भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रवाद का नारा-धर्म खतरे में है, प्रलय निकट है, पाप का घड़ा भरने लगा है, इंद्र नाराज हैं, जैसा है. जैसे राम के युग में ब्राह्मणों ने राम के दरबार में दुहाई लगाई थी कि एक शूद्र के पढ़ने के कारण विनाशकाल आ रहा है, वैसा ही कुछ भारतीय जनता पार्टी आज कर रही है.
जहां तक देश की एकता, अखंडता, आंतरिक व्यवस्था का मामला है, देश में हर जगह शांति ही है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के गंगा ढाबा को छोड़ दें. हरियाणा में जाटों द्वारा उत्पात मचाया गया लेकिन उन के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का कोई मामला नहीं दर्ज हुआ, हैदराबाद में कापुओं ने तोड़फोड़ की लेकिन उन के खिलाफ भी राष्ट्रद्रोह का मामला नहीं बनाया गया. महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी शिवसेना गैरमराठियों के खिलाफ हल्ला मचा रही है जिसे भारत की एकता के खिलाफ कहा जा सकता है पर चूंकि शिवसेना वाले ‘भारत माता की जय’ का नारा लगा देते हैं इसलिए उन का जुर्म भी माफ हो जाता है.
देश के कई हिस्सों में पशुओं का शिकार करने वालों पर आक्रमण हो रहे हैं और आक्रमण करने वाले चूंकि भगवाधारी होते हैं इसलिए वे भी राष्ट्रवादी ही हैं, वे भी अखंडता के लिए खतरा नहीं हैं. जम्मूकश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पार्टी के साथ साझा सरकार है, इसलिए भारतीय जनता पार्टी को वहां भी राष्ट्र की अखंडता को कोई खतरा नजर नहीं आ रहा चाहे महबूबा ‘भारत माता की जय’ न कहें.
सरकारी नियमों और सरकारी निकम्मेशाही के कारण देश की अस्मिता, विकास पर हर रोज प्रहार होता है और जिस के चलते अरुण जेटली के भ्रम पैदा करने वाले आंकड़े सामने आते हैं. नतीजतन भारत दुनिया में धीरेधीरे नीचे खिसक रहा है, यह भी राष्ट्रविरोध के दायरे में नहीं आता.
धार्मिक रीतियों, साधुसंतों के कार्यक्रमों के चलते यमुना नदी का तट बरबाद हो जाए, फिर भी वह राष्ट्रविरोधी नहीं है चूंकि वह पुण्य का काम है. देशभर के सर्राफा व्यापारी कैसे हड़ताल पर हैं, यह राष्ट्रविरोधी फैसला है या नहीं, यह सवाल पूछा ही नहीं जा सकता.
तो फिर कौन से परमाणु बादल छाए हैं कि भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रवाद को बचाने के लिए छाता ले कर खड़ी हो गई है? यह क्या नाटकबाजी है कि जिसे देखो उस का राष्ट्रप्रेम अचानक उबाल मारने लगा. विजय माल्या या ललित मोदी का भाग जाना देशविरोधी नहीं है, जिस के खिलाफ अमित शाह, शिवाजी वाला बख्तर पहन कर खड़े होने लगे हैं.
यह देशप्रेम असल में धर्मादेशप्रेम है. धर्म की तूती बोलती रहे और उस धर्म, जिसे पुराणों ने दिया, जिस में भेदभाव, पापपुण्य, पूजापाठ, हवन, व्रत, मंदिर निर्माण, नीचों व औरतों को स्थान पर रखना हो आदि, को हर व्यक्ति सिर पर रखे, उसे माने, यही भाजपा की इच्छा है.
भाजपा को स्वतंत्रता है कि वह इस तरह का नारा लगाए. उसे यह संवैधानिक स्वतंत्रता है कि वह हर व्यक्ति को राष्ट्रद्रोही कहे जो जय श्रीराम, जय राधेराधे, जय हरहर गंगे, भारत माता की जय न कहे. पर वह किसी को मजबूर नहीं कर सकती. दूसरा व्यक्ति इस का प्रतिवाद करने का हक रखता है. भारत को मां माना जाए या सिर्फ देश, यह हर व्यक्ति का राय रखने का अपना संवैधानिक अधिकार है.
हमारा राष्ट्रगान ‘जय हे, जय हे’ कहता है, भारत माता की जय नहीं. और जो नहीं कहा गया उसे आजादी के 69 साल बाद थोपा नहीं जा सकता. भाजपा इस मामले पर पुलिस या भीड़ के जरिए किसी तरह की जबरदस्ती कराने का अधिकार नहीं रखती.