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नींव के पत्थर : भाग 2

मैं चारों ओर देखने लगा. किरण में झांक कर देखा, तो उस में भी पानी कम रह गया था… लगा, संभवतः यह जीवनरेखा भी किसी रोज अदृश्य हो जाएगी, मेरे परिवार की तरह…‘‘

“हांजी, दस्सो सरदारजी, मैं तुहाडी की सेवा कर सकदां ऐ.. ?’’

मैं ने पीछे मुड़ कर देखा, तो एक भद्र सरदारजी प्रश्नचिह्न बने खड़े थे. मैं ने उन को गौर से देखा… ‘अरे, यह तो राजी के दादाजी हैं.’

मैं उन को पहचान नहीं पाता, यदि उन की आंखों के ऊपर गहरा निशान न देखता… तो दादू ने अपने बचपन के दोस्त को जमीन बेची है. मन में तसल्ली हुई कि पुरखों की जमीन सुरक्षित हाथों में है. मन में तो हुआ कि राजी के बारे में पूछूं?

राजी के दादाजी ने फिर वही अपना प्रश्न दोहराया.

‘‘पहचान बताना जरूरी है…?’’ मैं ने उत्तर देने के बजाय प्रश्न किया.

‘‘जी, कोई वी अनजान आदमी, ऐथे चलार तक नहीं पहुंच सकदा… जरूर तुहाडा इस मिट्टी नाल… इस जमीन नाल कोई न कोई संबंध है.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं. मैं अपनी पहचान नहीं बताना चाहता हूं. पर एक शर्त पर कि इस पहचान को आप अपने तक रखेंगे और गिरधारी आप भी.’’

‘‘जी जरूर…’’ राजी के दादाजी ने कहा. मैं ने देखा, मेरे मुंह से अपना नाम सुन कर गिरधारी की आंखें फैल गई हैं. उस ने सोचा होगा, मुझे जानने वाला यह अनजान सरदार कौन है?

‘‘मैं सरदार सुरिंदर सिंहजी का बेटा, गुरजीत हूं. सरदार गुरशरण सिंहजी मेरे दादाजी थे. और गिरधारी आप के लिए केवल जीतू हूं.’’

‘‘अरे पुत्तरजी,’’ कहते हुए बांहें फैला कर गले लगाने के लिए आगे बढ़े, परंतु कुछ कदम चल कर रुक गए. बोले, ‘‘तुस्सीं तां पुलिस दे बहुत बड़े अफसर हो… ’’

‘‘पर, आप के लिए जीतू हूं, दादाजी.’’

‘‘ओह, पुत्तरजी, ठंड पड़ गई.’’

जब मैं उन के गले लगा तो अनायास ही मेरे मुख से निकल गया, ‘‘आओ गिरधारी, आप भी गले लग जाओ. मैं आप के लिए भी जीतू हूं.’’

इस मिलन से तीनों की आंखें नम थीं. दूर व्योम के किसी कोने में बादलों की गड़गड़ाहट हुई. मुझे लगा, ऊपर स्वर्ग में दादू भी इस मिलन से खुश हो रहे हैं, जैसे बादलों की गड़गड़ाहट न हो कर वे करतल ध्वनि कर रहे हों.

‘‘चल जीतू, घर चलें. तुहाडे नाल बौत सारियां गल्लां करनियां ने…’’ राजी के दादाजी ने कहा.

‘‘दादाजी, अभी मुझे माफ करें. मैं शाम को आप की सेवा में हाजिर होता हूं. अभी मुझे बहुत सी जगह जाना है.’’

‘‘चंगा, जिवें तुहाडी मरजी. शामी परशादे इकठ्ठे शकांगे.’’

‘‘जी, दादाजी.’’

मैं वहां से लौट आया. थाने के समक्ष पहुंचा, तो एसएचओ साहब कहीं जाने के लिए जीप में बैठ रहे थे. हम दोनों की आंखें मिलीं, फिर वे तेजी से चले गए. इस का मतलब यह भी था कि वे मुझे पहचान नहीं पाए.

मैं होटल के कमरे में आया, खाना खाया और सोने का प्रयत्न करने लगा. पर बच्चों के शोर से मैं सो नहीं पाया. लगता है, अभीअभी छुट्टी हुई है. तभी उन्होंने अपनी किलकारियों से आसमान सिर पर उठा रखा है. मैं इस मोह का संवरण नहीं कर पाया कि मैं अपने स्कूल को देखूं, जहां मैं ने जीवन के 12 साल पढ़ाई की है. मैं धीरेधीरे नीचे उतरा. होटल के बाहर दाईं ओर मुड़ने पर, सड़क पार करते सामने स्कूल का गेट है. इक्कादुक्का विद्यार्थी अभी भी गेट से निकल रहे थे.

मन के भीतर इस बात की बड़ी जिज्ञासा थी कि संभवतः कोई जानापहचाना चेहरा मिले. मैं ने स्टाफरूम में भी झांक कर देखा, परंतु मुझे वहां भी कोई ऐसा चेहरा नजर नहीं आया. समय का अंतराल भी तो बहुत है. स्कूल छोड़ने के 16 साल बाद मैं फिर यहां आया हूं. मैं 12वीं क्लास की ओर बढ़ा. मैं वह डैस्क देखना चाहता था, जहां मैं और राजी बैठा करते थे. मैं ने अपनी प्रकार से डैस्क के अंदर की ओर उस का नाम खोद दिया था. उसे पता चला तो उस ने मुझ से बहुत झगड़ा किया और रोई. मैं ने उस से कहा, “तुम तो राजबीर हो, राजी को कोई नहीं जानता.” उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं तो जानती हूं.’’

बाद में वह मुझ से कभी नहीं बोली. उस ने अपना डैस्क भी बदल लिया था. मैं ने राजी खुदे उस डैस्क को ढूंढ़ने का बहुत प्रयत्न किया, परंतु वह मुझे कहीं नहीं मिला. मैं क्लास से बाहर आ गया. देखा, सबकुछ बदल गया है. स्कूल एक स्टोरी से डबल स्टोरी हो गया है. सामने मैदान में जहां हम खेला करते थे, वहां भी क्लासें बन गई हैं.

मैं होटल के अपने कमरे में लौट आया. जबरदस्ती आंखें बंद कर सोने का प्रयत्न करने लगा, पर मुझे पता नहीं कब नींद आई. जब आंख खुली तो 7 बजने वाले थे. मैं जल्दी से तैयार हो कर नीचे उतर आया. मैं कलानौर के एक ही मुख्य बाजार की ओर बढ़ा. अंदर घुसा तो एक नजर में पूरे बाजार का अवलोकन कर लिया. मुझे उस में कोई खास परिवर्तन नजर नहीं आया. केवल लूने शाह की दुकान बड़ी हो गई है, पर मुझे लूने शाह कहीं दिखाई नहीं दिया.

मैं आगे बढ़ा. मेरी आंखें राज नाई को ढूंढ़ने लगीं. यहींकहीं उस की दुकान होनी चाहिए. हमारे परिवार की बरबादी में इस नाई का बहुत बड़ा हाथ था. इस ने चाचाजी को वह खराब आदतें डाल दीं, जो वह डाल सकता था. चाचा इन आदतों की गर्त में घुसता चला गया. दादू उस को सुधारने के चक्कर में स्वयं बरबाद होते चले गए. उन्होंने सबकुछ दांव पर लगा दिया. जमीन, जायदाद, मकान सबकुछ. सबकुछ गंवाने के बावजूद चाचा दादू को दो कौड़ी की औकात रखने वाले आदमी से अधिक कुछ नहीं समझता था.

एक बार… सिर्फ एक बार राज नाई मिल जाए, मैं उसे रगड़ कर रख दूंगा. पर… पर, मन के भीतर यह आक्रोश भी अल्प समय का था. जब अपना सिक्का खोटा हो तो किसी को दोष नहीं दिया जा सकता. नाई की दुकान आई, तो मेरी आंखें राज नाई को ढूंढ़ने लगीं, परंतु वह मुझे कहीं दिखाई नहीं दिया. मैं ने दुकान में काम कर रहे एक नाई से पूछा, ‘यहां राज नाई हुआ करता था, वह अब कहां है?’

अंतरिक्ष में वर्चस्व की दौड़

23 अगस्त की शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद पर भारतीय चंद्रयान-3 की सौफ्ट लैंडिंग होने के साथ भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन गया. दक्षिणी ध्रुव पर अभी तक किसी भी देश का चंद्रयान नहीं उतरा है,हालांकि चांद के दूसरे भागों में कई देशों के ‘चंद्रयान’ उतर चुके हैं. चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतरने वालों में भारत चौथे नंबर पर है. इससे पहले अमेरिका, सोवियत संघ और चीन के ‘चंद्रयान’ चांद पर पहुंच चुके हैं.

भारत ने इससे पहले 2019 में भी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की कोशिश की थी,मगर कामयाब नहीं हो पाया. भारत का चंद्रयान-2 चांद तक तो पहुंचामगर चांद की सतह पर उतरने में कामयाब नहीं हुआ.अंतिम 15 मिनटों, जिन्हें इसरो के वैज्ञानिक ‘आतंक के 15 मिनट’ कहते हैं,ने भारतीय वैज्ञानिकों की एक बहुत बड़ी कोशिश के परखच्चे उड़ा दिए.चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चांद की सतह पर सौफ्ट लैंडिंग की कोशिश में लड़खड़ा गया और महज 7.42 किलोमीटर की ऊंचाई पर क्रैश हो गया.

इस विफलता से इसरो के डायरैक्टर एस सोमनाथ फफक कर रो पड़े थे. हालांकि इस विफलता में चंद्रयान-2 का लैंडर ही दुर्घटनाग्रस्त हुआ था. वह और्बिटर सहीसलामत थाजिससे अलग होकर लैंडर सतह पर लैंड करने की कोशिश कर रहा था. चंद्रयान-2 का और्बिटर बिलकुल सहीसलामत बीते 4र वर्षों से न सिर्फ चांद की परिक्रमा कर रहा है, बल्कि लगातार सूचनाएं भी भेज रहा है. इन्हीं सूचनाओं और विश्लेषणों के आधार पर ही इसरो के वैज्ञानिकों ने तकनीकी खामियों को दूर करके चंद्रयान-3 को डिजाइन किया और उसे सफलतापूर्वक चांद की सतह पर लैंड करवाया.

गौरतलब है कि इससे पहले इजराइल, जापान, रूस और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) सहित कई देश चांद के दक्षिणी हिस्से पर उतरने में नाकाम रहे हैं. मंगल ग्रह पर मंगलयान और अब चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग करके भारत स्पेस साइंस में उल्लेखनीय तरक्की तो दिखा रहा हैमगर इस रफ्तार को अब तेज करने की जरूरत है क्योंकि दुनिया के तमाम देशों की अंतरिक्ष यात्राएं अब सिर्फ अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने मात्र की नहीं हैं, बल्कि ये यात्राएं अब अंतरिक्ष में अपने वर्चस्व को कायम करने और वहां से प्राप्त जानकारियों व खनिज के भंडारों पर कब्जा जमाने की हैं.

भारत की हालिया सफलता से चीन और रूस जैसे देशों के कान खड़े हो गए हैं क्योंकि भारत औटोनौमस स्पेसक्राफ्टी की सफल लैंडिंग कराकर, रोवर को चांद पर उतारकर और एल्यूमीनियम जैसे एलिमैंट्स का इस्तेमाल करके सिस्लुनर (पृथ्वी और चांद के बीच की जगह) तकनीक में न सिर्फ आगे बढ़ रहा है, बल्कि चांद की सतह पर मिलने वाले अयस्कों की जानकारियां भी बटोर रहा है.

भारत के चंद्रयान-3 की कामयाबी के बाद चांद पर जल्द से जल्द पहुंचने के लिए विश्व के देशों की लंबी कतारें लग गई हैं. नासा का आर्टेमिस और चीन का चांग-ई6 के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब, यूरोप, स्पेस एक्स और ब्लू ओरिजन के मून मिशन कतार में हैं. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियां चांद को छूने के लिए बेताब दिख रही हैं. दुनियाभर की स्पेस एजेंसियों की अचानक चांद में दिलचस्पी यों ही नहीं बढ़ी है. इसके पीछे कई अहम कारण हैं. सबसे प्रमुख है मंगल ग्रह पर पहुंचने के लिए चांद को एक बेस के तौर पर इस्तेमाल करना. इसीलिए दुनियाभर की स्पेस एजेंसियां चांद पर पानी, खनिज और औक्सीजन की खोज में जुटी हैं, ताकि चांद पर एक ऐसा बेस बन सके, जिससे मंगल ही नहीं, बल्कि अन्य ग्रहों पर पहुंचना भी आसान हो जाए.

अंतरिक्ष में मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना काफी समय से व्यक्त की जा रही है. 1960 से लेकर अब तक मंगल के लिए अनगिनत मिशन लौंच हो चुके हैं. अमेरिका और रूस इनमें सबसे आगे हैं. तो वहीं भारत, चीन और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियां भी इस लिस्ट में शामिल हैं. मंगल ग्रह पर दुनियाभर की अंतरिक्ष एजेंसियों की नजर है, लेकिन धरती से इसकी दूरी अधिक होने की वजह से सिर्फ गिनेचुने मिशन ही सफल हो पाए हैं. सूर्य की परिक्रमा करते ग्रहों और उपग्रहों में एक समय ऐसा आता है जब चांद धरती और मंगल ग्रह के बीच से गुजरता है,ऐसे में अंतरिक्ष एजेंसियां चांद को बेस बनाना चाहती हैं ताकि यहां से आगे वे मंगल के लिए रवाना हो सकें.

चांद पर वर्चस्व के अन्य कारण

मंगल ग्रह पर पहुंचने के लिए चांद को बेस बनाना ही एक वजह नहीं है, बल्कि चांद पर पहुंचने की होड़ के अन्य कारण भी हैं. इनमें पानी की खोज प्रमुख है. वैज्ञानिक मानते हैं कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी और औक्सीजन हो सकता है. अगर पानी है तो वहां खेती भी हो सकती है और जीवन भी बसाया जा सकता है. बर्फ को तोड़ने पर औक्सीजन भी मिल सकती है. यह भी माना जा रहा है कि चांद की सतह पर या उसके कुछ नीचे बहुमूल्य खनिज, जैसे सोना, टाइटेनियम, प्लेटिनम और यूरेनियम भी हो सकते हैं, जो किसी भी देश को मालामाल कर सकते हैं. वैज्ञानिकों की इस सोच पर भारतीय चंद्रयान-3 के रोवर्स ने मुहर भी लगा दी है.

चांद पर पहुंचने की कोशिश में अमेरिका और रूस सबसे आगे हैं. चीन भी इस दौड़ से खुद को पीछे नहीं रखना चाहता और भारत भी इसीलिए दौड़ लगा रहा है क्योंकि वह विश्व की बड़ी शक्ति बन कर उभरना चाहता है.

50 साल बाद फिर अंतरिक्ष में भागमभाग

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1966 में पहली बाद रूस ने चांद की सतह पर सौफ्ट लैंडिंग की थी. कहा जाता है कि इस यान में कोई इंसान नहीं, बल्कि एक जानवर गया था. इस अभियान की सफलता के बाद 1968 में रूस ने यूरी गागरिन को पहले अंतरिक्ष यात्री के रूप में स्पेस में भेजा. जो स्पेस के कई चक्कर लगा कर सकुशल वापस लौटे. रूस की इस कामयाबी से अमेरिका परेशान हो उठा और उसने भी मून मिशन शुरू कर दिए.

अमेरिका के स्पेस यान अपोलो-11 के जरिए 1969 में पहली बार चांद की सतह पर इंसान के कदम पड़े. अमेरिकी नागरिक और वैज्ञानिक नील आर्मस्ट्रोंग चांद पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे. बज एल्डिरिन उनके साथ गए दूसरे अंतरिक्ष यात्री थे जिन्होंने उनके बाद चांद पर कदम रखा. उल्लेखनीय है कि अमेरिका चांद पर इंसान भेजने वाला इकलौता देश है और उसने 1972 में अपोलो-17 मिशन तक कुल 12 एस्ट्रोनौट्स चांद पर भेजे हैं. अपोलो-17 अमेरिका का आखिरी मून मिशन था. इसके बाद कहा जाता है कि वियतनाम युद्ध में हो रहे जबरदस्त खर्चे के कारण अमेरिका ने अपने खर्चीले मून मिशन पर रोक लगा दी. मगर सोवियत संघ अपने अंतरिक्ष मिशन में लगा रहा और साल 1974 में उसने लूना-24 चांद पर भेजा जो वहां की सतह से 170 ग्राम मिट्टी लेकर धरती पर वापस लौटा. मगर इसके बाद सोवियत संघ की भी दिलचस्पी चांद को लेकर खत्म हो गई.

1990 के दशक की शुरुआत में सोवियत संघ के टूट जाने के बाद अमेरिका अंतरिक्ष का इकलौता सुपर पावर रह गया और उसने अपना फोकस चांद से हटाकर मंगल ग्रह की ओर करना शुरू कर दिया. लेकिन हाल के सालों में दुनिया के देशों की चांद में दिलचस्पी फिर से पैदा हो गई और इस दिलचस्पी की वजह है चीन. एक आर्थिक महाशक्ति के तौर पर उभरने के बाद चीन जिस तरह से दुनिया में अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है ठीक वैसी ही उसने चांद पर भी अपनी पताका फहराने का अभियान बड़े जोरशोर से शुरू कर दिया है.

बीते कुछ सालों में जबसे चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ के होने का पता चला है, चीन सहित अनेक देशों में अंतरिक्ष यात्राओं को लेकर हलचल तेज हो गई है. अगर चांद की सतह पर मौजूद बर्फ को तोड़ने में कामयाबी मिलती है तो उससे औक्सीजन पैदा की जा सकती है और चांद पर जीवन का संभावना भी तलाशी जा सकती है. यही नहीं, इस सूरत में चांद पर अपना स्टेशन बना कर मंगल ग्रह सहित अंतरिक्ष के बाकी ग्रहों की तलाश और वहां जीवन जीने के रास्ते ढूंढे जा सकते हैं. चांद पर मौजूद पानी रौकेट फ्यूल बनाने के काम भी आ सकता है. इसके अलावा चांद पर हीलियम गैस का एक बड़ा भंडार मौजूद है, जिससे क्लीन एनर्जी हासिल की जा सकती है. और अब तो वहां सोना, प्लेटेनियन, टाइटेनियन और यूरेनियन जैसे कीमती खनिजों की मौजूदगी भी मालूम चल गई है. जाहिर है चांद के इस खजाने पर चीन ने अपनी नजरें गड़ा दी हैं.

चीन ने पिछले 10 सालों में अपने 3 कामयाब मिशन चांद पर भेजे हैं. चीन ने 2013 में चांग ई-3, 2019 में चांग ई-4 और 2020 में चांग ई-5 मिशन चांद पर भेजे और न सिर्फ चांद की सतह पर रोबोट की सौफ्ट लैंडिंग कराई, बल्कि चांग ई-5 मिशन ने तो चांद पर चीन का झंडा भी फहराया दिया. दुनिया के देश चांद पर पहुंचने की जल्दी इसी कारण दिखा रहे हैं क्योंकि चीन यहीं रुकने वाला नहीं है. उसकी योजना साल 2027 तक चांग ई-7 मिशन के तहत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद पानी और बर्फ की जांच करने और 2030 तक चांद पर इंसान भेजने की है. चांद पर इंसान भेजने के चीन के मिशन में रूस भी उसका साथ दे रहा है.

चीन के तेज गति से चल रहे इन अभियानों ने अमेरिका को मानो नींद से जगा दिया है और अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा ने अपने मून मिशन आर्टेमिस के जरिए 2026 तक चांद पर फिर से इंसान को भेजने की योजना बना ली है और इस बार तो उसके इस मिशन में महिलाएं भी शामिल होंगी. यह अमेरिकी टीम चांद पर मौजूद बर्फ पर रिसर्च करेगी.

दक्षिण अफ्रीकी-कनाडाई-अमेरिकी दिग्गज व्यापारी और एलन स्पेसएक्स के संस्थापक एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स जैसे प्राइवेट प्लेयर भी चांद पर जल्द से जल्द पहुंचने की रेस में शामिल हो चुके हैं. इन सबके मुकाबले भारत की रफ्तार अभी काफी कम है.

अमेरिका का आर्टेमिस मिशन

यह अमेरिका बहुप्रतीक्षित मिशन है जो 3 चरणों में पूरा होगा. पहले आर्टेमिस-1 लौंच होगा जो चांद की और्बिट में खुद को स्थापित करेगा. आर्टेमिस टू में अंतरिक्ष यात्री भी भेजे जाएंगे जो चांद की और्बिट का चक्कर लगाएंगे और वापस आ जाएंगे. इसके बाद आर्टेमिस-3 लौंचकिया जाएगा जो चांद की सतह पर उतरेगा और एस्ट्रोनौट्स वहां घूम कर खनिज व पानी की खोज करेंगे.

चीन का चांगई-6

चीन अगले साल इस मिशन को लौंच करेगा जो चांद के दक्षिणी भाग पर उतरकर वहां से नमूने लेकर लौटेगा. 2027 में चांगई-7 मिशन लांच किया जाएगा, जो चांद पर पानी ढूंढेगा और 2030 तक इसी मिशन से चीनी टैकनौट्स को चांद पर उतारने व 2036 तक चीन, रूस और वेनेजुएला के सहयोग से एक रिसर्च सैंटर के निर्माण की भी योजना है. पाकिस्तान भी चीन के साथ शामिल होने में रुचि दिखा रहा है. यह प्रतियोगिता इस आधार पर होगी कि चंद्रमा की सतह पर किसके पास स्थायी उपस्थिति है.

जापान भी है दौड़ में

जनवरी 2024 में जापान अपना चांद मिशन लौंच करेगा. हालांकि यह मिशन भारत के चंद्रयान-3 मिशन के चौथे दिन ही होना था, मगर खराब मौसम के चलते इसे स्थगित करना पड़ा. इसके बाद 2026 में यूरोप तथा साउथ कोरिया और सऊदी अरब भी चांद पर अपने मिशन भेजेंगे.

मून मिशन के सफल होने के बाद भारत ने 2 सितंबर, 2023 को अपना पहला सोलर मिशन आदित्य एल-1 भी लौंच कर दिया है, ताकि दुनिया के बड़े देश इस मुगालते में न रहें कि अंतरिक्ष पर सिर्फ उन्हीं का हक है.

भारत का आदित्य एल-1 जहां सूर्य के अध्ययन के लिए अपनी तरह का पहला मिशन है, वहीं कई दूसरे देश कई सूर्य अभियान भेज चुके हैं. हालांकि, लाखों डिग्री तापमान वाले सूर्य का अध्ययन कर सौरमंडल को जानने के लिए प्रयासों की वैश्विक दौड़ में गिनेचुने देश ही शामिल हुए हैं. अब इसमें भारत का नाम भी दर्ज हो गया है.

नासा ने सबसे पहले भेजे सोलर मिशन

अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 2018 में पार्कर सोलर प्रोब मिशन भेजा था. यह दिसंबर 2021 में सूर्य के निकट पहुंचा और ऊपरी सतह कोरोना के तत्त्वों और चुम्बकीय क्षेत्र का डाटा दर्ज किया. उम्मीद है कि यह सूर्य की सतह के 73 लाख किलोमीटर निकट तक पहुंचेगा. नासा ने इसे ‘सूर्य को छूने वाला’ मिशन करार दिया है. इस बीच, फरवरी 2020 में नासा ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के साथ भी सूर्य की परिक्रमा के लिए मिशन भेजा था.

इससे पहले नासा ने अगस्त 1997 में एडवांस कंपोजिशन एक्सप्लोररअक्टूबर 2006 में सोलर डायनेमिक औब्जर्वेटरी और जून 2013 में इंटरफेस इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ मिशन भेजे थे.दिसंबर 1995 में यूरोप और जापान की एजेंसियों के साथ भेजे गए मिशन सोलर एंड हेमिस्फेरिक औब्जर्वेटरी को नासा का अहम मिशन माना जाता है.

जापान एयरोस्पेस आक्सा ने 1981 में सूर्य की लपटों के अध्ययन के लिए पहला सूर्य मिशन हिनोटोरी भेजा था. इस मिशन का मकसद एक्स-रे के जरिए सोलर फ्लेयर्स की स्टडी करना था. 1991 में उसने योहकोह लौंच किया. 1995 में नासा और ईएसए के साथ मिलकर सोहो और 1998 में नासा के साथ ‘ट्रांजिएंट रिजन एंड कोरोनल एक्सप्लोरर’ मिशन लौंच किया.

2006 में जापान ने हिनोडे लौंच किया, जो एक सोलर औब्जर्वेटरी की तरह आज भी सूर्य का चक्कर लगा रहा है. इस मिशन का मकसद सूर्य से पृथ्वी पर होने वाले प्रभाव को समझना है. मगर जापान के इन अभियानों की ज़्यादा चर्चा इसलिए नहीं होती क्योंकि वह अपनी जानकारियां साझा नहीं करता है.

2 साल में 2 और मिशन

यूरोपीय देशों ने भी मिलकर सूर्य के लिए कई मिशन भेजे हैं. यहां की एजेंसी ने 1990 में अल्सेस मिशन के जरिए सूर्य के ध्रुवों के वातावरण के अध्ययन का प्रयास किया है. 2001 में उसने नासा व जाक्सा के साथ प्रोबा-2 अभियान भेजा. इसके जरिए प्रयोग व डाटा संग्रह जैसी गतिविधियां अंजाम दी गईं. यूरोप 2024 में प्रोब-3 और 2025 में स्माइल मिशन सूर्य के अध्ययन के लिए भेजने जा रहा है.

2022 में भेजी सौर वेधशाला

चीन ने अक्टूबर 2022 में सौर वेधशाला (एएसओ-एस) सफलतापूर्वक भेजी है. इसका लक्ष्य सौर चुंबकीय क्षेत्र, सौर लपटों और कोरोना से होने वाले उत्सर्जन का अध्ययन करना है.अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के पूर्व कमांडर व अपोलो मर्डर्स के लेखक क्रिस हेडफील्ड का दावा है कि अब स्पेस में विश्व के देशों की दौड़ सिर्फ अंतरिक्ष के भेदों को जानने के लिए नहीं, बल्कि यह दौड़ अंतरिक्ष पर वर्चस्व और आर्थिक फायदे उठाने की है.

भारतीय चंद्रयान-3 का उद्देश्य

भारतीय चंद्रयान-3 के मुख्यतया3 उद्देश्य थे- चांद के दक्षिणी ध्रुव, जहां पहुंचने में अब तक कोई देश सफल नहीं हुआ है, वहां लैंडर की सौफ्ट लैंडिंग कराना. दूसरा, चांद की सतह, जिसे रेजोलिथ कहते हैं, पर लैंडर को उतार कर वहां रोवर्स को घुमाना और तीसरा, लैंडर और रोवर्स के जरिए चांद की सतह पर शोध करना. इसरो ने अपने ये तीनों उद्देश्य सफलतापूर्वक संपन्न कर लिए हैं.

चांद पर लैंडर और रोवर्स ने 14 दिन तक काम किया और अब इसरो ने उन्हें सोने के लिए भेज दिया है क्योंकि चांद के इस हिस्से में अब रात हो चुकी है. गौरतलब है कि चांद पर 14 दिन अंधेरा और 14 दिन उजाला रहता है. इन 14 दिनों के काम के दौरान लैंडर और रोवर्स ने कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएं इसरो को पहुंचाई हैं.

बताते चलें कि वैज्ञानिकों द्वारा लैंडर मौड्यूल में जो पेलोड स्थापित किए गए थे उन में से एक का नाम है- रेडियो एनाटौमी औफ मून बाउंड हाइपरसैंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमौस्फियर, जिसे इसरो के वैज्ञानिक रम्भा के नाम से बुलाते हैं. रम्भा ने चांद की सतह पर प्लाज्मा घनत्व की जांच कर वहां आयनों और इलैक्ट्रौनों के स्तर व समयसमय पर उनमें होने वाले बदलावों का अध्ययन कर जानकारी इसरो के साथ साझा की है. लैंडर में स्थापित एक अन्य उपकरण चांद की सतह के तापमान को मौनीटर कर रहा है. आईएलएसए यानी इंस्ट्रुमैंट फौर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी उपकरण वहां भूकंपीय गतिविधियों को नोट कर रहा है. यह इस बात को भी निर्धारित कर रहा है कि भविष्य में चांद पर मनुष्य की मौजूदगी और निवास संभव है भी या नहीं.

उल्लेखनीय है कि चांद पर भी पृथ्वी की तरह टैक्टोनिक प्लेटों की गति के कारण लगातार भूकंप आते हैं. ऐसे में यदि वहां कोई इंसानी बस्ती बसाने की बात सोची जाती है तो भूकंपीय गतिविधियों का पता लगाना बहुत जरूरी है. बीते 14 दिनों में 26 किलो वजन वाले रोवर्स ने अपने 6 पहियों पर चांद की सतह पर चहलकदमी कर लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप यानी एलआईबीएस उपकरण, जिसकेउपयोग से किसी स्थान पर तत्त्वों और उनके गुणों की पहचान होती है, चांद की सतह पर मैग्नीशियम, टाइटेनियम, सिलिकोन, लौह अयस्क और बर्फ की उपस्थिति के सुबूत जुटा लिए हैं और उसने ये तमाम जानकारियां भारतीय डीप स्पेस नैटवर्क को भेज दी हैं. चंद्रयान-3 मिशन से इसरो के वैज्ञानिकों को पता चला है कि चांद की सतह पर दिन में तापमान 180 डिग्री सैल्सियस तक पहुंच जाता है, जबकि रात के समय यह तापमान शून्य से भी 120 डिग्री नीचे चला जाता है.

चांद की ओर वैज्ञानिकों का रुझान हमेशा से रहा है. पृथ्वी के बाद अगर किसी उपग्रह को इंसानों के लिए उपयुक्त समझा गया है तो वह चांद ही है. पृथ्वी के सबसे करीब और ठंडे इस उपग्रह पर कई देशों की स्पेस एजेंसियां समयसमय पर अपने यान भेजती रही हैं. भारत भी 3 बार चंद्रयान भेज चुका है. चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 के बाद चंद्रयान-3 दुनिया के लिए इसलिए भी जिज्ञासा का विषय बना क्योंकि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच बनाने वाला भारत पहला देश है लेकिन भारत के पहले चंद्रयान की उपलब्धि भी कम नहीं थी.

चंद्रयान-1 ने पहली बार पानी खोजा

15 अगस्त,2003. यहवह तारीख थी जब भारत ने चंद्रयान कार्यक्रम की शुरुआत की थी. नवंबर 2003 को भारत सरकार ने पहली बार भारतीय मून मिशन के लिए इसरो के चंद्रयान-1 को मंजूरी दी. इसके करीब 5 साल बाद,भारत ने 22 अक्टूबर,2008 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-1 मिशन लौंच किया. उस समय तक केवल 4 अन्य देश अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान ही चंद्रमा पर अपने मिशन भेजने में कामयाब हो सके थे. ऐसा करने वाला भारत 5वां देश था.

14 नवंबर,2008 को चंद्रयान-1 चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया. लेकिन तब तक उसने चांद की सतह पर पानी के अणुओं की मौजूदगी की पुष्टि कर दी थी. चंद्रयान-1 का डेटा इस्तेमाल करके चांद पर बर्फ की उपस्थिति पक्की हो गई थी.28 अगस्त,2009 को इसरो ने चंद्रयान-1 कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा कर दी और अगले लौंच की तैयारियों में जुट गया.

चंद्रयान-2 को मिली आंशिक सफलता

22 जुलाई, 2019 को 14:43 बजे भारत ने चांद की ओर अपना दूसरा कदम बढ़ाया. सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी),श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी- मार्क-III एम1 द्वारा चंद्रयान-2लौंच किया गया.20 अगस्त को चंद्रयान-2 अतंरिक्ष यान चांद की कक्षा में प्रवेश कर गया. इस मिशन का पहला मकसद चांद की सतह पर सुरक्षित उतरना और चांद की सतह पर रोबोट रोवर संचालित करना था लेकिन 2 सितंबर को चांद की ध्रुवीय कक्षा में चांद का चक्कर लगाते समय लैंडर ‘विक्रम’ अलग हो गया और सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैंडर का स्पेस सैंटर से संपर्क टूट गया.

2019 में चंद्रयान-2 चांद की सतह पर सुरक्षित उतरने में विफल रहा था. मगर इसरो की तीसरी कोशिश ने सफलता के झंडे गाड़ दिए. चंद्रयान-3 न सिर्फ चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा बल्कि उसने अपने वे सभी काम सफलतापूर्वक अंजाम दिए जो उसके लिए निश्चित किए गए थे.

गौरतलब है कि दक्षिणी ध्रुव का तापमान अधिकतम 100 डिग्री सैल्सियस से ऊपर और न्यूनतम माइनस 200 डिग्री सैल्सियस से अधिक हो जाता है. वहां मौजूद पानी ठोस रूप में यानी बर्फ के रूप में है. चंद्रयान 3 में जो उपकरण लगाए गए हैं उन में से चास्टे चांद की सतह पर तापमान की जांच के लिए है. रंभा चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाज्मा कणों के घनत्व, मात्रा और बदलाव की जांच कर रहा है.वहीं, इल्सा लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों पर नज़र रखे हुए है. लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे चांद के डायनेमिक्स को समझने का कोशिश कर रहा है.

चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर में लगे कैमरे ने जो तसवीरें भेजी हैंउन में चांद की सेहत पर कहीं बड़े गड्ढे तो कहीं मैदानी एरिया नजर आ रहा है. वहां ज्यादातर जमीन ऊबड़खाबड़ है. बता दें कि 1958 से 2023 तक भारत, अमेरिका, रूस, जापान, यूरोपीय संघ, चीन और इजराइल ने कई तरह के मिशन चांद पर भेजे हैं. लगभग 7 दशकों में 111 मिशन भेजे गए हैं, जिनमें 66 सफल हुए और 41 फेल हुए हैं जबकि 8 को आंशिक सफलता मिली है. अब चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत जल्द ही चंद्रयान-4 की तैयारी शुरू करेगा.

सैकड़ों वैज्ञानिकों का संयुक्त प्रयास है चंद्रयान-3

चांद पर भारतीय चंद्रयान को उतारने के पीछे कई सालों की कड़ी मेहनत और इसरो के सैकड़ों वैज्ञानिकों का संयुक्त प्रयास शामिल है. इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन में 54 महिला इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया. कुछ मुख्य नामों की चर्चा जरूरी है.

एस सोमनाथ, इसरो के चेयरमैन

भारत के महत्त्वाकांक्षी चंद्र मिशन के पीछे इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ की बड़ी भूमिका है.‘गगनयान’ और सूर्य मिशन ‘आदित्य-एल-1’ समेत इसरो के अन्य अंतरिक्ष अभियानों को रफ़्तार देने का श्रेय भी उन्हें जाता है. इसरो के प्रमुख की जिम्मेदारी निभाने से पहले एस सोमनाथ विक्रम साराभाई स्पेस सैंटर और लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सैंटर के डायरैक्टर रह चुके हैं. लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सैंटर मुख्य रूप से इसरो के लिए रौकेट टैक्नोलौजी विकसित करता है.

पी वीरामुथुवेल, चंद्रयान-3 के प्रोजैक्ट डायरैक्टर

इसरो के प्रोजैक्ट निदेशक पी वीरामुथुवेल के पिता रेलवे कर्मचारी थे, मगर पी वीरामुथुवेल का मन शुरू से विज्ञान व तकनीक में रमता था. इसरो के अलगअलग सैंटर और चंद्रयान-3 के साथ समन्वय का पूरा काम उन्होंने ही संभाला था. 2019 में उन्होंने इस मिशन का चार्ज लिया था.

मून मिशन शुरू होने से पहले वीरामुथुवेल इसरो मुख्यालय में स्पेस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम औफिस में डिप्टी डायरैक्टर थे. उन्हें बेहतरीन टैक्निकल हुनर के लिए जाना जाता है.वीरामुथुवेल ने चंद्रयान-2 मिशन में भी अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने नासा के साथ तालमेल बिठाने में भी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई है. वे तमिलनाडु के विल्लुपुरम के रहने वाले हैं और उन्होंने मद्रास आईआईटी से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. वीरामुथुवेल लैंडर के एक्सपर्ट हैं और विक्रम लैंडर की डिजाइनिंग में उनकी सक्रिय भूमिका रही है.

कल्पना के, डिप्टी प्रोजैक्ट डायरैक्टर, चंद्रयान-3

कल्पना के ने चंद्रयान-3 टीम का नेतृत्व किया है. उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान भी दृढ़ इच्छाशक्ति के सहारे सारी चुनौतियों का सामना करते हुए मिशन के काम को आगे बढ़ाया. भारत के सैटेलाइन प्रोग्राम के पीछे इस प्रतिबद्ध इंजीनियर की बड़ी भूमिका रही है. कल्पना ने चंद्रयान-2 और मंगलयान मिशन में भी मुख्य भूमिका निभाई है.

एम शंकरन यूआर राव, सैटेलाइट सैंटर के डायरैक्टर

एम शंकरन यूआर राव सैटेलाइट सैंटर के प्रमुख हैं और उनकी टीम इसरो के लिए भारत के सभी उपग्रहों को बनाने की जिम्मेदारी निभाती है. चंद्रयान-1,मंगलयान और चंद्रयान-2 सैटेलाइट के निर्माण में शंकरन शामिल रहे. चंद्रयान-3 का तापमान संतुलित रहे, इस बात को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी शंकरन की थी. सैटेलाइट के अधिकतम और न्यूनतम तापमान की टैस्टिंग एक पूरी प्रक्रिया का बेहद अहम हिस्सा होता है. उन्होंने चंद्रमा के सतह का प्रोटोटाइप तैयार करने में मदद की जिस पर लैंडर के टिकाऊपन का परीक्षण किया गया.

एस मोहन कुमार, मिशन डायरैक्टर

एस मोहन कुमार विक्रम साराभाई स्पेस सैंटर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं और चंद्रयान-3 मिशन के डायरैक्टर हैं. एस मोहन कुमार एनवीएम-3 मिशन के तहत वन वेव इंडिया 2 सैटेलाइट के सफल व्यावसायिक लौंच में भी डायरैक्टर के तौर पर काम कर चुके हैं.

एस उन्नीकृष्णनन नायर, विक्रम साराभाई स्पेस सैंटर के डायरैक्टर

एस उन्नीकृष्णन नायर केरल के तिरुअनंतपुरम के थुम्बा विक्रम साराभाई स्पेस सैंटर के प्रमुख हैं.वे और उनकी टीम इस अहम मिशन के मुख्य संचालन के लिए जिम्मेदार थी.जियोसिंक्रोनस सैटेलाइल लौंच व्हीकल (जीएसएलवी) मार्क-3भी विक्रम साराभाई स्पेस सैंटर ने ही तैयार किया था.

ए. राजाराजन, लौंचऔथराइजेशन बोर्ड के प्रमुख

ए राजाराजन सतीश धवन स्पेस सैंटर,श्रीहरिकोटा के डायरैक्टर और वैज्ञानिक हैं. उन्होंने मानव अंतरिक्ष मिशन प्रोग्राम- ‘गगनयान’ और ‘एसएसएलवी’ के मोटर को लेकर काम किया है. लौंच औथराइजेशन बोर्ड असल में लौंचकरने की हरी झंडी देता है.

Palak Tiwari-Ibrahim Ali khan के रिश्तें पर पापा राजा चौधरी ने तोड़ी चुप्पी

Raja Chaudhary : टीवी एक्ट्रेस ‘श्वेता तिवारी’ की बेटी ”पलक तिवारी” आए दिन सुर्खियों में बनी रहती हैं. उनकी वीडियो से लेकर हर एक पोस्ट को लोगों का खूब प्यार मिलता है. हालांकि अपनी एक्टिंग के अलावा वह अपने रिलेशनशिप को लेकर भी लाइमलाइट में रहती हैं.

इस समय उनका नाम एक्टर ‘सैफ अली खान’ के बेटे ”इब्राहिम” (Palak Tiwari-Ibrahim Ali khan) के साथ जोड़ा जा रहा है. दोनों के लिंकअप की खबरें पिछले काफी समय से वायरल हो रही हैं. दोनों को एक साथ कई बार स्पॉट भी किया जा चुका है. वहीं अब श्वेता तिवारी के पहले पति एक्टर ”राजा चौधरी” ने अपनी बेटी के रिश्तें पर चुप्पी तोड़ते हुए बात की.

राजा- पलक एक आत्मविश्वासी बच्ची हैं

एक्टर राजा चौधरी (Raja Chaudhary) ने मीडिया से बात करते हुए पलक की सफलता से लेकर उनके रिलेशनशिप पर अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने मीडिया को बताया कि, ”पलक एक आत्मविश्वासी बच्ची हैं.” इसके अलावा राजा ने कई सालों के बाद पलक से मुलाकात के उन दिनों को याद करते हुए कहा, ”पलक अब छोटी बच्ची से खूबसूरत लड़की बन गई हैं. वह लोगों से अच्छी तरह से बात करने का तरीका जानती है. वह जिम भी जाती है. साथ ही अपने आप को अच्छे से मैनेज भी करती है और ड्रिंक व धूम्रपान भी नहीं करती है.”

इसके अलावा राजा ने श्वेता की भी तारीफ की. उन्होंने कहा, ”पलक को श्वेता से बेहतर कोई भी परवरिश नहीं दे सकता था. एक बिजी और सिंगल मदर होते हुए भी इतनी अच्छी परवरिश और कौन देगा. तो जिसने जो भी काम अच्छा किया, उसे कहना ही चाहिए. उन्होंने अच्छा काम किया है.”

एक्टर- मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है

वहीं जब एक्टर (Raja Chaudhary) से पलक और इब्राहिम (Palak Tiwari-Ibrahim Ali khan) के रिश्ते की अफवाह के बारे में पूछा गया तो इस पर उन्होंने कहा, ”उन्हें इस तरह की खबरों से कोई भी दिक्कत नहीं है और अब वह इस उम्र में पहुंच चुकी है. इस समय में बच्चों में निर्णय लेने की ताकत आ जाती है. उन्हें जो भी अच्छा लगता है. वो करें. मैं उससे खुश हूं.” इसी के साथ राजा ने आगे कहा, ‘वह खुश है, तो मैं खुश हूं. वह दुखी है, तो मैं दुखी हूं.’

आपको बतात चलें कि वर्ष 1998 में राजा और श्वेता ने शादी की थी, लेकिन साल 2007 में उनका तलाक हो गया था. पलक, राजा और श्वेता की बेटी हैं, जिनका जन्म 2000 में हुआ था.

अस्थि विसर्जन का पाखंड

द्वारका दाऊ गांव के संपन्न किसान थे. उम्र 90 वर्ष के लगभग थी. गांव के सभी लोग उन का आदर करते थे. जब वे मरने को हुए तो गाय को दान करते समय अपने बेटे से बोले, ‘बेटा प्रकाश, मेरी एक इच्छा है कि मरने के बाद मेरी अस्थियों का देश की सभी बड़ी नदियों में विसर्जन करा दिया जाए.’

द्वाराका दाऊ का जब देहांत हुआ तो गांठ के पूरे और दिमाग से खारिज बेटे ने उन की अस्थियों की थैली को गले में लटकाया और चल दिए सभी बड़ी नदियों में हड्डियों का विसर्जन करने.

प्रश्न यह उठता है कि द्वारका दाऊ के मन में यह कैसे आया कि मरने के बाद उन की हड्डियों का देश की सभी बड़ी नदियों में विसर्जन किया जाए.

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने वसीयतनामा में इच्छा जाहिर की थी कि मृत्यु के बाद उन की अस्थियों का कुछ भाग गंगा नदी में विसर्जन कर दिया जाए और शेष भाग को हवाई जहाज से भारत के दूरदराज खेतों में डाल दिया जाए. आगे नेहरूजी ने लिखा कि इस में उन की कोई धार्मिक भावना नहीं है. बल्कि, गंगा नदी से उन्हें बचपन से लगाव रहा है और वे अपनी हड्डियों को खेत की उस मिट्टी का भाग बनाना चाहते थे जिस का भारतवासी अन्न खाते हैं.

नेहरूजी के मरने के बाद उन के उत्तराधिकारियों ने बिना किसी विशेष समारोह या दिखावे के अस्थियों के कुछ भाग का गंगा नदी में विसर्जन कर दिया. शेष भाग को हवाई जहाज से भारत के खेतों में फैला दिया. नेहरूजी की इस इच्छा के पीछे देशप्रेम के अलावा कुछ भी नहीं था और आयोजकों की मंशा भी नेहरूजी की इच्छापूर्ति करना था.

नेहरूजी के बाद जब जयप्रकाश नारायण का देहांत हुआ तो जनता पार्टी ने शासकीय सम्मान और समारोहपूर्वक उन की अस्थियों का देश की सभी बड़ी नदियों में विसर्जन किया. जयप्रकाश एक तपे हुए राजनेता तथा जननायक थे. वे सत्ता से सदैव दूर रहे. इस कारण उन के प्रति जनता की आस्था थी. इस आस्था का ही कारण था कि उन की अस्थियों के विसर्जन में सभी जगह जनता ने भाग ले कर उन्हें अपनी अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित की.

इस के बाद मरने वाले सत्ताधारियों की अस्थियों के देश की सभी बड़ी नदियों में विसर्जन के जो नाटक किए जा रहे हैं उन के पीछे जनता की धार्मिक भावनाओं को भुना कर वोट प्राप्त करना और मरने वालों के प्रति    झूठी भक्ति प्रदर्शन के अलावा कुछ नहीं है. इस से रूढि़वादियों और धर्म के नाम पर जनता को ठगने वालों को फायदा हो रहा है.

इंदिरा और राजीवजी ने तो सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन की मृत्यु के बाद उन की हड्डियों का देश की विभिन्न नदियों में विसर्जन कर अंधविश्वास को गहराया जाएगा. वैसे भी, ये दोनों रूढि़यों से कोसों दूर रहे हैं.

अयोध्या मंदिर के कारसेवकों की अस्थि विसर्जन की तो लीला ही अलग थी. कई दिनों तक प्रचार किया गया था. विसर्जन स्थल पर भगवाधारियों को एकत्रित किया गया. सैकड़ों ने अपने सिरों का मुंडन कराया. जहरीले भाषण दे कर और नारे लगा कर देश में दंगे भड़काने की कोशिश की गई और यह सब वोट प्राप्त करने के लिए किया गया.

भूतपूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की मृत्यु होने पर उन की अस्थियों का भी देश की सभी बड़ी नदियों में शासकीय सम्मान और समारोहपूर्वक विसर्जन कर स्वार्थी राजनीतिबाजों ने कुरीति को ही आगे बढ़ाया है. अभी हाल ही में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की पत्नी मीना ताई की मृत्यु हुई, शिवसेना वाले पीछे क्यों रहते.

उन्होंने भी मीना ताई की अस्थियों का गंगा, शिप्रा, नर्मदा आदि देश की प्रमुख नदियों में बड़ी धूमधाम से विसर्जन कर कुरीति को पुख्ता किया है. इस कार्यक्रम को दूरदर्शन पर न दिखाने के कारण शिवसैनिकों ने दूरदर्शन पर पक्षपात का आरोप भी लगा डाला. बुरा हो इन दूरदर्शन वालों का जिन्होंने ताई के अस्थि विसर्जन कार्यक्रम को दूरदर्शन पर न दिखा कर हिंदू जनता में इस कुरीति का प्रचारप्रसार नहीं किया.

समारोहों से अंधविश्वास

देश में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य सत्ताधारी होते रहेंगे और मरते रहेंगे. प्रश्न यह उठता है कि यदि हर सत्ताधारी या उस के परिजनों की अस्थियों को देश की सभी बड़ी नदियों में समारोहपूर्वक विसर्जन किया जाता रहा तो सामान्य जनता में अंधविश्वास बढ़ेगा या घटेगा.

कहीं इन बड़े नेताओं की अस्थि विसर्जन का कारण ही तो नहीं रहा कि द्वारका दाऊ ने अपनी अस्थियों का भी देश की सभी बड़ी नदियों में विसर्जन करने की इच्छा जाहिर की.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियों की राख भी कई नदियों और शहरों में बहाई गई.

गिरवी रख कुरूतियों का पालन

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की अस्थियां भी गंगा में प्रवाहित हो गईं. अंधविश्वास की गति विद्युतधारा की तरह तीव्र है. वह हिंदुओं में कुछ अधिक ही है. अभी धर्मभीरु और अंधविश्वासी हिंदू जानवर, गहने और जमीन बेच कर भी अपने पुरखों की अस्थियों का किसी एक ही ‘पवित्र’ नदी में विसर्जन कर उसे स्वर्ग भेजते हैं. स्वर्ग जाने में कोई अड़ंगा न लगे, इस के लिए अस्थि विसर्जन के बाद वे ब्राह्मणों को दान देते हैं और गंगभोज करते हैं.

इन कुरीतियों को हिंदू धर्म के ठेकेदार बड़े गर्व से हिंदू संस्कृति या हिंदू संस्कार के नाम से पुकारते हैं. सैकड़ों हिंदू स्वयं को गिरवी रख कर भी इस संस्कृति (कुरीति) का पालन करते देखे जाते हैं. यह क्रमिक विकास का ही परिणाम है.

भय इस बात का है कि आगे चल कर हिंदुओं में एक से अधिक नदियों में अस्थि विसर्जन का रिवाज न चल निकले और यह भय निरर्थक नहीं है. आज सत्ताधारियों की अस्थियों का विसर्जन देश की सभी बड़ी नदियों में किया जा रहा है. कब अमीर ऐसा ही करने लगेंगे. आगे चल कर इस कुरीति को सामान्य जनता में फैलने से कौन रोक सकता है.

हाल इतना बुरा है कि हाल में पाकिस्तान में बसे सिंधियों ने 30 कलश हरिद्वार में गंगा में बहाने को भेजे. नरेंद्र मोदी सरकार ने इस काम के लिए

10 दिनों का वीजा देने का विशेष प्रावधान भी तैयार किया. पाकिस्तान सरकार को इस पर कोई आपत्ति नहीं रही क्योंकि हिंदू, सिंधी पाकिस्तान में अच्छा कमा रहे हैं और पैसे वाले हैं.

लूटखसोट की संस्कृति

सोचना यह है कि सत्ताधारियों के मरने पर उन की अस्थियों का देश की सभी बड़ी (तथाकथित पवित्र) नदियों में समारोहपूर्वक विसर्जन कर आखिर हम कौन सी संस्कृति को जन्म दे रहे हैं.

जिन नेताओं ने देश की जनता में वैज्ञानिक सोच पैदा करने और देश को नई दिशा देने में अपना पूरा जीवन खपा दिया हो, जो अंधविश्वास के विरोधी रहे हों उन नेताओं के मरने के बाद उन की अस्थियों और चिताओं की राख से अंधविश्वास को गहराया जा रहा है क्योंकि हर जगह अस्थि विसर्जन में पंडों और दानपुण्य की खास भूमिका रहती है. आज धर्म प्रचार का माहौल मार्केटिंग जैसा हो गया है और कई चैनल लगातार धर्म का गुणगान करते रहते हैं. उन्हें लगातार पैसा चाहिए होता है. अस्थि विसर्जन उसी को और ज्यादा प्रचारित करता है.

लोगों की इस धारणा से बर्बाद हुए Karan Johar!, कहा- नाम बदलना चाहता हूं

Karan Johar Statement : फिल्म निर्माता ”करण जौहर” हर एक मुद्दे पर बेबाकी से अपनी बात रखते हैं. इसी वजह से कई बार वह लोगों के निशाने पर भी आ जाते है. हालांकि इस बार उन्होंने अपना दर्द खुलकर बयां किया है.

दरअसल इस समय करण जौहर अपनी आगामी फिल्म ‘किल’ (Kill) को लेकर चर्चा में बने हुए हैं. बीते दिनों इस फिल्म का प्रीमियर, टोरंटो में किया गया था, जिसके बाद करण ने मीडिया से बात भी की. इस दौरान उन्होंने अपने दिल का दर्द बयां किया है.

करण- मैं थक चुका हूं

मीडिया ने जब करण जौहर (Karan Johar ) से सवाल किया कि, ‘आपने ऑस्कर विनर गुनीत मोंगा के साथ मिलकर यह सीरियस फिल्म बनाने का विचार कैसे सोचा.’ तब इस पर उन्होंने जवाब दिया, ”ऐसा नहीं है कि मैं केवल और केवल पारिवारिक फिल्में ही बनाता हूं. यह बहुत ही गलत धारणा है और मैं लोगों की इस धारणा को तोड़ना चाहता था. मुझे बहुत ज्यादा अजीब लगता है जब कोई मुझसे पूछता है कि आप बस एक ही थीम पर फिल्में बनाते हैं. तो मैं इस पर कहना चाहता हूं. ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. हालांकि कुछ लोग मुझे कई बातों को लेकर ट्रोल भी करते हैं. लेकिन ट्रोलिंग से अब मैं थक चुका हूं.”

इसी के आगे निर्माता (Karan Johar Statement) ने कहा, ‘जब सुबह उठकर मैं सोशल मीडिया खोलता हूं तो कुछ लोग मेरे खिलाफ कई बातें लिखते है. जो मुझे परेशान कर देती हैं. मैं अक्सर सोचता हूं कि आखिर मैंने लोगों का ऐसा क्या बिगाड़ा है.’

अपना नाम क्यों बदलना चाहते हैं करण जौहर ?

इसके अलावा करण जौहर (Karan Johar Statement) ने ये भी कहा कि ‘वो लोगों की इस गलत धारणा से बर्बाद हो चुके हैं. इसलिए अगर मेरा नाम करण जौहर के बजाए करण कश्यप होता तो शायद ठीक रहता. फिर शायद लोग समझ पाते की मैं सभी लोगों के साथ काम कर सकता हूं और करना भी चाहता हूं.’ आपको बता दें कि अनुराग कश्यप भी फिल्मेकर है. जो ज्यादातर सीरियस और डार्क फिल्में बनाते हैं.

हिंदू धर्म नहीं पढ़ना चाहता हिंदू

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के एक कोर्स‘एमए हिंदू’ अध्ययन में इस साल मात्र 1 छात्र ने ही अप्लाई किया है.यह कोर्स जब शुरू किया जा रहा था तब ढोलमजीरे बजाए गए, मीडिया ने भी खूब वाहवाही की, इसे नवयुवकों के हिंदू धर्म के प्रति ज्ञान बढ़ाने के उद्देश्य के साथ यह कहा जा रहा था कि इस में रोजगार के विकल्प खुलेंगे.

हैरानी इस बात की नहीं कि इतने गाजेबाजे के बावजूद सिर्फ एक ही स्टूडैंटने इस कोर्स में एडमिशन लिया,हैरानी तो उस स्टूडैंट पर है कि आखिर किन मजबूरियों में उसे ऐसे कोर्स में एडमिशन लेना पड़ा? अब जाहिर है एक छात्र के साथ यह कोर्स कराना संभवनहीं, जिस के लिए पूरी फैकल्टी लगाई जाए,महंगे शिक्षक लगाए जाएं, क्लास एलौट किया जाए. ऐसे में यह पूरा एक्सपैरिमैंट ही बड़ा फेलियर साबित हुआ है.

जब यह कोर्स शुरू किया जा रहा था तब कहा जा रहा था कि इस में अध्यापन, कथा मर्मज्ञ,ज्योतिषीचार्य व कर्मकांड के क्षेत्र में रोजगार खुलेंगे. आप खुद सोचिए जिस तरह के रोजगार मिलने की बात यह कोर्स कर रहा है, वे रोजगार हिंदुओं में किन के हाथों तक सीमित हैं, क्या वे किसी गैरब्राह्मण को इन कामों को करते देख सकता है? दूसरा,मुफ्तखोरी वाले इस काम को रोजगार माना जाए भी कि नहीं? पंडिताई, हाथदिखाई, लगन कराई, झाड़फूंक जैसे काम किसी तरह के उत्पादन नहीं करते, सिवा अंधविश्वास फैलाने के.

कोर्स में युवाओं के दिलचस्पी न लिए जाने से एक बात और साबित होती है कि हिंदू अपने वेदपुराणों, उपनिषदों, शास्त्रों को पढ़ना नहीं चाहते. यह हिंदुओं के उस फरेब को दिखाता है जो संस्कृति का ढोल तो खूब पीटते हैं लेकिन उन में रत्तीभर भी पढ़ने की इच्छा नहीं है.

फलांना कोई आता है और किसी भी आविष्कार पर कहता है कि यह तो वेदों व उपनिषदों में पहले ही लिखा हुआ है. तो, हिंदू बस बिना पढ़े हीकल्पना कर लेते हैं कि हमारे शास्त्रों में सबकुछ लिखा हुआ है, हम ने परमाणु दिया, हम ने चांद पर पहुंचने का रास्ता खोजा, कंप्यूटर तो पुराणों में है, ट्रांसप्लांट सर्जरी तो शिवजी कर चुके हैं,हमारा धर्म सबसे प्राचीन है,ये महान ग्रंथ है, इन ग्रंथों के लिए हिंदू अपनी जान दे सकता है फलांनाढीमकाना आदिआदि. लेकिन पढ़ने की बात आएगी, तो पढ़ेगा नहीं.

ज्यादा से ज्यादा हिंदू वेदों का नाम तो बता देंगे लेकिनउन वेदों के चरितार्थ क्या हैं, इसे जानने के लिए वे प्रवचन करने वाले पंडेपुरोहित या बाबाओं के भरोसे हैं और आजकल तो नवयुवकों को व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने का चस्का अलग लग गया है. लेकिन असल में वेदों, पुराणों में है क्या, यह जानने की इच्छा अधिकतर को रत्तीभर नहीं है.

अब मुद्दे पर आया जाए तो एक तथ्य यह भी है कि जिस दिनपिछड़ों ने अपने धर्मग्रंथों को पढ़ना शुरू कर दिया, श्लोकों, किस्सों, कथाओं को जानना शुरू कर दिया तो धर्म को ले कर बनाई गई नैतिकता, सम्मान ख़ाक में मिल जाएगी.इन पुस्तकों के आधार पर रचा गया पाखंड और पाखंड के जरिए निचलों से लूटमाटकरने का सारा खेल ही खत्म हो जाएगा.

वह खुद ही समझ आ जाएगा कि पुराण,उपनिषद और स्मृतियां आदि सबने किस प्रकार से भारतीय समाज को भेदभाव के जाल में फंसारखा है. आज जो धर्म के नारे लगा सड़कों पर लठैत बने घूम रहे हैं उन्हें कैसे इन ग्रंथों के माध्यम सेनीचबना कर पढ़ने से रोका गया, इस की पोल खुल जाएगी.

भटकाव की राह पर गरीब पिछड़ा युवा

कल एक अजीब चीज देखने को मिली. शाम के समय मैं औफिस से घर जा रही थी. मैट्रो ट्रेन का आखरी स्टेशन था जहांमैं उतर गई. स्टेशन के लिए मैं एग्जिट ले जैसे ही गैलरी में आई, देखा, सारा कंपाउंड 15 से 25 साल के युवा लड़कों से भरा था. चारों तरफ वही थे. बाहर निकलने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. मैं थोड़ा डर गई, कहीं कोई दंगा या उपद्रव तो नहीं हो गया. पर सीआरपीएफ के जवानों की भारी तादाद में तैनाती देख थोड़ा सुकून आया. घर के लिए रिकशा लेने के बाद पता चला कि ये सब मैट्रोवौक में किसी सिंगर को देखने के लिए आए हुए थे. रिकशे वाले का कहना था, यह भीड़ तो बहुत कम है, आप एक घंटा पहले आते तो देखते,रोडइन्हीं से भरा हुआ था.

मैं स्तब्ध थी. सब युवा थे. उम्र कोई 18 से 30 के बीच ही रही होगी. किसी के पास ढंग के कपड़े तक नहीं थे और वे सब अपना समय इस तरह बरबाद करने के लिए इकट्ठे थे. क्या इनके पास कोई काम नहीं था,ये इस तरह भटक क्यों रहे थे? कितनी बेकारी हो गई है? इसका अंदाजासमय बरबाद करते ऐसे ही युवाओं के झुंड से लगाया जा सकता है.

लेकिन इन सब के पीछे जीम्मेदार कोन है? अचरज की बात है,क्यों यह भीड़, जो किसी राज्य की हालत बदल सकती है, इस तरह बेकार की चीजों में अपना समय नष्ट करना सही समझ रही है? कुछ कारण हैं जिनके बारे में बात की जा सकती है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं.

शिक्षा के मूल्य

पहली चीज जो हमें नजर आती है,कहीं न कहीं इनमें हमें शिक्षा के मूल्योंकी कमी है जो व्यक्ति की सोच व समझ विकसित करते हैं. सहीगलत जरूरीगैरजरूरी में फर्क समझातेहैं. जो तबका वहां दिखाईदे रहा था वह गरीब और पिछड़ा था. समय के सदुपयोग की मानसिकता अभी उनमें विकसित हो गई हो, ऐसा मालूम नहीं पड़ता था. किसी शिक्षा संस्थान से ये जुड़े हों, ऐसा भी दिखाई नहीं पड़ता था. अगर ऐसा होता तो वे अपने संस्थान की गतिविधियों में बिजी होते, न कियहां.

ऐसा लग रहा था ये या तो स्कूल छोड़ चुके हों या गए ही न हों. यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार,100 छात्रों में से 29 प्रतिशत लड़केलड़कियां प्राथमिक शिक्षा पूरी किए बिना ही अलगअलग कारणों से स्कूल से बाहर निकल जाते हैंऔर इनमें सबसे ज्यादा पिछड़े समुदाय के बच्चे होते हैं.कई स्कूलकालेजों में हो रहे भेदभाव व प्रताड़नाओं के कारण भी स्कूल छोड़ देते हैं.

चेन्नई में हाल ही की एक घटना है.हाईस्कूल के सवर्ण वर्ग के छात्रों के एक समूह ने दलित छात्र के घर में घुसकर उसे दरांती से हमला किया केवल इसलिए क्योंकि वहगरीब और पिछड़े वर्ग से होने के बावजूद पढ़ाई में अच्छा था और उन्हेंयह बरदाश्तनहीं हो रहा था. वर्तमान मेंभीऐसी घटनाएं दिल झकझोर देने वाली हैं. आएदिन इस तरह कि खबरें आती रहती हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डेटा के अनुसार, 2021 मेंअनुसूचित जाति (एससी) के खिलाफ अपराध के 50,900 मामले दर्ज किए गए, जो 2020 (50,291 मामले) की तुलना में 1.2 फीसदीअधिक है.

पलायन, गरीबीऔर जागरूकता की कमी के कारण भी बच्चे शिक्षा पूरी नहीं कर पाते.हर साल देश का एक बड़ा तबका रोजगार की तलाश में अपने घरों को छोड़ कर दूसरे राज्यों में पलायन करता है जिससे बच्चों की शिक्षा पूरी नहीं हो पाती और कई तो शुरुआत तक नहीं कर पाते और यही बच्चे आगे चलकर इस तरह सड़कों के परिंदे बन जाते हैं. बिना लक्ष्य और महत्त्वाकांक्षाओं के ये यहांवहां भटकते रहते हैं.

अगर किसी तरह ये स्कूली शिक्षा पूरी कर भी लेते हैं तो इन्हें फिर आगे उच्चशिक्षा के लिए सरकारी, गैरसरकारी संस्थानों की तरफ जाना होता है जहांइन्हें एक और समस्या का सामना करना पड़ता है.संस्थानों की ऊंची फीस,जिसके कारण वे आगे जाकर इन कौशल स्थानों में दाखिला नहीं ले पाते. आप किसी भी जगह को ले लीजिए. इन संस्थानों में दाखिला कितना मुश्किल है, ये आप सब भी जानते हैं.और जिनमें मिल भी जाता है तो उनकी शिक्षा प्रणाली में कमियां होती हैं. ऐसे में इन्हें सही राह नहीं मिल पाती, एडमिशननहीं मिल पाते और ये भटक जाते हैं.

उपद्रवी भीड़ में बदलते युवा

शिक्षा के बिना इस भीड़, जिसमें किसी का भाई व किसी का बेटा शामिल होता है, का एक उपद्रवी भीड़ में बदल जाना आसान हो जाता है, जिसका लाभ उठातेहैं राजनीतिक और सांप्रदायिक संगठन,जो धर्म के नाम पर आएदिन शोर मचाते रहते हैं और चंद रुपयों का लालच दे इस भीड़ को किसी भी दिशा में मोड़ देते हैं. 300 रुपए से 500 रुपए दिहाड़ी तक में ये युवा बिना किसी बात की परवा किएउस संगठन के प्रचारप्रसार में लग जाते हैं.जब भी इन्हें दंगे कराने होते हैं, सबसे आगे इन्हें रखा जाता है.

इसमें पंडितों,मौलवियों, नेताओं, अफसरों, व्यापारियों के बच्चे नहीं होते. ये वही गरीब,पिछड़े, बहकाए गए युवा होते हैं जिनके मारे जाने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. इस तरह उनकी एक अलग मानसिकता विकसित हो जाती है जो उनकी खुद की न हो के किसी के द्वारा प्रभावित की हुई होती है. इसलिएइन्हें आसानी से भड़काया भी जा सकता है.

नूंह के आसपास और गुरुग्राम में 2 समुदायों के बीच हुआ जबरदस्त बवाल इसका ताजा उदाहरण है. त्योहारों और आयोजनों के दौरान ही ये अधिकतर सामने आते हैं जिसे मुख्य तौर पर सांप्रदायिक दंगे कहा जाता है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, अगर देखा जाए तो केवल दिल्ली में ही2015 में 130 दंगे हुए थे.2016 में 79, 2017 में 50, 2018 में 23, 2019 में 23, 2020 में 689 और 2021 में 68 दंगे हुए थे. इन आंकड़ों में सांप्रदायिक, गैरसांप्रदायिकदोनों ही शामिल हैं.

गौर किया जाए तो इन हिंसाओं को उकसाने वालों में ज्यादातर सवर्ण या राजनेता होते हैं जो जाति व धर्म के नाम पर एकदूसरे को भिड़ाने का काम करते हैं. कर्नाटक में हिजाब पर बवाल आपने देखा होगा. स्कूलकालेजों में जो लड़केलड़कियां साथसाथ पढ़ रहे थे वे जय श्री राम और अल्लाहू अकबर के नारे लगा कर आपस में भिड़ रहे थे.

इस तरह इनका ब्रेनवाश कर इनकी तार्किक मानसिकता को शून्यतक पहुंचा कर दक्षिणपंथी संगठन इस अल्प मानसिकता के लोगों का जीभरकर इस्तेमाल करते हैं और जब ये अज्ञान युवा मारे जाते हैं तो इन्हें पूछने वाला कोई नहीं होता.

पाखंड की ताकतों से लड़ने में कमजोर युवा इनकी चालें समझ नहीं पाता, भ्रमित हो वह अपनेआप को इस दलदल में घुसेड़ता चला जाता है.

रोजगार के अवसर

सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी के आकड़ों के मुताबिक, अप्रैल 2023 में शहरी बेरोजगारी 8.51 फीसदी से बढ़कर 9.81 फीसदी हो गई है. ग्लोबल रिसैशन तेजी से बढ़ रहा है, इसकारण लोगों को नौकरियों से निकाला जा रहा है. ये आंकड़े और बढ़ जाएं तो हैरान मत होइएगा.रोजगार के अवसरों की कमी इस भीड़ को और प्रबल बनाती है.

सड़कों पर यह जो भीड़ दिखाई देती है,उस से यह तो मानना होगा कि यह किसी काम की नहीं है. प्राइवेट नौकरियों के लिए स्किल की जरूरत है. निचले ग्रेड की सरकारी नौकरियों में भरतियां हो नहींरहीं और जो हो भी रही हैं उन में अपनेआप को सवर्ण कहने वाले अपने किसी जानकार को रिश्वत के बल पर नौकरी दिला देते हैं. आरक्षण होते हुए भी अज्ञानतावश पिछड़े वर्ग के लोग इसका लाभ नहीं उठा पा रहे.

रोजगार प्राप्ति का महत्त्वपूर्ण माध्यम है कौशल (skills) का विकास. समाज का पिछड़ा,गरीब तबका पैसे और इनफौरमेशन की कमी के कारण स्किल्स नहीं सीख पा रहा. ये नए बच्चे जो स्कूलों से निकल रहे हैं, स्किल्स की कमी के कारण रोजगार हासिल नहीं कर पा रहे. वर्तमान में रोजगार उनकी एक मुख्य समस्या बनती जा रही है. जिसे वे कैसे हल करें, उन्हें समझ नहीं आ रहा. क्या किया जाए, वे पता नहीं कर पा रहे.

स्किल्स की कमी

इसका एक मुख्य कारण भी है जब हम युवा छोटीमोटी शिक्षा ग्रहण कर लेते हैं तो हमारी उम्मीदें सीधे सरकारी नौकरी या फिर कोई बड़ी नौकरी बन जाती है. जिससे जो हमारे आसपास सरल रूप से मौजूद स्किल्स और व्यवसाय है उनके ऊपर हमारा ध्यान नहीं जा पाता. जिसके लिए हमें ज्यादा कुछ खर्च करने की जरूरत भी नहीं और कभीकभी तो कुछ भी नहीं. और स्किल सीख भी लेते हैं तो उनके लिए अवसरों की एक बड़ी समस्या बन जाती है.

बिहार में शिक्षकों की भरती की जानी थी जिसमें वे बिहार में पढ़े शिक्षकों को प्राथमिकता न देकर अन्य राज्यों के शिक्षकों को प्राथमिकता दे रहे थे.

बिहार के अभ्यर्थियों ने इसका जमकर विरोध किया. इसके पीछे तर्क था कि अन्य राज्यों के शिक्षक ज्यादा योग्य हैं. उम्मीदवारों का कहना है कि इससे बिहार के छात्रों का हक मारा जा रहा है.ऐसे में वहां का युवा क्या करेगा, इसपर किसी का ध्यान नहीं गया. उनका क्रोध कैसे शांत होगा.

स्किल्स सीख जाने के बाद उन्हें नौकरियोंकी जरूरत नहीं. नौकरियों से भी बेहतर पैसा ये लोग कमा पा रहे हैं. सोनू एक इलैक्ट्रिशियन है जो घरों में बिजली कासामान ठीक करता है. मैंने उसे अपना फ्रिज ठीक करने के लिए बुलाया था. उससे बात करते हुए पता चला, उसकी महीने की कमाई 35 हजार रुपए तक हो जाती है. मैं सुनकर हैरान थी. इतना कमाने में किसी को भी दिनरात एक कर देने पड़ते हैं और उसका कहना था वह अपनी मरजी से काम करता है.ऐसे में यदि ये युवा कुछ सीख लेते हैं तो उनके सफल भविष्य का निर्माण हो सकता है.

मानसिक स्थिरता

ऐसे में गरीब, पिछड़ा युवा शराब और नशे की जद में फंसता चला जाता है. गरीब पिछड़ा दलित अपनेआप को इससे दूर नहीं रखता. और अपने तथा अपने परिवार के पतन का कारण बन जाता है. आजकल युवा शराब और नशे को फैशन मानने लगे हैं. इस तरह ये निठल्ले, आवारा लड़के, जो थोड़ाबहुत कमाते भी हैं, नशे में खर्च कर डालते हैं. शराब के नशे में सड़कों पर,नालियों में पड़े नजर आ जाते हैं ये. शराब और नशा मानवीय विवेक को नष्ट कर देते हैं. नशेड़ी अपने भलेबुरे का अंतर नहीं समझ पाते.

पंजाब, जो कि सबसे अधिक शराब का सेवन करने वाला राज्य है, को कुछ समय पहले सर्वोच्च न्यायालय से फटकार पड़ी. फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि पंजाब की हर गली में एक भट्ठी है, गरीब लोग नकली शराब पीकर मर रहे हैं. ऐसा कुछ बिहार, उत्तर प्रदेश का हाल है. जहां नकली शराब से लोगों के मरने की खबरें आती रहती हैं.

पैसों की कमी और आदत से मजबूर गरीब सस्ती शराब पीते हैं.एम्स की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार,भारत में 16 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें शराब की लत है. इन में लत वाले ज्यादातर गरीब व पिछड़ेहैं.

राज्य सरकारें इसके खिलाफ कोई कदम नहींउठातींक्योंकि उन्हें इसके एवज में लाखोंकरोड़ों रुपया शराब कंपनियोंव माफियों से मिलता है.विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार,शराब से हर साल 2.6 लाख भारतीयों की मौत हो जाती है जिन में अधिकतर युवा हैं.

देखा जाए तो सरकारों को क्या फर्क पड़ता है इन गरीबों के मर जाने से जिन्हेंवह कीड़ामकोड़ा समझती है. इस गरीब, पिछड़े वर्ग को खुद ही सोचना चाहिए कि उस की भलाई किसमें है, क्योंकिउन्हें भड़काने वालों की मंडली उनके सामने खड़ी है अलगअलग धर्मजाति नाम के हथियार लिए उनका गला घोटने के इरादे से.

मुझे माफ कर दो सुलेखा : भाग 1

‘‘क्या बात है, आज बड़े खुश लग रहे हो?’’ प्रतीक को इतने अच्छे मूड में देख कर मैं ने पूछा तो उन्होंने मुसकरा कर मेरी तरफ देखा. मु   झे लगा, कहीं इन की सैलरी तो नहीं बढ़ गई या प्रमोशन तो नहीं हुआ?

मेरे चेहरे पर आतेजाते भावों को देख कर प्रतीक ठहाका लगा कर बोल पड़े, ‘‘न तो मेरी सैलरी बढ़ी है और न ही प्रमोशन हुआ है. लेकिन, तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है. इस बार औडिट के लिए मु   झे पटना जाना है तो तुम भी चलने की तैयारी कर लो.’’

पटना का नाम सुनते ही मैं उछल पड़ी क्योंकि पटना में मेरा मायका है और भागलपुर ससुराल. प्रतीक कहने लगे कि काम की व्यस्तता के कारण वे मु   झे कहीं घुमाने ले कर नहीं जा पाते, इसलिए इसी बहाने घूमना भी हो जाएगा और अपनों से मिलना भी.

मम्मीपापा, भैयाभाभी के साथ कुछ दिन रहने की खुशी से ही मेरा रोमरोम खिल उठा. सोच लिया कि इस बार सभी रिश्तेदारों के घर जाऊंगी. हर बार लौटने की इतनी जल्दी होती है कि किसी से मिलना नहीं हो पाता है. माला को भी शिकायत रहती है कि एक रात भी मैं उस के घर पर नहीं रुकती. लेकिन वहां जाने पर मम्मीपापा को छोड़ने का मन ही नहीं होता. उन के साथ समय कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं लगता.

प्रतीक ने कहा कि हमारे 2 दिनों बाद के प्लेन के टिकट हैं, इसलिए जाने की तैयारी कर लूं.

2 दिनों का समय मिला तो मैं पहले अपनी अधूरी रचना को पूरा कर जल्दी से उसे मेल कर शौपिंग पर निकल पड़ी. वैसे, कपड़े तो बहुत हैं मेरे पास, लेकिन लगा कि इतने दिनों बाद मायकेससुराल जाना हो रहा है तो कुछ नए कपड़े खरीद लेती हूं. प्रतीक तो अपने ऊपर जरा भी ध्यान नहीं देते. जो मिलता है, पहन लेते हैं. इसलिए मैं ने उन के लिए भी 2 जींस और 3-4 टीशर्ट खरीद लिए. आतेआते पार्लर से मैं ने आईब्रो, फेशियल, मैनिक्योर, पैडीक्योर और स्टैपकट बाल भी कटवा लिए.

अपने एकलौते बेटे आरव, जोकि बेंगलुरु में इंजीनियरिंग के सैकंड ईयर में पढ़ रहा है, को जब मैं ने बताया कि मैं भी प्रतीक के साथ पटना जा रही हूं तो वह चहक कर बोल पड़ा, ‘‘एंजौय मम्मा. और आप मेरी चिंता मत करना. नानानानी को मेरा प्यार देना,’’ कह कर उस ने दोचार हिदायतों के साथ फोन रख दिया. वह मेरा बेटा कम, बाप ज्यादा है. जब देखो, फोन पर मु   झे सम   झाता रहता है, जैसे मैं कोई छोटी बच्ची हूं.

‘मम्मा, आप अपना ठीक से ध्यान तो रखती हो न? अपना और पापा का बीपी रैगुलर चैक कराती रहा करो. और हां, समय पर खानासोना भी जरूरी है क्योंकि पता है, मु   झे जब आप लिखनेपढ़ने बैठती हो तो आप को कुछ ध्यान ही नहीं रहता,’ उस पर मैं उसे प्यार से  ि  झड़कते हुए कहती हूं, ‘अरे हां मेरे बाप, मैं अपना पूरा ध्यान रखती हूं. पापा भी ठीक हैं. लेकिन तुम अपना ध्यान रखना.’

मेरे बेटे आरव को हमेशा मेरी चिंता लगी रहती है कि मां वहां अकेले कैसे रह रही होंगी. लेकिन, मैं अकेली कहां हूं. मेरे साथ मेरी किताबें जो हैं, जो हरदम मेरे साथ रहती हैं. वे कभी मु   झे अकेले पड़ने ही नहीं देतीं और न ही कभी मु   झे उदास होने देती हैं. रचनाएं लिखते समय मैं अपने पात्रों के बीच ऐसे खो जाती हूं जैसे लगता है कि मैं उन के और वे मेरे इर्दगिर्द घूम रहे हैं. मैं लेखन के लिए हमेशा शांत जगह चुनती हूं, जहां पक्षियों की चहचहाहट हो, हवाओं का मधुर संगीत हो, हरियाली हो ताकि उन के भावों को मैं अपनी रचनाओं में समेट सकूं.

मेरे पति प्रतीक बैंक में हैं. पहले वह ब्रांच मैनेजर थे पर अब औडिट में चले गए, जहां अकसर उन्हें औडिट के लिए दूसरेदूसरे शहर जाना पड़ता है. वे कहते हैं कि अकेले घर में रहने से अच्छा मैं भी उन के साथ चला करूं. लेकिन, सोचती हूं कि वहां जा कर क्या करूंगी मैं? क्योंकि, प्रतीक तो अपने काम में बिजी रहेंगे और मैं होटल के कमरे में बोर होती रहूंगी. इस से अच्छा है कि अपने घर में ही रह कर पढ़ाईलिखाई को समय दूं. लिखतेपढ़ते हुए मेरा समय आसानी से बीत जाता है और मन में कोई नकारात्मक विचार भी नहीं आते. शुरू से ही मु   झे पढ़ने का बहुत शौक है. याद है, बड़ी मामी के बिछावन के नीचे चुपके से मैं सरिता मैगजीन उठा लिया करती थी और पढ़ने के बाद फिर वापस उसी स्थान पर रख आती थी. डर लगता कि कहीं मां ने देख लिया तो मार पड़ेगी, इसलिए मां के सो जाने के बाद ही मैं वह किताब पढ़ती और फिर छिपा कर अपने किसी किताब के बीच रख देती थी. लेकिन मु   झे क्या पता था कि एक दिन मैं खुद लेखिका बन जाऊंगी और मेरी लिखी रचनाएं इसी पत्रिका में छपेंगी.

रचनाओं के साथ पत्रिकाओं में अपना नाम पढ़ कर, मैं बता नहीं सकती कि मु   झे कितनी खुशी होती है और यह सब हुआ प्रतीक की वजह से. जब भी मैं कहती कि लोगों को देख कर, उन्हें ले कर मेरे मन में कहानियां बनने लगती हैं, तो वे कहते, ‘तो उसे कागज पर उतारो.’

शायद, उन की पारखी नजरों ने पहचान लिया था कि मु   झ में लेखिका बनने के गुण हैं. हरदम वे मु   झे लिखने को प्रोत्साहित करते और कहते कि रोजाना लिखतेपढ़ते रहना मेरे दिमाग और विचारों को खोलने में मदद करेंगे. कह सकती हूं कि आज मैं जो कुछ भी हूं, प्रतीक की वजह से हूं. लेकिन वे कहते हैं, इस में उन्होंने कुछ नहीं किया. प्रतिभा तो मेरे अंदर पहले से ही थी. उन्होंने सिर्फ उस से मु   झे रूबरू कराया.

मेरा बदलाबदला रूप देख कर प्रतीक कुछ क्षण मु   झे देखते रह गए, फिर छेड़ते हुए बोले, ‘‘क्या बात है, आज तो गड़बड़ा रही हो. कहीं वहां पटना में तुम्हारा कोई पुराना आशिक तो नहीं है, जिस के लिए तुम इतना बनसंवर रही हो?’’

उन की बात सुन कर पहले तो मेरा लड़ने का मन हुआ कि कुछ भी बोलते हैं. लेकिन, फिर अपने तेवर बदलते हुए बोली, ‘‘हां, है तो… और इसलिए तो मैं ने अपना मेकओवर करवाया है. पूरे 3,000 रुपए लगे हैं यह सब करवाने में.’’

‘‘बच्चों के लिए सैक्स एजुकेशन बहुत जरूरी है’’- पंकज त्रिपाठी

अभिनेता पंकज त्रिपाठी अभिनय जगत का ऐसा नाम है जिस ने फिल्म इंडस्ट्री में आज अपनी खास जगह बना ली है. हालिया रिलीज फिल्म ‘ओह माय गौड 2’ में प्रसिद्ध ऐक्टर अक्षय कुमार के होने के बावजूद पूरी फिल्म पंकज त्रिपाठी पर बेस्ड है.

ओएमजी का विषय बहुत ही ज्यादा नाजुक विषय है जिस के तहत, सैक्स एजुकेशन आज के समाज के लिए बहुत जरूरी है, को एक दिलचस्प तरीके से मनोरंजन के साथ प्रस्तुत किया गया है. फिल्म की कहानी के अनुसार आज के हालात को देखते हुए बच्चों से ले कर अज्ञानी तक को सैक्स एजुकेशन दिया जाना बहुत जरूरी है. ऐसा फिल्म में दर्शाया गया है.

‘गैंग्स औफ वासेपुर’ से ले कर ‘स्त्री’, ‘सिंघम रिटर्न्स’, ‘बच्चन पांडे’, ‘न्यूटन’, ‘बरेली की बर्फी’, ‘फुकरे’, ‘गुंजन सक्सैना’, ‘दबंग 2’, ‘मिमी’, ‘रावण’ आदि फिल्मों में अपने सशक्त अभिनय की छाप छोड़ने वाले पंकज त्रिपाठी से हाल ही में हुई दिलचस्प बातचीत के खास अंश प्रस्तुत हैं.

पंकज त्रिपाठी की हालिया रिलीज फिल्म ‘ओ माय गौड 2’ को दर्शकों  द्वारा सराहा जा रहा है. साथ ही, इस फिल्म में उन के अभिनय की भी बहुत तारीफ हुई है. इस फिल्म का मुख्य आधार सैक्स एजुकेशन है. जब उन से पूछा गया कि उन के हिसाब से आज के समाज में सैक्स एजुकेशन बच्चों से ले कर बड़ों तक क्यों जरूरी है तो वे कहते हैं, ‘‘आज के हालात को देखते हुए बच्चों से ले कर बड़ों तक सभी के लिए सैक्स का सही ज्ञान होना बहुत जरूरी है. जैसे कि, बच्चों को बैड टच और गुड टच पता होना चाहिए ताकि कोई उन के साथ बुरी हरकत न कर सके.

‘‘इसी तरह 10 से 20 साल तक के बच्चे सैक्स संबंधित गलत हरकतों के शिकार हो जाते हैं और वे यह बात किसी से शेयर नहीं करते. इस वजह से वे अंदर ही अंदर टौर्चर होते रहते हैं और कई बार तो डिप्रैशन में आ कर आत्महत्या तक कर लेते हैं. इसीलिए बहुत जरूरी है कि स्कूलों में भी सैक्स एजुकेशन एक विषय के रूप में सिखाई जाए ताकि सैक्स से संबंधित अज्ञानता के चलते नई पीढ़ी अंधकार में न डूबे.’’

‘ओएमजी 2’ की कहानी बच्चों को खासतौर पर सैक्स एजुकेशन के महत्त्व को समझाने के लिए फिल्माई गई है परंतु इस फिल्म को ए सर्टिफिकेट दिया गया है. इस पर पंकज कहते हैं, ‘‘ऐसा नहीं है कि पूरी फिल्म सैक्स एजुकेशन पर ही है. फिल्म में और भी बहुत सारी शिक्षाप्रद व मनोरंजन से भरपूर सामग्रियां हैं. फिल्म को ए सर्टिफिकेट मिला, इस का मु?ो भी दुख है, क्योंकि यह फिल्म बच्चों को सतर्क और जागरूक करने के हिसाब से बनाई गई थी ताकि किसी बच्चे के साथ गलत हो तो इस की उस को सम?ा हो और वह गलत रास्ते पर न जाए.

‘‘जहां तक सैंसर की बात है तो सैंसर बोर्ड अपने नियमों में बंधा हुआ है जिस का उसे पालन करना ही पड़ता है. पिछले दिनों कुछ फिल्मों को ले कर सैंसर को परेशानी का सामना करना पड़ा था. लिहाजा, वह अब पहले से और सतर्क हो गया है.’’

पंकज त्रिपाठी की भी बेटी है जो कि छोटी उम्र की है. बेटी के साथ अपने रिश्ते के बारे में वे बताते हैं, ‘‘मेरी बेटी मेरी दोस्त जैसी है. वह मुझ से कुछ भी शेयर करने में कतराती नहीं है. वह किसी भी विषय पर मु?ा से खुल कर बात कर लेती है और मैं भी उस के साथ दोस्ताना व्यवहार रखता हूं. यह बात मैं ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर आधारित फिल्म करते समय सीखी. मेरा और मेरी बेटी का जैसा व्यवहार है वैसा मेरी बहन के साथ पिताजी का नहीं था और मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी और मेरे बीच दूरियां बनें. मेरी इच्छा है कि मेरी बेटी पूरी तरह से सम?ादार हो और अपना जीवन सही ढंग से जिए.’’

पंकज के जीवन में मां, बेटी, बहन, बीवी सभी का बहुत ज्यादा हस्तक्षेप रहा है. इसे ले कर वे कहते हैं, ‘‘मैं समस्त नारी जाति पर नतमस्तक हूं चाहे वह बेटी हो, बीवी हो, मां हो या बहन. मेरे मन  में सभी के लिए सम्मान और प्यार है क्योंकि मां जननी है, उस ने मु?ो जनम दिया है तो मेरी पत्नी ने मेरी बेटी को जन्म दिया है. ऐसे में दोनों ही मेरे लिए सम्मान की हकदार हैं.’’

कहा जाता है कि फिल्में समाज को शिक्षा देती हैं और फिल्मों की बदौलत दर्शकों में भी बदलाव देखने को मिलते हैं. जब उन से पूछा गया कि बतौर ऐक्टर उन्हें फिल्मों से कितना सीखने को मिला तो वे कहते हैं, ‘‘हां, यह सच है कई फिल्में ऐसी होती हैं जो आप को शिक्षित कर जाती हैं. जैसे ‘ओएमजी 2’ से और मेरी आने वाली फिल्म ‘मैं अटल हूं’ जिस में मैं अटल बिहारी वाजपेयी का किरदार निभा रहा हूं, इन दोनों फिल्मों में काम कर के मुझे बहुतकुछ सीखने को मिला. बतौर ऐक्टर ही नहीं, बतौर इंसान भी मैं ने बहुतकुछ सीखा.’’

फिल्म को साइन करने से पहले वे क्या करते हैं, इस बारे में वे बताते हैं, ‘‘मैं खुद ही कहानी पढ़ता हूं. पूरी कहानी तो नहीं, संक्षिप्त में सिनौप्सिस जरूर पढ़ता हूं. उस से पता चल जाता है कि पूरी कहानी का आधार क्या है. जैसे कि एक बूंद पानी पीने के बाद भी पता चल जाता है कि पानी मीठा है कि खारा, वैसे ही

4 पन्ने की स्क्रिप्ट में पूरी कहानी का अंदाजा हो जाता है.’’

ओएमजी 2 में प्रसिद्ध ऐक्टर अक्षय कुमार के होने के बावजूद पूरी फिल्म पंकज के कंधों पर है. इस बारे में उन का कहना है, ‘‘फिल्म के असली हीरो अक्षय कुमार ही हैं. कोविड-19 में जब वे

14 दिनों के लिए क्वारेंटाइन हुए थे, उस दौरान उन्होंने यह कहानी पढ़ी थी. उस वक्त उन को लगा कि मैं इस फिल्म का अहम किरदार निभाने के लिए सब से ज्यादा उपयुक्त हूं. लिहाजा, अक्षय ने मु?ा को जूम कौल पर कहानी सुनाई. जो मु?ो अच्छी लगी. हमेशा से अक्षय सामाजिक मुद्दों पर कहानी कहते आए हैं. फिर चाहे वह ‘पैडमैन’ हो या ‘टौयलेट एक प्रेमकथा’ हो. ऐसे में इस किरदार के लिए उन्होंने मु?ो चुना. मैं अक्षय का आभारी हूं, शुक्रगुजार हूं.’’

उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव से आ कर मुंबई में कड़ा संघर्ष कर के आप ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग जगह बनाई. अपने इस संघर्ष को आप कैसे देखते हैं, इस पर अक्षय कहते हैं, ‘‘जब मैं मुंबई आया था और अभिनय क्षेत्र में काम पाने के लिए संघर्ष कर रहा था उस वक्त मेरे पास पैसों की कमी थी. लेकिन उस दौरान मेरी पत्नी, जो शिक्षिका है, ने मेरा साथ दिया और घर का खर्च सबकुछ मैनेज किया.

‘‘इसी वजह से मैं अपने काम पर पूरा ध्यान दे पाया और आज एक ऐक्टर के रूप में आप को इंटरव्यू दे रहा हूं. मेरे पिता 99 वर्ष के हैं और माता 89 वर्ष की हैं. उन को यह भी नहीं पता कि मैं एक ऐक्टर हूं. गांव में आज भी मैं एक सीधासादा इंसान ही हूं. ऐक्टर से भी ज्यादा एक अच्छा इंसान बनने की मेरी कोशिश है. धर्म को आचरण में लाना चाहता हूं, मैं चाहता हूं कि मैं एक अच्छा इंसान बनूं जो किसी को पीड़ा न दे, जिस का आचरण अच्छा हो, सद्भावनासंचार बना रहे, यही कोशिश है.

काफी सालों पहले एक ऐक्टर हुआ करते थे जिन का नाम था केस्टो मुखर्जी. उस ऐक्टर ने सभी फिल्मों में बिना शराब पिए शराबी की ऐक्ंिटग की थी. क्या किसी अभिनय को निभाने के लिए क्या पदार्थ की अनिवार्यता जरूरी होती है, यह पूछने पर पंकज कहते हैं, ‘‘सच कहूं तो मैं पान खाता रहा हूं. मैं उस शहर बनारस से ताल्लुक रखता हूं जहां का पान प्रसिद्ध है. फिलहाल मैं ने जरूर पान खाना छोड़ दिया है लेकिन पहले मैं, खासतौर पर, बनारस से कत्था, सुपारी, सामग्री मंगाया करता था. वैसे भी, पान दातों के लिए और खाना हजम करने के लिए फायदेमंद होता है बशर्ते उस में तंबाकू न मिलाई गई हो.

‘‘जहां तक मेरी मिमिक्री करने की बात है तो इस बात की मुझे खुशी है कि मेरी वजह से किसी की रोजीरोटी चल रही है. मैं मुंबई रोजीरोटी कमाने आया था और अगर अब मेरी वजह से किसी की रोजीरोटी चल रही है तो इस से ज्यादा खुशी की बात मेरे लिए और क्या हो सकती है.’’

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ले कर आजकल काफी सारे सवाल उठ रहे हैं. आज स्वतंत्र विचार व्यक्त करने के लिए  बहुत सारी बंदिशें हैं. इस बारे में पंकज कहते हैं, ‘‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है. लेकिन हमें कितना स्वतंत्र होना है, यह देखना भी जरूरी है जैसे कि हैलमेट लगाना कानूनी तौर पर अनिवार्य है लेकिन आप कहें कि हम 1947 में आजाद हो गए तो अब हम हैलमेट नहीं लगाएंगे तो यह गलत होगा.

‘‘कहने का मतलब यह है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी के लिए है लेकिन उस में भी कुछ बंदिशे हैं जो हमें मानना जरूरी हैं. जिम्मेदार होना जरूरी है. आज सोशल मीडिया के दौर में हर कोई प्रतिक्रिया दे रहा है. हर कोई अभिव्यक्ति कर रहा है. उन को यह भी नहीं पता कि वे प्रतिक्रिया क्यों दे रहे हैं. अगर प्रतिक्रिया देनी भी है तो सोचसमझकर और पूरी जानकारी हासिल कर प्रतिक्रिया देनी चाहिए.’’

आप के बारे में कहा जाता है कि आप ने एक विद्यालय गोद लिया है और उस विद्यालय का पूरा खर्चा आप ही उठाते हैं. इस पर पंकज कहते हैं, ‘‘हां, मैं जिस विद्यालय में पढ़ाई करता था उसी विद्यालय को मैं ने गोद लिया है और वहां पर मैं ने आज की तकनीकी  के मुताबिक कई नई सुविधाएं करवाई हैं. आज के  समय के अनुसार वहां के टीचर भी ज्यादा से ज्यादा जागरूक हैं क्योंकि मैं वहां पढ़ा हूं, इसलिए मैं अपने स्कूल को और अच्छा बना रहा हूं.’’

वे अपनी आगे आने वाली फिल्मों के बारे में कहते हैं, ‘‘‘फुकरे 3’, ‘खड़क सिंह’, ‘मिर्जापुर 3’, ‘मैं अटल हूं’, अनुराग बसु की ‘मेट्रो इन दिनों’, ‘मर्डर मुबारक हो’, ‘अभी तो पार्टी शुरू हुई है’ आदि कई फिल्मों में आप मुझे देखेंगे.’’

जबान : मां लक्ष्मी पर ही क्यों बिफर पड़ी ?

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