आंधी, बाढ़, भूकंप, सूखा, सुनामी आदि प्रकृति के कहर जब आते हैं तो मानव अपने को असहाय पाता है, सिवा उन्हें सहने के उस के पास कुछ नहीं होता. प्रकृति पर विजय पाने के लिए उस ने बहुत कुछ किया. पक्के मकान बनाए, बाढ़ को रोकने के लिए बांध व नहरें बना डालीं, गरमीसर्दी को रोकने के लिए एयरकंडीशनिंग घरघर ले गया, सूखे का मुकाबला करने के लिए हजारों फुट गहरे कुएं खोद डाले लेकिन प्रकृति पर जीत पाने के चक्कर में भूल गया कि प्रकृति के कहर की तरह अपना खुद का कहर तैयार कर रहा है, प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग.
दुनिया के कितने ही शहर अब भीषण प्रदूषण के शिकार हैं जो मानव ने खुद पैदा किया है. बीजिंग, सिओल, कराची, दोहा, ईरान के खोरामाबाद से ज्यादा भारत के दिल्ली, पटना, अहमदाबाद जैसे शहर शान से सब से प्रदूषित शहरों में नाम दर्ज कराए हुए हैं. इन शहरों में 24 घंटे धूल, धुएं और कार्बन पार्टीकल्स व घातक सल्फर कणों की परत छाई रहती है.
अब दुनिया चेत रही है कि आतंकवाद के साथसाथ ग्लोबल वार्मिंग और ग्लोबल पौल्यूशन भी मानव की खुद की देन हैं और यदि लंबा जीना है, सुख से जीना है तो प्रदूषण से बचना आतंकवाद से जूझने के बराबर गंभीर चुनौती है वरना आने वाली पीढ़ी बीमार ही नहीं, समाप्त भी हो सकती है.
दुनिया के कितने ही शहरों में बच्चों को अब बाहर निकलने पर, बाग में घूमने पर रोक लगने लगी है, क्योंकि घर से ज्यादा घुटन बाहर होती है. मानव ने प्रकृति पर विजय पाने के लिए जो औद्योगिक साम्राज्य बनाया है, अब उस की कीमत देनी पड़ रही है.
प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग की दोहरी मार शहरों को जेल बना रही है जहां जो रहता है वह कैदी है, जिसे अपने अपराधों का दंड भुगतना पड़ रहा है.
काम की और बेकार चीजों का जो अंबार मानव ने लगाया वह अब उस के पैरों की जंजीर बन गया है. घर में हजारों चीजें हैं. बाहर बीसियों मंजिले मकान हैं, विशाल स्टेडियम हैं, दफ्तर हैं, हवाई जहाज हैं, शहर जितने बड़े पानी के जहाज हैं, अंतरिक्ष में जाने लायक रौकेट हैं, पर घुटन है, धुआं है, बीमारी है.
अब पेरिस सम्मेलन में ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए कच्चापक्का समझौता हुआ है, जिस में अरसे बाद लगभग सारी दुनिया के देशों ने सहमति जताई है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार ने सड़कों पर गाडि़यां रोकने के लिए औडईवन प्लान बनाया है कि आधी गाडि़यां ही सड़कों पर उतरें और लोग पैदल चलें, साइकिल पर चलें, शेयर करें, बसमैट्रो में चलें पर गाडि़यों से खस्ता हो रहे शहर को बचाएं.
जो कुछ दुनिया के नेता कर रहे हैं, अभी बहुत कम है. आज की नई पीढ़ी के कल के लिए यह काफी नहीं है. आज की किशोर व युवा पीढ़ी को हजारों चीजें मिल रही हैं पर साथ ही प्रदूषण का जहर भी मिल रहा है. जो छोड़ा जा रहा है, वह काफी कम है.