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कैनेडियन नहीं हिन्दुस्तानी हैं Akshay Kumar, मिली भारतीय नागरिकता

Akshay Kumar gets Indian citizenship : बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार आए दिन अपनी कनाडा की नागरिकता को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों के निशाने पर आते ही रहते थे. कई बार तो उन्हें ट्रोलर्स के कड़वे सवालों का जवाब भी देना पड़ा है. इसके अलावा कई लोग उन्हें ‘खिलाड़ी कुमार’ की जगह ‘कनाडा कुमार’ कहकर भी ट्रोल करते थे. हालांकि अब उन्हें भारत की नागरिकता मिल गई है.

दरअसल, बीते दिन स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्होंने अपने फैंस को 15 अगस्त की बधाई दी और बताया कि उन्हें भारतीय नागरिकता मिल गई है.

फोटो पोस्ट कर दी जानकारी

अभिनेता अक्षय कुमार (Akshay Kumar gets Indian citizenship) ने मंगलवार को अपने इंस्टग्राम और ट्विटर अकाउंट पर अपने फैंस को भारतीय नागरिकता मिलने का सबूत दिखाया है. उन्होंने भारत सरकार के अधीन गृह मंत्रालय द्वारा पंजीकरण प्रमाण पत्र की फोटो शेयर की है. इस दस्तावेज के मुताबिक, एक्टर को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5(1)(जी) के तहत भारत की नागरिकता दी गई है. डॉक्यूमेंट्स की फोटो के साथ अक्षय कुमार ने कैप्शन में लिखा, ‘दिल और नागरिकता दोनों हिन्दुस्तानी. जय हिंद’.

आपको बता दें कि जैसे ही अक्षय ने इन डॉक्यूमेंट्स की तस्वीर शेयर की. वैसे ही उन्हें बधाई मिलने का सिलसिला शुरू हो गया.

अक्षय ने क्यों ली थी कनाडा की नागरिकता?

एक इंटरव्यू में अक्षय कुमार (Akshay Kumar gets Indian citizenship) ने अपनी ‘कनाडा नागरिकता’ को लेकर खुलकर बात की थी. तब उन्होंने कहा था, ‘मेरे लिए भारत ही सब कुछ है. मैंने अपनी जिंदगी में जो कुछ भी हासिल किया है वह यही से किया है. मैं बहुत ज्यादा भाग्यशाली हूं कि मुझे अपने देश के लिए कुछ करने का मौका मिला.’

इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया था कि उन्होंने आखिर क्यों ली थी कनाडा की नागरिकता? इस सवाल का जवाब देते हुए अक्षय ने कहा था “उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब उनकी 15 से ज्यादा फिल्में लगातार फ्लॉप हो गई थी, जिस कारण उन्हें कनाडा की नागरिकता लेने के लिए प्रेरित किया गया था.” उन्होंने बताया, “मेरे दोस्त कनाडा में रहते थे. जब मैंने उन्हें बताया कि मेरी फिल्में नहीं चल रही है तो उन्होंने मुझसे कहा यहां आ जाओ. यहां कुछ न कुछ काम मिल ही जाएगा.”

कब पलटी अक्षय की किस्मत

आगे उन्होंने (Akshay Kumar) बताया, “इसके बाद मैंने कनाडा की नागरिकता लेने के लिए आवेदन कर दिया और मुझे नागरिकता मिल भी गई. उस समय मेरी बस दो फिल्में रिलीज होनी बाकी थी. लेकिन किस्मत से वो दोनों ही फिल्में सुपरहिट रही. फिर मेरे दोस्त ने मुझसे कहा कि वापस भारत जाओ और फिर से काम करना शुरू करो. इसके बाद मुझे काम मिलता गया और मैं तो भूल भी गया था कि मेरे पास कनाडा का पासपोर्ट भी है. कभी मेरे दिमाग में भी विचार नहीं आया कि मुझे अपना पासपोर्ट बदलवाना है. लेकिन अब मैंने पासपोर्ट बदलवाने के लिए आवेदन कर दिया है.’

KBC 15: रात को दो बजे पोस्ट करने पर अमिताभ बच्चन होते हैं ट्रोल!

Kaun Banega Crorepati 15 : टीवी के सबसे पसंदीदा क्विज शो कौन बनेगा करोड़पति 15 (KBC15) की शुरुआत हो गई है. शो को एक बार फिर बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) होस्ट कर रहे हैं. जहां एक तरफ महानायक कंटेस्टेंट्स से सवाल पूछते है. साथ ही उनसे बातचीत और मजाक-मस्ती भी करते दिखाई देते हैं.

अब सोशल मीडिया पर शो का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें देखा जा सकता है कि गुजरात की धीमहि राजेन्द्रकुमार त्रिवेदी बिग बी को सलाह दे रही हैं.

कंटेस्टेंट ने बिग बी को दी ये सलाह

शो (Kaun Banega Crorepati 15) के दौरान धीमहि, अमिताभ बच्चन से सवाल करती है कि वो फिल्म भी करते हैं और अब केबीसी भी शुरू हो गया है तो ऐसे में आप सोशल मीडिया को कैसे मैनेज करते हैं? इस पर बिग बी ने कहा, ‘आप सोशल मीडिया पर हैं?’ फिर धीमहि त्रिवेदी ने कहा, ‘वो अमिताभ बच्चन को इंस्टाग्राम पर फॉलो करती हैं.’ इसी के साथ उन्होंने कहा, ‘मैंने यह भी देखा है कि आप रात को दो बजे भी पोस्ट करते हैं.’

इस पर अमिताभ (Amitabh Bachchan) ने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘कुछ गलत काम कर रहे हैं हम?’ फिर धीमहि कहती हैं, ‘हमारे यहां कहा जाता हैं कि अगर रात को फोन चलाओ तो आंख के नीचे डार्क सर्कल आ जाते हैं. लेकिन आपको तो हैंडसम दिखना है. इसलिए आराम से सो जाया करिए 8 घंटे.’ इस पर अमिताभ बच्चन ने कहा, ‘वो क्या है कि हम समय निकाल लेते हैं, क्या है कि हमको बहुत बुरा लगता है. एक तो हम ब्लॉग लिखते हैं और वो अगर न लिखें तो जितने हमारे फॉलोअर्स हैं, वो डांटना शुरू कर देते हैं. आपने बटन नहीं दबाया ठीक है.’

अमिताभ- जीवन में अच्छी और बुरी दोनों बातें होंगी

इसके आगे बीग बी (Kaun Banega Crorepati 15) ने कहा, ‘कई बार होता है कि हम भूल जाते हैं वो पोस्ट का बटन. सोशल मीडिया एक ऐसी जगह है जहां आसानी से लोगों से संपर्क हो जाता हैं, दो अच्छी बात होती है, 10 गालियां भी पड़ती हैं.’

इसी के साथ उन्होंने (Amitabh Bachchan) आगे कहा, ‘जीवन में अच्छी बातें भी होंगी और बुरी बातें भी होगी. अगर कोई आपको बुरा कहता है तो चैलेज करके उसके विपरीत काम करना चाहिए. आपसे कोई कहे कि आप ये काम नहीं कर सकतीं, तो आप उसे चैलेंज की तरह ले लीजिए कि आप वो कर सकती हैं.’

लालकिले का भाषण : लड़खड़ाने लगा है नरेन्द्र मोदी का आत्मविश्वास

जिसे समूचा विपक्ष अहंकार कहता नजर आया असल में वह प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का लडखडाता आत्मविश्वास है जो देश के लिए चिंता की बात होनी चाहिए कि हमारे प्रधानमन्त्री सब्र और समझ खोने लगे हैं. वे किसी भी कीमत पर कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं और अपनी यह ख्वाहिश जो कुंठा की शक्ल लेती जा रही है उसे लालकिले के भाषण में भी जताने से भी नही चूक रहे.

मैं अगले साल झंडा फहराने और उपलब्धियां गिनाने फिर आऊंगा यह वाक्य नरेन्द्र मोदी के अन्दर गहराते डर को बयां करता है. यह डर बीती 12 अगस्त को मध्यप्रदेश के सागर से भी व्यक्त हुआ था जब उन्होंने दलित समाज सुधारक रविदास के स्मारक स्थल यानी मंदिर का भूमि पूजन किया था. तब भी उन्होंने कहा था कि जिस स्मारक की आज आधार शिला रखकर जा रहा हूँ उसका लोकार्पण करने भी मैं ही साल डेढ़ साल बाद आऊंगा.

अब जबकि लोकसभा चुनाव में 9 महीने ही बचे हैं तब यह बेहद जरुरी हो जाता है कि नरेन्द्र मोदी के भाषणों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए राजनैतिक विश्लेषण करने की जिम्मेदारी तो विपक्ष और मीडिया का एक छोटा सा ही सही हिस्सा निभा ही रहा है. लालकिले से प्रधानमन्त्री 15 अगस्त का भाषण महज भाषण नहीं होता बल्कि वह एक एतिहासिक दस्तावेज भी होता है. इस बार नरेन्द्र मोदी ने इस दस्तावेज पर प्रमुख रूप से जो लिखा उस पर एक नजर डालें तो उसमें उनका कुर्सी प्रेम और सत्ता खो देने का भय ही नजर आता है.

सागर में उन्होंने यह नहीं कहा था कि डेढ़ साल बाद जब मैं आऊंगा तो आप लोगों यानी जनता के आशीर्वाद से राज्य में भाजपा की ही सरकार होगी और भाई शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री होंगे. इसी तरह 15 अगस्त के उनके भाषण में वे ही वे यानी मोदी ही मोदी या मैं ही मैं शामिल था उन्होंने यह भी नही कहा कि अगर नसीब रहा तो यही राजनाथ सिंह ही रक्षामंत्री होंगे, अमित शाह विदेश मंत्री रहेंगे और वित्त मंत्री बहिन निर्मला सीतारामण ही होंगी. यानी मोदी इन दिनों सिर्फ और सिर्फ अपने प्रधानमन्त्री बने रहने की बात सोच और कर रहे हैं. इतना आत्मकेंद्रित और आत्ममुग्ध हो जाना 140 करोड़ परिवारजनों के लिए किसी भी लिहाज से शुभ नही कहा जा सकता.

90 मिनिट का यह भाषण पारसी थियेटर शैली का था जिसमें स्टेज के सामने बैठे दर्शकों को मालूम रहता है कि अब क्या होने वाला है और नाटक के किरदार जो फुसफुसा रहे हैं वे शब्द और भाव अर्थ में कैसे होंगे. एक हद तक यह मसाला हिंदी फिल्मों सरीखा भी था उसमें भी दर्शकों को अंदाजा रहता है कि अब क्या होगा.

यह कहा नरेन्द्र मोदी ने

लालकिले के प्रांगण में बैठे तमाम आम और खास लोगों के चेहरे पर भी बेफिक्री के भाव प्रधानमन्त्री के भाषण को लेकर थे मसलन-

1947 में हजार साल की गुलामी में संजोये हुए हमारे सपने पूरे हुए. मैं पिछले एक हजार वर्षों की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मैं देख रहा हूँ कि देश के पास एक बार फिर अवसर है. मरे शब्द लिखकर रख लीजिये. अभी हम जिस युग में जी रहे हैं इस युग में हम जो करेंगे, जो कदम उठाएंगे और एक के बाद जो निर्णय लेंगे वह स्वर्णिम इतिहास को जन्म देगा.

आज भारत पुरानी सोच पुराने ढर्रे को छोड़ करके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए चल रहा है जिसका शिलान्यास हमारी सरकार करती है उसका उद्घाटन हम अपने कालखंड में ही करते हैं इन दिनों जो शिलान्यास मेरे द्वारा किया जा रहा है आप लिख कर रख लीजिये उनका उदघाटन भी आप लोगों ने मेरे नसीब में छोड़ा हुआ है.

भाग्यवाद की हद ही इसे कहा जायेगा कि अगली बार भी बकौल नरेन्द्र मोदी, नरेन्द्र मोदी ही प्रधानमन्त्री होंगे हालाँकि इस बात को मौजूद लोगों ने लिखा नही क्योंकि किसी के पास पेन कापी या डायरी नही थे. उपर आसमान तरफ से इस आशय की कोई भविष्यवाणी नही हुई है लेकिन लगता है ब्रह्मा जी का लेख मोदी जो को मालूम है तो वेबजाह 2024 के लोकसभा चुनाव पर कवायदें और बहसें हो रही हैं.

सभी को मान लेना चाहिए कि विधि ने उनके नसीब में अभी और हजारों शिलान्यास उद्घाटन भूमि पूजन बगैरह लिख छोड़े हैं जिसको सच साबित करना अब उनके 140 करोड़ परिवारजनों की जिम्मेदारी है जिनकें से 5 – 6 करोड़ सवर्ण तो इसे उठाएंगे ही बाकि दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों और आदिवासियों का ठिकाना नही. 60 -70 के दशक में सरपंचों के चुनाव इसी तर्ज और शली में होते थे. पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे बैठे गाँव वाले दबंग सवर्ण या ठाकुर के नाम का प्रस्ताव आते ही अपने हाथ उपर उठाकर मार कुटाई से खुद को बचा ले जाते थे.

मोदी जी की भविष्यवाणी से देश एक भारीभरकम चुनावी खर्चे से भी बच जायेगाफिर भले ही वे और 5 साल वन्दे भारत टाइप महंगी और रईसों की लाग्झ्री ट्रेनों को रेलवे गार्ड जैसे हरि झंडी दिखाते गुजार दें . गौरतलब है कि इन ट्रेनों के बारे में भी उन्होंने बड़े फख्र से कहा कि रेल आधुनिक हो रही है तो वन्दे भारत ट्रेन भी आज देश में चल रही है गाँव गाँव पक्की सड़कें बन रही हैं तो इलेक्ट्रिक बसें मेट्रो की रचना भी आज देश में हो रही है . आज गाँव गाँव तक इंटरनेट पहुँच रहा है.

हकीकत यह रही

वन्दे भारत ट्रेनों की हालत यह है कि वे खाली चल रही हैं  प्रधानमन्त्री की ही दिखाई हरी झंडी से.7 जुलाई से शुरू हुई लखनऊ गोरखपुर रूट की वन्दे मातरम ट्रेन को शुरू के 4 – 5 दिन तो ठीक ठाक मुसाफिर मिले लेकिन जुलाई के तीसरे सप्ताह में ही यह ट्रेन 80 फीसदी खाली चलने लगी. यानी शुरू में लोग शौकिया तौर पर सवार हुए थे और अब मज़बूरी में इस महंगी ट्रेन में यात्रा कर रहे हैं और जो मज़बूरी में भी नही कर रहे वे वाकई रईस हैं जो इतना महंगा किराया अफोर्ड कर पा रहे हैं .इस ट्रेन की चेयर कार का किराया 890 और एग्जिक्यूटिव क्लास का किराया 1700 रु है . जबकि इंटरसिटी में यही किराया 475 रु है.

भोपाल इन्दोर वन्दे भारत ट्रेन तो तीसरे ही दिन 29 जून को टे बोल गई थी जब 15 फीसदी ही यात्री इसे मिले थे . भोपाल से इन्दोर का किराया 810 और 1500 रु अफोर्ड करने में तो रईसों को भी पसीने आ रहे हैं क्योंकि इस रूट पर लग्झारी बस का किराया 400 रु है और एक्सप्रेस ट्रेन का 200 रु है. एक आधा घंटा की बचत के लिए कोई समझदार आदमी ज्यादा पैसे खर्च नहीं कर रहा जिससे रेलवे लगातार घाटे में जा रहा है और इस घाटे की भरपाई गरीबों से ही की जाना तय है.

ये वे गरीब हैं जो भव्य रेलवे स्टेशनों में दाखिल होने से भी डरने लगे हैं क्योंकि वहां हर चीज या सुविधा का जरूरत से ज्यादा पैसा देना पड़ता है. 2014 तक स्टेशनों पर शौच जाने के 50 पैसे लगते थे अब 10 रु देना पड़ते हैं . प्लेटफार्म टिकिट भी एक रु से बढ़कर 10 रु का हो गया है. पार्किंग प्राइवेट हाथों में है जिसका न्यूनतम शुल्क ही 20 रु 2 घंटे का है. इसके बाद यह प्रति घंटे के हिसाब से बढ़ता जाता है . जिन गरीबों को मोदी जी झुनझुना दिखाते रहते हैं उन्हें तो 10 रु से कम में 30 मिलीग्राम की पतली चाय पीने के पहले भी हजार बार सोचना पड़ता है.

सड़कों के भी यही हाल हैं. वे भी अमीरों के लिए हैं जिनकी चमचमाती बड़ी बड़ी कारों के लिए अरबों रु खर्च कर एहसान गरीबों पर थोपा जाता है कि देखों हमने इतने किलोमीटर सडक बना दी अब हमे वोट दो जिससे मोदी जी फिर से प्रधानमन्त्री बनें और तुम्हारी बची खुची दरिद्रता दूर कर सकें . क्योंकि उनका तो ब्रह्मा विष्णु और महेश से सीधा कनेक्शन है. बेचारे गरीब यह भी नहीं पूछ पाते कि हुजुर माई बाप इन सड़कों पर हमारी बची खुची बैलगाड़ियाँ, ट्रेक्टर और बाइकें तो न के बराबर चलती हैं इसलिए हमारे सर मढ़ा जा रहा एहसान इल्जाम ज्यादा लगता है. आपको रईसों को जो सहूलियतें देना हो दो लेकिन उसकी वसूली हम से तो मत करो.

यही हाल गाँव गाँव की इंटरनेट सेवा का है . इसमें कोई शक नही कि गांवों में इंटरनेट का चलन बढ़ा है लेकिन उतना नही जितना कि 15 अगस्त के भाषण में प्रधानमन्त्री ने बताया . इंटरनेट इन इंडिया रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत में कोई 75 करोड़ 90 लाख इंटरनेट यूजर्स हैं जिनमें से 39 करोड़ 99 लाख ग्रामीण हैं. एक अनुमान के मुताबिक कोई 85 करोड़ लोग गांवों में रहते हैं अब उनमें से आधे से भी कम इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं तो यह कोई गिनाने लायक उपलब्धि तो नही.

इन 75 करोड़ 90 लाख में से सेमप्ल सर्वे रिपोर्ट की मानें तो 76.7 फीसदी को डाक्यूमेंट को कापी पेस्ट करना नही आता, 87.5 फीसदी को कम्प्यूटर में नया साफ्टवेयर इंस्टाल करना नही आता, 92 .5 फीसदी को एक डिवाइस से दूसरी डिवाइस कनेक्ट करना नही आता , इससे 2 और फीसदी ज्यादा को प्रेजेंटेशन बनाना नही आता और इससे भी 2 फीसदी ज्यादा कम्प्यूटर प्रोग्राम बनाना नही जानते ..जाहिर है इनमे 96 फीसदी लोग ग्रामीण हैं जिनके लिए इंटरनेट का मतलब भजन और गाने सुनना सहित पोर्न फ़िल्में देखना है.

अब भला ऐसी डिजिटल क्रांति का राग अलापने का फायदा क्या जिसमें अब एक ताजे आंकड़े के मुताबिक 51 करोड़ यूजर्स शहरों के और 34 करोड़ गाँवों के बचे हैं. डिजिटल लिटरेसी के अभाव में हालत घर के कोने में पड़े उज्ज्वला योजना के मुंह चिढ़ाते गेस सिलेंडरो जैसी हो गई है कि पैसा हो तो डाटा की सहूलियत है नही तो एक बार इंटरनेट इस्तेमाल कर आंकड़ा बढ़ाते चलते बनो और जब कोई काम पड़े तोकियोस्क सेंटर बालों की जेब भरते रहो.

सामर्थ्य अर्थव्यस्था और परिवारवाद 

नरेन्द्र मोदी के पूरे भाषण में सामर्थ्य और तीसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था की चाशनी भी खुली रही जिसकी बखिया विपक्षियों ने तुरंत भी उधेड़ कर रख दी कि 2014 में देश पर कुल इतना कर्ज था और दस साल में बढ़कर इतना हो गया. सामर्थ्य से नरेब्द्र मोदी का अभिप्राय तो विपक्षियों को भी नहीं समझ आया कि आखिर संस्कृतनुमा इस शब्द को 45 बार ढाल बनाकर वे कहना क्या चाह रहे हैं क्या यह ताकत की किसी नई दवाई का नाम है. अगर देश सामर्थ्यवान हो ही गया है तो फिर लोंचा क्या है और तीसरी बार प्रधानमन्त्री बनकर वे कितनी सामर्थ्य और देना चाहते हैं . यानी देश में अभी भी असमर्थता है जिसे जड से मिटाने भाजपा को चुनते रहने और मोदी को स्थायी प्रधानमन्त्री बनाने की सख्त जरूरत है नही तो हम फिर से गुलाम हो जायेंगे.

और इस गुलामी की वजह हर कोई जानता है कि कांग्रेस नेहरु गाँधी परिवार है जिसने 65 साल में देश को पौराणिक और वैदिक काल में ले जाकर खड़ा कर दिया. देश में जो दुर्दशा और बदहाली दिखती है (बशर्ते देखने की इजाजत हो तो) उसके जिम्मेदार पहले प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु हैं जिन्होंने करपात्री महाराज जैसों सहित सवर्ण और सनातनियों के दबाब के बाद भी देश को हिन्दू राष्ट्र नही बनने दिया .इस बार बार बार तुष्टिकरण की बात कहकर नरेन्द्र मोदी  4 – 5 फीसदी सवर्णों को खुस करने की कोशिश की है जिनका तुष्टिकरण करने आरएसएस ने उन्हें नियुक्त किया है.

नेहरु ने कारखानों, फेक्टरियों, रेलों, बांधों और टेक्नोलाजी को प्राथमिकता देकर देश की संस्कृति और गौरव नष्ट कर दिया. उन्होंने दलितों, आदिवासियों और औरतों के हक में कानून बनाये. 50 और 60 के दशक में भी आधुनिक विचारधारा अपनाई जिससे हिन्दू पिछड़ गया.

अब यही सिलसिला और विरासत सोनिया और राहुल गाँधी आगे बढ़ाने की साजिश रच रहे हैं जिससे देश को और खुद को बचाए रखने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री बनाना जरुरी है. नही तो देश सदियों पीछे चला जायेगा और मुस्लिम राष्ट्र भी बन सकता है. किसी को यकीन न हो तो उसे सोशल मीडिया पर हिंदुत्व वाले ग्रुपों से जुडकर इस भयावह और रूह कंपा देने वाले परम सत्यों की दैनिक खुराक बीकाम्लेक्स के केप्सुलों की तरह जरूरत हो न हो लेनी चाहिए इससे मन मस्तिष्क सक्रिय और उत्तेजक रह्ते हैं और इसी से मणिपुर और हरियाणा जैसी हिंसा और औरतों की बेइज्जती परवान चढ़ती है जिसकी चर्चा उन्होंने न जाने किस धुन में कर दी नही तो ऐसे क्षुद्र विषयों पर बोलना उनकी शान के खिलाफ है.

कर्नाटक और अमेरिका की खीझ

इधर मोदी जी ने परिवारवाद और भ्रष्टाचार को कोसा और उधर विपक्ष ने देर न लगाते भाजपा के परिवारवाद और भ्रष्टाचार के सौ से भी ज्यादा उदाहरण उँगलियों पर गिना दिए. उनकी जितनी खिल्ली 15 अगस्त को उडी उतनी शायद दस साल में भी कभी नही उडी होगी और इसके जिम्मेदार खुद नरेन्द्र मोदी हैं जो विपक्ष की एकता और कांग्रेस सहित राहुल गाँधी की बढ़ती स्वीकार्यता और लोकप्रियता से हद से ज्यादा डरे और सहमे हुए हैं. जिसके चलते वे लालकिले के भाषण और चुनावी सभा में फर्क नही कर पाए.

इतनी बेचारगी और अपरिपक्वता भी राजनैतिक इतिहास में कभी देखने में नही आई कि किसी प्रधानमन्त्री को पद की मर्यादा ताक में रखने मजबूर होना पड़ा हो खासतौर से उन्हें जो बचपन से रामायण, भागवद और सुन्दरकाण्ड में मर्यादा की महत्ता सुनते और उस पर जितना हो सके अमल भी करते आए हैं.

नरेंद्र मोदी की बैचेनी की असल और मूल वजह राहुल गाँधी हैं जिन्हें वे 2014 के चुनाव प्रचार में युवराज कहकर तंज कसते रहते थे. तब वे सोनिया गाँधी को राजमाता और राबर्ट बाड्रा को दामाद एक खास व्यंगात्मक लहजे में कहते थे. ठीक वैसे ही जैसे पश्चिम बंगाल में उन्होंने ममता बनर्जी को दीदी ओ दीदी. कहते मजाक बनाया था जिसे वहां की जनता ने पंचायत चुनाव तक में नकारा ही नही बल्कि एक तरह से दुत्कार दिया.

कर्नाटक चुनाव में खासतौर से आखिरी के पांच दिन की रैलियों में भी वे गाँधी परिवार को कोसते रहे और सहारा राम की जगह बजरंगबली का लिया था . लेकिन जब नतीजे आए तो भाजपा औंधे मुंह गिरी पड़ी थी. इससे उन्हें ज्यादा झटका लगा था क्योंकि चेहरों की सीधी  लड़ाई में  उनके बजाय वोटर ने राहुल गाँधी को तरजीह दी थी. यह नरेन्द्र मोदी के लिए किसी सदमे से कम नही था जो अपनी लोकप्रियता को लेकर विकट की खुशफहमी में थे. इसके पहले राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा को मिले रेस्पांस से भी उनका टेंशन और बढ़ा था.

फिर बीती जून के पहले हफ्ते में अमेरिका में राहुल गाँधी ने जो किया और कहा उससे वे और परेशान हो गये क्योंकि अब सारे तीर उलटे पड़ने लगे थे. राहुल ने अमेरिका में भारत का जमीनी चिंत्रण बेहद सावधानी से किया कि वहां मुसलमान, दलित, आदिवासी और औरतें सब परेशांन हैं और मोदी राज से मुक्ति चाहते हैं . मीडिया की आजादी या गुलामी या बंदिश कुछ भी कह लें पर भी राहुल ने भगवा गेंग का लिहाज नही किया सरकारी एजेंसियों के दुरूपयोग पर भी राहुल ने बेहिचक आरोप लगाये थे.  इस पर भगवा गेंग को लगा कि ऐसा जरुरी नहीं कि महाभारत वाली चक्रव्यूह की कहानी का दौहराब हर बार हो . सरकारी एजेंसियों के दुरूपयोग पर भी राहुल ने सरकार को घेरा था.

लेकिन राहुल गाँधी की अमेरिका के सेनफ्रांसिस्को में कही गई एक बात 15 अगस्त को खुद को प्रधानमन्त्री घोषित कर देने वाली नरेंद्र मोदी पर एकदम सटीक बैठी,  मुझे लगता है कि पीएम मोदी से कहा जाये कि वे भगवान के सामने बैठ जाएँ तो वे भगवान को समझाने लगेंगे कि ब्रह्माण्ड में क्या चल रहा है. भगवान भी भ्रमित हो जायेंगे कि उन्होंने क्या बनाया है भारत में भी यही चल रहा है.

भारत में कुछ लोग ऐसे हैं जो सब कुछ जानते हैं. जब वे वैज्ञानिक के पास जाते हैं तो उन्हें विज्ञानं के बारे में बताते हैं. जब वे इतिहासकार के पास जाते हैं तो उन्हें इतिहास के बारे में  बताते हैं आर्मी को युद्ध के बारे में बताते हैं, एयरफ़ोर्स को उड़ने के बारे में सब कुछ बताते हैं लेकिन सही बात यह है कि उन्हें कुछ समझ नही आता क्योंकि अगर आप किसी को सुनना नही चाहते तो आप उसके बारे में कुछ नही जान सकते

मेरी गर्लफ्रैंड छोटीछोटी बातों पर नाराज हो जाती है, मैं उसे खुश कैसे रख सकता हूं?

सवाल

इसी साल मैं 25 साल का हुआ हूं. मेरी एक गर्लफ्रैंड है जो 21 साल की है. बहुत प्यारी है और मैं उसे बहुत चाहता हूं. बसदिक्कत यह है कि वह मुझसे छोटीछोटी बातों पर नाराज हो जाती है और दोतीन दिनों तक बात तक नहीं करती. मैं परेशान हो जाता हूं. समझ नहीं आता कि उसे कैसे खुश रखा जाए ताकि नाराज होने की नौबत ही न आए.

जवाब

नयानया प्यार है. लड़की की उम्र सिर्फ 21 साल की है तो नखरे तो दिखाएगी. इस उम्र में ज्यादा मैच्यौर व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती और वैसे भी, अगर वह थोड़ाबहुत नाराज हो रही है तो इस में गलत नहीं.

बल्कि आप की समस्या पढ़ कर लगता है कि आप की गर्लफ्रैंड आप से अटैंशन पाना चाहती है. क्या आप उसे पूरा वक्त देते हैं? आप दोनों के बीच खुल कर बातचीत होती है या नहीं?

देखिए, आप अपनी गर्लफ्रैंड की भावनाओं को समझाने का प्रयास करें और उसे महसूस कराएं कि आप उस की परवा करते हैं. छोटीछोटी बातों पर उसे संतुष्ट करने का प्रयास करें. अपनी हर छोटी बात उस से शेयर करें. उसे फील कराएं कि आप उस के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. अपने कामों में उस की राय लें.

दिन में टाइम मिले तो उसे ‘लव यू’, ‘आई मिस यू’, ‘यू आर सो ब्यूटीफुल’ का मैसेज भेजते रहा कीजिए, वह खुश रहा करेगी. लड़कियां ऐसी छोटीछोटी बातों से जल्दी खुश हो जाती हैं. हर रिश्ता टाइम मांगता है और गर्लफ्रैंड को खुश रखने के लिए तो यह सब बहुत जरूरी है, ध्यान रहे.

 

बदलते मौसम में ऐसे रखें छोटे बच्चों की हेल्थ का ख्याल

बदलते मौसम में नन्हे बच्चे की देखभाल करना चुनौती होती है. माता-पिता बच्चे का ख्याल रखने के बावजूद वे बीमार पड़ते जाते है, इसकी वजह बार-बार तापमान में बदलाव का होना है, जिससेबच्चा झेल नहीं पाता और बीमार हो जाता है. असल में छोटे बच्चे की इम्युनिटी कम होती है, जो उम्र के साथ-साथ बढती है.मौसम के बदलाव के साथ इसका प्रभाव देखने को मिलता है, जब अधिकतर बच्चे बीमार पड़ते है. इस बारें में डॉक्टर्ज़ के फाउंडर एंड डायरेक्टर डॉ. आतिश लड्दाद कहते है कि छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने की वजह से वे जल्दी कई प्रकार केवायरलऔर वेक्टेरियल संक्रमण के शिकार हो जाते है, ऐसे में अचानक से मौसम का बदलना, जैसेसर्दी से गर्मी, गर्मी से बारिश होने की वजह से उनके शारीरिक समस्याएं मसलन सीजनल फ्लू, एलर्जी, कोल्डकफ, हीट स्ट्रोक, डायरिया, मलेरिया, डेंगूआदि बिमारियांहोनेका खतरा रहता है, ऐसे में माता-पिता और केयर टेकर्स को कुछ सावधानियां बरतने की जरुरत है, ताकि बच्चा इन सब समस्याओं से दूर रहे.ध्यान देने योग्य कुछबातें निम्न है,

साफ़ सफाई पर दे ध्यान

माता-पिता को हमेशा बच्चों की सीजनएलर्जी को नोटिस करने की जरुरत है, गर्मी से सर्दी और सर्दी से गर्मी, सीजनल पराग कण, धूल के कण, मौल्ड्सआदि से बुखार, अस्थमा और श्वास सम्बन्धी कई बिमारियोंके होने का खतरा रहता है, हालाँकि अस्थमा कई बार अनुवांशिक कारणों से भी हो सकता है, पर सावधानी रखने से इन बिमारियों से बचा जा सकता है.गर्म मौसम में ग्राउंड लेवल ओजोन के बढ़ने से बच्चों में अस्थमा एटैक आना शुरू हो जाता है, ठंडीमेंधूल कण और मौल्ड्स की वजह से फंगस का विकास होता है, जो अधिकतर बाथरूम और फर्श पर ग्रो करता है, ऐसे में झाड़ू से झाड़ने के बजाय वैक्यूम क्लीनर का प्रयोग सप्ताह में एक या दो दिन फर्श और कारपेट साफ़ करने के लिए करें. गीले कपड़ों से धूल मिटटी को साफ़ करें , बिस्तर के चद्दर को कभी झटके नहीं, धीरे से हटायें,मानसून के मौसम में घरों की सफाई बार-बार मेडिकेटेडफ्लोर क्लीनर से करते रहे, कर्टेन शेड्स को साफ़ रखे और फिदर पिलोके प्रयोग से बचे, क्योंकि ये धूल, मिटटी को अधिक आकर्षित करती है. वेंटिलेशनऔर धूप कासही प्रवेश कमरों में हो, इसका ध्यान रखें, ताकि फफूंद का ग्रोथ न हो, पेट्स और जानवरों के कांटेक्ट में आने से बच्चों को बचाएँ,जिनछोटे बच्चों को मौसम की एलर्जी है, उन्हेंमेडिकल हेल्प साथ में देते रहे, ताकि उनकी तबियत ठीक रहे.

खान पान पर रखे ध्यान,

अधिक गर्मी और नमी बच्चों की त्वचा के लिए हानिकारक होती है, क्योंकि इससे शरीर की नैचुरल कुलिंग सिस्टम कम होने लगती है, ऐसे में मौसम के बदलाव सेबच्चे की बॉडी कंट्रोल सिस्टम पर भार पड़ता है और गर्मी से सम्बंधित बीमारियाँ मसलन हीट स्ट्रोक, हीटक्रेम्प्स, हीटएक्स्जोरशनआदि की संभावना अधिक होती है,इसे कम करने के लिए बच्चों को सही मात्रा में तरल पदार्थ और पानी का सेवन कराते रहना चाहिए,इसमेंएनर्जी ड्रिंक और नैचुरल लाइम वाटर अच्छा विकल्प है, साथ ही बाहरधूप में खेलने से उन्हें बचाना और अधिक आराम करने देना जरुरी होता है, इसके अलावा खाने में संतुलित आहार दें, जिसमें विटामिन्स और मिनरल्स शामिल हो.

नहाने के समय में करे बदलाव

अधिकतर छोटे बच्चों को नहाना पसंद होता है, ऐसे में मौसम और शारीरिक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए नहाने के समय में परिवर्तन करते रहे, अगर बच्चा स्कूल जाने वाला हो तो उसे सुबह गुनगुने पानी से हाथ पैर धुला कर स्कूल भेजें और लौटने के बाद गुनगुने पानी से नहलाएं. बारिश के मौसम में छोटे बच्चों के स्वास्थ्य का खास ध्यान रखना जरुरी होता है. इस समय मच्छर, इन्सेक्ट बाईटस अधिक होता है, इसलिए उन्हें हमेशा मेडिकेटिड साबुन से नहलाएं.

पहनावे पर दे ध्यान

मौसम के हिसाब से बच्चों के पोशाकपहनाने की जरुरत होती है, जरुरत अधिक ड्रेस सर्दी में और कम कपडे गर्मी में,खासकर छोटे बच्चों के लिए हानिकारक होता है, बच्चे को लेयरिंग मेंसूती, ढीले,हलके रंग कपडे पहनाएं,ताकिशरीर का तापमान कंट्रोल में रहे, रात को हमेशा पूरी बाजू और पैर तक ढके कपडे पहनाकर सुलाएं, हल्की चादर से चेस्ट को ढक दें.

तय करें खेलने का समय 

बदलते मौसम में बच्चे को बाहर जाकर खेलने देना भी कई बार समस्या होती है, कुछ माता-पिता बच्चों को बाहर जाने से मना करते है, पर बच्चों को बाहर खेलने से चाइल्डहुड एंग्जायटी कम होती है और बच्चे में आत्मविश्वास, कल्पना शक्ति, अपने आपको सम्हालने की शक्ति और शारीरिक विकास जल्दी होता है, इसलिएहर मौसम में निश्चित समय में उन्हें बाहर निकलने का मौका दें, ताकि वे हर मौसम के बदलाव से परिचित हो सके, एनवायरनमेंट फ्रेंडली बनें, लेकिन जब वे घर लौटे उन्हें साफसफाई और हायजिनकापालन अवश्य कराएं.

Raksha Bandhan : दूध और मेवे के साथ घर पर ऐसे बनाएं फिरनी

फिरनी एक मीठा व्यंजन है. इसे बहुत ही कम समय में बनाया जा सकता है. चावल की खीर की जगह यह खाने में बहुत अलग होती है. फिरनी खाने में जितनी स्वादिष्ठ लगती है, इसे बनाना उतना ही आसान है.

बच्चों को भी ये डिश बहुत पसंद आती है. फिरनी पंजाबी लोग बहुत पसंद करते हैं. अब यह धीरेधीरे हर जगह के लोगों को पसंद आने लगी है. जिस समय नया चावल बाजार में आता है, उस समय बहुत सारे लोग खुशी में फिरनी बनाते और खाते हैं. अलगअलग स्वाद के लिए कभी पिस्ता फिरनी, तो कभी मैंगो फिरनी भी तैयार की जाती है. इस से फिरनी के साथ मेवों और ताजा फलों के स्वाद का भी एहसास मिलता है.

खाने के बाद मिठाई के रूप में फिरनी लोगों को खूब पसंद आती है. फिरनी को मिट्टी की छोटी सी कटोरी में रख कर दिया जाता है. जो खाने के स्वाद को और भी बढ़ा देती है. खाने से पहले इसे फ्रिज में रख कर ठंडा किया जाता है. फिरनी में पड़े मेवे इसे और भी खास बना देते हैं. खोए की जगह इस में दूध का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में यह अलग किस्म का स्वाद देती है, जो ताजगी का एहसास कराता है.

फिरनी बनाने की सामग्री :

फुल क्रीम दूध 1 लीटर,

चावल 100 ग्राम,

चीन 1 मध्यम कटोरी,

काजू 50 ग्राम, बादाम 50 ग्राम किशमिश 25 ग्राम,

छोटी इलायची 2,

पिसा नारियल 20 से 30 ग्राम.

विधी…

  • फिरनी बनाने के लिए सब से पहले चावल को 30 मिनट के लिए भिगो कर रख दें.
  • दूध को उबाल कर थोड़ा गाढ़ा कर लें और उस में चीनी डाल कर धीरे-धीरे मिलाएं.
  • काजू, बादाम को छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें. अब उबलते हुए दूध में काजू, बादाम, छोटी इलायची, किशमिश और पिसा नारियल डाल दें. इस में पिस्ता और केसर भी डाल सकते हैं.
  • सब कुछ डालने के बाद दूध को अच्छे से मिला लें और दूध को उबलने दें.
  • अब जो चावल भिगो कर रखा था, उसे थोड़ा सा पानी डाल कर पीस लें.
  • पिसे हुए चावल को दूध के मिक्सचर में धीरेधीरे डालें, ध्यान रखें कि इसे लगातार चलाते रहें, नहीं तो इस में गांठ पड़ जाएगी.
  • जब दूध गाढ़ा हो जाए, तो गैस की आंच बंद कर दें. ध्यान रखें, फिरनी सूखे नहीं.
  • अब फिरनी को थोड़ा ठंडा होने दें. जब फिरनी ठंडी हो जाए, तो बाउल में डाल कर काजू, किशमिश, बादाम और पिसे गोले से सजा दें.
  • अब इस बाउल को 5 से 10 मिनट के लिए फ्रिज में ठंडा होने के लिए रख दें.
  • जब फिरनी ठंडी हो जाए, तो सर्व करें.
  • फिरनी को ठंडा ही खाया जाता है. अगर फिरनी ज्यादा सूख जाए, तो इसे पतला करने के लिए ठंडा दूध डाल कर मिला लें.
  • फिरनी के फायदे

चावल में कार्बोहाइड्रेट होता है, जो इंस्टेंट एनर्जी देता है.

फिरनी में काजू डालते हैं, जो शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है. काजू दिल के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद होता है. काजू ब्लडप्रेशर को कम करने में मदद करता है. काजू हमारी हड्डियों को मजबूत बनाता है. काजू वजन कम करने में मदद करता है. ऐसे में फिरनी खाने से शरीर को लाभ होता है. यह दूसरी मिठाइयों की तरह नुकसान नहीं करती है.

Raksha Bandhan : कच्चे धागे- आशा के साथ कौन सी कहानी उस की भाभी ने दोहराई ?

दोपहर का खाना निबटा कर सुनीला थोड़ी देर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेटी ही थी कि घंटी की आवाज सुन कर उसे फिर दरवाजा खोलने के लिए उठना पड़ा. वह भुनभुनाती सी उठी कि इस मरे पोस्टमैन को भी इसी समय आना होता है. पौस्टमैन से चिट्ठियां ले कर मेज पर रख कर वह जा रही थी कि एक पत्र पर उस की आंखें जमी रह गईं. उस ने पत्र हाथ में उठाया. निसंदेह यह लिखाई आशा की ही थी, पर इतने लंबे अंतराल के बाद…जल्दीजल्दी चिट्ठी खोल कर उस ने पढ़ना प्रारंभ किया:

‘प्रिय सुनीला

‘अमित स्नेह,

‘तुम सोच रही होगी कि इतने सालों बाद कैसे तुम्हें चिट्ठी लिख रही हूं. सच कहूं तो तुम से संवाद स्थापित करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही थी. किस मुंह से तुम्हें चिट्ठी लिखती. जो कुछ भी मैं ने तुम्हारे साथ किया है, वह तो अक्षम्य है, पर तुम्हारा सरल हृदय तो सागर की तरह विशाल है. तुम उस में मेरा यह अक्षम्य अपराध अवश्य समेट लोगी, यही सोच कर लिखने की धृष्टता कर रही हूं. ‘मेरा हृदय अपने किए पर हमेशा मुझे कचोटता रहता है. सोचती हूं, अनजाने ही छोटे से स्वार्थ के वशीभूत हो कर अपनी ही कितनी बड़ी हानि की जिम्मेदार बनी. इन सालों में अकेले रह कर समझ पाई कि सारे नातेरिश्तों का सुंदर समन्वय ही जीवन को परिपूर्णता व सार्थकता प्रदान करता है और इन्हीं मधुर संबंधों में ही जीवन की परितृप्ति है.

‘सुनीला, मैं अपने क्षुद्र स्वार्थ के वशीभूत हो भूल बैठी थी कि संसार में पतिपत्नी के संबंध से इतर कुछ स्नेहबंधन ऐसे होते हैं जिन के बिना हम स्वयं को भावनात्मक रूप से अतृप्त और असुरक्षित महसूस करते हैं. ‘नासमझी में की गई उस भूल का एहसास मुझे अब हो रहा है जब उन्हीं संबंधों के निर्वाह में मैं ने खुद ठोकर खाई है. ‘अनिमेष भी अब पहले की तरह नहीं रहे हैं. अब उन पर एक संजीदगी सी छा गई है. तुम्हारे आने से शायद घर में खुशियां लौटें. उन की हंसी तो जैसे बीते समय ने चुरा ली है.

‘इस बार कृपया मेरे लिए नहीं, तो अपने भैया के लिए जरूर आ जाओ. कितने ही रक्षाबंधन निकल गए सूनी कलाई लिए. सुशांत और ईशा भी अपनी बूआ से मिलने को आतुर हैं. ‘मांजी और पिताजी भी इस बार नागपुर ही आ रहे हैं. सुनीला, यदि तुम नहीं आईं तो मैं यही समझूंगी कि तुम ने मुझे क्षमा नहीं किया और जीवनपर्यंत इस अपराधबोध को ढोती रहूंगी.

‘तुम्हारे स्नेह की आकांक्षी, तुम्हारी भाभी.

‘आशा.’

पत्र पढ़तेपढ़ते सुनीला व्याकुल हो उठी. उस की आंखों से अश्रुधारा बह चली, पर कितना अंतर था इन आंसुओं में और सालों पहले बहे उन आंसुओं में, जब उस में बड़े भैया के पास कभी न जाने की प्रतिज्ञा की थी. कहीं अतीत में उस का मन भटकता चला गया. सुनीला को याद है कि कैसे आनंदातिरेक में डूबी वह हर रक्षाबंधन पर मायके दौड़ी चली जाती थी. उस दोपहर भी वह हर वर्ष की तरह भैया के लिए ढेर सारी राखियां और मिठाई, नारियल वगैरा खरीदने बाजार गई थी. आखिर क्यों न लाती, अपने भैया की कलाई पर राखी बांधने वाली वह इकलौती बहन जो ठहरी थी, पर उस क्रूर सत्य से वह कहां परिचित थी, जो घर पर उस की प्रतीक्षा कर रहा था. घर आ कर वह अपने पैकेट अंदर कमरे की अलमारी में रखने जा रही थी कि अंदर से आती खुसुरफुसुर से वह वहीं ठिठक गई. यह तो भैया की आवाज थी. वे भाभी से कह रहे थे, ‘सुनीला बड़ी देर से दिखाई नहीं दे रही, कहां गई है?’

‘गई होगी अपने लाड़ले इकलौते भाई के लिए खरीदारी करने…’ ‘खैर, यह तो बताओ कि राखीबंधाई पर सुनीला को क्या देना है?’ ‘मैं तो अपने मायके जा रही हूं.’

‘पर आशा, त्योहार पर तुम घर में नहीं रहोगी तो सुनीला क्या सोचेगी?’ ‘जो सोचना हो, सोचे, मेरी बला से. देखोजी, कहे देती हूं 100 रुपए से अधिक हम नहीं दे सकते…वह क्या ले कर आती है, नारियल और आधा किलो मिठाई, बस.’

भाभी ने कटाक्ष किया तो भैया सुन कर चुप रह गए थे, मानो उन्होंने भी अपनी स्वीकारोक्ति दे दी थी. वह स्तब्ध रह गई कि अब उस की भावना को लेनदेन के तराजू पर तौला जाने लगा. सच मानो तो उसे भाभी का कहना उतना बुरा नहीं लगा था जितना भैया का चुप रह जाना. आशा तो पराईजाई थी, पर भैया और वह तो एक मां की कोख से सुखदुख के सहभागी बने थे. बचपन की सारी खुशियां और उलझनें दोनों ने साथसाथ बांटी थीं. बड़े भैया की चुप्पी उसे ऐसी लगी थी जैसे किसी ने कई मन पत्थर उस के सीने पर रख दिए हों. वह सोच रही थी कि इतने सालों उस ने भाईबहन के बीच स्नेहबेल को नहीं सींचा था, जो उस के चारों ओर अपनी सुगंध बिखेरती, पर शायद उस ने अपने चारों ओर नागफनी की बाड़ खड़ी की थी, जो कि उस के हृदय को जीवनभर बेधती रहेगी. दूसरे कमरे में जा कर सुनीला ने भारीमन से राखियों वाला पैकेट मेज की दराज में रख दिया और अनमनी सी बाहर बगीचे में जा कर झूले पर बैठ गई. इसी झूले पर बैठ कर उस ने और अनिमेष भैया ने कितनी ही शैतानियों को अमलीजामा पहनाया था. सामने खड़ा जामुन का पेड़ उन के हंसतेखेलते बचपन का साक्षी था.

बड़े भैया को सारी शैतानियों से उन्हें बचाने की गरज से उन्हें वह अपने सिर ले लेती और साम, दाम, दंड, भेद, छल, प्रपंच का सहारा ले कर उन्हें सजा से बचा कर ही लाती. अनिमेष इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष का छात्र था. रातदिन भैया के पीछे साए सी लगी उन की एकएक जरूरत पूरी करती रहती, जिस से कि उन की पढ़ाई में किसी तरह का व्यवधान न पहुंचे. भाईबहन का यह स्नेह पासपड़ोस में और रिश्तेदारों के लिए ईर्ष्या का विषय था. आकाश पर बादल घिर आए थे और हलकी बूंदाबांदी शुरू हो गई थी, पर सुनीला अपने ही विचारों में खोई, जामुन के पत्तों से टपकने वाली पानी की नन्ही बूंदों को अपलक निहारे जा रही थी. शायद जामुन का पेड़ सुनीला का दर्द समझ रहा था. उस के अश्रु भी नन्ही बूंदों के रूप में पत्तियों से झर रहे थे.

‘सुनीला, कहां खोई है? पानी बरसने लगा है. चल, अंदर चल कर चाय पी ले?’ मां कब से सामने खड़ी थीं, उसे अंदाजा ही न था. अंदर भाभी से चाय का कप हाथ में लेते समय वह सोच रही थी कि कितना अंतर था इस स्नेहमयी भाभी में और उस आशा में, शायद बनावट ही ऐसा संबल है, जिस के सहारे हम सामाजिकता का निर्वाह कर पाते हैं. अनमने मन से उस ने चाय पी और बोली, ‘मां, शौपिंग करतेकरते बहुत थक गई हूं, थोड़ी देर ऊपर जा कर लेटूंगी.’ ऊपर आ कर कमरे में अंधेरा कर सुनीला पलंग पर पड़ गई. उसे अधंकार से चिढ़ थी, पर न जाने क्यों आज उसे अंधेरा एक सुकून दे रहा था. अनचाहे ही उस का मन उस से द्वंद्व कर रहा था… उस दिन अनिमेष भैया का परिणाम आया था. पूरे पड़ोस में नाचतीकूदती वह यह खबर सुना आई थी कि भैया इंजीनियर बन गए हैं.

मिठाई देने जब वह राधा मामी के यहां गई तो मामी ने मजाक ही मजाक में कहा कि मना ले अपने भैया के इंजीनियरिंग की खुशी, भाभी के आने के बाद तो तेरा मोल दो कौड़ी का भी नहीं रहेगा. उन की बात सुन कर सुनीला एकदम से बिफर उठी थी और राधा मामी से लड़ पड़ी थी कि उस के भैया ऐसे नहीं हैं. वास्तव में अनिमेष भैया ऐसे कहां थे. एक बार सुनीला को फ्लू हो गया तो सारी रात उस के सिरहाने बैठे घंटेघंटे पर उस का तापमान देखते रहे. मां कितना ही कहती रहीं, पर जब तक सुनीला का बुखार उतर नहीं गया, वे उस के सिरहाने से नहीं हटे. रक्षाबंधन पर अनिमेष उस से कुहनीभर तक राखियां बंधवाता और सारे दोस्तों में शेखी बघारता फिरता. पूरे हफ्तेभर तक राखियां उस के हाथ से न उतरतीं. बिना सुनीला के अनिमेष का एक भी काम नहीं होता. कालेज से ले कर घर तक हर करनीकरतूत में सुनीला अपने भैया की सहभागी होती.

‘सुनीला, खाना खा लो. सब नीचे तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’ यह आशा की आवाज थी. सुनीला के विचार प्रवाह में अवरोध उत्पन्न हुआ. ‘नहीं भाभी, आज खाने का मन नहीं है. तुम लोग खाओ. कृपया लाइट बंद करती जाना, मुझे नींद आ रही है.’ नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. वह तो आशा के बारे में सोच रही थी कि क्या यह वही आशा है जिसे घरवालों के विरोध के बावजूद वह अपनी भाभी बना कर लाई थी. उस ने आने वाली अपनी प्यारी भाभी के लिए क्याक्या तैयारियां नहीं की थीं. दिनरात एक कर दिए थे उस ने भागतेदौड़ते. राधा मामी मां से कहतीं, ‘जीजी, बहुत बड़े घर की लड़की लाने जा रही हो. कहीं तुम्हारे इस हंसतेखेलते संसार में आग न लग जाए.’

मां ऊहापोह में पड़ जातीं. पर सुनीला ने तो जैसे आशा के लिए सारी दुनिया से लोहा लेने की ठानी थी. आखिर उस ने अपनी भाभी के रूप में जिस परीलोक की राजकुमारी की कल्पना की थी, वह आशा को देख कर यथार्थ में साकार होती दिखाई  दी थी. वास्तव में आशा का सौंदर्य अप्रतिम और रूप अनिंद्य था. नागचंपा के फूल कितने ही सुंदर क्यों न हों, पर चारों ओर लिपटे भुजंग उन्हें पास से गुजरने वालों के लिए अगम्य बना देते हैं. आशा के पिता उसी शहर में पुलिस कमिश्नर थे. लाड़प्यार में पली 2 भाइयों की इकलौती बहन. उस के एक इशारे पर घरभर में तूफान उठ खड़ा होता था. आशा सुनीला की ही क्लास में पढ़ती थी. सुनीला तो उसे मन ही मन भाभी मान बैठी थी, अनिमेष और आशा का रिश्ता तय हो गया. आखिर कमिश्नर साहब को भी घर बैठे इंजीनियर कहां मिलता. इसी बीच, भैया ने रेलवे में कार्यारंभ कर दिया था. संयोग से उन्हें पहली पोस्ंिटग अपने बुलंदशहर में ही मिल गई थी. भाभी बन कर आशा घर आ गई थी. सब सामर्थ्य से बढ़ कर उसे खुश रखने की चेष्टा करते, पर वह ससुराल वालों को मन से कहां स्वीकार कर पाई थी. उस ने अपने और घर वालों के बीच जो रिश्ता नियत किया था, उसे औपचारिकता मात्र कहा जा सकता था.

भैया दो पाटों के बीच तटस्थ से हो कर रह गए थे. उन के पास इस के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था.

सब एक ही छत के नीचे अजनबी से रहने लगे थे. जब तक सुनीला की शादी नहीं हुई थी, इस अजनबीपन के एहसास को ढोते रहना उस की मजबूरी थी, पर विवेक से शादी के बाद उस की वह मजबूरी भी खत्म हो गई थी. विवेक हैदराबाद में एक अच्छी फर्म में प्रबंध निदेशक था. संयुक्त परिवार था उस का. अपने ससुराल में विवेक की पत्नी के अलावा वह सब की प्यारी भाभी और बहू, सबकुछ थी. शायद आशा से मिले घावों ने उस के संवेगों को और भी संवेदनशील बना दिया था, जिन में तप कर वह कुंदन हो गई थी. निलय और निशांत के होने के बाद उस का मायके जाना कम होता चला गया.

उस त्रासद सत्य से शायद वह खुद ही आंखें चुराने लगी थी. भैयाभाभी के साथ रहना मांबाबूजी की तो विवशता थी, पर वह क्यों जबरन परायों पर अपनेपन का एहसास थोपे. धीरेधीरे सुनीला का मायके आना रक्षाबंधन तक ही सीमित रह गया था. भैया की कलाई में राखी बांधते समय जब वे कुहनी तक राखियां भर देने की जिद करते तो उसे वह पहले वाले भैया ही लगते और वह फिर से अपने बचपन में जी उठती. उन के बीच रिश्ते की वही एक नाजुक डोर बची थी. आज एक  झटके के साथ वह भी टूट गई. क्यों इतने साल वह अपने मन को छलती रही? सत्य तो तब भी वही था, जो आज है. तभी उस ने एक निर्णय ले डाला, कभी भैया के घर न आने का निर्णय. इन्हीं विचारों में सारी रात वह डूबतीउतरती रही. न जाने क्यों उसे वह रात बरसों लंबी लग रही थी. सवेरेसवेरे अपना सामान बांध कर वह तैयार हो गई. मां उसे तैयार देख स्तब्ध रह गईं, ‘अरे, अभी तो आए 2 ही दिन हुए हैं, अभी से कहां जा रही हो?’

और उस ने रातभर में जो बहाने ससुराल वापस जाने के सोच रखे थे, सब सुना डाले. पर मां से अपना अंतर्मन क्या छिपा पाती. शायद मां भी समझ गई थीं. भरे मन से मां ने उसे विदा किया. अनिमेष भैया उसे ट्रेन में बैठाने आए थे. जातेजाते भी उस के मन में विश्वास था कि भैया ट्रेन के चलतेचलते तक उस से इतनी जल्दी वापस जाने का कारण जानना चाहेंगे, पर भैया पता नहीं क्यों अनमने से ही बने रहे. धीरेधीरे ट्रेन ने प्लेटफौर्म छोड़ दिया. वह तब तक भैया को देखती रही, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गए. यात्रियों की नजरें बचा कर उस ने अपने पल्लू से धीरे से आंखें पोंछ लीं. बरसों बीत जाने के बाद भी तब से वह फिर मायके नहीं गई. मां की चिट्ठियों से ही उसे खैरखबर पता लगती रहती थी. अनिमेष भैया का तबादला नागपुर हो गया था. भाभी और बच्चों के साथ वे नागपुर चले गए थे.

सर्दियों में मां की बीमारी का तार पा कर उसे बुलंदशहर जाना पड़ा तो लगा, मां की आधी बीमारी तो जैसे उसे देखते ही ठीक हो गई. इस बार मां के चेहरे पर संतोष की आभा थी. ‘भाभी कैसी हैं मां, भैया और सुशांत, ईशा कैसे हैं?’ ‘अरी सुनीला, तू तो जानती ही है कि बहू अपने मायके वालों के लिए कैसे तड़पती थी. हमें तो उस ने अपने रिश्तों के संसार में एक कोना भी नहीं दिया. बहू के भाई की शादी के बाद से ही धीरेधीरे उस में अंतर आना  शुरू हो गया था. मायके जाने की रफ्तार भी कुछ कम हो चली थी. शायद नई भाभी ने उस का पत्ता साफ कर दिया. उस के साथ भी वही दोहराया जा रहा था, जो उस ने हमारे साथ किया,’ अम्मा ने उसांस ली. ‘सच है, बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से होए,’ मां अपनी धुन में बोले चली जा रही थीं, ‘सच सुनीला, जाते समय बहू खूब रोई और मुझे और तेरे बाबूजी को साथ ले जाने की जिद करती रही. पर तू ही बता बेटा, कि इतना बड़ा घर किस के भरोसे छोड़ जाते? यहां भी तो कोई देखने वाला चाहिए था न. अब तो बहू इतनी बदल गई है कि देखे बिना तू कल्पना ही नहीं कर सकती.’ ‘सच मां,’ और मन में असीम संतोष का अनुभव करती हुई वह हैदराबाद लौट आई थी. चिट्ठी हाथ में लिए वह पलंग पर बैठी थी, विवेक कब फैक्टरी से लौट आए, उसे पता नहीं चला.

‘‘अरे भई, आज क्या भूखे रखने का इरादा है. पेट में चूहे कूद रहे हैं.’’ वह जैसे नींद से जागी, हड़बड़ा कर विवेक के लिए चायनाश्ता ले आई. ‘‘क्या बात है, आज कुछ ज्यादा ही खुश नजर आ रही हो?’’ उस ने धीमे से विवेक की ओर आशा भाभी की चिट्ठी बढ़ा दी.

‘‘अच्छा, तो इसलिए श्रीमतीजी इतनी प्रसन्न नजर आ रही हैं,’’ पत्र पढ़ कर मुसकराते हुए विवेक बोले, ‘‘चलो, तुम्हारा नागपुर का आरक्षण करा देते हैं, परसों का. तुम्हें ‘शौपिंग’ वगैरा भी तो करनी होगी. चलो फटाफट तैयार हो जाओ.’’ राखियां खरीदते समय आह्लादित हो कर वह सोच रही थी कि इस बार बरसों बाद भैया के हाथों में फिर ढेर सारी राखियां बांधेगी.

Raksha Bandhan : बहन की स्वतंत्रता में बाधक न बनें

हम बात सगे भाईबहनों की नहीं कर रहे बल्कि उस प्यारे से रिश्ते की कर रहे हैं, जिसे दुनिया वालों की नजरों में मुंहबोले भाईबहन कहते हैं. लेकिन सच तो यह है कि इस की गहराई किसी भी सगे भाईबहन से कम नहीं होती. इस में परेशानी तब आती है जब यह रिश्ता पजेसिवपन की हद पार कर जाता है और मुंहबोला भाई अनजाने में ही बहन की केयर करतेकरते उस की आजादी में खलल डालने लगता है और यह बात उन दोनों के रिश्ते पर विपरीत प्रभाव डालती है.

दुनिया की इस भीड़ में बड़े प्यार से खुद बनाए इस रिश्ते की गरिमा, सम्मान और प्यार यों ही हमेशा बना रहे इस के लिए भाई को यह ध्यान रखना होगा कि कहीं वह बहन की स्वतंत्रता में बाधक तो नहीं बन रहा. अगर ऐसा है तो यह आप दोनों के रिश्ते के लिए सही नहीं है. आइए, जानें इस रिश्ते में आजादी, केयर और प्यार ये तीनों चीजें कैसे बरकरार रखें :

भाई बनें पिता नहीं

कई घरों में लड़कों को अलग ही अंदाज में पाला जाता है. बचपन से ही उन्हें यह सिखाया जाता है कि पूरा घर तुम से ही चलता है, इसलिए उन्हें रोब में रहने की आदत हो जाती है और वे घर पर पिता के होते हुए भी खुद को मुखिया समझने लगते हैं. खासतौर पर बहन के मामले में तो यह बहुत ज्यादा होता है. वे बहन पर रोब झाड़ते हैं यह बात गलत है. वैसे सगी बहन के मामले में आप का यह व्यवहार चल भी जाए पर मुंहबोली बहन के मामले में बोलने का आप को कोई हक नहीं है. मुंहबोली बहन से चाहे आप का रिश्ता कितना भी गहरा क्यों न हो, लेकिन परिवार के बाकी सदस्य आप को वह जगह नहीं दे सकते जो उस घर के बेटे की है. इसलिए बेवजह मुंहबोली बहन को हड़काना ठीक नहीं है. उसे पिता की तरह डांटने के बजाय एक भाई की तरह प्यार करें.

हर बात में टांग न अड़ाएं

बहन की हर छोटीबड़ी बात में टांग अड़ाने को अपनी आदत न बनाएं. बहन की कुछ बातें आप को सही लगती होंगी और कुछ गलत, लेकिन गलत बातों के लिए उसे तुरंत टोकने के बजाय मौका देख कर समझाएं. कुछ चीजें वह आप के समझाने से भी नहीं समझेगी, इसलिए उसे अपनी मनमरजी करने दें. वह खुद ही अपनी गलतियों से सीखते हुए आगे बढ़ेगी, इस में आप को बेवजह उस पर रोकटोक लगाने की जरूरत नहीं है.

जमाने के साथ चलने दें

‘जमाना बड़ा खराब है’, जैसे डायलौग बोल कर बहन को न पकाएं. यदि जमाना खराब भी है तो आप का फर्ज बनता है कि बहन को उस जमाने के साथ चलने के लायक बनाएं. यदि आप को लगता है. कि मुंहबोली बहन की पर्सनैलिटी दबी हुई है तो आप उसे कुछ ऐसे कोर्स करवाएं जो उस की पर्सनैलिटी को निखारें, यदि उस की इंगलिश कमजोर है तो इंगलिश स्पीकिंग कोर्स करवाएं. उसे जींसस्कर्ट भी पहनने दें. अगर कालेज सभी लोग ऐसे कपड़े पहन कर आते हैं और वह खुद भी ऐसा ही चाहती है तो उसे पहनने दें, बस, उसे उस की मर्यादाएं समझा दें. उसे सीधीसादी नहीं बल्कि जमाने के साथ चलने वाली तेजतर्रार युवती बनाएं, जो अपने हर काम के लिए किसी दूसरे पर आश्रित न रहे बल्कि अपना हर काम खुद कर ले.

जासूसी न करें

बहन कहां आतीजाती है? किस के साथ घूमती है? क्या पहनती है? क्या खाती है? उस के दोस्त कौन हैं? वह फोन पर किस से बात कर रही है? उस का कोई बौयफ्रैंड तो नहीं है? इस तरह उस की जासूसी करना बंद कर दें. जिस दिन उसे पता चलेगा कि आप उस की ऐसी जासूसी करते हैं तो उस का दिल टूट जाएगा, उसे यह बात बिलकुल भी पसंद नहीं आएगी. उसे क्या, यह बात किसी और को भी पसंद नहीं आएगी. बहन की केयर करना एक हद तक तो ठीक है, लेकिन उस के लिए ओवर पजेसिव होना आप के रिश्ते में खटास पैदा कर सकता है.

विश्वास करें

अपनी मुंहबोली बहन पर विश्वास करें. वह पढ़ीलिखी युवती है. उस में भलेबुरे की समझ है. वह अपने लिए जो भी सोचेगी और करेगी वह बेहतर ही होगा. उसे अपने फैसले खुद करने दें. अगर उस का कोई बौयफ्रैंड भी है तो नाराज न हों, हो सकता है उस ने उस के साथ फ्यूचर की कुछ प्लानिंग की हो. इसी तरह अगर उस का लड़केलड़कियों का कोई बड़ा ग्रुप है और वह उस में बिजी रहती है तो इस में चिढ़ने की बात नहीं है, वे सभी उस के दोस्त हैं और वह आउटिंग के लिए उन के साथ बाहर जा रही है तो उस पर विश्वास करें. यदि उसे मदद की जरूरत होगी तो वह आप को बुला लेगी.

बौडीगार्ड न बनें

यदि बहन लेटनाइट पार्टी में जाना चाहती है तो उस पर पाबंदी न लगाएं. अगर उस ने अपने मम्मीपापा से परमिशन ले ली है तो फिर आप को बीच में नहीं पड़ना चाहिए. हां, एक बार आप अपनी तरफ से अवश्य उसे वैन्यू पर छोड़ने के लिए औफर कर सकते हैं, लेकिन यदि वह ऐसा नहीं चाहती तो आप जिद न करें, उसे जाने दें. हो सकता है वह अपनी कुछ सहेलियों के साथ जा रही हो और आप के साथ जाने में उसे असहज लग रहा हो.

इसी तरह कालेज में भी हर वक्त उस के आगेपीछे न घूमें, अगर किसी युवक ने उसे छेड़ा है या फिर कोई गलत बात कह दी है तो उसे पहले अपने तरीके से हैंडिल कर लेने दें. हर वक्त उस का बौडीगार्ड बन कर रहना ठीक नहीं है.

आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें

बहन को यदि आगे बढ़ने का मौका मिल रहा है, जैसे कि किसी अच्छे कोर्स में उस का ऐडमिशन शहर से बाहर हो रहा है तो उसे ‘घर से दूर अकेले कैसे रहोगी’, जैसी नेगैटिव बातें कह कर न डराएं बल्कि अगर वह मना करे तो उसे और उस के पेरैंट्स को समझाएं कि यह उस के कैरियर के लिए अच्छा है. अगर उसे जौब या पढ़ाई के सिलसिले में विदेश जाने का मौका मिल रहा है तो उसे वहां जाने के लिए प्रोत्साहित करें. उसे बेवजह यहीं रह कर कुछ करने का प्रलोभन दे कर उस की स्वतंत्रता और तरक्की में बाधक न बनें.

लाइफपार्टनर चुनने की स्वतंत्रता दें

बहन से पूछें कि उसे कैसा लाइफ पार्टनर चाहिए. यदि वह किसी को पहले से ही पसंद करती है और वह युवक भी अच्छा है तो उसे अपना जीवनसाथी बनाने का बहन को पूरा अधिकार है. यह जान कर उसे डांटें नहीं, बल्कि उस के मातापिता को इस रिश्ते के लिए तैयार करने में बहन की मदद करें. अगर बहन की जिंदगी में कोई नहीं है तो भी उसे इंटरनैट, मैरिज साइट्स के जरिए दूल्हा ढूंढ़ने और पसंद करने की आजादी दें, इस के बाद वह युवक सही है या नहीं यह तहकीकात आप कर सकते हैं, लेकिन जो भी हो उस में बहन की पसंद और इच्छा शामिल हो. उसे अपना लाइफ पार्टनर अपनी पसंद से चुनने का पूरा अधिकार है.

मुंहबोली बहन के मातापिता से भी रखें संबंध

आप अपनी मुंहबोली बहन के मातापिता व उस के अन्य भाईबहनों के साथ पारिवारिक रिश्ता कायम करें. केवल बहन तक ही सीमित न रहें. इस से रिश्ते की मर्यादा बनी रहेगी.

मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता एक पवित्र रिश्ता है, जिस की नींव एकदूसरे के विश्वास पर टिकी रहती है. इसलिए इस प्यार भरे रिश्ते की गंभीरता व मर्यादा को समझते हुए ही रिश्ता बनाएं ताकि यह रिश्ता बदनाम न होने पाए और लोग इस पर उंगली न उठाने लगें.

बाधक बनने के नुकसान

  1. हर वक्त बहन की स्वतंत्रता में बाधक बनने से वह आप से चिढ़ जाएगी और झूठ बोलना व बातें छिपाना शुरू कर देगी.
  2. अपनी स्वतंत्रता हर किसी को प्यारी होती है और जब कोई हमारी स्वतंत्रता में सेंधमारी करता है तो वह हमें पसंद नहीं आता, फिर चाहे वह रिश्ता हमारे लिए कितना भी खास क्यों न हो, इस से उस में दूरी आना स्वाभाविक है.
  3. जिस तरह आप उस पर रोकटोक कर रहे हैं, कल ऐसा ही व्यवहार यदि वह भी आप से करेगी, तब शायद आप को भी अच्छा नहीं लगेगा.
  4. जिस आजादी की इच्छा आप अपने लिए रखते हैं, वह दूसरों को भी देने के पक्षधर बनें वरना इस से परेशानी आप को ही होगी.
  5. आप एक हिटलर भाई के रूप में प्रचलित हो जाएंगे और इस से आप की पर्सनैलिटी पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा

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एक नन्ही परी : भाग 2

काजल दीदी की शादी के समय विनी अपनी परीक्षा में व्यस्त थी. काकी उस के परीक्षा विभाग को रोज कोसती रहतीं. हलदी की रस्म के एक दिन पहले तक उस की परीक्षा थी. काकी कहती रहती थीं, ‘विनी को फुरसत होती तो मेरा सारा काम संभाल लेती. ये कालेज वाले परीक्षा लेले कर लड़की की जान ले लेंगे,’ शांत और मृदुभाषी विनी उन की लाड़ली थी.

आखिरी पेपर दे कर विनी जल्दीजल्दी काजल दीदी के पास जा पहुंची. उसे देखते काकी की तो जैसे जान में जान आ गई. काजल के सभी कामों की जिम्मेदारी उसे सौंप कर काकी को बड़ी राहत महसूस हो रही थी. उन्होंने विनी के घर फोन कर ऐलान कर दिया कि विनी अब काजल की विदाई के बाद ही घर वापस जाएगी.

शाम के वक्त काजल के साथ बैठ कर विनी उन का सूटकेस ठीक कर रही थी, तब उसे ध्यान आया कि दीदी ने शृंगार का सामान तो खरीदा ही नहीं है. मेहंदी की भी व्यवस्था नहीं है. वह काकी से बात कर भागीभागी बाजार से सारे सामान की खरीदारी कर लाई. विनी ने रात में देर तक बैठ कर काजल दीदी को मेहंदी लगाई. मेहंदी लगा कर जब हाथ धोने उठी तो उसे अपनी चप्पलें मिली ही नहीं. शायद किसी और ने पहन ली होंगी. शादी के घर में तो यह सब होता ही रहता है. घर मेहमानों से भरा था. बरामदे में उसे किसी की चप्पल नजर आई. वह उसे ही पहन कर बाथरूम की ओर बढ़ गई. रात में वह दीदी के बगल में रजाई में दुबक गई. न जाने कब बातें करतेकरते उसे नींद आ गई.

सुबह, जब वह गहरी नींद में थी, किसी ने उस की चोटी खींच कर झकझोर दिया. कोई तेज आवाज में बोल रहा था, ‘अच्छा, काजल दीदी, तुम ने मेरी चप्पलें गायब की थीं.

हैरान विनी ने चेहरे पर से रजाई हटा कर अपरिचित चेहरे को देखा. उस की आखों में अभी भी नींद भरी थी. तभी काजल दीदी खिलखिलाती हुई पीछे से आ गईं, ‘अतुल, यह विनी है. श्रीकांत काका की बेटी और विनी, यह अतुल है. मेरे छोटे चाचा का बेटा. हर समय हवा के घोड़े पर सवार रहता है. छोटे चाचा की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए छोटे चाचा और चाची नहीं आ सके तो उन्होंने अतुल को भेज दिया.

अतुल उसे निहारता रहा, फिर झेंपता हुआ बोला, ‘मुझे लगा, दीदी तुम सो रही हो. दरअसल, मैं रात से ही अपनी चप्पलें खोज रहा था.

विनी को बड़ा गुस्सा आया. उस ने दीदी से कहा, ‘मेरी भी तो चप्पलें खो गई हैं. उस समय मुझे जो चप्पलें नजर आईं, मैं ने पहन लीं. मैं ने इन की चप्पलें पहनी हैं, किसी का खून तो नहीं किया. सुबहसुबह नींद खराब कर दी. इतने जोरों से झकझोरा है. सारी पीठ दुख रही है,’ गुस्से में वह मुंह तक रजाई खींच कर सो गई.

अतुल हैरानी से देखता रह गया. फिर धीरे से दीदी से कहा, ‘बाप रे, यह तो वकीलों की तरह जिरह करती है.’ तबतक काकी बड़ा पैकेट ले कर विनी के पास पहुंच गईं और रजाई हटा कर उस से पूछने लगीं, ‘बिटिया, देख मेरी साड़ी कैसी है?’

विनी हुलस कर बोल पड़ी, ‘बड़ी सुंदर साड़ी है. पर काकी, इस में फौल तो लगी ही नहीं है. हद करती हो काकी. सारी तैयारी कर ली और तुम्हारी ही साड़ी तैयार नहीं है. मुझे दो, मैं जल्दी से फौल लगा देती हूं.

विनी पलंग पर बैठ कर फौल लगाने में मशगूल हो गई. काकी भी पलंग पर पैरों को ऊपर कर बैठ गईं और अपने हाथों से अपने पैरों को दबाने लगीं.

विनी ने पूछा, ‘काकी, तुम्हारे पैर दबा दूं क्या?’

वे बोलीं, ‘बिटिया, एकसाथ तू कितने काम करेगी. देख न पूरे घर का काम पड़ा है और अभी से मैं थक गई हूं.

सांवलीसलोनी काकी के पैर उन की गोलमटोल काया को संभालते हुए थक जाएं, यह स्वाभाविक ही है. छोटे कद की काकी के ललाट पर बड़ी सी गोल लाल बिंदी विनी को बड़ी प्यारी लगती थी.

तभी काजल की चुनरी में गोटा और किरण लगा कर छोटी बूआ आ पहुंचीं, ‘देखो भाभी, बड़ी सुंदर बनी है चुनरी. फैला कर देखो न,’ छोटी बूआ कहने लगीं.

पूरे पलंग पर सामान बिखरा था. काकी ने विनी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘इस के ऊपर ही डाल कर दिखाओ, छोटी मइयां.

सिर झुकाए, फौल लगाती विनी के ऊपर लाल चुनरी बूआ ने फैला दी.

चुनरी सचमुच बड़ी सुंदर बनी थी. काकी बोल पड़ीं, ‘देख तो, विनी पर कितना खिल रहा है यह रंग.

विनी की नजरें अपनेआप ही सामने रखी ड्रैसिंग टेबल के शीशे में दिख रहे अपने चेहरे पर पड़ीं. उस का चेहरा गुलाबी पड़ गया. उसे अपना ही चेहरा बड़ा सलोना लगा. तभी अचानक किसी ने उस की पीठ पर मुक्के जड़ दिए.

तुम अभी से दुलहन बन कर बैठ गई हो, दीदी,’ अतुल की आवाज आई. वह सामने आ कर खड़ा हो गया. अपलक कुछ पल उसे देखता रह गया. विनी की आंखों में आंसू आ गए थे. अचानक हुए मुक्केबाजी के हमले से सूई उंगली में चुभ गई थी. उंगली के पोर पर खून की बूंद छलक आई थी. अतुल बुरी तरह हड़बड़ा गया.

बड़ी अम्मा, मैं पहचान नहीं पाया था. मुझे क्या मालूम था कि दीदी के बदले किसी और को दुलहन बनने की जल्दी है. पर मुझ से गलती हो गई.वह काकी से बोल पड़ा. फिर विनी की ओर देख कर न जाने कितनी बार सौरीसौरीबोलता चला गया. तब तक काजल भी आ गई थी. विनी की आंखों में आंसू देख कर सारा माजरा समझ कर, उसे बहलाते हुए बोली, ‘अतुल, तुम्हें इस बार सजा दी जाएगी. बता विनी, इसे क्या सजा दी जाए?’

विनी बोली, ‘इन की नजरें कमजोर हैं क्या? अब इन से कहो सभी के पैर दबाएं.यह कह कर विनी साड़ी समेट कर, पैर पटकती हुई काकी के कमरे में जा कर फौल लगाने लगी.

अतुल सचमुच काकी के पैर दबाने लगा, बोला, ‘वाह, क्या बढि़या फैसला है जज साहिबा का. बड़ी अम्मा, देखो, मैं हुक्म का पालन कर रहा हूं.

तू हर समय उसे क्यों परेशान करता रहता है, अतुल?

काजल दीदी की आवाज विनी को सुनाई दी.

दीदी, इस बार मेरी गलती नहीं थी,’ अतुल सफाई दे रहा था.

फौल का काम पूरा कर विनी हलदी की रस्म की तैयारी में लगी थी. बड़े से थाल में हलदी मंडप में रख रही थी. तभी काजल दीदी ने उसे आवाज दी. विनी उन के कमरे में पहुंची. दीदी के हाथों में बड़े सुंदर झुमके थे. दीदी ने झुमके दिखाते हुए पूछा, ‘ये कैसे हैं, विनी? मैं तेरे लिए लाई हूं. आज पहन लेना.

मैं ये सब नहीं पहनती, दीदी,’ विनी झल्ला उठी. सभी को मालूम था कि विनी को गहनों से बिलकुल लगाव नहीं है. पर दीदी और काकी तो पीछे ही पड़ गईं. दीदी ने जबरदस्ती उस के हाथों में झुमके पकड़ा दिए. गुस्से में विनी ने झुमके ड्रैसिंग टेबल पर पटक दिए. फिसलता हुआ झुमका फर्श पर गिरा. दरवाजे पर खड़ा अतुल ये सारी बातें सुन रहा था. तेजी से बाहर निकलने की कोशिश में वह सीधे अतुल से जा टकराई. उस के दोनों हाथों में लगी हलदी के छाप अतुल की सफेद टीशर्ट पर उभर आए.

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