अभिमन्यु से बात कर के जब माद्री चहकते हुए आई, पुष्कर ने गौर से उसे देखा, आज वह बहुत ज्यादा खुश थी, जन्मदिन भी था, बोली, “चलो।”कार में बैठ कर बोली, “पूना में जहां अभिमन्यु रहता है, वहीं पास ही में मेरी मौसी की बेटी गीता भी रहती है। उस के बेटे रजत की अगले महीने शादी है, वह मुझे भी बुलाने वाली है, तुम्हें बताया था न?”
“पर तुम ने कहा था कि तुम्हारा इस शादी में जाने का मन नहीं है।”“हां, पर अब मैं जाना चाहती हूं।”पुष्कर चुप रहे। वे जानते थे कि अब माद्री अभिमन्यु से मिलना चाहती है। बोले, “जाने से पहले अच्छी तरह से सोच लेना, माद्री।”“हां, सोच लिया है, अभिमन्यु को बोल दिया है कि मैं आ रही हूं।”पुष्कर ने फिर इस विषय पर बात नहीं की।
डिनर करते हुए माद्री के मन में बस अभिमन्यु से हुई बातें घूम रही थीं। उस की आवाज जैसे अभी तक माद्री के कानों में गूंज रही थी। इस आवाज का उस ने सारी जिंदगी इंतजार किया था। यह सच था कि वह उसे कभी नहीं भूली थी। जबजब वह किसी के प्रेम की बात सुनती, अभिमन्यु उस की आंखों के आगे आ खड़ा होता था। पूना में माद्री से बात करने के बाद अभिमन्यु भी खुश था, उस का स्वभाव कुछकुछ पुष्कर से मिलता था। वह भी गंभीर स्वभाव का इंसान था। उस से मिलने के लिए माद्री की पूना आने की बेचैनी देख समझ गया था कि माद्री में धैर्य आज भी नहीं।
उस ने कहा था, “अगर तुम पूना आ भी गईं तो मिलना आसान नहीं होगा, मेरा भी परिवार साथ होगा, मैं ज्यादा बात भी नहीं कर पाऊंगा। बस, फोन पर ही कभीकभार एकदूसरे के हालचाल ले लिया करेंगे तो उतना ही ठीक रहेगा। अब हमारे अपने संसार हैं, हमें वहीं रहना है। अब ऐसी उम्र भी नहीं कि बेचैन हो कर भागा फिरा जाए। पर माद्री ने कब किस की सुनी थी, कहा था, “बड़ी मुश्किल से मिले हो, एक बार तो देखने आ ही जाउंगी कि कैसे लगते हो अब। देख लूं तो एक बार दिल को सुकून आ जाए।”
अभिमन्यु को इस बात की उम्मीद इतनी नहीं थी कि माद्री उस से मिलने के लिए एकदम बेचैन हो जाएगी। उस उम्र का अधूरा प्यार आज फिर ऐसे सामने आ कर सब के जीवन में कितनी उठापठक कर देगा, कौन जानता था।रजत की शादी में चलने के लिए माद्री ने पुष्कर को भी तैयार कर ही लिया। वे हमेशा की तरह माद्री की बात मान गए। माद्री की बेचैनी देखने वाली थी, कब क्या पहनूंगी, पुष्कर के साथ काश कुछ पल अकेले मिल जाएं तो कितना अच्छा हो। उस के बाद से अभिमन्यु से माद्री की फोन पर बातें होती रही थीं। अभिमन्यु ने माद्री को साफसाफ कह दिया था, “माद्री, अपने पर कंट्रोल रखना। इस उम्र में कोई गलती न हो। हम एकदूसरे को देख लें, बात भी न हो तो कोई बात नहीं।”
“तुम्हारा मन नहीं करता कि मेरे साथ बैठ कर खूब सारी बातें करो?”“करता है तभी तो तुम्हें ढूंढ़ा। पर समय के साथसाथ बहुत कुछ बदल जाता है।”“मुझे नहीं पता, मेरा दिल कुछ समझने के लिए तैयार नहीं है, बस मुझे अब तुम से बातें करनी है। तुम्हारे साथ बैठना है, तुम्हें देखना है।”
“मुझे नहीं लगता कि हम साथ बैठ पाएंगे, मेरे साथ मेरा पूरा परिवार होगा और तुम्हारे साथ तुम्हारे पति भी होंगे। आओ पर एक लिमिट में रहना।”एक होटल में बाहर से आने वाले मेहमानों के रुकने की व्यवस्था की गई थी। अभिमन्यु तो लोकल ही था, जब माद्री के व्हाट्सऐप मैसेज से उसे पता चला कि माद्री होटल पहुंच गई है तो वह शादी के फंक्शन से थोड़ा पहले ही होटल पहुंच गया। वहां सब पुराने रिश्तेदार एकदूसरे से मिल रहे थे। माद्री की आंखें लगातार दरवाजे की तरफ लगी हुई थीं। अभिमन्यु अपनी पत्नी के साथ अंदर आया, माद्री के लिए वक्त जैसे वहीं ठहर गया।
इतने सालों के अंतराल के बाद भी दोनों ने एकदूसरे को देखते ही पहचान लिया। अभिमन्यु ने आ कर पुष्कर से हाथ मिलाया, माद्री और पुष्कर से अपनी पत्नी का परिचय करवाया। नीता को इस प्रेम संबंध की भनक थी, वह उतना सहज हो कर नहीं मिल पाई, पुष्कर और माद्री ने नीता को बैठने के लिए कहा पर नीता, ‘औरों से भी मिल लेते हैं,’कह कर वहां से हट गई। अभिमन्यु भी उस के साथ वहां से हट गया। माद्री को अभिमन्यु पर बहुत तेज गुस्सा आया। पुष्कर ने माद्री के चेहरे पर झुंझलाहट के भाव महसूस किए, कहा, “किस बात पर मूड खराब कर रही हो, माद्री? क्या हुआ है?”
“कुछ नहीं, यह तो जोरू का गुलाम हो गया है, रुका ही नहीं, उस के पीछे चला गया।”“कैसी बात कर रही हो? उस की पत्नी है वह।”माद्री के स्वभाव में जो उतावलापन था, पुष्कर अच्छी तरह जानते थे कि माद्री अब सिर्फ अभिमन्यु के साथ ही टाइम बिताना चाहेगी जो संभव नहीं था। अगर वे माद्री का साथ दे भी दें तो जरूरी नहीं कि नीता को माद्री की उपस्थिति अच्छी लग रही हो।
विवाह की रस्में होती रहीं, माद्री को सिर्फ अभिमन्यु के इर्दगिर्द रहने में रूचि थी। पुष्कर ने जब नीता के चेहरे पर अप्रिय भाव देखे, उन्होंने एकांत में माद्री से कहा, “माद्री, मैं तुम्हारी भावनाएं समझता हूं पर अब बहुत समय बीत चुका है। कुछ भी ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी का भी दिल दुखे। मुझे लग रहा है कि हमें अब कल सुबह ही निकल जाना चाहिए। मैं सुबह की बस का टिकट बुक कर रहा हूं। हमें यहां से चलना चाहिए,” थोड़ा सख्त स्वर में कह कर पुष्कर वहां से हट गए तो माद्री जैसे होश में आई। ‘क्या कर रही है वह? जब से आई है अभिमन्यु के आसपास रहने के लिए क्याक्या जुगत लगा रही है। ओह, नीता और पुष्कर क्या सोच रहे होंगे…अभिमन्यु भी तो उलझा सा दिख रहा था। क्या नीता ने उस से कुछ कहा होगा? वह क्यों इतनी अधीर है?’
रात को जब सब अपने रूम में चले गए, माद्री को अभिमन्यु का मैसेज मिला, ‘स्विमिंगपूल के पास आना।’ वह हैरान हुई, बहुत खुश भी हुई, पुष्कर से कहा, “जरा 1-2 लोगों को बाय बोल कर आती हूं, सुबह तो सब सो ही रहे होंगे,” पुष्कर लेट चुके थे, कुछ बोले नहीं।
माद्री ने स्विमिंगपूल के पास जा कर देखा, अभिमन्यु एक कोने में खड़ा है, वह उधर ही लपकी, अभिमन्यु ने कहा, “सुबह ही जा रही हो?”“हां, मुझे लगा तुम भी अपने घर चले गए।”“चला गया था, फिर सब को घर छोड़ कर आया हूं,” और कहतेकहते माद्री को एक गुलाब का फूल दिया और कहा, “यह तुम्हारे लिए। तुम्हें गुलाब पसंद हैं न?”
“तुम्हें याद है?”“बताया तो था कि तुम्हें भूला ही कब था और तुम जरा अपनी फीलिंग्स पर काबू रखा करो, तुम्हारे हसबैंड क्या सोचते होंगे? बहुत जैंटलमैन हैं जो तुम्हें यहां लेकर आए।”“हां, सो तो है, मेरी खुशी का बहुत ध्यान रखते हैं। अब कब मिलोगे?”“अब बस फोन पर बातें किया करेंगे, मैं ने देख लिया है कि तुम्हें अपने पर बिलकुल कंट्रोल नहीं है।”
माद्री ने जैसे अभिमन्यु को अपनी निगाहों में उतार लिया, लगातार उसे देखती रही। “बाय,” कह कर अभिमन्यु वहां से चला गया। माद्री भी अपनी सोचों में गुम रूम में पहुंची तो पुष्कर ने कुछ नहीं पूछा, माद्री की जैसी आदत थी, बता दिया, “अभिमन्यु मिला था, उसे भी बाय बोल आई।”
मुंबई वापस आकर माद्री और बेचैन रहने लगी। हर समय मन करता कि अभिमन्यु से बातें करे, पर अभिमन्यु ने अपने पर काबू पा लिया था, उस ने माद्री की अधीरता देख ली थी। वह पुष्कर के साथ होते हुए भी उसी के पीछेपीछे घूम रही थी जो नीता को भी नागवार गुजरा था। माद्री का असंतुलित व्यवहार अभिमन्यु को समझा गया था कि अब ज्यादा जुड़े रहना ठीक नहीं। इस उम्र में घरगृहस्थी में इन बातों से टकराव किसी के लिए भी अच्छा नहीं होगा।अभिमन्यु ने अतीत को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ने का फैसला कर लिया, वर्तमान को नकारा नहीं जा सकता था।
उस ने माद्री को मैसेज करना बंद कर दिया। उस के फोन उठाने भी बंद कर दिए। माद्री रातदिन अभिमन्यु की इस उपेक्षा को महसूस कर बीमार होने लगी। वह डिप्रैशन की शिकार हो गई। हैरान थी कि जब ऐसे दूर होना था तो जुड़ने का फायदा ही क्या था।
2 महीने ऐसे ही बीत गए। वह बारबार अभिमन्यु को मैसेज करती, “क्या हुआ है, मुझे बताओ तो, फिर दूर ही होना था तो मुझे ढूंढ़ क्यों निकाला?” वगैरहवगैरह…फिर एक दिन माद्री की बेचैनी समझ अभिमन्यु ने उसे फोन कर ही दिया। माद्री भरी बैठी थी, खूब लड़ी। अभिमन्यु ने पहले ठंडे दिमाग से आराम से उस की सारी शिकायतें सुनीं, फिर कहा, “पूना में मैं ने तुम्हारा जैसा व्यवहार देखा, मुझे समझ आया कि तुम बहुत ही अशांत चित्त वाली हो। तुम्हें जरा भी अपनी भावनाओं पर कंट्रोल नहीं, सोचो, नीता और पुष्कर को कैसा लगा होगा जब तुम मेरे ही आगेपीछे घूमती रहीं। तुम अब भी अतीत में जी रही हो, जो होना था, हो गया, जो नहीं हुआ, उसे अब किया नहीं जा सकता। अपने साथ जुड़े हुए लोगों को मानसिक कष्ट देने का हमें कोई हक नहीं। जिन के साथ उम्र बिता दी, जिन्होंने हमारे साथ जीवन का इतना लंबा सफर तय किया, उन्हें अब दुख दें? इस उम्र में? अगर हमारे दिल में एकदूसरे के लिए प्यार आज भी है तो उसके साथ भी बिना किसी को दुख दिए चुपचाप जिया जा सकता है जैसे हम आज तक जी ही रहे थे। प्यार में पा लेना ही तो सब कुछ नहीं है,”अभिमन्यु की धीरगंभीर आवाज से जैसे माद्री होश में आई।
यह क्या कर रही थी वह। ऐसे दीवानेपन से मिली है अभिमन्यु से कि उसे दूर रहना ठीक लगा। इतने दिनों बाद जो छूटा प्यार सामने आया, उसे अपनी ही मूर्खता से गंवाने चली थी। उस ने एक ठंडी सांस ली, कहा, “सौरी, अभि। अब तुम्हें कभी शिकायत नहीं होगी। बस, जब भी तुम्हारा मन हो, जब भी ठीक समझो, कभीकभी बात कर लिया करो। मेरे लिए अब उतना ही काफी होगा। इस से ज्यादा की उम्मीद नहीं रहेगी।”
“ठीक है, फिर करता हूं बात,”कह कर अभिमन्यु ने फोन रख दिया था। माद्री ने चुपचाप लेट कर अपनी आंखें बंद कर लीं। आंखों की कोरों से कुछ आंसू ढलक ही गए। नहीं, वह अपने इस प्यार को अब खोना नहीं चाहती, वह कभीकभी बात करता रहे, बस। अपने पर काबू रखना बहुत जरूरी है, अब वह अकेली नहीं है, उस के साथ कोई और भी जुड़ा है, जिस के बारे में सोचना उस का फर्ज है।
इतने में उस के फोन पर एक मैसेज आया, अभिमन्यु ने लिखा था, “खुसरो दरिया प्रेम का, वाकी उलटी धार, जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार…”कुछ आंसू माद्री की आंखों से फिर बह चले।