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मन का घोड़ा : क्यों श्वेता को अपने रंगरूप पर इतना गुमान था ?

‘‘अंकुर की शादी के बाद कौन सा कमरा उन्हें दिया जाए, सभी कमरे मेहमानों से भरे हैं. बस एक कमरा ऊपर वाला खाली है,’’ अपने बड़े बेटे अरुण से चाय पीते हुए सविता बोलीं.

‘‘अरे मां, इस में इतना क्या सोचना? हमारे वाला कमरा न्यूलीवैड के लिए अच्छा रहेगा. हम ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो जाएंगे,’’ अरुण तुरंत बोला.

यह सुन पास बैठी माला मन ही मन बुदबुदा उठी कि आज तक जो कमरा हमारा था, वह अब श्वेता और अंकुर का हो जाएगा. हद हो गई, अरुण ने मेरी इच्छा जानने की भी जरूरत नहीं समझी और कह दिया कि न्यूलीवैड के लिए यह अच्छा रहेगा. तो क्या 15 दिन पूर्व की हमारी शादी अब पुरानी हो गई?

तभी ताईजी ने अपनी सलाह देते हुए कहा, ‘‘अरुण, तुम अपना कमरा क्यों छोड़ते हो? ऊपर वाला कमरा अच्छाभला है. उसे लड़कियां सजासंवार देंगी. और हां, अपनी दुलहन से भी तो पूछ लो. क्या वह अपना सुहागकक्ष छोड़ने को तैयार है?’’ और फिर हलके से मुसकरा दीं. पर अरुण ने तो त्याग की मूर्ति बन झट से कह डाला, ‘‘अरे, इस में पूछने वाली क्या बात है? ये नए दूल्हादुलहन होंगे और हम 15 दिन पुराने हो गए हैं.’’

ये शब्द माला को उदास कर गए पर गहमागहमी में किसी का उस की ओर ध्यान न गया. ससुराल की रीति अनुसार घर की बड़ी महिलाएं और नई बहू माला बरात में नहीं गए थे. अत: बरात की वापसी पर दुलहन को देखने की बेसब्री हो रही थी. गहनों से लदी छमछम करती श्वेता ने अंकुर के संग जैसे ही घर में प्रवेश किया वैसे ही कई स्वर उभर उठे, वाह, कितनी सुंदर जोड़ी है.

‘‘कैसी दूध सी उजली बहू है, अंकुर की यही तो इच्छा थी कि लड़की चांद सी उजली हो,’’ बूआ सास दूल्हादुलहन पर रुपए वारते हुए बोलीं.

माला चुपचाप एक तरफ खड़ी देखसुन रही थी. तभी सविताजी ने माला को नेग वाली थाली लाने को कहा और इसी बीच कंगन खुलाई की रस्म की तैयारी होने लगी. महिलाओं की हंसीठिठोली और ठहाके गूंज रहे थे पर माला अपनी कंगन खुलाई की यादों में खो गई…

फूल और पानी भरी परात से जब माला ने 3 बार अंगूठी ढूंढ़ निकाली तब सभी ने एलान कर डाला, ‘‘भई, अब तो माला ही राज करेगी और अरुण इस का दीवाना बना घूमेगा.’’

पर माला तो अरुण का चेहरा देखने को भी तरसती रही. भाई की शादी की व्यस्तता व मेहमानों, दोस्तों की गहमागहमी में माला का ध्यान ही नहीं आया. माला के कुंआरे सपने साकार होने को तड़पते और मन में उदासी भर देते, फिर भी माला सब के सामने मुसकराती बैठी रहती.

शाम 4 बजे रीता ने आवाज लगाई, ‘‘जिसे भी चाय पीनी हो वह जल्दी से यहां आ जाए. मैं दोबारा चाय नहीं बनाऊंगी.’’ ‘‘ला, मुझे 1 कप चाय पकड़ा दे. फिर बाहर काम से जाना है,’’ अरुण ने भीतर आते हुए कहा.

‘‘ठहरो भाई, पहले एक बात बताओ. वह आप के हस्तविज्ञान व दावे का क्या रहा जब आप ने कहा था कि मेरी दुलहन एकदम गोरीचिट्टी होगी. यह बात तो अंकुर भाई पर फिट हो गई,’’ कह रीता जोरजोर से हंसने लगी.

‘‘अच्छा, एक बात बता, मन का लड्डू खाने में कोई बंदिश है क्या?’’ अरुण ने हंसते हुए कहा.

तभी ताई सास ने अपनी बेटी रीता को डपट दिया, ‘‘यह क्या बेहूदगी है? नईनवेली बहुएं हैं, सोचसमझ कर बोलना चाहिए… और अरुण तेरी भी मति मारी गई है क्या, जो बेकार की बातों में समय बरबाद कर रहा है?’’

शादी के बाद अंकुर और श्वेता हनीमून पर ऊटी चले गए ताकि अधिकतम समय एकदूसरे के साथ व्यतीत कर सकें, क्योंकि 20 दिनों के बाद ही अंकुर को लंदन लौटना था. श्वेता तो पासपोर्ट और वीजा लगने के बाद ही जा पाएगी. हनीमून पर जाने का प्रबंध अरुण ने ही किया था. ये सब बातें माला को पिछले दिन रीता ने बताई थीं. घर के सभी लोग अरुण की प्रशंसा के पुल बांध रहे थे पर माला के मन में कांटा सा गड़ गया. मन में अरुण के प्रति क्रोध की ज्वाला उठने लगी.

‘हमारा हनीमून कहां गया? अपने लिए इन्होंने क्यों कुछ नहीं सोचा? क्यों? रोऊं, लडं क्या करूं?’ ये सवाल, जिन्हें संकोचवश अरुण से स्पष्ट नहीं कर पा रही थी, उस के मन को लहूलुहान कर रहे थे.

समय का पहिया अंकुर को लंदन ले गया. ऐसे में श्वेता अकेलापन अनुभव न करे, इसलिए घर का हर सदस्य उस का ध्यान रखने लगा था. भानजी गीता तो उसे हर समय घेरे रहती. माला तो जैसे कहीं पीछे ही छूटती जा रही थी. तभी तो माला शाम के धुंधलके में अकेली छत पर खड़ी स्वयं से बतिया रही थी कि मानती हूं कि श्वेता को अंकुर की याद सताती होगी. पर सारा परिवार उसी से चिपका रहे, यह तो कोई बात न हुई. मैं भी तो 2 माह से यहीं रह रही हूं और अरुण भी तो दिल्ली से सप्ताह के अंत में 1 दिन के लिए आते हैं. मुझ से हमदर्दी क्यों नहीं?

तभी किसी के आने की आहट से उस की विचारधारा भंग हो गई.

‘‘माला, तुम यहां अकेली क्यों खड़ी हो? चलो, नीचे मां तुम्हें बुला रही हैं. और हां कल सुबह की ट्रेन से दिल्ली निकल जाऊंगा. तुम श्वेता का ध्यान रखना कि वह उदास न हो. वैसे तो सभी ध्यान रखते हैं पर तुम्हारा ध्यान रखना और अच्छा रहेगा…’’

अरुण आगे कुछ और कहता उस से पहले ही माला गुस्से से चिल्ला पड़ी, ‘‘उफ, सब के लिए आप के मन में कोमल भावनाएं हैं पर मेरे लिए नहीं. क्या मैं इतनी बड़ी हो गई हूं कि मैं सब का ध्यान रखूं और खुद को भूल जाऊं? मेरी इच्छाएं, मेरी कल्पनाएं, मेरा हनीमून उस का क्या?’’

अरुण हैरान सा माला को देखता रह गया, ‘‘आज तुम्हें यह क्या हो गया है माला? तुम श्वेता से अपनी तुलना कर रही हो क्या? उस के नाम से तुम इतना अपसैट क्यों हो गईं?’’

‘‘नहीं, मैं किसी से तुलना क्यों करूंगी? मुझे अपना स्थान चाहिए आप के दिल में… परसों कौशल्या बाई बता रही थी कि अरुण भैया तो ब्याह के लिए तैयार ही नहीं थे. वह तो मांजी 3 सालों से पीछे लगी थीं तब उन्होंने हामी भरी थी. तो क्या आप के साथ शादी की जबरदस्ती हुई है? और उस दिन रीता ने जो हस्तविज्ञान वाली बात कही थी, इस से लगता है कि आप की चाहत शायद कोई और थी पर…’’ माला ने बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘उफ, तुम औरतों का दिमागी घोड़ा बिना लगाम के दौड़ता है. तुम इन छोटीछोटी व्यर्थ की बातों का बतंगड़ बनाना छोड़ो और मन शांत करो. अब नीचे चलो. सब खाने पर इंतजार कर रहे हैं.’’

वह दिन भी आ गया जब माला अरुण के साथ दिल्ली आ गई. यहां अपना घर सजातेसंवारते उस के सपने भी संवर रहे थे. अरुण के औफिस से लौटने से पहले वह स्वयं को आकर्षक बनाने के साथ ही कुछ न कुछ नया पकवान, चाय आदि बनाती. फिर दोनों की गप्पों व कुछ टीवी सीरियल देखतेदेखते रात गहरा जाती तो दोनों एकदूसरे के आगोश में समा जाते.

हां, एक बार छुट्टी के दिन माला ने दिल्ली दर्शन की इच्छा भी व्यक्त की थी तो, ‘‘ये रोमानी घडि़यां साथ बिताने के लिए हैं, हमारा हनीमून पीरियड है यह. फिर दिल्ली तो घूमना होता ही रहेगा जानेमन,’’ अरुण का यह जवाब गुदगुदा गया था.

शनिवार की छुट्टी में अरुण अलसाया सा लेटा था कि तभी मोबाइल बज उठा. अरुण फोन उठा कर बोला, ‘‘हैलो… अच्छा ठीक है, मैं कल स्टेशन पहुंच जाऊंगा. ओ.के. बाय.’’

‘‘किस का फोन था?’’ चाय की ट्रे ले कर आती माला ने पूछा.

‘‘श्वेता का. वह कल आ रही है. उसे मैं रिसीव करने जाऊंगा,’’ कह अरुण ने चाय का कप उठा लिया.

श्वेता के आने की खबर से माला का उदास चेहरा अरुण से छिपा न रह सका, ‘‘क्या हुआ? अचानक तुम गुमसुम सी क्यों हो गईं?’’ अरुण ने उस की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘अभी दिन ही कितने हुए हैं हमें साथ समय बिताते कि…’’

‘‘अरे यार, उस के आने से रौनक हो जाएगी, कितना हंसतीबोलती है. तुम्हारा भी पूरा दिन मन लगा रहेगा. सारा दिन अकेले बोर होती हो,’’ माला की बात बीच में ही काटते हुए अरुण ने कहा.

माला चुपचाप चाय की ट्रे उठा कर रसोई की ओर बढ़ गई.

‘फिर वही श्वेता. क्या वह अपने मायके या ससुराल में नहीं रह सकती थी कुछ महीने? फिर चली आ रही है दालभात में मूसलचंद. ‘खैर, मुसकराहट तो ओढ़नी ही होगी वरना अरुण न जाने क्या सोचने लगें.’ मन ही मन सोच माला नाश्ते की तैयारी करने लगी.

छुट्टी के दिन अरुण श्वेता और माला को एक मौल में ले गया. वहां की चहलपहल और भीड़ का कोई छोर ही न था. श्वेता की खुशी देखते ही बन रही थी, ‘‘भाभी, आप तो बस जब मन आए यहीं चली आया करो. यहां शौपिंग का मजा ही कुछ और है,’’ माला की ओर देख उस ने कहा.

‘‘मुझे तो अरुण, पहले कभी यहां लाए ही नहीं. यह सब तो तुम्हारे कारण हो रहा है,’’ माला उदासी भरे स्वर से बोली.

‘‘अच्छा,’’ श्वेता का स्वर उत्साहित हो उठा.

वहीं मौल में खाना खाते हुए श्वेता की आंखें चमक रही थीं. बोली, ‘‘वाह, खाना कितना स्वादिष्ठ है.’’

इस पर अरुण ने हंस कर कहा, ‘‘मुझे मालूम था कि श्वेता तुम ऐंजौय करोगी. तभी तो यहां लंच लेने की सोची.’’

‘‘और मैं?’’ माला ने अरुण से पूछ ही लिया.

‘‘अरे, तुम तो मेरी अर्द्धांगिनी हो, जो मुझे पसंद वही तुम्हें भी पसंद आता है, अब तक मैं यह तो जान ही गया हूं. इसलिए तुम्हें भी यहां आना तो अच्छा ही लगा होगा.’’

बुधवार की सुबह अखबार थामे श्वेता बोली, ‘‘बिग बाजार में 50% की बचत पर सेल लगी है. भैया, मुझे 5,000 दे देंगे? 2000 तो हैं मेरे पास. मैं और भाभी ड्रैसेज लाएंगी. ठीक है न भाभी? लंदन में यही ड्रैसेज काम आ जाएंगी.’’

‘‘हांहां, क्रैडिट कार्ड ले लेगी माला… दोनों शौपिंग कर लेना.’’

माला अरुण को मुंह बाए खड़ी देखती रह गई कि क्या ये वही अरुण हैं, जिन्होंने कहा था कि पहले शादी में मिली ड्रैसेज को यूज करो, फिर नई खरीदना. तो क्या श्वेता को ड्रैसेज का ढेर नहीं मिला है शादी में? ये छोटीबड़ी बातें माला का मन कड़वाहट से भरती जा रही थीं.

उस दिन तो माला का मन जोर से चिल्लाना चाहा था जब श्वेता बिस्तर में सुबह 9 बजे तक चैन की नींद ले रही थी और वह रसोई में लगी हुई थी. तभी अरुण ने श्वेता को चाय दे कर जगाने को कह दिया. वह जानती थी कि अरुण को देर तक बिस्तर में पड़े रहना पसंद नहीं. फिर श्वेता से कुछ भी क्यों नहीं कहा जाता? मन में उठता विचारों का ज्वार, सुहागरात की ओर बहा ले गया कि मुझे तो प्रथम मिलन की रात्रि में प्यार के पलों से पहले संस्कार, परिवार के नियमों आदि का पाठ पढ़ाया था अरुण ने… फिर तभी चाय उफनने की आवाज उसे वर्तमान में ले आई.

मैं आज और अभी अरुण से पूछ कर ही रहूंगी, सोच माला बाथरूम में शेव करते अरुण के पास जा खड़ी हुई.

‘‘क्या बात है? कोई काम है क्या?’’ शेविंग रोक अरुण ने पूछा.

‘‘क्या मैं जबरदस्ती आप के गले मढ़ी गई हूं? क्या मुझ में कोई अच्छाई नहीं है?’’

अरुण हाथ में शेविंगब्रश लिए हैरान सा खड़ा रहा. पर माला बोलती रही, ‘‘हर समय बस श्वेताश्वेता. मुझ से तो परंपरा निभाने की बात करते रहे और इस का बिंदासपन अच्छा लगता है. आखिर क्यों?’’ माला का चेहरा लाल होने के साथसाथ आंसुओं से भी भीग चला था.

‘‘तुम्हारा तो दिमाग खराब हो गया है. तुम्हारे मन में इतनी जलन, ईर्ष्या कहां से आ गई? श्वेता के नाम से चिढ़ क्यों हो रही है? देवरानी तो छोटी बहन जैसी होती है और तुम तो न जाने…’’

‘‘बस फिर शुरू हो गया मेरे लिए आप का प्रवचन. उस की हर बात गुणों से भरी होती है और मेरी बुराई से,’’ कह पांव पटकती माला अपने कमरे में चली गई.

अरुण बिना नाश्ता किए व लंच टिफिन लिए औफिस चला गया. उस दिन माला को माइग्रेन का अटैक पड़ गया. सिरदर्द धीरेधीरे बढ़ता उस की सहनशक्ति से बाहर हो गया. उलटियों के साथसाथ चक्कर भी आ रहा था. श्वेता ने मैडिकल किट छान मारी पर दर्द की कोई गोली नहीं मिली. उस ने अरुण को फोन किया तो सैक्रेटरी ने बताया कि वे मीटिंग में व्यस्त हैं.

इधर माला अपना सिर पकड़ रोए जा रही थी. तभी श्वेता 10 मिनट के अंदर औटो द्वारा मैडिकल स्टोर से दर्द की दवा ले आई और कुछ मानमनुहार तथा कुछ जबरदस्ती से माला को दवा खिलाई. माथे पर बाम मल कर धीरेधीरे सिरमाथे को तब तक दबाती रही जब तक माला को नींद नहीं आ गई.

करीब 2 घंटे बाद माला की आंखें खुलीं. तबीयत में काफी सुधार था. सिर हलका लग रहा था. उस ने उठ कर इधरउधर नजर दौड़ाई तो देखा श्वेता 2 कप चाय व स्नैक्स ले कर आ रही है.

‘‘अरे भाभी, आप उठो नहीं… यह लो चाय और कुछ खा लो. शाम के खाने की चिंता मत करना, मैं बना लूंगी. हां, आप जैसा तो नहीं बना पाऊंगी पर ठीकठाक बना लूंगी,’’ कह उस ने चाय का प्याला माला को थमा दिया.

माला श्वेता के इस व्यवहार को देख उसे ठगी सी देखती रह गई.

‘‘क्या हुआ भाभी?’’

‘‘मुझे माफ कर दो श्वेता, मैं ने तो न मालूम क्याक्या सोच लिया था… तुम्हें प्रतिद्वंद्वी के रूप में देख रही थी. और…’’

‘‘नहींनहीं भाभी, और कुछ मत कहिए आप, अब मैं आप से कुछ भी नहीं छिपाऊंगी. सच में ही मुझे अपने रंगरूप पर अभिमान रहा है. मुझ में उतना धैर्य नहीं जितना आप में है. इसीलिए मैं आप को चिढ़ाने के लिए अपने में व्यस्त रही… आप की कोई मदद नहीं करती थी. भाभी, आप मुझे माफ कर दीजिए. आज से हम रिश्ते में भले ही देवरानीजेठानी हैं पर रहेंगी छोटीबड़ी बहनों की तरह,’’ और फिर दोनों एकदूसरे के गले से लग गईं.

‘‘सच श्वेता. मैं आज से अपने मन को गलत दिशा की तरफ भटकने से रोकूंगी और तुम्हारे भैया से माफी भी मांगूंगी.’’

अब श्वेता व माला एकदूसरे को देख कर मुसकरा रही थीं.

अब इंटैंसिव केयर यूनिट यानी आईसीयू (ICU) में बढ़ेगा सरकारी दखल

इंटैंसिव केयर यूनिट यानी आईसीयू में मरीज को भरती कर अनावश्यक रूप से अस्पताल पैसे बनाने का काम करते हैं. ये शिकायतें आम हो रही हैं. इन हालात को देखते हुए सरकार ने आईसीयू में भरती के कुछ नियम बना दिए हैं. इस से आईसीयू भरती में सरकारी दखल बढ़ेगा. कोरानाकाल में यह देखने को मिला था जब मरीज को भरती करने के लिए सीएमओ का रैफरल लैटर जरूरी होता था. उस दौर में तमाम मरीज रैफरल लैटर के इंतजार में ही जान गंवा बैठते थे.

आईसीयू में सरकारी दखल के बाद सरकारी अफसर अस्पतालों पर अपना दबाव बढ़ाने लगेंगे. उन के लिए चढ़ावे का एक और रास्ता खुल जाएगा. सरकार को यह लगता है कि उस के विभाग बहुत ईमानदार हैं. वह यह नहीं सोचती कि जितने कानून बनेंगे, चढ़ावे का चलन बढ़ता जाएगा. दिशानिर्देशों का प्रयोग एक सीमा तक ही सही है. उस को बहुत जरूरी या कानून जैसा बना दिया गया तो दिक्कतें बढ़ जाएंगी. सबकुछ पीएमओ जैसे अफसरों की दखल में हो, यह जरूरी नहीं होना चाहिए.

मरीज और घर वालों की मरजी जरूरी

आईसीयू में मरीजों को कब दाखिला देना और कब उन्हें आईसीयू में नहीं रखना है, इस को ले कर सरकार ने दिशानिर्देश जारी किए हैं. देखने में ऐसा लगता है जैसे इस से मरीजों की दिक्कतें कम हो जाएंगी. असल में इस से अस्पताल में मरीजों की भरती होने पर सरकारी दखल बढ़ेगा. आईसीयू में इलाज की आवश्यकता को बताने के लिए क्रिटिकल केयर मैडिसिन के जानकार 24 शीर्ष डाक्टरों के एक पैनल ने ये नियम तैयार किए हैं.

दिशानिर्देशों में उन इलाज की उन जरूरतों को बताया गया है जिन में मरीज को आईसीयू में प्रवेश की आवश्यकता होती है. इस में यह भी बताया गया है कि कब मरीज को आईसीयू में नहीं रखा जाना चाहिए और कब उसे आईसीयू से डिस्चार्ज कर दिया चाहिए.

भारत सरकार के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय द्वारा जारी इन दिशानिर्देशों में बताया गया है कि अधिकांश विकसित देशों में संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए रोगियों का परीक्षण करने के लिए प्रोटोकौल हैं. दिशानिर्देशों में ऐसे करीब 7 मानदंड तय किए गए हैं जिन के अनुसार मरीज को आईसीयू में भरती किया जा सकता है.

इस में कहा गया है कि सिर्फ किसी अंग के फेल हो जाने, किसी अंग से जुड़ी बाहरी मदद की स्थिति, गहन निगरानी की आवश्यकता वाली गंभीर बीमारी के मामले, रोगी को श्वसन सहायता की आवश्यकता होने, सर्जरी के बाद के मामलों में हालत बिगड़ने से रोकेने, चेतना का स्तर परिवर्तित हो जाने आदि स्थितियों में ही मरीज को आईसीयू में भरती किया जाए.

मरीज की वसीयत में या मरीज के रिश्तेदारों की मरजी के खिलाफ रोगी को आईसीयू में भरती नहीं किए जाने का निर्देश हैं. जब मरीज को ऐसी बीमारी हो जिस में ठीक होने की संभावना सीमित हो या फिर जब उपचार से लाभ होने की संभावना न हो तो भी मरीज को आईसीयू में भरती न किया जाए.

नियमकानून नहीं, स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ाएं

इंडियन सोसाइटी औफ क्रिटिकल केयर मैडिसिन एक्सपर्ट्स कमेटी के चेयरमैन डाक्टर नरेंद्र रूंगटा का मानना है कि आईसीयू में मरीज की भरती का मानदंड यह होना चाहिए कि हम मरीज के शेष बचे दिनों में जीवन का संचार कर सकें न कि उस के जीवन में मात्र कुछ दिन जोड़ सकें. कई बार मरीज को डाक्टर के हाथों इलाज के बजाय अपनों के बीच देखभाल की जरूरत होती है. ऐसे हालात में मरीज को आईसीयू में भरती करना मरीज के साथ अत्याचार है. साथ ही, इस से मरीज की जेब पर अनावश्यक रूप से खर्च भी आता है.

प्राइवेट अस्पतालों में आईसीयू बैड की कीमत जनरल बैड की जगह पर 5 से 10 गुनी अधिक होती है. आईसीयू के बैड कम होते हैं. ऐसे में उन का प्रयोग बहुत सावधानी से करना चाहिए. इन दिशानिर्देशों को डाक्टर के विवेक पर छोड़ना ही सही होगा क्योंकि वही जानता है कि मरीज को किस तरह के इलाज की जरूरत है. इस की एक वजह यह भी है कि हमारे यहां आईसीयू के बैड कम हैं.

सरकारी अस्पतालों में बैड हैं तो उन पर काम करने वाला मैडिकल स्टाफ नहीं है. सरकार मशीन और बैड तो खरीद लेती है पर स्टाफ नहीं रखती, जिस से मशीनें और बैड धूल खाते हुए खराब हो जाटे हैं. ऐेसे मे सरकार को नियमकानून बनाने के साथ ही साथ संसाधन बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए. स्वास्थ्य सेवाओं पर केवल पैसे वालों का ही हक नहीं होना चाहिए. गरीब मरीज भी स्वास्थ्य लाभ ले सके, इस का प्रबंध सरकार को करना चाहिए.

उदासी मन काहे को करे तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार

उम्मीद की जानी चाहिए कि 22 जनवरी के सूर्योदय के साथ ही आम लोगों की जिंदगी में कोई समस्या, कमी या अभाव नहीं रह जाएगा. चारों तरफ खुशहाली होगी, कोई बेरोजगार नहीं रहेगा, कोई बीमार नहीं पड़ेगा, किसी को कोई दैहिक या दैविक कष्ट नहीं होगा, सभी बराबर होंगे, शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीने लगेंगे, सामाजिक तौर पर देखेंगे तो एक समतामूलक समाज की स्थापना हो जाएगी, देवालयों में यज्ञभजनकीर्तन हो रहे होंगे, सभी लोग विष्णु की आराधना कर रहे होंगे, धरती बिना मेहनत किए अनाज उगल रही होगी, पेड़ फूलों और फलों से लदे होंगे. रामराज की महिमा के बखान का संक्षिप्त उपसंहार इस बात से किया जा सकता है कि गायें तक बिना गाभिन हुए ही दूध दे रही होंगी.

भारत राममय हो रहा है. राम ज्योति जलाने की अपील हो रही है. लोगों से आह्वान किया जा रहा है कि वे 22 जनवरी को जितना ज्यादा हो सके, पूजापाठ करें, मंदिरों में जाएं, रामधुन पर नाचेंगाएं. देश के 5 लाख मंदिरों में उत्सव होगा. अयोध्या की झांकी सीधे प्रसारित की जाएगी. आखिर, 500 साल बाद देश में सनातन धर्म की पुनर्स्थापना जो हो रही है . रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी जिस के गवाह बनने के लिए लाखों लोग अयोध्या पहुंच रहे हैं. यही लोग  सद्कर्मी और राम के प्रिय हैं. अधर्मी, विधर्मी और नास्तिक, वामपंथी तो न्योता दिए जाने के बाद भी राममहिमा समझ नहीं पा रहे. विधाता ने उन की बुद्धि हर रखी है. अभी उन के उद्धार और मुक्ति का समय नहीं आया है

एक तीर से कई निशाने

साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने जो कहा था उसे उन्होंने कर दिखाया है. राममंदिर निर्माण भाजपा का वादा था, जो अब पूरा हो गया है. सो, जनता से अब कहा जा रहा है कि जो भी मांगना है, मंदिरों में जा कर मांगो. रोजगार अब भगवानजी देंगे, महंगाई भी वही कम करेंगे. अस्पताल, सड़कें और स्कूल जितना हो सकता है, हम बनवा ही रहे हैं और ज्यादा चाहिए तो इस के लिए भजनकीर्तन करो, पूजापाठ से प्रभु को प्रसन्न करो.

यह ठीक है कि मौजूदा भगवा सरकार पूजापाठी है. देश के अधिकतर लोग भी पूजापाठी हैं और अब 22 जनवरी के बहाने उन्हें और उकसाया जा रहा है, जिस का मकसद यही है कि लोग सरकार से उस के किए का हिसाबकिताब न मांगें. जो मांगना है, भगवान से मांगें और इस के लिए मंदिर जाएं. वहां भी कुछ मुफ्त में नहीं मिलता है बल्कि पंडेपुजारियों को दक्षिणा चढ़ानी पड़ती है. इस से पैसा ब्राह्मणों को मिलता है. असल सत्ता तो वही चलाते हैं.

यही लोग भाजपा को वोट दिलाते हैं कि देखो, बड़ी धार्मिक सरकार है, यही कल्याण कर सकती है और लोग वोट दे देते हैं. 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर भाजपा के पास एयरस्ट्राइक सरीखा कोई वोटकमाऊ मुद्दा है नहीं, सो उस ने राममंदिर को मुद्दा बना लिया है. अब वह मंदिर निर्माण की दक्षिणा मांग रही है तो कोई गुनाह नहीं कर रही क्योंकि जनता ने उसे चुना भी इसी मुद्दे पर था.

किसे क्या मिल रहा है

22 जनवरी को देशभर के मंदिरों में पूजापाठ के एवज में लोग जेब और दिल खोल कर दानपत्रों में पैसा डालेंगे, यही सरकार का मकसद भी है कि ज्यादा से ज्यादा लोग पूजापाठ की मानसिकता के शिकार हों. इसे ही मानसिक गुलामी कहते हैं कि जनता खुद से जुड़े मुद्दे भूल कर सरकार की मंशा के मुताबिक नाचे. पूजापाठ से कुछ मिलता होता तो अब तक मिल चुका होता. यह दुनिया का सब से बड़ा कारोबार है जिस में लोगों को मिलता कुछ नहीं है, उलटे, वे जिंदगीभर कि अपनी गाढ़ी कमाई का हिस्सा धर्म के दुकानदारों को बतौर धर्म टैक्स देते रहते हैं.

जो माहौल अभी अयोध्यामय दिख रहा है वह तात्कालिक या 22 जनवरी को ही खत्म हो जाने वाला नहीं है. वह अब सालोंसाल चलेगा. लोग भव्य अयोध्या और राममंदिर देखने सालोंसाल वहा जाएंगे. सरकार अभी लोगों को अयोध्या जाने को जो प्रोत्साहित कर रही है वह किसी प्रोडक्ट के प्रचार जैसा है. इस के बाद उसे कुछ नहीं करना. अयोध्या भी काशी, मथुरा, उज्जैन और तिरुपति जैसा हो जाएगा. तब तक मुमकिन है भाजपा फिर केंद्रीय सत्ता में हो. और फिर वह कोई नया शिगूफा ढूंढ लेगी.

आमलोग धर्म के जनून में डूबे सोच ही नहीं पा रहे हैं कि इस से उन्हें कुछ नहीं मिल रहा है. जो जेब से जा रहा है वह साफ दिख रहा है. यही नहीं, उसे एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार से जो मिलना चाहिए था, उस से भी वह वंचित हो रहे हैं.

मीडिया बिक चुका है, विपक्ष हताश है, आम लोग अफीम के नशे में झूम रहे हैं और यह माहौल बनाने वाले कह रहे हैं, तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार, उदासी मन काहे को करे.

रोजाना सुबह खाली पेट पिएं शहद और नीबू पानी, शरीर को मिलेंगे ढेरों फायदे

Lemon & Honey Water Benefits : खराब लाइफस्टाइल और भागदौड़ वाली जिंदगी के चलते कई लोगों को अपनी सेहत का ख्याल रखने का समय नहीं मिलता है. ऐसे में न चाहते हुए भी उनको कई बीमारियां अपने चपेट में ले लेती हैं. अगर आपको भी लगता है कि आपकी लाइफस्टाइल खराब हो रही है. तो आज हम आपको एक ऐसे उपाय के बारे में बताएंगे, जिसे अपनाने से कुछ ही समय में आपकी एक या दो नहीं बल्कि कई सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी.

दरअसल, एक शोध में खुलासा हुआ है कि रोज सुबह खाली पेट नींबू और शहद का पानी पीने से शरीर को कई लाभ मिलते हैं. नींबू, जहां विटामिन-C का समृद्ध स्रोत होता है. तो वहीं शहद इम्युनिटी को मजबूत बनाने में काफी मददगार होता है. ऐसे में इन दोनों के मिश्रण से शरीर की कई समस्याएं छूमंतर हो जाती हैं. तो आइए जानते हैं प्रतिदिन नींबू और शहद के पानी (Lemon & Honey Water Benefits) को पीने से मिलने वाले फायदों के बारे में.

शहद और नींबू का पानी पीने के 6 आश्चर्यजनक लाभ

1. शरीर रहता है डिटॉक्स

नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन के अनुसार, रोजाना सुबह एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू का रस और शहद (Lemon & Honey Water Benefits) को मिलाकर पीने से शरीर डिटॉक्स रहता है. दरअसल, नींबू और शहद के संयोजन से बने मिश्रण में बहुत सारे शक्तिशाली रोगाणुरोधी गुण होते हैं. जो कि बैक्टीरिया के साथ-साथ कीटाणुओं की शक्ति को भी कम करने में फायदेमंद होते है. इसी वजह से खाली पेट इसे पीने से शरीर में मौजूद सभी हानिकारक तत्व बाहर निकल जाते हैं.

2. कम करता है वजन

शहद-नींबू में मौजूद तत्व मेटाबॉलिज्म की दर को बढ़ाते है, जिससे आसानी से वजन कम होता है. साथ ही इसे पीने से शरीर भरा-भरा रहता है, जिससे बार-बार भूख नहीं लगती है और शरीर हाइड्रेट रहता है.

3. पाचन में करता है मदद

प्रतिदिन खाली पेट नींबू और शहद का पानी (Lemon & Honey Water Benefits) पीने से पाचन संबंधी समस्याएं भी दूर होने लगती हैं. साथ ही पाचन तंत्र और मल त्याग बेहतर होता है. इसके अलावा पेट फूलने की समस्या और सूजन की समस्या से भी छुटकारा मिलता है.

4. त्वचा होती है साफ

नियमित नींबू और शहद का पानी पीने से पिंपल्स और दाग-धब्बों की समस्या भी खत्म होती हैं. दरअसल, ये पेय जीवाणुरोधी होता है तो सुबह-सुबह इसे पीने से शरीर में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया मर जाते हैं, जिससे त्वचा संबंधी समस्याएं अपने आप कम होने लगती हैं.

5. इम्युनिटी होती है मजबूत

रोजाना सुबह गर्म पानी में शहद और नींबू का रस (Lemon & Honey Water Benefits) मिलाकर पीने से इम्युनिटी मजबूत होती है. साथ ही फ्लू, खांसी और सर्दी-जुकाम की समस्या से भी छुटकारा मिलता है.

6. इन्फ्लेमेशन होता है दूर

नींबू और शहद का मिश्रण इन्फ्लेमेशन को कम करने में भी मददगार होता है. साथ ही ये डायबिटीज, किडनी स्टोन, अलसर, कोलेस्ट्रोल और वात आदि की समस्या को भी कम करता है.

सुबह उठते ही शुरू हो जाता है सिरदर्द, तो जानें कारण और बचाव के उपाय

Morning Headache Causes and Preventive Measures : सिरदर्द, ये एक ऐसी समस्या है. जो आमतौर पर सभी लोगों को रहती ही है. जहां कुछ लोगों को कभी-कभी सिरदर्द होता है. तो वहीं कुछ लोगों का सिर हर समय भारी-भारी रहता है. इसके अलावा कुछ लोग तो ऐसे भी है, जिन्हें सुबह उठते ही सिरदर्द की समस्या होने लगती है. अगर आपको भी रोजाना सुबह उठते ही सिरदर्द होने लगता है. तो आज हम आपको इस आर्टिकल में इसके कारण और बचाव के उपायों (Morning Headache Causes and Preventive Measures) के बारे में बताएंगे.

क्यों होता है सिरदर्द ?

  1. आपको बता दें कि सुबह उठते ही होने वाला सिरदर्द ज्यादातर टेंशन की वजह से होता है.
  2. इसके अलावा जो लोग शिफ्ट्स में काम करते हैं. उन्हें भी अक्सर सुबह उठते ही सिरदर्द (Morning Headache Causes) का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन लोगों की नींद का समय बदलता रहता है. ऐसे में उनकी बॉडी को रुटीन चेंज करने में दिक्कत होती है और नींद पूरी नहीं हो पाती, जिससे सुबह उठते ही सिरदर्द होने लगता है.
  3. वहीं इंसोमनिया की समस्या के कारण भी सुबह उठते ही सिरदर्द की समस्या रहती है. इस समस्या में व्यक्ति सोने का प्रयास करता है, लेकिन उसे नींद नहीं आती. ऐसे में उसे सुबह उठते ही सिरदर्द का एहसास होता है.
  4. इसके अलावा सही तकिया ना होने पर भी सुबह सिरदर्द की समस्या होने लगती है.
  5. डिप्रेशन और एंग्जाइटी की वजह से भी कई लोगों को सुबह उठते ही सिरदर्द होने लगता है.
  6. वहीं कुछ दवाइयां लेने से भी नींद प्रभावित होती है, जिससे सुबह सोकर उठने पर व्यक्ति को सिरदर्द का सामना करना पड़ता है.

गौरतलब है कि अगर आपको कभी भी सिरदर्द होता है तो इसमें कोई घबराने की बात नहीं है लेकिन जब सामान्य से अधिक सिरदर्द होने लगे तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं.

सुबह के सिरदर्द होने के लक्षण

आपको बता दें कि, सिरदर्द (Morning Headache Symptoms) होने के सभी लोगों में अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं. जैसे कि-

  1. जिन लोगों को आधे सिर में बहुत तेज दर्द होता है, तो उन्हें माइग्रेन की समस्या हो सकती है.
  2. इसके अलावा जब क्लस्टर सिरदर्द की समस्या होती है, तो सिर और आंखों के आसपास बहुत अधिक जलन का एहसास होता है.
  3. वहीं साइनस से होने वाला सिरदर्द ज्यादातर किसी इंफेक्शन या बीमारी की वजह से होता है. जो अक्सर नाक के साथ-साथ आंखों और माथे में भी होता है.

सिरदर्द से बचने के उपाय

  1. आपको बताते चलें कि माथे पर कोल्ड पैक रखने से माइग्रेन से होने वाले सिरदर्द (Morning Headache Preventive Measures ) में राहत मिलती है. इसके लिए आइस पैक को ब्रेक-ब्रेक पर कम से कम 15 मिनट के लिए माथे पर रखें.
  2. इसके अलावा सिरदर्द की समस्या में गर्दन और सिर के पीछे हीटिंग पैक रखने से भी राहत मिलती है.
  3. सुबह उठते ही अगर आपको सिरदर्द की समस्या रहती है. तो ऐसे में गर्म पानी से नहाने से काफी राहत मिलती है.
  4. वहीं जिस समय आपको सिरदर्द हो रहा है उस समय टेंशन न लें और बालों को खुला छोड़ दें. इससे सिरदर्द में काफी राहत मिलती है.
  5. इसके अलावा अगर आप च्युइंग गम ज्यादा चबाते है तो ऐसा न करें. इससे न सिर्फ जबड़ों में दर्द होता है. साथ ही सिरदर्द भी होने लगता है. इसलिए सिरदर्द में ज्यादा हार्ड चीजें न चबाएं और हल्की डाइट लें.
  6. सिरदर्द की समस्या में थोड़ी मात्रा में कैफीन का सेवन करना भी फायदेमंद होता है.
  7. अधिक मात्रा में शराब पीने से भी कुछ लोगों को सिरदर्द और तनाव का सामना करना पड़ता है. ऐसे में सिरदर्द व माइग्रेन की समस्या में शराब पीने से बचें.

वो जलता है मुझ से : विजय को तकलीफ क्यों होने लगी थी ? – भाग 2

‘‘जिस नौकरी में तुम्हारा वह दोस्त है न वहां लाखों कमा कर तुम से भी बड़ा महल बना सकता था लेकिन वह ईमानदार है तभी अभी तक अपना घर नहीं बना पाया. तुम्हारी अमीरी उस के लिए कोई माने नहीं रखती, क्योंकि उस ने कभी धनसंपदा को रिश्तों से अधिक महत्त्व नहीं दिया. दोस्ती और प्यार का मारा आता था. तुम्हारा व्यवहार उसे चुभ गया होगा इसलिए उस ने भी हाथ खींच लिया.’’ ‘‘तुम्हें क्या लगता है…मुझ में उच्च गं्रथि का विकास होने लगा है या हीन ग्रंथि हावी हो रही है?’’

‘‘दोनों हैं. एक तरफ तुम सोचने लगे हो कि तुम इतने अमीर हो गए हो कि किसी को भी खड़ेखडे़ खरीद सकते हो. तुम उंगली भर हिला दोगे तो कोई भी भागा चला आएगा. यह मित्र भी आता रहा, तो तुम और ज्यादा इतराने लगे. दोस्तों के सामने इस सत्य का दंभ भी भरने लगे कि फलां कुरसी पर जो अधिकारी बैठा है न, वह हमारा लंगोटिया यार है. ‘‘दूसरी तरफ तुम में यह ग्रंथि भी काम करने लगी है कि साथसाथ चले थे पर वह मेज के उस पार चला गया, कहां का कहां पहुंच गया और तुम सिर्फ 4 से 8 और 8 से 16 ही बनाते रह गए. अफसोस होता है तुम्हें और अपनी हार से मुक्ति पाने का सरल उपाय था तुम्हारे पास उसे बुला कर अपना प्रभाव डालना. अपने को छोटा महसूस करते हो उस के सामने तुम. यानी हीन ग्रंथि.

‘‘सत्य तो यह है कि तुम उसे कम वैभव में भी खुश देख कर जलते हो. वह तुम जितना अमीर नहीं फिर भी संतोष हर पल उस के चेहरे पर झलकता है…इसी बात पर तुम्हें तकलीफ होती है. तुम चाहते हो वह दुम हिलाता तुम्हारे घर आए…तुम उस पर अपना मनचाहा प्रभाव जमा कर अपना अहम संतुष्ट करो. तुम्हें क्या लगता है कि वह कुछ समझ नहीं पाता होगा? जिस कुरसी पर वह बैठा है तुम जैसे हजारों से वह निबटता होगा हर रोज. नजर पहचानना और बदल गया व्यवहार भांप लेना क्या उसे नहीं आता होगा. क्या उसे पता नहीं चलता होगा कि अब तुम वह नहीं रहे जो पहले थे. प्रेम और स्नेह का पात्र अब रीत गया है, क्या उस की समझ में नहीं आता होगा? ‘‘तुम कहते हो एक दिन उस ने तुम्हारी गाड़ी में बैठने से मना कर दिया. उस का घर तुम्हारे घर से ज्यादा दूर नहीं है इसलिए वह पैदल ही सैर करते हुए वापस जाना चाहता था. तुम्हें यह भी बुरा लग गया. क्यों भई? क्या वह तुम्हारी इच्छा का गुलाम है? क्या सैर करता हुआ वापस नहीं जा सकता था. उस की जराजरा सी बात को तुम अपनी ही मरजी से घुमा रहे हो और दुखी हो रहे हो. क्या सदा दुखी ही रहने के बहाने ढूंढ़ते रहते हो?’’

आंखें भर आईं विजय की. ‘‘प्यार करते हो अपने दोस्त से तो उस के स्वाभिमान की भी इज्जत करो. बचपन था तब क्या आपस में मिट्टी और लकड़ी के खिलौने बांटते नहीं थे. बारिश में तुम रुके पानी में धमाचौकड़ी मचाना चाहते थे और वह तुम्हें समझाता था कि पानी की रुकावट खोल दो नहीं तो सारा पानी कमरों में भर जाएगा.

‘‘संसार का सस्तामहंगा कचरा इकट्ठा कर तुम उस में डूब गए हो और उस ने अपना हाथ खींच लिया है. वह जानता है रुकावट निकालना अब उस के बस में नहीं है. समझनेसमझाने की भी एक उम्र होती है मेरे भाई. 45 के आसपास हो तुम दोनों, अपनेअपने रास्तों पर बहुत दूर निकल चुके हो. न तुम उसे बदल सकते हो और न ही वह तुम्हें बदलना चाहता होगा क्योंकि बदलने की भी एक उम्र होती है. इस उम्र में पीछे देख कर बचपन में झांक कर बस, खुश ही हुआ जा सकता है. जो उस ने भी चाहा और तुम ने भी चाहा पर तुम्हारा आज तुम दोनों के मध्य चला आया है. ‘‘बचपन में खिलौने बांटा करते थे… आज तुम अपनी चकाचौंध दिखा कर अपना प्रभाव डालना चाहते हो. वह सिर्फ चाय का एक कप या शरबत का एक गिलास तुम्हारे साथ बांटना चाहता है क्योंकि वह यह भी जानता है, दोस्ती बराबर वालों में ही निभ सकती है. तुम उस के परिवार में बैठते हो तो वह बातें करते हो जो उन्हें पराई सी लगती हैं. तुम करोड़ों, लाखों से नीचे की बात नहीं करते और वह हजारों में ही मस्त रहता है. वह दोस्ती निभाएगा भी तो किस बूते पर. वह जानता है तुम्हारा उस का स्तर एक नहीं है.

‘‘तुम्हें खुशी मिलती है अपना वैभव देखदेख कर और उसे सुख मिलता है अपनी ईमानदारी के यश में. खुशी नापने का सब का फीता अलगअलग होता है. वह तुम से जलता नहीं है, उस ने सिर्फ तुम से अपना पल्ला झाड़ लिया है. वह समझ गया है कि अब तुम बहुत दूर चले गए हो और वह तुम्हें पकड़ना भी नहीं चाहता. तुम दोनों के रास्ते बदल गए हैं और उन्हें बदलने का पूरापूरा श्रेय भी मैं तुम्हीं को दूंगा क्योंकि वह तो आज भी वहीं खड़ा है जहां 20 साल पहले खड़ा था. हाथ उस ने नहीं तुम ने खींचा है. जलता वह नहीं है तुम से, कहीं न कहीं तुम जलते हो उस से.

तुम्हें अफसोस हो रहा है कि अब तुम उसे अपना वैभव दिखादिखा कर संतुष्ट नहीं हो पाओगे… और अगर मैं गलत कह रहा हूं तो जाओ न आज उस के घर पर. खाना खाओ, देर तक हंसीमजाक करो…बचपन की यादें ताजा करो, किस ने रोका है तुम्हें.’’ चुपचाप सुनता रहा विजय. जानता हूं उस के छोटे से घर में जा कर विजय का दम घुटेगा और कहीं भीतर ही भीतर वह वहां जाने से डरता भी है. सच तो यही है, विजय का दम अपने घर में भी घुटता है. करोड़ों का कर्ज है सिर पर, सारी धनसंपदा बैंकों के पास गिरवी है. एकएक सांस पर लाखों का कर्ज है. दिखावे में जीने वाला इनसान खुश कैसे रह सकता है और जब कोई और उसे थोड़े में भी खुश रह कर दिखाता है तो उसे समझ में ही नहीं आता कि वह क्या करे. अपनी हालत को सही दिखाने के बहाने बनाता है और उसी में जरा सा सुख ढूंढ़ना चाहता है जो उसे यहां भी नसीब नहीं हुआ.

अपनों का सुख: बूढ़े पिता के आगे शुभेंदु को अपना कद बौना क्यों लग रहा था- भाग 2

‘अब लेकिनवेकिन कुछ नहीं पिताजी. हमें पुणे जाना है, तो जाना है.’ निष्ठुर शुभेंदु ने निर्लज्जता से जवाब दिया.

‘ठीक है बेटा, जैसा तुम अच्छा समझो,’ व्यथित मन से शिवजी साह ने कहा.

“मैम, क्या सोचने लगीं. लीजिए गरमगरम पकौड़े और कौफी पीजिए, तनाव खत्म हो जाएगा,” मीणा की आवाज सुन कर सुधा चौंकी और अपने खयालों से वापस आई.

कौफी की चुस्कियां लेते हुए सुधा ने कहा, “मीणा, शुभेंदु के पिता को तुम्हीं फोन करो, उन से बात करने की मुझ में हिम्मत नहीं है.”

“ऐसा नहीं कहते मैम, अपनों से बात हिम्मत से नहीं, अपनत्व की भावना से की जाती है. कहा गया है कि पुत्र भले कुपुत्र हो जाए, लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती. आप अपना मोबाइल मुझे दीजिए, नंबर लगा देती हूं. आप बात करें,” मीणा ने उत्सुकता से कहा.

“नहीं, नहीं, तुम ही बात करो.”

“इस का मतलब यह हुआ कि अब भी आप उन्हें अपना नहीं समझतीं. तब तो फुजूल की बहस करने से क्या लाभ. अब मैं चली,” गुस्सा में मीणा ने उलाहना दिया और जाने के लिए दरवाजे की ओर अपना रुख किया.

“गुस्ताख़ी माफ़ करो, मीणा. मैं अपने ससुर से बात करूंगी. उन से पुणे आने के लिए विनती करूंगी.” मीणा से माफी मांगते हुए सुधा की आंखें भर आईं. उस ने मोबाइल का स्पीकर औन कर भर्राई आवाज में कहा,

“हैलो, हैलो, मैं सुधा पुणे से बोल रही हूं.”

“हां, हां, बोलो, क्या बात है, बहू? मैं सुनंदा, तेरी सास बोल रही हूं,” आवाज पहचानते ही सुनंदा ने पूछा.

“मैं मुसीबत में घिर गई हूं. मां, आप पिताजी को ले कर जल्द पुणे पहुंचिए. आप का लाडला बेटा जेल में बंद है.”

“ओह, यह तो बहुत ही दुखद बात है. लेकिन बहू, घबराना नहीं, हम आ रहे हैं,” सुनंदा ने व्यग्रता के साथ उस से कहा.

तभी शिवजी साह सुनंदा के पास पहुंचे और पूछा, “किस का फोन है?”

“पुणे से, बहू का”

“बहू, सुधा का” अचरज के साथ शिव जी ने आश्चर्य प्रकट किया. उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि उन के परिवार में बेटा और बहू भी हैं. उन्होंने सुनंदा से मोबाइल अपने हाथ में ले लिया और पूछा, “हैलो, हैलो, कैसी हो बहू, तेरा ससुर बोल रहा हूं.”

“शुभेंदु जेल में है पिताजी, मैं क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है?”

“वह जेल में कैसे बंद हो गया?” धैर्य के साथ शिव जी ने पूछा.

“एक पब में शुभेंदु का जाट ग्रुप के युवकों से झगड़ा हो गया था. जिस के कारण शुभेंदु पर केस हो गया है,” संयत हो कर सुधा ने जवाब दिया.

“ओह, चिंता न करो बहू. हम पैसे का इंतजाम कर तुरंत पहुंचते हैं.”

“ठीक है पिता जी, जल्द आइए. मैं आप का इंतजार करूंगी.”

” ठीक है, तुम अपने को अकेला न समझना.”

शिव जी ने कहने के लिए तो कह दिया कि अकेला न समझना, लेकिन वे स्वयं 20 वर्षों से अकेले थे, जब से शुभेंदु का अचार, विचार और व्यवहार बदल गया था. वे उस से बहुत ही आहत रहते थे. सोचे थे कि जवान बेटा की शादी के बाद उन के आंगन में खुशियां दिल खोल कर नाचेंगी. बहू के पायलों की रुनझुन से घर में छाई मनहूसियत भागेगी. नन्हेमुन्ने शिशुओं की किलकारियों से घरआंगन गुलज़ार होगा. लेकिन यह क्या हो गया. उन के सुखशांति में किस की बुरी नजर लग गई.

उस वक्त बहू सुधा और शुभेंदु द्वारा बीमार सुनंदा को छोड़ कर चले जाने से सुनंदा तनाव में आ गई. जिस के कारण उस का शुगर और बीपी बढ़ गया. चक्कर आने के बाद सुनंदा बाथरूम में गिर कर घायल हो गई.

संयोग अच्छा था कि उस समय शिवजी घर में ही थे. किसी तरह अपने पड़ोसी की मदद से सुनंदा को पास के अस्पताल में भरती कराया. एक सप्ताह इलाज के बाद सुनंदा स्वस्थ हो गई. लेकिन वह बहुत कमजोर थी. खुद अपना दैनिक कार्य भी नहीं कर पाती थी. प्रत्येक कार्य में उसे अपने पति का सहयोग लेना पड़ता था.

झरिया जैसे छोटे शहर में कोई ढंग की दाई तक नहीं थी. मध्यवर्गीय परिवार के लोग अपने घर का काम खुद या पड़ोसियों की मदद से करते थे. खासकर बहू सुधा के नहीं रहने से घरेलू स्थित और भी डगमगा गई थी.

इसी तरह दिन, महीने और साल गुजरते गए. धीरेधीरे शिवजी साह की बिगड़ी स्थिति उन के धैर्य, साहस और आत्मविश्वास से सुधरने लगी थी. उन का स्नेह, प्यार और यथोचित सम्मान पा कर पत्नी सुनंदा भी स्वास्थ रहने लगी. दोनों के तालमेल से उन के गृहस्थी की गाड़ी पटरी पर आ गई थी. इसी बीच शुभेंदु के जेल जाने की खबर एक दिन पुणे से बहू सुधा ने फोन पर दी.

शुभेंदु के जेल जाने की खबर ने शिवजी साह और उन की पत्नी सुनंदा के दिल की धड़कनें बढ़ा दी थीं. उन का व्याकुल मन बारबार शुभेंदु का चेहरा देखने के लिए बेचैन हो रहा था. वे चाहते थे कि जल्द से जल्द   पुणे पहुंच कर उसे जेल से बाहर लाएं.

शिवजी गांव में रहते थे पर उन्हें कोर्टकचहरी का अनुभव बहुत था क्योंकि गांवों में अकसर झगड़े होते रहते हैं. उन के एक वकील नारायण बाबू का बेटा बी के दास पूना में प्रैक्टिस कर रहा था. उन्होंने अपने परिचित वकील से कह कर शुभेंद्र का  केस लेने के लिए बी के दास को तैयार कर लिया.

उस के बाद उन्होंने गांव के सारे परिचितों को फोन कर के सारी बातें बताईं और पूछा कि उन में से किसकिस के जानकार पूना में हैं. मालूम हुआ कि मनोज का साडू दीपक सिंह पुणे में  सैशन जज है. औपचारिक बातचीत के बाद उस ने शिवजी की बात जज से करा दी. जज ने कहा, वे संबंधित मजिस्ट्रेट से न्याय करने को बोल देंगे.

गांवों में वक्त पर लोग बहुत सहायक होते हैं. इस मुसीबत में  बहुतों ने शिवजी को खुल कर उधार दे दिया.

उन्होंने अपने शहर के एक रेलवे  ठेकेदार सफीक अली से 25 हजार रुपए सूद पर लिया और जसीडीह-पुणे साप्ताहिक एक्सप्रैस से रविवार के दिन पुणे रवाना हो गए.

तीसरे दिन मंगलवार को शिवजी पुणे पहुंच गए. वहां अपनी बहू को साथ ले कर कोर्ट गए. जहां फौजदारी के चर्चित अधिवक्ता बी के दास से मिले और कहा,

“झरिया के अधिवक्ता नारायण बाबू ने  आप के पास भेजा है.”

” ओ हो, आप ही हैं शिवजी साह. आप के बारे में कल पिताजी से बात हुई थी.”

“जी सर. शुभेंदु मेरा पुत्र है जो जेल में बंद हैं. उस की  जमानत के लिए आया हूं, सर.”

“आप का पुत्र शुभेंदु क्या करता है?” अधिवक्ता ने शिवजी से पूछा.

“वह एक बैंक में लिपिक है.

“आप मेरे परिचित हैं, इसलिए समझा रहा हूं.   अगर आप केस ठीक ढंग से नहीं लड़े तो बेटा को सजा भी हो सकती है और नौकरी हाथ से निकल जाएगी. उस के जीवन में काला दाग लग जाएगा. फिर कहीं उसे नौकरी नहीं मिलेगी. सोच लीजिए, कैसे केस लड़ना है,” अधिवक्ता ने उसे हरकारा.

“सर,  हम आप के पास ही क्यों आए हैं, बेटा को जेल से बाहर निकालने और उस की नौकरी बचाने के लिए ही न. आप जैसा केस लड़ें, मुकदमा जीतना तो आप को ही है. सर, मैं तो गांवदेहात का एक व्यक्ति ठहरा.  थोड़ाबहुत  झगड़ा तो गांव में भी होता है. कोर्टकचहरी की जानकारी रखते हैं. बहरहाल, जो खर्च लगता है, उस की पूर्ति करूंगा. मुझे क्या करना है, उचित आदेश दें,”  शिवजी ने खुलेदिल से अपने मन की बात रखी.

“जब आप को मेरे ऊपर इतना भरोसा है तो मैं केस को झूठा साबित कर आप के परिवार की रक्षा करूंगा,” अधिवक्ता बी के दास ने हंसते हुए कहा.

“सर, अभी बेटे की जमानत के लिए मुझे क्या करना होगा?”

साथी : भाग 2

‘बेटा, तुम्हें तो खीर बहुत पसंद है न और लो थोड़ा सा,’ उन्होंने करीब आ कर कुछ इस तरह कहा कि कविता चौंक ही गई.

‘जी, आप को कैसे पता?’ कविता की जबान लड़खड़ा गई.

इस पर मां हंसीं, ‘अच्छा. मुझे कैसे पता? कपिल तुम्हें पिछले करीब 2 महीनों से जानता है न, समझ लो जितना वह तुम्हें जानता है उतना ही मैं भी जानती हूं.’

क्या बताया होगा कपिल ने अपनी मां को मेरे विषय में, कविता का दिल सोचने पर मजबूर हो गया.

शायद मांबेटे दोनों को एक ही सांचे में ढाला था, तभी तो कपिल की तरह उन्होंने भी उस से कोई ऐसी व्यक्तिगत बात नहीं पूछी जिस का जवाब देना उस के लिए कठिन हो. न ही यह पूछा कि वह कहां की रहने वाली है, घर में कौनकौन हैं, न यह कि शादीवादी हुई है या नहीं अब तक.

कविता की सोच का उस की उंगलियों की हरकत पर कोई असर नहीं पड़ा. उस की कौफी भी कपिल की कौफी के साथ खत्म हुई. गरम कौफी पी कर लगा, सचमुच इस की ही जरूरत थी उसे.

कपिल के साथसाथ कविता भी अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देखतेदेखते उठ खड़ी हुई.

‘‘चलें,’’ दोनों हंस पड़े. उन के मुंह से एकसाथ ही निकला था यह शब्द.

‘‘चलिए, आज ही आप को अपने घर ले चलते हैं. इस समस्या का भी समाधान हो जाएगा और मां से मिलना भी. मां के दिल का भी अरमान पूरा हो जाएगा. जब देखो तब कहती रहती हैं, ‘कभी घर ले कर आ न कविता को. एक बार फिर उस से मिलने का बहुत दिल करता है मेरा,’ तो चलें?’’

चाह कर भी वह टाल न सकी कपिल के अनुरोध को और बोली, ‘‘लेकिन, एक शर्त पर, कपिल साहब, आप अपना वादा नहीं भूलेंगे.’’

‘‘कैसा वादा?’’ कपिल के चेहरे पर बनावटी अनभिज्ञता का आवरण था और होंठों पर एक शरारती मुसकान.

‘‘कैसा वादा? आप इतनी जल्दी कैसे मुकर सकते हैं अपने वादे से?’’ कविता के स्वर में झंझलाहट थी.

‘‘याद है बाबा, मुझे सबकुछ याद है. अपना वादा भी. कुछ नहीं भूला मैं. कल से ही जुट जाऊंगा अपने मिशन पर और जल्दी ही एक अच्छे फ्लैट की चाबी आप के हाथ में दूंगा.’’

‘‘अच्छा, तो चलिए इसी बात पर एकएक कौफी और हो जाए,’’ कविता की बात पर कपिल एक बार फिर दिल खोल कर हंस पड़ा. कविता इतनी सहजता से मान जाएगी उस के प्रस्ताव को, कपिल ने तो सोचा भी नहीं था. शायद इस हंसी में वह खुशी भी शामिल थी.

और, कपिल की मां, उन की तो मानो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा जब उन्हें इस बात का पता चला कि कविता यहीं रहेगी.

‘‘बेटा, तुम तो बस आज, अभी कपिल के साथ जा कर होटल से अपना सारा सामान ले आओ यहां,’’ कितनी बेसब्र हो उठी थीं वे, ‘‘मैं आज कितनी खुश हूं, तुम दोनों सोच भी नहीं सकते.’’

कविता को आज पता चला कि कपिल जितनी तारीफ करता है अपनी मां की, वह कम है. उस की मां तो उस से भी कहीं ज्यादा अच्छी हैं. उन के अपार उत्साह को देख कर कपिल यह भी नहीं कह सका कि कविता कोई हमेशाहमेशा के लिए यहां रहने नहीं आई है. वह तो बस, कुछ दिनों के लिए यहां रहना चाहती है, कविता देख रही थी, एक अजीब ही उलझन थी कपिल के चेहरे पर.

‘‘आज नहीं मां, कल. कल संडे भी है, हम दोनों फ्री भी रहेंगे,’’ कहने के साथ ही कपिल ने कविता की ओर देखा मानो उस की भी सहमति चाहता हो.

‘‘हां मां, कपिल ठीक कह रहे हैं,’’ कविता के कहते ही सुनंदा अचानक चौंक गईं. उस के मुंह से अनजाने में ही उन के लिए ‘मां’ शब्द निकल गया था. उसे न जाने उन में ऐसा क्या दिखा जो वह उन की तुलना अपनी मां से करने लगी.

‘‘तुम्हारे मुंह से ‘मां’ शब्द का संबोधन सुन कर बहुत अच्छा लगा. चलो, अब मां कहा है तो उस का मान भी रख लो. आज यहीं ठहर जाओ, मां के पास. साथ रहेंगे, इकट्ठे खाएंगेपीएंगे. ढेर सारी बातें करेंगे. आओ, मैं तुम्हें तुम्हारा कमरा भी दिखा दूं,’’ सुनंदा बहुत खुश थीं. मानो बरसों बाद उन्हें खुश होने का मौका मिला हो.

कपिल भी कविता को मां के हवाले कर मानो निश्ंिचत हो गया हो. वह उन्हें जाता देख बस, दूर से ही मुसकराता रहा.

‘‘बस, 10 मिनट, अभी आ कर चाय बनाती हूं,’’ कपिल को तसल्ली देती वे कविता के आगेआगे चल पड़ीं.

हवादार कमरा, कमरे से लगी बालकनी, बाहर का मनमोहक दृश्य. कविता ठिठक कर रह गई. कमरे में एकएक चीज करीने से संवार कर रखी गई थी मानो उस के आने की खबर उन्हें पहले से ही हो. वह तो अभी तक यह भी नहीं समझ पा रही थी कि यहां आने का उस का फैसला सही है या गलत.

‘‘क्या हुआ? ऐसे क्या देख रही हो? पसंद नहीं आई जगह?’’

‘‘नहीं तो, मैं तो बस.’’ कविता के शब्द होंठों के बीच लड़खड़ा कर रह गए.

‘‘बेटा, यह कमरा कपिल की बहन कोमल का है. तुम फ्रैश होना चाहो तो फ्रैश हो लो, जरूरत का सभी सामान मिल जाएगा यहां तुम्हें. मैं तब तक चाय बनाती हूं तुम दोनों के लिए,’’ कविता कुछ कहती, उस से पहले ही मां वापस जाने को मुड़ चुकी थीं.

आज की शाम में कुछ न कुछ खास बात तो अवश्य थी जो सभी खुश थे. कपिल, सुनंदा, कविता. सुनंदा के हाथों की बनी मठरी और बेसन के लड्डू खा कर तो बस, कविता का दिल ही भर आया. आज उसे अपनी मां की बहुत याद आई. कितनी समानता दिखी दोनों में. बचपन से ले कर आज तक के न जाने कितने पल पंख लगा उस के खयालों के इर्दगिर्द मंडराने लगे. एक मां ही तो थी जिस ने जिंदगी को देखने का नजरिया ही बदल डाला उस का. नहीं तो क्या वह कभी समाज से लड़ने का साहस जुटा पाती? उस दलदल से कभी निकल पाती? आज होती यहां जहां वह है? शायद नहीं.

प्लेट से पकौड़े उठातेउठाते कपिल ने अपनी मां को छेड़ा, ‘‘क्या बात है, मां, आज तो कविता के बहाने मेरी भी खातिरदारी हो रही है.’’

अपनी अपनी तैयारी : भाग 2

‘जी कहिए, बुरा मानने की क्या बात है. अब हम रिश्तेदार होने जा रहे हैं तो संकोच कैसा?’ पापा ने मुसकराते हुए कहा.

‘अब ये त्रिपाठीजी (प्रेरित के पापा) तो रिटायर हो गए हैं और आप के रिटायरमैंट में अभी वक्त है तो आफ्टर रिटायरमैंट आप लोगों ने क्या सोचा है?’

‘जी, मैं कुछ समझ नहीं?’ पापा ने कुछ चौंकते हुए से कहा.

‘मेरा मतलब है कि अब हमारे तो 2 बेटे हैं इसलिए हमें तो कोई चिंता नहीं है बुढ़ापे की, कभी इस के पास और कभी उस के पास रहेंगे. बस, इसी में जीवन कट जाएगा पर आप की तो एक ही बेटी है, सो रिटायरमैंट के बाद वृद्धावस्था में आप लोगों ने कहां रहने का प्लान बनाया है. यहीं इंदौर में या बेटी के पास?’ प्रेरित की मम्मी के इस प्रश्न को सुन कर मम्मीपापा ही नहीं, मैं और प्रेरित भी बुरी तरह चौंक गए थे. कुछ देर बाद मुझे समझ आया कि प्रेरित के मम्मीपापा घुमाफिरा कर जानना चाह रहे थे कि विवाह के बाद मेरे मम्मीपापा की जिम्मेदारी कहीं उन के लाड़ले बेटे को न उठानी पड़ जाए. अपनी मम्मी के इस बेतुके प्रश्न पर प्रेरित का चुप रह जाना मुझे अखर गया और उन के इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए जैसे ही मैं ने अपना मुंह खोलना चाहा था कि मेरी मां ने आंख के इशारे से मुझे रोक दिया था.

‘मां खुद बड़े ही शांतभाव से बोलीं, ‘जी देखिए, पहले तो अभी तो हम ने इस बारे में कुछ सोचा ही नहीं है, पर हां, उम्मीद करता हूं कि जीवन के अंतिम दिनों तक हम इतना फिट रहें कि हमें किसी का मुंह न देखना पड़े. फिर आज के जमाने में नौकरीपेशा लोगों के लिए बेटा और बेटी में फर्क ही कहां रह गया है क्योंकि दोनों ही तो अपनी नौकरी पर चले जाते हैं. न आप का बेटा आप के पास रहेगा और न हमारी बेटी. हां, जरूरत पड़ने पर मेरी बेटी ही मेरा सबकुछ है और इसे हम ने पढ़ायालिखाया भी जीभर के है. तो, देखना तो इसे ही पड़ेगा. वैसे, आप निश्ंिचत रहें, हम दोनों ही इंदौरप्रेमी हैं और यहां से कहीं जाने वाले नहीं.’

मम्मी के इतने नपेतुले और संतुलित शब्दों में दिए गए उत्तर से मैं तो प्रभावित ही हो गई थी पर अकेले में प्रेरित से मिलते ही फट पड़ी थी, ‘‘यह सब क्या है, प्रेरित? आज के समय में जब जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएं नितनई बुलंदियों के झंडे गाड़ रही हैं, मातापिता अपनी बेटियों को पढ़ानेलिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे तो ऐसे में इस तरह की बातें, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहीं. मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे पेरैंट्स इस प्रकार की सोच रखते हैं. जरूरत पड़ने पर मैं अपने मांपापा का सहारा नहीं बनूंगी तो कौन बनेगा. मैं पहले ही स्पष्ट किए देती हूं कि जिस तरह तुम्हारे मातापिता के लिए तुम ठीक हो वैसे ही अपने मातापिता के लिए मैं हूं, उन के लिए कुछ भी करने के लिए न मैं तुम्हें रोकूंगी और न ही मेरे मातापिता के लिए तुम मुझे रोकोगे और भविष्य में अपनेअपने मातापिता को हम खुद ही डील करेंगे. हां, जहां आवश्यकता होगी, हम एकदूसरे की मदद करेंगे.’

‘मुझे खुद इस बारे में कुछ पता नहीं था कि वे लोग कुछ दकियानूसी सोच वाले हैं. तुम जरा भी चिंता मत करो, बाद में सब ठीक हो जाएगा.’ यह कह कर प्रेरित ने मुझे उस समय बहला दिया था और इस के कुछ दिनों बाद ही मैं प्रेरित की दुलहन बन कर कानपुर आ गई थी. थोड़े से प्रयास से प्रेरित ने हम दोनों की पोस्ंिटग भी कानपुर ही करवा ली थी.

मेरे आने के बाद मांपापा अकेले हो गए थे लेकिन सब से अच्छी बात यह थी कि अपने जौब के अलावा दोनों ने ही गीतसंगीत, बागबानी और कुकिंग जैसे अनेक शौक पाल रखे थे, सो, दोनों ही बहुत व्यस्त रहते थे. इस के अलावा दोनों ही मौर्निंग वाक और व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल किए हुए थे. सो, फिजिकली भी वे बेहद फिट थे.

वहीं, प्रेरित के परिवार में इस सब से कोई लेनादेना नहीं था. सब देर तक सोते. यही नहीं, सभी कनपुरिया अंदाज में खाने के भी बहुत शौकीन थे और इसी सब का नतीजा था कि मम्मीजी और पापाजी दोनों ही बीपी, शुगर और ओबेसिटी के शिकार थे और आएदिन डाक्टर के यहां चक्कर लगाते थे. मैं अभी इस सब में ही उलझ थी कि बाथरूम के दरवाजे पर प्रेरित की आवाज आई, ‘‘तुम कर क्या रही हो, सुशीला दीदी पूरा काम कर के चली गईं, मैं औफिस के लिए रेडी हो गया और तुम हो कि नहाने में ही लगी हो. औफिस चलना है या नहीं?’’

‘‘अरे, समय का पता ही नहीं चला. बस, दो मिनट में आई,’’ कह कर मैं ने अपने नहाने व विचारों को बाइंडअप किया और बाहर आ कर फटाफट दोनों का टिफिन तैयार कर के नाश्ता टेबल पर लगा दिया और तैयार हो कर औफिस के लिए निकल पड़े. अभी मैं कार में बैठी ही थी कि मां का फोन आ गया. हम दोनों मां से बात कर सकें, इस के लिए मैं ने फोन स्पीकर पर डाल दिया.

‘‘कैसे हो बच्चो, तुम लोगों को एक गुड न्यूज देनी थी,’’ मां बोलीं.

‘‘हम लोग बिलकुल अच्छे हैं, मां. बस, अभी औफिस के लिए निकले ही हैं. कौन सी गुड न्यूज है, मां, जल्दी बताइए. आप पहले न्यूज बताया कीजिए, फिर और बातें किया कीजिए,’’ मैं ने आतुरता से मां से कहा.

‘‘अगले हफ्ते तेरे पापा का सीनियर सिटीजन क्लब की तरफ से सिक्किम में एक सैमिनार है. सो, हम दोनों ही जा रहे हैं. सैमिनार के बाद एक हफ्ते और रुक कर घूमेंगे, फिर वापस आएंगे. कल ही पता चला तो आज तुम्हें बता दिया.’’

‘‘वाऊ मां, यह तो सच में बहुत अच्छी न्यूज है. जाइएजाइए, खूब घूमिएगा और रोज मुझे पिक्स भेजिएगा. ठीक है, मां. अभी फोन रखती हूं. शाम को घर पहुंच कर बात करूंगी,’’ यह कह कर मैं ने फोन रख दिया. इस बीच प्रेरित बिलकुल शांत थे मानो मेरे मातापिता की अपने मातापिता से तुलना कर रहे हों.

मैं प्रेरित से कुछ बोल पाती, इस से पहले ही कार पार्किंग में लग चुकी थी. मैं और प्रेरित दोनों ही एकदूसरे को बाय कह कर अपनीअपनी केबिन की तरफ बढ़ गए थे. औफिस के कामों में जो हम उलझे तो शाम को 7 बजे ही मिले. वापस आते समय शरीर और मन इतना अधिक थक जाता है कि हम दोनों आमतौर पर शांत ही रहते हैं. घर आ कर डिनर कर के जो बैड पर लेटी तो कुछ अधूरे पन्ने फिर फड़फड़ाने लगे थे.

‘पूर्णशिक्षित होने के बाद भी प्रेरित के मम्मीपापा, बेटाबेटी के फर्क से जरा भी अछूते नहीं थे. बेटे के विवाह में खासे दानदहेज की भी उम्मीद थी उन्हें लेकिन प्रेरित की पसंद ने उन के अरमानों पर पानी फेर दिया था क्योंकि मैं और मम्मी दोनों ही दहेज की सख्त विरोधी थीं और मम्मी ने शुरू में ही स्पष्ट शब्दों में कह दिया था-

‘देखिए बहनजी, हम अपनी बेटी के विवाह में न तो दहेज देंगे और न ही हम उस का कन्यादान करेंगे.’

‘अरेअरे, यह क्या कह रहीं हैं आप, ऐसे विवाह में दहेज की तो हम भी उम्मीद नहीं करते लेकिन कन्यादान तो एक जरूरी रस्म है जिसे हर लड़की के मातापिता करते हैं ताकि उन्हें पुण्य प्राप्त हो सके. क्या आप उस पुण्य को प्राप्त नहीं करना चाहेंगे?’ प्रेरित के मम्मीपापा ने कहा.

‘मेरी बेटी कोई दान की वस्तु नहीं है जो मैं कन्यादान की रस्म करूं. मेरी बेटी हमारे घर की शान, हमारा अभिमान और गरूर है. हमारी बेटी ने हमें मातापिता होने का गौरव प्रदान किया है. कोई अपने गरूर और गौरव का दान करता है भला. कन्यादान की जगह हम प्रेरित और प्रेरणा को एकदूसरे का हाथ सौंप कर पाणिग्रहण संस्कार करेंगे क्योंकि विवाह के बाद जीवन के समस्त उत्तरदायित्वों का निर्वहन इन्हें एकसाथ मिल कर करना है.’

मेरी मम्मी की इतनी तर्कपूर्ण बातें सुन कर प्रेरित के मम्मीपापा शांत हो गए थे और यही कारण था जिस से वे हमारे विवाह को राजी तो हो गए थे पर उतने खुश नहीं थे क्योंकि विवाह के बाद जब प्रेरित की ताईजी ने प्रेरित की मम्मी से पूछा, ‘बहू तो बढि़या है पर दानदहेज में क्याक्या मिला, वह भी दिखाओ या उसे सात परदों में रखने का विचार है.’

‘अरे जिज्जी, कैसी बातें करती हो. जो मिला, सो आप के सामने है. आप की जानकारी के लिए बता दें कि बहुरिया और उस के मम्मीपापा दानदहेज के सख्त विरोधी हैं,’ प्रेरित की मम्मी ने मेरी तरफ इशारा कर के निराशाभरे स्वर में कहा था.

आरोही : विज्ञान पर भरोसा करती एक डॉक्टर की कहानी – भाग 2

“बस भी करो आरोही, मैं तो तुम्हें खुश करने के लिए तुम्हारे साथ चल देता था. मुझे पहले भी यहांवहां भटकना पसंद नहीं था.”

“शायद, तुम्हें याद भी नहीं है कि आज मेरा बर्थडे है. सुबह से मैं तुम्हारे मुंह से ‘हैप्पी बर्थडे’ सुनने का इंतजार कर रही थी लेकिन छोड़ो, जब तुम्हें कोई इंटरैस्ट नहीं तो अकेला चना कहां तक भाड़ झोंकता रहेगा,” कहती हुई उस ने तेजी से कमरे के दरवाजे को बंद किया और लिफ्ट के अंदर चली गई. आंखों से आंसू बह निकले थे. उस ने अपने आंसू पोंछे और लिफ्ट से बाहर आ कर सोचने लगी कि अब वह कहां जाए?

तभी उस का मोबाइल बज उठा था. उधर उस की बहन अवनी थी, “हैप्पी बर्थडे दी… जीजू को आप का बर्थडे याद था कि नहीं?”

“उन के यहां यह सब चोंचले नहीं होते,” कह कर वह हंस दी.

“दी, क्या सारे आदमी एक ही तरह के होते हैं? यहां रिषभ का भी यही हाल है… उसे भी कुछ नहीं याद रहता… इस बार तो ऐनिवर्सरी भी मैं ने ही याद दिलाई तो महाशय को याद आई थी.”

वह जानती थी कि रिषभ इन सब बातों का कितना खयाल रखता है. आज सुबह सब से पहला फोन उसी का आया था. अवनी केवल उस का मूड अच्छा करने के लिए उसे बहलाने के लिए कह रही थी. वह थोड़ी देर तक सोसायटी के लौन में वौक करतेकरते बहन से बात करती रही फिर घर लौट आई.

डिनर का टाइम हो रहा था. श्यामा उन्हें देखते ही बोली,”मैडम, खाना लगाऊं?”

“चलो, मैं हाथ धो कर किचन में आती हूं.”

“सर ने कहा है कि आज सब लोग साथ में खाएंगे.”

अविरल अभी भी अपने फोन पर गेम खेल रहे थे. उसे उन का गेम खेलते देख मूड खराब हो जाता था. वह रातदिन काम करकर के परेशान रहती है और इन साहब को इतनी फुरसत रहती है कि बैठ कर गेम खेल रहे हैं. उन का कहना है कि गेम खेल कर अपना स्ट्रैस कम करता हूं. उसे भी अपनेआप को कंट्रोल करना चाहिए. उसे रिलैक्स करने के लिए बाहर जा कर शौपिंग करना या आइसक्रीम खाना पसंद है.

उस के चेहरे पर मुसकराहट आ गई थी. तब तक मांजी डाइनिंग टेबल पर बैठ चुकी थीं. श्यामा ने भी खाना लगा दिया था. उस ने डोंगा खोला तो छोला देख उस के मुंह में पानी आ गया था, “ओह आज कुछ खास बात है क्या?”

“मैडम, सर ने आज कुछ स्पैशल बनाने के लिए बोला था. आज मूंगदाल का हलवा भी बना है.”

मूंग दाल का हलवा हमेशा से उस का फेवरिट रहा है.

“मेरे तो मुंह में पानी आ रहा है, अवि जल्दी आओ प्लीज…” अविरल फोन पर किसी से बात कर रहा था.

मांजी ने उस के माथे पर हाथ रखा और उस के हाथ पर अंगूठी का डब्बा रख दिया,”हैप्पी बर्थडे आरोही,” यह अविरल अपनी पसंद से लाया है.”

वह जानती थी कि यह काम अकेली मांजी का है, अविरल का दिमाग इन सब में चलता ही नहीं है, लेकिन उन के चेहरे की मंदमंद मुसकान देख उसे उन पर बहुत प्यार आ रहा था.

वह मुसकरा कर बोले,”सुबह जब मैं फ्रैश हो कर इधर आया तुम अस्पताल जा चुकी थीं. इसलिए मैं ने यह सरप्राइज प्लान कर लिया. कैसा लगा डा. आरोही, मेरा सरप्राइज?”

“ओह अविरल, यू आर वैरी क्यूट.”

वह खाना सर्व ही कर रही थी कि
तभी कौलबेल की आवाज हुई. मामाजी रोनी सी सूरत बना कर आए. माहौल बदल चुका था वह अपने हाथ में एक फाइल लिए हुए थे, “मैं ने कहा मेरी आरोही बहू इतनी बड़ी डाक्टरनी है. पहले उसे दिखाएंगे…” सब की निगाहें उस पर अटकी हुई थीं.

“लो, यह प्रसाद…माता वैष्णव देवी के प्रसाद से तुम्हारी मामी अब जल्दी ठीक हो जाएंगी. मुझे सपना आया था कि तुम हर महीने दर्शन करने जाओगे तो तुम्हारी पत्नी एकदम ठीक हो जाएंगी. मैं महीने में 1-2 बार तो हो आया. एक बार तो तुम्हारी मामी को भी ले गया था और उन्हें भी दर्शन करवा लाया. माता रानी की जरूर कृपा होगी और तुम्हारी मामी अब जल्दी ठीक हो जाएंगी,” उन्होंने सब को अलगअलग हाथों में प्रसाद दिया. आरोही के हाथ में उन्होंने फाइल भी पकड़ा दी थी.

“मामाजी, आप भी खाना खा लीजिए.”

“अरे डाक्टर बहू, तुम खाने की बात कर कही हो, यहां मेरी सांसें रुकी जा रही हैं.”

मजबूरन उस ने फाइल हाथ में ले ली, सरसरी निगाहों से देखा फिर बोली,”डाक्टर मयंक ने बायोप्सी के लिए लिखा है तो आप को सब से पहले बायोप्सी करवानी पड़ेगी.”

“बहू, तुम समझती क्यों नहीं, उन्हें दर्दवर्द बिलकुल नहीं है. तुम तो बेमतलब की बात कर रही हो. काटापीटी होगी तो बीमारी बढ़ नहीं जाएगी?”

वह पहले भी कई बार स्पष्ट रूप से सब से कह चुकी थी कि वह हार्ट की डाक्टर है, कैंसर के बारे में ज्यादा नहीं जानती लेकिन मामाजी तो बस बारबार बहूबहू कर के पीछे पड़ कर रह गए हैं.

उस ने फाइल पकड़ाते हुए कहा,”बायोप्सी जरूरी है. यह आवश्यक नहीं कि कैंसर ही हो…फैब्रौएड भी हो सकता है. वह औपरेट कर के आसानी से निकाल दिया जाएगा.”

“अरे बहू, तुम तो इतनी बड़ी डाक्टर हो, कुछ और इलाज बता दो, औपरेशन न करवाना पड़े.”

यह पहली बार नहीं था. कभी मामाजी तो कभी मौसाजी, तो कभी कोई अंकल हर 8-10 दिनों बाद कोई न कोई समस्या ले कर आ खड़े होते.
मामाजी उस के लिए मुसीबत ही खड़ी कर रखी है. एक ही बात, कभी कहते कि फलां वैद्य का इलाज चल रहा है, मैं कहता था न कि अब गांठ एकदम छोटी हो गई है. तो कभी कहते कि वैद्यजी सही कह रहे थे कि डाक्टर तो बस अपना धंधा चलाते हैं. देखिएगा, मैं शर्तिया 15 दिनों में ठीक कर दूंगा. वह उस की ओर व्यंगभरी नजरों से देख कर कह रहे थे.

कुछ दिनों बाद पता लगा था कि अब कोई हकीम का इलाज कर रहे हैं और बहुत फायदा है. खुश हो कर आए थे.
स्वयं ही खबर दे गए थे. कभी किसी नैचुरोपैथी के कैंप में 10 दिनों के लिए गए थे, लेकिन वहां के इलाज से घबरा कर 3 दिनों में ही भाग कर आ गए थे. फिर कुछ दिनों तक होमियोपैथी का इलाज करने के बाद उस के पास फिर से आए तो उस ने कैंसर स्पैशलिस्ट डाक्टर मयंक के पास भेज दिया तो उन्होंने बायोप्सी करवाने को कहा तो वह फिर उस को परेशान करने के लिए आ गए थे. उस का मन तो कर रहा था कि मामाजी को डांट कर घर से बाहर कर दे और फाइल उठा कर फेंक दे लेकिन खुद को कंट्रोल करते हुए वह अपने कमरे में आ गई और अपनी मेल चैक करने लगी.

अब कुछ दिनों से वह मैडिकल कालेज में लैक्चर के लिए बुलाई जाती है. सर्जरी के क्षेत्र में अब वह पहचानी जाने लगी है. अपने स्टूडैंट टाइम से वह टौपर रही थी, हमेशा मेहनती छात्रा रही थी. एमएस में वह गोल्ड मैडलिस्ट रही थी. वह अपने अतीत में विचरण करने लगी…

जब वह 28 साल की हो गई तो शादी के लिए पेरैंट्स के दबाव के साथसाथ वह भी अपने अकेलेपन से ऊब चुकी थी. जब उसे कोई डाक्टर मैच समझ नहीं आ रहा था तो मैट्रिमोनियल साइट्स पर ढूंढ़ते हुए अविरल का बायोडाटा उसे पसंद आया था. अविरल आईटी के साथ आईएमएम से एमबीए थे. वे मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर थे.

उस ने उन के साथ चैटिंग शुरू कर दी थी. कुछ दिनों की चैटिंग के बाद मिलनाजुलना शुरू हो गया. अविरल मुंबई में पोस्टेड थे और वह भी मुंबई में ही जौब कर रही थी, इसलिए उसे वहीं रहने वाला जीवनसाथी चाहिए था. सबकुछ ठीकठाक लग रहा था. बस, दूसरी जाति के कारण वह मन ही मन हिचक रही थी.

3 महीने तक मिलनेजुलने के बाद दोनों ने अपने पेरैंट्स को बता दिया, फिर धूमधाम से उन दोनों की रिंग सेरेमनी तो हो गई लेकिन चूंकि लगातार उस की सर्जरी की डेट फिक्स थी इसलिए वह शादी नहीं कर पा रही थी क्योंकि वह शादी को ऐंजौय करने के लिए हनीमून पर यूरोप जाना चाहती थी. लगभग 4 महीने के लंबे इंतजार के बाद दोनों की धूमधाम से शादी हो गई थी.

उस के ससुराल पक्ष के सारे रिश्तेदार चाचा, ताऊ, बुआ या फिर मामा आदि सब आसपास ही रहते थे. चूंकि बड़ा परिवार था इसलिए रोज ही कहीं न कहीं बर्थडे, ऐनिवर्सरी जैसे फंक्शन में जाना पड़ता था.

मांजी कहतीं,”बहू, साड़ी में तुम ज्यादा अच्छी लगती हो. गले में हार तो पहन लो…”

अविरल भी कहता कि साङी तुम पर बहुत जंचती है और वह उन लोगों की बातों में आ कर शुरूशुरू में साड़ी पहन कर तैयार हो जाती. लेकिन वहां पर तो वह सब के लिए फ्री की डाक्टर आरोही थी.

2-4 लोग अपनीअपनी बीमारियों के लिए दवा लिखवाने के लिए हाजिर ही रहते. वह परेशान हो कर रह जाती क्योंकि वह जनरल फीजिशियन तो थी नहीं कि हर मर्ज की दवा लिखती लेकिन कोशिश कर के कुछ लिख देती. कोई किडनी को ले कर परेशान है तो कोई लिवर से तो किसी को बच्चा नहीं हो रहा है तो आरोही से उम्मीद करते कि वह ऐसी दवा दे दे, जिस से वह प्रैगनैंट हो जाएं.

उन लोगों की बातें सुन कर उसे बहुत कोफ्त होती और यदि परहेज बताओ तो करना नहीं. यहांवहां किसी से पूछ कर दवा बता भी दो तो वे लोग शिकायत ले कर आ जाते कि बहूरानी तुम ने जाने कैसी दवा दे दी मुझे. इस तरह की रोजरोज की बातों से वह परेशान हो चुकी थी.

शादी के 2 साल तक वह किसी तरह से रिश्तेदारों को झेलती रही थी फिर अविरल से उस ने साफसाफ कह दिया कि इस तरह से मेरी स्थिति बहुत खराब हो जाती है. मैं हर मर्ज की दवा नहीं बता सकती. लेकिन वह भी अक्ल का कच्चा था,”डाक्टर हो तो इन छोटीमोटी बीमारियों में भला क्या सोचना… वह लोग तो तुम्हारी इतनी इज्जत करते हैं… कोई भाभी, कोई मामी सब कितना तुम्हें प्यार करते हैं…” वह मन ही मन कुड़कुड़ाई थी कि अविरल को जरा भी अक्ल नहीं है. वह सब प्यार का दिखावा कर के अपना मतलब साधते हैं. उस ने परेशान हो कर इस तरह की रिश्तेदारियां निभाना बंद कर दिया था.

जब भी कहीं कोई फंक्शन के लिए फोन आता वह अस्पताल में काम की व्यस्तता का बहाना बता देती और फिर अविरल का मूड खराब हो जाता. मांजी का भी मिजाज बिगड़ा रहता. वह अपना ज्यादा समय अस्पताल में बिता कर आती. जो ढंग से बोलता उस से बोल लेती नहीं तो अपना काम कर के गुड नाइट… कह देती. दोनों के बीच मूक समझौता हो गया था. तुम मेरे घर वालों के यहां नहीं जाओगी तो मैं तुम्हारे घर वालों के यहां भी नहीं जाऊंगा.

अविरल ने उस के बैंक अकाउंट में ताकझांक करना शुरू किया तो उस ने इशारोंइशारों में कह दिया कि मैं तो अपना अकाउंट खुद संभाल लेती हूं. यदि जरूरत पड़ी तो जरूर तुम्हारी मदद लूंगी. अविरल का मुंह बन गया था लेकिन उसे परवाह नहीं थी क्योंकि यदि वह साफसाफ न कहती तो वह उस के पैसे पर अधिकार जमाने लगता. वह उसे पसंद नहीं…
उस का और अविरल की पसंद में जमीनआसमान का अंतर था. उसे सुबहसुबह धीमी आवाज में संगीत सुनना पसंद था.

वह तुरंत बोलता,”तुम्हें शांति से रहना पसंद नहीं है. सुबह से ही शोर शुरू कर देती हो. यहां तक कि वह कई बार जा कर बंद कर देता.

वह सुबह वाकिंग पर जाना पसंद करती, लेकिन अविरल को सुबह देर तक बिस्तर पर लेटे रहना पसंद था. नाश्ते में यदि वह इडली खाती तो वह औमलेट. मांजी चीला पसंद करतीं. इसी तरह से खाने में वह चटपटा खाना पसंद करती तो उन लोगों को प्याजलहसुन वाला खाना चाहिए होता जबकि वह बहुत कोशिश कर के भी लहसुन और प्याज की सब्जियां नहीं खा पाती. वह हर तरह से इस परिवार के साथ ऐडजस्ट करने की कोशिश कर रही थी.

अविरल पति बनने के बाद उस पर बातबेबात रौब गांठने की कोशिश करने लगा था. वह रात में पढ़ रही थी, तो जोर से बोला,”बंद करो लाइट, मुझे सोना है.”

“कल मेरा लैक्चर है, मुझे उस की तैयारी करनी है. लाइट तुम्हारे चेहरे पर नहीं पड़ रही…” वह भुनभुनाता हुआ जोर से दरवाजा बंद कर के ड्राइंगरूम में जा कर दीवान पर सो गया.

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