मेरी सहेली का 5 साल का बेटा बहुत चतुर है. एक बार वह अपनी दादी के साथ एक बुजुर्ग महिला की पगड़ी रस्म पर गया. फोटो पर डाले हुए फूलों के हार देख कर बोला, ‘‘दादीदादी, क्या यह आंटी कहीं चली गई हैं?’’ दादी के ‘हां’ कहते ही तपाक से बोल उठा, ‘‘दादी, यहां लोगों ने सफेद कपड़े तो पहन नहीं रखे हैं. टीवी पर तो सब लोग सफेद कपड़े पहन कर आते हैं.’’ उस की बात सुन कर पास बैठे सब लोग मुसकराए बिना न रह सके.

- कैलाश भदौरिया, गाजियाबाद (उ.प्र.)

*

मेरी बेटी शुभि कक्षा 4 में पढ़ती है. उस का बैंचपार्टनर एलेक्स बहुत मोटा है. शुभि को उस से शिकायत रहती कि उसे बैठने के लिए काफी जगह चाहिए और उस के पैर फैला कर बैठने की आदत से शुभि की कौपीकिताबें नीचे गिर जातीं. दोनों में अकसर झगड़ा होता. जब भी एलेक्स को गुस्सा आता वह अपनी मातृभाषा ‘मलयालम’ में जाने क्याक्या कहता, जिसे शुभि समझ न पाती. एक दिन वह मुझ से शिकायत करने लगी. मैं ने बात पर ध्यान नहीं दिया. उसे समझाया कि तुम भी अपनी मातृभाषा कुमाउंनी में बात करना. एक दिन उन दोनों का फिर से झगड़ा हुआ. एलेक्स मलयालम में कुछ कहता, इस से पहले ही शुभि ने मुंह बना कर कुमाउंनी में बोलना शुरू कर दिया.

एलेक्स ने आव देखा न ताव, टीचर से इस की शिकायत कर दी. टीचर भी मलयाली थी. उन्होंने पहले तो एलेक्स को गुस्सैल व्यवहार के लिए डांट लगाई, फिर शुभि से पूछा, ‘तुम ने क्या कहा?’

वह बोली, ‘बेडू पाकौ बारमासा, हो नरैयण काफल पाकौ चेता मेरी छैला.’

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