मरीजों को चढ़ाया जाने वाला खून कितना महफूज और खरा है बिहार में इसकी कोई गारंटी नहीं है. सीतामढ़ी जिला के सरकारी अस्पताल में पिछले साल 2200 लोगों ने खुद को स्वस्थ बता कर अपने ही बीमार सगे-संबध्यिों को खून ब्लड बैंक को दिया था. खून की जांच के बात पता चला कि उनमें 75 लोगों का खून एचआईवी और हेपेटाइटिस से संक्रमित थे. संक्रमित खून को किसी मरीज को चढ़ाना उसके लिए जानलेवा ही साबित होता है.
सूबे की राजधनी पटना में कुल 15 ब्लड बैंक काम कर रहे हैं. इनमें 4 सरकारी हैं और 11 प्राइवेट हैं. इसमें 5 ब्लड बैंक नर्सिंग होम के है और बाकी किसी से जुड़े नहीं हैं. किसी डोनर का खून लेने से पहले एचआईवी, हेपेटाइटिस और मलेरिया की जांच करनी जरूरी है. डाक्टर दिवाकर तेजस्वी बताते हैं कि ज्यादातर ब्लड बैंक सरकार द्वारा तय किए गए नियमों का सही तरीके से पालन नहीं करते हैं. एचआईवी संक्रमण के विंडो पीरियड की जांच कापफी मंहगी होने की वजह इसे करने से कतराते हैं, लेकिन ब्लड बैंक, डोनर और मरीजों के परिजनों को समझना चाहिए कि जान से बढ़ कर कुछ भी कीमती नहीं है. हर तरह की जांच के बाद ही मरीज को खून चढ़ाना जरूरी है, नहीं तो जान बचाने के लिए मरीज को चढ़ाया गया खून ही उसके लिए जानलेवा हो जाता है.
आंकड़े बताते हैं कि हरेक साल 2 पफीसदी लोग संक्रमित खून की वजह से एचआईवी और 5 पफीसदी लोग हेपेटाइटिस की चपेट में पफंस रहे हैं. खून चढ़ाने और लेने से पहले स्क्रीनिंग में बरती जाने वाली लापरवाही की वजह से कई मरीजों के खून में एचआईवी और हेपेटाइटिस की कीड़े घुस रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसी नर्सिंग होम से नहीं जुड़े होने वाले ब्लड बैंकों पर रोक लगाई जाए, इसके बाद भी पटना में कई ब्लड बैंक चल रहे हैं.
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