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अरविंद का जायज कदम

अरविंद केजरीवाल के दिल्ली स्थित रेल भवन के निकट कुछ पुलिस अफसरों को बरखास्त करने की मांग को ले कर ठिठुरती रातों और बरसते पानी में धरने पर बैठने को एक मुख्यमंत्री की तानाशाही कहना गलत होगा. अल्पमत में नएनवेले होने के कारण केंद्र सरकार, दिल्ली की अफसरशाही, राजनीतिक पार्टियां और यहां तक कि हुआंहुआं करने वाला टैलीविजन मीडिया इस पार्टी को एक रुई का बबूला मान कर चल रहे थे जिस ने बड़ा आकार ले लिया पर जिसे फूंक से कहीं भी सरकाया जा सकता है.

दिल्ली में 2-3 घटनाओं पर दिल्ली के नए मंत्रियों ने जब दखल दे कर पुलिस को हड़काना चाहा तो वह पुलिस, जो मंत्रियों को सलाम मारती थी, उन्हें ही डांटने लगी. उन पुलिसवालों ने अपने अफसरों और केंद्रीय गृहमंत्री से कह दिया कि वे इन नएनवेले छोकरों की नहीं सुनेंगे. कांगे्रस ही नहीं भारतीय जनता पार्टी भी यही चाहती थी कि आम आदमी पार्टी केवल दिखावटी बनी रहे और इसे कागजों की फाइलों की भूलभुलैया में घुमा कर थका दो.

अरविंद केजरीवाल ने पहले ही भांप लिया कि कांगे्रस नेतृत्व वाली केंद्र सरकार व अफसरशाही उन्हें काम न करने देंगे. उन्होंने छोटे से मामले को ले कर गृहमंत्री से अपनी मांग को मनवाने के लिए उन के दफ्तर पर धरना देने की धमकी दे डाली. केंद्र सरकार ने सोचा था कि दुनिया का जैसा दस्तूर है कि पद पाने पर हड़ताली नेता भी चुप हो जाते हैं, अरविंद केजरीवाल भी चुप हो कर अपमान सह लेंगे.

लगता है अरविंद केजरीवाल इस के लिए तैयार थे और उन्होंने पहले ही महीने में केंद्र सरकार के खिलाफ मोरचा खोल कर जता दिया कि न तो वे कांगे्रस के मुहताज हैं न पद के मोह में अंधे. उन्होंने उस महकमे यानी पुलिस के खिलाफ मोरचा लिया जिस से सारा देश परेशान है, जो विदेशी आतंकवादियों से भी ज्यादा डरावनी है.

इस मामले ने तूल पकड़ा, इस की जिम्मेदारी सीधे केंद्र सरकार की है. प्रदेश के मुख्यमंत्री के सिर्फ फोन की सिफारिश पर ही पुलिस अफसरों के खिलाफ जांच शुरू होनी चाहिए थी. आखिर मुख्यमंत्री की जिम्मेदाराना हैसियत होती है. वह गलत निर्णय ले रहा है तो बाद में उसे ही भुगतना पड़ेगा. कार्यवाही करने के बजाय केंद्र सरकार जिद पर अड़ गई. उस की इसी जिद ने अरविंद केजरीवाल को जनता के साथ बैठने का एक और मौका दे दिया.

यह ठीक है कि इस धरने से लोगों को तकलीफ हुई पर दिल्ली ही क्या, देश का हर शहर इस से ज्यादा तो धार्मिक यात्राओं के कारण तकलीफ सहता है.

 

आपके पत्र

सरित प्रवाह, जनवरी (प्रथम) 2014
‘कांगे्रस की दुर्गति’ शीर्षक से छपी आप की टिप्पणी कांगे्रस के वर्षों के शासन (कुशासन) की ओर इशारा करती  है. ‘आप’ की जीत यही बताती है कि जनता न केवल कांग्रेस के शासन से ऊब चुकी थी बल्कि उस के द्वारा की जाने वाली नित नई चालाकियों से दुखी भी थी. उस के शासन की एक चालाकी थी, ‘दागी सांसदों को बचाने का अध्यादेश’. अध्यादेश तो किसी महती तत्कालीन आवश्यकता की पूर्ति के लिए निकाला जाता है न कि आज जो नेता जेल में सड़ रहे हैं उन की सुरक्षा हेतु.
कांग्रेस की दुर्गति का दूसरा प्रमुख कारण भ्रष्टाचार के दलदल में डूबना तो है ही, उस की ओर से आंखें मूंदना, जनता की आंखों में धूल झोंकना और जले पर नमक छिड़कने जैसी बयानबाजी करना भी रहा है. सोचने वाली बात यह है कि सब्जी ज्यादा खाने से महंगाई बढ़ेगी या नित नए घोटाले करने से? इस का जवाब यह है कि प्रथम से खपत बढ़ेगी, जिस से कृषकों को ज्यादा लाभ होगा, द्वितीय से स्विस बैंक का बैलेंस बढ़ेगा, जिस से देशवासियों का ही नहीं, देश का भी नुकसान होगा.
कृष्णा मिश्रा, अलीगंज (उ.प्र.)
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आप की टिप्पणी ‘कांगे्रस की दुर्गति’ अत्यंत रोचक, ज्ञानवर्द्धक और सत्यता से ओतप्रोत है. कांगे्रस की इस हार से जो दुर्गति हुई है वह उस के द्वारा जनता की अनदेखी किए जाने का ही फल है. जनता भ्रष्टाचार व महंगाई से बुरी तरह त्रस्त है. महंगाई ने जनता की कमर तोड़ दी है.
भ्रष्टाचार तो लगता है कांगे्रस का पर्याय बन चुका है. किसी भी क्षेत्र में सरकार का कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया है. विधानसभा चुनावों के बाद अब लोकसभा चुनावों में भी उसे करारी शिकस्त मिलने वाली है. मोदी का भविष्य उज्ज्वल दिखाई पड़ रहा है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत से सत्ता का सपना देख रही भारतीय जनता पार्टी का सपना चकनाचूर हो गया.
आम आदमी पार्टी की विशिष्ट जीत ने जता दिया कि जनता कट्टरवाद का समर्थन कतई नहीं करती, वह अच्छी व सही सरकार चाहती है.
कैलाश राम गुप्ता, इलाहाबाद (उ.प्र.)
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आप की संपादकीय टिप्पणी ‘कांगे्रस की दुर्गति’ पढ़ कर मजा आ गया. भ्रष्टाचार व महंगाई की मार से त्रस्त दिल्ली की जनता ने सभी पार्टियों को यह संदेश दे दिया है कि ‘जनता जाए भाड़ में हम तो राजसुख भोगेंगे’ के दिन लद गए. अब और प्रपंच व नाटक जनता हरगिज बरदाश्त न करेगी.
रेणु श्रीवास्तव, पटना (बिहार)
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आप की टिप्पणी ‘हिंदी बनाम अंगरेजी’ पढ़ कर लोगों की मानसिकता से दोचार हुआ. दरअसल, शिक्षा प्रणाली से भारत में एक ऐसा वर्ग भी तैयार हुआ जो रक्त व रंग में भारतीय है किंतु रुचि, विचारों, नैतिकता और बौद्धिकता में अंगरेज है.
भारत में अंगरेजों के तथाकथित वंशज धर्मनिरपेक्ष राजनीतिज्ञ, पत्रकार, और नौकरशाह यानी पाश्चात्य रंग से रंगा भारत का अभिजात्य वर्ग भारतीय और आध्यात्मिक शिक्षा का सब से बड़ा विरोधी है. हिंदी बोलने वालों को आज के नौकरशाह अनपढ़ समझते हैं. आप किसी अफसर से अंगरेजी में बात करें तो उस का प्रभाव अधिक पड़ता है.
हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है परंतु कामकाजी महिला को लोग ‘मैडम’ कहते हैं. यदि किसी महिला को माताजी या बहनजी कहा जाए तो वह बुरा मानती है. हमारे देश का ढांचा पश्चिम पर आधारित है. आजादी के बाद भारत ने केवल ब्रिटिश प्रणाली ही नहीं बल्कि ब्रिटिश न्यायिक व संवैधानिक व्यवस्था को भी आंख मूंद कर लागू किया. नतीजतन, पश्चिम का प्रभाव हमारे समाज पर भी पड़ा. इस में पश्चिम की अच्छी बातें नहीं अपनाई गईं.
इंदर गांधी, करनाल (हरि.)
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‘आप’ एक ब्रांड शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय टिप्पणी बहुत अच्छी लगी. राजनीतिक दलों ने वोटरों को मात्र खिलौना समझ लिया है कि उस में अपनी मरजी से चाबी भरो और अपने मनमुताबिक उसे घुमाओ. परंतु अब वोटरों को सहीबुरे का ज्ञान है, इसलिए वे अपने मताधिकार का प्रयोग अपने विवेक से करने लगे हैं.
यह कितनी बड़ी विडंबना है कि राजनीतिक आकाओं ने ‘लोकतंत्र’ का हुलिया बिगाड़ कर उस का मजाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. बस, उन्हें सत्ता चाहिए. देश जाए भाड़ में.
कहानियों में ‘प्रिसाइडिंग औफिसर की डायरी’ व ‘अंधेरी रात का जुगनू’ मानवीय संवेदनाओं व वर्तमान सत्य को उजागर करती हैं. लेखकों को साधुवाद. लेखों में ‘मजहब यही सिखाता…’ व ‘बाबुल अबही न कीजो बियाह’ समाज की कुरीतियों के खिलाफ सटीक व्यंग्य है.
प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)
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तर्कहीन विरोध
जनवरी (प्रथम) अंक में ‘…राम-लीला, विवाद : भावना पर नहीं, धंधे पर चोट’ लेख में लेखक के बेबाक, सामयिक व सटीक विचार पढ़ कर यह मान लेने से तनिक भी परहेज नहीं किया जा सकता कि ‘कुछ लोग/तत्त्व ऐसे विवादित तथा अविवेकी विरोध कर अपने धर्म की अलंबरदारी बरकरार रखना ही अपनी ड्यूटी समझते हैं. मगर वे यह भूल जाते हैं कि उन का ऐसा अनावश्यक, दिखावटी और हास्यास्पद कृत्य संबंधित विषय को, वह प्रसिद्धि प्रदान कर देता है जिस का चाहे वह हकदार ही न हो. अब देखिए न, ‘…राम-लीला’ फिल्म को 100 करोड़ रुपए कमाने में महीना भी नहीं लगा और वह सफलता की ऊंचाइयां छू लेने वाली फिल्म साबित हो गई.
टी सी डी गाडेगावलिया, करोल बाग (दिल्ली)
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‘60 प्लस समाज पर पहरा क्यों’ शीर्षक से (जनवरी प्रथम) अंक में एक परिवार में रहते यदि दादादादी अलग कमरे में सोते हैं या सब के सामने प्यार की बातें करते हैं तो उन्हें ताने सुनने पड़ते हैं. इसलिए वृद्ध जोड़े वृद्ध आश्रमों में कमरा ले कर रहते हैं ताकि रोकटोक से बच सकें. भारतीय समाज पर पश्चिम का प्रभाव बढ़ रहा है. इंटरनैट आदि के कारण एक विश्व संस्कृति बन रही है. अब अमेरिका में लाश को दफन करने के बजाय जलाने का काम शुरू हो गया है. ब्राजील की अधिकतर महिलाएं साड़ी पहनती हैं.
पश्चिम में पत्नी के मरने के बाद 80 साल का वृद्ध भी दूसरी शादी कर लेता है. यहां यह समस्या केवल मध्यवर्ग में है. अमीर लोग यहां पर भी पश्चिम की नकल कर के रहते हैं. उन्हें कोई रोकताटोकता नहीं.
इंदर प्रकाश, अंबाला (हरियाणा)
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नेल्सन मंडेला को श्रद्धांजलि
‘नेल्सन मंडेला का जाना’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय के जरिए सरिता ने मंडेला को एक विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है. दुनिया में 20वीं सदी को इसलिए याद किया जाएगा कि इस में 2 अनूठे नेता पैदा हुए जो शांति के रास्ते देश की सत्ता बदलने वाले साबित हुए. इस में पहला नेता भारत में और दूसरा दक्षिण अफ्रीका में पैदा हुआ.
मंडेला को श्रद्धांजलि देने अमेरिका के 2 पूर्व राष्ट्रपति जौर्ज बुश व बिल क्ंिलटन सहित वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा भी दक्षिण अफ्रीका पहुंचे थे. इतना ही नहीं, साम्यवादी चीन में भी मंडेला को श्रद्धांजलि देने वालों की लाइन लगी थी.
नेल्सन मंडेला को कुछ लोगों ने मानव सभ्यता का महानायक कहा तो कुछ ने उन्हें महात्मा मंडेला के नाम से पुकारा. जवानी के अनमोल 27 साल जेल में बिताने के बाद जब वे जेल से छूटे तो उन के चेहरे पर बुढ़ापे की झुर्रियां दिखाई दे रही थीं पर उन का देश दक्षिण अफ्रीका शिशुवत किलकारी मार रहा था.
माताचरण पासी, वाराणसी (उ.प्र.)
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राजनीति अपनीअपनी
जनवरी (प्रथम) अंक में प्रकाशित विधानसभा चुनाव परिणाम 2013 : सत्ता से फिसलता कांगे्रस का हाथ’ लेख में पार्टी के हाथ की रेखाओं का भी सूक्ष्म अध्ययन किया गया है. कांगे्रस की यह आम धारणा बनीबनाई थी कि जनता सदा हरेक स्थिति में नेहरूगांधी की संततिस्तुति करती रहेगी, लेकिन वह धारणा अब धराशायी होती जा रही है. सदा झूठे आश्वासन और फीके भाषण जनगण की समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने में मददगार नहीं होते हैं. कांगे्रसियों को इस सत्य का ज्ञान कम होता जा रहा है.
कांगे्रस की बुरी हार के पीछे कई कारण हैं और कारणों में प्रमुख भ्रष्टाचार व बेईमानी से भरा कुशासन है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत ने जनता कीअदालत के फैसले का जीताजागता उदाहरण प्रस्तुत किया है, जो संपूर्ण देश के लिए सुलभ पाठ है. राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों की करतूतों से वाकिफ जनता सदा अचेत नहीं रह सकती.
पश्चिम बंगाल में भी लगभग साढ़े  3 दशक निरंतर शासन करने वाली वामपंथी पार्टी की करनियों से ऊब चुकी जनता ने तृणमूल कांग्रेस को चुना. यदि यह भी वामपंथियों के पथ पर चल कर केवल संपत्ति बटोरने वाले चेलों के हित में काम करने लगेगी तो जनता इसे भी उखाड़ फेंकेगी, इस में कोई शक नहीं है. जनगण की जमीन में दखल कर और चायबागानों को उखाड़ कर सेज व साज के सपने पूरे करने के चक्कर में वामपंथियों की नीति चकनाचूर हो गई. इसी तरह जनता के आगे मीडिया की खुराक बन कर युवराज राहुल रोड शो के जरिए कांगे्रस की सरकार बनाने का जो सपना देख रहे हैं, उस का पूर्व संकेत हालिया चुनावों के परिणामों से मिल गया है.
जब से गठबंधन की सरकारें बनने लगी हैं, राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है, उन के मुद्दे अलग और निहायत जातिवादी हैं जिन में राष्ट्रहित की भावना नहीं के बराबर होती है. ऐसी स्थितियों के चलते राज्यव्यापी उपराष्ट्रवाद उभर रहा है, जिस के दबाव में केंद्रीय सत्ता झुकने को मजबूर है.
कांगे्रसी नेताओं की जानकारी से यह सत्य बाहर नहीं है कि जीडीपी का 50 प्रतिशत धन काले थैलों में है और काले थैलों को खोलने की कोशिश जब तक नहीं होगी, कांगे्रसियों को हार का हार पहनना पड़ेगा. सत्ता का सुख उपभोग कर के ज्ञानी हुए नेताओं ने राजनीति को परिवारवादी व्यापार  बना लिया है. बापबेटा, पतिपत्नी, चचाभतीजे आदि मिल कर राजनीति करने का नया दौर चल पड़ा है. सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव के अपने 7 जन सांसद और विधायक हैं और बेटा मुख्यमंत्री है. कांगे्रसियों और समाजवादियों की तरह ही भाजपाइयों का भी ऐसा ही हाल है.
हाल ही में हुए चुनाव के नतीजों ने कांगे्रस के नाम को तो बदनाम किया ही, राहुल गांधी के कद को भी कम कर दिया. अब कांगे्रसी राहुल के कद को बढ़ाने की कोशिश में हैं ताकि 2014 के चुनाव में इज्जत बचे, सत्ता बचने की गुंजाइश नहीं है. गनीमत बस इतनी है कि वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री ने सत्ता और शासन के दोषों को अपने माथे पर ले लिया है.
बिर्ख खडका डुवर्सेली, दार्जिलिंग (प.बं.)
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तरहतरह के व्यापार
जनवरी (प्रथम) अंक में ‘होमोसैक्स : परदे पर बेपरदा’ पढ़ा. विश्व में 3 व्यापार मुख्य रूप से फैल रहे हैं. हथियारों का व्यापार, मादक पदार्थों का व्यापार और पौर्न सामग्री का व्यापार. ये तीनों मानवता का विनाश कर सकते हैं. हथियार बेच कर अमीर देश गरीबों को लड़वाते हैं ताकि उन का व्यापार चलता रहे. इसी कारण मादक पदार्थों और पौर्न सामग्री की तस्करी बढ़ रही है.
होटलों में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं जो पौर्न सामग्री के व्यापार को बढ़ा रहे हैं. कुछ होटलों के बाथरूम में भी कैमरे लगे हैं. पौर्न साइट्स पर जाने से लोगों की यौन उत्तेजना बढ़ रही है.
होमोसैक्सुएलिटी, चाइल्ड अब्यूज आदि के मामले इसी कारण बढ़ रहे हैं. अब तो फास्टफूड और कोल्ड ड्रिंक्स भी मादक पदार्थ से बनने लगे हैं. पेट की भूख और सैक्स की भूख मिटाना ठीक है परंतु स्वाद के लिए स्वादिष्ठ भोजन का उपयोग और सैक्स की भूख को मिटाने के लिए गलत रास्ते अपनाने हानिकारक हैं.  इन से बीमारियां बढ़ रही हैं.
पूरे विश्व के नेताओं को मिल कर इन तीनों तरह के व्यापारों को रोकना चाहिए, वरना विश्व का विनाश निश्चित है.
आई प्रकाश, अंबाला (हरियाणा)

अनुराग जाएंगे कोर्ट

अपनी अलग तरह की फिल्मों के लिए मशहूर निर्मातानिर्देशक अनुराग कश्यप सैंसर बोर्ड से दोदो हाथ करने में जुटे हैं. दरअसल, वे अपनी आगामी फिल्म ‘अगली’ में धूम्रपान विरोधी विज्ञापन जोड़ने से इनकार करने पर सैंसर बोर्ड द्वारा जताई गई आपत्ति के खिलाफ लड़ रहे हैं.

अनुराग अपनी फिल्म को इस तरह की चेतावनी विज्ञापन के साथ प्रदर्शित करने के खिलाफ हैं. उन के हिसाब से यह गैरजरूरी है. गौरतलब है कि पिछले दिनों अनुराग कश्यप कल्की कोचलीन से संबंधविच्छेद होने के चलते सुर्खियों में थे.                       

सैफई महोत्सव में बुरे फंसे सलमान

पिछले दिनों सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के गांव सैफई में रंगारंग महोत्सव हुआ. महोत्सव में सलमान खान, माधुरी दीक्षित समेत कई बड़े सितारों ने शिरकत की. सियासी हलके में इस महोत्सव को ले कर जहां समाजवादी पार्टी की काफी किरकिरी हुई, वहीं सलमान खान की आने वाली फिल्म ‘जय हो’ का अलीगढ़ की यंग ब्रिगेड ने बौयकाट करने का फैसला लिया है. हालांकि, सलमान ने दरियादिली दिखाते हुए उत्तर प्रदेश के एक अस्पताल में बाल एवं शिशु वैंटिलेटर और इको मशीन लगाने के लिए 25 लाख रुपए दिए लेकिन यंग ब्रिगेड ने जिस तरह से विरोध किया है उस से तो यही लगता है सलमान के लिए अच्छी खबर नहीं है.

 

3 डी फिल्मों का जमाना

कुछ साल पहले हौलीवुड ने अपने ‘3 डी’ वर्जन की फिल्मों को भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज किया. उस दौरान 3 डी वर्जन में ‘स्पाई किड्स’ शृंखला बड़ी हिट साबित हुई थी. लिहाजा 3 डी फिल्मों के बढ़ते बाजार के मद्देनजर हिंदी में भी 3 डी फिल्मों का चलन शुरू हो गया. हालिया रिलीज ‘शोले 3 डी’ की पहले हफ्ते में 15 करोड़ रुपए से ज्यादा की हुई कमाई से उत्साहित कई निर्माताओं ने अपनी पुरानी फिल्मों का 3 डी वर्जन रिलीज करने की ठानी है. इस क्रम में ‘मुगल ए आजम’, ‘लावारिस’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’ जैसी कई फिल्मों को 3 डी में कन्वर्ट किए जाने की चर्चा है.

अब देखना है कि 3 डी का तकनीकी तड़का पुरानी फिल्मों को किस अंदाज में पेश करता है.

 

 

बड़बोले कपिल का मजाक

कौमेडी की दुनिया में बड़ा नाम बन चुके कपिल शर्मा आजकल कुछ ज्यादा ही बड़बोले होते जा रहे हैं. हंसीमजाक में किसी की भी बेइज्जती करने से गुरेज न करने वाले कपिल इस बार महिला आयोग के शिकंजे में फंस गए हैं.

दरअसल, हाल ही में अपने शो ‘कौमेडी नाइट्स विद कपिल’ के एक एपिसोड में कपिल ने गर्भवती महिलाओं पर एक अभद्र टिप्पणी कर दी जिस को ले कर अब वे कानूनी झमेले में फंसते जा रहे हैं. महाराष्ट्र महिला आयोग की ओर से उन्हें कारण बताओ नोटिस भी भेजा गया.

गौरतलब है कि उक्त एपिसोड में हेमा मालिनी बतौर गेस्ट मौजूद थीं. अब अगर किसी महिला के सामने ही कपिल महिलाओं पर अभद्र बयानबाजी करेेंगे तो फंसेंगे ही. कपिलजी, जरा संभल जाइए. स्टारडम का नशा बड़ा खराब होता है.

 

बिपाशा की शादी

बौलीवुड में इन दिनों लगता है सैलिब्रिटीज पर शादी का बुखार चढ़ा है. तभी तो पहले 2 बड़ी अभिनेत्रियों फिर कुछ टीवी कलाकारों के बाद अभिनेता जौन अब्राहम ने भी गुपचुप तरीके से प्रिया रुंचल से विदेश में शादी रचा ली. अब सुनने में आ रहा है कि जौन की ऐक्स गर्लफ्रैंड बिपाशा बसु भी शादी करने की फिराक में हैं.

इसे संयोग कहें या बिपाशा का जौन को जवाब कि जौन की शादी की खबरों के सप्ताह में ही बिपाशा ने भी अपनी शादी की खबर जगजाहिर कर दी. बिपाशा काफी अरसे से हरमन बावेजा के साथ डेटिंग कर रही थीं. हरमन की फिल्म ‘ढिश्कियाऊ’ के रिलीज होने के बाद वे शादी कर लेंगी. फिल्म के अगस्त में रिलीज होने की संभावना है. यानी बिपाशा भी अगस्त तक मिसेज बावेजा हो जाएंगी.

 

यारियां

यारियां’ कालेज लाइफ की मस्ती पर बनी फिल्म है, जिस में ढेर सारे चुंबन दृश्य हैं, शराब के पैग पर पैग चढ़ाती तंग टौप्स और हौट पैंट पहने लड़कियां हैं, अंग प्रदर्शन है और साथ में है बेहद भद्दी कौमेडी. फिल्म में एक ऐसा कालेज दिखाया गया है जहां सारे के सारे छात्रछात्राएं इश्क के रंग में रंगे हैं, साथ ही अध्यापक और अध्यापिकाएं भी खुलेआम एकदूसरे को लिपटतेचूमते हैं.

कौमेडी का आलम तो यह है कि स्टेज पर दिखाए जा रहे देशभक्ति के प्रोग्राम में एक छात्र जबरन मां का रोल कर रही एक छात्रा के सीने लगना चाहता है और उस से कहता है, मां, लोरी सुना दो. वह छात्रा तुरंत खड़ी हो कर ‘माई नेम इज शीला… शीला की जवानी’ पर नाचने लगती है. इस तरह की फिल्में युवाओं के कैरेक्टर को लूज ही करती हैं.

फिल्म की कहानी कालेज में छात्रों की मस्ती से शुरू होती है. कालेज का पिं्रसिपल लक्ष्य (हिमांशु कोहली) स्वयं सहित अपने 4 साथियों को एक लक्ष्य के लिए चुनता है. उन सब को एक विदेशी व्यापारी से कालेज को बचाना होता है क्योंकि वह विदेशी व्यापारी कालेज की जगह पर होटल व बार बनाना चाहता है. लक्ष्य और उस के साथी बौलीवुडिया तरीके से उस विदेशी के छक्के छुड़ा देते हैं और अपने कालेज को बचा लेते हैं.

फिल्म में पढ़ाईलिखाई का मजाक उड़ाया गया है. प्यार मोहब्बत, चीटिंग को प्रमुखता से दिखाया गया है. छात्र कालेज में पढ़ाई के अलावा सबकुछ करते नजर आते हैं.

फिल्म में 2 मांएं हैं – दीप्ती नवल और स्मिता जयकर. यही कुछ गंभीर लगी हैं. बाकी सभी कलाकार नए हैं. सभी ने उछलकूद ही की है. फिल्म में आस्टे्रलिया में भारतीयों पर होने वाले हमलों को भी दिखाया गया है. फिल्म में पैसा पानी की तरह बहाया गया है. गीतसंगीत कुछ अच्छा है. एक गीत ‘आज तू है पानी पानी…’ अच्छा बन पड़ा है. आस्ट्रेलिया की लोकेशनों पर खूबसूरत फोटोग्राफी की गई है.

मि. जो बी कारवाल्हो

इस फिल्म का टाइटल भले ही ‘जो भी करवा (कारवाल्हो) लो’ हो लेकिन किसी भी कलाकार ने कुछ कर के नहीं दिखाया है. अरशद वारसी की पिछली फिल्मों पर नजर डालें तो उस ने अलगअलग तरह की भूमिकाएं कर बौलीवुड में एक मुकाम बनाया है. लेकिन इस कारवाल्हो ने इतना ज्यादा बोर किया कि हौल में बैठना तक मुश्किल हो गया.

फिल्म की कहानी एकदम फूहड़ है. रहीसही कसर निर्देशक ने पूरी कर दी है. लगता है शूटिंग के दौरान निर्देशक हाथ बांध कर बैठा रहा और उस ने कलाकारों को पूरी छूट दे दी थी कि भैया, जो तुम्हें आता है, कर लो बस. फिल्म पूरी कर लो.

कहानी एक जासूस जो बी कारवाल्हो (अरशद वारसी) की है. एक अंतर्राष्ट्रीय डौन एक किलर कार्लोस (जावेद जाफरी) को अपनी पूर्व प्रेमिका की शादी तोड़ने की सुपारी देता है. दूसरी तरफ एक बिजनैसमैन खुराना (शक्ति कपूर) जो बी कारवाल्हो को अपने प्रेमी के साथ भागी अपनी बेटी की शादी रुकवाने का कौंटै्रक्ट देता है. उधर एक लेडी पुलिस अफसर शांतिप्रिया (सोहा अली खान) कार्लोस को पकड़ने निकलती है. वह जो बी कारवाल्हो की पूर्व प्रेमिका है. वह कारवाल्हो को ही कार्लोस समझ बैठती है. घटनाएं इस तरह घटती हैं कि सभी किरदार गोआ में इकट्ठे होते हैं. कौमेडी स्टाइल में घमासान होता है और सभी भाग जाते हैं. कारवाल्हो को उस की प्रेमिका फिर से मिल जाती है.

फिल्म की इस कहानी में सभी कलाकारों ने ओवरऐक्ंिटग की है. जावेद जाफरी ने जोकरनुमा हरकतें की हैं तो सोहा अली खान ने बिकनी पहन कर अपनी हंसी ही उड़वाई है. शक्ति कपूर चिल्लाता रहा है. कौमेडी के नाम पर कुछ भी नहीं है. गीतसंगीत, निर्देशन, संपादन सभी कुछ बेकार है. छायांकन कुछ अच्छा है. जो बी कारवाल्हो से कह दीजिए, भैया हमें कुछ नहीं करवाना. आप जाइए, हमारा वक्त खराब मत करिए.

 

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