. सहेली के घर से आने में जरा देर हो जाती, फोन पर फोन आने लगते, मम्मीपापा दोनों चिल्लाने लगते.

‘‘इंटर पास किया, कालेज गई, कालेज का एक ही साल पूरा हुआ था कि मेरी शादी की चिंता सताने लगी. पड़ोस में रहने वाला रवि हमारे कालेज में साथ ही पढ़ता था. वह मेरे घर के सामने से ही कालेज आताजाता था.

‘‘एक दिन मैं ने उसे घर बुला कर बातें क्या कर लीं, बूआ ने मेरी मां से कहा कि भाभी, संविधा अब बड़ी हो गई है, इस के लिए कोई अच्छा सा घर और वर ढूंढ़ लो. उस के बाद क्या हुआ, आप को पता ही है. उन्होंने मेरे लिए घर और वर ढूंढ़ लिया. उन की इच्छा के अनुसार यही मेरे लिए ठीक था.’’

एक गहरी सांस ले कर संविधा ने आगे कहा, ‘‘ऐसा नहीं था कि मैं ने शादी के लिए रोका नहीं. मैं ने पापा से एक बार नहीं, कई बार कहा कि मुझे मेरी पढ़ाई पूरी कर लेने दो, पर पापा कहां माने. उन्होंने कहा कि बेटा, तुम्हें कहां नौकरी करनी है. जितनी पढ़ाई की है, उसी में अच्छा लड़का मिल गया है. अब आगे पढ़ने की क्या जरूरत है? हम जो कर रहे हैं, तेरी भलाई के लिए ही कर रहे हैं.’’

पलभर चुप रहने के बाद संविधा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं इस घर में आई, तब मेरी उम्र 18 साल थी. तब से मैं यही सुन रही हूं, ‘संविधा ऐसा करो, वैसा करो.’ आप ही नहीं, बच्चे भी यही मानते हैं कि मुझे उन की मरजी के अनुसार जीना है. अब मैं अपना जीवन, अपना मन, अपने अस्तित्व को किसी अन्य की मुट्ठी में नहीं रहने देना चाहती. अब मुझे मुक्ति चाहिए. अब मैं अपनी इच्छा के अनुसार जीना चाहती हूं. मुझे मेरा अपना अस्तित्व चाहिए.’’

‘‘संविधा, मैं ने तुम से प्रेम किया है. तुम्हें हर सुखसुविधा देने की हमेशा कोशिश की है.’’

‘‘हां राजेश, तुम ने प्यार किया है, पर अपनी दृष्टि से. आप ने अच्छे कपड़ेगहने दिए, पर वे सब आप की पसंद के थे. मुझे क्या चाहिए, मुझे क्या अच्छा लगता है, यह आप ने कभी नहीं सोचा. आप ने शायद इस की जरूरत ही नहीं महसूस की.’’

‘‘इस घर में तुम्हें क्या तकलीफ है?’’ हैरानी से राजेश ने पूछा, ‘‘तुम यह सब क्या कह रही हो, मेरी समझ में नहीं आ रहा.’’

‘‘मेरा दुख आप की समझ में नहीं आएगा,’’ संविधा ने दृढ़ता से कहा, ‘‘घर के इस सुनहरे पिंजरे में अब मुझे घबराहट यानी घुटन सी होने लगी है. मेरी जान, मेरी समग्र चेतना बंधक है. आप सब की मुट्ठी खोल कर अब मैं उड़ जाना चाहती हूं. मेरा मन, मेरी आत्मा, मेरा शरीर अब मुझे वापस चाहिए.’’

शादी के बाद आज पहली बार संविधा इतना कुछ कह रही थी, ‘‘हजारों साल पहले अयोध्या के राजमहल में रहने वाली उर्मिला से उस के पति लक्ष्मण ने वनवास जाते समय पूछा था कि उस की क्या इच्छा है? किसी ने उस की अनुमति लेने की जरूरत महसूस की थी? तब उर्मिला ने 14 साल कैसे बिताए होंगे, आज भी कोई इस बारे में विचार नहीं करता. उसी महल में सीता महारानी थीं. उन्हें राजमहल से निकाल कर वन में छोड़ दिया गया, जबकि वे गर्भवती थीं. क्या सीता की अनुमति ली गई थी या बताया गया था कि उन्हें राजमहल से निकाला जा रहा है?

‘‘मेरे साथ भी वैसा ही हुआ है. मुझे मात्र पत्नी या मां के रूप में देखा गया. पर अब मैं मात्र एक पत्नी या मां के रूप में ही नहीं, एक जीतेजागते, जिस के अंदर एक धड़कने वाला दिल है, इंसान के रूप में जीना चाहती हूं. अब मैं किसी की मुट्ठी में बंद नहीं रहना चाहती.’’

‘‘तो अब इस उम्र में घरपरिवार छोड़ कर कहां जाओगी?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘अब आप को इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. इस उम्र में किसी के साथ भागूंगी तो हूं नहीं. मुझे तो सेवा ही करनी है. अब तक गुलाम बन कर करती रही, जहां अपने मन से कुछ नहीं कर सकती थी. पर अब स्वतंत्र हो कर सेवा करना चाहती हूं.

‘‘मेरी सहेली सुमन को तो तुम जानते ही हो, पिछले साल उस के पति की मौत हो गई थी. उन की अपनी कोई औलाद नहीं थी, इसलिए उन की करोड़ों की जायदाद पर उन के रिश्तेदारों की नजरें गड़ गईं. जल्दी ही उस की समझ में आ गया कि रिश्तेदारों को उस से नहीं, उस की करोड़ों की जायदाद से प्यार है. इसलिए उस ने किसी को साथ रखने के बजाय ट्रस्ट बना कर अपनी उस विशाल कोठी में वृद्धाश्रम के साथसाथ अनाथाश्रम खोल दिया.

‘‘उस का अपना खर्च तो मिलने वाली पैंशन से ही चल जाता था, वृद्धों एवं अनाथ बच्चों के खर्च के लिए उस ने उसी कोठी में डे चाइल्ड केयर सैंटर भी खोल दिया. वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम और चाइल्ड केयर सैंटर एकसाथ खोलने में उस का मकसद यह था कि जहां बच्चों को दादादादी का प्यार मिलता रहेगा, वहीं आश्रम में रहने वाले वृद्ध कभी खुद को अकेला नहीं महसूस करेंगे. उन का समय बच्चों के साथ आराम से कट जाएगा, साथ ही उन्हें नातीपोतों की कमी नहीं खलेगी,’’ यह सब कह कर संविधा पलभर के लिए रुकी.

सरोगेसी की चमक पर काला बादल : भाग 5

अभी अगले दोतीन महीने तक किसी को घर पर मत बुलाना. मैं चाहती हूं पहले ये दोनों मु झे तो स्वीकार लें. मैं इन के साथ जीना चाहती हूं. मु झे इस समय सिर्फ ये चाहिए. अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं आप तो मैं इन्हें ले कर जौनपुर लौट रही हूं.’ ‘अरे नहीं, ऐसा मत कहो. तुम्हें जो अच्छा लगे, करो. मैं भी अब इन से दूर नहीं रह सकता. एक काम करते हैं,

जब हम इन के साथ खूब अच्छे से रहना शुरू कर लेंगे तब एक पार्टी करेंगे. सब को बुलाएंगे. तब तक सिर्फ तुम, मैं और हमारे अंशुल-रोली,’ यह कहते हुए प्रभाष की आंखें नम हो गईं. प्रभाष ने डा. लतिका की मदद से एक एजेंसी से बात कर के 24 घंटे साथ रहने वाली एक आया ढूंढ़ी जो कल से घर आ जाएगी. उस दिन शाम से माधुरी का मातृत्व जीवन शुरू हुआ. प्रभाष ने सरोजिनी नगर की सभी दुकानों में मिठाई के डब्बे भिजवाए. उधर, इस खबर के बाद माधुरी को जानने वालों के दनादन फोन आने लगे.

प्रभाष ने उसे मना किया था कि किसी की कौल उठाने से. उस ने माधुरी से कहा कि धीरेधीरे सब को बताएंगे, अभी वह अपनी खुशियों पर ग्रहण नहीं लगाना चाहता है. माधुरी ने भी इस समय बहस करना उचित नहीं सम झा. दोनों ने तय किया कि 3 महीने तक वे न तो कोई पार्टी देंगे और न ही बच्चों को कहीं बाहर ले जाएंगे. प्रभाष ने सब से यही कहा कि हमारे यहां रिवाज है 3 महीने बच्चे सिर्फ मांबाप के पास घर में रहते हैं. लोगों ने भी सोचा कि इतने साल बाद बच्चे हुए हैं, सो, प्रभाष का इतना सशंकित होना जायज है. सब ने खूब बधाइयां दीं. घर आ कर माधुरी ने सब से पहले अपना कमरा बच्चों के अनुकूल किया. प्रभाष को उस ने एक लंबी लिस्ट पकड़ा कर बाजार भेजा. सूती कपड़े की लंगोट, बेबी डाइपर, दूध की 4 बोतलें, बिस्तर पर बिछाने का प्लास्टिक,

कई सारे कपड़े जिन में सामने बटन हों ताकि पहननेउतारने में आराम रहे. बच्चों के साथ पहली रात माधुरी एक मिनट भी नहीं सोई. हर 2 घंटे पर उन्हें दूध पिलाना होता, एक सोता तो दूसरी जाग जाती. माधुरी के साथसाथ प्रभाष भी सारी रात जगा. सुबह 5 बजे माधुरी ने प्रभाष को सोने के लिए भेजा और खुद बच्चों के पास लेट गई. अगले दिन दोपहर में एक आया आई जिस का नाम रश्मि था. रश्मि बहराइच से है और अब वह 24 घंटे बच्चों के साथ रहेगी. तय यह हुआ कि बच्चों की लंगोट या उन के कपड़े बदलना, धोना आदि रश्मि देखेगी. उन की दूध की बोतल उबालना, उन का दूध बनाना, उन्हें नहलाना ये सब काम माधुरी स्वयं करेगी.

साफसफाई को ले कर माधुरी काफी संजीदा है. प्रभाष भी घर आ कर पहले हाथ, पैर और मुंह धोता है, उस के बाद ही वह बच्चों को गोद में ले सकता है. माधुरी ने अपना पूरा वजूद बच्चों की देखभाल में लगा दिया. 15-20 दिनों में हालत यह हो गई कि माधुरी की आंखों के नीचे काले धब्बे आ गए. उसे हमेशा सिर में दर्द रहने लगा. रश्मि कहने को तो हमेशा साथ रहती पर माधुरी उसे भी रात को सोने भेज देती. हर 2 घंटे पर जागने से हालत यह हुई कि माधुरी ने पिछले कई दिनों से एक बार भी पूरी नींद नहीं ली. दिन बीतते गए और माधुरी का बच्चों के प्रति समर्पण बढ़ता गया.

उस ने किसी का फोन उठाना, कहीं बात करना सब बंद कर दिया. उसे समय भी नहीं मिलता था. एकसाथ 2 छोटे बच्चे संभालना बहुत कठिन कार्य है. महीनेभर बाद प्रभाष की मां रजनी देवी आईं. उन्हें भी दोनों ने महीनेभर आने से मना किया हुआ था. उन के आने से भी माधुरी को कोई खास मदद नहीं मिली क्योंकि सब से ज्यादा जरूरत रात में संभालने की थी. वह सिर्फ और सिर्फ माधुरी करती थी. महीनेभर बाद माधुरी इतनी बीमार पड़ी कि उसे डा. सरोज को दिखाना पड़ा. डा. सरोज ने साफ कहा कि अगर रोज माधुरी की नींद नहीं पूरी होगी तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं.

उसे कम से कम 6-7 घंटे सोना ही पड़ेगा. माधुरी की बिगड़ती हालत के बाद प्रभाष और मां ने तय किया कि दिन में माधुरी सोए, वे देखभाल करेंगे. प्रभाष ने दुकान का काम देखना कम कर दिया. फोन से ही दुकान संभालता और दिन में एक बार जाता. धीरेधीरे दिन बीतते गए. अंशुल और रोली 3 महीने के हो गए. अब वे एक बार में तीनचार घंटे सोते थे. सो, माधुरी को भी उसी बीच सोने का समय मिल जाता. बच्चों के जागने से पहले वह उठती, उन का दूध तैयार करती और उन के सोने के बाद सोती. इन 3 महीनों में माधुरी का 9 किलो वजन कम हो गया और कई सारी दवाएं शुरू हो गईं. 14 मार्च को अंशुल और रोली के 3 महीने के होने पर शाम को एक भोज का आयोजन हुआ.

सारे रिश्तेदार, मित्र और महल्ले के लोग आमंत्रित किए गए. लोगों को धीरेधीरे पता लग गया था कि ये बच्चे सरोगेसी से किए गए हैं. भोज का आयोजन प्रभाष के घर के सामने वाले पार्क में किया गया. दोनों बच्चों को अलगअलग ट्रौली पर बिठा कर प्रभाष और माधुरी रात 8 बजे पंडाल में आए. लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा उन की तरफ, हर कोई बधाई देने लग गया. ‘किस पर गए हैं? लड़का माधुरी पर है और लड़की प्रभाष पर,’ कहते हुए प्रभाष के फूफा कुशवाहाजी ने दोनों के लिए लाए उपहार दिए. ‘प्रकृति ने हमारी सुन ली है. आप सब बच्चों को खूब आशीर्वाद दीजिए. ये हमेशा स्वस्थ रहें, तरक्की करें,’ हर किसी से कहती फिर रही थीं प्रभाष की मां. प्रभाष और माधुरी हर अतिथि से मिलते, उन का धन्यवाद करते और खाना खा कर ही वापस जाने का आग्रह करते.

सब ठीक चल रहा था कि पड़ोस की मंजुला भाभी ने आखिर पूछ ही लिया, ‘माधुरी, तुम जब मायके गईं तब तो तुम्हारा पेट उतना नहीं निकला था. जबकि, सुना है कि जुड़वां बच्चों में ज्यादा निकलता है.’ प्रभाष सम झ गया कि ये मजे लेने के लिए कह रही हैं. उस ने माधुरी की तरफ देखा और सिर हिलाते हुए हामी भरी. माधुरी सम झ गई. उस ने मंजुला भाभी से कहा, ‘भाभी, मेरे पेट निकलने का सवाल ही नहीं उठता है. हम ने सरोगेसी का सहारा लिया है. आप को नहीं पता है क्या?’ ‘सरोगेसी! ओह मु झे नहीं पता था. मु झे लगा तुम ने जन्म दिया है इन को.’ ‘इन की मां मैं ही हूं,’

कहती हुई माधुरी ने अपना लहजा सख्त किया. मंजुला भाभी मौके की नजाकत सम झ गईं, बोलीं, ‘हां भई, इस में दोराय नहीं है. तुम ही इन की मां हो. देखो तो, कितने प्यारे लग रहे हैं. आज इन की नजर जरूर उतारना.’ ‘नजर तो पक्का उतारूंगी इन बच्चों की भी और हम दोनों की भी,’ कह कर माधुरी आगे बढ़ गई. भोज में आमंत्रित कई लोगों को मालूम तो था ये सब पर ज्यादातर लोग खुश थे. प्रभाष और माधुरी का व्यवहार ही ऐसा है. कभी किसी से कोई विवाद नहीं, अपनी जिंदगी में व्यस्त. लेकिन मंजुला भाभी जैसे लोग भी हैं जिन को माधुरी ने उचित जवाब दिया. धीरेधीरे सब ने स्वीकार कर लिया और माधुरी अपने मातृत्व में रम गई. उस की दुनिया अंशुल व रोली के इर्दगिर्द सिमट गई. किसी के भी बीमार होने पर माधुरी बदहवास सी हो जाती. लोगों ने यहां तक कहना शुरू कर दिया कि ‘ऐसा तो कभी देखा ही नहीं, माधुरी अपने बच्चों के लिए पागल है.’

वैसे, इन सब बातों से माधुरी को कोई फर्क नहीं पड़ता था. दिन, हफ्ते और महीने बीतने लगे और बच्चे एक साल के हो गए. इस बार प्रभाष ने अपने गृह जनपद भदोही में इन के एक वर्ष पूरे होने पर पार्टी का आयोजन किया. वहां से लौटे महीनाभर हुआ था कि माधुरी का मासिकधर्म अनियमित हुआ. पिछले 13 महीने की एकएक घटना को सोचती माधुरी की आंख लग गई. प्रभाष ने घर आ कर चाय पी और बैठक के कमरे में सोफे पर पसर गया. माधुरी 9 बजे के करीब उठी तो देखा प्रभाष समाचारपत्र पढ़ रहा है. रश्मि ने बताया कि उस ने चाय दे दी है. ‘‘मु झे जगाया क्यों नहीं?’’ ‘‘तुम अंशुल व रोली की देखभाल में थक जाती हो,’’ रश्मि ने कहा. ‘‘तुम 9 बजे का अलार्म लगा कर सोई हो और दोनों बच्चे भी सो रहे थे. सो, मैं ने जगाया नहीं तुम्हें.’’ यह कह कर प्रभाष चाय पीने लगा. माधुरी चुपचाप वहीं बैठी रही. वह सोचे जा रही थी. उस के दिमाग में वे सारे ताने, वे सारी लांछनें घूम रही थीं. वह दिन कभी नहीं भूलता है उसे जब मिसेज खन्ना ने अपने बच्चे की छठी में माधुरी को बच्चा गोद में नहीं लेने दिया.

मिसेज खन्ना का मानना था कि शुभ काम में बां झ औरतों को दूर रखना चाहिए. सब ने बच्चे को गोद में लिया. जब माधुरी की बारी आई तो मिसेज खन्ना ने बच्चा उस की गोद में नहीं डाला और आगे बढ़ गई. माधुरी बिना कुछ कहे अपमान का घूंट पी कर वहां से वापस आ गई. कई लोगों ने मिसेज खन्ना को इस बरताव के लिए टोका पर वह वैसी ही रही. घर आ कर माधुरी बहुत रोई. सारी रात रोती रही. प्रभाष ने बहुत सम झाया पर वह सिसकती रही. प्रभाष ने खन्नाजी को फोन कर के एतराज जताया. उन्होंने मिसेज खन्ना के बरताव के लिए माफी मांगी. ऐसी अनगिनत घटनाओं को सोच रही थी माधुरी. काफी समय बीतने के बाद प्रभाष ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा,

‘‘वह टैस्ट का बता रही थीं तुम?’’ ‘‘हां, प्रेगाकिट वाला पौजिटिव आया है. कल लैब टैस्ट कराती हूं.’’ ‘‘हां, करवा लो. वैसे, अंशुल व रोली तो हैं ही.’’ ‘‘पता नहीं क्यों मु झे डर लग रहा है?’’ माधुरी ने अपनी हालत बयां करते हुए कहा. ‘‘इस में डरना क्या है. कितनी बार ये टैस्ट हो चुके हैं. आधी स्त्री रोग विशेषज्ञ तो तुम खुद ही हो चुकी हो. चिंता मत करो, सब अच्छा होगा.’’ ‘‘मु झे लग रहा है इस बार मैं…’’ कहती हुई चुप हो गई माधुरी. ‘‘ज्यादा सोचो मत. अभी लैब टैस्ट कराओ, फिर देखते हैं.’’ अगले दिन माधुरी ने लैब टैस्ट कराया, वह भी पौजिटिव. इस के बाद उस ने सीटी स्कैन भी कराया. स्कैन में भी माधुरी गर्भवती पाई गई. जिस अवस्था को पाने के लिए उस ने क्याक्या जतन नहीं किए, क्याक्या नहीं सहा वह आज अपनेआप उसे मिलने जा रही है. प्रभाष ने यह बात किसी को नहीं बताई सिवा मां के और मां को भी हिदायत दी कि वे किसी से न बताएं. मां ने भी परिस्थिति को सम झते हुए उसे माधुरी का ध्यान रखने को कहा. अब तो माधुरी को उलटियां भी आने लगीं. माधुरी लगातार उलटी करती थी.

प्रभाष माधुरी का विशेष ध्यान रखने लगा. मां भदोही से आ गईं. इन सब के बीच माधुरी चुपचुप सी रहने लगी. वह किसी से बहुत ज्यादा बात न करती. प्रभाष से भी कामभर की बात होती. प्रभाष ने कई बार कोशिश की माधुरी का मिजाज सही करने की पर असफल रहा. एक दिन मां ने सुबह खाने की टेबल पर कहा, ‘‘बहू, आजकल तू उदास क्यों रहती है? अरे, प्रकृति कितनी दयावान है हम पर. यह बच्चा सही से हो जाए तो ग्रैंड पार्टी आयोजित की जाएगी. खुश रहा करो. अब तेरी अपनी कोख का बच्चा तेरी गोद में खेलेगा. एक छोटी सी कमी रह गई थी वह भी पूरी होने वाली है.’’ माधुरी ने कुछ नहीं कहा, प्रभाष की ओर देखा. वह नाश्ता करने में व्यस्त था. फिर माधुरी अपने कमरे में चली गई

. दिन गुजरने के बाद रात को 1 बजे माधुरी ने प्रभाष को नींद से जगाया और कहा, ‘‘सुनिए, मैं बहुत परेशान हूं. आप से बात करनी है.’’ ‘‘कहो, क्या बात है, क्यों परेशान हो, तुम?’’ ‘‘जब से मैं गर्भवती हुई हूं, मु झे एक चिंता खाए जा रही है. मैं जानती हूं कि यह एक चमत्कार से कम नहीं है. डा. लतिका ने भी कहा ही है कि अपनी मैडिकल लाइफ में उन्होंने ऐसा नहीं देखा, 4 आईवीएफ फेल के बाद सरोगेसी और फिर नौर्मल गर्भाधान.’’ प्रभाष ने बीच में टोकते हुए कहा, ‘‘उस दिन हैरान तो थी डा. लतिका. सही भी है.’’ ‘‘आप सम झ नहीं रहे. मेरी चिंता अंशुल व रोली को ले कर है,’’ कह कर माधुरी चुप हो गई और प्रभाष की ओर देखने लगी. ‘‘उन को ले कर क्यों चिंतित हो? उन की जितनी देखभाल तुम करती हो उतना कोई और नहीं कर सकता. अगर सब अच्छा रहा तो हमारे 3 बच्चे होंगे. कहां कभी हम एक के लिए क्याक्या नहीं सहे और आज तीसरे का तोहफा मिलने जा रहा है. प्रकृति की कृपा बनी रहे.’’ ‘‘आप को नहीं लगता कि मेरी कोख से जन्मे इस बच्चे के कारण अंशुल और रोली का हक मारा जाएगा?’

’ माधुरी के इस सवाल पर प्रभाष अचंभित हो गया. उस ने कहा, ‘‘इस से अंशुल और रोली का हक क्यों मारा जाएगा. वे भी हमारे बच्चे हैं और यह तो हमारा है ही. तुम्हें नाहक ऐसा लग रहा है. यह तुम्हारे दिमाग का फितूर है, बस, और कुछ नहीं.’’ ‘‘आप ने अभी क्या कहा, वे भी हमारे बच्चे हैं और यह तो हमारा है ही. यह ‘भी’ का क्या मतलब है और फिर क्या कहा, ‘यह तो हमारा है ही’. आप अभी से भेद कर रहे हो. यही सब मेरी चिंता है.’’ प्रभाष बचाव की मुद्रा में आते हुए तुरंत बोला, ‘‘अरे, भी का मतलब इतना गहरा मत निकालो. ऐसे ही कहा है.’’ ‘‘भेदभाव भी ऐसे ही होता है. मम्मीजी जब से आई हैं तब से कितनी बार कह चुकी हैं कि तुम्हारी कोख का यह जो होगा, देखना कितना तेज होगा.

अपना जना अपना ही होता है. अंशुल व रोली मेरा जीवन हैं. इन्होंने मु झे पहली बार अपने स्त्री होने का एहसास कराया है. मेरा सारा जीवन इन पर न्योछावर है. मेरे कलेजे का टुकड़ा हैं. मु झे लगता है कि तीसरे बच्चे के आने पर आप का, समाज का सब का नजरिया अंशुल और रोली के लिए बदल जाएगा. ये दोयम दर्जे की संतानें मानी जाएंगी,’’ कहतेकहते माधुरी की आंखें नम हो गईं. ‘‘मैं फिर कह रहा हूं, तुम्हारा वहम है यह सब. जहां तक मेरा सवाल है, मैं तीनों बच्चों को एकसमान मानूंगा और मम्मी से मैं कल ही बात करता हूं. उन्होंने भी ऐसे ही कहा होगा. कितना प्यार करती हैं वे अंशुल व रोली से. कहांकहां की मन्नतें इन के होने के बाद उन्होंने पूरी की हैं. सब भूल गईं. कोई भेदभाव नहीं होगा. हम सब पढ़ेलिखे, सम झदार लोग हैं. ऐसा मत सोचो.’’ ‘‘आप फिर वही भेद कर रहे हैं. आप ने फिर कहा,

‘मैं तीनों बच्चों को एकसमान मानूंगा’. मतलब, आप एक एहसान करेंगे. तीनों एकसमान नहीं हैं पर आप मानेंगे और रही बात पढ़ेलिखे होने की तो उस का भेदभाव से कोई नाता नहीं होता. इतनी शिक्षा के बाद भी आज समाज में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर कितना भेदभाव है. आप बुरा मत मानिए मेरी बात का, लेकिन सोचिए, इन दोनों मासूमों की क्या गलती है. जब हम अपने बच्चे पैदा नहीं कर पाए तब हम ने सरोगेसी का सहारा लिया. अब जब हमारे पास अंशुल व रोली हैं तो क्या जरूरत है एक और बच्चे की? नए बच्चे के जन्म लेते ही एक पल में सब का प्यार बंट जाएगा. आप का कोई कुसूर नहीं है और आप को मैं क्या कहूं, अपने बारे में मैं खुद नहीं जानती. आज जिस बेबाकी से मैं आप से बोल रही हूं,

मु झे नहीं पता कि 9 महीने अपनी कोख में रखने के बाद बोल पाऊंगी या नहीं. 9 महीने यह मेरे शरीर में पलेगा. मेरा खाया उसे मिलेगा, मेरी हर हरकत से जुड़ा रहेगा. ऐसे में मैं खुद उस से जुड़ जाऊंगी. क्या आप, मैं भेदभाव नहीं करूंगी, इस की गारंटी ले सकते हैं? ले सकते हैं आप मेरी गारंटी?’’ प्रभाष गंभीर हो गया और सोचने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी यह बात सही है. 9 महीने गर्भ में रखने के बाद जाहिर है तुम्हें उस से ज्यादा प्यार हो सकता है. मैं ने इस दृष्टिकोण से सोचा ही नहीं था. लेकिन जब तुम अभी इतना प्यार करती हो तो तब भी करोगी, ऐसा मेरा विश्वास है.’’ ‘‘आप का मु झ पर विश्वास है पर मेरा खुद पर नहीं है. बच्चा गर्भ में मातापिता दोनों के अंश ले कर आता है,

विकसित होता है, फिर मां को अपने अनुसार ढालता है. अकसर आप ने सुना होगा गर्भावस्था में स्त्री अपने व्यवहार से उलटा खानपान करने लगती है. जिसे मीठा नहीं पसंद वह मीठा खाने लगती है, जो फल या सब्जी कभी नहीं छूती वे फलसब्जियां पसंदीदा हो जाते हैं. ये सब पेट में पल रहे बच्चे की पसंद के हिसाब से होता है. ‘‘कहते हैं, एक स्त्री के 3 जन्म होते हैं. पहला, जब वह एक शिशु के रूप में पैदा हुई. दूसरा, जब वह ब्याह कर के ससुराल आई और तीसरा तब जब उस ने एक बच्चे को जन्म दिया. इन तीनों में उसे नए लोग, नया माहौल, नई परिस्थितियों में जीना होता है. खुद को उस के अनुरूप ढालना होता है. अंशुल व रोली में मैं ने वह तीसरा जन्म जिया है. ‘

‘यह आने वाला मेरे में क्या बदलाव लाएगा, मैं नहीं जानती. हो सकता है, मैं अंशुल व रोली को पहले जैसे ही प्यार करूं पर यह भी हो सकता है कि मैं होने वाले बच्चे को ज्यादा प्यार दूं और इन से सौतेला व्यवहार करूं. उस दशा में इन का क्या होगा? यह सोचसोच कर मेरा सिर फटा जा रहा है. आप को इतनी रात जगाया, इस के लिए क्षमा पर दिन में सब लोग होते हैं, कब बात करूं.’’ प्रभाष को माधुरी की चिंता का कारण अब सम झ में आया. वह भी सोच में पड़ गया कि वाकई में ऐसा हुआ तो अंशुल व रोली के साथ अन्याय होगा. ‘‘तुम्हारा सोचना सही है, माधुरी. अच्छा किया तुम ने अपने दिल की बात कही. मैं भी सोचता हूं इस पर. मैं ने कह तो दिया है कि मेरे लिए तीनों बच्चे बराबर होंगे पर तुम्हारी पूरी बात सुनने के बाद मेरा भी आत्मविश्वास डगमगा गया है. तुम इस समय चिंता मत करो,

अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दो. इस पर फिर बात करते हैं.’’ ‘‘फिर कब बात करेंगे, आने वाले 5-7 हफ्तों में ही निर्णय लेना है. उस के बाद तो यह बच्चा पैदा ही करना पड़ेगा.’’ ‘‘मैं सम झा नहीं, तुम क्या कहना चाहती हो कि आने वाले हफ्तों में ही निर्णय लेना है?’’ झुं झला कर प्रभाष ने कहा. ‘‘20 हफ्तों के अंदर हम गर्भपात करा सकते हैं. अभी 11 हफ्ते ही हुए हैं. इसलिए मैं कह…’’ ‘‘पागल हो गई हो क्या? क्या बक रही हो? होश है?’’ प्रभाष ने चिल्लाते हुए कहा. ‘‘चिल्लाइए मत, पूरे होशोहवास में कह रही हूं. एक मां बनने की तड़प मैं ने जी है. मैं ने सुने हैं बां झ होने के ताने और आने वाले 9 महीने मु झे ही सहना है सबकुछ. गर्भधारण में पुरुष सिर्फ सहारा दे सकता है, साथ नहीं. जब आप खुद मान रहे हो कि अंशुल व रोली से भेदभाव हो सकता है तो क्या आप उन के जीवन के साथ यह जोखिम लेने को तैयार हो?’’ माधुरी ने भी चिल्ला कर कहा और फूटफूट कर रोने लगी. ‘‘इस का मतलब यह तो नहीं कि हम अपना बच्चा गिरा दें. हम कोशिश करेंगे तीनों को समान प्यार देने की. तीनों हमारे लिए बराबर होंगे,’’

प्रभाष ने माधुरी का चेहरा हाथों में ले कर ऊपर उठाया और उसे अपनी बांहों में समेट लिया. ‘‘आप सम झ नहीं रहे हैं. यह एक जुआ है उन की जिंदगी के साथ. एक तरफ अंशुल व रोली के प्रति मेरी ममता है और दूसरी तरफ मेरी कोख है. इस जुए में चाहे जो जीते, हारेगी एक मां ही. अगर मैं नए बच्चे को कम प्यार दूंगी तो उस का हक भी मारूंगी. आप पुरुष हैं, आप नहीं सम झ सकते. एक नन्हे के आंगन में आने से ले कर उस के बड़े होने तक, अनवरत रहती है मां. ‘‘आज से 2 साल पहले हमें सिर्फ अपना एक बच्चा चाहिए था चाहे जैसे. प्रकृति ने हमें जुड़वां दिए, वे कम हैं क्या? अंशुल व रोली के मेरी गोद में आने के बाद मेरी कोख को तृप्ति मिल गई. इस बार शुरू में मैं बहुत खुश हुई पर जब इन का चेहरा देखती हूं तो रुलाई छूटती है क्योंकि आने वाले कुछ महीनों में मैं खुद इन के लिए कितना बदल जाऊंगी, नहीं जानती. जिस माधुरी सक्सेना ने प्रैग्नैंट होने के लिए इतना सहा है वही आप से हाथ जोड़ कर विनती कर रही है कि यह बच्चा गिरवा दीजिए,’’

कहती हुई माधुरी ने हाथ जोड़े और रोने लगी. रोतेरोते उस ने अपना सिर प्रभाष की गोद में रख दिया. प्रभाष की आंखें भर आईं. वह माधुरी के सिर पर हाथ फेरने लगा. दोनों उसी तरह पड़े रहे, माधुरी सिसकती रही और प्रभाष खामोश. कुछ समय बाद प्रभाष ने कहा, ‘‘तुम ठीक कह रही हो, माधुरी. हम कुछ ज्यादा ही स्वार्थी हो गए हैं. हम इस बारे में अब किसी और से चर्चा नहीं करेंगे. मैं सम झ ही नहीं पा रहा था तुम जो सम झाना चाह रही थीं. मम्मी से कल मैं बात करूंगा. बच्चा गिराने के इस निर्णय में मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ इसी के साथ प्रभाष की आंखों से दो बूंदें माधुरी के गालों पर पड़ीं, जो इस बात की गवाह हैं कि मां ‘यशोदा’ का आज जन्म हुआ है.

Bigg Boss 16 : निमृत कौर हुईं घर से बाहर, टॉप 5 में नहीं मिली जगह

बिग बॉस 16 के फिनाले में अब महज कुछ दिन ही बचे हैं, ऐसे में हर कोई विजेता कि बात करते जर आ रहा है, अब इस सबके मन में एक ही सवाल है कि एम सी स्टेन, शिव ठाकरे, प्रियंका में कौन विजेता बनेगा.

लेकिन इन सबसे पहले एक शॉकिंग न्यूज सामने आईं है, जिसमें खुलासा हुआ है कि निमृत कौर बिग बॉस के घर से जा चुकी हैं.दरअसल बिग बॉस 16 का पूरा वोट ऑडियंस के हाथ में हैं. वो जिसे चाहेंगे उसे इस घर में रखेंगे और जिसे चाहेंगे बाहर करेंगे.

ऐसे में निमृत कौर को शो से बाहर कर दिया गया है, जिसके बाद प्रियंका , शिव, एमसी स्टेन, शालीन भनोट और अर्चना गौतम फाइनलिस्ट में पहुंच गए हैं.  जिससे साफ पता चल रहा है कि बिग बॉस 16 में निमृत कौर की जर्नी से दर्शक खुश नहीं थें.

वहीं निमृत कौर के जाने की खबर से कुछ फैंस नाराज भी नजर आ रहे हैं. कुछ समय पहले मेकर्स निमृत कौर को फाइनलिस्ट भी बना दिए थें, जिस वजह से सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा है. खैर देखते हैं कि इस साल कौन बनता हैं इस शो का विजेता. जल्द ही इसका रिजल्ट भी सामने आएगा.

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