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‘हनी’ व ‘बेबी’ कहा, तो हो सकती है जेल

आजकल युवाओं में अपनी गर्लफ्रैंड को ‘हनी’ व ‘बेबी’ कहने का चलन जोरों पर है. पब्लिक प्लेस पर एकदूसरे को बुलाना हो या फिर फोन बुक में नंबर सेव करना हो, वे ‘हनी’, ‘बेबी’, ‘बाबू’, ‘जानू’, ‘स्वीटू’ वे इसी तरह के नामों का इस्तेमाल करते हैं.

अगर आप भी अपनी गर्लफ्रैंड, किसी महिला दोस्त या किसी महिला को इस तरह के नाम से पुकारते हैं तो अब छोड़ दीजिए, क्योंकि ऐसा करना आप को महंगा पड़ सकता है और ऐसा करने पर आप को जेल भी हो सकती है. दरअसल उत्तराखंड राज्य महिला आयोग ने यह पहल शुरू की है कि महिलाओं के खिलाफ जो भी इस तरह के शब्दों का प्रयोग करेगा, उसे जेल भेजा जाएगा. उत्तराखंड महिला आयोग का कहना है कि इस से युवा पीढ़ी के बीच महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध को रोकने में मदद मिलेगी. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से अप्रैल से दिसंबर 2015 तक 1,118 शिकायतें आई हैं, जिस में से अधिकतर शिकायतें उत्पीड़न मामलों की थी.

पर क्या यह वाकई संभव है कि महिला आयोग के इस तरह से शब्दों पर रोक लगाने से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध को कम किया जा सकेगा  अगर है तो सब से पहले महिलाओं को जोड़ कर दी जाने वाली गालियों पर रोक लगाना चाहिए, जिसे लोग आए दिन हर 5 से 10 मिनट में इस्तेमाल करते हैं.

‘बागी’ के लिए बोल्ड हुईं श्रद्धा, पहली बार पहना स्विमसूट

टाइगर श्रॉफ और श्रद्धा कपूर स्टारर फिल्म 'बागी' इन दिनों सुर्खियों में है. हाल ही में फिल्म का फर्स्ट लुक जारी किया गया. जिसे लोगों ने काफी पंसद किया. कुछ दिनों पहले श्रद्धा कपूर और टाइगर श्रॉफ का लिप-टू-किस भी खूब चर्चा में रहा.

वहीं, दूसरी तरफ श्रद्धा अपनी 'स्वीट गर्ल' की इमेज तोड़कर फिल्म में बोल्ड लुक में नजर आ रही हैं. श्रद्धा ने पहली बार बागी के लिए स्विमसूट पहना. इस स्विमसूट में श्रद्धा बेहद हॉट लग रही हैं.

टाइगर श्रॉफ और श्रद्धा कपूर स्टारर फिल्म 'बागी' का ट्रेलर आज जारी होगा. 14 मार्च को आमिर खान अपना 51वां बर्थ डे सेलिब्रेट कर रहे हैं. ऐसे में टाइगर ने फिल्म के ट्रेलर जारी करने के लिए आमिर के बर्थडे का दिन चुना है. दरअसल टाइगर, आमिर को लकी चार्म मानते हैं.

फिल्म 'हीरोपंती' के दौरान आमिर ही टाइगर को सबके सामने लेकर आए थे और इसके बाद ऑडियंस को टाइगर को काफी प्यार दिया था. यही कारण है कि टाइगर के दिल में आमिर के लिए काफी जगह है. टाइगर के लिए आमिर उनके मोटिवेटर हैं. ऐसे में जब 'बागी' के ट्रेलर लॉन्च की बात आई, तो टाइगर ने आमिर के बर्थडे पर ट्रेलर को जारी करने का सुझाव दिया.

बिहार: लाल खून का काला धंधा

मरीजों को चढ़ाया जाने वाला खून कितना महफूज और खरा है  बिहार में इसकी कोई गारंटी नहीं है. सीतामढ़ी जिला के सरकारी अस्पताल में पिछले साल 2200 लोगों ने खुद को स्वस्थ बता कर अपने ही बीमार सगे-संबध्यिों को खून ब्लड बैंक को दिया था. खून की जांच के बात पता चला कि उनमें 75 लोगों का खून एचआईवी और हेपेटाइटिस से संक्रमित थे. संक्रमित खून को किसी मरीज को चढ़ाना उसके लिए जानलेवा ही साबित होता है.

सूबे की राजधनी पटना में कुल 15 ब्लड बैंक काम कर रहे हैं. इनमें 4 सरकारी हैं और 11 प्राइवेट हैं. इसमें 5 ब्लड बैंक नर्सिंग होम के है और बाकी किसी से जुड़े नहीं हैं. किसी डोनर का खून लेने से पहले एचआईवी, हेपेटाइटिस और मलेरिया की जांच करनी जरूरी है. डाक्टर दिवाकर तेजस्वी बताते हैं कि ज्यादातर ब्लड बैंक सरकार द्वारा तय किए गए नियमों का सही तरीके से पालन नहीं करते हैं. एचआईवी संक्रमण के विंडो पीरियड की जांच कापफी मंहगी होने की वजह इसे करने से कतराते हैं, लेकिन ब्लड बैंक, डोनर और मरीजों के परिजनों को समझना चाहिए कि जान से बढ़ कर कुछ भी कीमती नहीं है. हर तरह की जांच के बाद ही मरीज को खून चढ़ाना जरूरी है, नहीं तो जान बचाने के लिए मरीज को चढ़ाया गया खून ही उसके लिए जानलेवा हो जाता है.

आंकड़े बताते हैं कि हरेक साल 2 पफीसदी लोग संक्रमित खून की वजह से एचआईवी और 5 पफीसदी लोग हेपेटाइटिस की चपेट में पफंस रहे हैं. खून चढ़ाने और लेने से पहले स्क्रीनिंग में बरती जाने वाली लापरवाही की वजह से कई मरीजों के खून में एचआईवी और हेपेटाइटिस की कीड़े घुस रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसी नर्सिंग होम से नहीं जुड़े होने वाले ब्लड बैंकों पर रोक लगाई जाए, इसके बाद भी पटना में कई ब्लड बैंक चल रहे हैं.

पटना के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों को हर महीने करीब 3000 यूनिट खून की जरूरत पड़ती है. पटना मेडिकल कालेज अस्पताल के ब्लड बैंक से ही हरेक माह 2000 से 1500 यूनिट खून की अदला-बदली होती है. जिन नर्सिंग होम के पास अपना ब्लड बैंक नहीं है वहां के मरीजों के परिवार वालों को बाहर से खून का इंतजाम करना होता है. ब्लड बैंक खून की स्क्रीनिंग की पफीस लेकर एक्सचेंज के जरिए खून देते हैं. स्क्रीनिंग के लिए कोई पफीस नहीं तय किया जा सका है, जिससे इसके नाम पर कापफी लूट-खसोट मची हुई है.

स्क्रीनिंग की फीस के नाम पर कोई ब्लड बैंक 500 रुपया प्रति यूनिट लेता है तो कहीं 1000 रुपए भी वसूले जा रहे हैं. कोई अच्छी जांच के नाम पर 800 रूपए भी मरीजों के पाकेट से झटक रहा है. इतना ही नहीं खून के ग्रुप के हिसाब से इसकी मनमानी कीमत वसूल की जाती है. एबी निगेटिव और पफेनोटाइप ब्लड ग्रुप काफी कम पाए जाते हैं, इसलिए इस ग्रुप का खून देने के नाम पर 3000 से 4000 रूपए प्रति यूनिट लिया जाता है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के डाक्टर बिमल कारक कहते हैं कि ब्लड बैंकों के काम-काज का नियमित रूप से इंस्पेक्शन होना जरूरी है. गाइडलाइन का पालन नहीं करने वालों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी ही चाहिए. उत्तर बिहार के ज्यादातर जिलों में ब्लड बैंक के नाम पर काला कारोबार धडल्ले से चल रहा है और सरकार और प्रशासन के लोग कान में तेल डाल कर सो रहे हैं. तिरहुत प्रमंडल में मुजफ्फरपुर के अलावा मोतिहारी, बगहा, सीतामढ़ी आदि जिलों में बिना लाइसेंस के ही कई ब्लड बैंक चल रहे हैं. कुल मिला कर यही कहानी समूचे बिहार की है. प्राइवेट नर्सिंग होम, ब्लड बैंक, सरकारी अपफसरों और दलालों की मिलीभगत से लाल खून का कारोबार बिल्कुल ही काला हो चुका है. किसी की जान जाती है तो जाए, वे तो अपनी जेब गर्म करते रहेंगे.

दिल्ली की सड़कों पर घूमे अमिताभ, किसी ने नहीं पहचाना

बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन की एक झलक पाने के लिए प्रशंसक घंटों उनके घर के बाहर इंतजार करते हैं, लेकिन अमिताभ दिल्ली की सड़कों पर घूमे और किसी ने उन्हें पहचाना तक नहीं. सुनने में भले ही ये बात आपको अटपटी लगे लेकिन ये सौ फीसदी सच है.

अमिताभ इन दिनों शूजित सरकार की फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में दिल्ली में आए हैं. अमिताभ ने एक ब्लॉग में कुछ तस्वीरें साझा की है. इन तस्वीरों में नजर आ रहा है कि वे खाकी रंग की पतलून और एक ढीली कमीज पहने दिखाई दे रहे हैं. साथ ही उन्होंने अपना चेहरा भी ढक रखा है. वे सफेद बाल और लंबी सफेद दाढी में एक अलग ही लुक में नजर आ रहे हैं.

इसके साथ ही उन्होंने लिखा है कि इस नकाब का कमाल है कि भीड़भाड़ वाली दिल्ली में किसी ने मुझे आंख उठाकर भी नहीं देखा, कोई भी मुझे पहचान ही नहीं पाया. ये जिंदगी है, यही समानता कहलाती है. कभी-कभी एक मशहूर आदमी भी मशहूर होने में दिलचस्पी नहीं लेता है.

मदरसों में स्किल डेवलपमैंट कितना असरदार

मदरसों को मौडर्न बनाना न तो कोई नई खबर है और न ही कोई नई योजना, लेकिन केंद्र की वर्तमान सरकार ने जिस तरह मदरसों के छात्रों को स्किल डेवलपमैंट की ट्रेनिंग देने की शुरुआत की है, उसे आतंकवाद से मुकाबला करने के रूप में देखा जा रहा है.

वैसे तो स्किल डेवलपमैंट के लिए अभी कोई खास पहल नहीं हुई है, लेकिन पायलट प्रोजैक्ट के तौर पर स्किल डेवलपमैंट के लिए जिन मदरसों को चुना गया है, उन में इदारा शरिया, पटना, अंजुमन इसलामिया, मोतीहारी, इसलामिया अंजुमन, रफीकुल मुसलेमान, बेतिया और दारुल मदरसा, हुसैनी मसजिद, मुंबई हैं. इन मदरसों में तकरीबन 12 सौ छात्र और छात्राएं तालीम ले रहे हैं.

स्किल डेवलपमैंट योजना को गृह मंत्रालय और अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से चलाया जा रहा है. केंद्र सरकार का मानना है कि मदरसा छात्रों को मौडर्न सब्जैक्ट पढ़ाने के साथ अगर स्किल डेवलपमैंट से जोड़ा जाए, तो उन्हें कट्टरपंथ की ओर जाने से रोका जा सकता है. मदरसों में अंगरेजी पढ़ाने और कंप्यूटर सिखाने की योजनाएं पहले से चल रही हैं.

एक अंदाजे के मुताबिक, अकेले उत्तर प्रदेश में सरकार द्वारा मंजूरी पाए गए मदरसों की तादाद 5 हजार से ज्यादा है. इन में से 466 मदरसे सरकारी मदद पा रहे हैं यानी उन मदरसों में मौडर्न सब्जैक्ट के साथ कंप्यूटर सिखाने वाले टीचरों को तनख्वाह सरकार देती है. मदरसा छात्रों को स्किल डेवलपमैंट की ट्रेनिंग देने से रोजगार के और ज्यादा मौके हासिल हो सकेंगे.

स्किल डेवलपमैंट के लिए ‘नई मंजिल’ नामक योजना की शुरुआत करते समय केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने कहा था कि उन के मंत्रालय के पास 37 हजार करोड़ रुपए का बजट है. बाद में उन्होंने यह भी बताया कि इस योजना के लिए वर्ल्ड बैंक से 3 सौ करोड़ रुपए का लोन भी मंजूर कराया गया है. योजना के असरदार और मशहूर होने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अल्पसंख्यक मंत्रालयों की योजनाओं से वर्ल्ड बैंक ने अफ्रीकी देशों को भी परिचित कराया है. वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के संयुक्त सचिव राजकुमार के मुताबिक, ‘नई मंजिल’ योजना से रोजगार की काबिलीयत और श्रम बाजार में अल्पसंख्यक नौजवानों के प्रदर्शन में सुधार में मदद मिलेगी. कर्ज की मीआद 25 साल होगी, जिसे 5 साल के लिए और बढ़ाया जा सकता है.

दरअसल, स्किल डेवलपमैंट योजना ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्किल इंडिया’ मुहिम का ही हिस्सा है, जो मदरसों के छात्रों और स्कूल के ड्रौपआउट बच्चों की माली जरूरतों और उन के अच्छे भविष्य को सामने रख कर बनाई गई है. मदरसों से पढ़ कर निकलने वाले छात्रों को सरकार से मान्यताप्राप्त न होने के नतीजे में ऊंची तालीम में दाखिला नहीं मिलता है और न ही उन्हें सरकारी नौकरी मिलती है. इस से उन के आगे बढ़ने का रास्ता बंद हो जाता है. इस योजना का मकसद उन्हें ब्रिज कोर्स की सुविधा द्वारा विभिन्न हुनरों की ट्रेनिंग दे कर रोजगार के मौके मुहैया कराना है और आगे बढ़ने के लिए मुख्यधारा में शामिल करना है. अल्पसंख्यक मंत्रालय स्किल डेवलपमैंट की ट्रेनिंग दे कर रोजगार हेतु कर्ज भी मुहैया कराएगा.

स्किल डेवलपमैंट के लिए सरकार ने तकरीबन 18 हजार पारंपरिक हुनरों को चुना, जिन में ताला बनाना, बरतन बनाना, कढ़ाई, जरदोजी, कैंची बनाना वगैरह शामिल हैं. एक साल में 40 हजार बच्चों को स्किल डेवलपमैंट की ट्रेनिंग देने की योजना है. जिस इलाके में जिस हुनर की जरूरत होगी, उसी हिसाब से वहां स्किल डेवलपमैंट की टे्रनिंग दी जाएगी. सरकार जहां इस योजना को अनूठा मान रही है, वहीं मदरसे के छात्र ब्रिज कोर्स और हुनरमंद बनाने की योजना से संतुष्ट नहीं हैं. यही वजह है कि अभी भी इस योजना को ले कर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या सरकार द्वारा केंद्रीय मदरसा बोर्ड को बनाने में मिली नाकामी के बाद दूसरे रास्ते से मदरसों और वहां से निकलने वाले छात्रों की सोच बदलने की कोशिश है

ऐसे छात्रों का मानना है कि कान सीधा पकड़ा जाए या घुमा कर, दोनों हालात में कान पकड़ना ही तो कहलात है. एनआईओएस द्वारा ऊंची तालीम तक पहुंचाने के जिगजैग रास्ते के बजाय मदरसों की डिगरी को मान्यता क्यों नहीं दी जाती, जिस से वे देश की तमाम यूनिवर्सिटियों में सीधे दाखिला ले सकें  अभी सिर्फ अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी, जामिया मिल्लिया इसलामिया यूनिवर्सिटी, मौलाना आजाद नैशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद और लखनऊ यूनिवर्सिटी ने मदरसों की डिगरी को मंजूरी दी है, जिस की वजह से मदरसा छात्रों के लिए वहां ऊंची तालीम में दाखिला लेना मुनासिब हो सका है.

कांगे्रस की अगुआई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के राज में नैशनल इंस्टीट्यूट औफ ओपन स्कूलिंग ने मदरसा छात्रों के लिए 10वीं और 12वीं जमात में दाखिले का प्रस्ताव मंजूर किया था, लेकिन आज तक यह योजना जमीन पर नहीं उतरी है, जिस की वजह से तकरीबन 6 महीने से मदरसा छात्र इस का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं. बुनियादी सवाल यह है कि पहले शुरू की गई यह योजना अभी 4 मदरसों से आगे नहीं बढ़ सकी है, तो पूरे देश में इस के सैंटर खोलने की योजना कब पूरी होगी   दिसंबर, 2015 में गृह मंत्रालय द्वारा अल्पसंख्यक मंत्रालय से इस बाबत रिपोर्ट मांगे जाने के बाद यह सवाल उठ गया है कि क्या सरकार इस को बढ़ाने में गंभीर है  या फिर बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार से सबक लेते हुए केंद्र सरकार राजनीतिक फायदा न मिलता देख इसे ठंडे बस्ते में डाल देगी 

मार्केटिंग को मोहताज सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस

चुनाव में जीत और हार का सिलसिला चलता ही रहता है. नेता इस बात को समझते है. सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी 2014 के लोकसभा चुनावों की हार को पचा नहीं पा रही है. उत्तर प्रदेश और पंजाब के विधानसभा चुनावों की तैयारी में कांग्रेस को अपने संगठन और नेताओं से कहीं अधिक भरोसा राजनीतिक मार्केटिंग से चर्चा में आये प्रशांत किशोर पर है. लखनऊ में प्रशांत किशोर ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री सहित तमाम दूसरे नेताओं के साथ मीटिंग की. मीटिंग के दौरान दिख रहे आत्मविश्वास में कांग्रेस के पुराने नेताओं का आत्मविश्वास हिला दिख रहा था, जबकि प्रशांत किशोर का आत्मविश्वास पूरा हिलोरे मार रहा था. यह सही है कि आज बिकने और बेचने का दौर है. इसके बाद भी यह कह सकते है कि केवल मार्केटिंग से राजनीतिक लडाई नहीं लडी जा सकती. राजनीतिक जंग को जीतने में जनता का भरोसा जीतना पडता.

कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए-1 और यूपीए-2 ने देश में 2004 से 2014 तक लगातार 10 साल राज किया. दोनो ही कार्यकाल की तुलना करे तो यूपीए-1 में कांग्रेस की नीतियां देश और समाज के हित में थी. तब कांग्रेस को जीत के लिये किसी मार्केटिंग कंपनी की जरूरत नहीं पडी. भारतीय जनता पार्टी इंडिया शाइनिंग कैंपेन जरूर शुरू की थी पर उसका लाभ उसे नहीं मिला था. यूपीए-2  की सरकार में कांग्रेस अल्पमत में थी. कोई बडा काम वह नहीं कर सकी. छोटे छोटे सहयोगी दलों ने दबाव बना कर रखा और भ्रष्टाचार किया. कई कांग्रेसी नेता भी भ्रष्टाचार की बहती गंगा में हाथ धोने से नहीं चूके. 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश ने कांग्रेस को 22 सासंद दिये जो हाल के कुछ सालों में कांग्रेस का सबसे अच्छा प्रदर्शन था.इन सांसदों ने कुछ काम नहीं किया. मंहगाई के बढते बोझ ने कांग्रेस को नजर से उतार दिया. ऐसे समय में कांग्रेस की हार तय थी.

भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी की जिस मार्केटिंग नीति का उदाहरण दिया जा रहा है दरअसल उसकी वजह भाजपा से अधिक कांग्रेस थी. नरेन्द्र मोदी का भाजपा के बडे हिस्से में विरोध हो रहा था. प्रचार अभियान से मोदी ने अपने कद को इतना बडा कर लिया जिससे भाजपा में उनका विरोध खत्म हो गया. कांग्रेस की हार में मोदी की जीत छिपी थी. इसमें किसी मार्केटिंग के कमाल की जरूरत नहीं थी. बिहार चुनाव तक मोदी की चमक खो चुकी थी.जनता खपफा हो चुकी थी. जिससे भाजपा को हार का सामना करना पडा. भाजपा का मुकाबला एकजुट विपक्ष से हो गया था. पंजाब और उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलापफ विपक्ष एक जुट हो जाये तो जीत के लिये किसी मार्केटिंग की जरूरत नहीं होगी.

नारों से सोशल मीडिया पर हंगामा खडा हो सकता है चुनावी जीत हासिल नहीं हो सकती. प्रशांत किशोर को लेकर कांग्रेस के अंदरखाने विरोध है. संगठन के कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि पार्टी को उन पर भरोसा नहीं है. ऐसे में मार्केटिंग से जादू करना चमत्कार जैसा होगा.

कमाल खान और सिद्धार्थ मल्होत्रा के बीच ट्विटर वॉर

हर शख्स खासकर बौलीवुड से जुड़ी फिल्मी हस्तियां सोशल मीडिया की तारीफ करने के साथ इसे एक सशक्त माध्यम होने का दावा करती रहती हैं. फिल्मी हस्तियां यह भी मानती हैं कि ट्विटर या फेयबुक या इंस्टाग्राम ऐसे सोशल मीडियम हैं, जिन पर हर इंसान को अपनी बात खुलकर कहने की पूरी आजादी है. मगर जब सोशल मीडिया पर इन फिल्मी हस्तियों के पक्ष में बात न हो, तो इन्हें गुस्सा भी आ जाता है. ट्विटर पर कई फिल्मी हस्तियों के बीच या उनके फेन के साथ युद्ध सी स्थिति बन चुकी है. पिछले पंद्रह दिनों से ट्विटर पर अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा और कमाल आर खान के बीच घमासान मचा हुआ है. यानी कि ट्विटर जैसा सोशल मीडिया धीरे धीरे युद्ध का मैदान बनता जा रहा है.

ट्विटर पर कमाल आर खान व सिद्धार्थ मल्होत्रा के बीच क्या हुआ

लगभग दो सप्ताह पहले अंग्रेजी की मशहूर पत्रिका ‘वोग’ के मुख्य पृष्ठ पर आलिया भट्ट की तस्वीर देखकर कमाल आर खान ने ट्वीट किया-‘‘पैंटी में आलिया भट्ट बच्ची लगती हैं. लेकिन कुछ लोग उस पर यह पहनने के लिए दबाव डालते रहते हैं..’’(आलिया लुक्स सो मच बच्ची इन पेंटी. बट सम पीपुल कीप फोर्सिंग हर टू विअर इट.) इस ट्वीट के बाद आलिया भट्ट के तथाकथित प्रेमी व अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा ने कमाल आर खान को नसीहत देते हुए ट्वीट किया-‘‘सर हम भी बहुत कोशिश करके आप से कहते रहते हैं कि आप ट्वीट करना बंद करें. (सर! वी आलसो ट्राई वेरी हार्ड टू टेल यू टू शटअप ट्वीटिंग.)

इसके बाद कमाल आर खान ने सिद्धार्थ मल्होत्रा पर पलटवार करते हुए ट्वीट किया-‘‘सर जी! भारत के 130 करोड़ लोग भी अपनी तरफ से बड़ी मेहनत के साथ आपसे कह रहे हैं कि आप अभिनय करना बंद कर दें, मगर आप लगातार फिल्में कर लोगों को परेशान करने पर तुले हुए हैं.’’(सरजी, 130 करोड़ पीपुल आफ इंडिया आलसो ट्राई हार्ड टू टेल यू स्टाप एक्टिंग बट यू कीप डुइंग फिल्मस टू हरेस देम) इसके बाद सिद्धार्थ मल्होत्रा ने ट्वीट किया-‘‘मुझे लगता है कि आपको अंग्रेजी पढ़ने की कक्षा में जाना चाहिए. आपने मेरे पिछले ट्वीट को ठीक से न पढ़ा और न समझा.’’(आई थिंक, यू नीड इंगलिश रीडिंग क्लास सर, एज यू डिड नाट रीड एंड अंडरस्टैंड माई प्रीवियस ट्वीट). इसके बाद कमाल आर खान ने ठहाके लगाते हुए ट्वीट किया-‘‘अच्छा तो अब बहुत जल्द मैं तुमसे अंग्रेजी सीखने आउंगा..क्योंकि तुमने दिल्ली की आइडिया इंस्टीट्यूट से पढ़ाई जो की है.’’(ओ के लुक आई कम टू लर्न फ्राम यू सून बिकाज यू सीक एज्यूकेशन फ्राम दिल्ली आइडिया इंस्टीट्यूट..’’) इसके बाद सिद्धार्थ मल्होत्रा की बोलती बंद हो गयी.

सिद्धार्थ मल्होत्रा से बातचीत

बौलीवुड से जुड़े पंडितों की राय में सिद्धार्थ मल्होत्रा और कमाल आर खान के बीच शुरू हुआ यह ट्विटर युद्ध सिद्धार्थ मल्होत्रा की 11 मार्च को रिलीज होने वाली फिल्म ‘‘कपूर एंड संस’’ है. इस फिल्म को प्रमोट करने के मकसद से ही यह मुद्दा गरमाया है. फिल्म ‘‘कपूर एंड संस’’ में सिद्धार्थ मल्होत्रा और आलिया भट्ट के साथ फवाद खान व रिषि कपूर सहित कई हस्तियां मौजूद हैं. इस तरह की सोच के पीछे वजह यह भी है कि कमाल आर खान और सिद्धार्थ मल्होत्रा एक दूसरे के से पूर्व परिचित हैं. दोनो एक साथ फिल्म ‘एक विलेन’ में अभिनय कर चुके हैं.

मगर खुद सिद्धार्थ मल्होत्रा इसे गलत ठहराते हैं. इस ट्विटर युद्ध पर हमसे बातचीत करते हुए सिद्धार्थ मल्होत्रा ने कहा-‘‘जी हां! यह सच है कि मैं कमाल आर खान को जानता हूं. कमाल आर खान ने मेरे साथ फिल्म ‘एक विलेन’ में अभिनय भी किया था. पर मेरे नजरिए से जो गलत होता है, उस पर मैं अपनी प्रतिक्रिया जरुर देता हूं. मुझे गलत बात बर्दाश्त नहीं होती. मेरा नजरिया यह है कि एक दर्शक की हैसियत से आप मेरी फिल्म को लेकर कुछ भी प्रतिक्रिया दे सकते हो. लेकिन किसी कलाकार की फोटो, वह भी खासकर महिला कलाकार की फोटो देखकर घटिया स्तर की प्रतिक्रिया ट्वीटर पर देना गलत है.

किसी महिला कलाकार के शरीर के किसी हिस्से पर प्रतिक्रिया देना सही नहीं कहा जा सकता. एक पुरूष होने के नाते भी इस तरह की प्रतिक्रिया देन वाले इंसान को बढ़ावा नहीं देना चाहिए. दुःख की बात यह है कि कमाल आर खान ने इसी तरह की घटिया कमेंट करके अपनी फैन फालोइंग बढ़ायी है. तो मुझे लगा कि किसी को तो ऐसी हरकत करने वाले को रोकना पड़ेगा. फिर एक लड़की ने मेरे ही साथ एक पत्रिका के लिए फोटो खिंचवायी है और उस फोटो पर कमेंट आयी, तो मुझे लगा कि अब मुझे उन्हे रोकना चाहिए. तो मैने बड़ी तहजीब के साथ कमाल आर खान से कहा कि वह इस तरह के कमेंट न करें. उसके बाद कमाल आर खान का सारी बोलते हुए मेरे पास संदेश भी आया. उन्होने अपने संदेश में कहा, ‘आप पहले बोल देते, तो मैं ट्वीट हटा देता.’ मैंने उनसे कहा कि, ‘सर,आप फिल्म पर कमेंट करें, पर फोटो को आधार बनाकर घटिया व सस्ती दर्जे की प्रतिक्रिया न दें. मैं ऐसी चीजें बर्दाश्त नही करता.’’

मगर जब हमने सिद्धार्थ मल्होत्रा का ध्यान इस बात की ओर दिलाया कि कुछ लोग कहते हैं कि कई फिल्मी हस्तियां कमाल आर खान से दोस्ती करने के लिए या कमाल आर खान खुद फिल्मवालो से दोस्ती करने के लिए ट्विटर के माध्यम से इसी तरह शुरूआत करते हैं. तो कुछ लोग इस ट्विटर युद्ध को फिल्म ‘कपूर एंड संस’ की प्रमोशन गतिविधि के रूप में देख रहे हैं, तो इससे साफ तौर पर इंकार करते हुए सिद्धार्थ मल्होत्रा ने कहा-‘‘यह बात मेरी समझ से परे है. कमाल आर खान किसी के लिए क्या करेगा? वह खुद के लिए भी कुछ नहीं करेगा. फिर मैं और कमाल आर खान पहले से ही एक दूसरे से अच्छी तरह से परिचित हैं. मैंने उनके साथ फिल्म ‘एक विलेन’ के सेट पर तीन दिन शूटिंग की थी. उनके साथ मेरी कोई निजी दुश्मनी नही है. मेरा मानना है कि आप इतने बड़े प्लेटफार्म पर हैं. आप के अपने फालोवर्स हैं. आप चाहते हैं कि हम आपकी लिखी फिल्म रिव्यू को पढ़े, तो कम से कम सस्ती/चीप रिमार्क/ प्रतिक्रिया किसी की फोटो पर क्यों करते हैं?’’

यानी कि किसी इंसान पर निजी कमेंट करने से बचना चाहिए? इस सवाल पर सिद्धार्थ मल्होत्रा ने नौजवानों को सावधान करते हुए कहा-‘‘मैं मानता हूं कि ट्वीटर या फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर हर कोई कुछ भी लिखने को स्वतंत्र है. हमारे जो आम फालोवर्स हैं, उन पर हमारा कंट्रोल नहीं है. लेकिन जितने पब्लिक फिगर या प्रोमीनेंट फिगर हैं, या जो हमें जानते हैं और हम उन्हें जानते हैं, उन पर हम कंट्रोल कर सकते हैं. बदकिस्मती से कमाल आर खान के इतने फालोवर्स बढ़ गए हैं. उन्होने गलत लिखा, तो मैने उन्हे रोकने की कोशिश की. फिर किसी लड़की को आब्जेक्टीफाई करना बहुत बुरा है. किसी भी लड़की या नारी को एक पदार्थ /वस्तु के रूप में देखना या ऐसा करने वाले को बढ़ावा देना गलत है. आज के नव जवान दूसरों को भी इस तरह का बढ़ावा न दे. अन्यथा वह उन्ही लड़कों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनकी वजह से आज दिल्ली या उत्तर भारत या बिहार का नाम बदनाम है. मैं खुद भी दिल्ली से हूं. मुझे बहुत शर्म आती है, दुःख होता है, जब मैं सुनता हूं कि दिल्ली में किसी लड़की के साथ रेप हुआ है.’’

लड़की के अपियरेंस पर बयानबाजी गलत: आलिया

वैज्ञानिक प्रगति का ही परिणाम है सोशल मीडिया. फिलहाल हर कोई सोशल मीडिया की आजादी से खुश है. लेकिन सोशल मीडिया पर बढ़ रही अराजकता भी चिंता का विषय बनती जा रही है. लोग अपने नाम के साथ या अपना नाम छिपाकर दूसरों पर निजी व भद्दी टिप्पणियां करने से बाज नहीं आ रहे हैं. निर्माता, निर्देशक व अभिनेता कमाल आर खान ने भी अभिनेत्री आलिया भट्ट की एक पत्रिका में छपी तस्वीर को लेकर ट्विटर पर लिखा-‘‘पैंटी में आलिया भट्ट बच्ची लगती हैं. लेकिन कुछ लोग उस पर यह पहनने के लिए दबाव डालते रहते हैं..’’(आलिया लुक्स सो मच बच्ची इन पेंटी. बट सम पीपुल कीप फोर्सिंग हर टू विअर इट.).’’

कमाल आर खान के इस ट्वीट पर फिल्म ‘‘स्टूडेंट आफ द ईयर’’ के बाद अब 11 मार्च को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘कपूर एंड संस’’ में आलिया भट्ट के साथ अभिनय करने वाले अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा ने कमाल आर खान को ट्विटर पर जमकर खरी खोटी सुनाई. मगर जिनके बारे में ट्विटर पर गंदी टिप्पणी की गयी, वह यानी कि आलिया भट्ट ने चुप्पी साध रखी है.

जब हमने आलिया भट्ट से इस ट्विटर युद्ध को लेकर बात की तो आलिया भट्ट ने कहा-‘‘मैं उन्हें बहुत ज्यादा महत्व नहीं देती. सच कहती हूं मेरी नजर में इस तरह के लोग महत्वहीन होते हैं और इनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए. पर कभी कभी कुछ करना बहुत जरूरी हो जाता है. इसीलिए सिद्धार्थ मल्होत्रा ने बहुत ही स्पष्ट और सुंदर तरीके से इस बात को कहा. मेरा मानना है कि कमाल आर खान जैसे लोगों और उनकी बातों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए. मेरी राय में आप हमारी फिल्म को लेकर कुछ भी, अच्छा या बुरा  कहें, हम चुप रहेंगें. लेकिन किसी लड़की की अपियरेंस या पहनावे पर कमेंट करना गलत है.

किसी लड़की की अपियरेंस, उसके पहनावे पर अनावश्यक बयानबाजी नही की जानी चाहिए. कमाल आर खान की यह हरकत बहुत शर्मनाक है. हां! यदि किसी ने आपको बोलने के लिए उकसाया हो, तब आप उसको लेकर अनाप शनाप बातें करें, तो यह बात समझ में आती है. पर बेवजह आप      एक लड़की के पहनावे पर निजी बयानबाजी करें, यह बहुत गलत है. मुझे नहीं लगता कि इसका कोई भी इंसान समर्थन करेगा. वैसे मुझे पता है कि कमाल आर खान को कोई भी महत्व नहीं देता. मुझे इस ढंग की हरकतें बुरी कम, मूर्खतापूर्ण ज्यादा लगती हैं.’’

चुनाव आयोग की नजर से अब कुछ नहीं बचेगा

प. बंगाल, केरल, असम, तमिलनाडु और पुड्डूचेरी – इन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. चुनाव के मद्देनजर इन पांचों राज्यों में सबसे संवेदनशील राज्य प. बंगाल है. उस पर भी बंगाल के कई जिले संवेदनशील है. मालदह, बीरभूम, प. मेदिनीपुर उत्तर दिनाजपुर, बांकुड़ा, पुरूलिया में बहुत सारे संवेदनशील मतदान केंद्र हैं. प. मेदिनीपुर में बेलपहाड़ी समेत जंगलमहल और उत्तर दिनाजपुर में रायगंज, हेमंताबाद, कालियागंज, करदिघि, गोयालपोखर, चाकुलिया, इस्लामपुर विधानसभा संवेदनशील क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. इसके अलावा खास कोलकाता में बहुत सारे बूथ संवेदनशील हैं. हालांकि जिलाधिकारियों ने अब तक संवेदनशील बूथों की संख्या का खुलासा नहीं किया है और करना भी नहीं चाहते हैं, लेकिन ऐसे संवेदनशील बूथों की पहचान का काम जोरशोर से शुरू है.

बहरहाल, विधानसभा चुनाव में तमाम पांच राज्यों के संवेदनशील बूथों पर होनेवाले मतदान पर चुनाव आयोग के प्रमुख नसीम जैदी और उनके सहयोगियों की इस बार सीधी नजर होगी मतदान पर और वह भी दिल्ली में चुनाव आयोग के दफ्तर में ही बैठ कर. यही नहीं, केवल चुनाव आयोग के अधिकारी ही नहीं, कोई भी इस सुविधा का लाभ उठा सकता है. लैपटौप, डेस्कटौप की मदद से दुनिया के किसी भी कोने से बैठ कर संवेदनशील बूथों का मतदान देखा जा सकता है. यह सुविधा राजनीतिक दलों के लिए काफी मायने रखता है.

चुनाव आयोग इस बार इसके लिए एक नई तकनीक का सहारा ले रहा है और यह आधुनिक तकनीक है वेब कास्टिंग. इस विशेष तकनीक की मदद से इस बार पांचों राज्यों के अति-संवेदनशील बूथों पर नजर रखने का इंतजाम चुनाव आयोग ने कर रखा है. आयोग ने यह सुविधा मतदाताओं को भी दे दिया है. चुनाव आयोग का कहना है कि तकनीक के विकास का लाभ हर किसीको उठाना चाहिए. इसीलिए आयोग चाहता है कि मतदाता समेत देश की जनता भी अति-संवेदनशील बूथों पर होनेवाले मतदान को देखे. हालांकि माना जा रहा है कि चुनाव आयोग ने यह फैसला केवल विपक्ष को खुश करने के लिए नहीं, बल्कि चुनाव संपन्न करवाने में आयोग की भूमिका की विश्वसनीयता को स्थापित करने के लिए किया है.

बंगाल के मतदाता इसके लिए चुनाव आयोग की सरहाना कर रहे हैं. बंगाल की जनता का मानना है कि इस तकनीक के जरिए चुनाव आयोग ने एक तरफ  के मतदाताओं को निष्पक्ष चुनाव कराने का भरोसा दिया है तो दूसरी तरफ मतदाताओं में बेखौफ होकर मतदान का जज्बा पैदा करना भी आयोग का उद्देश्य है. गौरतलब है कि चुनाव के तरीखों की घोषणा के साथ केंद्रीय रिजर्व बल क तैनाती के बाद ममता बनर्जी का एक बयान आया था कि चुनाव के बाद तमाम बलों के चले जाने के बाद केवल ‘हमीं’ यहां रह जाएंगे. ऐसे में चुनाव आयोग की ओर से वेब कास्टिंग का इंतजाम मतदाताओं के लिए कहीं अधिक मायने रखता है.

कैसे काम करेगी यह तकनीक

पिछले कुछ समय में जितने भी चुनाव हुए उनके संवेदनशील और अति संवेदनशील बूथों में सीसीटीवी कैमरे लगने नियम बन गया है. लेकिन इस बार एक नया इंतजाम किया जा रहा है. इन ऐसे संवेदनशील और अति-संवेदनशील बूथों में लगे सीसीटीवी कैमरों को एक लैन के माध्यम से कई स्थानीय और केंद्रीय सर्वर से जोड़ कर निगरानी का इंतजाम किया गया है. अगर कोई प. मेदिनीपुर के जंगलमहल के लालगढ़ के अति-संवेदनशील बूथ का मतदान देखना चाहता है तो उसे राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी और जिला चुनाव अधिकारी के वेब साइट में जाकर लालगढ़ के विधानसभा क्षेत्र को चिह्नित करना होगा. इसके बाद उस बूथ विशेष को क्लिक करने पर लाइव स्ट्रिमिंग का अप्शन आएगा. इस तरीके से दिल्ली में बैठ कर खुद चुनाव आयुक्त नसीम जैदी और उनके सहयोगी किसी बूथ में मतदान का नजारा देख सकेंगे.

प. बंगाल में पिछले लोकसभा चुनाव या हाल ही में हुए नगर निगम और स्थानीय निकाय चुनावों में बहुत सारे बूथों में रिगिंग के साथ ही साथ एक खास राजनीतिक दल के लोगों पर किसी अन्य मतदाता के नाम का मतदान करने का आरोप लग चुका है. राज्य के पिछले चुनावों में बहुत सारे बूथों में विरोधी राजनीतिक दल का कोई एजेंट न होने के कारण बेधड़क रिगिंग का भी आरोप लगा था. लेकिन इस बार लाइव टेलीकास्ट का इंतजाम होने के कारण चुनाव आयोग को निष्पक्ष चुनाव होने की उम्मीद है.

जहां तक चुनाव आयोग की विश्वनीयता का सवाल है तो इस बार आयोग ने इसके लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है. हालांकि इससे पहले भी 2004 हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भी चुनाव आयोग ने अपनी विश्वसनीयता बनाने और निष्पक्ष चुनाव कराने के मद्देनजर तृणमूल कांग्रेस (जो तब राज्य में विपक्ष में थी) की सिफारिश पर असम और झारखंड से हजारों चुनाव कर्मचारी लेकर आयी था. इसके अलावा 2006 में विधानसभा चुनाव में भी चुनाव आयोग ने अर्द्ध सैन्य बल की बूथों में तैनाती कर चुनाव कराए गए थे. बावजूद इसके राज्य के तमाम राजनीतिक दल को आयोग संतुष्ट नहीं कर पा रहा था, खासतौर पर राज्य की विपक्षी पार्टी को. इसी कारण इस बार चुनाव आयोग ने फिर से अपनी विश्वसनीयता बनाने की एक और कोशिश की है.

स्कूलों में गीता आखिर क्यों पढ़ाई जाए

पिछले दिनों दिल्ली मे जब आध्यात्मिक गुरु रविशंकर कला के जरिये धर्म की नई परिभाषा गढ़ते कई विवादों से घिरे थे, ठीक तभी भोपाल में द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानन्द जी यह मांग करते नजर आए कि स्कूली पाठ्यक्रम मे श्रीमद भागवद गीता पढ़ाई जाए. मूल रूप से कांग्रेसी खेमे मे शुमार किए जाने वाले स्वरूपनन्द नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही बौखलाए हुये हैं और फसाद खड़े करने के लिए जाने जाने लगे हैं. पिछले साल साईं पुजा को सनातन धर्म के उसूलों के खिलाफ उन्होने बताया था तो साईं भक्तों ने खासा बवाल मचाया था क्योंकि स्वरूपानन्द ने साईं बाबा को मुसलमान कहते कई और अभद्र टिप्पणिया भी कीं थीं, मकसद साफ था कि शिर्डी की तरफ जाता चढ़ावा पंडे पुजारियों और ब्रांहनों को मिले. मकसद अब भी साफ है कि गीता स्कूली बच्चों को पढ़ाई जाएगी तो वे बचपन से ही महज जन्मना आधार पर ब्रांहनों को श्रेष्ठ मानते उन्हे मुफ्त की मलाई खिलाते रहेंगे, यानि पेट पालने इन श्रेष्ठियों को कोई मेहनत नहीं करना पड़ेगी और धर्म का कारोबार बेरोकटोक चलता रहेगा.

गीता, हिन्दू जिसे स्वरूपानन्द सनातन धर्म कहते हैं,  कर्मकांडो, यज्ञ हवनों और वर्णवाद से भरी पड़ी है, जिसमे पुनर्जन्म भी है और दान की महिमा ज़ोर देकर गाई गई है. यह वही धर्मग्रंथ है जिसने भाइयों को लड़वा कर एक पूरे खानदान का नामोनिशान मिटा दिया था. यानि जातिवाद, दान की महिमा और पाखंड सिखाने अब शिक्षक नियुक्त किए जाने की मांग की जा रही है, क्योंकि कन्हैया जैसे नास्तिक थोक मे पैदा होने लगे हैं जो मनुवाद का विरोध करने मे किसी का लिहाज नहीं करते और उन जैसों के पीछे पूरी एक पीढ़ी चलने लगती है जो धार्मिक पखण्डों शोषण और अंधविश्वाशों से आजादी चाहती है. इसे रोकने स्वरूपाननदों को गीता पढ़ाया जाना मुफीद लगता है तो बात कतई हैरत की नहीं पर दिक्कत यह है कि मनुस्मृति का नया संस्करन प्रकाशित हो चुका है जिसका अनौपचारिक विमोचन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 मार्च 2015 को यमुना किनारे किया.

सनातनी तो नहीं पर हिन्दुत्व के नए पाठ्यक्रम मे कुछ नए अध्याय जोड़े जा रहे हैं कि खूब नाचो गाओ जश्न मनाओ जिन परेशानियों को धर्म ग्रंथ पढ़कर भी नहीं भूल पा रहे, उन्हे ये विश्वस्तरीय आयोजन भुला देंगे मूलतः ये डिजिटल यज्ञ हैं. सियासी तौर पर देखें तो हिन्दू वह नहीं है जो सिर्फ ब्राह्मण या किसी दूसरी ऊंची जाति का है, बल्कि हिन्दू हर वह आदमी मान लिया गया है जिसकी जेब मे पैसा है. यहीं स्वरूपानन्द रविशंकरों से मात खा रहे हैं जो 70 के दशक की हिदुत्व की व्याख्याओं से खुद को आजाद नहीं कर पा रहे और गीता रामायण का राग अलापे जा रहे हैं. यानि सांपनाथ हों या नागनाथ, उन्हे अपनी सहूलियत से समाज और देश को डसने की आजादी दी जा रही है. लोकतन्त्र की इस मिसाल पर कन्हैया जैसे उत्साही युवा भी शायद कुछ न बोल पाएँ, यह  बात स्वरूपांदो को भी  समझना चाहिए कि अब गीता नहीं बल्कि पूरा महाभारत पढ़ाया जा रहा है.

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