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कमजोर निकली दमदार किरदार निभाने वाली प्रत्यूषा

रील लाइफ और रियल लाइफ में कितना अंतर होता है प्रत्यूषा बनर्जी की मौत से यह एक बार फर से साबित हो गया.झारखंड के जमशेदपुर जिले की रहने वाली प्रत्यूषा बनर्जी को अभिनय करने का शौक पहले से था.कलर्स चैनल ने जब अपने सामाजिक टीवी शो ‘बालिका वधु’ के लिये बडी उम्र की आंनदी की तलाश शुरू कि तो देश भर से तमाम लडकियों ने दावेदारी पेश की.इस समय तक ‘बालिका वधु’ दर्शको का सबसे पंसदीदा शो बन चुका था. अंविका गौड ने बहुत ही दमदार आंनदी का किरदार निभाया था.चैनल के लिये चुनौती थी कि वैसा ही अभिनय करने वाली दूसरी आनंदी तलाश की जाये. ऐसे में प्रत्यूषा बनर्जी ने आनंदी का किरदार पूरी दमदारी से निभाया.दर्शकों के मन में न केवल अपनी पहचान बनाई बल्कि लोग पुरानी आनंदी का किरदार भूल गये. इस तरह 2010 में प्रत्यूषा बनर्जी ने टीवी की दुनिया से अपने सपफर की शुरूआत की.जिस तरह रातोरात प्रत्यूषा बनर्जी आनंदी बन कर लोगों के दिलों पर छा गई ऐसे मौके कम लोगों को मिलते है.आंनदी के रूप में प्रत्यूषा ने बालिका वधु’ में हर कठिन हालात का पूरे साहस से मुकाबला किया.उस समय हर मां को अपने लिये आनंदी की बेटी और हर सास को अपने लिये आंनदी सी बहू की तलाश होने लगी.

24 साल की प्रत्यूषा बनर्जी को जो शोहरत मिली उसके साथ वह खुद को संभाल नहीं पाई. पर्दे के पीछे प्रत्यूषा के समय पर शूटिंग पर न आने, सहायक कलाकारों से अच्छा व्ययहार न करने जैसे तमाम आरोप भी लगने लगे. ‘बालिका वधु’ छोडने के बाद आंनदी की शोहरत का लाभ लेने के लिये प्रत्यूषा को कई शो में काम करने का मौका मिला. इनमें ‘किचन चैम्पियन’, ‘झलक दिखला जा’, ‘बिग बौस 7 सीजन’ और ‘ससुराल सिमर का’ प्रमुख था. टीवी पर लगातार काम करने के बाद भी मुम्बई जैसे शहर में रहने के लिये प्रत्यूषा आर्थिक दबाव में थी.वह मुम्बई में मलाड के पास  बांगुरनगर में अपनी मां के साथ किराये के मकान में रहती थी.पर्दे की जिदंगी में मजबूत दिखने वाली प्रत्यूषा निजी जिदंगी में आने वाले दबाव को संभाल नहीं पाई. ब्वायपफ्रेंड मकरंद मलहोत्रा के साथ विवादों के चलते प्रत्यूषा की निजी जिदंगी चर्चा में आई.साल 2013 में प्रत्यूषा ने मकरंद मलहोत्रा के खिलाफ शारीरिक शोषण का मामला भी दर्ज कराया था.

मकरंद के बाद प्रत्यूषा का नाम राहुल राज सिंह के साथ जुडा.साल 2016 के जनवरी माह में प्रत्यूषा ने 8 लोगों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.यहां पर प्रत्यूषा और राहुल राज सिंह का मनमुटाव भी सामने दिखा था. इस समय प्रत्यूषा मानसिक परेशानी के दौर से गुजर रही थी.इस बात की गवाही उसका वाट्सएप स्टेटस ‘मर के मुंह न तुझसे मोडना’ दे रहा था. 15 मार्च को लिखे इस वाट्सएप स्टेटस को उसके दोस्त और करीबी भी समझ नहीं पाये.आनंदी बनी प्रत्यूषा बनर्जी ने ऐसा कदम क्यांे उठाया? फिल्म इंडस्ट्री के लोगों का मानना है कि ‘टीवी इंडस्ट्री बडे उद्योग में बदल गया है. अब यहां गलाकाट प्रतियोगिता का दौर चल रहा है. जिससे छोटी उम्र के लडकेलडकियों में तनाव बढ जाता है.छोटे शहरों से आये युवा अपने पारिवारिक मूल्यों को लेकर भी तनाव में आ जाते है.’ पर्दे पर तमाम मुसीबतों का सामना करने वाली आनंदी बनी प्रत्यूषा भी ऐसे दबाव को झेल नहीं पाई और यह फैसला कर बैठी.                                              

 

फेसबुक पर ग्राफिक उपन्यास द्वारा ‘द ब्लू बेरी हंट’ का प्रचार

बौलीवुड में नित नया सोचने वालों की कमी नहीं है. एक तरफ जहां कई फिल्मकार अपनी फिल्म के प्रचार में दो से बीस करोड़ रूपए खर्च कर रहे हैं. वहीं अनूप कूरियन जैसे फिल्मकारों के पास अपनी फिल्म के प्रचार के लिए धन का घोर अभाव है. इसलिए अपनी पहली ही फिल्म ‘‘मानसरोवर’’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार जीत चुके अनूप कूरियन ने इस बार अपनी नई फिल्म ‘‘द ब्लू बेरी हंट’’ के प्रचार के लिए ग्राफिक उपन्यास रचा है और वह इस ग्राफिक उपन्यास के दो से तीन पृष्ठ हर दिन फेसबुक पर डालते हुए अपनी फिल्म ‘‘द ब्लू बेरी हंट’ का प्रचार कर रहे हैं, जिसमें उन्हे काफी सफलता मिल रही है.

खुद अनूप कूरियन कहते हैं-‘‘मेरी हैसियत इतनी नही है कि मैं फिल्म के प्रचार पर करोड़ो रूपए खर्च कर सकूं. इसलिए मैने फिल्म की कहानी पर आधारित एक ग्राफिक नावेल/ उपन्यास लिखा है. फिल्म का मुख्य पोस्टर ही ग्राफिक नावेल का कवर पेज है. फिल्म की कहानी के अनुरूप ही ग्राफिक नावेल के नब्बे पेज हैं. मैं फेसबुक पर हर दिन दो या तीन पेज इस ग्राफिक नावेल के छापकर अपनी फिल्म के प्रति लोगों/दर्शकों के मन में फिल्म देखने की उत्कंठा बढ़ाने का काम कर रहा हूं.

मुझे यकीन है कि इस ग्राफिक नावेल को पढ़ने वाले लोग मेरी फिल्म को जरुर देखना चाहेगा. फिर चाहे वह सिनेमा घर के अंदर जाए या पैसे देकर इंटरनेट से डाउनलोड कर फिल्म देखे. मेरे पास फिल्म के प्रचार के लिए धन की कमी है. पर मैं साफ्टवेअर में माहिर हूं. ग्राफिक बनाने में माहिर हूं. कहानी लिखने में माहिर हूं. तो मैने यह आइडिया सोचा. मेरे पास इतना धन नही है कि मैं हर टीवी चैनल पर अपनी फिल्म का ट्रेलर या प्रोमो वगैरह दिखाकर दर्शकों तक अपनी फिल्म पहुंचा सकूं. इसलिए मैने यह ग्राफिक नावेल की आइडिया सोची. आप फेयबुक पर जाकर देंखेंगे, तो पाएंगे कि दूसरी फिल्मों के मुकाबले हमारी फिल्म ज्यादा लोकपिय हो रही है. कुछ समय पहले ईरोज की फिल्म ‘सनम तेरी कसम’ जिस दिन रिलीज हुई, उस दिन तक उसके फेसबुक पर पचार्स हजार फालोअर्स थे. सभी जानते है कि ‘सनम तेरी कसम’ के प्रमोशन में करोड़ों रूपए खर्च किए गए थे. जबकि मेरी फिल्म ‘द ब्लू बेरी हंट’ आठ अप्रैल को रिलीज होनी है. हम कम पैसे खर्च कर इसका प्रचार कर रहे हैं और अब तक हमारी फिल्म के 42 हजार फालोअर्स हो चुके हैं. ‘यू ट्यूब’ तथा इंस्टाग्राम’ पर हमारी फिल्म का प्रचारात्मक वीडियो मौजूद है.’

बच्चों के मुख से

मेरी सहेली का 5 साल का बेटा बहुत चतुर है. एक बार वह अपनी दादी के साथ एक बुजुर्ग महिला की पगड़ी रस्म पर गया. फोटो पर डाले हुए फूलों के हार देख कर बोला, ‘‘दादीदादी, क्या यह आंटी कहीं चली गई हैं?’’ दादी के ‘हां’ कहते ही तपाक से बोल उठा, ‘‘दादी, यहां लोगों ने सफेद कपड़े तो पहन नहीं रखे हैं. टीवी पर तो सब लोग सफेद कपड़े पहन कर आते हैं.’’ उस की बात सुन कर पास बैठे सब लोग मुसकराए बिना न रह सके.

– कैलाश भदौरिया, गाजियाबाद (उ.प्र.)

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मेरी बेटी शुभि कक्षा 4 में पढ़ती है. उस का बैंचपार्टनर एलेक्स बहुत मोटा है. शुभि को उस से शिकायत रहती कि उसे बैठने के लिए काफी जगह चाहिए और उस के पैर फैला कर बैठने की आदत से शुभि की कौपीकिताबें नीचे गिर जातीं. दोनों में अकसर झगड़ा होता. जब भी एलेक्स को गुस्सा आता वह अपनी मातृभाषा ‘मलयालम’ में जाने क्याक्या कहता, जिसे शुभि समझ न पाती. एक दिन वह मुझ से शिकायत करने लगी. मैं ने बात पर ध्यान नहीं दिया. उसे समझाया कि तुम भी अपनी मातृभाषा कुमाउंनी में बात करना. एक दिन उन दोनों का फिर से झगड़ा हुआ. एलेक्स मलयालम में कुछ कहता, इस से पहले ही शुभि ने मुंह बना कर कुमाउंनी में बोलना शुरू कर दिया.

एलेक्स ने आव देखा न ताव, टीचर से इस की शिकायत कर दी. टीचर भी मलयाली थी. उन्होंने पहले तो एलेक्स को गुस्सैल व्यवहार के लिए डांट लगाई, फिर शुभि से पूछा, ‘तुम ने क्या कहा?’

वह बोली, ‘बेडू पाकौ बारमासा, हो नरैयण काफल पाकौ चेता मेरी छैला.’

टीचर ने उस का मतलब पूछा. मतलब सुन कर टीचर के साथ कक्षा के बच्चे भी हंस दिए. असल में शुभि को कुमाउंनी बोलना नहीं आता था, उसे मैं ने बचपन में कुमाऊं का सुप्रसिद्ध गीत ‘बैडू पाकौ बारमासा…मेरी छैला’ सिखा रखा था. जिस में कुमाऊं की सुंदरता का वर्णन किया गया है. उस ने मेरे कहे अनुसार कि ‘तुम एलेक्स को कुमाउंनी बोली में जवाब दे देना,’ उसे जो कुछ कुमाउंनी में बोलना आता था, वह बोल दिया. एलेक्स को जब शुभि द्वारा कहे गए वाक्यों का अर्थ समझ में आया तब वह भी खिलखिला कर हंस दिया.

– भावना भट्ट, भोपाल (म.प्र.)

मध्य प्रदेश: जंगल में खातिरदारी

प्रकृति के शांत वातावरण को चीरती टाइगर की दहाड़ और साल व सागौन के घने जंगलों के बीच कौफी की खुशबू कान्हा में आए मेहमानों का स्वागत करती है. सोलासिया रिजौर्ट. कान्हा टाइगर रिजर्व के पास किसली मेन रोड पर खटिया गेट से करीब 600 मीटर की दूरी पर है. 12 एकड़ ईको सैंसटिव जोन में पाम वृक्षों से घिरे रिजौर्ट में पर्यटकों के लिए हर आवश्यक सुविधा मुहैया है. ग्रासरूट कौफी हाउस, नौलेज हब, लक्जरी टैंट के साथ डबल बैडरूम अपार्टमैंट की सुविधा से संपन्न इस रिजौर्ट में पर्यटकों को वाइल्डलाइफ की नौलेज भी दी जाती है. इस तरह के कई और रिजौर्ट भी इस क्षेत्र में हैं.

सोलासिया रिजौर्ट के डायरैक्टर पराग भटनागर बताते हैं, ‘‘यहां पाई जाने वाली 2 मुख्य जनजातियों बैंगा और गौड़ के प्रति हमारी जवाबदेही बनती है. क्योंकि इतने सालों के बाद भी आधुनिकता से वे कोसों दूर हैं. जंगल को पास से देखनेसमझने एवं पक्षी निहारण के लिए पैदल जंगलभ्रमण किया जा सकता हैं. कान्हा के प्राकृतिक परिवेश और शांत वातावरण में साधारण स्वस्थ भोजन के साथ स्वास्थ्य पर्यटन का आनंद भी लिया जा सकता है. वन्यजीवों की फोटो चित्रकारी, जंगली जानवरों के व्यवहार और जीवन की बेहतर समझ में मदद करती है तथा वन्यजीवों के प्रति सद्भाव का वातावरण बनाने में बहुत अहम भूमिका निभाती है, इस के लिए पूरी दुनिया के वन्यजीव फोटो चित्रकार यहां आते हैं.’’

कान्हा टाइगर रिजर्व

मध्य प्रदेश के मंडला और बालाघाट जिलों में मैकल पर्वत शृंखलाओं की गोद में स्थित कान्हा टाइगर रिजर्व देश के सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय उद्यानों में एक है. यह एक पर्यटन केंद्र ही नहीं, बल्कि भारतीय वन्यजीवन के प्रबंधन और संरक्षण की सफलता का प्रतीक भी है. हृष्टपुष्ट जंगली जानवरों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर कान्हा में प्रतिवर्ष 1 लाख से अधिक सैलानी आते हैं. यह अभयारण्य 15 अक्तूबर से खुल जाता है और 30 जून को मानसून के आगमन के साथ बंद हो जाता हैं. लोग बाघ और जंगल के अन्य जीवजंतुओं को देखने व प्रकृति का आनंद लेने के लिए यहां आते हैं. इस के लिए सब से अच्छा तरीका है जिप्सी सफारी. एक जिप्सी में 6 लोगों को भ्रमण की अनुमति दी जाती है जिस से वे प्रकृति का आनंद ले सकें और उन के प्राकृतिक घर में जंगली जानवरों को देख सकें.

वन्यजंतुओं की सघनता की दृष्टि से यह उद्यान काफी समृद्ध है. 940 वर्ग किलोमीटर के दायरे में सदाबहार साल वनों से आच्छादित कान्हा अद्भुत स्थल है. प्रबंधन की दृष्टि से यह कान्हा, किसली, मुक्की, सुपरवार और मैसानघाट नामक 5 वन परिक्षेत्रों में बंटा हुआ है. पार्क में पर्यटकों के प्रवेश के लिए खटिया (किसली रेंज) और मुक्की में 2 प्रवेशद्वार (बैरियर) हैं. यहां से पार्क के प्रमुख पर्यटन क्षेत्र कान्हा की दूरी क्रमश: 10 और 30 किलोमीटर है. अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए दुनियाभर में मशहूर इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1955 में हुई और वर्ष 1974 में इसे प्रोजैक्ट टाइगर के अधीन ले लिया गया. बाघ के शौकीनों के लिए कान्हा सर्वोत्तम विकल्प है. कान्हा में बाघ दर्शन ने पर्यटन को काफी बढ़ावा दिया है. बाघ के अतिरिक्त कान्हा में बारहसिंघा की एक दुर्लभ प्रजाति पंकमृग (सेर्वुस बांडेरी) भी पाई जाती है.

बाघ और बारहसिंघा के अतिरिक्त यहां भालू, जंगली कुत्ते, काला हिरण, चीतल, काकड़, नीलगाय, गौर, चौसिंगा, जंगली बिल्ली और सूअर भी पाए जाते हैं. इन वन्यप्राणियों को हाथी की सवारी अथवा सफारी जीप के जरिए देखा जा सकता है.वन्यप्राणियों के दर्शन के अतिरिक्त पर्यटकों को पार्क में स्थित ब्राह्मणी दादर भी जरूर जाना चाहिए. किसली से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस जगह से सूर्यास्त का मनोरम दृश्य दर्शकों को मुग्ध कर देता है. कान्हा के जंगलों का स्थानीय लोकगाथामें  कई जगह, मुख्यतया शिकार एवं शिकारियों की कहानियों में उल्लेख आता है. लपसी कब्र नामक स्थान में लपसी नामक शिकारी का स्मारक है. कहा जाता है कि वह बहुत महान शिकारी था. कान्हा का इलाका आदिवासियों का गढ़ है. पर्यटक पार्क के निकटवर्ती भीलवानी, मुक्की, छपरी, सोनिया, असेली आदि वनग्रामों में जा कर यहां की प्रमुख बैंगा जनजाति के लोगों से मिल सकते हैं. उन की अनूठी जीवनशैली और परिवेश का पर्यवेक्षण निसंदेह आप की यात्रा की एक और स्मरणीय सौगात हगी.

पन्ना नैशनल पार्क

बाघ देखने के शौकीन पर्यटकों के लिए पन्ना नैशनल पार्क सब से अच्छी जगह है. छतरपुर और पन्ना जिलों में फैला यह नैशनल पार्क 5 साल पहले उस समय काफी चर्चा में रहा जब यह बाघविहीन हो गया था. पर लोगों की जागरूकता और प्रशासन के संयोग से आज जंगल फिर बाघ की दहाड़ से गूंजने लगा है. 543 स्क्वायर किलोमीटर में फैले इस पार्क में 32 से भी ज्यादा वनराज शान से चहलकदमी करते दिखाई देंगे.

मेहमाननवाजी

केन नदी के किनारे का सुरम्य वातावरण और पेड़ के ऊपर बने मचाननुमा रैस्टोरैंट में बैठ कर पहाडि़यों के पीछे डूबते सूरज के मनोरम दृश्य को देखने के साथ गरमागरम कौफी के घूंट का एहसास आप को किसी दूसरी ही दुनिया में ले जाता है. नैशनल पार्क के मंडला गेट से थोड़ी ही दूरी पर स्थित केन नदी के मुहाने पर बना केन रिवर लौज (द्गठ्ठह्नह्वद्बह्म्4ञ्चश्चह्वद्दस्रह्वठ्ठस्रद्गद्गह्यड्डद्घड्डह्म्द्बह्य.ष्शद्व)  शाही मेहमान- नवाजी के लिए जाना जाता है.लौज के मालिक श्यामेंद्र सिंह उर्फ बिन्नी राजा बताते हैं, ‘‘हमारा केन रिवर लौज सब से पुराना है. यह ट्री हाउस के नाम से भी जाना जाता है. हम अपने यहां आने वाले पर्यटकों को वाइल्डलाइफ के अलावा यहां के बुंदेलखंडी कल्चर से भी परिचित कराते  हैं और सब से खास इस पार्क में यह है कि दुनिया में पाए जाने वाले कुल 8 प्रजाति के वल्चरों यानी गिद्दों में से 7 यहां पाए जाते हैं. इस के अलावा पर्यटकों को नैशनल पार्क के पास ही झिन्ना नाम की जगह में ले जा कर टैंट में ही नाइट स्टे कराते हैं. इस दौरान हमारी यहां कोशिश रहती है कि लोकल व्यंजनों के स्वाद से उन्हें जरूर परिचित कराएं. लौज में पर्यटकों के लिए एक मल्टीकुजीन रेस्तरां के अलावा 6 ग्रामीणशैली में बनी हुई वातानुकूलित हट्स हैं. इस के साथ कैन बोटिंग, फिशिंग के अलावा हर उस सुविधा का खयाल रखा जाता है जिस से आने वाला पर्यटक इस जगह को हमेशा याद रखे.’’

पन्ना नैशनल पार्क को और भी करीब से जानना है तो इन रिजौर्ट्स से ही टैक्सी बुक करें और अन्य जगहों का करीब से   मजा ले सकते हैं. 1980 के पहले इसे वाइल्डलाइफ सैंचुरी घोषित किया गया था. 1981 में इसे नैशनल पार्क का दरजा दिया गया. पन्ना नैशनल पार्क आने के लिए नवबंर से अप्रैल माह के बीच का समय उपयुक्त होता है. पार्क में टाइगर के अलावा चौसिंगा हिरण, चिंकारा, सांभर, जंगली बिल्ली, घडि़याल, मगरमच्छ, नीलगाय  से भी रूबरू हुआ जा सकता है. सब से नजदीक यहां से खजुराहो है जहां रेलमार्ग और हवाईमार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है. अब तो रेलवे ने भी अपनी लक्जरी ट्रैन महाराजा का रूट खजुराहो से हो कर वाराणसी कर दिया है. खजुराहो से 30 मिनट में पन्ना नैशनल पार्क पहुंचा जा सकता है.

पन्ना नैशनल पार्क के अलावा हीरों के लिए भी प्रसिद्ध है. पार्क से थोड़ी ही दूरी पर एनएमडीसी की मझगंवा डायमंड माइंस है, जहां हीरों की खुदाई से ले कर उन की अन्य सफाई प्रक्रिया देखी जा सकती है. अगर समय मिले तो रिजर्ट से 8 किलोमीटर की दूरी पर पन्ना नगर है जिस के यूरोपीय शैली में बने मंदिर जरूर देखें. पार्क से हो कर गुजरने वाली केन नदी पार्क की खूबसूरती में चारचांद लगाती है. यहां नाव में बैठ कर जंगली जीवों को करीब से देखने का आनंद ही कुछ अलग होता है. केन नदी को घडि़याल अभयारण्य भी घोषित किया हुआ है. पार्क के मुख्य आकर्षणों में एक आकर्षण खूबसूरत पांडव फौल है जो झील में गिरता है. मानसून के दिनों में इस झरने का विहंगम दृश्य बड़ा ही रोमांचकारी लगता हैं.

कला के पारखियों के लिए काम और वास्तुकला के अद्भुत मेल वाली पाषाण प्रतिमाओं के लिए विश्वप्रसिद्ध खजुराहो यहां से 66 किलोमीटर की दूरी पर है. खजुराहो के मंदिर भारतीय कला शिल्प की नायाब धरोहर हैं. खजुराहो मंदिरों को 950-1050 ई. के बीच मध्य भारत पर शासन करने वाले चंदेल वंश के शासकों के द्वारा निर्मित करवाया गया था. खजुराहों में कुल 85 मंदिरों को बनवाया गया था, जिन में से आज केवल 22 ही बचे हैं. पूरी दुनिया का ध्यान यहां के मंदिरों में स्थित मूर्तियों ने आकर्षित किया है जो कामुकता से भरी हुई हैं. मंदिर को 1986 में यूनैस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया. खजुराहो के पास ही अंगरेजों के समय में बनाया गया गंगऊ डैम स्थित है. इस डैम की वास्तुकला और इंजीनियरिंग देखने लायक है. पास ही रनेह फौल है जिस का वास्तविक रूप मानसून में ही देखने लायक होता है. अगर सही माने में आप को अपनी यात्रा रोमांचकारी और यादगार बनानी है तो पन्ना नैशनल पार्क की जंगल सफारी का मजा जरूर लें.                                                        

धुबेला

बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल की बेटी मस्तानी का जन्म और बचपन धुबेला के महलों में बीता. निर्देशक संजयलीला भंसाली भी मस्तानी को ले कर ‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्म बना चुके हैं. यहां मौजूद महलों के अवशेष और छत्रसाल का मकबरा आज भी यह याद दिलाने के लिए काफी है कि उस वक्त का इतिहास क्या होगा. धुबेला, खजुराहो-झांसी मार्ग पर स्थित है. धुबेला चारों तरफ से खूबसूरत पहाडि़यों से घिरा हुआ है. पहाडि़यों के बीच में बड़ी झील के किनारे बनी लाल रंग की हट्स और हरेभरे  गार्डन वाला धुबेला रिजौर्ट   दूर से ही सब को आकर्षित करते हैं. झांसी-खजुराहो राष्ट्रीय राजमार्ग 75 पर स्थित इस रिजौर्ट में मल्टीकुजीन रेस्तरां के साथ, लक्जरी रूम्स, स्विमिंग पूल की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

रिजौर्ट से धुबेला संग्रहालय मात्र 5 मिनट की दूरी पर स्थित है. संग्रहालय एक पुराने किले के अंदर है. इस में प्राचीन और आधुनिक युग की कलाकृतियां और अवशेषों का समृद्ध कलैक्शन है. यहां मुख्य रूप से खजुराहो के प्रसिद्ध बुंदेला वंश के इतिहास, उत्थान और पतन को दर्शाया गया है. संग्रहालय में रखी हुई मूर्तियां शक्ति पंथ से हैं. यहां बुंदेला शासकों के हथियारों, पोशाकों और चित्रों का अनूठा कलैक्शन है. पर्यटन के लिए यह संग्रहालय एक एक दिलचस्प जगह है. राज्य सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए धुबेला महोत्सव शुरू किया है जिस में लोकनृत्यों के अलावा कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. अगर खजुराहो जा रहे हैं तो यहां जरूर आना चाहिए. यहां आने पर बुंदेला वंश के शासकों की अद्भुत सांस्कृतिक विरासत के बारे में जान सकते हैं. शासकों की भव्य जीवनशैली और उन के विभिन्न कार्यों को धुबेला  संग्रहालय में दर्शाया गया है.

जानिए लेटेस्ट मेकअप ट्रेंडस

खूबसूरत दिखना है तो मेकअप कीजिए संभल कर, क्योंकि खूबसूरती और मेकअप का रिश्ता गहरा है. ध्यान रखें, मेकअप एक कला है. आउटडेटेड मेकअप आप के लुक को बेहतर बनाने के बजाए आप को उपहास का पात्र बना सकता है. आकर्षक लुक पाने के लिए जरूरी है कि मेकअप करने का सही तरीका और लेटेस्ट ट्रेंड मालूम हो. सुप्रसिद्ध कौस्मेटोलौजिस्ट, ऐस्थिटीशियन व एल्प्स कौस्मेटिक क्लीनिक की फाउंडर डायरेक्टर, भारती तनेजा से जानते हैं, लेटेस्ट मेकअप ट्रेंड.

ग्लोइंग टच

इन दिनों फेस पर ग्लो टच इन है, ऐसे में चेहरे पर क्रीमी व शिमर बेस्ड फाउंडेशन का इस्तेमाल करें. टिंटिड मायश्चराइजर, लिक्विड फाउंडेशन जैसे बेस, आप के इस ग्लासी लुक को पाने में मदद कर सकते हैं. इस के साथ ही फीचर्स को हाइलाइट करने के लिए ग्लास का इस्तेमाल करें जो लाइट के रिफलैक्शन से शाइनी व खूबसूरत नजर आएगा. ग्लोइंग टच के लिए शिमर्स को लिक्विड फाउंडेशन के साथ मिक्स कर के या शिमर बेस्ड फाउंडेशन या फिर पाउडर शिमर्स का यूज करें.

आई मैजिक

आंखों पर इस सीजन शिमरी व ग्लासी मेकअप इन है, ऐसे में शिमर बेस्ड आईशैडो का इस्तेमाल करें. डबल विंग्ड, फिश टेल, बोल्ड बैटविंग व कैटी स्टाइल से आंखों की शेप को डिफाइन करें. पलकों पर आर्टीफिशियल ट्रिम्ड लांग लैशिज, इनर कार्नर पर स्वरोस्की स्टड व वाटर लाइन के नीचे स्टोन्स जैसी एक्सेसरीज, इन दिनों ट्रेंड में है.

लिप मेकअप

आक्सब्लड, बरबेरी, प्लम, फ्रास्टेड काफी व डीपेस्ट ब्लैक जैसे डार्क लिप शेड्स, इस सीजन हिट है. इस के साथ ही ग्लासी लिप्स का ट्रेंड फिलहाल आउट रहेगा और मैट लिप्स इन है.

ट्रांसपरेंट मेकअप

करेक्टिव मेकअप की टेक्नीक और नैचुरल शेड्स के साथ किया गया, ट्रांसपेरेंट मेकअप भी इस सीजन में हिट है. ये खूबसूरत भी लगता है और पता भी नहीं चलता.

डीप टैन

गोरे रंग की हमेशा चाहत रखने वाले इंडियन्स अब टैंड लुक को पसंद करने लगे हैं, इसलिए इस बार ब्लशआन की जगह ब्रांजर ले सकते हैं. ब्रांजर के इस्तेमाल से फेस चिजेल्ड नजर आएगा साथ ही चेहरे पर सनकिस्ड लुक नजर आएगा.

एक फिट गहरे गढ्ढे में गाडा पति का शव

प्रेमी के साथ संबंध में जब पति ने टोकाटाकी की तो पत्नी ने केवल पति को मार दिया बल्कि उसका शव घर के स्टोररूम में 1 फिट गहरे गढ्ढे में गाढ दिया. पति की हत्या करते समय पत्नी को एक बार भी यह ख्याल नहीं आया कि इसके बाद उसके बेटों संदीप और रोहित का क्या होगा? परिवार की गरीबी के चलते अपनी पढाई छोड चुके संदीप और रोहित के सामने परेशानी यह है कि वह मां के जेल जाने और पिता की मौत के बाद अपना जीवन कैसे गुजरबसर करें?

अवैध संबंध केवल शहरी वर्ग या संस्कृति के लिये ही अभिशाप नहीं बन रहे है छोटे गरीब गांव में रहने वाले परिवार भी अवैध संबंधे की आग में झुलस रहे है. होली का त्योहार तो दूसरे से भी गले मिलने का होता है. उसमें कोई अपनों की हत्या कैसे कर सकता है. उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ से 22 किलोमीटर दूर गोसाईगंज इलाके में महमूदपुर गांव पडता है. कूढामउफ इस गांव का एक मजरा है. यहां पर 35 साल का राजकुमार रावत पत्नी रामरति के साथ रहता था. दोनो की शादी का 18 साल बीत चुके थे.

वैसे तो राजकुमार का अपना बडा परिवार था. उसके सभी भाई कमलेश, प्रभू, सुदंर, ब्रजेन्द्र और दीपक अलग अलग रहते थे. राजकुमार शादियों में बैड बजाने का काम करता था. जब शादियों का सीजन नहीं होता था तो वह मेहनत मजदूरी कर लेता था. राजकुमार और रामरति के दो बेटे 16 साल का संदीप और 12 साल का रोहित स्कूल पढने जाते थे. घर में पैसों की कमी के कारण स्कूल छोड दिया और खेती के काम में लग गये. राजकुमार ने बकरी पाली थी, उसकी यह दोनो बेटे ही देखरेख करते थे. रामरति का दिल पास के गांव में रहने वाले सुनील से लग गया. वह दोनो अक्सर अकेले में मिलने लगे. दोनो की मुलाकात में बच्चे बाधा न बने इसलिये रामरति बच्चों को घर से दूर दूसरे मकान में रखती थी. 23 मार्च होली के दिन रामरति को सुनील से मोबाइल से बात करते राजकुमार ने देख लिया. इसके बाद पतिपत्नी में झगडा हुआ.

रामरति ने पति राजकुमार को मारने के लिये शराब पिलाने की योजना बनाई. फोन करने के लिये माफी भी मांग ली. राजकुमार ने पत्नी को माफ कर दिया. रामरति ने शराब में पहले से मक्खी मारने वाली दवा मिला रखी थी. शराब पीने के बाद राजकुमार बेहोश हो गया. तब रामरति ने सुनील को घर बुलाया और गला दबा कर पति राजकुमार की हत्या कर दी. हत्या के बाद उसके शव को घर के कमरे में ही 1 फिट गहरा गढ्ढा खोद कर दबा दिया. पति के गायब होने के बाद रामरति ने उसको इधर उधर तलाश करना शुरू किया. 3 दिन बाद जब घर से बदबू उठने लगी तो राजकुमार के भाई ने रामरति को पुलिस में शिकायत करने के लिये कहा. तब रामरति ने पति राजकुमार की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई. पुलिस अधीक्षक ग्रामीण गोपेन्द्र यादव और एसओ गोमतीनगर अरविंद पाडेंय ने रामरति से पूछताछ की. तो उसने पूरी बात बताई. पुलिस ने घर के कमरे को खोलकर गढ्ढे से राजकुमार का शव बरामद किया. पुलिस ने हत्या और लाश छिपाने के आरोप में सुनील और रामरति को जेल भेज दिया.

6600 करोड़ की शादी

शादियां तो आप ने बहुत देखी होंगी लेकिन क्या कभी आप ने ऐसी शादी भी देखी है जिस ने दुनियाभर में वाहवाही बटोरी हो. वाहवाही बटोरने वाली बात तो थी ही, क्योंकि उस में करीब 6,600 करोड़ रुपए जो खर्च किए गए, जिस के कारण वह दुनिया की सब से कौस्टली वैडिंग बन गई. मौका था रूस के अरबपति तेल कारोबारी मिखाइल गुस्तेरीव के बेटे सईद गुस्तेरीव की शादी का, जिन्होंने मास्को के लग्जरी रेस्त्रां साफिशा में 20 वर्षीय खादिजा उजहाखोवा जो मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है से शादी की. देखने वालों की आंखें फटी की फटी रह गईं, क्योंकि अरेंजमैंट ही इतना कमाल का था.

गेस्ट्स के ऐंटरटेनमैंट में कमी न आए इस के लिए वर्ल्ड फेमस गायक जेनिफर लोपेज और एनरीज को 6 करोड़ रुपए दे कर बुलाया गया. उन्होंने अपनी बेहतरीन परफौर्मेंस से सब का दिल जीत लिया. पूरे वैन्यू को दुनियाभर के बेहतरीन फूलों से सजाया गया, जिस से पूरा वैन्यू महकता रहा. खाना ही शाही रखा गया. दुलहन खाजिदा का गाउन भी मामूली नहीं था बल्कि उसे पेरिस से 16 लाख रुपए दे कर डिजाइन करवाया गया, जिस का वजन ही कई किलो था और जब इस गाउन को पहन कर खादिजा हौल के लिए निकलीं तो उस गाउन को संभालने के लिए कई लोगों को उन के साथ चलना पड़ा. जिस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितना खास और हैवी होगा उन का गाउन. उन की पूरी ज्वैलरी डायमंड से बनी हुई थी तो उन की खूबसूरती में चारचांद लगा रही थी. सैलिबे्रशन को और रिच लुक देने के लिए मकान जितना बड़ा केक बनवाया गया जिसे फूलों से डैकोरेट किया गया था. हौल के बाहर एक दो लग्जरी कारें नहीं बल्कि सैकड़ों लग्जरी कारों की लाइन लगी हुई थी.समारोह के अंत में आतिशबाजी के साथ मेहमानो को कीमती तोहफे दे कर विदा किया गया. तो हुई न आलीशान शादी.

इन अजब गांवों के गजब हैं कायदे, आप भी जानिए

भारत अपनी संस्कृति, कला, आर्किटैक्ट, खानपान और बोलचाल की वजह से विश्व के मानचित्र पर एक अनोखी पहचान रखता है. यहां के प्रत्येक शहर और गांव की अपनी एक अलग विशेषता है. जहां एक तरफ देश के कई शहर अपनी आधुनिकता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाने जाते हैं, वहीं देश में मौजूद कुछ गांव अपनी भौगोलिक, राजनीतिक और पारंपरिक वजहों से प्रसिद्ध हैं.

हाल ही की बात है, भारतपाक बौर्डर पर स्थित ‘मुहार जमशेर’ नाम के गांव के लोग देश की आजादी के 69 वर्षों बाद भी 21 वर्षों से गुलामी का जीवन जी रहे थे. दरअसल, बौर्डर से लगभग 500 मीटर दूर होने पर भारत सरकार, सीमा सुरक्षाबल और होम मिनिस्ट्री को गांव के रास्ते पड़ोसी देश पाकिस्तान से आतंकियों के घुसने का डर रहता था, जिस के चलते गांव को 3 ओर से कंटीले तारों से बंद कर दिया गया था. इतना ही नहीं, गांव में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर से अपने खेत तक जानेआने के लिए रोजाना तलाशी की प्रक्रिया से गुजरना होता  था. लेकिन बीते दिनों सरकार ने तलाशी की इस प्रक्रिया को बंद कर दिया है. अब गांव में रहने वाले लोग खुद को देश में रहने वाले अन्य नागरिकों जैसा समझ पा रहे हैं और आजादी महसूस कर पा रहे हैं.

वैसे, इस गांव की ही तरह भारत में ऐसे कई गांव हैं, जो अनोखी प्रथा या अन्य कारणों से मशहूर हैं. आइए, हम आप को ऐसे ही कुछ गांवों के बारे में बताते हैं:

यहां मुफ्त मिलता है दूध

गुजरात के कच्छ जिले में बसा धोकड़ा एक ऐसा गांव है, जहां लोगों को रोजाना दूध मुफ्त में मिलता है. दरअसल, इस गांव में जिन के पास गायभैंस हैं, वे उन लोगों को मुफ्त में दूध देते हैं जिन के पास गायभैंस नहीं होती. इस तरह इस गांव में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को दूध की कमी नहीं होती.

संस्कृत बोलते हैं यहां के लोग

संस्कृत भारत की प्राचीन भाषा है. लेकिन अब यह भाषा सिर्फ स्कूलकौलेज की किताबों तक ही सीमित रह गई है. आम बोलचाल के लिए लोग हिंदी, अपनी क्षेत्रीय भाषा और अंगरेजी का ही प्रयोग करते हैं. लेकिन कर्नाटक के मुत्तुरु गांव में संस्कृत को ही मातृभाषा माना जाता है. यहां के लोग आज भी सिर्फ संस्कृत में बात करते हैं. गांव में सार्वजनिक स्थलों पर लगे बोर्ड पर भी संस्कृत ही लिखी रहती है.

इस गांव की कमाई है 1 अरब रुपए

उत्तर प्रदेश के अमरोहा जनपद के जोया विकास खंड क्षेत्र का एक छोटा सा गांव सलारपुर हर साल 1 अरब रुपए कमाता है. कारण है टमाटर. जी हां, गांव में बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती की जाती है और शायद ही भारत का कोई ऐसा शहर या गांव होगा जहां सलारपुर के टमाटर न बिकते हों. आंकड़ों पर विश्वास किया जाए तो यहां 5 माह में बिकने वाले टमाटरों से 60 करोड़ रुपए का कारोबार होता है.

जहां हर ओर दिखते हैं हमशक्ल

केरल के मलप्पुरम जिले में स्थित कोडिन्ही गांव को जुड़वों का गांव कहा जाता है. आंकड़े बताते हैं कि यहां 350 जुड़वा भाईबहन रहते हैं. मजे की बात तो यह है कि यहां नवजात से ले कर 80 साल के बुजुर्गों के भी जुड़वे हैं. विश्व स्तर पर कोडिन्ही को दूसरे नंबर पर सब से अधिक जुड़वे जोड़े पैदा होने वाले स्थान का खिताब प्राप्त है, जबकि नाइजीरिया के इग्बोओरा को प्रथम स्थान दिया गया है. कोडिन्ही में हर 1000 बच्चों में से 45 बच्चे जुड़वां पैदा होते हैं और गांव में हर जगह हमशक्ल दिखते रहते हैं.

हाथ लगाना मना है

हम जब किसी संग्रहालय जाते हैं, तो वहां जगहजगह लिखा रहता है कि ‘किसी भी वस्तु को हाथ लगाने पर जुर्माना देना पड़ सकता है’ कुछ ऐसा ही आप को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले स्थित मलाणा गांव में भी देखने को मिलेगा. यह गांव बड़ा ही विचित्र है. यहां भारतीय कानून नहीं चलता बल्कि यहां के अपने कायदे कानून हैं. सब से खास बात है कि यहां के लोग खुद को सिकंदर के सैनिकों का वंशज मानते हैं और गांव से बाहर के किसी भी व्यक्ति को खुद को और गांव के किसी भी वस्तु को हाथ नहीं लगाने देते हैं.

गांव में हर साल कई पर्यटक आते हैं, लेकिन उन के रुकने की व्यवस्था गांव के बाहर की जाती है. यदि किसी पर्यटक ने यहां आ कर किसी वस्तु को हाथ लगा लिया तो उसे 1000 रुपए या उस से भी अधिक जुर्माना भरना पड़ जाता है. गांव में जगहजगह नोटिस लगे हुए हैं, जिस में साफसाफ लिखा है, ‘‘यहां किसी भी वस्तु को हाथ लगाना मना है.’’

द सैटेनिक सैक्स

बुकर और नोबेल पुरस्कार विजेता मशहूर उपन्यासकार सलमान रुशदी की सैक्स की अपनी अलग भाषाशैली थी. उन की कुल 4 पत्नियों में से एक पूर्व पत्नी पद्मा लक्ष्मी की मानें तो सैक्स करने से इनकार करने पर सलमान बौखला जाते थे और अपशब्दों का प्रयोग करने लगते थे. अपनी आत्मकथा में पूर्व पति के सैक्स बरताव का खुलासा करते लक्ष्मी ने यह भी कहा है कि सलमान उन्हें बैड इन्वैस्टमैंट यानी घाटे का निवेश कह कर भी ताना देते थे. कुल जमा, वे एक कू्रर और संवेदनहीन पति थे. पति से उम्र में 21 साल छोटी लक्ष्मी के इन खुलासों से किसी को खास हैरानी नहीं हुई. उलटे, उसे उन की भड़ास माना गया. तलाक के बाद पूर्व पति के व्यवहार को उजागर करने का हक किसी पत्नी से छीना नहीं जा सकता लेकिन सैक्स निहायत ही व्यक्तिगत मामला है जिसे सार्वजनिक करने की लक्ष्मी की मंशा नेक तो कतई नहीं कही जा सकती. वे अपनी आत्मकथा को हिट कराने के लिए तो ऐसा नहीं कर रहीं. 

अम्मा चली भुनाने

देशद्रोह के कथित आरोपी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संगठन यानी जेएनयूएसयू के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के सिर पर 11 लाख रुपए का इनाम रखने वाले आदर्श शर्मा को जब पुलिस ने गिरफ्तार किया तो पता चला कि उस के बैंक खाते में केवल 150 रुपए ही हैं और वह दिल्ली के रोहिणी इलाके में किराए के मकान में रहता है और मूलतया कन्हैया के जिले बेगूसराय का ही है. किसी को जान से मारने के लिए उस के सिर पर इनाम रखने का रिवाज लोकतंत्र और कानून के खिलाफ है. लगता ऐसा है कि आदर्श को कन्हैया के जातिगत भेदभाव, छुआछूत और पंडावाद के खिलाफ अपनाए गए तेवर पसंद नहीं आए, लिहाजा उस ने बगैर अपनी आर्थिक स्थिति टटोले भारीभरकम इनामी राशि का ऐलान कर डाला. अब देखा यह जाना चाहिए कि कहीं यह राशि उसे कोई और तो स्पौंसर नहीं कर रहा था.

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