इस फिल्म का टाइटल भले ही ‘जो भी करवा (कारवाल्हो) लो’ हो लेकिन किसी भी कलाकार ने कुछ कर के नहीं दिखाया है. अरशद वारसी की पिछली फिल्मों पर नजर डालें तो उस ने अलगअलग तरह की भूमिकाएं कर बौलीवुड में एक मुकाम बनाया है. लेकिन इस कारवाल्हो ने इतना ज्यादा बोर किया कि हौल में बैठना तक मुश्किल हो गया.

फिल्म की कहानी एकदम फूहड़ है. रहीसही कसर निर्देशक ने पूरी कर दी है. लगता है शूटिंग के दौरान निर्देशक हाथ बांध कर बैठा रहा और उस ने कलाकारों को पूरी छूट दे दी थी कि भैया, जो तुम्हें आता है, कर लो बस. फिल्म पूरी कर लो.

कहानी एक जासूस जो बी कारवाल्हो (अरशद वारसी) की है. एक अंतर्राष्ट्रीय डौन एक किलर कार्लोस (जावेद जाफरी) को अपनी पूर्व प्रेमिका की शादी तोड़ने की सुपारी देता है. दूसरी तरफ एक बिजनैसमैन खुराना (शक्ति कपूर) जो बी कारवाल्हो को अपने प्रेमी के साथ भागी अपनी बेटी की शादी रुकवाने का कौंटै्रक्ट देता है. उधर एक लेडी पुलिस अफसर शांतिप्रिया (सोहा अली खान) कार्लोस को पकड़ने निकलती है. वह जो बी कारवाल्हो की पूर्व प्रेमिका है. वह कारवाल्हो को ही कार्लोस समझ बैठती है. घटनाएं इस तरह घटती हैं कि सभी किरदार गोआ में इकट्ठे होते हैं. कौमेडी स्टाइल में घमासान होता है और सभी भाग जाते हैं. कारवाल्हो को उस की प्रेमिका फिर से मिल जाती है.

फिल्म की इस कहानी में सभी कलाकारों ने ओवरऐक्ंिटग की है. जावेद जाफरी ने जोकरनुमा हरकतें की हैं तो सोहा अली खान ने बिकनी पहन कर अपनी हंसी ही उड़वाई है. शक्ति कपूर चिल्लाता रहा है. कौमेडी के नाम पर कुछ भी नहीं है. गीतसंगीत, निर्देशन, संपादन सभी कुछ बेकार है. छायांकन कुछ अच्छा है. जो बी कारवाल्हो से कह दीजिए, भैया हमें कुछ नहीं करवाना. आप जाइए, हमारा वक्त खराब मत करिए.

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