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जबरा और जबरदस्ती का ‘फैन’

शाहरुख़ खान अपने फैंस के लिए एक हिंदी मूवी लेकर आएं हैं 'फैन'. यह एक ऐसे लड़के गौरव चानना की कहानी है, जो फिल्म सुपरस्टार आर्यन खन्ना का जबरा फैन है और उस का इतना बड़ा दीवाना है कि उस से मिलने दिल्ली से मुंबई जा पहुंचता है. वहां उसे तब निराशा हाथ लगती है, जब वह लाख कोशिशों के बाद भी अपने हीरो से नहीं मिल पता है और उस से इस हद तक नफरत करने लगता है कि खुद विलेन बन जाता है.

ऐसा नहीं है कि इस तरह की फ़िल्में हिंदी सिनेमा में पहले नहीं बनी हैं. पर उन मे थोड़ा सा अंतर यह था कि हीरो और उस का फैन दोनों अलगअलग किरदार होते थे. साल 1971 में ऋषिकेश मुखर्जी ने 'गुड्डी' नामक फिल्म बनाई थी, जिस में जया भादुड़ी बच्चन को सुपरस्टार धर्मेंद्र की फैन के तौर पर दिखाया गया था. इस फिल्म में जया ने एक स्कूल की लड़की का किरदार निभाया था, जो बड़े परदे पर धर्मेंद्र के कारनामों से इतनी प्रभावित हो जाती है की उन्हें अपना सुपर हीरो समझ लेती है. उसे लगता है कि यह सुपर हीरो चाहे तो कुछ भी कर सकता है, लेकिन धर्मेंद्र खुद उस से मिल कर यह बताने की कोशिश करते हैं कि वे भी एक सामान्य आदमी इनसान हैं और फ़िल्मी दुनिया की चमकधमक इतनी भी उजली नहीं है.

ऐसा ही कुछ हिंदी फिल्म 'बॉंबे टाकीज' में भी देखने को मिला था. अनुराग कश्यप ने अपनी कहानी में अमिताभ बच्चन के साथ उन के फैंस के रिश्ते को बड़ी खूबी से दिखाया था.

इस फिल्म की कहानी का मुख्य किरदार है इलाहाबाद का एक नौजवान विजय, जिसे उस का बीमार पिता एक मुरब्बा दे कर कहता है कि वह मुंबई जाए और अमिताभ बच्चन को वह मुरब्बा चखाए. उस पिता ने एक बर्नी में बंद कर के उस मुरब्बे को कई दिनों से संभाल कर रखा था. पिता को यकीन था कि  अगर अमिताभ बच्चन उस मुरब्बे को चख लेंगे और बाकी बचा मुरब्बा वह खुद खा लेगा, तो उस की बीमारी ठीक हो जाएगी.

विजय मुंबई जाता है और अमिताभ बच्चन के घर के बाहर डेरा डाल लेता है, जिस से कि वह अपने पिता का सपना पूरा कर सके.

दरअसल, फिल्म कलाकारों और उन के प्रशंसकों के बीच कभीकभार एक अजीब सा रिश्ता बन जाता है कि स्टार की हर अदा फैन को उस का  दीवाना बनाती जाती है. फैन अपने हीरो या हीरोइन में अपना अक्स देखने लगता है. वह हर काम उसकी तरह करने कि कोशिश करता है, कभीकभार तो उस से प्यार तक करने लगता है. उसकी हर छोटी से छोटी बात को गांठ बांध लेता है.

अपने ज़माने के सुपर स्टार राजेश खन्ना ने लड़कियों को अपना दीवाना बना रखा था. सुनते हैं कि लड़कियां खून से प्रेम पत्र लिख कर उन को भेजती थीं. कई लड़कियों ने तो उन के नाम का टैटू बना लिया था.

मुंबई घूमने आए बहुत से सैलानी अपने पसंदीदा फिल्म कलाकार का घर देखते हैं. अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ खान, सलमान खान के घर के बाहर लोगों का हुजूम लगा रहता है और मौका मिलते ही ये कलाकार भी घर से निकल कर अपने फैंस का शुक्रिया अदा करते हैं.

लेकिन  कई बार फैंस अपनी हद पार कर जाते हैं. कुछ सिरफिरे तो हीरोइनों का पीछा करते हैं. उन के घर तक पहुंच जाते हैं. क्या ऐसे लोगों को फैन कहा जा सकता है? जो अपने पसंदीदा फिल्म सितारे को तकलीफ पहुंचाए वो काहे का फैन. वह तो जबरा नहीं बल्कि ज़बरदस्ती का  फैन ही कहा जाएगा.

स्मार्ट छुट्टियों के लिए ये हैं स्मार्ट एप्स

रोजाना की आवाजाही और पर्यटन के लिए हम जिस प्रकार सूचनाएं जुटाते हैं उसमें स्मार्टफोन ऐप क्रांतिकारी बदलाव लाने लगे हैं. चाहे सीट पक्की करनी हो या अपनी सीट पर खाना मंगवाना हो, यहां बताए जा रहे मोबाइल ऐप आपके रेल के सफर को बेहतर व सुविधाजनक बना देंगे. अगर आप के पास स्मार्टफोन है और आप अक्सर रेल यात्रा करते हैं तो संभव है कि आपके मोबाइल में यहां बताए गए एक-दो ऐप तो होंगे ही.

20 अरब डालर का ऐप बाजार विस्फोटक ढंग से प्रगति पर है और ट्रैवल ऐप बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं जिससे दैनिक यात्रियों व सैलानियों दोनों को बहुत फायदा हो रहा है. लगभग 2 लाख लोग हर रोज रेल से सफर करते हैं यहां कुछ पसंदीदा ट्रेन ट्रैवल ऐप्स के बारे में जानकारी दी जा रही है जिन्हें गूगल प्लेस्टोर से मुफ्त में डाउनलोड किया जा सकता है और आगामी गर्मियों की छुट्टियों में सफर के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. चूंकि इन दिनों लोग परिवार के साथ घूमने जाते हैं ऐसे में ये ऐप बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे.

ट्रेन पता कीजिए व उनकी उपलब्धता जानिए या पता लगाईए कि आपके पीएनआर नंबर के कन्फर्म होने की कितनी संभावना है

ट्रेनमैन – ट्रेनमैन आईआरसीटीसी की पुरानी प्रतीक्षा सूचियों के डेटाबेस के आधार पर तुलना कर के बताता है कि आपकी वेटिंग टिकट के कन्फर्म होने की कितनी संभावना है. यह ऐप वेटिंग टिकट की शुरुआती व अंतिम स्थिति को ट्रैक करता है, दोनों के बीच दिनों की गणना करता है व यात्रा के दिन को जानकारी में लेता है.

भारत में कहीं भी रेल में सफर करते हुए मनपसंद खाना प्राप्त करना है तो ट्राई कीजिए ट्रैवलखाना.

ट्रैवलखाना – अब कोई भी रेल यात्रा उम्दा भोजन के बगैर पूरी नहीं होगी और सबसे बढ़िया बात तो यह है कि गर्मागर्म स्थानीय पकवान अच्छी पैकिंग के साथ आपकी सीट पर पहुंचाए जाएंगे. ट्रैवल खाना एक ऐसा ही ऐप है जो आपकी सुविधानुसार स्वादिष्ट क्षेत्रीय खानपान आप तक पहुंचाता है उदाहरण के लिएः आगरा कैंट स्टेशन पर पंछी प्लेन ड्राई पेठा, भोपाल जंक्शन पर छैना मैंगो बर्फी, सवाई माधोपुर जंक्शन पर लस्सी व दाल कचैड़ी, पुणे जंक्शन पर लोनावाला चिक्की व मगनलाल चिक्की तथा और भी बहुत कुछ. आप मोबाइल ऐप से आर्डर कर सकते हैं और तुरंत वह आप तक पहुंचा दिया जाएगा. यह सेवा 160 स्टेशनों पर उपलब्ध है और वर्तमान में 3000-4000 भोजन प्रतिदिन डिलिवर किए जा रहे हैं. ट्रैवल खाना ने हाल ही में आईआरसीटीसी से ई-कैटरिंग के लिए गठजोड़ किया है.

किसी अन्य ट्रेन में टिकट की तलाश व बुकिंग करनी है तो  टिकट जुगाड़ भी बड़े जुगाड़ की एप है. इसके जरिये आपकी कई प्रोब्लम हल हो सकती हैं.

टिकट जुगाड़ – अगर अपने रूट पर आपको कन्फर्म टिकट नहीं मिल पाई तो टिकट जुगाड़ आपका मददगार बन सकता है. आपके बोर्डिंग स्टेशन से पहले या बाद वाले स्टेशन से उपलब्ध टिकट को यह स्वतः खोज लेता है और शेष टिकट कोटा भी बताता है. यह इन सभी को संयोजित कर के आपको वह अधिकतम रास्ता बताता है जिसे कन्फर्म टिकट पर तय किया जा सकता है.

रेल यात्रा का फैसला करने में सलाहकार रेलयात्री भी बेहतरीन विकल्प हैं.

रेलयात्री – रेलयात्री डाट इन एक ऐसा ऐप है विभिन्न मुसाफिरों को विविध सेवाएं प्रदान करता है. ऐप का दावा है कि वेटिंग टिकट के कन्फर्म होने या न होने की संभावना पर इसकी जानकारी की सटीकता 93 प्रतिशत है. यह रेलगाड़ी की रफ्तार मालूम करने, सीट पर खाना आर्डर करने, कैब बुक करने, यात्रा पूर्व सीटों की उपलब्धता पता करने और रेलवे टाईम टेबल जांचने आदि की सेवाएं देता है.

बेसब्री से इंतजार है मेडिसिनल चौकलेट का

चौकलेट खाना किसे अच्छा नहीं लगता. कोई भी, कितना भी कैलोरी का हौवा पैदा करे, चौकलेट से मुंह फेरना बड़ा मुश्किल है. अक्सर चौकलेट में पाए जानेवाले फैट और शुगर को मोटापे का कारण बता कर इससे दूर रहने की सलाह दी जाती है. बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक – चौकलेट के मुंह में घुलते रेश्म से नरम-मुलायम एहसास के सभी कायल हैं. चौकलेट सामने हो तो सेहत के प्रति सचेत लोग भी फैट और शुगर की चिंता छोड़ बेईमान करने पर आमादा हो जाते हैं.

वैसे यह भी सच है कि चौकलेट खाने के बहुत सारे फायदे भी हैं. सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि चौकलेट मुड को तरोताजा कर देता है. इसीलिए निराशा, अवसाद और तनाव ग्रस्त लोगों के लिए इंस्टैंट लाभ पहुंचाता है. ऐसे मरीजों को मनोचिकित्सक चौकलेट खाने की भी सलाह देते हैं. दरअसल, वैज्ञानिक तथ्य यह है कि इसमें पाया जानेवाले तरह-तरह के एंटी-औक्सीडेंट तत्व और कई तरह के खनिज स्नायूतंत्र को तरोताजा करते हैं. इतना ही नहीं, यह स्ट्रोक की गुंजाइश को कम करता है और हाई बल्ड प्रेशर के मामले में इसे कारगर माना जाता है. कहते हैं कि बल्ड प्रेशर को सामान्य बनाए रखने में सहायक माना जाता है.

सामान्य चौकलेट की तुलना में डार्क चौकलेट को सेहत के लिए गुणकारी माना जाता है. कुकिंग डार्क चौकलेट में कृत्रिम मिठास लगभग नहीं के बराबर होता है. जबसे डार्क चौकलेट की खूबियों का प्रचार होने लगा है तबसे बड़े-बड़े ब्रांड डार्क चौकलेट लेकर बाजार में उतर आए हैं. बहुत सारे ब्रांड के डार्क चौकलेट उपलब्ध आजकल बाजार में उपलब्ध हैं. पर इनमें डार्क चौकलेट की कितनी खूबियां हैं, यह अपने आपमें शोध का विषय है.

बहरहाल, अब न तो चिंता करने करने की जरूरत है और न ही बेईमानी की. जल्द ही बाजार में मेडिसिनल चौकलेट आ रहा है और इसे लेकर आ रही है एक अमेरिका के बोस्टन की एक कंपनी है कुका जोको. जिसने कुछ समय पहले मेडिसिनल चौकलेट बनाने का दावा किया है, जिसे शौक या स्वाद के लिए ही नहीं, बल्कि दवा की तरह ‍खाया जा सकता है. भारत में इस मेडिसिनल चौकलेट का बेसब्री से इंतजार हो रहा है.

आमतौर पर सामान्य चौकलेट में लगभग 70 प्रतिशत फैट और सुगर होता है. बाकी 30 प्रतिशत ककोआ और दूसरी अन्य सामाग्रियां. लेकिन वर्ल्ड चौकलेट फोरम में अमेरिकी कंपनी कुका जोको ने अपने मेडिसिनल चौकलेट के लिए दावा किया है कि इनके चौटलेट में फैट की मात्रा बहुत कम है. फिलहाल कंपनी ने सामान्य चौकलेट की तुलना में फैट और सुगर की मात्रा को 50 प्रतिशत घटा कर महज 35 प्रतिशत करने का दावा किया है कुका जोको ने. साथ में कंपनी का दावा यह भी है कि सेहत के लिहाज से इस चौकलेट को दवा के तौर पर भी नियमित रूप से खाया जा सकता है.

कुका जोको के प्रवक्ता और कंपनी के मुख्य वैज्ञानिक ग्रेगरी अहारोनियन ने वर्ल्ड चौकलेट फोरम में इस मेडिसिनल चौकलेट की खूबिया गिनाते हुए कहा कि सेहत के लिए जितना फैट नुकसानदेह है, उतना ही सुगर भी. आनेवाले समय में सुगर निकोटिन जितना खतरनाक साबित हो सकता है. इसीलिए सुगर बगैर चौकलेट को मीठा बनाने के लिए कुछ तरीके इजाद करना जरूरी था. इसी दिशा में लगातार कई वर्षों तक काम करने के लिए कंपनी को इसमें सफलता मिली है. 

गौरतलब है कि किसी भी तरह का चौकलेट क्यों न हो, उसका सबसे प्रमुख उपादान होता है ककोआ. जिस तरह कौफी बिन्स से कौफी प्राप्त किया जाता है, उसी तरह ककोआ बिन्स से भी चौकलेट प्राप्त किया जाता है. अपने आपमें ककोआ स्वाद में बहुत कडुवा होता है. इसके कड़वेपन को दूर करने के लिए चौकलेट निर्माता और कंफेक्शनर कंपनियां इसमें ढेर सारा सुगर, जो कि आमतौर पर कृत्रिम स्वीटनर होता है, मिलाती हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि स्वादिेस्ट बनाने और इसके टेक्सचर को सिल्की बनाने के लिए जिस पैमाने पर सुगर और फैट मिलाया जाता है, उसके नतीजा यह होता है कि ककोआ में पाए जाने वाले पोषक तत्व बड़े पैमाने पर नष्ट हो जाते हैं और तथाकथित तौर पर इसमें केवल स्वाद रह जाता है, जिसका ‘हेल्थ बेनिफिट’ लगभग नहीं के बराबर होता है.

अमेरिकी कुका जोको ककोआ की कहुवाहट को दूर करने के लिए बोलिविया और पेरू में पाया जानेवाला कुछ खास तरह के हर्ब का इस्तेमाल करती है. इसके अलावा ककोआ के पत्ते भी इसके बिन्स की कड़वाहट दूर करने के लिए काम में लाए जाते हैं. कंपनी का दावा है कि लंबे समय से शोध का नतीजा है कि कंपनी को इसमें सफलता मिली है. बोलिविया और पेरू के इन हर्बों का इस्तेमाल करने से एक तरफ ककोआ की कडुवाहट दूर हुई और दूसरी तरफ इसके पोषक तत्वों को भी बरकरार रखना संभव हो पाया है.

हालांकि कंपनी फैट और सुगर की मात्रा को और भी घटने के लिए लगातार शोध कर रही है. कंपनी का लक्ष्य इसे 10 प्रतिशत करने का है, जो फिलहाल 35 प्रतिशत है. जाहिर है सामान्य चौकलेट से नुकसानदेह सामग्रियों को कम कर दिया जाए तो मेडिसिनल चौकलेट का मजा अब बेरोकटोक के लिया जा सकता है. लेकिन अभी थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. बाजार में पहुंचने से पहले यह औनलाइन पर उपलब्ध होगा.

जब मध्य प्रदेश के राज्यपाल को होना पड़ा बीमार

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के 2 दिवसीय भोपाल दौरे के दौरान उनके आगमन से लेकर प्रस्थान तक प्रोटोकाल के लिहाज से माहौल कुछ कुछ सूना सूना सा था. एयरपोर्ट पर उनकी अगवानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की, तब राजनैतिक हस्तियों के आगमन प्रस्थान पर ड्यूटी बजाने का लम्बा तजुर्बा रखने वाले अधिकारियों को अहसास हुआ कि कमी राज्यपाल रामनरेश यादव की है, जिन्हें यहां होना चाहिए था और राष्ट्रपति को राजभवन तक ससम्मान ले जाना चाहिए था. पर रामनरेश यादव राष्ट्रपति के आने के एक दिन पहले ही एक स्थानीय प्रायवेट नर्सिंग होम बंसल हास्पिटल में भर्ती हो गए थे क्योंकि उनकी ‘तबियत’ खराब थी.

कोई मानने के लिए तैयार नहीं कि वे सचमुच में बीमार हुए थे बल्कि चर्चा यह रही कि राज्य के चर्चित महाघोटाले व्यापम में नाम होने के चलते राष्ट्रपति उनसे मिलना नहीं चाहते थे. गौरतलब है कि जब रामनरेश का नाम इस घोटाले में आया आया था तब वे भागे भागे राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे पर बेरूखी और सख्ती दिखाते प्रणब मुखर्जी ने उन्हें मिलने के लिए वक्त नहीं दिया था. राज्यपाल हो या मुख्यमंत्री किसी को भी राष्ट्रपति की आगवानी करने का मौका मिलना किस्मत की बात होती है पर रामनरेश की बदकिस्मती की तो यह इंतहा है कि उन्हें बीमार होकर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और 2 दिन ठाठ से राष्ट्रपति भोपाल के राजभवन में रूके और जाते जाते राजभवन की व्यवस्थाओं की भी तारीफ करते वहां के कर्मचारियों को नसीहत यह दे गए कि अपने राज्यपाल की सेहत का ख्याल रखना. यह मशवरा था या ताना, शायद ही कोई राजनैतिक विश्लेषक तय कर पाए.

जब पृथ्वीराज कपूर ने दबाए थे दिलीप कुमार के पैर

दिलीप कुमार के सामने रणबीर कपूर चौथी पीढ़ी के कलाकार है. इतना ही नहीं दिलीप कुमार और रणबीर कपूर के बीच सिर्फ दो मुलाकाते ही हुई हैं. पर इन मुलाकातों ने रणबीर कपूर के दिलो दिमाग में ऐसा असर किया है कि वह कभी उन्हे भुला नही सकते. दिलीप कुमार के साथ अपनी मुलाकात को याद करते हुए रणबीर कपूर कहते हैं, मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब मेरी पहली फिल्म ‘‘सांवरिया’’ रिलीज हुई थी, तो दिलीप साहब फिल्म के प्रीमियर पर आए थे. उस वक्त उनसे मेरी लंबी मुलाकात नहीं हो पायी थी. दूसरे ही दिन सुबह वह अपनी गाड़ी में मेरे घर के बाहर आए. घर के अंदर नहीं आए. उन्होंने हमारे घर के चैकीदार से कहा कि, ‘साहबजादे रणबीर को बाहर बुलाकर लाओ.’ मैं बाहर गया. उन्होंने मुझे नीचे बैठाया. फिर मेरे दादाजी, परदादाजी को लेकर कई किस्से सुनाए. फिल्मों को लेकर उन्होंने बहुत सी बातें सुनायी. उन्होंने परफार्मेंस को लेकर कई बातें कही. कुछ टिप्स भी दे दिए. दिलीप कुमार जैसे दिग्गज कलाकार का आशीर्वाद जब मिलता है, तो अपने आप आपके अंदर एक ऐसा आत्म विश्वास आ जाता है कि फिर आपको लगता है कि अब आपकी सारी राह आसान हो गयी है.

इस मुलाकात में कम से कम तीन घंटे हमारे बीच बातचीत होती रही. दिलीप कुमार साहब ने मेरे पापा या मेरे दादाजी को लेकर कुछ किस्से सुनाए. पर मुझे उनका सुनाया हुआ वह किस्सा मेरे दिलो दिमाग में बैठ गया, जो कि उन्होने मेरे ग्रैंड दादाजी यानी मेरे परदादा स्वर्गीय पृथ्वीराज कपूर को लेकर सुनाया.

दिलीप कुमार साहब और मेरे परदादा पृथ्वीराज कपूर ने एक साथ फिल्म ‘‘मुगल ए आजम’’ में काम किया था. फिल्म की शूटिंग चल रही थी. एक दिन दिलीप कुमार साहब सेट पर पहुंचे, तो कुछ बीमार थे. वह मेकअप रूम में जाकर बैठ गए. जब यह बात मेरे परदादा स्वर्गीय पृथ्वीराज कपूर को पता चली, तो वह दिलीप साहब के मेकअप रूम में गए और दिलीप कुमार साहब को अपनी गोद में बिठाया तथा उनके पैर दबाने लगे. फिर अपने चरित्रों की भी बात की. दिलीप कुमार साहब ने बताया कि यह वह दौर था, जब पृथ्वीराज कपूर और वह दोनों बहुत लोकप्रिय थे. दोनों के बीच जबरदस्त प्रतिस्पर्धा थी. इसके बावजूद उस दौर में यह कलाकार आपस में बड़े दिल के साथ व्यवहार करते थे. जबकि अब तो सभी कलाकार सेल्फिश हो गए हैं. सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं.

सुनील शर्मा ने फिर गढ़ा नया इतिहास

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अभिनेता सुनील शर्मा हमेशा कुछ नया रिकार्ड बनाते रहे हैं. हिंदी भाषी सीरियलों, राजस्थानी व हिंदी के अलावा दक्षिण की हर भाषा की फिल्मों में अभिनय कर चुके सुनील शर्मा के नाम के साथ कई रिकार्ड जुड़ चुके है. सुनील शर्मा दक्षिण भारत के उन चंद दिग्गज कलाकारों में से हैं, जिन्होने 2007 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘बुद्धा’’ में शीर्ष भूमिका निभाकर एक नया रिकार्ड बनाया था. अप्रवासी भारतीय फिल्मकार के राजशेखर ने हिंदी, अंग्रेजी और तेलगू में अंतरराष्ट्रीय स्तर की फिल्म ‘‘बुद्धा’’ का निर्माण किया था. इस फिल्म को ग्यारह विदेषी भाषाओं में डब किया गया था और इसका विश्व प्रीमियर 14 दिसंबर 2007 को अमरीका में हुआ था.

दक्षिण चर्चित फिल्मकारों बापू व रामोजी राव के साथ कई फिल्मों व धारावाहिकों में मुख्य भूमिका निभा चुके सुनील शर्मा अब पहली बार भोजपुरी भाषा की राजाराम कनौजिया की फिल्म ‘‘रानी हम हो गइली तोहार’’ में मुख्य विलेन बनकर आ रहे हैं. लेखक व निर्देशक प्रकाश आंनद की इस फिल्म में राजस्थानी फिल्मों की चर्चित अदाकारा नेहा श्री हीरोईन और गौरव झा हीरो हैं.

मजेदार बात यह है कि हर कलाकार किसी न किसी ईमेज में कैद हो जाता है. लेकिन भगवान शंकर, राम, कृष्ण जैसे धार्मिक किरदार निभाने के अलावा वह कई फिल्मों में खलनायक व नायक के किरदार निभा चुके हैं. सुनील शर्मा पहले भारतीय अभिनेता हैं, जिन्हे अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘मिशीमी’ के मुख्य पृष्ठ पर जगह मिली.

राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह

भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रवाद का नारा-धर्म खतरे में है, प्रलय निकट है, पाप का घड़ा भरने लगा है, इंद्र नाराज हैं, जैसा है. जैसे राम के युग में ब्राह्मणों ने राम के दरबार में दुहाई लगाई थी कि एक शूद्र के पढ़ने के कारण विनाशकाल आ रहा है, वैसा ही कुछ भारतीय जनता पार्टी आज कर रही है.

जहां तक देश की एकता, अखंडता, आंतरिक व्यवस्था का मामला है, देश में हर जगह शांति ही है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के गंगा ढाबा को छोड़ दें. हरियाणा में जाटों द्वारा उत्पात मचाया गया लेकिन उन के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का कोई मामला नहीं दर्ज हुआ, हैदराबाद में कापुओं ने तोड़फोड़ की लेकिन उन के खिलाफ भी राष्ट्रद्रोह का मामला नहीं बनाया गया. महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी शिवसेना गैरमराठियों के खिलाफ हल्ला मचा रही है जिसे भारत की एकता के खिलाफ कहा जा सकता है पर चूंकि शिवसेना वाले ‘भारत माता की जय’ का नारा लगा देते हैं इसलिए उन का जुर्म भी माफ हो जाता है.

देश के कई हिस्सों में पशुओं का शिकार करने वालों पर आक्रमण हो रहे हैं और आक्रमण करने वाले चूंकि भगवाधारी होते हैं इसलिए वे भी राष्ट्रवादी ही हैं, वे भी अखंडता के लिए खतरा नहीं हैं. जम्मूकश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पार्टी के साथ साझा सरकार है, इसलिए भारतीय जनता पार्टी को वहां भी राष्ट्र की अखंडता को कोई खतरा नजर नहीं आ रहा चाहे महबूबा ‘भारत माता की जय’ न कहें.

सरकारी नियमों और सरकारी निकम्मेशाही के कारण देश की अस्मिता, विकास पर हर रोज प्रहार होता है और जिस के चलते अरुण जेटली के भ्रम पैदा करने वाले आंकड़े सामने आते हैं. नतीजतन भारत दुनिया में धीरेधीरे नीचे खिसक रहा है, यह भी राष्ट्रविरोध के दायरे में नहीं आता.

धार्मिक रीतियों, साधुसंतों के कार्यक्रमों के चलते यमुना नदी का तट बरबाद हो जाए, फिर भी वह राष्ट्रविरोधी नहीं है चूंकि वह पुण्य का काम है. देशभर के सर्राफा व्यापारी कैसे हड़ताल पर हैं, यह राष्ट्रविरोधी फैसला है या नहीं, यह सवाल पूछा ही नहीं जा सकता.

तो फिर कौन से परमाणु बादल छाए हैं कि भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रवाद को बचाने के लिए छाता ले कर खड़ी हो गई है? यह क्या नाटकबाजी है कि जिसे देखो उस का राष्ट्रप्रेम अचानक उबाल मारने लगा. विजय माल्या या ललित मोदी का भाग जाना देशविरोधी नहीं है, जिस के खिलाफ अमित शाह, शिवाजी वाला बख्तर पहन कर खड़े होने लगे हैं.

यह देशप्रेम असल में धर्मादेशप्रेम है. धर्म की तूती बोलती रहे और उस धर्म, जिसे पुराणों ने दिया, जिस में भेदभाव, पापपुण्य, पूजापाठ, हवन, व्रत, मंदिर निर्माण, नीचों व औरतों को स्थान पर रखना हो आदि, को हर व्यक्ति सिर पर रखे, उसे माने, यही भाजपा की इच्छा है.

भाजपा को स्वतंत्रता है कि वह इस तरह का नारा लगाए. उसे यह संवैधानिक स्वतंत्रता है कि वह हर व्यक्ति को राष्ट्रद्रोही कहे जो जय श्रीराम, जय राधेराधे, जय हरहर गंगे, भारत माता की जय न कहे. पर वह किसी को मजबूर नहीं कर सकती. दूसरा व्यक्ति इस का प्रतिवाद करने का हक रखता है. भारत को मां माना जाए या सिर्फ देश, यह हर व्यक्ति का राय रखने का अपना संवैधानिक अधिकार है.

हमारा राष्ट्रगान ‘जय हे, जय हे’ कहता है, भारत माता की जय नहीं. और जो नहीं कहा गया उसे आजादी के 69 साल बाद थोपा नहीं जा सकता. भाजपा इस मामले पर पुलिस या भीड़ के जरिए किसी तरह की जबरदस्ती कराने का अधिकार नहीं रखती.

फिल्म इंडस्ट्री को समझने में वक्त लगता है: पंकज त्रिपाठी

बौलीवुड में पिछले दो तीन वर्षों से सिनेमा में बदलाव की लंबी चौड़ी बातें की जा रही हैं. पर जमीनी हकीकत यह है कि बौलीवुड की कार्यशैली में अभी भी कोई खास बदलाव नहीं आया है. आज भी फिल्मकार लकीर के फकीर बने हुए हैं. आज भी हर फिल्मकार प्रपोजल बनाने में लगा हुआ है. जिसके चलते आज भी गैर फिल्मी परिवारों और छोटे शहरों से आने वाले प्रतिभाशाली कलाकारों को फिल्मों में काम मिलना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. यही वजह है कि ‘‘गैंग आफ वासेपुर’’ के दोनों भागों में सुल्तान का किरदार निभाकर चर्चा में आए अभिनेता पंकज त्रिपाठी का पूरे 12 साल बाद भी संघर्ष खत्म नहीं हुआ है. जबकि वह अब तक ‘‘फुकरे’, ‘सिंघम रिटर्न’, ‘दिलवाले’, ‘मसान’ सहित कई सफलतम व बड़े बजट की फिल्मों का हिस्सा रहे हैं. इन दिनों वह अश्विनी अय्यर तिवारी निर्देशित फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ में सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल व गणित के शिक्षक की भूमिका को लेकर चर्चा में हैं. पंकज त्रिपाठी का मानना है कि उन्हें फिल्म इंडस्ट्री की अतरंगी चाल समझने में 12 साल लग गए.

आखिर छोटे शहरों से आने वाले प्रतिभाशाली कलाकारों को उनकी प्रतिभा दिखाने का सही अवसर क्यों नहीं मिल पाता? इस पर अपने निजी अनुभवों व समझ के आधार पर अभिनेता पंकज त्रिपाठी कहते हैं- ‘‘संघर्ष करना पड़ा. इसकी मूल वजह यह है कि हम गैर फिल्मी परिवार से आए हैं. फिल्म इंडस्ट्री का हम हिस्सा नहीं थे, तो फिल्म इंडस्ट्री की कार्यशैली वगैरह को समझने में थोड़ा समय लगा. संघर्ष की सबसे बड़ी वजह यह है कि हमारे यहां सिनेमा में प्रोजेक्ट बनते हैं. मैं एक अच्छा अभिनेता हूं, यह बात निर्देशक जानता है. पर वह यह भी जानता है कि यदि वह मुझे लेकर चार करोड़ की फिल्म बनाएगा, तो उसे कोई निर्माता नहीं मिलेगा. तो यहां निर्माता और निर्देशक सभी फिल्म का निर्माण शुरू करने से पहले कागज पर ही लागत वसूल कैसे होगी? इसका गुणा भाग करते हैं.

हमें यह याद रखना चाहिए कि सिनेमा सिर्फ कला नहीं व्यवसाय भी है. इसलिए स्वाभाविक है कि निर्माता यानी जो पैसा लगाएगा, उसे वसूल करने के बारे में सोचेगा. वह दिमागी तौर पर खुद को सुरक्षित महसूस करता ही है. निर्माता सोचता है कि सलमान खान या फलां खान ने मेरी फिल्म करने के लिए हामी भर दी है. तो मैं सुरक्षित हो गया हूं. अब बाक्स आफिस पर क्या होता है? वह अलग मुद्दा है. क्योंकि बाक्स आफिस पर सफलता की गारंटी कोई दे ही नहीं सकता. सभी मान रहे है कि शाहरुख खान की बड़े बजट की फिल्म ‘दिलवाले’ फ्लाप हो गयी. पर उसे नुकसान नहीं हुआ. ‘दिलवाले’ ने विदेशों में बहुत कमायी की.’’

क्या स्टार संस या स्टार डाटर की वजह से गैर फिल्मी परिवार से आने वालों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है? इस पर पंकज त्रिपाठी कहते हैं-‘‘मैंने पहले ही कहा कि यहां प्रोजेक्ट बनते हैं. लोग सोचते हैं कि यदि उन्होने जैकी श्राफ के बेटे टाइगर श्राफ को लेकर फिल्म बनायी, तो उन्हें अपने आप थोड़ा प्रचार मिल जाएगा. मीडिया में चर्चा मिल जाएगी कि स्टार का बेटा आ रहा है. निर्माता सोचता है कि एक स्टार के बेटे का आकर्षण दर्शकों को उनकी फिल्म तक खींच लाएगा.’’

पंकज त्रिपाठी आगे कहते हैं- ‘‘दूसरी बात बालीवुड हो या पत्रकारिता हो या कोई अन्य क्षेत्र, कहीं भी कोई अपनी सही भूमिका नहीं निभा रहा है. मैं किसी को भी सही या गलत नहीं ठहरा रहा हूं. पत्रकारिता में भी एक उम्दा जगह बनाने में एक अच्छे पत्रकार को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. उसी तरह फिल्म उद्योग में भी अपनी प्रतिभा को साबित करने के साथ साथ यहां टिकने की कला भी सीखनी पड़ती है. अपनी मार्केटिंग करने की भी कला आनी चाहिए. छोटे शहरों से आने वाले हम जैसे कलाकारों के पास अपनी प्रतिभा के अलावा कुछ नहीं होता है. 12 साल बाद मुझे मार्केटिंग की कला समझ में आयी है. हम 16 आने काम करने के बावजूद चार आने बात करते हैं. कुछ कलाकार ऐसे हैं, जो चार आने काम करते हैं और 16 आने बात करते हैं. एक शब्द में यदि मैं कहूं तो हर इंसान या हर कलाकार शोबाजी नहीं कर पाता. हम छोटे शहर वालों  को फिल्म इंडस्ट्री की आंतरिक कलाबाजीयां पता नहीं है. हमें यह समझने में 12 साल लगे कि फिल्मी पार्टी वगैरह में क्यों जाना चाहिए? सीखने समझने में वक्त लगता है. कई बार सीखने समझने के बाद भी कुछ लोगों को लगता है कि वह महज चर्चा में आने के लिए इतना नीचे नहीं गिर सकता. हर इंसान का अपना व्यक्तित्व होता है. मेरे अभिनय मे कुछ अलग बता नजर आती है, तो स्वाभाविक तौर पर मेरा व्यक्तित्व अलग है.’’

अद्भुत है हुबली की उन्कल झील

कर्नाटक राज्य का प्रमुख शहर हुबली. इसे धारवाड़ के जुड़वां शहर के नाम से भी जाना जाता है. यह कर्नाटक के धारवाड़ जिले का प्रशासनिक मुख्यालय, उत्तरी कर्नाटक का वाणिज्यिक केंद्र भी है. राज्य की राजधानी बेंगलुरु के बाद यह राज्य का विकासशील औद्योगिक, आटोमोबाइल और शैक्षणिक केंद्र है.

ऐतिहासिक शहर हुबली की उत्पत्ति चालुक्यों के समय की है. यह पूर्व में रायरा हुबली या इलेया पुरावदा हल्ली और पुरबल्ली के नामों से जाना जाता रहा है. यह साउथ वैस्टर्न रेलवे का डिवीजन भी है. इसलिए इस नगर का महत्त्व कुछ ज्यादा ही है. हुबली कमर्शियल सिटी है, इसलिए इस शहर को छोटा मुंबई भी कहा जाता है.

यहां की 110 साल पुरानी उन्कल झील का आनंद लेने के लिए पर्यटकों को जरूर जाना चाहिए. यह अपने शांत और सुरम्य वातावरण के लिए लोकप्रिय है. 200 एकड़ के क्षेत्र में फैली यह झील पर्यटकों द्वारा हुबली का सब से ज्यादा घूमा जाने वाला आकर्षण है. मनोरंजक गतिविधियों के अलावा पर्यटक यहां पर शाम को सूर्यास्त का सुंदर दृश्य भी देख सकते हैं. इस स्थान का प्रमुख आकर्षण झील के बीच में स्थित स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा है. झील के आसपास हराभरा बगीचा देख कर पर्यटकों का मन प्रफुल्लित हो उठता है.

नौकायान के शौकीन लोगों को बोट में घूमने का मौका दिया जाता है. छोटी बोट में 4-5 लोग बैठ कर पैडल मारते हुए खुशी से आगे बढ़ते हैं. बड़ी बोट में बहुत सारे लोग एकसाथ बैठ कर खुशी से झूम उठते हैं. झील के किनारे पैदल जाना मन को खुशी से भर देता है. वहां बैठ कर झील के विहंगम दृश्य का नजारा ले सकते हैं. झील के चारों ओर आकर्षक रोशनी की व्यवस्था की गई है.

इंदिरा गांधी ग्लास हाउस: अगर आप हुबली जाएं तो इंदिरा गांधी ग्लास हाउस की प्रसिद्ध पुष्प प्रदर्शनी अवश्य देखने जाएं. यह ग्लास हाउस बेंगलुरु के लाल बाग गार्डन की तरह है. यहां स्केटिंग ग्राउंड के अलावा घास के हरेभरे मैदान हैं.

मारुति वाटर पार्क और वर्ल्ड पार्क : हुबली शहर में स्थित मारुति वाटर पार्क और वर्ल्ड पार्क पर्यटकों को आराम व मनोरंजन का बेहतर औप्शन देते हैं. ये पार्क करवार रोड पर ईएसआई अस्पताल के नजदीक हैं. यहां के वाटर गेम्स व राइड्स को बच्चे खासा पसंद करते हैं.

बूंद गार्डन

उन्कल झील को देखने आए पर्यटकों को जानेमाने बूंद गार्डन को देखने की सलाह दी जाती है. हुबली से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह बगीचा उन्कल झील का ही भाग है, जहां के शांत वातावरण में पर्यटक आनंदित हो सकते हैं.

कुल मिलाकर हुबली की उन्कल झील ही सैलानी का पसंदीदा ठौर इसलिए भी है क्योंकि वहां आ कर न सिर्फ शहरों की भागदौड़ भरी नीरस जिंदगी से ताजगी भरा बे्रक मिलता बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य के अद्भुत खजाने से रूबरू होने का मौका मिलता है. अगर अब तक आप ने पर्यटन का आगामी प्रोग्राम नहीं बनाया है तो निश्चित तौर पर उन्कल झील का प्लान बना लीजिए.  

कैसे जाएं

वायुमार्ग : प्रमुख भारतीय शहरों से जोड़ने वाला हुबली हवाई अड्डा यहां का सब से नजदीकी हवाई अड्डा है. यह शहर के केंद्र से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर है. 186 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोआ का डबोलिक हवाई अड्डा सब से नजदीकी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है. यह हवाई अड्डा प्रमुख भारतीय शहरों के साथसाथ अंतर्राष्ट्रीय स्थानों से भी भलीभांति जुड़ा है. डबोलिक हवाई अड्डे से यहां पहुंचने के लिए कई मौसमी चार्टर्ड उड़ानें भी उपलब्ध रहती हैं.

रेलमार्ग : हुबली रेलवे स्टेशन यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है. यह मुख्य शहर से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर है. बेंगलुरु और मैंग्लौर जैसे भारत के प्रमुख शहरों से हुबली भलीभांति जुड़ा है. यहां पहुंच कर यात्री टैक्सी ले कर मुख्य शहर तक पहुंच सकते हैं.

सड़कमार्ग : हुबली बस सेवाओं द्वारा मैंग्लौर, पुणे, मैसूर, बेंगलुरु, गोआ और मुंबई से भलीभांति जुड़ा है. प्राइवेट निजी बसों, वोल्वो बसों और एन डब्लू के आरटीसी (नौर्थवेस्ट कर्नाटक सड़क परिवहन निगम) की बसें इन स्थानों से हुबली के लिए नियमित रूप से चलती हैं.

पर्यटकों को रिझाता भूटान

हरियाली चादर ओढ़े पर्वतमालाएं, गहरी घाटियां, कलकल करती नदियां, पगपग पर गिरते पहाड़ी झरने, पहाड़ों से अठखेलियां करते रूई के फाहे जैसे बादल, सर्पाकार टेढ़ेमेढ़े पहाड़ी रास्ते, चावल के हरेभरे खेत, फलों से लदे सेब के बगीचे, भव्य, सुंदर चित्रकारी से सजे बौद्ध मंदिर, मठ, स्तूप, पारंपरिक स्थापत्य शैली में बनी इमारतें, भव्य प्रवेशद्वार, शानदार पुल और बहुत कुछ. ये सब नजारे भूटान की खासीयतें हैं. यहां के लोग अपनी विरासत, संस्कृति, परंपराओं और रीतिरिवाजों पर न केवल गर्व करते हैं बल्कि उन का दिल से सम्मान भी करते हैं.

हिमालय के पहाड़ों में बसे भूटान का कुल क्षेत्रफल 38,390 वर्ग किलोमीटर और आबादी 7,53,900 है. भूटान की मुद्रा नगूलट्रम है जिस की विनिमय दर एक भारतीय रुपए के बराबर है. वहां की राष्ट्रभाषा जोंगखा है. वहां की राष्ट्रीय पोशाक पुरुषों के लिए घो और महिलाओं के लिए कीरा है. भूटान बज्रयानी बौद्ध धर्म वाला देश है. ज्यादातर लोग भूटानी पोशाक पहनना ही पसंद करते हैं. तीरंदाजी के साथ फुटबौल का खेल भी भूटान में काफी लोकप्रिय है. भूटान का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पारो में है. आमतौर पर पर्यटक थिंपू, पुनाखा एवं पारो तक ही अपना भ्रमण सीमित रखते हैं. इन तीनों जगहों को अच्छी तरह से घूमने के लिए 7 दिन का समय काफी है. 2 दिन थिंपू, 1 दिन पुनाखा और 3 दिन पारो में रुक कर पर्यटक इन जगहों के दर्शनीय स्थलों को आसानी से देख सकते हैं.

थिंपू के ठाट

भूटान की राजधानी थिंपू है. यह शहर वांगछू नदी के किनारे समुद्रतल से 2,400 मीटर की ऊंचाई पर बसा है. शहर के केंद्र में 4 समानांतर सड़कें हैं. इन्हीं सड़कों पर मुख्य बाजार, होटल, रेस्तरां, शासकीय कार्यालय, स्टेडियम, बगीचे आदि हैं. रिहायशी इलाका घाटी में काफी दूर तक फैला है. आधुनिकता की दौड़ में शामिल इस शहर में बहुमंजिली इमारतें एवं अपार्टमैंट्स काफी तादाद में बन रहे हैं पर इन का निर्माण भूटान की पारंपरिक स्थापत्य शैली में हो रहा है जिस से शहर का पारंपरिक सांस्कृतिक परिवेश सुरक्षित एवं संरक्षित है. थिंपू में कई दर्शनीय स्थल हैं.

मैमोरियल चोरटन : इस स्तूप का निर्माण भूटान के तीसरे राजा जिगमे दोरजी वांगचुक की स्मृति में 1974 में कराया गया. राजा जिगमे दोरजी वांगचुक को आधुनिक भूटान का जनक माना जाता है. इस स्मारक की मूर्तियां एवं चित्र दर्शनीय हैं.

सिमटोका जोंग : इस बौद्ध मंदिर का निर्माण 1627 में शबदरूंग नगवांग नामग्याल द्वारा कराया गया. मंदिर के बाहरी कौरिडोर में प्रार्थनाचक्रों के पीछे लगे 300 से ज्यादा बौद्ध धर्म के कलात्मक चित्र इस मंदिर की खासीयतें हैं.

ताशीछोए जोंग : 1641 में बनी इस इमारत का पुनर्निर्माण राजा जिगमे दोरजी वांगचुक द्वारा 1965 में कराया गया. वर्तमान में इस इमारत में दरबार हौल एवं सचिवालय हैं. शनिवार एवं रविवार को पर्यटकों के लिए यह पूरे दिन खुला रहता है. बाकी दिनों में शाम 5 बजे के बाद ही पर्यटक इस में प्रवेश कर सकते हैं.

चांग का लहखांग : इस बौद्ध मंदिर एवं मठ की स्थापना 12वीं शताब्दी में लामा फाजो रूजौम शिगपो द्वारा की गई. मंदिर परिसर से थिंपू शहर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है.

बुद्धा पौइंट : थिंपू शहर के निकट एक ऊंची पहाड़ी पर बुद्ध की 51.5 मीटर की विशालकाय धातु प्रतिमा एक ऊंचे अधिष्ठान पर स्थापित है. इसे बुद्धा पौइंट कहते हैं. यहां से थिंपू शहर काफी सुंदर दिखाई देता है.

नेचर पार्क : बुद्धा पौइंट के पास ही नेचर पार्क है. यह पार्क भूटान के हालिया राजा के शाही विवाह को समर्पित है. पर्यटक इस उद्यान के प्राकृतिक परिवेश में कुछ समय गुजार सकते हैं.

द फौक हेरीटेज म्यूजियम : इस संग्रहालय में भूटान की ग्रामीण संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. संग्रहालय में 19वीं सदी के एक तीनमंजिला घर को उस के मूल स्वरूप में ही संरक्षित किया गया है. यह घर मिट्टी एवं लकड़ी से बना है.संग्रहालय में एक म्यूजियम एवं कैंटीन भी है.

नैशनल टैक्सटाइल म्यूजियम : इस संग्रहालय में भूटान की पारंपरिक वस्त्र निर्माण कला के इतिहास, कपड़ों की बुनाई की तकनीक तथा वस्त्रों पर की गई कलात्मक चित्रकारी की जानकारी मिलती है. संग्रहालय की संरक्षिका भूटान की रानी हैं.

क्राफ्ट बाजार : इस बाजार में 100 से ज्यादा दुकानें हैं जहां पर्यटक भूटानी हैंडीक्राफ्ट की कलात्मक कलाकृतियां, भूटानी परिधान, भूटानी संस्कृति से संबंधित सामग्री, सजावटी सामान खरीद सकते हैं.

राष्ट्रीय ग्रंथालय : इस ग्रंथालय में भूटान के इतिहास, संस्कृति से संबंधित दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथ, अभिलेख, आधुनिक ज्ञानविज्ञान के ग्रंथ बड़ी संख्या में संगृहीत हैं. इतिहास में रुचि रखने वालों एवं शोधकर्ताओं के लिए यह ग्रंथालय बहुत ही अहम है.

चिडि़याघर : यहां का चिडि़याघर काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है. इस चिडि़याघर का खास आकर्षण टेकिन है जो भेड़ एवं याक का मिलाजुला रूप है.

पुनाखा

पुनाखा भूटान का एक प्रमुख शहर है जो समुद्रतल से 1,300 मीटर की ऊंचाई पर पोछू (पितृरूप) एवं मोछू (मातृरूप) नदियों के किनारे बसा है. पुनाखा भूटान की पहली राजधानी रही है. पुनाखा थिंपू से 77 किलोमीटर दूर है. पुनाखा के दर्शनीय स्थल हैं :

दोचूला पास : थिंपू से पुनाखा के रास्ते पर 25 किलोमीटर दूर दोचूला पास है. समुद्रतल से इस स्थान की ऊंचाई 3,020 मीटर है. यहां पहुंचते ही ठंडी हवा के झोंके पर्यटकों का स्वागत करते हैं. यहां पर बौद्ध मंदिर एवं 108 स्तूपों का समूह देखने लायक है. पर्यटक यहां से खुले मौसम में हिमालय की बर्फीली चोटियों का दिलकश नजारा देख सकते हैं.

चिमी लहखांग : थिंपू से पुनाखा आते समय पुनाखा से पहले, सड़क से लगभग 1 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर यह लहखांग बौद्ध मंदिर एवं मठ स्थित है. सड़क से यहां तक आने के लिए पर्यटकों को पगडंडीनुमा रास्ते से हो कर गुजरना पड़ता है जो धान के खेतों के बीच से हो कर जाता है, जिस का अपना अलग ही मजा है. यह बौद्ध मंदिर 15वीं सदी की बौद्ध भिक्षुणी लामा ड्रकपा कुअनले को समर्पित है.

पुनाखा जोंग : यह पुनाखा का ही नहीं बल्कि भूटान का सब से बड़ा और प्रमुख बौद्ध मंदिर है. भूटान की 2 प्रमुख नदियों (पोछू एवं मोछू) के संगम पर स्थित बौद्ध मंदिर एवं मठ का निर्माण 1637 में शबदरूंग नगवांग नामग्याल द्वारा प्रशासकीय कार्यों के संपादन के लिए कराया गया था. इस बौद्ध मंदिर एवं मठ तक पर्यटक नदी पर पारंपरिक शैली में बने बेहद खूबसूरत पुल से हो कर जाते हैं. यह पुल अपनेआप में दर्शनीय है.

लहखांग नन्नोरी : इस बौद्ध मंदिर में अवलोकितेश्वर की 14 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा स्थापित है जो भूटान की बड़ी बौद्ध प्रतिमाओं में से एक है. इस के अलावा इस मंदिर में स्थापित गुरु पद्मसंभव, गौतम बुद्ध, शबदरूंग नगवांग नामग्याल एवं अन्य बौद्ध प्रतिमाएं भी दर्शनीय हैं. इस मंदिर परिसर में बौद्ध ननों को सिलाई, कढ़ाई, मूर्तिकला एवं थंका चित्रकला भी सिखाई जाती है. पुनाखा के आसपास टालो, रितशा गांव, खमसुम युली, नामग्याल चोरटन आदि भी दर्शनीय स्थल हैं.

नंबर वन पारो

पारो भूटान का तीसरा बड़ा शहर एवं पर्यटन के लिहाज से नंबर एक शहर है. पारो समुद्रतल से 2,200 मीटर की ऊंचाई पर पाछू (पारो) नदी के किनारे बसा है. भूटान का एकमात्र हवाई अड्डा पारो में ही है. यदि पर्यटक पारो के दर्शनीय स्थलों को अच्छी तरह एवं पूरा मजा लेते हुए देखना चाहते हैं तो पारो में कम से कम 3 दिन रुकना जरूरी है.

तकशांग लहखांग : टाइगर नैस्ट के नाम से मशहूर बौद्ध मठों का यह समूह पारो घाटी की सतह से लगभग 900 मीटर की ऊंचाई पर एक दुर्गम पहाड़ी के आखिरी सिरे पर बना है. यह भूटान का राष्ट्रीय स्मारक है. यहां तक पहुंचने के लिए पहाड़ी चढ़ाई वाला दुर्गम रास्ता है जो पर्यटकों को पैदल ही तय करना पड़ता है. पगडंडीनुमा कच्चे रास्ते से पहाड़ के ऊपर पहुंच कर सीढि़यों से काफी नीचे उतर कर फिर ऊपर चढ़ने के बाद इस स्मारक तक पहुंचते हैं. पर्यटक चाहें तो आधी चढ़ाई टट्टू द्वारा कर सकते हैं लेकिन बाकी रास्ता तो पैदल ही तय करना पड़ेगा. हालांकि इस स्थल का पहुंचमार्ग अत्यंत दुर्गम एवं कष्टप्रद है पर इसे देखे बिना पर्यटकों का भूटान भ्रमण अधूरा ही माना जाएगा.

रिनपंग जोंग : यह पारो का प्रमुख मठ है. इस का निर्माण 1646 में शबदरूंग नगवांग नामग्याल द्वारा कराया गया. मठ होने के साथसाथ इस में जिला प्रशासनिक प्रमुख का कार्यालय एवं जिला न्यायालय भी लगता है.

ता जोंग : इस इमारत का निर्माण 17वीं सदी में रिनपंग जोंग की सुरक्षा हेतु वाच टावर के रूप में किया गया. 1967 में इस में भूटान का राष्ट्रीय संग्रहालय स्थापित किया गया.

दंगसे लहखांग : स्तूपनुमा इस बौद्ध मंदिर का निर्माण 1433 में लौहपुल निर्माता थंगटोंग गैलपो द्वारा कराया गया. इस मंदिर में बने चित्र भूटान की उत्कृष्ट चित्रकला के शानदार नमूने हैं.

राष्ट्रीय संग्रहालय : नए भवन में स्थानांतरित राष्ट्रीय संग्रहालय में 4 दीर्घाएं-मुखौटा दीर्घा, थंगका दीर्घा, हेरीटेज दीर्घा एवं नैचुरल हिस्ट्री दीर्घा हैं.

हा वैली : हा वैली पारो से 67 किलोमीटर दूर है. हा वैली कुदरत के दिलकश नजारों से भरपूर है.

चेलेला पास : पारो से हा जाते समय पारो से लगभग 45 किलोमीटर दूर चेलेला पास है. चेलेला पास की अधिकतम ऊंचाई समुद्रतल से 4,200 मीटर है. चेलेला पास से गुजरता सड़क मार्ग भूटान का सब से ज्यादा ऊंचाई वाला सड़क मार्ग है. यहां हा वैली एवं चारों ओर के विहंगम दृश्य बड़े ही मनमोहक हैं. यहां पहुंचते ही ठंडी हवा के झोंके न केवल पर्यटकों का स्वागत करते हैं बल्कि शरीर में ठिठुरन भी पैदा कर देते हैं. यहां की पहाडि़यों में रंगबिरंगी लहराती पताकाएं इस जगह की खूबसूरती में चारचांद लगाती हैं.

ध्यान देने योग्य बातें

भूटान में हिंदुस्तानी पर्यटकों को टूरिस्ट परमिट लेना जरूरी है. सड़क मार्ग से भूटान जाने वाले पर्यटकों को भारतभूटान सीमा पर स्थित भूटानी शहर फुनशोलिंग से टूरिस्ट परमिट लेना होगा. इस के लिए पर्यटकों के पास पासपोर्ट या मतदाता परिचयपत्र होना अनिवार्य है. साथ ही, पर्यटक के 2 पासपोर्ट साइज के फोटो होने अनिवार्य हैं. यहां से पर्यटकों का पारो एवं थिंपू के लिए 7 दिन की अवधि का टूरिस्ट परमिट जारी किया जाता है. यदि पर्यटक पारो एवं थिंपू के अलावा दूसरी जगह भी जाना चाहते हैं तो उन्हें उन जगहों पर जाने एवं पर्यटन अवधि बढ़ाने के लिए परमिट थिंपू कार्यालय से जारी किए जाते हैं. हवाई मार्ग से भूटान जाने वाले पर्यटकों को पारो हवाई अड्डे से टूरिस्ट परमिट जारी किए जाते हैं. टूरिस्ट परमिट निशुल्क जारी किए जाते हैं.

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