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क्या इंसान पहुंच गया है अमर होने के करीब

दरअसल, अभी हम ने सिर्फ पौराणिक कथाओं या जनश्रुतियों में ही अमरता की मनगढ़ंत रोमांचक कहानियां पढ़ी या सुनी थीं. मगर पिछले दिनों एक रूसी वैज्ञानिक अनातोली ब्रौउचकोव किस्सेकहानियों में अटकी इस अमरता को किसी हद तक वास्तविक जीवन तक खींच लाए हैं. लगता है उन्होंने वह नुसखा भी हासिल कर लिया है, जो इंसान को बारबार के जीवनमरण के झंझट से मुक्त कर देगा.

जी हां, हम ऐसी ही वास्तविक अमरता की बात कर रहे हैं, जिसे हासिल करने में दुनिया के तमाम खोजी वैज्ञानिक सदियों से लगे हुए हैं. अनातोली ने अपने इस प्रयोग के लिए जो शुरुआती मानक तय किए थे, वे तकरीबन सही मालूम पड़ रहे हैं.

जिस प्रयोग की बदौलत यहां अमरता की बात की जा रही है, लगता है उस ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है, क्योंकि अमरता का खुद पर प्रयोग करने वाले वैज्ञानिक पिछले 2 साल में एक बार भी बीमार नहीं पड़े. उन का इम्यून सिस्टम कुछकुछ वैसा ही रिऐक्ट कर रहा है, जैसी उन्होंने कल्पना की थी. इस वैज्ञानिक प्रयोग की यह सफलता इसे अब तक के दूसरे प्रयोगों से अलग और विश्वसनीय बनाती है.

दरअसल, 35 लाख साल पुराने बैक्टीरिया पर प्रयोगशाला में रिसर्च कर रहे रूसी वैज्ञानिक अनातोली ब्रौउचकोव ने सोचा अगर इस बैक्टीरिया को इंसान के शरीर में प्रविष्ट कराया जाए तो हमें शायद यह पता चल सके कि लाखों साल से जिंदा रहने वाला यह बैक्टीरिया इंसान के लिए कितना उपयोगी हो सकता है.

क्या इंसान इस से सुरक्षित होने के बाद दुनिया के किसी भी बैक्टीरिया से सुरक्षित हो जाएगा  क्या उस का इम्यून सिस्टम सभी तरह के बैक्टीरिया से लड़ने में सक्षम होगा  रूसी वैज्ञानिक के दिलोदिमाग में इंसान के इम्यून सिस्टम को बेजोड़ बनाए जाने की कल्पना को ले कर ऐसी अनगिनत बातें चल रही थीं.

अनातोली ने अपने इस प्रयोग के लिए लोगों को तलाशा पर जब कोई तैयार नहीं हुआ तो उन्होंने खुद पर ही प्रयोग करने की ठानी. यह समझने के लिए कि इस से इंसानी जीवन पर क्या फर्क पड़ता है  यह उन का दावा नहीं एक अनुमान है और यह हर उस इंसान का अनुमान हो सकता है जो उन्हीं की तरह अमरता की तलाश कर रहा हो.

उन का मानना है कि यदि कोई बैक्टीरिया 35 लाख साल से जिंदा है तो क्या वह अपने प्रभाव से इंसान को भी लंबा जीवन प्रदान नहीं कर सकता  अभी तक तो उन का अनुमान आशानुकूल है, क्योंकि जब से उन्होंने अपने शरीर में अवैज्ञानिक ढंग से इस तथाकथित बैक्टीरिया का प्रवेश किया है, तब से वे एक बार भी किसी तरह की बीमारी विशेषकर फ्लू तक की चपेट में नहीं आए.

उन का दावा है कि करोड़ों साल से जिंदा यह बैक्टीरिया बेहद शक्तिशाली है, जो मर ही नहीं रहा है. ऐसे में संभव है कि यह मनुष्य को भी अमरता प्रदान करे.

इंगलैंड के अखबार ‘द टैलिग्राफ’ में छपी खबर के मुताबिक, रूसी वैज्ञानिक अनातोली ब्रौउचकोव मास्को विश्वविद्यालय में जियोक्रौयोलौजी डिपार्टमैंट के मुखिया हैं जिन्होंने पिछले लगभग सवा 2 साल से इस करामाती बैक्टीरिया को अपने शरीर में पनाह दी है, तब से वे बिना जिम गए भी बेहद फिट हैं.

इस बैक्टीरिया का नाम बसिलस एफ है. उन्हें यह ध्रुवीय इलाके में मिला. जांचने से मालूम हुआ कि यह बैक्टीरिया 35 लाख साल से जिंदा है. इस बैक्टीरिया पर अनातोली अपनी टीम के साथ काफी समय से काम कर रहे थे. उन के मुताबिक, ‘‘हम ने 2 साल तक इस का प्रयोग चूहों पर किया, लेकिन निर्णायक रूप से कुछ समझ नहीं आ रहा था. इसलिए अंतत: मैं ने इसे खुद पर प्रयोग करने की सोची. जब से मैं ने इस का खुद पर प्रयोग किया है तब से मुझे जुकाम तक नहीं हुआ है.’’

वे कहते हैं, ‘‘हो सकता है हम जो उम्मीद लगाए बैठे हैं वह पूरी न हो, लेकिन मेरा अनुभव यही है कि यह बैक्टीरिया खतरनाक तो नहीं है. ऐसे में अमरता न सही अगर जीवन को यह बैक्टीरिया लंबा भी करता है तो क्या बुराई है ’’

अनातोली ने इस बैक्टीरिया को बिना कोई सावधानी बरते सीधे अपने शरीर में इंजैक्ट किया था.

वैसे यह प्रयोग कितना सफल है  अनातोली कहते हैं, ‘‘इस का मेरे पास कोई आंकड़ा नहीं है, क्योंकि इसे मैं ने अपने शरीर में किसी आधिकारिक अनुमति से प्रविष्ट नहीं कराया है. इस का कोई रिकौर्ड नहीं है. मगर इस की सफलता की गारंटी मेरा सवा 2 साल तक पूरी तरह से स्वस्थ रहना है.’’

अमरता के लिए हमेशा से कई वैज्ञानिक खोजों में लगे रहे हैं और अंतत: असफल हो कर शांत बैठ गए. ऐसे में अनातोली ब्रौउचकोव की यह अधूरी खोज किसी अनमोल सपने से कम नहीं लगती.

जैली फिश से भी हो सकता है अमरता का चमत्कार

 

अमरता के लिए आज तक दुनिया में दोचार नहीं बल्कि करोड़ों प्रयोग व खोजें हो चुकी हैं लेकिन अमरता इंसान के हाथ नहीं लगी.

 

कुछ साल पहले ऐसी ही उम्मीद सागर की अतल गहराइयों से पैदा हुई थी. तब भी काफी विश्वास के साथ घोषणा की गई थी कि अमरता की कुंजी मिल गई है. हिंदू माइथोलौजी में भी संजीवनी यानी अमृत की उत्पत्ति, समुद्र से ही होती है. शायद हमारे पुरखों को यह आभास था कि अमरता का मूलमंत्र कहीं न कहीं सागर की गहराइयों में ही छिपा है. कहीं न कहीं आधुनिक विज्ञान भी समुद्र में ही अमरता का मूलतंत्र तलाश रहा है.

 

कुछ साल पहले इंसान की अमरता की चाहत की खोज उसे एक समुद्री मछली की ओर ले गई थी जो तकनीकी दृष्टि से कभी नहीं मरती. घोर विपरीत परिस्थितियों के उत्पन्न होने पर भी वह फिर से जवान और बच्चा होने के उलटे चक्र की ओर चल पड़ती है. यह कोई तिलिस्म नहीं है. यह है अपनी जानीपहचानी जैली फिश. अगर कोई शिकारी इसे खा न ले या फिर यह दुर्घटनावश या बीमारी की चपेट में आ कर अपनी जान न गवां बैठे तो यह अमर है. जैली फिश प्रजाति का वैज्ञानिक नाम है, ट्यूरीटोप्सिस न्यूट्रीकुला, जिसे इम्मार्टल जैली फिश भी कहते हैं. यह प्रजाति जवान होने पर यानी अपने जीवनकाल के मेड्यूसा अवस्था से फिर अपने बाल्यकाल अर्थात पालिप अवस्था को लौटने की अद्भुत क्षमता रखती है. वैज्ञानिकों की भाषा में जैली फिश, जो प्राणी समुदाय के मेटाजोआ श्रेणी की नुमाइंदगी करती है, में रिवर्स एजिंग यानी जीवन के उलटे चक्र की विशेषता पाई जाती है, जिसे ट्रांसडिफरैंसिएशन कहा जाता है.

चीनी मिलों के बेढंगे रंग, किसानों का मोह भंग

पहली फरवरी 2016 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्नाकिसानों ने सरकारी बेरुखी से परेशान हो कर सड़क जाम कर दी थी. ऐसा पहली बार नहीं हुआ, क्योंकि चीनीमिलों को बेचे गए गन्ने के दाम पाने के लिए किसानों को हर साल धरनाप्रदर्शन करना पड़ता है. गन्नाकिसानों के अलावा दूसरा कोई ऐसा नहीं है, जो अपना माल बेच दे व उसे यही न पता हो कि उस का दाम कितना व कब मिलेगा  किसानों की परेशानियां यहीं खत्म नहीं होती हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुड़ के कोल्हू व चीनीमिलें नवंबर में चालू हो जाती हैं, लेकिन इस बार ज्यादातर चीनीमिलें करीब 1 महीने देर से चलीं. इसलिए गेहूं की बोआई करने के लिए किसानों को सही समय पर खेत खाली नहीं मिले. जुलाई से सितंबर तक हर साल चीनीमिलों में मरम्मत होती है, जो इस बार 2 महीने देर तक हुई थी. इस के अलावा गन्ना पेराई के लिए सभी चीनीमिलों ने गन्ने की मांग, खरीद सेंटर व क्षेत्र रिजर्व करने आदि के बारे में कोई जानकारी भी नहीं भेजी थी. इसलिए गन्नाकिसान परेशान रहे. बहुत से किसान अब गन्ने की खेती से परेशान आ चुके हैं. ज्यादातर चीनीमिलें हर साल उन की गन्ने की पैदावार के अरबों रुपए दबा कर बैठ जाती हैं और देने का नाम ही नहीं लेतीं. गन्ने की कीमत का बकाया किसानों को मिलने के बजाय कचहरी में उलझ जाता है. इसलिए परेशान हो कर बहुत से किसान अब दूसरी फसलों को उगाने लगे हैं.

भीकुरहेड़ी मुजफ्फरनगर के किसान सुमित गन्ना छोड़ कर अब केले की सफल खेती कर रहे हैं. सुमित को गन्ने की खेती में 1 एकड़ पर होने वाले 25 हजार रुपए खर्च पर मुनाफा 50 हजार रुपए मिलता था, लेकिन गन्ने के पूरे दाम कभी समय पर नहीं मिलते थे, जबकि केले उगाने में सिर्फ 18 हजार रुपए खर्च कर के 70 हजार रुपए का मुनाफा मिलता है.

बहुत से किसान गन्ना छोड़ कर फल, फूल, सब्जी, मैंथा व मसालों आदि की खेती करने लगे हैं. बढ़रा गांव के कृष्णपाल सिंह पापुलर उगाते हैं, साथ में नर्सरी चलाते हैं और गन्ने से कहीं ज्यादा कमाते हैं. अगर यही हाल रहा तो अरबोंखरबों की लागत से चल रही चीनीमिलों का हाल ठीक कानपुर व मुंबई की सूती मिलों जैसा होगा. चीनीमिलें बंद हो कर कम हो सकती हैं, जिस का असर चीनी उत्पादन पर पड़ेगा.

गन्ने की कमी से चीनी उद्योग टूट सकता है. गन्नाकिसानों के सामने भी परेशानियां आएंगी. गन्ने की प्रति हेक्टेयर उत्पादन लागत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. किसान नुकसान उठा कर अब गन्ने की खेती से दूर भाग रहे हैं. इसलिए गन्ने की खेती में ज्यादा कमाई के लिए किसानों द्वारा खुद गन्ने की प्रोसेसिंग करना बेहद जरूरी है. देश में गन्ने की पैदावार चीनीमिलों की जरूरत से 40 लाख टन ज्यादा है. इसलिए बचा हुआ गन्ना किसान कोल्हू व क्रैशरों पर औनेपौने दामों पर देने को मजबूर रहते हैं. यह बात चीनीमिलों के मालिक अच्छी तरह से जानते हैं और इसी का वे फायदा भी उठाते हैं. इसलिए कम जमीन में गन्ने की ज्यादा उपज लेने की तरकीब खोजनी जरूरी है. इस के लिए किसान गन्ने की जल्दी पकने व ज्यादा उपज देने वाली नई अगेती किस्में उगा सकते हैं.

ठगे जाते हैं किसान

गन्नाकिसान हर मोर्चे पर ठगे जाते हैं. गन्ने से जुड़ी सब से बड़ी मजबूरी यह है कि गेहूं व धान आदि खेती की दूसरी उपजों की तरह गन्ने को खेत से काटने के बाद रोक कर नहीं रखा जा सकता. कटाई के बाद गन्ने को जल्द से जल्द चीनीमिलों में पहुंचाना पड़ता है, नहीं तो वह सूखने लगता है. इसी जल्दबाजी के कारण गन्ना खरीद सेंटरों पर खूब धांधली होती है.

चीनीमिलों में गन्ना डालने के बाद किसानों को उन के गन्ने की पूरी कीमत कभी समय पर नहीं मिलती. प्राइवेट चीनीमिलों की लूट से बचने के लिए महाराष्ट्र, गुजरात व उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में किसानों ने सहकारी चीनीमिलें लगाई थीं. लेकिन सरकारी दखलअंदाजी व खराब रखरखाव से वे सिर्फ नाम की ही सहकारी मिलें हैं. उन पर असरदार नेताओं का कब्जा है.

भारी बकाया

उत्तर प्रदेश की ज्यादातर चीनी मिलों पर बीते व चालू गन्ना पेराई मौसम की गन्ना कीमत व ब्याज के करोड़ों रुपए बकाया चल रहे हैं. हालांकि चीनीमिल मालिकों पर कार्यवाही की गई व नोटिस भेजे गए. कुछ चीनीमिलों के खिलाफ एफआईआर भी लिखी गई. एक मिलमालिक को जेल भी भेजा गया, लेकिन नतीजा फिर भी कुछ भी नहीं निकला. ऐसे में किसान आखिर कहां जाएं व किस से अपनी परेशानी बताएं. हाई कोर्ट इलाहाबाद ने किसानों को उन की बकाया कीमत देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिए थे, लेकिन प्राइवेट मिलों ने उस आदेश की परवा नहीं की. किसानों की कही जाने वाली 23 सहकारी चीनीमिलों ने भी कोर्ट से अपनी मजबूरी जताते हुए पैसा देने के लिए समय मांग लिया था. हालांकि केंद्र सरकार ने गन्नाकिसानों की बकाया कीमत देने के लिए चीनीमिलों को कर्ज भी दिया है, लेकिन समस्या फिर भी नहीं सुलझी.

क्या है उपाय

निजी चीनीमिलों के संगठन व सहकारी चीनीमिल फेडरेशन का कहना है कि चीनीमिलें कई सालों से घाटे में हैं. वे अपनी पूंजी खा रही हैं. वेतन व मजदूरी आदि के लिए उन के पास पैसा नहीं है. 50 लाख गन्नाकिसानों का बकाया 21 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है. लिहाजा चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी व गन्नेचीनी की कीमतें आपस में जोड़ने से ही सरकारी रेट पर गन्ने की कीमत दी जा सकती है. किसान अपनी उपज की सही कीमत चाहते हैं. लिहाजा सरकार को जल्द ही गन्नाकिसानों व चीनीमिलों के लिए बीच का रास्ता निकालना पड़ेगा. एक उपाय यह भी हो सकता है कि गेहूं व धान की तरह गन्ने पर सब्सिडी सीधे किसानों को उन के बैंकखाते में दी जाए. किसान खेती के पुराने तरीकों पर चलना छोड़ कर नए तौरतरीके अपनाएं, गन्ने की प्रोसेसिंग करें, गन्ने से बनने वाली वस्तुओं के लिए अपने कारखाने लगाएं, ताकि खेती से होने वाली आमदनी में बढ़ोतरी हो सके, लेकिन इस के लिए किसानों को अपनी सोच बदल कर कारोबारी बनना होगा व तकनीक सीखनी होगी.

केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान, एफटीआरआई मैसूर के वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक निकाली है, जिस से कोल्ड ड्रिंक की तरह गन्नारस को बोतलबंद किया जा सकता है. भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने गन्ने के रस से पैक्ड गुड़, क्यूब्स, तरल गुड़ का सिरप व औरगैनिक शक्कर बनाने के किफायती तरीके निकाले हैं. केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल ने चाकलेट जैसी गुड़ व मूंगफली की न्यूट्रीबार बनाने की तकनीक खोजी है. किसान इन्हें अपना कर गन्ने से ज्यादा कमाई कर सकते हैं.

तकनीक नई

नई तकनीकों से गन्ने की खोई जैसे कचरे का भी बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है. मसलन 200 चीनी मिलों में गन्ने की खोई से चलने वाले कोजनरेशन प्लांट लगा कर 3500 मेगावाट बिजली बनाई जा रही है. अब 529 चीनीमिलों से 16000 मेगावाट बिजली बनाने का मकसद तय किया गया है. बिजली के अलावा गन्ने की खोई से गत्ता, लुग्दी, कागज और वर्मी कंपोस्ट खाद आदि बना कर कमाई की जा सकती है. किसान गन्ने की मिठास से खुशहाली ला सकते हैं, क्योंकि पूंजी जुटाने की सहूलियत मौजूद है. किसान मिल कर यदि अपनी निर्माता कंपनी बनाएं तो केंद्र सरकार शेयर पूंजी अनुदान योजना के तहत 10 लाख रुपए तक 2 गुना अनुदान दे रही है.

घट रहा गन्ने का रकबा

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में साल 2012 के दौरान सभी गन्ना उत्पादक 18 राज्यों में गन्ने का कुल रकबा 3610 लाख हेक्टेयर था, जो साल 2014 तक घट कर सिर्फ 3500 हेक्टेयर रह गया. उम्मीद है कि इस साल इस में और भी कमी आएगी. गन्ने की खेती में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र व कर्नाटक सूबे देश भर में सब से आगे हैं. देश का 38 फीसदी गन्ना उत्तर प्रदेश में, 22 फीसदी गन्ना महाराष्ट्र में और 10 फीसदी गन्ना कर्नाटक में पैदा होता है. उत्तर प्रदेश के गन्ना विभाग में करीब 5 हजार लोग गन्ने की खेती को बढ़ावा देने का काम करते हैं. गन्नाविकास के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं. तब भी वहां गन्ने की खेती व गन्ने की पैदावार लगातार घट रही है.

इस राज्य के 44 गन्ना उगाने वाले जिलों में साल 2013 के दौरान गन्ने का रकबा 2424025 हेक्टेयर था, जो साल 2014 में घट कर 2360266 व साल 2015 के दौरान घट कर सिर्फ 2132092 हेक्टेयर रह गया. इसी तरह गन्ने की पैदावार में भी कमी आई है. उत्तर प्रदेश में साल 2013 के दौरान गन्ने की पैदावार 1493 लाख टन थी, जो साल 2014 के दौरान घट कर 1480 लाख टन व साल 2015 में घट कर सिर्फ 1389 लाख टन रह गई.

चावल मिलों के आगे बेबस सरकार

अपने चावलों के लिए मशहूर बिहार में चावलमिलों की धांधली पर रोक लगाने में सरकार बिल्कुल ही नाकाम रही है. पिछले 5 सालों से चावलमिल मालिकों के पास बिहार खाद्य निगम के 1342 करोड़ रुपए बकाया हैं और निगम उन्हें वसूलने के लिए कछुए की चाल ही चलता रहा है. जबतब बकाए की वसूली के लिए मुहिम शुरू की जाती है, मगर वह कभी भी अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सकी है. पटना की 64 चावलमिलों पर 55.61, भोजपुर की 90 मिलों पर 72.05, बक्सर की 152 मिलों पर 101, कैमूर की 357 मिलों पर 220, रोहतास की 191 मिलों पर 111, नालंदा की 84 मिलों पर 55.34, गया की 49 मिलों पर 40, औरंगाबाद की 207 मिलों पर 62.15, वैशाली की 25 मिलों पर 23.66, मुजफ्फरपुर की 33 मिलों पर 66.51, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण की 153 मिलों पर 63, सीतामढ़ी की 52 मिलों पर 55.83, दरभंगा की 34 मिलों पर 39.83, शिवहर की 8 मिलों पर 17.78 और नवादा की 23 मिलों पर 20.48 करोड़ रुपए की रकम बकाया है. इस के अलावा अरवल, शेखपुरा, लखीसराय, मधुबनी, समस्तीपुर, सिवान, सारण व गोपालगंज आदि जिलों की सैकड़ों छोटीमोटी चावलमिलों पर भी करीब 0 करोड़ रुपए बकाया हैं.

बिहार महालेखाकार ने पिछले साल की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि धान को ले कर मिल वालों ने सरकार को 434 करोड़ रुपए का चूना लगाया है. इस से पहले साल 2011-12 में भी मिल वाले करोड़ों रुपए का धान दबा कर बैठ गए थे और उस के बाद के साल में 929 करोड़ रुपए के धान की हेराफेरी कर के सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाया था. इस के बाद भी सरकार ने मिलमालिकों के खिलाफ कार्यवाही करने में दिलचस्पी नहीं ली. बिहार राज्य खाद्य निगम के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक साल 2011-12 में जिन मिलों पर धांधली का आरोप लगा था, उन्हीं मिलों को साल 2012-13 में भी करोड़ों रुपए के धान दे दिए गए.

इतना ही नहीं केवल 50 हजार रुपए की गारंटी रकम पर ही 3 से 6 करोड़ रुपए के धान चावलमिलों को सौंप दिए गए. मिलों को धान देने के बारे में नियम यह है कि भारतीय खाद्य निगम मिलों से एग्रीमेंट करता है, जिस के तहत मिल वाले पहले निगम को 67 फीसदी चावल देते हैं, जिस के बदले में उन्हें रसीद मिलती है. उस रसीद को दिखाने के बाद ही निगम द्वारा मिलों को 100 फीसदी धान दिया जाता है. वसूली की रफ्तार धीमी रहने पर राज्य के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने खाद्य निगम को फटकार लगाई है और चावलमिल वालों से बकाया रकम वसूलने की मुहिम तेज करने का फरमान जारी किया है. इस के तहत राज्य खाद्य निगम और पुलिस मिल कर सभी जिलों में वसूली करेंगे. दोषियों के पकड़े जाने पर जिलाधीश और एसपी मिल कर कार्यवाही करेंगे.

बिहार में किसानों और सरकार से धान ले कर चावल नहीं लौटाने वाले मिलमालिकों को जेल भेजने की कवायद कई बार शुरू की गई, पर उस की रफ्तार काफी धीमी रही है. सरकार ने ऐसे मिलमालिकों को गिरफ्तार कर के उन की कुर्कीजब्ती करने का आदेश जारी कर दिया है. इस सिलसिले में 1200 बड़े बकायादार मिलमालिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है. गौरतलब है कि पिछले 5 सालों से चावलमिलों के मालिक 1342 करोड़ रुपए का बकाया देने में टालमटोल करते रहे हैं. मिलमालिकों पर साल 2013-14 के 150 करोड़, साल 2012-13 के 732 करोड़ और साल 2011-12 के 427 करोड़ रुपए बकाया हैं.

धान ले कर चावल वापस नहीं करने के मामले में एसएफसी समेत कई विभागों के अफसरों और मुलाजिमों पर भी कानूनी कार्यवाही की जा रही है. कुल 394 अफसरों और मुलाजिमों की जांच की जा रही है और 184 पर मुकदमा दर्ज किया गया है. साल 2011-12, 2012-13 और 2013-14 में 2024 मिलमालिकों पर राज्य खाद्य निगम से धान लेने के बाद उस का चावल तैयार कर के नहीं लौटाने का आरोप है. चावल की बकाया रकम का भी भुगतान नहीं किया गया है. मिलमालिकों के पास निगम के 1341 करोड़ 75 लाख रुपए बकाया हैं. काफी जद्दोजहद के बाद निगम केवल 240 करोड़ 62 लाख रुपए ही वसूल सका है. निगम के द्वारा बारबार कहे जाने के बाद भी 332 चावलमिलों ने पैसे जमा नहीं किए हैं.

इस मामले में अब तक 1193 मिलमालिकों पर 992 एफआईआर दर्ज कराए गए हैं, 1630 सर्टिफिकेट केस किए गए हैं और 722 मिल वालों के खिलाफ वारंट जारी किए गए हैं. अब तक इन में से 199 मिलमालिकों की गिरफ्तारी हुई है और 336 ने सरेंडर किया है. 255 मिलमालिकों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किए जा चुके हैं.

हर लड़की फिजिक एथलीट बने: श्वेता राठौड़

उज्बेकिस्तान में हुई ‘49वीं एशियन बौडी बिल्डिंग ऐंड फिजिक चैंपियनशिप’ में भारत की 27 साला श्वेता राठौड़ ने सिल्वर मैडल जीत कर पूरी दुनिया को चौंका दिया. भारत संचार निगम लिमिटेड में अफसर अनिल कुमार की बेटी श्वेता राठौड़ जयपुर की रहने वाली हैं. उन्होंने इंजीनियरिंग की डिगरी हासिल करने के बाद दिल्ली में कई बड़ी कारपोरेट कंपनियों में नौकरी की, पर मुंबई पहुंचने के बाद उन्होंने अपनी इवैंट मैनेजमैंट कंपनी शुरू की. साल 2014 में मुंबई में हुई ‘वर्ल्ड बौडी बिल्डिंग ऐंड फिजिक चैंपियनशिप’ ने श्वेता राठौड़ की जिंदगी बदल दी. आज वे बहुत बड़ी फिजिक सेलेब्रिटी बन चुकी हैं. इस के अलावा श्वेता राठौड़ ‘गौड्स ब्यूटीफुल चाइल्ड आर्गेनाइजेशन’ नामक एनजीओ के जरीए गरीब बच्चों, सिंगल मदर्स व आग से बुरी तरह जली औरतों को नई व बेहतर जिंदगी देने के काम को भी अंजाम दे रही हैं.

पेश हैं, श्वेता राठौड़ के साथ हुई लंबी बातचीत के खास अंश:

इंजीनियरिंग की डिगरी हासिल करने और कारपोरेट जगत में काम करने के बाद सब छोड़ कर फिटनैस जगत से जुड़ने का खयाल आप को कैसे आया

सबकुछ इतना अचानक नहीं हुआ. मैं स्कूल के दिनों से ही अपनी फिटनैस पर ध्यान देती रही हूं. जब मैं 10वीं जमात में पढ़ रही थी, तब से मैं ने जिम जाना शुरू कर रखा है. जिम करने के दौरान ही वेट लिफ्टिंग के प्रति मेरी दिलचस्पी बढ़ी. मैं ने हमेशा एडवांस वर्कआउट ही किया है, पर यह सब 2 साल पहले तक मैं खुद को फिट रखने के लिए करती थी.

‘फिजिक चैंपियन’ बनने का इरादा आप के मन में कैसे आया

साल 2014 में मुंबई के गोरे गांव इलाके में ‘इंडियन बौडी बिल्डिंग एसोसिएशन’ की तरफ से ‘फिजिक ऐंड बौडी बिल्डिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप’ कराई गई थी. भारत में पहली बार यह आयोजन हो रहा था. मेरे मन में यह खयाल आ रहा था कि ‘फिजिक एथलीट’ बन कर मैं भी पूरे भारत की औरतों को इस के प्रति जागरूक करूं.

क्या ‘बौडी बिल्डिंग’ और ‘फिजिक एथलीट’ एक ही बात है

नहीं. बिलकुल नहीं. ‘बौडी बिल्डिंग’ और ‘फिजिक एथलीट’ दोनों में जमीनआसमान का अंतर है, पर दोनों प्रतियोगिताएं एकसाथ होती हैं. ‘बौडी बिल्डिंग’ में अपनी मसल्स को जरूरत से ज्यादा उभारना पड़ता है, जबकि ‘फिजिक एथलीट’ फिटनैस के क्षेत्र से जुड़ी हुई है. इस में डेढ़ से 2 मिनट की परफौर्मैंस देनी होती है, जो किसी गाने या डांस पर होती है. इतने कम समय में ही किक, स्लिप, वन हैंड पुशअप समेत जितने भी वर्कआउट होते हैं, करने पड़ते हैं. ‘फिजिक चैंपियनशिप’ में लड़की को फिट दिखना होता है, उस के मसल्स भी दिखने होते हैं, पर उस का औरत वाला रूप नजर आना चाहिए. यानी एक औरत के रूप में उसे खूबसूरत के साथसाथ फिट भी दिखना है. उस का स्टैमिना भी जबरदस्त होना चाहिए, तभी वह विजेता बन सकती है.

‘फिजिक एथलीट’ के रूप में किसी भी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए कितना खर्च आता है

हमारा बहुत खर्चा होता है. हमें एक खास तरह के खानपान के नियम का पालन करना होता है. हमें जिम की लंबीचौड़ी फीस देनी होती है. ट्रेनर को अच्छे पैसे देने पड़ते हैं. एक इंटरनैशनल चैंपियनशिप के लिए खुद को तैयार करने में तकरीबन 9 से 10 लाख रुपए खर्च होते हैं.

यह इतना खर्चीला क्षेत्र है, तो फिर आप इस से क्यों जुड़ीं

मैं फिटनैस के क्षेत्र में लड़कियों को आने के लिए प्रेरित करना चाहती हूं. मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि इंजीनियरिंग में डिगरी लेने व कारपोरेट जगत में अच्छी नौकरी करने के बावजूद मैं फिटनैस फिजिक के क्षेत्र से जुड़ी और भारत का नाम विदेशों में रोशन कर रही हूं.

‘फिजिक एथलीट’ से जुड़ने के लिए सरकार मदद क्यों नहीं करती है

जहां तक सरकार का सवाल है, तो सरकार जागरूक नहीं है. शायद इस की वजह यह रही है कि सरकार के सामने भी फिजिक फिटनैस के रूप में कोई चेहरा अभी तक नहीं आया है. जब मैं ने इस क्षेत्र में काम करना शुरू किया, तब मुझे सहारा देने वाला कोई नहीं था. लेकिन इस क्षेत्र से जुड़ने वाली लड़कियों की मदद करने के लिए हम ने ‘फिटनैस फौर एवर प्राइवेट लिमिटेड’ नामक एक अकादमी शुरू की. हमारी कंपनी उन्हें सही सलाह देने के साथसाथ कोचिंग भी देगी.

आम लड़की को फिट रहने के लिए क्या करना चाहिए

भारतीय औरतों में आयरन व कैल्शियम की कमी होती है, इसलिए इन्हें प्रोटीन वाला भोजन ज्यादा करना चाहिए. उन्हें दाल के साथसाथ हरी सब्जियां लेनी चाहिए. दूध के बने पदार्थ खाने चाहिए. दही बहुत जरूरी है. दही से शरीर के अंदर मैटाबोलिज्म बढ़ता है. पिज्जा, बर्गर जैसे जंक फूड का सेवन कतई नहीं करना चाहिए, बल्कि ब्राउन राइस खाना चाहिए. रोटी खानी है, तो सिर्फ गेहूं की न खाएं, बल्कि गेहूं के साथसाथ चना मिली रोटी खाएं या दूसरे कई अनाजों को मिला कर खाएं. इस के अलावा स्विमिंग या चहलकदमी या फिर साइकिल चलाना भी हर दिन करना चाहिए. जो लोग यह सब नहीं करते हैं, उन के अंदर चिड़चिड़ापन रहता है.

आप अपने एनजीओ ‘गौड्स ब्यूटीफुल चाइल्ड आर्गेनाइजेशन’ के जरीए क्या कर रही हैं

मेरा सारा ध्यान गरीब बच्चों पर है. एनजीओ शुरू करने से पहले मैं ने एक सर्वे किया था कि लोग अपराधी कैसे बनते हैं  90 फीसदी अपराधी बहुत गरीब परिवार से आने वाले लोग होते हैं. मैं ने एक बात को अनुभव किया कि तमाम एनजीओ गरीब बच्चों को मुफ्त में खाना खिला देते हैं या उन्हें स्कूल में पढ़ने भेज देते हैं. पर मैं अपने एनजीओ के जरीए गरीब बच्चों की पर्सनैलिटी को निखारने का काम कर रही हूं. इतना ही नहीं, हमारी संस्था सिंगल मदर्स की भी मदद कर रही है. मैं ने 10 ऐसी जरूरतमंद औरतों का इलाज करा कर उन्हें उन के पैरों पर खड़ा कराया, जो किसी हादसे में बुरी तरह से जल गई थीं.

हीरोइन बीवियां: पति पर किया कैरियर कुरबान

आम आदमी तो आम आदमी, बौलीवुड भी शादी जैसे झमेलों से बच न सका है. रील लाइफ में रुपहले परदे पर तड़कभड़क पोशाक पहन हीरो को अपनी मुट्ठी में करने वाली तमाम हीरोइनों ने रीयल लाइफ में खुद को ही कैद कर लिया और इस सिनेमाई परदे को अलविदा कह कर परिवार की जिम्मेदारी संभाली. अपनी पहली ही फिल्म ‘बौबी’ से रातोंरात कामयाबी की चोटी पर जा बैठीं डिंपल कापडि़या ने फिल्मी दुनिया में अचानक हलचल मचा दी थी.

फिल्म आलोचकों के बीच इस हौट और खूबसूरत हीरोइन के चमकते कैरियर को ले कर चर्चाएं शुरू हो गई थीं, मगर सुपरस्टार राजेश खन्ना से शादी करते ही डिंपल कापडि़या को अपने इस चमचमाते कैरियर को अलविदा कहना पड़ा था. राजेश खन्ना भी उस समय हर लड़की के दिलों में बसने वाले नौजवान हीरो थे. शादी के बाद राजेश खन्ना ने डिंपल कापडि़या से साफ शब्दों में फिल्मों में काम करने से मना कर दिया था. डिंपल कापडि़या के लिए चमकते कैरियर को छोड़ना इतना आसान नहीं था, मगर राजेश के कहने पर उन्होंने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था. दोनों के बीच इस बात को ले कर काफी दिनों तक अनबन भी रही थी. फिल्म हीरो देवआनंद ने हीरोइन कल्पना कार्तिक से शादी की. शादी के बाद कल्पना कभी फिल्मों में नहीं दिखीं. यही नहीं, वे कभी पति देवआनंद के साथ किसी फोटोग्राफ में भी नजर नहीं आईं.

‘ट्रैजिडी किंग’ दिलीप कुमार ने जब अपने से उम्र में काफी छोटी हीरोइन सायरा बानो से निकाह किया था, तब दोनों बेहद कामयाब सितारे थे. सायरा बानो कई हिट फिल्मों में काम कर चुकी थीं, वहीं दिलीप कुमार व सायरा बानो ने ‘गोपी’, ‘बैराग’ जैसी कई फिल्मों में साथ काम किया था. मगर शादी के बाद सायरा बानो ने फिल्मों से दूरी बना ली थी, जबकि दिलीप कुमार फिल्मों में लगातार काम करते रहे थे. मशहूर खलनायक प्रेमनाथ का दिल ‘ताजमहल’, ‘अनारकली’ सरीखी हिट फिल्मों की हीरोइन बीना रौय पर आया और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. पर घर बसाने के बाद बीना रौय ने फिल्मों से हमेशा के लिए संन्यास ले लिया था. अमिताभ बच्चन व जया भादुड़ी की जोड़ी बहुत चर्चित जोड़ी रही है. दोनों ने फिल्म ‘जंजीर’ के आने के तुरंत बाद ही शादी कर ली थी. तब जया भादुड़ी हिंदी फिल्मों की एक बड़ी स्टार मानी जाती थीं, जबकि अमिताभ बच्चन बौलीवुड में अपना कैरियर शुरू कर रहे थे.

शादी के बाद दोनों ने कुछ फिल्मों में साथ काम किया, जिन में ‘चुपकेचुपके’, ‘मिली’ ‘शोले’, ‘सिलसिला’ और ‘कभी खुशी कभी गम’ खास हैं. जया भादुड़ी से जया बच्चन बन जाने के बाद उन्होंने अपना कैरियर दांव पर लगा दिया, जबकि अमिताभ बच्चन आज भी फिल्मों में खूब नजर आते हैं. राजेश खन्ना और डिंपल कापडि़या की बेटी व हीरोइन ट्विंकल खन्ना की प्रेम कहानी ऐक्शन हीरो अक्षय कुमार के साथ परवान चढ़ी और दोनों शादी के बंधन में बंध गए.

शादी के बाद जिस तरह डिंपल कापडि़या फिल्मों में दिखाई नहीं दीं, उसी तरह उन की बेटी ट्विंकल भी. धर्मेंद्र व हेमा मालिनी के बीच भी शादीशुदा जिंदगी सुखद नहीं रही. धर्मेंद्र भी नहीं चाहते थे कि उन की बेटी ईशा देओल फिल्मों में काम करे, मगर मां हेमा मालिनी ने अपनी मरजी से बेटी ईशा का कैरियर फिल्मों में बनाने का फैसला लिया, परंतु उन का कैरियर खास नहीं चला. इस के बाद ईशा देओल की शादी कर दी गई.

दक्षिण भारतीय फिल्मों से हिंदी फिल्मों में अपनी खास जगह बनाने वाले कमल हासन व हीरोइन सारिका ने जीवनसाथी के लिए एकदूसरे को चुनने का फैसला लिया. सारिका भी शादी के बाद फिल्मों में नजर नहीं आईं. अपने जमाने की बेहद हसीन हीरोइन राखी ने उस दौर के तकरीबन हर बड़े हीरो के साथ काम किया. राखी ने गीतकार गुलजार से शादी की. फिल्मी कैरियर को ले कर पतिपत्नी में खूब अनबन रही. वजह, राखी अपना कैरियर नहीं छोड़ना चाहती थीं, जबकि गुलजार इस से खुश नहीं थे.

कपूर खानदान में ऋषि कपूर ने हीरोइन नीतू सिंह से शादी की. हालांकि शादी से पहले ऋषि कपूर और नीतू सिंह ने कई फिल्मों में एकसाथ काम किया, मगर शादी के बाद नीतू सिंह को अपना फिल्मी कैरियर छोड़ना पड़ा. इसी तरह अभिनेता रणधीर कपूर की शादीशुदा जिंदगी को खुशहाल नहीं कहा जाता. रणधीर कपूर के हीरोइन बबीता से शादी करने के बाद उन्हें फिल्मों से संन्यास लेना पड़ा. अभिनेता राज बब्बर ने हीरोइन स्मिता पाटिल से दूसरी शादी की. स्मिता पाटिल की मौत के बाद राज बब्बर अपनी पहली पत्नी नादिरा के पास लौट आए. हीरो सुनील दत्त को हीरोइन नरगिस से पहली नजर में ही प्यार हो गया था. अपने से उम्र में बड़ी नरगिस से सुनील दत्त ने अपने प्यार का इजहार कर डाला. दोनों के अलगअलग धर्म भी इस जोड़े के आड़े न आ सके.

यह एक बेहद कामयाब फिल्मी जोड़ा रहा, मगर एक भयंकर बीमारी की चपेट में आने से नरगिस बीच भंवर में ही उन का साथ छोड़ कर चली गईं. अभिषेक बच्चन व ऐश्वर्या राय की जोड़ी भी चर्चित रही. हालांकि शादी के बाद ऐश्वर्या राय बच्चन ने फिल्मों से बे्रक जरूर ले लिया था, मगर अब वे दोबारा ऐक्टिंग में किस्मत आजमाने में जुटी हैं. वहीं अजय देवगन से शादी करने के बाद काजोल ने लंबे समय तक कोई फिल्म नहीं की. मगर अब वे फिर से फिल्मों में दिखने लगी हैं.

शादी के बाद काजोल ने ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘फना’, ‘माई नेम इज खान’ और ‘दिलवाले’ के अलावा तमाम फिल्मों में काम कर के नाम कमाया.

असफलता पर निराश न हों

जीवन में चुनौतियां हर रोज होती हैं. यह समझना कि आप ने 2-3 परीक्षाएं पास कर लीं, अब आगे का रास्ता साफ है, भूल है. जीवन की परीक्षाएं तो सदा चलती ही रहती हैं. नरेंद्र मोदी 20 मई, 2014 को प्रधानमंत्री बने. बहुत संतोषजनक बहुमत के साथ, पर आज तक उन की परेशानियों का अंत नहीं हुआ. उन्हें हर रोज परखा जाने लगा.

उन के हर काम की समीक्षा होने लगी. उन को हर कदम पर एक ऊंची दीवार दिखने लगी. किले में घुस गए पर फिर दीवारें ही दीवारें.

जीवन में सफलता पर जश्न मनाना चाहिए. हर परीक्षा को पास करने पर यह जश्न अगली परीक्षा की तैयारी की शुरुआत हो. एक सफलता अगली सफलता की नींव बने. बहुत बार देखा गया है कि स्कूल के दिनों में बहुत अच्छे अंक लाने वाले आगे चल कर पिछड़ जाते हैं. वह इसलिए होता है कि पहली सफलताओं का नशा चढ़ जाता है. वे उसे ही अंतिम परीक्षा मानने लगते हैं.

हर रोज की समस्याएं या यों कहिए परीक्षाएं परेशान करने वाली नहीं मानी जानी चाहिए. उन्हें जीवन का हिस्सा माना जाना चाहिए. कुछ लक्ष्य ऐसे होते हैं जिन्हें पूरा करने के बाद एक खालीपन सा जीवन में आ सकता है पर यह जीवन ढलने के समय होता है. हमारे यहां कैरियर बनाने के लिए बहुत सी परीक्षाओं की बाधाओं से गुजरना पड़ता है. अगर अच्छा स्कूल मिल गया, अच्छा कोर्स मिल गया, तो फिर अच्छा कालेज चाहिए. फिर अच्छी नौकरी के लिए कई तरह की परीक्षाएं देनी होती हैं. उन के बाद नौकरीमिल जाए तो हर रोज अच्छे काम की चुनौती होती है. हर विजय प्रफुल्लता लाती है, हर हार तनाव लाती है पर हार से घबराने की जरूरत नहीं है, हार से सीखने की जरूरत है. हार या असफलता को आत्मविश्वास की नींव में बदलें. उसी पर आगे का निर्माण निर्धारित होगा. चूंकि व्यक्ति को जीवन में सैकड़ों परीक्षाएं देनी होती हैं लेकिन कुछ में असफलता पर निराश नहीं होना चाहिए. जिस भारतीय जनता पार्टी को 1984 के लोकसभा चुनाव में केवल 2 सीटें मिली थीं वही आज बहुमत से राज कर रही है, क्योंकि उस पार्टी ने हिम्मत नहीं हारी, अपना अस्तित्व नहीं मिटाया. यह खेद की बात है कि बहुत सी परीक्षाओं में सरकार 1 या 2 अवसरों की शर्त रखती है. यह गलत है और प्रतियोगियों के साथ अन्याय है. इस का कड़ा विरोध होना चाहिए. यह अप्राकृतिक है. ठीक है नदी का जो पानी बह गया वह फिर हाथ में नहीं आता पर नदी और पानी तो आता रहता है. परीक्षाओं के अवसर मिलते रहने चाहिए. इन में आयु या अवसरों की सीमाएं समप्त होनी चाहिए.जीवन में आनंद उठाना है तो परीक्षाओं में बैठिए क्योंकि हर परीक्षा की तैयारी एक नया सुकून देती है और सफलता मिले तो असीम सुख.

VIDEO: सांप का खून पीने वाले बॉक्सर को विजेंदर ने धोया

भारतीय स्टार मुक्केबाज विजेंदर सिंह ने अपनी लगातार चौथी पेशेवर जीत को पठानकोट आतंकी हमले के शहीदों को समर्पित किया है. हरियाणा के 30 वर्षीय मुक्केबाज ने एक बार फिर दबदबे वाला प्रदर्शन करते हुए हंगरी के एलेक्जेंडर होरवाथ को तीन राउंड में पराजित किया.

विजेंदर ने कहा, ‘‘मैं इस जीत को भारतीय सैन्य बल के जम्मू और पठानकोट हमले के शहीदों को समर्पित करता हूं.’’ होरवाथ के खिलाफ यह बाउट उनकी इस साल की पहली जीत थी, क्योंकि उन्होंने लगातार तीन जीत पिछले साल दर्ज की थी. उन्होंने कहा, ‘‘मैं चौथी पेशेवर जीत दर्ज कर रोमांचित हूं और भविष्य के लिये उत्साहित हूं. मैं एक और नाकआउट जीत दर्ज कर काफी खुश हूं और इसके बाद 2016 में कुछ बड़ी जीत दर्ज करना चाहता हूं. मैं इस बार अपनी बाउट के लिए अच्छी तरह से तैयार था क्योंकि यह बाउट करीब एक महीने तक स्थगित हो गयी थी.’’

विजेंदर को उनके प्रतिद्वंद्वी ने अच्छी चुनौती दी, लेकिन इको एरेना में हुए मुकाबले में तीसरे राउंड में भारतीय स्टार ने उन्हें हराने में कामयाबी हासिल की.

मैच के बाद विजेंदर ने कहा, मैं नहीं जानता कि मुझे क्या हुआ. मुझे लगता है कि वह बहाना बनाकर बाहर निकलना चाहता था. इस साल में यह मेरे लिए अच्छी शुरुआत है. मैं एक और नॉकआउट मैच जीतकर खुश हूं.’’ ‘‘मेरे ख्याल से भारत में इस साल (11 जून को) होने वाले डब्ल्यूबीओ एशिया के खिताबी मुकाबले से पहले मेरे लिए यह शानदार शुरुआत है.’

विजेंदर का अगला मुकाबला दो अप्रैल को होगा. मैच किस स्थान पर होगा इसका निर्णय अभी होना बाकी है. एलेक्जेंडर होरवाथ ने हाल ही में एक सनसनीखेज बयान देते हुए कहा था कि वे विजेंदर से मुकाबले के लिए सांप का खून पीकर अपनी तैयारी कर रहे हैं.

आप भी देखिए विजेंदर और होरवाथ की फाइट का ये वीडियो…

ब्रसेल्स: एक गतिशील महानगर

यूरोपीय संघ की राजधानी के रूप में ब्रसेल्स एक बहुजातीय स्वरूप वाला गतिशील महानगर है जहां यूरोप की अनमोल स्थापत्यकला के साथसाथ कुछ बेजोड़ संग्रहालय भी देखने को मिलते हैं. इस का मतलब यह बिलकुल न निकालें कि यह एक नीरस शहर है. जहां एक ओर इस ने अपनी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को संभाल कर रखा है, वहीं दूसरी ओर इस के रेस्तरां तथा नाइट लाइफ भी यूरोप के किसी अन्य नगर से कम नहीं हैं.

हमारी ब्रसेल्स यात्रा के साथ एक अजीबोगरीब दास्तान भी जुड़ी हुई है, जिस की वजह से शायद हम अपनी इस शहर की यात्रा को कभी भुला नहीं पाएंगे. हम हवाई जहाज से उतरने के बाद सामान ले कर आगे बढ़ रहे थे कि पीछे से एक आवाज हमारे कानों में पड़ी, ‘भाईजान, भाईजान.’

हम आश्चर्य में पड़ गए कि इस अनजान शहर में आए अभी कुछ मिनट ही गुजरे थे कि यह कौन हमारा परिचित यहां हमें बुला रहा है  असमंजस से जब हम ने मुड़ कर पीछे देखा तो एक 22-23 साल का नौजवान मुसकराता हुआ हमारे सामने आ कर खड़ा हो गया.

हम ने आत्मीयता से उस के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘कहिए, हम आप की क्या मदद कर सकते हैं ’’ तब उस नौजवान ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘भाईजान, मेरा नाम शकील है और मैं पाकिस्तान का रहने वाला हूं. आप को देख कर मुझे लगा कि शायद आप भी मेरे ही मुल्क के हैं.’’

हम ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘हमारी सरहदें अलगअलग हैं पर इनसानियत के नाते तो हम आज भी भाईभाई हैं.’’ फिर शकील ने हमें जो आपबीती बताई उस का सारांश यह था कि वह ब्रसेल्स में एक जहाज पर काम करता था, जहां उस का अनुबंध समाप्त होने के बाद उस शिपिंग कंपनी ने उसे उस के बकाया वेतन का ड्राफ्ट बना कर दे दिया था और उस के हाथ में पाकिस्तान का टिकट. इस बीच उस ने एक दूसरी कंपनी में नौकरी के लिए आवेदन किया था और अगले ही दिन उस कंपनी ने उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया था, लेकिन उस की समस्या यह थी कि हाथ में पर्याप्त नकदी न होने के कारण वह ब्रसेल्स के किसी होटल में नहीं रुक सकता था.

हमें उस की बात समझने में देर नहीं लगी और हम ने बिना कुछ सोचेसमझे उसे अपने साथ ठहरने की अनुमति दे दी. बस, फिर क्या था, ब्रसेल्स शहर से अच्छी तरह परिचित शकील जैसे एक आत्मीय का साथ हमें मिल गया था और दूसरी तरफ शकील को एक दूसरी कंपनी के जहाज पर नौकरी मिल गई थी. शकील ने हमें बताया कि शहर का ऊपरी भाग बड़ेबड़े राजमार्गों वाला तथा आलीशान मकानों से घिरा हुआ है, जहां इस शहर के उच्च- वर्ग के लोग रहते हैं. इस के विपरीत ब्रसेल्स के निचले भाग को आप इस की संकरी सड़कों तथा छोटीछोटी दुकानोंसे आसानी से पहचान सकते हैं. इन इलाकों में ज्यादातर मध्यम तथा निम्नवर्ग के लोग ही रहते हैं और यह इस शहर का व्यापारिक केंद्र भी है. इस वर्गविभाजन के अलावा यहां का एक दूसरा अंतर भाषा का है. ऊपरी भाग यानी समाज के उच्चवर्ग की बस्ती में फें्रच भाषा बोली जाती है और निचले इलाके में डच बोलने वाले लोग रहते हैं. फें्रच बोलने वाले लोगों की संख्या डच बोलने वालों से कहीं ज्यादा है. इन 2 भाषाओं के अलावा कुछ लोग ऐसे भी हैं जो डच तथा फें्रच के मिश्रण से बनी एक स्थानीय भषा बोलते हैं.

ब्रसेल्स के ज्यादातर दर्शनीय स्थल निचले इलाके में हैं जो इस का केंद्रीय भाग ही कहा जा सकता है. पुराने नगरों की तरह यहां के केंद्रीय भाग के चारों ओर एक दीवार बनी हुई है जिस ने पुराने तथा नए शहर को एकदूसरे से अलग कर दिया है. पुराने शहर का सब से बड़ा आकर्षण है भव्य ग्रैंड प्लेस, जो किसी प्राचीन राजमहल जैसा लगता है. इसे देख कर आप पुरातन यूरोप की गरिमा तथा भव्यता का अनुमान आसानी से लगा सकते हैं. आज यहां इस आलीशान इमारत में ब्रसेल्स का टाउन हाल स्थित है, जहां मेयर का कार्यालय है. इस के निकट ही एक छोटी सी गली में सेंट कैथरीन नामक एक पुराना गिरजाघर स्थित है. अगर ग्रैंड प्लेस के उत्तरपश्चिम में चले जाएं तो आप इस नगर की सब से मशहूर बेकरी पहुंच जाएंगे, जिस के दालचीनी के फ्लेवर वाले बिस्कुट हमें वाकई बहुत स्वादिष्ठ लगे. इस बेकरी के सामने ही दुनिया भर में सांताक्लाज के नाम से मशहूर सेंट निकोलस का चर्च है. मूल रूप से इस का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था, लेकिन बाद में समयसमय पर इस का पुनर्निर्माण तथा विस्तार होता रहा है. आज भी यह गोथिक शैली का एक उत्कृष्ट नमूना माना जाता है.

सेंट निकोलस चर्च के अलावा प्लेस सेंट ग्रे भी एक दिलचस्प स्थान है, जहां 19वीं सदी में बना एक बाजार है जो एक बड़े से प्राचीन हाल में स्थित है. इस पुराने बाजार से 2 मिनट की दूरी पर ही ब्रसेल्स का आधुनिकतम बाजार भी स्थित है, जहां दुनिया भर के मशहूर डिजाइनरों के कपड़े बिकते हैं. अगर आप की दिलचस्पी कार्टूनों में है तो आप थोड़ा और आगे स्थित जीजे संग्रहालय जा सकते हैं. इस संग्रहालय में आप प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट जीजे, जिस का पूरा नाम जोसफ गिलेन था, द्वारा बनाए गए फें्रच भाषा के कार्टून देख सकते हैं. ब्रसेल्स में इस तरह के 2 और संग्रहालय हैं जो ‘द सेंट्रल म्यूजियम आफ द इमेजिनेशन’ तथा ‘बेल्जियम कामिक स्ट्रिप सेंटर’ के नाम से जाने जाते हैं. इन में कार्टूनों की दुनिया में इस देश के योगदान को दर्शाया गया है.

गैं्रड प्लेस के उत्तर में रू न्यूवे अपने बड़ेबड़े डिपार्टमेंटल स्टोर तथा डिजाइनर दुकानों के लिए मशहूर है, जबकि रू दे बाउचर्स में एक से एक बढि़या रेस्तरां हैं. इस इलाके की ‘गैलरी सेंट ह्यूबर्ट’ विशेष उल्लेखनीय है, जिस का उद्घाटन बेल्जियम नरेश लियोपोल्ड प्रथम ने 1847 में किया था. इन दीर्घाओं में इस महानगर के सब से पुराने शापिंग सेंटर स्थित हैं. इस पूरे बाजार की सब से बड़ी विशेषता यह है कि इस के चटख रंग तथा सजावट देख कर आप को लगेगा कि आप किसी सुंदर कलादीर्घा में आ गए हैं. इस के अलावा यहां कुछ मशहूर बुटिक भी स्थित हैं.

इसी स्थान पर थिएटर द रायल टून भी है, जहां स्थानीय भाषा में कठपुतलियों पर आधारित नाटक होते रहते हैं. इस के निकट ही ब्रसेल्स का सुप्रसिद्ध ओपेरा हाउस थिएटर द ला मोने अपनी भव्य इमारत के लिए प्रसिद्ध है जिस का निर्माण 1819 में हुआ था. अगर आप घूमते हुए ग्रैंड प्लेस के दक्षिण में चले जाएं तो आप प्लेससेंट ज्यां पहुंच जाएंगे, जिस के बीचोंबीच इस देश की महिला क्रांतिकारी गैब्रियल पेटिट का स्मारक बना हुआ है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब जरमनी की सेना ने बेल्जियम पर अपना अधिकार जमा लिया था तो इस महिला ने जरमनी के खिलाफ चलाए गए आंदोलन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. नाट्रे डम द ला चैपल ब्रसेल्स का सब से पुराना चर्च है, जिस का निर्माण 1134 में हुआ था. गोथिक शैली में बना चर्च अपने ऊंचेऊंचे टावर के लिए मशहूर है. इस का ‘बरोक बेल टावर’ 1965 के फ्रांसीसी हमले के दौरान नष्ट हो गया था. बाद में इस का पुनर्निर्माण करवाया गया. इस चर्च के आसपास अनेक पुरानी दुर्लभ वस्तुओं की दुकानें हैं और यहीं एक मशहूर सड़क पर लगने वाला बाजार भी है.

एक ढलान पर जहां शहर के निचले भाग की सीमा समाप्त होती है, वहीं से इस का ऊपरी हिस्सा यानी उच्चवर्ग के लोगों की बस्ती तथा बाजार शुरू हो जाते हैं. शहर के इसी हिस्से में ब्रसेल्स का सब से मशहूर कला संग्रहालय स्थित है, जहां न केवल बेल्जियम के बल्कि पूरी दुनिया के महान चित्रकारों की कलाकृतियां देखने को मिलती हैं. प्लेस रायल में आप को 18वीं सदी की अनेक आलीशान इमारतें देखने को मिलेंगी. इन के अलावा यहां अनेक दर्शनीय संग्रहालय भी स्थित हैं. यहीं पर डच राजा विलियम प्रथम द्वारा बनवाया गया महल भी स्थित  है, जिस ने 1815 से 1830 तक बेल्जियम तथा नीदरलैंड पर राज्य किया. शहर के उच्चवर्ग के इस भाग का सब से सुंदर तथा मशहूर चौराहा है प्लेस द गै्रंड सैबलोन. यह ब्रसेल्स के सब से अमीर लोगों की बस्ती है और यहां के बाजारों में घूम कर आप अपनी पूरी शाम बिता सकते हैं.

ब्रसेल्स की सब से मशहूर पहचान है एक पेशाब करते बच्चे की प्रतिमा वाला फौआरा, जिस की तसवीर आप को यहां के पर्यटन संबंधी सभी साहित्य तथा चित्रों में देखने को मिलेगी. अकसर इस के आसपास आप को पूरे दिन पर्यटकों की भीड़ जुटी दिखाई देगी. इस का निर्माण 1388 में किया गया था, लेकिन उस पेशाब करते बालक के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं मिलती. हां, इतना जरूर है कि लोग उसे ब्रसेल्स के सब से पुराने नागरिक के रूप में जानते हैं. ब्रसेल्स अपनी चाकलेट के अलावा नाइट लाइफ तथा बियर के कारखानों के लिए भी पूरी दुनिया में मशहूर है. आप चाहें तो यहां किसी थिएटर में कठपुतली शो अथवा कोई नृत्यनाटिका देख कर भी अपनी शाम गुजार सकते हैं. इन के अलावा यहां ऐसे कैफे व थिएटर भी हैं जहां बैठ कर आप कैबरे शो का मजा ले सकते हैं अथवा किसी मशहूर रेस्तरां में भोजन के दौरान होने वाले संगीत के कार्यक्रम देख सकते हैं. यहां के ज्यादातर डिस्को तथा नाइटक्लब रात को 10 बजे से पहले नहीं खुलते और वास्तव में इन का माहौल 11 बजे के बाद ही अपने शबाब पर आता है.

यहां एक तरफ मशहूर दार्शनिक काफ्का के नाम पर काफ्का बार है, जहां अकसर युवा वर्ग के बुद्धिजीवी एकत्र होते हैं. दूसरी तरफ ला मोर्त सुबाइट अर्थात ‘आकस्मिक मौत’ जैसे स्थान हैं, जहां फलों से बनी विशेष मीठी बियर मिलती है. इस ‘बार’ जैसी बियर आप को ब्रसेल्स के दूसरे किसी बार में पीने को नहीं मिलेगी. किसी जमाने में ‘ला मोर्त सुबाइट’ को एक असुरक्षित स्थान माना जाता था और शायद इसीलिए यह आकस्मिक मौत के नाम से बदनाम हो गया, लेकिन आज यहां ऐसा कोई खतरा नहीं है.    

एफिल टावर से भी बड़ा क्रूज ‘हार्मनी’

क्या आप ने टाइटैनिक और एफिल टावर से भी लंबे क्रूज की कल्पना की है  जी हां, अब हकीकत में फ्रांस के सैंट नजैरे पोर्ट से ऐसे क्रूज को सागर में उतारा गया है.

‘हार्मनी औफ द सीज’ नामक यह क्रूज दुनिया का सब से बड़ा क्रूज शिप है. जब इसे समुद्र में उतारा गया तब इस का नजारा देखने लायक था. पिछले 4-5 वर्षों से इसे बनाने का काम चल रहा था जो अब जा कर पूरा हुआ. भले ही इसे बनाने में कई हजार करोड़ रुपए खर्च हुए लेकिन देखने वाले भी वाहवाह किए बिना नहीं रह पाए.

यह सिर्फ दुनिया का सब से बड़ा क्रूज ही नहीं है बल्कि कई लग्जरी सुविधाओं से भी लैस है जैसे, 2,500 से ज्यादा कमरे, बच्चों के लिए वाटर पार्क की सुविधा, जिसे देख बच्चे मुसकरा उठें, सिर्फ रुकने के लिहाज से ही नहीं बल्कि इस में आप थिएटर, स्टेडियम और मौल जैसी सुविधाओं का भी लुत्फ उठा सकते हैं. इस में सिर्फ हजार, 2 हजार यात्री ही नहीं बल्कि पूरे 6 हजार यात्री बैठ सकते हैं. फिलहाल ट्रायल के दौरान इस में किसी यात्री को नहीं बैठाया गया.

इस कू्रज का वजन 22.7 लाख टन है और इस की अधिकतम गति 40 किलोमीटर प्रतिघंटा है. जल्दी ही आखिरी ट्रायल के बाद रौयल कैरेबियन कंपनी को सुपुर्द करने की उम्मीद है. तो तैयार रहिए आप भी इस क्रूज का मजा लेने को.

जब शाहरूख खान को देख बेहोश हुए रणवीर सिंह

रणवीर सिंह हमेशा कुछ अनोखा करते हैं और इस बार वह शाहरूख के फैन बन गए हैं. रणवीर सिंह ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें वह शाहरूख खान की आने वाली फिल्म 'फैन' के लिए प्रचार कर रहे हैं. रणवीर सिंह ने डबस्मैश पर इस फिल्म के 'जबरा फैन' गाने का एक वीडियो बनाकर इसे इंस्टाग्राम पर साझा किया है.

इंस्टाग्राम पर उन्होंने इस वीडियो के साथ लिखा है, 'सभी तरह के मोशन पोस्टर्स का बाप' इस वीडियो में रणवीर सिंह, 'फैन' के पोस्टर के आगे गाने पर डांस कर रहे हैं और फिर पीछे से शाहरूख खान उनके सामने आ जाते हैं जिन्हें देखकर रणवीर बेहोश हो जाते हैं.

उल्लेखनीय है कि यशराज बैनर तले बनी फैन में शाहरूख खान दोहरी भूमिका निभा रहे हैं. इस फिल्म में एक किरदार में वह सुपरस्टार जबकि दूसरे किरदार में फैन के किरदार में नजर आएंगे.

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