मनुष्य के भीतर का डर उसे अंधविश्वासों की ओर अग्रसर करता है. अंधविश्वास मानवीय कमजोरियों व अज्ञानता के कारण पनपते और फलतेफूलते हैं. हम सभी भावनाओं से संचालित होते हैं और अपने प्रियजनों से प्रेम करते हैं व जब उन के किसी अनिष्ट की आशंका होती है तो वह डर हमें आस्थाओं और अंधविश्वासों की ओर ले जाता है. उदाहरण के लिए, हम कहीं जाने के लिए निकले और बिल्ली हमारे रास्ते से निकल गई और हमारे साथ कोई दुघर्टना घटित हो गई तो हमारा कमजोर मन यही कहेगा कि बिल्ली रास्ता काट गई थी, इसीलिए यह अनिष्ट हुआ.

मानव मन की इस कमजोरी का फायदा चालाक, स्वार्थी और लालची लोगों ने उठाया और उसे अंधविश्वासों के जाल में फंसा दिया. अंधविश्वास और अनिष्ट की शंका के समाधान के लिए लोग इन बाबाओं, शंकाओं का समाधान करने वालों के पास जाएंगे और ये लोग अपनी स्वार्थपूर्ति करेंगे.

हमारे समाज में तर्क और विज्ञान से ज्यादा महत्त्व लोग आस्था और विश्वास को देते हैं जो कि अशिक्षा और गरीबी से उत्पन्न मानसिक दुर्बलता का होता है. अंधविश्वासों की पराकाष्ठा तब होती है जब लोग तर्क, विवेक, बुद्धि को ताक पर रख कर अंधविश्वासों के मायाजाल में फंस कर दूसरों की जिंदगियों से भी खेल जाते हैं. तांत्रिकों के कहने पर धनदौलत, खजाना मिलने या निसंतान होने पर बच्चे के लिए किसी निर्दोष की बलि तक चढ़ा देते हैं ऐसे लोग.

बागेश्वर धाम के एक बाबा की निरर्थक बातों को सोशल मीडिया जिस तरह प्रसारितप्रचारित कर रहा है उस से अच्छी तरह से समझ जा सकता है कि देश को अंधविश्वासों के किस अंधेरे गर्त में धकेला जा रहा है. बलात्कारी बाबा राम रहीम की प्रशंसा में अभी भी अखबार रंगे रहते हैं. जेल में भी उस पर अधिकारियों की कृपादृष्टि रहती है और उसे वर्ष में कई बार पैरोल पर रिहा कर दिया जाता है. अंधविश्वास का राजनीति और स्वार्थ से बड़ा गठजोड़ है और उसी कारण अंधविश्वासों की दुकान खूब फलफूल रही है क्योंकि जनता को मूर्ख बना कर, तरहतरह के मायाजालों में उलझ कर, जनता के विवेक को कुंद कर के ही सत्ता पर कब्जा बनाए रखा जा सकता है और जिंदगी में ऐशोआराम के मजे लूटे जा सकते हैं. इस में बाबा और नेता दोनों शामिल हैं. ये बाबा बड़ी चालाकी से आम जनता के विवेक को शून्य कर देते हैं.

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