उस दिन आकाश से बाजार में भेंट हो जाना कामिनी के लिए सुखद संयोग था. साथसाथ चलते बातचीत होती रही. जीवन में घट रही घटनाओं को आकाश से साझा किया तो वह चौंक उठा,”कैसे अजीबोगरीब आदमी हैं तुम्हारे पति। भूल गईं कि मैं ने तुम्हें नागचंपा इत्र भेंट करते हुए क्या कहा था? नागचंपा की पत्तियों के आकार जैसे नाग के फन क्यों नहीं दिखाए जब महीप तुम पर अत्याचार कर रहा था. फिर उस स्वामी को भी सह रही हो. क्यों? स्वामी ने छूने की जब पहली कोशिश की तो तुम नागचंपा पेड़ की लकड़ी सी क्यों नहीं बन गईं? वह गलीज तुम्हारी इच्छा, तुम्हारी इज्जत यहां तक कि तुम्हारी कोमल भावनाओं पर अपनी कुटिल कुल्हाड़ी चलाता रहा, क्यों नहीं तब नागचंपा की सख्त लकड़ी बन नीचता की उस कुल्हाड़ी की धार निस्तेज कर दी तुम ने? नागचंपा के फूलों सी तुम्हारी उजली देह की महक और पत्तियों की छाया लेता रहा वह. कितना समझाया था विवाह से पहले मैं ने. क्या लाभ हुआ उस का?” सब सुनने के बाद व्यग्र हो आकाश ने प्रश्न कर डाले.
“तो क्या करूं?” आकाश के प्रश्न के उत्तर में कामिनी ने प्रतिप्रश्न कर कुछ क्षणों की चुप्पी साध ली फिर बोली, “महीप ने जीवन नर्क बना दिया. स्वामी के आश्रम में मन पक्का कर कुछ घंटों चुपचाप अपनी देह सामने रख देती हूं, उस के बाद तो शांति है. कोई कुछ कहता नहीं, उलटे स्वामी के नजदीक होने से वहां का हर कार्यकर्त्ता मुझे सम्मान देता है.”
“तुम शायद समझ नहीं पा रही स्वामी का खेल. तुम्हारे पति के दिमाग में यह ठूंस दिया कि महीने में 1 बार ही बनाना है संबंध. नतीजतन महीप करीब ही नहीं आ पाया तुम्हारे. इस से न तो आपसी अंडरस्टैंडिंग बनी न दोनों को शरीर का सुख मिला. महीप को भी पति सुख की चाह तो होती ही होगी. अपनी उस इच्छा को दबाने से कुंठित प्रवृति का होता जा रहा है वह. गुस्सा उतरता है तुम पर. तुम्हें वह गर्भधारण न करने पर पापी समझ रहा है. इधर तुम महीप के बरताव से परेशान स्वामी के सामने समर्पण कर रही हो, उस के सामने जिस के कारण तुम पापी कहलाई जा रही हो. दान के नाम पर पैसा भी तुम्हारे घर से जा रहा है. कुछ समझी? असली गुनहगार महीप नहीं स्वामी है.”
“मैं ने तो बहुत कोशिश की महीप को स्वामी की असलियत बताने की, लेकिन वह उन के खिलाफ कुछ सुनना नहीं चाहता,” कामिनी बेबस दिख रही थी.
“स्वामी बहुत शातिर है. पहले अपने प्रवचनों से पत्नियों का आत्मविश्वास तोड़ता है फिर ऐक्सप्लोयट करता है. तुम पति के सामने स्वामी की पोल न खोलो इसलिए तुम्हारे गुस्से को प्रसाद का नाम दे कर एक तरफ तुम्हें अपनी ओर कर लिया, तो दूसरी ओर तुम्हारे पति के मन में हीनभावना उत्पन्न कर उस की हिम्मत तोड़ रहा है. वह मूर्ख महीप मन ही मन व्याकुल हो कर भी स्वामी की कलाई नहीं छोड़ रहा.”
“मेरी जिंदगी यों ही चलेगी क्या अब?” कामिनी निराशा के गर्त में डूब रही थी.
“महीप तुम्हारे नजदीक आ जाए तो स्वामी की पट्टी उस की आंखों से उतर जाएगी. कुछ सोचता हूं. कल मिलोगी?”
“ठीक है. मेरा मोबाइल नंबर ले लो और अपना दे दो. बता देना जहां मिलना हो. घर पर मम्मीपापा के सामने तो बात नहीं हो सकेगी.”
घर पहुंच कर कामिनी सुकून महसूस कर रही थी, उधर आकाश समाधान खोजने में जुटा था. रात 10 बजे आकाश का मैसेज आया कि कामिनी उस से 2 दिन बाद कालेज की कैंटीन में मिले, कल नहीं.
कामिनी निर्धारित दिन सहेलियों से मिलने का बहाना बना कर कैंटीन चली आई. आकाश भी नियत समय पर आ गया. कामिनी के पास ही कुरसी ले कर बैठते हुए बोला,“मैं ने तुम को 2 दिन बाद आने को इसलिए कहा था कि अपने एक मित्र की सहायता से महीप के बारे में कुछ पता लगवाऊं. वह दोस्त महीप के गांव का रहने वाला है. उस ने कई बातें बताई हैं मुझे. सब से पहले उस बात का जिक्र करूंगा जिस से मुझे यह सोचने में मदद मिली कि हमें क्या करना चाहिए.”
“बताओ न फिर जल्दी,” कामिनी अधीर हो रही थी.
“कई वर्षों पहले महीप के गांव में एक महिला के अंदर देवी आया करती थी और महीप उस को बहुत सम्मान देता था. उस की हर बात मानता था.”
“अच्छा तो क्या हुआ उस का बाद में?”
“होगा क्या, जब तक गांव में रही, देवी आने का नाटक कर खूब लूटा लोगों को. बाद में पति के साथ गांव छोड़ कर चली गई. खैर, असली मुद्दा यह नहीं है कि उस का क्या हुआ. मैं तो तुम्हें यह कहना चाह रहा था कि तुम्हें भी अपने पति के सामने देवी होने का ढोंग करना होगा.”
“लेकिन क्यों? यह कैसा समाधान है?”
“यही है समाधान. तुम्हारे पति को पाखंडी लोगों पर विश्वास है तो इस का फायदा उठाओ. वह देवी को अवश्य सम्मान देगा, तब देवी बनीं तुम अपनी बात मनवा लेना. मैं महीप के जीवन और परिवार से जुड़ी कुछ बातें बता दूंगा जो मेरे दोस्त ने मुझे बताई हैं. वे सब किस्से तुम अपनी शक्ति से पता लगने का नाटक करना. महीप का ध्यान कहीं और किसी अन्य शक्ति में लगेगा तो स्वामी के बंधन से खुद ब खुद आजाद हो जाएगा.”
“तुम कहते हो तो कोशिश कर लूंगी,” कामिनी सहमति में सिर हिला कुरसी से उठ खड़ी हो गई.
“एक बात और,” आकाश कामिनी को रोकते हुए बोला, “याद है न तुम कैसे भारी सी आवाज निकालती थीं. उसी तरह बोलना देवी बन कर.”
कामिनी की हंसी छूट गई, “हां, अच्छा याद दिलाया. एक दिन मैं खुद से बात करते हुए महीप की आवाज निकाल रही थी, लेकिन महीप को इस बारे में कुछ पता नहीं.”
“जब समय मिले फोन पर इस बारे में जानकारी देती रहना.”
चलने से पहले आकाश ने उसी अंदाज में कामिनी को ‘औल द बैस्ट’ कहा जैसे परीक्षा से पहले कहा करता था.
कासगंज लौटने के बाद कामिनी योजनानुसार देवी बनने के अवसर की तलाश में रहने लगी. एक दिन वह नहा कर निकली तो आंगन में खड़े हो कर भारी आवाज में जोरजोर से चिल्लाने लगी, “मुझे मीठा चाहिए कुछ गरमगरम. पूरी और आलू की सब्जी खाऊंगी और पान भी. मीठा पान. अभी…”
कमरे से भागता हुआ महीप आंगन में आया और कामिनी को खींचता हुआ अंदर कमरे में ले गया. कामिनी आंखें निकाल गुर्रा कर बोली, “जो कहा है करो जल्दी. जाओ, अभी चाहिए, जो मैं ने मांगा है.”
महीप को उस महिला की याद आ गई जिस पर गांव में देवी आती थी. कामिनी में किसी दैवीय शक्ति का प्रवेश महीप को डरा रहा था. ‘देवी की इच्छा पूरी न की तो श्राप दें देंगी’ सोचते हुए महीप भागाभागा बाजार गया. गाजर का हलवा, पूरियां हलवाई से पैक करने को कहा तब तक पान खरीदा फिर उलटे पांव दौड़ते हुए घर आ गया. कामिनी झूम रही थी. दोनों चीजें उस के सामने रख महीप चुपचाप खड़ा हो गया. एक पूरी और थोड़ा सा हलवा खा कर कामिनी ने बाकी उस की ओर बढ़ा दिया,”लो, खाओ तुम भी.” पान भी आधा उसे दे दिया.
महीप सब खा कर आनंदित तो हुआ लेकिन मुंह से कुछ नहीं बोला. अभी तक वह आश्रम में अधिक से अधिक दान देने के चक्कर में अपना मन मारे रहता था.
कुछ देर झूमने के बाद कामिनी बिस्तर पर जा कर लेट गई. 10 मिनट यों ही लेटे रहने के बाद धीरे से आंखें खोल कर देखा. महीप उस के पास ही बैठा था. कामिनी धीमी आवाज में बोली, “मुझे क्या हुआ था अभी कुछ याद नहीं. थकान बहुत हो रही है. पानी पीती हूं.” महीप चुपचाप उठ कर उस के लिए पानी ले आया. कुछ देर बाद बिना कुछ कहे काम पर निकल गया. कामिनी को महीप का बदला हुआ रूप अच्छा लग रहा था.
2 दिन निकल गए। तीसरे दिन कामिनी फिर नहाने के बाद कमरे में नाश्ता कर रहे महीप के सामने आ कर खूब मोटी, भारी आवाज बना कर बोली, “मुझे साड़ी चाहिए, गुलाबी रंग की. ठीक वैसी ही जैसी तुम ने मालती को दी थी 5 साल पहले. मालती तो तुम से फिर भी क्रोधित ही रही थी लेकिन मैं प्रसन्न हो जाऊंगी. अभी मैं जा रही हूं. तुम जल्दी ही सारा सामान एकत्र कर मेरी तसवीर के आगे रखने के बाद कामिनी को सजा देना. समझ गए न? उसे अपने हाथों से साड़ी पहनाना, बिंदी, सिंदूर लगाना,” बात पूरी करते ही कामिनी झूमने लगी, फिर लेट गई.
महीप हतप्रभ था. मालती कई वर्ष उस की प्रेमिका रही थी. दोस्त की बहन मालती ने उस से अनेक उपहार लिए थे फिर नाराजगी का झूठा नाटक कर किसी और से विवाह कर लिया था. महीप को डर था कि देवी द्वारा बताया मालती का किस्सा कहीं कामिनी को भी पता न लग गया हो. कामिनी अपने सामान्य रूप में आई तो मालती का नाम तक न लिया. चैन की सांस लेते हुए महीप ने देवी का बताया सामान खरीदा और कामिनी को सजाने के लिए छुट्टी का दिन चुना.
“आप मुझे सजाएंगे? कोई खास बात है क्या?” कामिनी ने अनजान बनते हुए पूछा.
“बस यों ही. तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती शायद. सजतीधजती नहीं हो आजकल,” महीप ने बात बना दी.
कामिनी के गोरे मखमली बदन पर साड़ी लपेटते हुए महीप को एक सुखद अनुभव हो रहा था. मेकअप किया तो लगा ऐसे स्पर्श की अनुभूति तो पहले हुई ही नहीं थी. उस का रोमरोम कामिनी के जिस्म को पाने की लालसा करने लगा.
आकाश ने महीप के विषय में जो जानकारी जुटाई थी उस में महीप के एक मित्र अजीत का विशेष उल्लेख था. महीप स्वामीजी का चेला बनने से पहले देवी वाली महिला का भक्त होने के साथसाथ बचपन के दोस्त अजीत के बहुत करीब था. अपनी समस्याएं, उलझनें, विचार वह अजीत के साथ साझा किया करता था. इस बार देवी बनी कामिनी ने अजीत का नाम लिया और महीप के समक्ष यादें ताजा करवा दीं. उस दिन जब कामिनी सामान्य हुई तो महीप ने उसे अपने मित्र अजीत के विषय में बहुत कुछ बताया,”मेरा बहुत मन करता है अजीत से मिलने का,” कहते हुए महीप की आंखें नम हो गईं.
कामिनी ने आकाश को उस दिन मैसेज किया कि शायद समय आ रहा है, धीरेधीरे महीप स्वामी के पंजे से मुक्त हो सकता है.
2 दिन बाद नहा कर जब कामिनी बाहर निकली तो जोरजोर से हंसने लगी. महीप हाथ जोड़ सिर झुकाए सामने खड़ा रहा. देवी ने भारीभरकम आवाज में कहा, “इस के बाद अब मैं कब आऊंगी पता नहीं. जातेजाते इतना कहना चाहती हूं कि सुगंधित साबुन…” कामिनी ने अपनी बात पूरी नहीं की थी कि महीप को लगातार हाथ जोड़े अपनी ओर ताकते उसे हंसी आने लगी. किसी तरह अपनी हंसी दबा कर बात वहीं छोड़ वह चुपचाप बिस्तर पर जा कर लेट गई.
महीप ने अनुमान लगाया कि देवी चाहती हैं कि वह अच्छा सा खुशबूदार साबुन खरीद उस का प्रयोग कामिनी पर करे. उस दिन शाम को चंदन की खुशबू वाला साबुन ले कर वह घर आया. कामिनी को दिखाते हुए बोला, “जब तुम्हें मैं अपने हाथों से सजाता हूं तो अच्छा लगता है न? देखो यह नहाने का महकदार साबुन ले कर आया हूं. तो कल सुबह… समझ गईं न?”
कामिनी लाज से लाल हो गई. उस की झुकी पलकें और मुसकान लिए गुलाबी होंठ देख महीप का दिल फूल सा खिल उठा. रातभर वह यह सोच कर ही रोमांचित हुआ जा रहा था कि क्या सचमुच ऐसा हो सकेगा?
अगले दिन कामिनी उठी तो सिर चकरा रहा था. बोली, “अपच जैसा हो रहा है. महीना भी नहीं आया.”
“डाक्टर के पास चलते हैं.” महीप आज पहली बार कामिनी की चिंता करता दिख रहा था.
क्लिनिक पर गए तो खुशखबरी मिली, कामिनी के मां बनने के संकेत थे.
घर पहुंचकर कामिनी लेट गई. महीप उस के समीप बैठ कर भविष्य के सपने देख रहा था कि दरवाजे की घंटी बज गई. बेमन से महीप ने दरवाजा खोला तो आश्चर्यचकित रह गया. स्वामीजी आए थे. अंदर घुसते ही बोले, “बहुत दिनों से तुम लोग नहीं आए तो मैं ने सोचा आज मैं ही कामिनी से मिलने चलता हूं.”
महीप को स्वामीजी का केवल कामिनी से मिलने की इच्छा जताना बिलकुल अच्छा नहीं लगा, फिर भी उन को आदर से बैठाते हुए बोला, “कामिनी की तबीयत ठीक नहीं है. आप बैठिए उसे बुलाता हूं.”
अधीर स्वामीजी उठ कर बैडरूम तक पहुंच गए. उसे बेटी कहते हुए बाहुपाश में कस गालों को चूम लिया. महीप के लिए स्वामीजी का यह रूप बिलकुल नया था. दोनों को आश्रम में जल्द हाजिर होने की आज्ञा दे कर वे चले गए.
स्वामीजी के प्रति महीप का क्रोध देख कामिनी बोली, “मैं ने आप को कितनी बार समझाने की कोशिश की इन के बारे में, लेकिन आप ने कभी सुनना ही नहीं चाहा. अनुष्ठान के बहाने न जाने कितनी लड़कियों का शोषण किया होगा इस स्वामी ने.”
“अब क्या होगा? यह तो तुम्हारा पीछा ही नहीं छोड़ेगा,” घबराया सा महीप बोला.
“आप को डरने की जरूरत नहीं है. हम पुलिस के पास चलेंगे. इस के द्वारा शोषित कुछ लड़कियों के मोबाइल नंबर हैं मेरे पास, उन से भी बात करती हूं.”
महीप अब तक आश्रम में दिए दान का मोटामोटा हिसाब लगा पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था. कामिनी ने आकाश को मैसेज कर पूरी बात बताते हुए यह भी लिखा, “जब मुझे विश्वास हो जाएगा कि महीप पूरी तरह बदल गए हैं तब अपने देवी बनने का सच बता दूंगी.”
आकाश ने जवाब दिया, “अपने पति को फूलों की सुगंध और पत्तियों की छांव देते हुए सुधारने का काम काबिल ए तारीफ है. इस के अलावा तुम मजबूत लकड़ी बन कर स्वामी जैसे लोगों के होश ठिकाने लगवाने का काम भी कर रही हो. तो कामिनी आज फख्र से कहता हूं कि तुम हो नागचंपा.”