Download App

छायांकन : बहन के दामन पर खून के छींटे

नीलम की शादी को अभी 3 महीने ही हुए थे. तब से वह सावन के महीने में अपने मायके आई थी. रक्षाबंधन पर अपने 2 छोटे भाइयों

को राखी बांधने के बाद उसे अपनी ससुराल लौट जाना था. रक्षाबंधन 10 अगस्त को था. 3 अगस्त को जब वह घर में मां के साथ कामकाज में हाथ बंटा रही थी, तभी उस के मोबाइल की घंटी बजी. वह काम छोड़ कर कमरे में गई और मेज पर रखे मोबाइल को उठा कर देखा. फोन उस के पति बाबूराम का था. उस ने तुरंत काल रिसीव की.

उस के हैलो कहते ही बाबूराम की आवाज सुनाई दी, ‘‘नीलम, तुम दातागंज आ जाओ, मैं तुम्हें गोपालसिद्ध का मेला दिखा कर लाऊंगा.’’

नीलम ने बहाना बना कर उसे टालना चाहा तो बाबूराम बोला, ‘‘देखो नीलम, ऐसा मौका बारबार नहीं आएगा, इसलिए आ जाओ. मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’ बाबूराम ने अधिकार भरे शब्दों में अपनी बात कह कर जगह बता दी और फोन काट दिया.

नीलम को बाबूराम पर बिलकुल भरोसा नहीं था. 3 महीने में वह उसे जितना जान पाई थी, उस से उसे लगता था कि बाबूराम उसे पसंद नहीं करता. लेकिन वह उस का पति था और जिद कर रहा था, इसलिए जाना उस की मजबूरी थी.

उस ने अपनी मां को बताया और फिर अपनी छोटी बहन संगीता को साइकिल पर बैठा कर दातागंज चली गई.

जब देर शाम होने पर भी नीलम संगीता के साथ वापस नहीं लौटी तो उस की मां को चिंता हुई. मां ने यह बात अपने पति हरभजन को बताई तो उन्होंने नीलम और संगीता की खोजबीन शुरू की. नीलम की ससुराल में फोन कर के पता किया तो वे दोनों वहां भी नहीं गई थीं. बाबूराम भी घर पर नहीं था.

हरभजन का परिवार बदायूं जिले के थाना दातागंज क्षेत्र के गांव केशोपुर में रहता था. उस की 2 बेटियां थीं और 2 बेटे. जब दो दिनों तक खोजबीन करने के बाद भी बेटियों का कोई सुराग नहीं मिला तो उस ने थाना दातागंज में बाबूराम के विरुद्ध भादंवि की धारा 364 के तहत अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया. बाबूराम के खिलाफ रिपोर्ट इसलिए लिखाई, क्योंकि उसी ने फोन कर के नीलम को दातागंज बुलाया था.

दातागंज के थानाप्रभारी विपिन कुमार ने बाबूराम के बरेली के थाना कैंट क्षेत्र के गांव भऊवापुर स्थित घर पर दबिश दी तो वह घर पर नहीं मिला. इस पर विपिन कुमार ने बाबूराम के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया.

9 अगस्त को विपिन कुमार को बाबूराम के धौलाघाट पुल पर होने की सूचना मिली तो वह पुलिस टीम के साथ वहां जा पहुंचे. बाबूराम वहां मिल गया. पुलिस उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आई. थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उस ने अपनी पत्नी नीलम और साली की उन के ही दुपट्टे से गला घोंट कर हत्या कर दी थी और दोनों की लाशें ढका गांव में उस के मामा के गन्ने के खेत में पड़ी हैं.

ढका गांव दातागंज से 40 किलोमीटर की दूरी पर था और जिला बरेली के थाना विशारतगंज क्षेत्र में आता था. थानाप्रभारी विपिन कुमार अपनी टीम के साथ उसे ले कर विशारतगंज गए. वहां से वह स्थानीय पुलिस के साथ ढका गांव पहुंचे.

बाबूराम के मामा के खेत में खोजबीन की गई तो नीलम और संगीता की सड़ीगली लाशें कंकालनुमा हालत में मिलीं. पुलिस ने प्राथमिक काररवाई कर के दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

इस के बाद दातागंज पुलिस बाबूराम को ले कर थाने आ गई. थाने में पूछताछ के दौरान बाबूराम ने हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, वह नाजायज रिश्ते को अपनी जिंदगी समझने वाले एक शख्स के खूनी खेल की कहानी थी, जिस में उस का शिकार बनीं उस की जीवनसंगिनी और निर्दोष साली.

महानगर बरेली के थाना के क्षेत्र के गांव भऊवापुर निवासी खंजनलाल किसान का सब से छोटा बेटा था बाबूराम. पेशे से किसान हरभजन के पास सात बीघा जमीन थी. उसी से उस के पूरे परिवार का भरणपोषण होता था.

बाबूराम ने इंटर तक पढ़ाई की थी. इस के बाद वह पिता के साथ खेती के काम में हाथ बंटाने लगा था. बाबूराम की ननिहाल बरेली के ढका गांव में थी. उस के मामा की 3 बेटियां थीं. जिन में गीता (परिवर्तित नाम) सब से बड़ी थी.

18 साल की गीता का यौवन खूब दमकता था, वह थी भी खूबसूरत. बाबूराम अकसर अपने मामा के घर आता रहता था. गीता से उस की खूब पटती थी. दोनों के बीच भाईबहन का रिश्ता था. बचपन से एकदूसरे के साथ खेले थे. इसलिए एकदूसरे से काफी घुलेमिले हुए थे.

जब दोनों जवान हुए तो बाबूराम को गीता की खूबसूरती कुछ अलग ही नजरिए से सुहाने लगी. रिश्ते की याद आती तो वह गीता पर से नजरें हटाने की कोशिश करता, लेकिन उस का दिल उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं देता था. बाबूराम ने बहुत कोशिश की कि वह रिश्ते की मर्यादा बनाए रखे, लेकिन दिल के मामले में उस का वश नहीं चला. वह कोशिश कर के हार गया.

बाबूराम ने महसूस किया कि वह गीता को चाहने लगा है. उस के दीदार से उस के दिल को सुकून मिलता है और आंखों को ठंडक. गीता जब उस के साथ नहीं होती तो उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. उस के बिना जीने की कल्पना करना भी बेइमानी है. लेकिन गीता का साथ पाने की उस की इच्छा तभी पूरी हो सकती थी, जब वह भी प्यार का जवाब प्यार से देती.

काफी सोचविचार के बाद बाबूराम ने फैसला किया कि वह गीता से अपने दिल की बात  जरूर कहेगा. गीता की वजह से बाबूराम अधिकतर अपनी ननिहाल में ही पड़ा रहता था. बराबर उस के संपर्क में रहने के कारण गीता भी उस के आकर्षण में बंध सी गई थी. बाबूराम के साथ रहने पर उसे भी दुनियादारी की सुध नहीं रहती थी.

एक दिन गीता अपने कमरे में बैठी हुई थी कि तभी बाबूराम आ गया. वह मन ही मन ठान कर आया था कि गीता से अपने दिल की बात जरूर कहेगा. वह उस के पास बैठते हुए बोला, ‘‘गीतू, आज मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या कहना चाहते हो, बताओ?’’ गीता ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मुझे डर है कि तुम मेरी बात सुन कर नाराज न हो जाओ.’’

‘‘पता तो चले, ऐसी क्या बात है, जिसे कहने से तुम इतना डर रहे हो?’’

‘‘गीतू, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं, क्या तुम मेरे प्यार को स्वीकार करोगी?’’ बाबूराम ने गीता का हाथ अपने हाथ में ले कर एक ही झटके में बोल दिया.

‘‘क्या…?’’ सुन कर गीता चौंक पड़ी. उसे एकाएक अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ.

‘‘हां गीतू, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘ये कैसी बातें कर रहे हो? तुम अच्छी तरह जानते हो, हमारे बीच भाईबहन का रिश्ता है.’’

‘‘गीतू, मैं ने कभी भी तुम्हें बहन की नजर से नहीं देखा. मुझे अपने प्यार की भीख दे दो. मैं तुम्हारे लिए पूरी दुनिया से लड़ जाऊंगा.’’

‘‘हम समाज की नजर में भाईबहन हैं, जब लोगों को पता चलेगा तो वे हमें कभी एक नहीं होने देंगे. तुम किसकिस से लड़ोगे?’’

‘‘मुझे किसी की फिक्र नहीं है. बस, तुम एक बार हां कह दो.’’

‘‘ठीक है, तुम इतना कह रहे हो तो मैं इस बारे में सोचने के बाद जवाब दूंगी.’’ गीता ने उसे टालने के लिए कहा.

‘‘ठीक है, कल सुबह मुझे बरेली जाना है, शाम तक लौट आऊंगा. तब तक तुम सोच लेना और मुझे अपना जवाब बता देना. कोशिश करना तुम्हारा जवाब मेरे हक में हो.’’ कह कर बाबूराम कमरे से बाहर चला गया.

रात को खाना खाने के बाद गीता जब सोने के लिए बिस्तर पर लेटी तो नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उस के कानों में बाबूराम के शब्द गूंज रहे थे. उस ने अपने दिल में झांकने की कोशिश की तो उसे लगा कि वह भी जानेअनजाने में बाबूराम से प्यार करती है, लेकिन भाईबहन के रिश्ते के भय से अपने प्यार का इजहार नहीं कर पा रही है.

अब जब बाबूराम प्यार की बात कर रहा है तो उसे पीछे नहीं हटना चाहिए. जिंदगी में सच्चा प्यार हर किसी को नहीं मिलता. ऐसे में वह बाबूराम के प्यार को क्यों ठुकराए? काफी सोचविचार कर उस ने फैसला कर लिया कि उसे क्या करना है.

अगले दिन की सुबह गीता के लिए कुछ अलग ही थी, बाबूराम के प्यार में डूबी हुई. वह खोईखोई सी थी, लेकिन किसी को भनक तक नहीं लगी कि उस के दिमाग में क्या चल रहा है. उधर उस दिन गीता को बेसब्री से बाबूराम के लौटने का इंतजार था.

बाबूराम रात को लगभग 9 बजे घर लौटा और घर के लोगों से मिल कर गीता के कमरे में आ गया. उस ने आते ही गीता से पूछा, ‘‘गीतू, जल्दी बताओ, तुम ने क्या फैसला लिया?’’

‘‘बाबू, मैं ने रात भर काफी सोचा और फैसला लिया कि…’’ गीता ने अपनी बात बीच में ही रोक दी.

यह देख बाबूराम के दिल की धड़कन तेज हो गई, वह उत्सुकतावश गीता का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘बोलो गीतू, मेरी जिंदगी तुम्हारे फैसले पर ही टिकी है. तुम्हारे इस तरह चुप हो जाने से मेरा दिल बैठा जा रहा है.’’

बाबूराम की हालत देख कर गीता एकाएक खिलखिला कर हंस पड़ी. उसे इस तरह हंसते देख कर बाबूराम ने उस की ओर सवालिया निगाहों से देखा तो वह बोली, ‘‘मेरा फैसला तुम्हारे हक में है.’’

यह सुन कर बाबूराम खुशी से झूम उठा और उस ने गीता को बांहों में भर लिया. गीता खुद को उस से छुड़ाते हुए बोली, ‘‘अपने ऊपर काबू रखो. अगर किसी ने हमें इस तरह देख लिया तो कयामत आ जाएगी. हमारा प्यार शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगा.’’

‘‘क्या करूं गीतू, तुम्हारा फैसला सुन कर मैं पागल सा हो गया था.’’

‘‘ठीक है, लेकिन लोगों की नजर में हम भाईबहन हैं, इसलिए वे हमारी शादी नहीं होने देंगे.’’

‘‘हमारी शादी जरूर होगी और कोई भी हमें नहीं रोक पाएगा, लेकिन यह तो बाद की बात है. वैसे हमारे बीच जो भाईबहन का रिश्ता है, यह एक तरह से अच्छा ही है, इस से हम पर कोई जल्दी शक नहीं करेगा.’’

गीता भी बाबूराम की बात से सहमत हो गई. और फिर उस दिन से दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों एक साथ घूमने और फिल्में देखने जाने लगे.

बाबूराम और गीता मामाफूफा के बेटाबेटी होने की वजह से भाईबहन लगते थे. ऐसे में दोनों के बीच जो कुछ भी चल रहा था, उसे प्यार नहीं कहा जा सकता, दोनों बालिग थे, इसलिए नासमझी भी नहीं. बहरहाल उन के बीच पक रही खिचड़ी की खुशबू बाहर पहुंची तो लोग तरहतरह की बातें करने लगे.

धीरेधीरे यह खबर दोनों के घर वालों तक पहुंच गई. सच्चाई का पता लगते ही दोनों घरों में कोहराम मच गया. परिवार के लोगों ने एक साथ बैठ कर दोनों को समझाया, रिश्ते की दुहाई दी, लेकिन उन दोनों पर कोई असर नहीं हुआ. हालांकि घर वालों के सामने दोनों ने उन की हां में हां मिलाई और एकदूसरे से न मिलने का वादा किया.

उस वादे को दोनों ने कुछ दिनों के लिए निभाया भी, लेकिन कुछ दिनों बाद वे दोनों फिर मिलने लगे. ऐसे में बाबूराम के पिता ने उस की शादी करा देने का निर्णय लिया. शादी भी ऐसी कि चट मंगनी पट ब्याह. भऊवापुर गांव के ही एक परिचित ने उन्हें बदायूं जिले के गांव केशोपुर निवासी हरभजन की बेटी नीलम के बारे में बताया. यह बताने वाला परिचित हरभजन का एक रिश्तेदार था.

नीलम को घर में पूनम के नाम से बुलाते थे. वह दातागंज के चिरौंजी लाल इंटर कालेज में इंटर की छात्रा थी. नीलम बहुत ही सरल व शांत स्वभाव की युवती थी. वह बालिग हो चुकी थी. इसलिए उस के पिता को उस के विवाह की चिंता सताने लगी थी.

जब नीलम के लिए बाबूराम का रिश्ता आया तो वह मना नहीं कर सका. उस के बाद सब कुछ इतना जल्दी तय हुआ कि उसे इतना वक्त नहीं मिला कि बाबूराम और उस के परिजनों के बारे में कुछ पता लगा सके. बाबूराम के घर वाले तो कुछ जानना ही नहीं चाहते थे. वह तो जल्द से जल्द उस की शादी कर के उसे बंधन में बांधना चाहते थे, जिस से वह गीता से सारे रिश्ते तोड़ दे.

रिश्ता तय होने के बाद इसी साल 16 मई को दोनों का विवाह हो गया. नीलम मायके से विदा हो कर अपनी ससुराल आ गई. लेकिन बाबूराम ने उस में कोई रुचि नहीं दिखाई. बाबूराम पर तो गीता की दीवानगी छाई हुई थी. वह किसी हाल में उस से अलग होना नहीं चाहता था.

वह अपनी शादी होने से तो नहीं रोक पाया, लेकिन शादी के बावजूद वह नीलम को अपनी जिंदगी की जीनत नहीं बनाना चाहता था. इसीलिए वह उस के साथ बेरुखी से पेश आने लगा. वह बातबात पर उस पर चिल्ला पड़ता, उस से उलटासीधा बोलता. उस की हरकतों से नीलम समझ गई कि वह उसे पसंद नहीं करता. जरूर उस ने किसी मजबूरी के तहत उस ने विवाह किया है.

दूसरी ओर बाबूराम गीता से मिला तो उस ने नाराजगी जताई और याद दिलाया कि उस ने हमेशा उसी का रहने का वादा किया था. कोई भी उन के बीच नहीं आएगा, वह अपने वादे को कैसे भूल गया. इस पर बाबूराम ने उस से कहा कि वह अपने वादे को नहीं भूला है. उस के अलावा वह किसी और को अपनी जिंदगी नहीं बना सकता. लेकिन जब गीता ने नीलम को अपने रास्ते का रोड़ा बताया तो बाबूराम ने उस ने कहा कि वह इस रोड़े को हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटा देगा.

इस के बाद बाबूराम ने नीलम की हत्या की साजिश रचनी शुरू कर दी. सावन में जब नीलम अपने मायके आई तो बाबूराम ने अपनी साजिश को अंजाम देने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने अपनी प्रेमिका के ही गांव और उस के पिता के खेत को ही नीलम का मृत्युस्थल चुना.

3 अगस्त को बाबूराम ने नीलम को फोन कर के कहा कि वह दातागंज आ जाए. वह उस को गोपालसिद्ध का मेला दिखाने के लिए साथ ले जाएगा. नीलम ने आनाकानी की, लेकिन बाबूराम नहीं माना. नीलम को उस पर भरोसा पहले से ही नहीं था, इसलिए उस ने अपनी बहन संगीता को साथ लिया और उसे साइकिल पर बैठा कर दातागंज पहुंच गई.

वहां पहले से तय जगह पर बाबूराम उसे इंतजार करता मिला. वह दहेज में मिली बाइक से आया था. नीलम की साइकिल एक जगह खड़ी करवा कर बाबूराम दोनों बहनों को बाइक पर बैठा कर मेला दिखाने ले गया.

जब शाम होने लगी तो वह उन दोनों को बाइक पर साथ ले कर दातागंज से 40 किलोमीटर दूर ढका गांव की ओर चल दिया. नीलम ने पूछा तो उस ने कहा कि उसे जरा मामा से काम है. इस बहाने वह मामा व अन्य घर वालों से मिल लेगी. उस के इस जवाब से नीलम चुप हो गई.

बाबूराम ने अपने मामा के गन्ने के खेत पर जा कर बाइक रोकी और नीलम को खेत दिखाने के बहाने साथ ले कर खेत के अंदर चला गया. नीलम उस वक्त सलवार कुरता पहने थी. उस ने अपना दुपट्टा गले में लटका रखा था. खेत के अंदर जा कर बाबूराम ने उसी दुपट्टे से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. वह बेचारी चीख भी न सकी.

इस के बाद वह खेत से निकल कर बाहर आया और संगीता से कहा कि उस की बहन अंदर गिर गई है और उस के पैर में काफी चोट आई है. यह सुन कर संगीता उस के साथ खेत के अंदर चली गई. अंदर पहुंचते ही बाबूराम ने पीछे से उसी के दुपट्टे से गला घोंट कर उस की भी हत्या कर दी.

संगीता की हत्या करना बाबूराम की मजबूरी थी, क्योंकि अगर वह उसे नहीं मारता तो वह सब कुछ अपने घर वालों को बता देती. इस तरह संगीता बहन के साथ बेवजह मारी गई.

दोनों बहनों की लाशों को वहीं पड़ा छोड़ कर बाबूराम अपने मामा के घर आ गया. वहां उस ने गीता को नीलम और संगीता की हत्या कर देने की बात बता दी. देर रात वह मामा के घर से निकल कर अपने घर पहुंचा. वहां उसे पता चला कि उस के ससुर हरभजन को पता है कि नीलम और संगीता उस के साथ गई थीं और वह उन के और उस के बारे में पूछ रहे थे. यह सुन कर बाबूराम को अपने पकड़े जाने का भय सताने लगा तो वह घर से फरार हो गया.

लेकिन बाबूराम के गुनाह ने उस का पीछा नहीं छोड़ा और अंतत: वह पुलिस की गिरफ्त में आ ही गया.

थानाप्रभारी विपिन कुमार ने इस केस में भादंवि की धारा 302/201 और बढ़ा दी. प्राथमिक कानूनी  काररवाई पूरी कर के पुलिस ने बाबूराम को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

मैं अपने से 8 साल छोटे लड़के से शादी करना चाहती हूं, क्या ये करना सही होगा?

सवाल

मैं 50 वर्षीय विधवा हूं और एक सरकारी विभाग में क्लर्क हूं. पति की मौत को अभी एक साल भी नहीं हुआ हेै. मैं उम्र में अपने से 8 साल छोटे अविवाहित व्यक्ति से प्यार करने लगी हूं.  हम दोनों के बीच कई बार शारीरिक संबंध भी बन चुके हैं और मैं उससे शादी भी करना चाहती हूं. ससुराल व मायके वालों से मेरे संबंध औपचारिक हैं. मेरी दो बेटियां क्रमश 21 और 19 साल की हैं बड़ी बेटी शहर में इंजीन्यंरिंग की पढ़ाई कर रही है जबकि छोटी मेरे साथ रहती है .

मेरी एक नहीं बल्कि कई समस्याएं हैं, क्या मेरी बेटियां मेरी दूसरी शादी बर्दाश्त कर सकेंगी.  मेरे अपने पति से संबंध अच्छे नहीं थे क्योंकि वह निकम्मा और शराबी था और उसे लेकर बेटियां भी मेरे पक्ष में रहती थीं. दूसरी समस्या यह है की मैं अपने प्रेमी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती हूं  सिवाय इसके कि वह दुनिया में अकेला है और कुछ खास नहीं करता है.  वह छोटा मोटा लेखक है पत्र पत्रिकाओं में अपनी कुछ छपी रचनाएं भी उसने मुझे दिखाई हैं लेकिन छह महीनों में मैंने महसूस किया है कि वह काफी अच्छा इंसान है जो  मेरी भावनाओं की कद्र करता है और  बेटियों का पिता जैसा ही ख्याल रखेगा मुझसे भी वह बहुत प्यार करता है. जाने क्यों कभी कभी मुझे लगता है कि काफी कुछ जल्दबाज़ी मैंने कर दी है मुझे उसके बारे में और जानना चाहिए लेकिन वह कहता है कि जो है वो तुम्हें बता दिया है. अगर शादी करने में कोई हिचक हो तो मत करो मैं तो ज़िंदगी भर तुम्हें प्यार करता रहूंगा कृपया बताएं कि क्या करूं ?

जवाब

आपने वाकई में जल्दबाजी तो कर दी है. खासतौर से अपने प्रेमी के बारे में बगैर कुछ जाने समझे उससे शारीरिक संबंध बना डाले हैं. किसी के स्वभाव का आकलन इतनी जल्दबाज़ी में करना ठीक नहीं कि वह अच्छा इंसान है.  लगता ऐसा है कि आप अपने आप को तसल्ली दे रही हैं. जबकि अंदर से आप भयभीत हैं जिसकी वजह शारीरिक संबंध ही हैं निश्चित रूप से इनके न सही आपके प्यार के अंतरंग क्षणों के कुछ प्रमाण तो उसके मोबाइल में कैद होंगे.

समस्या को सिलसेवार देखें तो साफ होता है कि आपके पति के साथ आपकी पटरी नहीं बैठी इसलिए आप उसमें भावनात्मक, सामाजिक, आर्थिक या कोई दूसरा सहारा नहीं देख या ले पाई. इसलिए आप एक ऐसे आदमी की तरफ आकर्षित हो गईं.  जिसमें वे एब नहीं हैं जिनसे आप लंबे वक्त से दुखी और परेशान रहीं थीं लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं कि आपके प्रेमी की  नजर भी आपकी मोटी पगार पर नहीं होगी. मुमकिन यह भी है कि उसने षड्यंत्रपूर्वक तरीके से आपके इर्द गिर्द एक जाल बुना और आप जाने अनजाने में उसमें फंसती चली गईं और अब आपको लग रहा है कहीं आपने गलती तो नहीं कर दी.

पैरों का फैट कम करने के लिए अपनाएं ये 6 टिप्स

मोटापा लोगों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. मोटापा कम करने के लिए लोग तरह तरह के इलाज करवाते हैं. आपको बता दें, मोटापा भी कई तरह का होता है. कई बार पूरा शरीर फैट के चपेट में आ जाता है. तो कभी शरीर के कुछ हिस्से, जैसे शरीर का उपरी हिस्सा या नीचे का हिस्सा मोटा  जाता है.

इस खबर में आपको बताएंगे कि आप शरीर के निचले हिस्से में बढ़ रहे फैट से कैसे छुटकारा पा सकते हैं. हमारे बताए कुछ स्मार्ट टिप्स आपको इस परेशानी से आजादी देंगे. तो आइए जानते हैं इन ट्रिक्स के बारे में.

  1. लो कार्बोहाइड्रेट

अधिक कार्बोहाइड्रेट लेने से शरीर के कई जरूरी हिस्सों में, जैसे मांसपेशियों में, लिवर में पानी भर जाता है जिससे आप अधिक वेट महसूस करते हैं. लो कार्बोहाइड्रेट का सेवन शरीर के लिए काफी अच्छा होता है इससे इससे वाटर वेट निकल जाता है.

2. खूब पिएं पानी

वेटलौस के लिए जरूरी है कि आप हाइड्रेटेड रहें. ज्यादा पानी पीने से आपके शरीर से एक्स्ट्रा साल्ट निकल जाता है.

3. कम करें नमक का सेवन

आमतौर पर नमक को संतुलित मात्रा में सेवन करने की बात लोगों के दिमाग में जल्दी नहीं आती. पर जिस तरह से चीनी का अधिक सेवन सेहत पर नकारात्मक असर डालता है, नमक भी आपके लिए काफी हानिकारक हो सकता है. इस रोग के मरीजों को तुरंत नमक का सेवन कम करना चाहिए. ऐसा करने से जल्दी ही उन्हें शरीर में बदलाव महसूस होगा.

4. कार्डियो में मदद

वजन कम करने के लिए लोग तरह तरह के एक्सरसाइज करते हैं. पर क्या आपको पता है कि एक्सरसाइज से अधिक असरदार कार्डियो होता है. जौगिंग, रनिंग और रस्सी कूदने जैसी चीजें इसमें काफी कारगर हैं.

5. चाय कौफी को कहें ना

चाय या कौफी का सेवन कम कर दें. इनसे दिन की शुरुआत करने से सेहत का काफी नुकसान होता है. इसकी जगह पर आप जीरा पानी, सौंफ पानी का सेवन कर सकते हैं. फैट कम करने में काफी लाभकारी होते हैं.

6. फ्लूड बैलेंस

शरीर में फ्लूड का बैलेंस रहना बेहद जरूरी है. इसके लिए जरूरी है कि आप ऐसे खआद्य पदार्थों का सेवन करें जिनमें पानी की मात्रा अधिक हो. जैसे हरी साग सब्जियां, फल, दही आदि का सेवन काफी लाभकारी होगा. इन चीजों से आपको कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम मिलता है.

मर्यादा : मर्दों की फितरत जान कर फायदा उठाना स्वाति खूब जान गई थी

रात के 12 बज रहे थे, लेकिन स्वाति की आंखों में नींद नहीं थी. वह करवटें बदल रही थी. उस की बगल में लेटा पति वरुण गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था. स्वाति दिन भर की थकान के बाद भी सो नहीं पा रही थी. आज का घटनाक्रम बारबार उस की आंखों में घूम रहा था. आज ऐसा कुछ हुआ कि वह कांप कर रह गई. जिसे वह सिर्फ खेल समझती थी वह कितना गंभीर हो सकता है, उसे इस बात का भान नहीं था. वह मर्दों से हलकाफुलका मजाक और फ्लर्टिंग को सामान्य बात समझती थी. स्वाति अपनी फ्रैंड्स और रिश्तेदारों से कहती थी कि उस की मार्केट में इतनी जानपहचान है कि कोई भी सामान उसे स्पैशल डिस्काउंट पर मिलता है.

स्वाति फोन पर अपने मायके में भाभी से कहती कि आज मैं ने वैस्टर्न ड्रैस खरीदी. इतनी बढि़या और अच्छे डिजाइन में बहुत सस्ती मिल गई. मैं ने साड़ी बिलकुल नए कलर में खरीदी. 1000 की है पर मुझे सिर्फ 500 में मिल गई. डायमंड रिंग अपनी फ्रैंड से और्डर दे कर बनवाई. ऐसी रिंग 2 लाख से कम नहीं, परंतु मुझे 11/2 लाख में मिल गई. भाभी की नजरों में स्वाति की छवि बहुत ही समझदार और पारखी महिला के रूप में थी. वह जब भी कोई सामान खरीद कर भेजने को कहती, स्वाति खुशीखुशी भिजवा देती. पूरे परिवार में उस के नाम का डंका बजता था.

स्वाति आकर्षक नैननक्श वाली पढ़ीलिखी महिला थी. बचपन से ही उसे खरीदारी का बेहद शौक था. लाखों रुपए की खरीदारी इतने कम दाम और चुटकियों में करती कि हर कोई हैरान रह जाता. स्वाति का मायका मिडल क्लास फैमिली से था. 15 साल पहले एक बड़े उद्योगपति परिवार में उस की शादी हुई. शादी भले ही करोड़पति घर में हो गई, लेकिन संस्कार वही मिडल क्लास फैमिली वाले ही थे. 1-1 पैसे की कीमत वह जानती थी. घर खर्च में पैसा बचाना और उस पैसे से स्वयं के लिए खरीदारी करने में उसे बहुत मजा आता. पति से भी पैसे मारना स्वाति को अच्छा लगता था. अच्छे संस्कार, पढ़ीलिखी और समझदार स्वाति को एक बात बड़ी आसानी से समझ आ गई थी कि पुरुषों की कमजोरी क्या है. कैसे कम रेट पर खरीदारी करनी है. वह उस दुकान या शोरूम में ही खरीदारी करती जहां पुरुष मालिक होते. वह सेल्समैन से बात नहीं करती. सेल्समैन से वह कहती, ‘‘आप तो सामान दिखा दो, रेट मैं अपनेआप भैया से तय कर लूंगी.’’

और जब हिसाबकिताब की बारी आती, तो वह सेठ की आंखों में आंखें डाल कर कहती, ‘‘भैया सही रेट बताओ. आज की नहीं 10 सालों से आप की शौप पर आ रही हूं.’’

‘‘भाभी, आप को रेट गलत नहीं लगेगा, क्यों चिंता करती हैं?’’ सेठ कहता.

‘‘नहीं, इस बार ज्यादा लगा रहे हो. मुझे तो स्पैशल डिस्काउंट मिलता है, आप की शौप पर,’’ कहते हुए स्वाति काउंटर पर खड़े सेठ के हाथों को बातोंबातों में स्पर्श करती या फिर कहती, ‘‘भैया, आप तो मेरे देवर की तरह हो. देवरभाभी के बीच रुपएपैसे मत लाओ न.’’

अकसर दुकानदार स्वाति की मीठीमीठी बातों में आ कर उसे 10-20% तक स्पैशल डिस्काउंट दे देते थे. एक ज्वैलर से तो स्वाति ने जीजासाली का रिश्ता ही बना लिया था. ज्वैलरी आमतौर पर औरतों की कमजोरी होती है, स्वाति की भी कमजोरी थी. वह अकसर इस ज्वैलर के यहां पहुंच जाती. क्याक्या नई डिजाइनें आई हैं, देखने जाती तो कुछ न कुछ पसंद आ ही जाता. तब जीजासाली के बीच हंसीमजाक शुरू हो जाता.

स्वाति कहती, ‘‘साली आधी घरवाली होती है जीजाजी, इतने ही दूंगी.’’

ज्वैलर स्वाति का स्पर्शसुख पा कर निहाल हो जाता. उस के मन में स्पर्श को आगे बढ़ाने की प्लानिंग चलती रहती, पर स्वाति थी कि काबू में ही नहीं आती थी. सामान खरीदा और उड़न छू. उस दिन भतीजी की शादी के लिए सामान व ज्वैलरी खरीदने स्वाति ज्वैलर के यहां पहुंच गई. उसे भाभी ने बताया था कि क्याक्या खरीदना है.

स्वाति ने घर से निकलने से पहले ही ज्वैलर को फोन किया, ‘‘भतीजी की शादी के लिए ज्वैलरी खरीदने आ रही हूं. आप अच्छीअच्छी डिजाइनों का चयन करा कर रखना. मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं होगा.’’

‘‘आप आइए तो सही साली साहिबा. आप के लिए सब हाजिर है,’’ ज्वैलर ने कहा. ज्वैलरी की यह दुकान कोई बड़ा शोरूम नहीं था, लेकिन वह खुद अच्छा कारीगर था और और्डर पर ज्वैलरी तैयार करता था. शहर की एक कालोनी में उस की दुकान थी जहां कुछ खास लोगों को और्डर पर तैयार ज्वैलरी भी दिखा कर बेच देता था और और्डर देने वाले को कुछ दिन बाद सप्लाई दे देता. स्वाति की एक फ्रैंड रजनी ने उस ज्वैलर्स से उस की मुलाकात कराई थी. लेकिन रजनी कभी यह बात समझ नहीं पाई थी कि आखिर यह ज्वैलर स्वाति पर इतना मेहरबान क्यों रहता है. उसे नईनई डिजाइनें दिखाता है और अतिरिक्त डिस्काउंट भी देता है.

‘‘जीजाजी, कुछ और डिजाइनें दिखाओ. ये तो मैं ने पिछली बार देखी थीं,’’ स्वाति ने ज्वैलर की आंखों में झांकते हुए कहा.

स्वाति को ज्वैलर की आंखों में शरारत नजर आ रही थी. वह बारबार सहज होने की कोशिश कर रहा था. अपनी आदत के मुताबिक स्वाति ने बातोंबातों में ज्वैलर के हाथों पर इधरउधर स्पर्श किया. उस का यह स्पर्श ज्वैलर को बेचैन कर रहा था. उस ने भी स्वाति की हरकतें देख हौसला दिखाना शुरू कर दिया. वह भी बातोंबातों में स्वाति के हाथों पर स्पर्श करने लगा. यह स्पर्श स्वाति को कुछ बेचैन कर रहा था, लेकिन वह सहज रही. उसे कुछ देर की हरकतों से स्पैशल डिस्काउंट जो लेना था. स्वाति ने देखा कि आज दुकान पर सिर्फ एक लड़का ही हैल्पर के तौर पर काम कर रहा था बाकी स्टाफ न था. ज्वैलर ने उसे एक सूची थमाते हुए कहा कि यह सामान मार्केट से ले आओ. और जाने से पहले फ्रिज में रखे 2 कोल्ड ड्रिंक खोल कर दे जाओ.’’

‘‘आप और नई डिजाइनें दिखाइए न,’’ स्वाति ने कहा.

‘‘हां, अभी दिखाता हूं. कल ही आई हैं. आप के लिए ही रखी हुई हैं अलग से.’’

‘‘तो दिखाइए न,’’ स्वाति ने चहकते हुए कहा.

‘‘आप ऐसा करें अंदर वाले कैबिन में आ कर पसंद कर लें. अभी अंदर ही रखी हैं… लड़का भी जा चुका है तो…’’

स्वाति ने देखा लड़का सामान की सूची ले कर जा चुका था. अब दुकान पर सिर्फ ज्वैलर और स्वाति ही थे. स्वाति को एक पल के लिए डर लगा कि अकेली देख ज्वैलर कोई हरकत न कर दे. वह ऐसा कुछ चाहती भी नहीं थी. वह तो सिर्फ कुछ हलकीफुलकी अदाएं दिखा कर दुकानदारों से फायदा उठाती आई थी. आज भी ऐसा कुछ कर के ज्वैलर से स्पैशल डिस्काउंट लेने की फिराक में थी. उस की धड़कनें बढ़ रही थीं. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी खरीदारी कर के निकल ले. उस का दिमाग तेजी से काम कर रहा था कि क्या करे. वह अपनेआप को संभाल कर कैबिन में ज्वैलरी देखने घुस गई. उस ने अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए कहा, ‘‘जीजाजी, आज कुछ सुस्त लग रहे हो क्या बात है?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘कोई तो बात है, मुझ से छिपाओगे क्या?’’

‘‘आप नैकलैस देखिए, साथसाथ बातें करते हैं,’’ ज्वैलर ने कहा. स्वाति गजब की सुंदर लग रही थी. वह बनठन कर निकली थी. ज्वैलर के मन में हलचल थी जो उसे बेचैन कर रही थी. उस ने सोचा कि हिम्मत दिखाई जा सकती है. अत: उस ने स्वाति के हाथ को स्पर्श किया तो वह सहम गई. लेकिन उस ने सोचा कि अगर थोड़ा छू लिया तो उस से क्या फर्क पड़ेगा. स्वाति के रुख को देख ज्वैलर का हौसला बढ़ गया. उस ने स्वाति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा. ज्वैलर की इस आकस्मिक हरकत से वह हड़बड़ा गई.

‘‘क्या कर रहे हो?’’ स्वाति ने हाथ छुड़ाते हुए कहा.

ज्वैलर ने अपनी हरकत जारी रखी. स्वाति घबरा गई. ज्वैलर की हिम्मत देख दंग रह गई वह. मर्दों की कमजोरी का फायदा उठाने की सोच उसे भारी पड़ती नजर आ रही थी. वह कैसे ज्वैलर के चंगुल से बचे, सोचने लगी. फिर उस ने हिम्मत दिखाई और ज्वैलर के गाल पर थप्पड़ों की बारिश कर दी. स्वाति क्रोध से कांप रही थी. उस का यह रूप देख ज्वैलर हड़बड़ा गया. इसी हड़बड़ी में वह जमीन पर गिर गया. स्वाति के लिए यही मौका था कैबिन से बाहर निकल भागने का. अत: वह फुरती दिखाते हुए तुरंत कैबिन से बाहर निकल अपनी कार में जा बैठी. फिर तुरंत कार स्टार्ट कर वहां से चल दी. उस के अंदर तूफान चल रहा था. उसे आत्मग्लानि हो रही थी. लंबे समय से स्वाति जिसे खेल समझती आ रही थी, वह कितना गंभीर हो सकता है, उस ने यह कभी सोचा भी नहीं था.

फैसला हमारा है : प्यार की परिभाषा बदलती प्रिया की प्रेम कहानी

story in hindi

और्डर : नेहा ने दूसरों की खुशी के लिए क्या दिया था त्याग ?

‘‘सुनो, मुझे नया फोन लेना है. काफी टाइम हो गया इस फोन को. मैं ने नया फोन औनलाइन और्डर कर दिया है,’’ सुबह औफिस के लिए तैयार होते हुए मैं ने समीर से कहा.

‘‘हांहां, ले लो भई, लिए बिना तुम मानोगी थोड़ी. वैसे, इस फोन का क्या करोगी? इतना महंगा फोन है. बजट है इतना तुम्हारा कि तुम नया फोन अभी ले सको,’’ समीर ने नेहा से हंसते हुए कहा.

‘‘यह बेच कर 4-5 हजार रुपए और डाल कर नया ले लूंगी. तुम से कोई पैसा नहीं लूंगी, बेफिक्र रहो. अच्छा, सुनो, शाम को मुझे मां की तरफ जाना है, इसलिए आज थोड़ा लेट हो जाऊंगी. तुम वहीं से मुझे पिक कर लेना,’’ यह कह कर मैं जल्दी से घर से निकल ली.

औफिस से हाफ डे ले कर मां के घर पहुंची. मां के साथ खाना खा मैं बालकनी में आ कर खड़ी हो गई. मां के यहां बालकनी से बहुत ही खूबसूरत नजारा देखने को मिलता था. चारों ओर हरियाली और चिडि़यों की चहचहाहट. तभी मां भी चाय ले कर वहीं आ गईं. चाय पीतेपीते दूर से एक बुजुर्ग से अंकलजी आते हुए दिखे.

‘‘मां, ये अंकल तो जानेपहचाने से लग रहे हैं. देखो जरा, कौन हैं?’’

‘‘अरे, इन्हें नहीं पहचाना. गुड्डू के पापा ही तो हैं. गुड्डू तो अब विदेश चला गया न. ये यहीं नीचे वाले फ्लैट में अकेले रहते हैं. गुड्डू की मां तो रही नहीं और बहन भी कहीं बाहर ही रहती है,’’ मां ने बताया.

गुड्डू और मैं बचपन में एकसाथ खेलते हुए बड़े हुए थे. लेकिन मैं गुड्डू से ज्यादा नहीं बोलती थी. वैसे, बहुत ही अच्छा लड़का था गुड्डू, सीधासादा, होशियार.

‘‘मां, मैं जरा मिल कर आती हूं अंकल से,’’ कह कर मैं अपना बैग उठा कर नीचे अंकल के घर को चल पड़ी.

‘‘ठीक है, पर बेटा, जरा जल्दी आना,’’ मां ने कहा.

दरवाजे पर घंटी बजाई. अंकल बाहर आए.

‘‘नमस्ते अंकल, पहचाना?’’

‘‘आओआओ बेटी. अच्छे से पहचाना. बैठो. बहुत टाइम बाद देखा. कहां हो आजकल? तुम्हारे मम्मीपापा से तो मुलाकात हो जाती है. बहुत ही अच्छे लोग हैं. खैर, सुनाओ कैसे हैं सब तुम्हारे घरपरिवार में,’’ अंकलजी बहुत खुश थे मुझे देख कर और लगातार बोले जा रहे थे.

‘‘सब बढि़या. आप बताइए. गुड्डू और दीदी कैसे हैं?’’

‘‘सब ठीक हैं, बेटी. दोनों ही बाहर रहते हैं. आना तो कम ही होता है दोनों का. अब तो बस फोन पर ही बात होती है,’’ अंकल बहुत ही रोंआसी आवाज में बोले.

‘‘क्या बात है अंकलजी, सब ठीक है न?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अब क्या बताऊं बेटे, कल रात फोन भी हाथ से छूट कर गिर गया और खराब हो गया,’’ मेरे हाथ में अपना फोन देते हुए अंकलजी बोले, ‘‘जरा देखना यह ठीक हो सकता है क्या? फोन के बिना मेरा गुजारा ही नहीं है. अब तो गुड्डू ही नया फोन भेजेगा.’’

‘‘अरे अंकलजी, गुड्डू को छोड़ें. फोन आने में तो बहुत टाइम लग जाएगा, तब तक आप परेशान थोड़े ही रहेंगे. यह लीजिए आप का फोन,’’ मैं ने बैग से निकाल कर अपना फोन अंकलजी के हाथ में दिया.

‘‘यह तो टचस्क्रीन वाला है. बहुत महंगा होता है यह तो. नहींनहीं, यह मैं नहीं ले सकता. मेरे लिए कोई पुराना सा फोन ही ला दो बेटे अगर ला सकती हो तो या इसी फोन को ठीक करवा कर दे देना. दोचार दिन काम चला लूंगा बिना फोन के,’’ अंकलजी बोले.

‘‘मैं ने आप की सिम इस में डाल दी है. यह लीजिए आप चला कर देखिए और आप का फोन ठीक कराने के लिए मैं ले जा रही हूं. अब आप इस फोन को बेफिक्र हो कर इस्तेमाल करिए.’’ अंकलजी ने झिझकते हुए मेरा फोन अपने हाथ में लिया और खुशी से चला कर देखने लगे. फोन हाथ में ले बच्चों की तरह खुश थे वे.

‘‘इस में गेम्स वगैरह भी खेल सकते हैं न? पर बेटे, गुड्डू मुझे बहुत डांटेगा. तुम रहने ही देतीं. मुझे मेरा फोन ठीक करवा कर दे देना,’’ अंकलजी थोड़ा घबराते हुए बोले.

‘‘अंकलजी, कभीकभी गुड्डू की जगह मुझ गुड्डी को भी अपना बेटा समझ कर अपनी सेवा करने दिया करें,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

‘‘जीती रहो बेटी, तुम ने मेरी सारी परेशानी खत्म कर दी,’’ अंकलजी खुशी से बोले.

‘‘अच्छा, मैं चलती हूं. मां इंतजार कर रही होंगी,’’ अंकलजी से बाय बोल कर मैं एक अलग ही अंदाज से घर पहुंची. मन में एक अनजानी संतुष्टि सी थी.

समीर शाम को लेने मां के घर पहुंचे और बोले, ‘‘बड़ी खुश लग रही हो आज मां से मिल कर.’’

मैं बस मुसकरा कर रह गई. घर पहुंच लैपटौप औन कर के नए फोन का और्डर कैंसिल कर दिया.

अंकलजी का फोन ठीक करवा कर अपने बैग में रख लिया. मन में एक खुशी थी. नए फोन की अब मुझे कोई ऐसी चाह नहीं थी.

धार्मिक घोषणाओं के सैलाब में बहता मध्यप्रदेश

मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में 15 मई को बुढ़ार ब्लौक के कोटा गांव के लक्ष्मण सिंह  अपनी 13 साल की बेटी माधुरी की तबीयत बिगड़ने पर इलाज के लिए जिला अस्पताल लेकर आए थे जहां उसकी मौत हो गई.अस्पताल में बेटी की मौत होने पर एक पिता को अपनी बाइक में रखकर बेटी का शव घर ले जाना पड़ाक्योंकि अस्पताल प्रशासन ने उसे शववाहन देने से मना कर दिया था.

मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोलने वाला यह इकलौता मामला नहीं है. आज भी गांवकसबों के अस्पताल बिना डाक्टर के चल रहे हैं. यही वजह है कि लोग इलाज न करा कर पूजापाठ और झाड़फूंक करवाने को मजबूर हो रहे हैं.

2023 के फरवरी महीने की बात करें तो मध्य प्रदेश के एक गांव में बीते 7 महीने से गांव के लोग अंधेरे में रहने को मजबूर थे. बिजली नहीं होने से गांव वालों को जो परेशानी हुई उस  परेशानी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. उसी समय बच्चों की परीक्षा का दौर चल रहा था और उनको चिरागतले पढ़ना पड़ रहा था. बिजली नहीं होने से किसानों की फसल सूख रही थी. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कर्मक्षेत्र विदिशा विधानसभा क्षेत्र के तहत कोठीचार खुर्द का गांव 7 महीने अंधेरे में डूबा रहा और मुखिया मंदिरों में भजन गाते रहे.

डिंडोरी जिले के करंजिया ब्लौक के सैलवार ग्राम पंचायत के बच टोला गांव का सरकारी प्राइमरी स्कूल इतना जर्जर हो चुका है कि छत पर प्लास्टिक पन्नी बांधकर 48 बच्चों को उसी भवन में बैठा कर शिक्षक पढ़ा रहे हैं. सरकार सर्व शिक्षा अभियान पर करोड़ों रुपए हर साल खर्च कर रही है जबकि सैकड़ों स्कूल जर्जर हालत में हैं.

सिवनी के छपारा ब्लौक के अंतर्गत आने वाले मुंडरई ग्राम पंचायत के सूखा गांव में म‌ई महीने में गरमी की दस्तक के साथ सूखे जैसे हालात हो चुके हैं. यहां के तालाबों में अभी से पानी पूरी तरह खत्म हो जाने से सूखा पड़ना शुरू हो गया है. गांव के लोगों को पानी के लिए दूर तक जाना पड़ रहा है.एक हजार की जनसंख्या वाले इस गांव में विगत कई वर्षों से पेयजल समस्या जस की तस बनी हुई है.

वहीं, सरकार से लेकर किसी प्रकार की मदद नहीं मिल पाती है, जिससे साल के 12 महीने गांव में पीने के पानी की किल्लत बनी रहती है. यही कारण है कि इंसानों के अलावा क्षेत्र के जानवर भी पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. इतना ही नहीं, गरमी के मौसम में हालात बेकाबू हो जाते हैं कि लोगों को मीलों दूर जंगल में जाकर वहां से पीने के पानी को लेकर आना पड़ता है. गरमी की शुरुआत होते ही ग्रामीणों की चिंताएं बढ़ने लगती हैं. फिलहाल गांव के ग्रामीण गांव से करीब एक किलोमीटर दूर जंगलों के बीच मौजूद एक कुएं से अपने संसाधनों से पानी लाने को मजबूर हैं.

ये मामले बताते हैं कि पिछले 20 सालों से मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज सरकार धार्मिक रंग में इस कदर डूबी हुई है कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में पूरी तरह नाकाम रही है. हां, भाजपा सरकार अपनी धार्मिक यात्राओं के साथ बड़ीबड़ी मूर्तियां स्थापित कर भोलीभाली जनता को भी भगवा रंग में रंगने में सफल रही है.

मध्यप्रदेश में 2003 से भाजपा सरकार सत्ता पर काबिज है.15महीनेकी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के अलग करने के बाद भी लगभग साढ़े 18साल का कार्यकाल पूरा होने वाला है पर विकास के नाम का केवल ढोल ही पीटा जा रहा है.

भाजपा सरकार के पूरे कार्यकाल को देखा जाए तो स्कूल, कालेज, अस्पताल खोलने के बजाय उस ने धार्मिक यात्राओं पर ज्यादा जोर दिया है. दरअसल, भगवा सरकार नहीं चाहती कि प्रदेश के नौजवान पढ़लिख कर काबिल बनें. सरकार के नुमाइंदे चाहते हैं कि पढ़ेलिखे नौजवान कांवड़यात्रा निकालें, दुर्गा पूजा, गणेश पूजा के साथ ढोंगी संत महात्माओं की कथा प्रवचन के कार्यक्रम आयोजित करें. सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान का यह कार्यकाल धार्मिक यात्राओं से भरा पड़ा है.

धार्मिक यात्राओं पर जोर

धर्मनिर्पेक्ष देश में भाजपा अपने कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे की वजह से ही सत्ता के सिंहासन पर पहुंची है. भाजपा के पुराने नेता लालकृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी रथयात्राएं निकाल चुके हैं.उन्हं के नक्शेकदम पर चल रहे शिवराज सिंह चैाहान भी एक कदम आगे चलकर धार्मिक कार्यक्रमों को ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं.

11 दिसंबर,2016 से शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक से नर्मदा सेवा यात्रा शुरू की थी जो लगभग 150 दिनों बाद म‌ई 2017 में खत्म हुई थी. प्रदेश के मुख्यमंत्री साल के आधे दिन इस यात्रा के दौरान पूजापाठ में लगे रहे और प्रदेश में कोई भी विकास कार्य नहीं हुआ. प्रदेश का सरकारी अमला उनकी यात्रा में हवन, पूजन, आरती और भंडारे में लगा रहा. यात्रा में पौधारोपण के नाम पर सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए खर्च किए गए.

नर्मदा संरक्षण के नाम पर हुई नर्मदा यात्रा में करोड़ों रुपए के घोटाले की बात भी उस समय चर्चा का विषय रही थी. कैग ने अपनी औडिट रिपोर्ट में यात्रा पर किए गए खर्च का ब्योरा नहीं मिलने पर आपत्ति जाहिर की थी. रिपोर्ट में बताया गया था कि नर्मदा यात्रा पर सरकारी खजाने से 21 करोड़ रुपए बिना अनुमति खर्च किए गए जिसमें से 18 करोड़ रुपए के खर्च का हिसाबकिताब ही गायब है. खर्च के लिए जन अभियान परिषद ने नियमों के तहत मंजूरी भी नहीं ली थी.

2 जुलाई,2017 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक ही दिन में 6 करोड़ पौधे लगाने का विश्व रिकौर्ड बनाया था और इस अभियान पर 400 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, पर इन पौधों में से कितने पौधे जीवित हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है.

शिवराज सरकार के इस पौधारोपण पर जब कंप्यूटर बाबा ने सवाल उठाया तो उन्हें मंत्री बना दिया गया था.दिसंबर2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही भाजपा सरकार के इस पौधारोपण अभियान पर फिर से सवाल उठाए गए थे. कांग्रेस सरकार में वन मंत्री उमंग सिंघार द्वारा आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्लू) को पत्र लिखकर जांच की मांग की गई थी. उन्होंने इस मामले में आरोप लगाया था कि नर्मदा नदी के किनारे 6 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगाकर विश्व रिकौर्ड बनाने के लिए 20 रुपए मूल्य के पौधों को 200 रुपए से ज्यादा कीमत पर खरीदा गया. फिर से भाजपा की सरकार प्रदेश में बन गई है तो यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

इसी तरह, शिवराज सिंह ने 19 दिसंबर,2018 से प्रदेश के 4 स्थानों- ओंकारेश्वर, उज्जैन, अमरकंटक और रीवा के पचमठा से एकसाथ एकात्म यात्रा शुरू की थी. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस यात्रा का उद्देश्य आदि शंकराचार्य की प्रतिमा के लिए धातु संग्रह करना है.2,175 किलोमीटर की यात्रा का समापन 22 जनवरी को ओंकारेश्वर में हुआ था.वहीं पर उन्होंने ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की 108 फुट की मूर्ति लगवाने की घोषणा की थी.

मुख्यमंत्री की इन धार्मिक यात्राओं में सरकारी अफसर भी पूरी तरह धार्मिक रंग में नजर आए थे. मंडला जिले में जब यह यात्रा पहुंची तो वहां की तत्कालीन कलैक्टर सूफिया फारूकी चरणपादुका अपने सिर पर उठा कर चलीं.

महाकाल लोक की स्थापना

प्रधानमंत्री के काशी विश्वनाथ मंदिर के कायाकल्प के बाद शिवराज सिंह चौहान ने भी  उज्जैन में महाकाल लोक बना डाला.11 अक्टूबर,2022 को उज्जैन में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकाल लोक कौरिडोर परियोजना के पहले चरण का उद्घाटन किया था. इस परियोजना की कुल लागत 856 करोड़ रुपए हैजिसमें पहले चरण 351 करोड़ रुपए में पूरा हुआ.

इसमें करोड़ों रुपए की सप्त ऋषियों की 10 से 25 फुट की मूर्तियां लगाई गई थीं. दरअसल, ऊंची मूर्तियां, लाल पत्थर और फाइबर रेनफोर्स प्लास्टिक से बनी हैं. इन पर गुजरात की एमपी बाबरिया फर्म से जुड़े गुजरात, ओडिशा और राजस्थान के कलाकारों ने कारीगरी की है.28 म‌ई,2023की शाम अचानक तूफानी हवाओं के चलते महाकाल लोक में बनी सप्तऋषियों की मूर्तियां जमीन पर गिर गईं तो कई मूर्तियों के हाथ और सिर टूट गए. इस तरह जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा पानी की तरह बह गया.

चुनावी साल में शिवराज सिंह चौहान फिर से सत्ता पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे. प्रदेश के धार्मिक स्थलों पर जाकर वहां ऊंचीऊंची मूर्तियां स्थापित करने की घोषणा कर रहे हैं. टीकमगढ़ जिले के ओरछा में ‘रामराजा लोक’ के नाम से रामराजा सरकार का भव्य मंदिर बनाने और नर्मदा परिक्रमा के लिए नर्मदा पथ बनाने की बात कह चुके हैं. उनके कहे अनुसार, 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर के विकास का दूसरा चरण का काम भी चुनावपूर्व शुरू हो जाएगा.

ओंकारेंश्वर में एकात्म धाम की स्थापना की जाएगी और सलकनपुर में महा देवी लोक का निर्माण कार्य होगा. इसके अलावा सलकनपुर, दतिया, भोजपुर, नलखेड़ा, देवास, पचमढ़ी,सांची, खजुराहो समेत क‌ई स्थानों पर बड़े प्लान और निर्माण कार्य जारी हैं. जिस भी धार्मिक कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री शरीक होते हैं, वहां पर एक लोक बनाने की घोषणा कर ही आते हैं. परशुराम की जन्मस्थली पर जाकर परशुराम लोक की स्थापना कर आए तो दतिया में पीताम्बर पीठ में जाकर पीताम्बर लोक बनाने का ऐलान कर दिया.

200 करोड़ का देवी लोक

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के सलकनपुर में करीब 30वर्ष पहले एक ऊंची पहाड़ी पर विजयासन देवी की मूर्ति एक टीनशैड में स्थापित थी. भाजपा सरकार बनते ही यहां भव्य मंदिर बन गया और अब शिवराज सिंह चौहान महाकाल लोक की तर्ज पर सलकनपुर में देवी लोक का निर्माण कराने जा रहे हैं.31 म‌ई को इसके लिए मुख्यमंत्री ने पूरे तामझाम के साथ इसकी शुरुआत कर दी है.

भव्य देवी लोक के निर्माण के लिए सरकारी खजाने से 200 करोड़ रुपए से अधिक की कार्ययोजना बनाई गई है. सरकार का मानना है कि देवी लोक के निर्माण के पश्चात धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. इसके साथ ही, इस क्षेत्र में पर्यटन पर आधारित आर्थिक गतिविधियों का भी विस्तार होगा. जगदगुरु आदि शंकराचार्य की प्रतिमा के निर्माण की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. मूर्ति बनाने के लिए प्रदेश की 23000 पंचायतों से पंच धातु इकट्ठा की गई थी. मुख्यमंत्री ने एकात्म यात्रा निकल कर 50 करोड़ रूपए मूल्य की पंच धातु सामग्री एकत्रित की थी.

मध्य प्रदेश सरकार ने भारत की एल एंड टी कंपनी को 198 करोड़ का मूर्ति बनाने का ठेका दिया था. एल एंड टी ने टीक्‍यू आर्ट फाउंड्री, चीन के नैनचांग में स्थित जियांग्‍जी टोक्‍वाइन कंपनी को मूर्ति बनाने का काम दे दिया. चर्चा तो यह भी है कि एल एंड टी कंपनी के माध्यम से चीन में बनने वाली आदि शंकराचार्य की प्रतिमा में नौकरशाहों ने 20 प्रतिशत कमीशन भी खा लिया.

तीर्थदर्शन योजना

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा रेलवे से अनुबंध कर बुजुर्ग यात्रियों को तीर्थदर्शन कराने के लिए मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना प्रारंभ की गई थीलेकिन इसका लाभ सबसे ज्यादा पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उठाया था.नरसिंहपुर जिले की करेली तहसील में तीर्थयात्रा करने वालों की सूची में सत्ताधारी दल के कार्यकताओं एवं नेताओं, नगरपालिका के पूर्व उपाध्यक्ष सहित कई आयकर दाताओं के नाम सामने आए थेजबकि यात्रा के नियमों के मुताबिक तीर्थयात्री आयकर दाता नहीं होना चाहिए. कुल मिलाकर, गरीबों को तीर्थदर्शन कराने के नाम पर शुरू की गई मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना राजनीतिक दलों के कार्यकताओं के लिए सैरसपाटा करने की योजना बनकर रह गई थी.

मध्य प्रदेश सरकार ने बुजुर्गों को तीर्थयात्रा कराने के लिए मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना शुरू की थी जिसके तहत 60 साल से ज्यादा उम्र के महिलापुरुषों को धार्मिक स्थलों की यात्रा ट्रेन के जरिए कराई गई थी. इंडियन रेलवे और मध्य प्रदेश सरकार के अनुबंध से हुई इस तीर्थदर्शन यात्रा का लाखों रुपयों का भुगतान रेलवे को न होने से उसने हाथ खींच लिए. अब चुनाव नजदीक हैं, तो बुजुर्गो को हवाई जहाज के माध्यम से तीर्थयात्रा की शुरुआत कर दी गई है.

जब विज्ञान का आविष्कार नहीं हुआ थातब कबीर ने मूर्तिपूजा करने वाले अंधभक्तों को चेताया था कि पत्थरों की मूर्ति पूजने से कभी भगवान नहीं मिलता.ऐसी मूर्तियों से तो पत्थर से बनी चक्की ज्यादा उपयोगी है जिसमें पीसा गया आटा लोगों के पेट भरने के काम आता है.अफसोस मगर आज की सभ्य, शिक्षित और वैज्ञानिक सोचसमझ वाली पीढ़ी भी कबीर की इन बातों को मानने को तैयार नहीं है.

दरअसल, जब हमारे धर्मनिरपेक्ष संविधान की दुहाई देने वाले सरकार के जिम्मेदार मंत्री देश में जगहजगह ऊंचीऊंची मूर्तियां बनवाने और मंदिरमसजिद के निर्माण को ही देश का विकास मानते हों, वहां जनता का ऐसा अनुसरण करना ग़लत भी नहीं है. जब देश के वैज्ञानिक  चंद्रयान की सफलता के लिए मंदिरों में हवनपूजन करते हों, जहां राफेल विमान पर नीबू लटकाकर नारियल फोड़े जाते हों, वहां जनता का अंधविश्वासी होना लाजिमी है.

Nana Patekar को Welcome 3 में क्यों नहीं किया गया कास्ट? वजह कर देगी हैरान

Nana Patekar On Welcome 3 : हिन्दी सिनेमा के जाने माने चेहरे नाना पाटेकर (Nana Patekar) ने दशकों से लोगों के दिलों में राज किया हैं. उनकी दमदार एक्टिंग के लोग आज भी मुरीद है. अब जल्द ही एक्टर फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’ (The Vaccine War) में नजर आएंगे. इस फिल्म में वह एक साइंटिस्ट का किरदार निभा रहे हैं.

बीते दिनों फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’ का ट्रेलर लॉन्च इवेंट रखा गया था. जहां उन्होंने बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार की फिल्म ‘वेलकम 3’ (Welcome 3) पर जमकर अपनी भड़ास निकाली है. हाल ही में अक्षय कुमार और दिशा पाटनी स्टारर ‘वेलकम टू द जंगल यानी वेलकम 3’ का टीजर जारी किया गया, जिसमें ना तो उदय शेट्टी यानी नाना पाटेकर और ना ही मजनू भाई यानी अनिल कपूर नजर आए.

नाना पाटेकर- हम पुराने हो गए

हालांकि जब ‘द वैक्सीन वॉर’ (The Vaccine War) के ट्रेलर लॉन्च के दौरान नाना पाटेकर से ‘वेलकम 3’ में उनका हिस्सा न बनने पर सवाल किया गया. तो उनके जवाब से भी ऐसा लगा कि वो मेकर्स के फैसले से खुश नहीं हैं. दरअसल, एक मीडियाकर्मी ने जब एक्टर से पूछा कि, “आप फिल्म ‘वेलकम 3’ का हिस्सा क्यों नहीं हैं?” तो इस पर नाना पाटेकर (Nana Patekar On Welcome 3) ने बेबाकी से जवाब देते हुए कहा, “उनको लगता है कि हम पुराने हो गए. इसलिए शायद उन्होंने हमें फिल्म में नहीं लिया. इनको लगता है कि अभी हम पुराने नहीं हुए. इसलिए इन्होंने हमें ले लिया. यह बहुत ही सिंपल सी बात है”.

जानें आगे एक्टर ने क्या कहा ?

इसी के साथ एक्टर (Nana Patekar On Welcome 3) ने ये भी कहा कि, ‘कभी भी आपके लिए इंडस्ट्री बंद नहीं होती है अगर आप अच्छा काम करना चाहते हैं. लोग आएंगे, आपको पूछेंगे. इसलिए आपको यह समझना चाहिए कि आप करना चाहते हैं या कर सकते हैं. मैं ये समझता हूं कि यह मेरा पहला चांस है या आखिरी चांस है, उतनी ही आपको जान डालनी चाहिए.’ साथ ही नाना पाटेकर ने ये भी कहा कि, “हर किसी को काम मिलता है यह तो बस आपके ऊपर है कि आप करना चाहते हैं कि या नहीं.”

आपको बता दें कि अभी तक फिल्म ‘वेलकम 3’ (Welcome 3) के मेकर्स का नाना पाटेकर के बयान पर कोई रिएक्शन सामने नहीं आया है.

‘हमारे पास उच्च शिक्षा और अच्छे इंस्टिट्यूट से डांस की ट्रेनिंग लेने की क्षमता नहीं रही’- अचिंत्य बोस

आपदा को अवसर बना लेने वाले लोग ही हमेशा अनूठी सफलता हासिल कर सकते हैं. यह कटु सत्य है. हम अकसर सुनते हैं कि किसी वाचमैन की बेटी या सब्जी बेचने वाले या रिकशा चलाने वाले के बेटे या बेटी ने आईएएस या ‘नीट’ में सर्वोच्च स्थान पा लिया है.

जी हां, ऐसा होता है. तभी तो अच्छी शिक्षा हासिल करने के पैसे न होने पर भी अंचित्य बोस ने नृत्य में ऐसी महारत हासिल की कि उसे किशोरवय में ही सूनी तारापोरवाला ने अपने निर्देशन में बनी फिल्म ‘ये बैले’ में नृत्य व अभिनय करने का ऐसा अवसर प्रदान किया कि उस ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर ली.

अचिंत्य बोस के अभिनय से सजी फिल्म ‘ये बैले’ फरवरी 2020 से नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है. तो वहीं सूनी तारापोरवाला निर्देशित नृत्यप्रधान वैब सीरीज में भी अचिंत्य बोस ने अभिनय किया है जोकि बहुत जल्द नेटफ्लिक्स पर ही स्ट्रीम होगी. यों तो अचिंत्य बोस को अब ‘हिप हौप’, ‘जौज’ और ‘बैले’ नृत्य में महारत हासिल हो चुकी है मगर पश्चिमी नृत्य में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए उन्होंने अमेरिका के कैला आर्ट्स इंस्टिट्यूट में प्रवेश लिया है.

वहां की फीस दे पाना उन के वश की बात नहीं है, इसलिए वे ‘क्राउड फंडिंग’ कर धना जुटा रहे हैं. वैसे, उन्हें आंशिक छात्रवृत्ति मिल चुकी है. अचिंत्य बोस की परवरिश उन की ‘सिंगल मदर’ ने किया है. आपदा में ही अवसर तलाशते, संघर्ष करते हुए निरंतर आगे बढ़ रहे अचिंत्य बोस से हम ने बातचीत की.

बचपन में आप की नृत्य के प्रति रुचि कैसे पैदा हुई थी?

आप यह कह सकते हैं कि मेरी परवरिश अभावों के बावजूद संगीत व नृत्य के माहौल में हुई है. मेरी मां अनुपमा बोस, जोकि ‘सिंगल पेरैंट्स’ हैं, कत्थक, उड़ीसी व भरतनाट्यम इन 3 क्लासिकल आर्ट फौर्म में माहिर हैं. तो घर के अंदर हमेशा डांस का ही माहौल रहा. हमेशा डांस को ले कर ही चर्चाएं होती रहती हैं. मेरे नाना नितीश कुमार बोस और नानी नमिता बोस बंगाली माहौल में पैदा होने के कारण उन्हें भी इंडियन डांस व संगीत में रुचि है. मेरी परवरिश नानानानी के अलावा मां के साथ ही हुई है. इस वजह से मेरे अंदर भी नृत्य के प्रति रुचि पैदा हुई.

सच तो यह है कि मैं ने गायन से शुरुआत की थी, पर गायन से नृत्य तक आ गया. पहले हम ने स्कूल में दोस्तों के साथ एक डांस ‘स्टेप अप’ देखा था, जिस की प्रैक्टिस दोस्तों के साथ करनी शुरू की थी. फिर मैं मुंबई आ गया. यहां मैं ने नृत्य निर्देशक अशेलो लोबो की कंपनी ‘द डांस वक्र्स’ से जुड़ा. वहां पर मैं ने डांस की ट्रेनिंग ली. उस के बाद वहीं पर दूसरे बच्चों को डांस सिखाने भी लगा.

मैं ने सुना है कि आप ने नृत्य का प्रशिक्षण लिया था?

जी, यह भी सच है. शुरुआत में मैं ने तीनचार साल तक कोलकाता में रह कर देवाशीष देव से भारतीय शास्त्रीय संगीत की कुछ ट्रेनिंग जरूर ली थी. इस के अलावा प्राचीन कला केंद्र से शास्त्रीय गायन सीखा था. लेकिन मैं ने संगीत या गायन के क्षेत्र में ज्यादा काम नहीं किया.

मतलब?

जब मैं शास्त्रीय संगीत व शास्त्रीय गायन की शिक्षा ले रहा था तभी स्कूल में दोस्तों के साथ मेरी ‘स्टेप अप’ डांस की प्रैक्टिस भी जारी ही थी. हम ने अपने दोस्तों के साथ स्कूल टीम बना रखी थी. उन दिनों मैं डेनियल मार्टिन सहित कई मशहूर डांसरों के वीडियो भी देखता रहता था. इन डांसरों के यूट्यूब वीडियो देख कर मैं सीख रहा था. इसी तरह डांस में मेरी रुचि बढ़ती गई.

आज आप ने जो सफलता हासिल की है उस में आप की मां का बहुत बड़ा योगदान रहा होगा?

बिना मां की मदद के मैं कुछ नहि कर सकता था. बचपन में मैं कोलकाता में रहता था. मेरी मां मुबई शहर में रहती थीं. जब वे कोलकाता जाती थीं तब वे मेरे साथ गाते समय बैठती थीं. उस वक्त वे डांस के भी टिप्स दिया करती थीं. वे थोड़ाबहुत गानाबजाना करा देती थीं. तो मैं कुछ सीखता गया. इसी तरह मैं ने उन से ही तबला वादन भी सीखा. जहां तक डांस का सवाल है तो मेरी मां ने मुझे अपने सपनों को फौलो करना सिखाया. मुझे उन का मार्गदर्शन पलपल मिलता रहता है.

मुंबई आने के बाद किस तरह का संघर्ष रहा?

मेरी मां एक सिंगल मदर हैं, जिस के चलते उन की जिंदगी में तमाम उतारचढ़ाव आए, जिन का असर गाहेबगाहे मुझ पर भी पड़ता रहा. हमारी जिंदगी में कुछ भी आसान तो नहीं रहा पर मेरा और मेरी मां का मानना है कि जीवन संघर्ष का ही नाम है. हम ने कुछ दिन ऐसे भी देखे हैं जब हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. पर हम ने हार नहीं मानी. मेहनत करते रहे. आखिरकार, यहां तक पहुंच गए. मेरी मम्मी हमेशा कहती हैं कि हमारा घर प्यार व मेहनत का घर है.

हर दिन अच्छा नहीं होता. यह बात तो हर इंसान के साथ लागू होती है. मेरा संघर्ष इसलिए भी रहा क्योंकि हमारी पृष्ठभूमि अलग है और हम आर्थिक रूप से इतना सक्षम भी नहीं रहे कि हम अच्छे से अच्छे स्कूल में जा कर पढ़ाई कर पाते.

डांस की ट्रेनिंग बेहतरीन संस्थान से लेने की ताकत हमारे नहीं रही. हम तो सीखने के साथ ही सिखाने का काम भी करते आए हैं. हम ने बारबार स्कौलरशिप के लिए हाथ फैलाया. दूसरों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही मेहनत करनी पड़ी. मेहनत के बल पर हम जितना सीख सकते थे, वह सब हम सीखते रहे. मैं बैले व टैंपरेरी डांस टीचर का सहायक भी था. अभी भी मैं डांस की कुछ क्लासेस लेता हूं. 5 वर्ष तक डांस जगत में अति कठिन मेहनत करने के बाद मुझे महज 16 वर्ष की उम्र में सूनी तारापोरवाला की फिल्म ‘यह बैले’ मिली जो कि ‘नेटफ्लिक्स’ पर स्ट्रीम हो रही है.

सूनी तारापोरवाला ने फिल्म ‘यह बैले’ के लिए आप का चयन किस तरह से किया था?

मैं ‘द डांस वक्र्स’ से जुड़ा हुआ था. और वहीं के एक शिक्षक येहुदा मेअर और उन के 2 डांस के शिष्य अमिरुद्ध शाह व मनीष चौहाण की ही कहानी पर यह फिल्म है. येहुदा और सोनी मैम एकदूसरे से परिचित थीं. पहले इस फिल्म में अमिरुद्ध शाह व मनीष चौहाण ही अभिनय करने वाले थे पर अमिरुद्ध शाह लंदन में फंस गया था, इसलिए उस की जगह उस का किरदार निभाने के लिए येहुदा की ही सलाह पर सोनी मैम ने मेरा चयन किया था. वास्तव में मेरा वार्षिक शो चल रहा था, तब येहुदा के ही कहने पर सोनी मैम मेरा डांस शो देखने आई थीं.

मेरा डांस का शो खत्म हुआ तो उन्होंने मुझे बुलाया और पूछा कि अभिनय करते हो? तब मैं ने सच बता दिया कि मैं अभिनय नहीं करता लेकिन मौका मिला तो जरूर करूंगा. उन्होंने दूसरे दिन मुझे औडीशन देने के लिए बुलाया. मैं ने औॅडीशन दिया. फिर एक माह तक कई बार मेरा औडीशन कई तरह से लिया गया. आखिरकार, मेरा चयन हो गया. उस के बाद मुझे बैले डांस की कठिन ट्रेनिंग से गुजरना पड़ा. उस के बाद मैं ने फिल्म की शूटिंग की. फिर दोबारा ‘द डांस वक्र्स’ पहुंच कर बच्चों को डांस की ट्रेनिंग देने लग गया.

आप ने फिल्म में आसिफ का किरदार निभाया है, क्या उस के बारे में आप पहले से कुछ जानते थे?

सर, जिस किरदार को मैं ने निभाया यानी कि अमीरुद्दीन शाह उर्फ आमिर और दूसरे मनीष चौहाण इन दोनों को जानता था. वैसे, सूनी मैम ने आमिर के किरदार में कुछ कल्पना जोड़ कर उसे आसिफ बनाया. बहरहाल, आमिर व मनीष ये दोनों मुझ से उम्र में व अनुभव में काफी बड़े हैं. मैं इन्हें भैया ही कहता रहा हूं. ये दोनों ‘द डांस वक्र्स’ से ही जुड़े हुए थे, जिस से मैं भी जुड़ा हुआ हूं. जब मैं इस कंपनी में ज्यूनियर में था तो इन्हें डांस करते देखा करता था. इन के बारे में दूसरों से काफीकुछ सुनता रहता था. तब हम से कहा जाता था कि बैले डांस में हमें इन के स्तर तक पहुंचना है.

अंधेरी के स्टूडियो में जब हम क्लासेस के लिए जाते थे, तो अंत में आमिर व मनीष हमें कुछ न कुछ जरूर सिखाते थे. कई बार वे हमें डेमोस्टेट करते थे, तो कभी सैट दिखाया करते थे. हर रविवार को शाम 4 से 6 बजे एक क्लास हुआ करती थी, जो हमारे लिए कम्पलसरी थी. एक दिन आमिर इस क्लास को असिस्ट कर रहे थे और मैं पीछे था. मुझे नींद आ रही थी, तो मैं एक पाइप को पकड़ कर सो गया था. तब आमिर ने आ कर मुझे हलके से थप्पड़ मारते हुए कहा कि, ‘सोना है तो बाहर जा.’ आमिर मुझे बच्चे की ही तरह मानते थे. मनीष से भी मुझे काफीकुछ सीखने का अवसर मिला.

जब आप को पता चला कि आप को आमिर वाला किरदार निभाना है, तो आप के मन में पहली बात क्या आई थी?

मैं अंदर से बहुत डर गया था क्योंकि आमिर बहुत अच्छा डांस करते हैं. मुझे लगा कि मुझ से न हो पाएगा. इस से पहले मैं ने बैले डांस किया भी नहीं था. लेकिन सोनी मैम ने कहा कि तू कर लेगा. उस के बाद मेरी मुलाकात सिंडी से हुई. उस ने तो 5 माह में मुझे रगड़ कर अच्छा बैले डांसर बना दिया. इस तरह मेरा आत्मविशवास बढ़ा कि मैं परदे पर आमिर का किरदार निभा पाऊंगा.

फिल्म ‘ये बैले’ में आप को डांस के साथ अभिनय करने का अवसर मिल रहा था, इसलिए की?

‘ये बैले’ करने की कई वजहें रहीं. मेरी मां सूनी तारापोरवाला की बहुत बड़ी फैन हैं और इस फिल्म की कहानी लिखने के साथ ही सूनी तारापोरवाला इस का निर्देशन कर रही थीं, इसलिए मुझे यह फिल्म करनी थी. सूनी जी तो व्हिशलिंग वुड इंटरनेशनल स्कूल, सत्यजीत रे स्कूल में जा कर अभिनय सिखाती हैं. मेरी मम्मी को सूनी की फिल्म ‘लिटिल जिजो’ काफी पसंद है.

क्या आप ने अभिनय की भी ट्रेनिंग ले रखी थी?

जी नहीं. लेकिन पूजा स्वरूप और विजय मौर्य ने मेरे साथ अभिनय की वर्कशौप कर मुझे अभिनय में निपुण किया. पहले मुझे आता नहीं था कि अभिनय कैसे करना है, फीलिंग कहां से निकलेगी, मुझे संवाद कैसे बोलना है क्योंकि फिल्म में निर्देशक ने थोड़ी सी जबान बदली कराई है. पहले मेरे लिए यह सब बहुत कठिन था लेकिन मेरी ट्रेनिंग ऐसी हुई कि हर माह मेरे लिए आसान होता चला गया. फिर जब सिंडी ने मुझे बैले डांस की ट्रेनिंग दी, तो कमाल हो गया.

उन्हें देख कर लगता है कि उन के शरीर में पैदाइशी बैले नृत्य है. सिंडी जब कूदती हैं तो कम से कम 3 से 4 फुट ऊंचा उठ जाती हैं और आराम से बात करते हुए छलांग मारती हैं कि पता ही नहीं चलता. मुझे तो 4 माह केवल ऊंचाई लाने में ही चले गए. तो ये सारी चुनौतियां थीं जिन्हें सूनी मैम की टीम ने मुझे ट्रेनिंग दे कर दूर करा दीं. 6 माह मेरी कठिन मेहनत रही.

फिल्म के अपने किरदार को ले कर क्या कहना चाहेंगे?

फिल्म में मेरे किरदार का नाम आसिफ है. आसिफ जिस चीज से प्यार करता है उस में अपनी पूरी जान डाल देता है. जब उस ने ठान लिया कि वह बैले डांस करेगा, तो उस ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी. जब उसे अपने मम्मी, पापा व चाचू को समझाना था तो वह उन्हें समझा लेता है. वह जितना लोगों से प्यार करता है, जितना लोगों के प्रति खुद को कमिट कर देता है, वह भी कमाल का है. वह एनर्जेटिक है. उसे बहुत जल्दी गुस्सा भी आ जाता है.

आसिफ का किरदार निभाने के बाद आप के अंदर क्या बदलाव आए?

सब से बड़ा बदलाव यही रहा कि मैं बैले डांस करने में माहिर हो गया. इतना ही नहीं, फिल्म पूरी करने के बाद जब मैं फिर ‘द डांस वक्र्स’ पहुंचा तो मेरे टीचरों ने कहा कि, ‘अचिंत्य, तू थोड़ा मैच्योर हो गया है. अब तू डांसर लगता है.’ आसिफ का किरदार निभाते हुए मेरा काफी विकास हुआ. मैं ने पहली बार जीवन के अलगअलग क्षेत्र से बड़ी हस्तियों को आ कर एक फिल्म को बनाते हुए देखा व अनुभव किया था. मैं ने हर किसी से काफीकुछ सीखा था.

मैं ने बहुतकुछ ऐसा सीखा था जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता. तो फिल्म ‘ये बैले’ करते हुए मेरे अंदर जो मैच्योरिटी आई है वह शायद बाद में नहीं आएगी. आसिफ का किरदार निभाते हुए मेरी डांसर के रूप में जो ट्रेनिंग हुई वह तो कमाल की रही.

क्या यह माना जाए कि आसिफ के किरदार से अचिंत्य काफी रिलेट कर रहे थे?

काफी हद तक. देखिए, आमिर व आसिफ थोड़ा सा अलग हैं क्योंकि आसिफ को थोड़ा सा फिक्शनलाइज किया गया है. सोनी मैम ने मुझ से कहा था कि मैं आसिफ को अपने निजी अनुभवों से निभाऊं. आसिफ ‘अंडर प्रिविलेज्ड चाइल्ड’ है. उस के पास धन, साधन व सुविधाओं का अभाव है. ऐसा ही मेरे साथ भी है. कुछ दृश्यों में मुझे वास्तव में महसूस हुआ कि यह तो मेरे पास भी नहीं है. तो कई दृश्य ऐसे रहे जिन्हें मैं ने अपने निजी जीवन के अनुभवों से प्रेरणा ले कर निभाया.

आप की फिल्म ‘ये बैले’ तो 3 वर्ष से नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है. अब तक किस तरह के रिस्पौंस आए हैं?

प्रतिक्रियाएं तो 197 देशों से आईं. पहले ही दिन मेरे पास रशिया, ब्राजील से संदेश आए थे. लोगों ने संदेश में लिखा था कि फिल्म बहुत इंस्पायरिंग है. कुछ दिनों पहले निर्देशक सोमी ने एक स्पैशल स्क्रीनिंग रखी थी. उस वक्त दर्शकों में एक शख्स नेपाल से आए थे. फिल्म देखने के बाद वे मेरे पास रोतेरोते आए. उन्होंने मुझ से रोतेरोते कहा, ‘मैं भी बचपन में डांस करता था. अब तो मैं कविताएं लिखता हूं. लेकिन आज ‘ये बैले’ फिल्म देख कर मुझे मेरा बचपन याद आ गया.

मुझे अपना बचपन इसलिए भी याद आया कि आज मैं जहां हूं, उस के लिए मैं ने बहुत लड़ाई की है. मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि आप ने भले ही डांस के माध्यम से किया हो पर मेरा प्रतिनिधित्व इतने बड़े प्लेटफौर्म पर किया है. मेरी बात कितने लोगों तक पहुंचाई, यह मेरे लिए गर्व की बात है.’ मेरे लिए यही प्रतिक्रिया सब से प्यारी है. मेरे दिल के करीब है. ऐसा मुझ से किसी ने पहली बार कहा था. उस के बाद मैं ने घर पर आ कर पुराने संदेश पढ़े तो पाया कि इसी तरह की बात किसी न किसी अंदाज में कईयों ने लिख कर भेजी हुई थी.

क्या इस के बाद आप को दूसरी फिल्म का औफर मिला?

फिल्म इंडस्ट्री से कई लोगों ने बधाई दी और एकसाथ काम करने की बात भी कही. फिलहाल मैं अपनी एक वैब सीरीज के आने का इंतजार कर रहा हूं. यह वैब सीरीज भी डांस पर ही है. इस का लेखन, निर्माण व निर्देशन सोनी तारापोरवाला ने ही किया है. इस वैब सीरीज के बारे में ज्यादा नहीं बता सकता. मगर इस के फिल्मांकन में एक वर्ष से अधिक का समय लगा. यह वैब सीरीज कमाल करने वाली है. कुछ और भी काम किया है.

आप खुद को किस डांस फौर्म में माहिर समझते हैं?

मुझे लगता है कि स्पैशलिस्ट बनने में तो अभी बहुत समय है. मेरे लिए अभी मंजिल काफी दूर है. अभी तो मुझे बहुतकुछ सीखना है. अभी मैं अमेरिका के कैला आर्ट्स में 4 वर्ष की डांस की ट्रेनिंग के लिए जा रहा हूं. वहां से आने के बाद देखूंगा कि अब क्या किया जाए. यहां की फीस व रहने आदि के खर्च वहन करने की मेरी क्षमता नहीं है. मुझे कुछ आंशिक छात्रवृत्ति मिल गई है. बाकी की रकम मैं क्राउड फंडिंग से जुटाने के लिए प्रयासरत हूं.

आप ने अमेरिका के इस इंस्टिट्यूट जाने का निर्णय क्या सोच कर लिया?

अगर अमेरिका में कोई कत्थक करे, तो मैं उस से यही कहूंगा कि आइए हमारे भारत देश में कत्थक सीखिए क्योंकि कत्थक हमारे देश का है. इसी तरह से जिस फौर्म के डांस मैं कर रहा हूं वे अकेरिका के हैं, तो वहां जा कर ट्रेनिंग लेने की जरूरत मैं ने महसूस की.

दूसरी बात, मुझे कालेज में पढ़ने का अवसर नहीं मिल पाया, तो इसी बहाने कालेज में पढ़ लूंगा. मैं हमेशा से डांस में या डांस सायकोलौजी में ही कुछ करना चाहता था. मैं डांस लिटरेचर वगैरह पढ़ना चाहता था. बैले तो यूरोप का है. पर बाकी हिप हौप, जैज आदि डांस के जो फौर्म अमेरिका से आए हैं. सो, वहां जा कर अथैंटिकली सीख कर आऊंगा. मेरी मम्मी की भी यही इच्छा है.

सुना है कि अमेरिका में 4 वर्ष की डांस की ट्रेनिंग में लंबा खर्च आने वाला है?

जी हां, आप की बात सच है. यह रकम बहुत बड़ी है. और कड़वा सच यह है कि उस खर्च को वहन करने की क्षमता मुझ में नहीं है. मैं क्राउड फंडिंग का सहारा ले रहा हूं. मैं हर किसी से कह रहा हूं कि जो भी मेरी मदद छोटी राशि से भी करना चाहे, वह कर सकता है. वैसे तो मुझे आंशिक स्कौलरशिप मिली है, मगर बाकी की राशि इकट्ठा करने में लगा हुआ हूं. सैमिस्टर वन के लिए राशि इकट्ठा हो गई है. बाकी के लिए भी राशि मिल जाएगी, ऐसी उम्मीद है. लेकिन मैं यह कभी नहीं कहता कि भारत में नृत्य प्रशिक्षण के अवसर कम हैं. भारत में डांस का महत्त्व कम नहीं है.

मां की बनारसी साड़ी : मां की अमानत सहेज कर रखती बेटी की कहानी

story in hindi

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें