इंटैंसिव केयर यूनिट यानी आईसीयू में मरीज को भरती कर अनावश्यक रूप से अस्पताल पैसे बनाने का काम करते हैं. ये शिकायतें आम हो रही हैं. इन हालात को देखते हुए सरकार ने आईसीयू में भरती के कुछ नियम बना दिए हैं. इस से आईसीयू भरती में सरकारी दखल बढ़ेगा. कोरानाकाल में यह देखने को मिला था जब मरीज को भरती करने के लिए सीएमओ का रैफरल लैटर जरूरी होता था. उस दौर में तमाम मरीज रैफरल लैटर के इंतजार में ही जान गंवा बैठते थे.

आईसीयू में सरकारी दखल के बाद सरकारी अफसर अस्पतालों पर अपना दबाव बढ़ाने लगेंगे. उन के लिए चढ़ावे का एक और रास्ता खुल जाएगा. सरकार को यह लगता है कि उस के विभाग बहुत ईमानदार हैं. वह यह नहीं सोचती कि जितने कानून बनेंगे, चढ़ावे का चलन बढ़ता जाएगा. दिशानिर्देशों का प्रयोग एक सीमा तक ही सही है. उस को बहुत जरूरी या कानून जैसा बना दिया गया तो दिक्कतें बढ़ जाएंगी. सबकुछ पीएमओ जैसे अफसरों की दखल में हो, यह जरूरी नहीं होना चाहिए.

मरीज और घर वालों की मरजी जरूरी

आईसीयू में मरीजों को कब दाखिला देना और कब उन्हें आईसीयू में नहीं रखना है, इस को ले कर सरकार ने दिशानिर्देश जारी किए हैं. देखने में ऐसा लगता है जैसे इस से मरीजों की दिक्कतें कम हो जाएंगी. असल में इस से अस्पताल में मरीजों की भरती होने पर सरकारी दखल बढ़ेगा. आईसीयू में इलाज की आवश्यकता को बताने के लिए क्रिटिकल केयर मैडिसिन के जानकार 24 शीर्ष डाक्टरों के एक पैनल ने ये नियम तैयार किए हैं.

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