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रबीजायद किसान मेला व नुमाइश

गाजियाबाद के मुरादनगर में बने कृषि विज्ञान केंद्र में हाल ही में प्रीरबीजायद किसान मेले व नुमाइश को शानदार तरीके से पेश किया गया. ‘सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ’ के निदेशक प्रसार डा. रघुवीर सिंह ने फीता काट कर मेले की शुरुआत कराई. उन्होंने मेले व गोष्ठी में कार्यक्रम की अध्यक्षता भी की. मेले के दौरान डा. रघुवीर सिंह ने किसानों से कहा कि इस मेले का मकसद किसानों को रबी व जायद की फसलों में कृषि विश्वविद्यालय खोजी गई नईनई तकनीकों के इस्तेमाल के बारे में बताना है. उन्होंने कहा कि तैयार किए गए उन्नत बीजों के इस्तेमाल से किसानों को भरपूर फायदा होगा.

कृषि विश्वविद्यालय से आए डा. कृष्ण गोपाल यादव ने कहा कि सिंचाई की नाली की सुविधा के साथ किसान खेतों में से पानी निकालने का भी माकूल इंतजाम रखें ताकि जलभराव की वजह से होने वाले नुकसान से बचा जा सके.

कृषि विज्ञान केंद्र के इंचार्ज डा. हंसराज सिंह ने अपने केंद्र द्वारा किए गए तमाम कामों का तफसील से खुलासा किया. डा. पीएस तिवारी ने नए कृषि यंत्रों की देखभाल व उन के इस्तेमाल के बारे में किसानों को पूरी जानकारी दी. गृहविज्ञान से जुड़ी अनिता यादव ने मेले में आई तमाम महिला किसानों को अचार, मुरब्बा और हाथ से बनाई जाने वाली चीजों के बारे में जानकारी दी. उन्होंने छोटे बच्चों व उन की मांओं की सही खुराक के बारे में भी बताया.

डा. अनंत कुमार ने उद्यान विज्ञान के तहत सब्जियों की बेमौसमी नर्सरी तैयार करने की विधि किसानों को बताई. उन्होंने मौजूदा मौसम में लगाई जाने वाली कद्दूवर्गीय फसलों लौकी, तुरई, करेला व टिंडा वगैरह की खेती के बारे में तफसील से जानकारी दी.

मेले में पशुपालन का शिविर खासतौर पर अलग और बड़े इलाके में लगाया गया था. पशुपालन वैज्ञानिक डा. पीके मड़के की देखरेख में लगे इस शिविर में किसानों का तांता लगा रहा. पशुपालन को बढ़ावा देने के इरादे से किसानों के उम्दा मवेशियों को मेले में पेश किया गया. इन्हीं पशुओं में से अच्छी नस्ल के स्वस्थ पशुओं को इनाम भी दिए गए. कुछ पशुओं ने भड़क कर मेले में नाटकीय माहौल भी पैदा कर दिया था.

डा. अरविंद यादव ने ज्यादा कीटनाशकों के इस्तेमाल से होने वाले नुकसानों के बारे में किसानों को विस्तार से समझाया और इस मामले में सतर्क रहने की नसीहत दी. उन्होंने फसलों के रोगों व कीटों से जैविक विधि से निबटने के बारे में जानकारी भी दी.

गोष्ठी और मेले का संचालन करने वाले डा. विपिन कुमार ने किसानों को दलहनी खेती करने की सलाह दी ताकि ज्यादा आमदनी होने के साथसाथ मिट्टी की सेहत भी सुधरती रहे. उन्होंने गोष्ठी में दिए गए भाषणों के आधार पर ‘किसान ज्ञान सवालजवाब’ कार्यक्रम भी कराया, सही जवाब देने पर पुर्सी की शिवानी कादराबाद के मनोज, कल्लूगढ़ी के अख्तर, चितौड़ा के मनोज, धेंधा के अश्विनी व खुर्रपुर के राजन को इनाम दिए गए.

नाबार्ड के डीजीएम ने किसानों को नाबार्ड बैंक की योजनाओं के बारे में जानकारी दी. उन्होंने किसानों को एकजुट हो कर कृषक उत्पादन कंपनी बनाने की सलाह दी ताकि खेती से ज्यादा फायदा हो सके.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक ई. भीम सिंह ने छोटेछोटे उन्नतशील कृषि यंत्रों पर खास जोर देते हुए कहा कि आज इनसानी ताकत काफी महंगी है, नतीजतन खेती का खर्च बढ़ रहा है, मजदूरी का बढ़ता खर्च कम करने का इकलौता तरीका है कि उन्नतशील कृषि यंत्रों का इस्तेमाल किया जाए.

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान करनाल के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डा. राजवीर सिंह ने नील क्रांति, श्वेत क्रांति व भूरी क्रांति के साथसाथ जैविक क्रांति के बारे में भी किसानों को तफसील से जानकारी दी. उन्होंने कहा कि अब हर किसान को जैविक विधि अपनानी चाहिए, तभी फसलों की बीमारियों से नजात मिल सकती है.

 मेले में फारमर, हरित, बोनसाई, धानुका पेस्टीसाइड, फाउंडेशन, गन्ना विकास परिषद, पेस्ट कंटोल आफ इंडिया, इफको, कृषि संचार, इंडियन क्राप साइंस, अदामा इंडिया, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, त्रिवेणी पेस्टीसाइड, आदर्श ग्रामोद्योग सेवा संस्थान, रूडसेड संस्थान व अंशिता महिला स्वयं सहायता हस्तशिल्प समूह के स्टालों से एक खास रौनक आ गई थी.

पशु शिविर में लगे औषधि स्टालों पर भी खूब भीड़ मौजूद रही. वहां एमएसडी, गौरी फार्मा, जीड्स, पशुपालन विभाग मुरादनगर और मैनकाइंड फार्मा के स्टालों पर खास हुजूम जमा रहा.

मेले में खासतौर पर लगाए गए ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के स्टाल पर जागरूक व समझदार किस्म के किसानों का तांता लगा रहा. दिल्ली प्रेस की इस कृषि पत्रिका के प्रति किसानों ने खास दिलचस्पी दिखाई. कई किसानों ने बताया कि वे पहले से ही इस पत्रिका को पढ़ कर फायदा उठा रहे हैं. कई किसानों ने इस पत्रिका से जुड़ने की मंशा जाहिर की.

पशुप्रदर्शनी में उम्दा गाय के लिए पहला इनाम पुर्सी के विपिन को, दसूरा इनाम मुरादनगर के जसबीर को व तीसरा इनाम मुरादनगर के ही दूसरे जसबीर को मिला. उम्दा भैंस के लिए पहला इनाम चित्तौड़ा के विजय को, दूसर इनाम पुर्सी के विपिन को व तीसरा इनाम पुर्सी के प्रशांत को मिला. इस आयोजन में डा. राहुल अग्रवाल, डा. प्रमोद मड़के व डा. अनंत कुमार खासतौर पर शामिल थे.

मेले में हुई गोष्ठी का संचालन डा. विपिन कुमार ने किया, तो डा. अरविंद कुमार ने मेले की अन्य गतिविधियों को संभाला. इन के अलावा डा. तुलसा रानी, डा. देवेंद्र पाल, जईम खान, योगेंद्र कुमार शर्मा, नीरज यादव, अवधेश त्यागी, शिव व रणजीत ने भी मेले में पूरा सहयोग दिया. कार्यक्रम समन्वयक डा. हंसराज सिंह की देखरेख में यह मेला बेहद कामयाब रहा.

राष्ट्रीय कृषि उन्नति मेला 2016 एक शानदार बड़ा जश्न

नई दिल्ली के पूसा इलाके में 19, 20 और 21 मार्च को बड़े पैमाने पर ‘राष्ट्रीय कृषि उन्नति मेला’ बहुत जोरशोर से आयोजित किया गया. यह मेला लोगों के लिए खास इस लिहाज से भी बन गया, क्योंकि पहले ही दिन इस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी शामिल होना था.

मोदी की वजह से मेला शुरू होने से पहले ही इस की जटिलताओं के बारे में पूरा प्रचार किया गया. प्रधानमंत्री की हिफाजत को मद्देनजर रखते हुए मेले में सावधानियों को ज्यादा ही तरजीह दी गई. काफी पहले से ही ऐलान कर दिया गया था कि मेले में ढेरों पाबंदियां होंगी, जिन का सख्ती से पालन करना होगा वरना सुरक्षा करने वाले आने वालों को गेट से काफी पहले से ही बैरंग लौटा देंगे.

मेले के पहले दिन वहां बैग या कोई भी सामान ले कर जाने की सख्त मनाही थी. बहुत से लोग तो खौफ की वजह से पहले दिन मेले में जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा सके.

तमाम नाटकीय मोड़ों व हालात के बावजूद 19 मार्च को नरेंद्र मोदी ने बाकायदा राष्ट्रीय कृषि उन्नति मेले का उद्घाटन किया. डरेसहमे लोगों के न आने के बावजूद मोदी को देखनेसुनने के लिए लोगों का हुजूम मेले में जमा हो गया था. बड़ी तादाद में किसान मोदी के लालच में मेला देखने पहुंचे थे. महिला किसानों में भी मोदी को देखने की बेहद ललक थी.

मैं ने कई महिला किसानों को कहते सुना कि मैं तो मोदीजी को ही देखने आई हूं. तमाम किसानों को गलतफहमी थी कि उन्हें तीनों दिन नरेंद्र मोदी के दीदार होंगे. मेले के तीसरे दिन एक महिला किसान अपने बच्चों के साथ मेरे पास आई और मेरे हाथों में ‘फार्म एन फूड’ की प्रतियां देख कर पूछने लगी, ‘आप तो किताब वाले लगते हो. क्या आप को पता है कि मोदीजी आज आएंगे या नहीं?’

किसानों की मोदी के प्रति ललक देख कर यह अंदाजा तो हो गया कि वाकई नरेंद्र मोदी ने किसानों के बीच अपनी अच्छी पैठ बना ली है, तभी तो मर्दों के साथसाथ औरतें व बच्चे भी उन्हें देखना चाहते हैं.

मेले के पहले दिन उद्घाटन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को अपनी आमदनी बढ़ाने के तरीके बताए. मोदी ने काफी रोचक तरीके से अपनी बातों को पेश कर के किसानों को अपना कायल बना लिया. उन्होंने खेती में बेहतर सिंचाई इंतजामों पर जोर देते हुए कहा कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास से किसानों की आमदनी में काफी इजाफा हो सकता है.

मोदी ने अपने लच्छेदार लुभावने भाषण में कहा कि सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य तय किया है. उन्होंने कहा कि देश में बदलाव की लहर किसानों के जरीए ग्रामीण इलाकों से चलेगी, लिहाजा खेती में आधुनिक तकनीक और नवीनतम मशीनों का इस्तेमाल किया जाना बेहद जरूरी है.

मोदी ने आगे कहा कि आम बजट में सिंचाई व्यवस्था के लिए 20 हजार करोड़ रुपए मुकर्रर किए गए हैं. इस रकम का इस्तेमाल किसानों के लिए नहरें, तालाब व दूसरे साधन तैयार करने के लिए भी किया जा सकता है. बस सरकार का मकसद है  कि सिंचाई के मामले में किसानों को कोई दिक्कत न हो.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि किसानों की आमदनी सहजता से दोगुनी की जा सकती है. इस मकसद को एकसाथ मिल कर काम करने से मुमकिन बनाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि पहली हरित क्रांति उन इलाकों में हुई, जहां पानी भरपूर मात्रा में मौजूद था. इसी वजह से पहली हरित क्रांति देश के पश्चिमी और उत्तरी हिस्सों में हुई. मगर दूसरी हरित क्रांति में तकनीक व आधुनिकता को शामिल किया जाएगा और यह देश के पूर्वी भाग में होगी.

मोदी ने किसान सुविधा मोबाइल एप का भी लोकार्पण किया. इस से कारोबार, मंडी के दामों व मौसम की जानकारी मिल सकेगी. मोदी ने कहा कि उम्दा पैदावार के लिए किसानों  व सूबों को सम्मानित किया जाएगा.

मोदी ने किसानों से अपनी आय बढ़ाने के लिए फसलों में बदलाव करने के लिए कहा. उन्होंने किसानों से पोल्ट्री, डेरी व खाद्य प्रसंस्करण जैसे काम अपनाने को भी कहा. उन्होंने बताया कि उन की सरकार ने किसानों की आमदनी बढ़ाने के इरादे से मृदा स्वास्थ्य कार्ड देने व नई फसलबीमा योजना शुरू करने जैसे कारगर कदम उठाए हैं.

मोदी ने कहा कि पानी की बचत करना बेहद जरूरी है. इस के लिए बेहतर सिंचाई बंदोबस्त अपनाना होगा. उन्होंने कहा कि पानी की एक भी बूंद बरबाद नहीं होनी चाहिए. हमें ‘पर ड्राप मोर क्राप पर’ जोर देना होगा. मौजूदा गरमियों में मनरेगा के तहत तय रकम से तालाब बनवाए जाएंगे.

बड़े पैमाने पर आयोजित इस शानदार मेले में तीनों दिन आनेजाने वालों का तांता लगा रहा. कोई भी किसान या खेतीजगत से जुड़ा व्यक्ति इस मेले में जाने से चूकना नहीं चाहता था.

मेले में खेती से जुड़ी नई से नई छोटीबड़ी मशीनों को बड़े पैमाने पर पेश किया गया था. बीजों और पेड़पौधों की नवीनतम किस्मों को शानदार ढंग से दिखाया गया था. खादों के स्टालों पर भी किसानों का हुजूम पूरी शिद्दत से जानकारी लेने में जुटा था. मेले का दायरा और स्टालों की तादाद इतनी ज्यादा थी कि किसानों को यह रंज ही रह गया कि वे पूरा मेला नहीं देख सके. वैसे किसानों के खानेपीने व शौचालय वगैरह का बंदोबस्त भी चौकस था. तमाम किसान व दर्शक जूट के थैले, चाबी के गुच्छे व कलैंडर जैसे उपहार मुफ्त में बटोरने में ही लगे रहे. मेरे हाथों में ‘फार्म एन फूड’ की प्रतियां देख कर हर किसान व दर्शक उसे मुफ्त में पाने को लालायित था.

मेले के दूसरे दिन यानी इतवार को वहां आने वालों की तादाद में काफी इजाफा दर्ज किया गया. मेले की आखिरी वेला यानी तीसरे और अंतिम दिन कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने वहां पहुंच कर किसानों की खोजखबर ली व प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया. इस के अलावा उन्होंने ‘धान की वैज्ञानिक खेती’ नाम की पत्रिका का भी विमोचन किया. उन के भाषण में भी कमोबेश मोदी वाले भाषण की ही बातें शामिल थीं.   

थ्रैशर फसल गहाई करे आसान

आज के दौर की खेती मशीनों के सहारे ही मुमकिन है. बगैर मशीनों की मदद के खेती करने वाले किसान बहुत पीछे रह जाते हैं. देश की सब से खास फसलों में शामिल गेहूं की फसल की गहाई का काम काफी अहम होता है. इसे बगैर मशीन के करने में बहुत ज्यादा वक्त बरबाद होता है. अब उम्दा किस्म के थ्रैशर ने गहाई को सरल बना दिया है. रबी की फसलों में खास फसल गेहूं पक कर तैयार हो चुकी है और किसान अब उन पके दानों को सहेजने की तैयारी में हैं. पहले इसी काम को पारंपरिक तरीके से करने में हफ्तों लग जाया करते थे, लेकिन वही काम अब आधुनिक यंत्रों से घंटों में निबटने लगा है.

हालांकि अब गेहूं कटाई, गहाई आदि के लिए एक से एक आधुनिक हार्वेस्टर व दूसरी मशीनें आ गई हैं, जो बहुत ही कम समय में इस काम को निबटा देती हैं. परंतु उन बड़ी मशीनों तक न तो आम किसानों की पहुंच है और न ही सब जगह बड़ी मशीनें मिल पाती हैं. ऐसे में गेहूं की गहाई के लिए थ्रैशर बहुत ही काम की मशीन है, जो ज्यादातर किसानों की पहुंच में है.

आज बाजार में थ्रैशर बनाने वाले कई कृषि मशीन निर्माता हैं. सभी की अपनीअपनी खासीयतें हैं. साधारण थ्रैशर से ले कर आधुनिक थ्रैशर, मल्टीक्राप थ्रैशर (अनेक फसलों के लिए एक ही थ्रैशर) बाजार में मौजूद हैं.

फसल गहाई के लिए प्रकाश थ्रैशर बाजार में हैं, जो सम्राटशक्ति थ्रैसर व हडंबा मल्टीक्रौप थै्रशर के नाम से 2 ब्रांड बनाते हैं. सम्राट शक्ति की कुछ खास खासीयतें निम्न हैं:

* इस थ्रैशर से नमी वाली व सूखी फसल बिना रुकावट के आसानी से निकाली जा सकती है और मशीन के ड्रमों में फसल आसानी से डाली जाती है.

* फसल के छोटे दाने व टूटे दाने अलग गिरते हैं.

* थ्रैशर में सेल्फ एलाइनमेंट बैयरिंग लगे होने के कारण मशीन बिना रुके बिना शोर किए लगातार चलती है. मजबूत पहिए व लोहे का मजबूत ढांचा होने के कारण मशीन को लंबे समय तक देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती.

इस कंपनी के मल्टीक्रौप थै्रशर से किसान गेहूं के अलावा सोयाबीन, सरसों, बाजरा, बीन, धान व चारा फसलों आदि की गहाई कर सकते हैं.

प्रकाश थ्रैशर मशीन के बारे में अगर आप ज्यादा जानकारी चाहते हैं, तो इस कंपनी के फोन नंबर 05624042153 व मोबाइल न 09897591803 पर बात करें.

कीमतें बढ़ने से सफेद मूसली उगाने वाले किसानों में जोश

आयुर्वेदिक दवाओं में खासतौर से इस्तेमाल होने वाली सफेद मूसली की कीमतों में 3 साल बाद सुधार होने से राजस्थान में इस की खेती करने वाले किसानों ने फिर से इस जड़ीबूटी की खेती करना शुरू कर दिया है. राज्य के राजसमंद, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ व बारां जिलों में कुछ किसान सफेद मूसली की खेती करते हैं. इस की सब से ज्यादा खेती राजसमंद जिले की भीम व देवगढ़ तहसीलों में अरावली की पहाडि़यों पर बसे छोटेछोटे गांवों में की जाती है. यहां कम से कम 50 से 60 किसान सफेद मूसली की खेती करते हैं. यहां होने वाली यह जड़ीबूटी अच्छी मानी जाती है.

राजसमंद जिले के मूसली की खेती करने वाले किसान हजारी सिंह चौहान बताते हैं कि साल 2011 में यहां के किसानों को इस जड़ीबूटी की खेती से अच्छी आमदनी हुई थी और करीब 1200 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से थोक व्यापारियों को किसानों ने अपनी फसल बेची थी. उन्होंने बताया कि इस के बाद इस की कीमतें गिर गईं और किसानों को 600 से 800 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से अपनी पैदावार को बेचना पड़ा. सफेद मूसली के दाम घट कर करीब आधे हो जाने से किसानों को काफी झटका लगा था. एक किसान पूर्ण सिंह ने तो साल 2013 में करीब 1 क्विंटल सफेद मूसली का भंडारण कर के उसे अच्छे भाव के इंतजार में रोके रखा था, लेकिन आखिर में उन्हें साल 2014 में 600 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से उसे बेचना पड़ा था.

राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि जगहों पर सफेद मूसली की खेती करने वाले किसानों को इस फसल के दाम कम मिलने पर उन्होंने इस जड़ीबूटी की खेती करना लगभग छोड़ ही दिया था और साल 2015 में देश भर में इस का रकबा सिकुड़ कर लगभग आधा हो गया था. इस की खेती करने वाले हर किसान ने पहले की तुलना में जमीन के आधे हिस्से पर ही इस की खेती की. लेकिन साल 2015 के अक्तूबरनवंबर में इस की फसल तैयार होने पर इस के दाम ऊंचाई छूने लगे. जिन किसानों ने थोड़ा धैर्य रखा, उन्हें 1300 से 1500 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से आमदनी हुई.

बारां जिले के किसान गणपत लाल नागर से मूसली के बारे में बात करने पर उन्होंने कहा कि इस बार इस जड़ीबूटी के भाव अच्छे मिलेंगे. मैं ने अपनी फसल देर से निकाली है और बाजार में जा कर जानकारी हासिल करने पर पता चला है कि आजकल कम से कम 1300 रुपए प्रति किलोग्राम इस की दरें चल रही हैं. वहीं हजारी सिंह चौहान ने बताया कि उन्होंने शुरुआत में पैदावार का कुछ हिस्सा 900 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बेचा था, लेकिन बाद में बची मूसली को उन्होंने 1400 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा. उन्होंने कहा कि यदि कोई अपनी पैदावार को रोके तो उसे 1500 रुपए प्रति किलोग्राम तक दाम मिल सकते हैं.

कैसे होगी किसानों की कमाई दोगुनी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत जोरजोर से ऐलान कर दिया कि किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी, मगर हकीकत में ऐसा होना आसान नहीं है. कमाई कई गुना बढ़ सकती है, लेकिन उस के लिए सही तरीके से कोशिशें करनी होंगी. इस मामले में सरकार को किसानों का पूरा साथ देना होगा. अनुदानों की रकम घटाने की बजाय उस में इजाफा करना होगा. सरकार का दावा है कि अगले 5 सालों में किसानों की कमाई दोगुनी हो जाएगी. केंद्र सरकार ने अपने हालिया बजट को खेती व किसानों के लिए फायदेमंद बताया है और दावा किया है कि अगले 5 सालों के दौरान किसानों की कमाई दोगुनी हो जाएगी. सरकार के दावे में कितना दम है, इसे एक छोटे से उदाहरण से समझा जा सकता है.

उदाहरण के तौर पर सरकार की ओर से हर साल किसानों के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन उन सभी योजनाओं को आम किसानों तक पहुंचाने का काम ग्राम स्तर पर कृषि की देखरेख करने वाले कर्मचारी का होता है. लेकिन अफसोस की बात है कि हर किसान के पास न तो कृषि की देखरेख करने वाला कर्मचारी पहुंचता है और न ही किसानों को योजनाओं की सही जानकारी मिलती है. ऐसे में इन किसानों को न तो कोई सलाह देने वाला है और न ही कृषि की देखभाल करने वाले कर्मचारी या अधिकारी खेतों में पहुंच रहे हैं. इस के चलते किसानों को खुद के बूते ही फसलों को रोगों और कुदरती मार से बचाने के उपाय करने पड़ते हैं. अगर कृषि विभाग में पदों की बात की जाए तो ऊपर से लगा कर नीचे तक कई पद खाली पड़े हैं.

कर्मचारियों का हाल

एक छोटे से इलाके चाकसू ब्लाक की ही बात करें तो पूरे ब्लाक में कृषि पर्यवेक्षक के 31 पद ही हैं, जबकि कुल ग्राम पंचायतें 37 हैं. नियमानुसार 1 ग्राम पंचायत पर 1 कृषि की देखभाल करने वाला कर्मचारी होना जरूरी है. लेकिन ब्लाक के आधा दर्जन से भी अधिक कर्मचारियों के जिम्मे 2-2 पंचायतों की जिम्मेदारी है. वहीं कई पद खाली होने के चलते हर कर्मचारी के जिम्मे 10 से 12 गांव आ रहे हैं. ऐसे में एक कर्मचारी का हर किसान के पास पहुंचना मुश्किल हो रहा है. फसल में कौन सा रोग पनप रहा है, किस रोग की रोकथाम के लिए कौन सी दवा का इस्तेमाल करना चाहिए, ये सभी काम कृषि कर्मचारी के जिम्मे हैं, लेकिन कर्मचारी न तो खेतों में जाते हैं और न ही किसानों की परेशानी दूर करते हैं.

कृषि कर्मचारियों का कहना है कि खेतों में जा कर किसानों को सलाह देने के लिए उन के पास सही इंतजाम नहीं हैं. वहीं कृषि अधिकारी भी खेतों में जाने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. जब ‘फार्म एन फूड’ के लेखक द्वारा जयपुर जिले के चाकसू ब्लाक के आसपास के खेतों में पड़ताल की गई, तो किसानों ने बताया कि कृषि अधिकारी व कर्मचारी न तो खेतों में आते हैं और न ही उन को फसल में लगे कीटों व रोगों की रोकथाम संबंधी जानकारी मिल पाती है. किसान सेवा केंद्रों की भी बुरी हालत है.

ग्राम पंचायत स्तर पर किसानों को अपने गांव में ही कृषि के बारे में हर तरह की जानकारी देने के लिए किसान सेवा केंद्र बनाए गए हैं. लेकिन इन केंद्रों के भवनों की हालत यह है कि कई जगहों पर भवनों का निर्माण अधूरा पड़ा है, तो कई जगह बने भवनों में कृषि कर्मचारी बैठते ही नहीं हैं.  पंचायतीराज विभाग जयपुर से मिली जानकारी के अनुसार विभाग की ओर से किसानों को एक ही जगह सभी तरह की कृषि संबंधी जानकारी व सुविधाएं देने के लिए प्रदेश के सभी ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर किसान सेवा केंद्र बनाने की इजाजत मिली हुई है. हर सेवा केंद्र में करीब 10 लाख रुपए की लागत से 4 कमरे व 2 लौबी बनाई जा सकती हैं. इन केंद्रों पर किसानों की कई तरह की समस्याओं के हल के लिए समयसमय पर कृषि विभाग की बैठकें भी की जा सकती हैं.

दिलचस्प बात तो यह है कि प्रदेश की तकरीबन 9800 ग्राम पंचायतों में से अभी तक महज 4500 ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर ही भवन बनाए गए हैं. कई ग्राम पंचायतों में तो किसान सेवा केंद्रों की सिर्फ नींव का ही काम हुआ है, तो कई जगह काम ही शुरू नहीं हो पाया है. इस के चलते भी किसान जरूरी जानकारी व सुविधाओं का फायदा नहीं ले पा रहे हैं. पिछले कुछ सालों में अनुदान से चलाई जाने वाली योजनाओं के चलते किसानों ने बागबानी व खेती के पुराने तरीकों में बदलाव करते हुए नई तकनीक के जरीए खेतीबारी करने में रुचि दिखानी शुरू की थी. किसानों का रुझान बूंदबूंद सिंचाई तकनीक से ले कर ग्रीन हाउसों व पौली हाउसों में नई तकनीक से खेती करने में बढ़ने लगा था. योजनाओं का फायदा ले चुके किसानों की देखादेखी बाकी दूसरे किसान भी इन अनुदानित योजनाओं के जरीए खेती में बदलाव के इच्छुक थे, लेकिन सरकार द्वारा अनुदान की रकम घटा दिए जाने से किसानों की मंशा व रुझान पर पानी फिरता नजर आ रहा है.

लगातार मौसम की मार झेल रहे किसानों को राहत देने के बजाय सरकार ने खेती के कामों से जुड़ी ज्यादातर अनुदानित योजनाओं पर दी जाने वाली सब्सिडी राशि में कटौती कर दी है या फिर उन का लक्ष्य कम कर दिया है. हाईटेक खेती के लिए किसानों को बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग द्वारा चलाई जा रही अनुदानित योजनाओं पर सरकार द्वारा कटौती करने से किसान अब सरकारी मदद से मुंह फेरने लगे हैं. गौरतलब है कि केंद्र व राज्य सरकार की ओर से अलगअलग योजनाओं पर किसानों को ग्रीन हाउस, पौली हाउस, शेडनेट, सोलर पंप, बूंदबूंद सिंचाई, पाइप लाइन, फव्वारा सिंचाई, फार्म पौंड व डिग्गी निर्माण पर अनुदान दिया जा रहा है. लेकिन इन तमाम योजनाओं पर सरकार ने अनुदान 75 फीसदी से घटा कर 45 से 65 फीसदी तक कर दिया है. ऐसे में अनुदानित योजनाओं में फायदा लेने वाले किसानों की रुचि 60 से 70 फीसदी तक घट गई है. किसानों ने सब से ज्यादा रुचि बूंदबूंद सिंचाई तकनीक और सोलर पंप योजना को ले कर दिखाई थी, लेकिन अनुदान में कटौती करने से किसानों ने अब इन में रुचि दिखाना छोड़ दिया है.

अनुदान में कटौती ने गरीब व छोटे किसानों को निराश किया है. जबकि कृषि अधिकारियों व कृषि कर्मचारियों की मानें तो किसान अब बागबानी के साथसाथ सभी तरह की खेतीबारी में भी तकनीक का इस्तेमाल करना चाहते हैं और इस से उत्पादन भी दोगुना तक बढ़ने की संभावना है, लेकिन अनुदानित योजनाओं की सब्सिडी घटा दिए जाने से इन योजनाओं का लाभ छोटे व गरीब किसानों के बूते से बाहर हो गया है.

अनुदान पर भी कटौती

सरकार द्वारा किसानों को माली मदद देने और नए व वैज्ञानिक तरीके से खेती कर के कम लागत में अधिक उपज लेने के लिए ड्रिप सिंचाई, पाइप लाइन व कृषि पौध संरक्षण यंत्रों सहित कई अनुदानित योजनाएं भी चलाई गई हैं. इन योजनाओं से किसानों को फायदा तो मिला ही है, साथ ही किसानों का इन योजनाओं के प्रति रुझान भी बढ़ा है. सिंचाई में बूंदबूंद सिंचाई तकनीक व फव्वारा सिस्टम के इस्तेमाल से जहां पानी की बचत होती है, वहीं कृषि यंत्रों से कम समय में अच्छा काम हो जाता है. लेकिन सरकार द्वारा चलाई जाने वाली व अनुदानित इस कृषि यंत्र योजना पर भी सरकार ने कटौती कर दी है.

घट रहा खेती का रकबा

मुख्य सड़कों व संपर्क सड़कों के आसपास की किसानों की कृषि लायक जमीनों पर हजारों कालोनियां बन गई हैं. इन कालोनियों में कच्चीपक्की सड़कें बना कर व बिजली के खंभे लगा कर भूकारोबारी लोगों को प्लाट बेच रहे हैं और कालोनियों के कई तरह के नक्शे बना कर कालोनाइजर जमीनों की खरीदफरोख्त में जुटे हैं. इस के चलते जहां खेती का रकबा घट रहा है, वहीं किसानों की खेती में रुचि घटती जा रही है. इतना ही नहीं कई भूमाफियाओं ने किसानों के मवेशियों के लिए आरक्षित चरागाहों समेत नालों व पानी के बहाव क्षेत्रों की जमीनों पर भी अवैध कालोनियां बना दी हैं.                   

अनुदानों में कटौती करना मुनासिब नहीं है

‘प्रदेश में किसानों के फायदे की कई अनुदानित योजनाएं चल रही हैं. पुराने तरीके से खेती कर रहे किसानों का रुझान अनुदानित योजनाओं के जरीए आधुनिक व तकनीकी खेती की ओर बढ़ा है, लेकिन पहले दिए जा रहे अनुदानों में कटौती करने का सरकार का फैसला इस में रुकावट भी बन रहा है.

किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी घटाए जाने से किसान सौर ऊर्जा से चलने वाली पंप परियोजना समेत दूसरी अुदानित योजनाओं में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. यही हाल ड्रिप इरीगेशन सिस्टम का भी है. सरकार यदि पहले  दी जा रही सब्सिडी को जारी रखती, तो किसानों के फायदे की ये योजनाएं फायदेमंद साबित होतीं. इसी वजह से पिछले साल भी अनुदानित योजनाओं के लिए कम लोगों ने अर्जियां दी थीं. इसे देखते हुए विभाग की ओर से दोबारा अर्जियां मांगी गई थीं.’        

– दानवीर वर्मा, डिप्टी डायरेक्टर, कृषि एवं उद्यान विभाग, दुर्गापुरा, जयपुर.

‘किसानों की कमाई दोगुनी करने की दिशा में सब से पहले तो सरकार द्वारा पशुपालन व मधुमक्खीपालन जैसे खेती पर आधारित कामों को कृषि का दर्जा दिया जाना चाहिए और कृषि वाले कामों को बढ़ावा देने के लिए कौशल विकास योजनाएं भी बनानी चाहिए. ये सब करने पर ही खेती फायदे का सौदा बन सकती है.’

– रामकिशन चौधरी, अध्यक्ष, किसान सेवा समिति, चाकसू, जयपुर

गुलाब की चीजें बनाने वाले गणेश माली

राजस्थान के राजसमंद जिले का खमनोर गांव गुलाब की खेती के लिए जाना जाता है. यहां के कई किसान गुलाब की खेती कर के व गुलाब के उत्पाद तैयार कर के अपनी रोजीरोटी चलाते हैं. इन में से एक किसान गणेश माली से जब भेंट की तो उन्होंने अपनी सफलता की कहानी बताई. गणेश माली ने बताया कि उन के पास 3 बीघे जमीन है, जिस पर पिता किशन लाल सालों से गुलाब की खेती करते रहे हैं. अब उन के बूढ़े होने से यह काम गणेश ने संभाल लिया है. उन के दादा भी गुलाब की खेती किया करते थे. इस क्षेत्र में गुलाब की खेती बहुत पुरानी कही जा सकती है. गुलाब की खेती करतेकरते गणेश के पिताजी ने बाद में गुलकंद और गुलाबजल बनाना शुरू किया.

गणेश माली ने 2010 से गुलाब का शरबत बनाना शुरू किया था. उदयपुर कृषि महाविद्यालय ने यहां के किसानों को शरबत बनाना सिखाया था, इस के लिए गणेश भी उदयपुर गए थे. पिछले साल उन्हें 50 हजार रुपए की आमदनी फूलों से हुई थी, वहीं गुलाब के फूलों से गुलकंद, शरबत व गुलाबजल बना कर बेचने से करीब 50 हजार रुपए की कमाई हुई थी. 2013 में उन्होंने गुलाब से तैयार की गई चीजों को बिहार में बेचने के लिए भेजा था. उन्होंने बताया कि गुलाब से गुलाबजल, इत्र व रस आसवन विधि द्वारा बनाए जाते हैं. इस विधि के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इस के लिए खास तरीके से बनाई गई भट्ठी  पर तांबे का छोटे मुंह वाला एक बड़ा देग चढ़ाया जाता है, जिसे पानी से आधा भरने के बाद उस में करीब 5 हजार गुलाब के फूल डाले जाते हैं. बाद में देग का मुंह ढक्कन लगा कर बंद कर दिया जाता है.

देग के मुंह पर कपड़े की पट्टी बांध कर मिट्टी का लेप किया जाता है, ताकि भाप बाहर न निकले. दूसरी ओर इस देग के मुंह पर एक लंबा व घुमावदार पाइप लगा होता है, जिस का एक सिरा ठंडे पानी में रखे एक बरतन से जोड़ा जाता है, जिस में देग से निकलने वाली भाप ठंडी हो कर गुलाबजल में बदल जाती है. भट्ठी 7-8 घंटे चलती है. 5 हजार फूलों से करीब 50 बोतल गुलाबजल बनता है. ज्यादा फूलों से कम गुलाबजल बनाए जाने पर वह बहुत बढि़या किस्म का होता है, जबकि ज्यादा माल तैयार करने पर गुलाबजल अच्छी किस्म का नहीं बनता. करीब 500 फूलों से 1 लीटर गुलाबजल तैयार किया जाए तो वह अच्छा होता है.

गणेश माली ने बताया कि वे अपने गुलाबों से तैयार गुलकंद 300 रुपए प्रति किलोग्राम, गुलाबजल 100 रुपए प्रति लीटर और शरबत 150 रुपए प्रति लीटर की दर से गणेश चैत्री रोज प्रोडक्शन के नाम से बेचते हैं. गुलाब के इत्र के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि चंदन के तेल में गुलाब के रस का इस्तेमाल कर के इत्र बनाया जाता है. 1 लीटर चंदन के तेल को 1 से डेढ़ लाख फूलों के रस के साथ 10 बार छान कर इत्र बनता है. उन्होंने बताया कि यह तरीका बहुत लंबा है और इस में मेहनत भी करनी पड़ती है. 1 किलोग्राम इत्र 2 से ढाई लाख रुपए में बिकता है, जिसे खरीदना हर किसी के बूते से बाहर है. कोई बड़ा सेठ ही इसे खरीदता है. ऐसे लोगों के कहने पर ही हम लोग गुलाब का इत्र बनाते हैं.

चैत्र महीने में होने वाली यह फसल 15 मार्च और 15 अप्रैल के बीच होती है. खासतौर से 20 दिनों की गुलाब की यह फसल मौसम पर टिकी होती है. चैत्री गुलाब की पंखुडि़यां पतली होने के कारण नाजुक होती हैं, जो गरमी बरदाश्त नहीं कर पातीं. उन्होंने बताया कि अच्छे मौसम में 1 बीघे में 2 लाख रुपए की फसल होती है, जिस में 50 हजार रुपए मजदूरी चली जाती है. लेकिन पिछले 5 सालों से पैदावार में कमी आ रही है, क्योंकि जिस समय गरमी चाहिए उस समय गरमी नहीं मिलती और जब सर्दी की जरूरत होती है, उस वक्त मौसम गरम हो जाता है.

उन्होंने बताया कि उन के इलाके में पुदीना व जामुन भी काफी होते हैं. पुदीना बाजार में मिल जाता है. जामुन की गुठली भी 20 से 25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से मिल जाती है. वे इस का रस बनाते हैं. जामुन की गुठली का रस डायबिटीज (शुगर) के मरीजों के लिए फायदेमंद होता है. कुछ लोग गुठली नहीं मिलने पर जामुन के पेड़ की छाल भी इसे बनाने में इस्तेमाल करते हैं.

गन्ने की फसल के कीड़ों की पहचान व बचाव के तरीके

हिंदुस्तान की सब से खास फसल गन्ने का दायरा बहुत बड़ा है. मूल रूप से गुड़चीनी से जुड़ी इस फसल के साथ झंझट भी तमाम होते हैं. किसानों और चीनीमिलों के मालिकों के बीच होने वाले बवाल से तो सभी वाकिफ रहते हैं, मगर अपने खेतों में भी गन्ना बोने वाले किसान चैन से नहीं जी पाते. तमाम तरह के कीड़े किसानों का जीना हराम कर देते हैं. यहां उन्हीं कीड़ों के बारे में तफसील से बताया जा रहा है. गन्ना भारत की पुरानी फसलों में से एक है. हमारी कुल  घरेलू पैदावार का लगभग 2 फीसदी भाग चीनी उद्योग का है. भारत की चीनी वाली फसलों में गन्ना खास है. देश की माली हालत को मजबूत करने और करोड़ों किसानों को पैसे से मजबूत करने में गन्ने की खेती और चीनी व गुड़ उद्योगों का खास योगदान है. इस से देश के करोड़ों किसानों व मजदूरों को रोजगार मिल रहा है.

अकेले उत्तर प्रदेश में लगभग 32 लाख किसान गन्ने की पैदावार पर गुजरबसर कर रहे हैं. गन्ने के अगोले यानी ऊपरी पत्ती वाले हरे भाग से पशुओं को हरा चारा मिलता है. वहीं गन्ना चीनी व गुड़ बनाने में काम आता है. देश में गन्ने की खेती लगभग 49 लाख हेक्टेयर जमीन में की जाती है, जिस में से अकेले उत्तर प्रदेश का रकबा तकरीबन 20 लाख हेक्टेयर है. देश में गन्ने की पैदावार लगभग 68 टन प्रति हेक्टेयर है.

खास कीड़े

गन्ना जितनी अहम फसल है, उतनी ही ज्यादा दिक्कतें उस के साथ जुड़ी हुई हैं. गन्ने के दाम व किसानों के भुगतान का मसला हमेशा सुर्खियों में रहता हे. इस से हअ कर गन्ने में लगने वाले तमाम कीड़े भी किसानों का चैन छीन लेते हैं. यहां पेश है गन्ने में लगने वाले तमाम कीड़ों की जानकारी :

दीमक

दीमक गन्ने की फसल के बढ़ने की दो स्थितियों में हमला करती है. दीमक का पहला हमला गन्ने की बोआई के बाद होता है. गन्ने के कटे सिरों व टुकड़ों पर निकली आंखों पर दीमक हमला कर के नुकसान पहुंचाती है. इस की वजह से अंकुरण कम होता है, जड़ों को बहुत नुकसान होता है और पौधों की संख्या में कमी आने से पौधों की पत्तियां पीली पड़ कर सूख जाती हैं. ये कीट जमीन के पास वाले गन्ने के नीचे पोरियों का पिथ खा जाते हैं व पिथ के स्थान पर मिट्टी भर जाने के कारण फसल की पैदावार में भारी कमी आती है. दीमक का दूसरा हमला बरसात के बाद सितंबरअक्तूबर के महीनों में होता है.

रोकथाम

* 1 किलोग्राम बिवेरिया और 1 किलोग्राम मेटारिजयम को करीब 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद में अच्छी तरह मिला कर छाया में 10 दिनों के लिए छोड़ दें. दीमक लगे खेत में उस के बाद प्रति एकड़ बोआई से पहले इस को छिड़कें.

* सिंचाई के समय इंजन से निकले हुए तेल की 2-3 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

* दीमक का ज्यादा असर होने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 3-4 लीटर मात्रा को बालू में मिला कर प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें.

* गन्ने की कांची को बोआई से पहले इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस 0.1 फीसदी से उपचारित कर लेना चाहिए.

सफेद गिडार 

इस कीड़े की सूंड़ी जमीन के अंदर रहती है और गन्ने के जिंदा पौधों की जड़ों को खाती है. सूंड़ी द्वारा जड़ को काट देने से पूरा पौधा पीला पड़ कर सूखने लगता है. ऐसे सूंड़ी लगे पौधे उखाड़ने पर आसानी से मिट्टी के बाहर आ जाते हैं. मादा कीट संभोग के 3-4 दिनों बाद गीली मिट्टी में 10 सेंटीमीटर गहराई में अंडे देना शुरू करती है. 1 मादा करीब 10-20 अंडे देती है. अंडों से 7 से 13 दिनों के बाद छोटी सूंडि़यां निकलती हैं. इस कीट की दूसरी व तीसरी स्थिति की सूंडि़यां पौधों की बड़ी जड़ों को काटती हैं. ये जुलाई से अक्तूबर तक पौधों की जड़ों को खाती हैं.

रोकथाम

* गिडार के असर वाले पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल या कार्बारिल 50 डब्ल्यूपी की 0.2 फीसदी या क्विनालफास 25 ईसी की 0.05 फीसदी मात्रा का छिड़काव करें.

* मई के आखिर में जैसे ही पहली बरसात हो जाए और कीड़े निकलना शुरू हो जाएं, तो प्रकाश प्रपंच लगा देना चाहिए.

* सुबहसुबह खेत की गहरी जुताई कर के छोड़ दें ताकि पक्षी कीड़ों को खा सकें.

* खेत की जुताई ऐसे यंत्रों से न करें, जिन में जुताई के साथसाथ पाटा लगता हो या पाटा लगाने वाले यंत्र में 4-5 इंच की कीलें लगी होनी चाहिए ताकि कीलें सूंडि़यों को काट सकें.

* जीवाणु बेसिलस पोपिली द्वारा कीटों को खत्म किया जा सकता है. गन्ने की बोआई से पहले ब्युवेरिया ब्रोंगनियार्टी की 1.0 किलोग्राम मात्रा और मेटारायजियम एनासोप्ली की भी 1.0 किलोग्राम मात्रा को करीब 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में अच्छी तरह मिला कर छाया में 10 दिनों के लिए छोड़ दें फिर उसे कीड़े लगे खेत में प्रति एकड़ बोआई से पहले इस्तेमाल करें.

* सूत्रकृमि के पाउडर से बनाए गए घोल को 2.5-5×109 आईजे प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने की सिंचाई के साथ कीड़ों के प्रकोप से पहले खेत में छिड़काव करने से इस कीड़े पर काबू पाया जा सकता है.

* कीटनाशी रसायन क्लोरोपायरीफास 10 ईसी, क्विनालफास 25 ईसी व इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल द्वारा गन्ने के बीजों का उपचार कर के कीड़ों पर काबू पाया जा सकता है.

* गन्ना बोने से पहले दानेदार कीटनाशी रसायन फोरेट 10 जी की 25 किलोग्राम मात्रा से प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन का उपचार कर के कीड़ों पर काबू पाया जा सकता है.

जड़ बेधक

इस कीट की मादा रात में पत्तियों के निचले भाग पर और तनों पर हलके पीले रंग के चपटे अंडे देती है. अंडे झुंड में अलगअलग होते हैं. करीब 4-5 दिनों में अंडे फूटते हैं. सूंड़ी पौधे के जमीन के अंदर वाले हिस्से पर हमला कर के घुसती है. जब पौधे छोटे होते हैं यह उसी समय नुकसान पहुंचाती है. इस से पौधा सूख जाता है. अगर पौधे को खींचा जाए तो नीचे से पूरा पौधा टूट जाता है. यही इस की पहचान है.

अगोला चोटीबेधक

इस कीट का पतंगा सफेद रंग का होता है. इस के पतंगे रात में हमला करते हैं और दिन में छिपे रहते हैं. मादा पतंगा नीचे की तरफ अंडे देती है. अंडे पीले या बादामी बालों से ढके रहते हैं. एक मादा पूरे जीवन में करीब 500 अंडे देती है. अंडा फूटने के बाद सूंड़ी पहले पत्ती में मोटे सिरे पर छेद कर के उसे खाती है, जिस से पौधे की बढ़वार रुक जाती है. फिर सूंड़ी अगोला झुंड के बीच हमला करती है. अगोला के बीच में मृत गोभ यानी डेड हर्ट बन जाता है. मृत गोभ को तोड़ा जाए तो उस से बदबू आती है. जुलाई के महीने में तीसरी पीढ़ी द्वारा हमला होने पर पौध की बढ़वार रुक जाती है और बराबर से छोटीछोटी शाखाएं निकलती हैं, जिन्हें ‘बंची टाप’ कहते हैं. ‘बंची टाप’ तीसरीचौथी पीढ़ी में पाई जाती हैं, जिन की वजह से पौधों की बढ़वार रुक जाती है और पैदावार कम मिलती है. इस कीट का हमला मार्च से शुरू हो कर नवंबर तक रहता है. इस की तीसरी पीढ़ी सब से अधिक नुकसान पहुंचाती है.

तनाबेधक

इस प्रजाति का वयस्क कीड़ा भूरे रंग का होता है. मादा कीट पहलीदूसरी और तीसरी पत्ती की निचली सतह में रात के समय अंडे देती?है. जून में बारिश इस के लिए फायदेमंद होती है. जून के आखिरी हफ्ते से मादा कीट अंडे देना शुरू कर देती है. करीब 6-7 दिनों में अंडे फूटने लगते हैं. इस कीड़े की सूंड़ी जमीन की सतह के सहारे से गन्ने के पौधे में छेद कर के तने के अंदर मुलायम तंतुओं को खाते हुए नीचे से ऊपर तक सुरंग बनाती है, जिस की वजह से बीच की कलिकाएं सूख जाती हैं और ‘डेड हर्ट’ बन जाता है, जो कि खींचने से आसानी से निकल आता है.

फसल पर इस कीट की मौजूदगी पौधों के छेदों और ‘डेड हर्ट’ की बदबू से मालूम पड़ जाती है. इस का ज्यादा प्रकोप होने पर काफी ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है.

प्ररोहबेधक

यह कीड़ा मार्च से नवंबर तक सक्रिय रहता है. यह पतंगा रात में ज्यादा सक्रिय रहता है. इस की मादा सफेद अंडे गुच्छों में देती है. 6-9 दिनों में अंडे फूटते हैं. 3-4 हफ्ते में सूंड़ी पूरी तरह विकसित हो कर तने के अंदर प्यूपा बनाती है. साल में इस की 4-5 पीढि़यां पाई जाती हैं. इस की सूंड़ी पौधे के निचले भाग पर तने में छेद करती है. इस के हमले से पत्तियों को नुकसान पहुंचता है, जिस से पूरा पौधा सूख जाता है.

पोरीबेधक

इस की मादा रात में अंडे देती है और लगातार 7-8 दिनों तक अंडे देती रहती है. यह पत्तियों के जोड़ व गहरी शिराओं में अंडे देती है. 6-7 दिनों में अंडे फूटते हैं. इस का प्यूपा अधिकतर आधी सूखी पत्तियों पर रेशम के धागों द्वारा बनाए गए कोकून में पाया जाता है. यह कीड़ा अगस्त के पहले हफ्ते में दिखाई देता है. इस से सब से ज्यादा नुकसान सितंबर के आखिर में होता है. जिस पौधे पर हमला होता है, उस की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. सूंड़ी के घुसने की जगह के ऊपर कीटमल भी पाया जाता है. सूंड़ी छाल को काट कर एक पोरी से दूसरी पोरी में घुस जाती है. सूंड़ी के शिकार हुए पौधों की पत्तियां व आधे भाग की कोमल पोरियां पीली पड़ कर सूख जाती?हैं.

गुरदासपुरबेधक

यह गन्ने को बहुत नुकसान पहुंचाने वाला कीड़ा है. यह सब से ज्यादा नुकसान जुलाईअगस्त में पहुंचाता है. मादा कीट शाम को गन्ने की पत्तियों की निचली सतह पर झुंडों में अंडे देती है शुरू में अंडे का रंग पीला या सफेद होता है, जो बाद में भूरे रंग का हो जाता है. अंडे से निकली सूंडि़यां दूसरी या तीसरी पोरी में झुंड में ऊपर से नीचे की ओर घुसती हैं. करीब 1 हफ्ते बाद ये सूंडि़यां अंदर के मुलायम भाग को खाते हुए लगातार बढ़ती रहती हैं. शुरू में गन्ने की निचली पत्तियां ही सूखती हैं और कुछ दिनों बाद पूरी मध्य कलिका ही सूख कर ‘डेड हर्ट’ बनाती है, जो जरा सा खींचने से निकल जाता है. जिस पौधे पर अगोलाबेधक कीट का हमला होता है, उस पौधे पर इस कीट का हमला भी होता है. लेकिन जिन पौधों पर इस का पहले हमला हो चुका हो, उन पर अगोलाबेधक कीट का हमला नहीं होता है.

बेधक कीटों की रोकथाम

* गरमी के दिनों में 2-3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए.

* ट्राइकोकार्ड (ट्राइकोकार्ड कीलोनिस/जेपोनिकम) अंड परजीवी के 75000-1,00,000 प्यूपे प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतराल में छोड़ने चाहिए.

* कोटेशिया फलेवीपस (गिडार पारजीवी) के वयस्क को 2000 प्यूपा प्रति हेक्टेयर की दर से 30 दिनों के अंतराल पर छोड़ना चाहिए.

* जरूरत पड़ने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 4-5 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 30-40 दिनों बाद सिंचाई से पहले इस्तेमाल करें.

* शूट बोरर के लिए ग्रन्यूलोसीस वाइरस का छिड़काव करना चाहिए.

* गन्ने में बोरर कीटों के लिए कोराजन का 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.

* बीटी 1.0 किलोग्राम मात्रा को 900-1000 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिनों के अंतर पर 3 बार छिड़काव करें.

* प्रकाश प्रपंच व फिरोमोन ट्रैप (5-6 फिरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से) का इंतजाम करें.

* नीम उत्पादित कीट रोग विष जैसे एनकेई या नीम कोल्ड की 5 फीसदी मात्रा का इस्तेमाल करें.

* अधिक असर होने पर फिपरोनिल 5 एससी (रिजंट) या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर, क्विनालफास 25 ईसी की 2 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर, इंडोसल्फान 35 ईसी की 2 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर, सायपरमेथ्रिन 10 ईसी की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से 20 दिनों के अंतर पर 2-4 बार छिड़कें.

पाइरिला या फड़का

वयस्क कीड़ा भूरे रंग के पंख और नुकीली चोंच वाली गन्ने की सूखी पत्तियों जैसा होता है. इस की मादा गरमियों में पत्तियों की निचली सतह और सर्दियों में पत्तियों के अन्य हिस्सों पर अंडे देती है. अंडे गुच्छों में सफेद, रोएंदार बालों से ढके रहते हैं. 8-10 दिनों में इस से अर्भक (निम्फ) निकलते हैं. शुरू में इन का रंग मटमैला सफेद होता है. अर्भक काल 4-6 हफ्ते का होता है. पाइरिला को किसान फड़के के नाम से भी जानते हैं. ऐसा देखा गया है कि इस कीट का प्रकोप 1 साल छोड़ कर तीसरे साल अधिक होता है. मादा कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियां पीली व कमजोर पड़ जाती हैं. इस कीट द्वारा पत्तियों पर एक तरह का चिपचिपा पदार्थ छोड़ा जाता है, जिस पर काले रंग की फफूंद उग जाती है. इस फफूंद से पत्तियों की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है, जिस से गन्ने की बढ़वार रुक जाती है और पैदावार में कमी आती है. पाइरिला का हमला अप्रैल महीने से शुरू होता है और जुलाई से नवंबर तक अधिक होता है. वातावरण में नमी बदलने पर इस का असर बढ़ जाता है.

रोकथाम

* पत्तियों को निम्फ निकलने से पहले अंडों सहित तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए और कम हमले वाली फसल से परजीवी वाली पत्तियां तोड़ कर अधिक पायरिला प्रभावित खेतों में लगाएं.

* प्रकाश ट्रैप अपनाएं. रात में खेत में बिजली के बल्ब, पैट्रोमैक्स या लालटेन जलाएं और उन के नीचे मिट्टी का तेल या इंडोसल्फान दवा पानी में घोल कर किसी परात या टब में रख दें.

* कीटनाशक दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल न करें. इपीरिकेनिया, टैट्टासिटकस, लेडीबर्ड बीटल, चींटी व मकड़ी और पाइरिला के अंडों के कुदरती दुश्मनों की हिफाजत करनी चाहिए.

* इपीरिकेनिया मेलैलरेन्यूका परजीवी को ज्यादा परजीवी वाले खेतों से निकाल कर कम परजीवी वाले खेतों में लगाना चाहिए. इस के 100-120 अंडे समूह या 200-250 ककून को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छोड़ना चाहिए. वातावरण में नमी वाली स्थिति में ही इस को खेत में छोड़ना चाहिए.

* बरसात के बाद निम्फ परजीवी इपीरिकेनिया मेलैलरेन्यूका और टैटास्टिकस पायरिली सक्रिय रहता है. इसलिए इस समय कीटनाशी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

* मेटाराइजियम एनाआइसोप्ली की 10×2 बीजाणु प्रति मिलीलीटर की 1 किलोग्राम मात्रा का प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए.

सफेद मक्खी

इस का वयस्क कीड़ा बहुत छोटा यानी करीब 2.5 मिलीमीटर लंबा और 1 मिलीमीटर मोटा पीले रंग का होता है. इस की वयस्क व शिशु (बच्चा) दोनों अवस्थाएं नुकसान पहुंचाती हैं. मादा कीट गन्ने की पत्तियों की निचली सतह पर बीच की शिरा के पास सीधी लाइनों में अंडे देती है. हर अंडा .03 मिलीमीटर लंबा और पीले रंग का होता है. गरमियों में लगभग 7 दिनों और जाड़ों में लगभग 13-14 दिनों में अंडे फूटते हैं और बच्चे निकलते हैं.

आमतौर पर अधिकतर इस का हमला जुलाई से ले कर नवंबर तक होता है. बच्चे व वयस्क दोनों ही गन्ने की पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियों पर घाव बन जाते हैं और उन पर कवक का हमला हो जाता है. इस  हमले से गन्ने में श्वेत मक्खी सूक्रोज की मात्रा कम हो जाती है और चीनी की मात्रा में 30 फीसदी की कमी हो जाती है. इस का हमला होने पर करीब 50 फीसदी फसल खत्म हो जाती है.

रोकथाम

* इस कीट का हमला होने पर पेड़ी की फसल नहीं लेनी चाहिए.

* नाइट्रोजन की संतुलित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए.

* कुदरती दुश्मन परजीवी अजोटस डेहेनसिस, अमिटस अलुरोबी, इक्सटीमेकोरस डेहेनसिस व इंकरसिया प्रजातियों का इस्तेमाल करना चाहिए.

* अगस्त व सितंबर के महीनों में पत्तियों की जांच कर के कीड़े लगी पत्तियों को इकट्ठा कर के नष्ट कर दें.

* इस कीट का अधिक हमला होने पर कीटनाशी रसायन क्लोरोपायरीफास 20 फीसदी ईसी 1.5 लीटर, इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल, मोनोक्रोटोफास 36 ईसी शील चूर्ण 1.5 लीटर मात्रा को 1000 से 1200 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

काटन कैंडी सब को लुभाए

तमाम मेलों से ले कर मौल्स तक में बुढि़या के बाल यानी काटन कैंडी का स्वाद सभी को लुभाता है. छोटे बच्चे तो इस के खास दीवाने होते ही?हैं, पर बड़े लोग भी इस का स्वाद लेने में पीछे नहीं रहते हैं. लोग 10 रुपए से ले कर 30 रुपए तक की अलगअलग आकार वाली काटन कैंडी खरीदते हैं. मेलों और मौल्स में काटन कैंडी की मशीन लगा कर इसे बनाया जाता है. घरों में मशीन लगा कर काटन कैंडी की छोटीछोटी चिडि़या बनाई जाती हैं. इन को गांवगांव गलीगली बांस के डंडों में टांग कर बेचा जाता है. यह चीनी से बनती है, इसलिए कुछ जगहों पर इसे चीनी की चिडि़या भी कहा जाता है

आमतौर पर बच्चे छोटीछोटी चिडि़या के आकार वाली काटन कैंडी को खूब पसंद करते हैं. काटन कैंडी रुई जैसी होती है. इसे रंगबिरंगी बनाने के लिए खाने वाले अलगअलग रंगों का इस्तेमाल किया जाता है. ज्यादातर लोग पिंक कलर की काटन कैंडी पसंद करते हैं, लिहाजा पिंक कलर की काटन कैंडी ज्यादा बनती है. रुई जैसी मुलायम होने के कारण ही इसे काटन कैंडी कहा जाता है. बच्चे इसे बुढि़या के बाल के नाम से जानतेपहचानते हैं.

काटन कैंडी मशीन

काटन कैंडी बनाने में सब से जरूरी काटन कैंडी मशीन होती?है. यह बिजली से चलती है. इस के चारों तरफ लोहे की चादर लगी होती है. मशीन के बीच में ग्राइंडर लगा होता है. इस के चारों ओर बहुत ही छोटेछोटे छेदों वाली स्टील की चादर लगी होती है. ग्राइंडर के बीच में जब खाने के रंग मिली चीनी डाली जात है, तो ग्राइंडर में चीनी आटे जैसी महीन पिस जाती?है. यह खास किस्म का ग्राइंडर होता है, जो तेजी से गरम हो जाता है. ग्राइंडर के गरम होने से चीनी पिघल जाती है. पिघलने के बाद चीनी छोटेछोटे छेदों से हो कर रुई के आकार में बाहर निकलने लगती है. मशीन में चीनी डालने वाला कारीगर लकड़ी के एक टुकडे़ में इस रुई जैसी चीनी को फंसा कर कैंडी जैसा आकार देता है.

2 किलोग्राम चीनी से बड़े आकार की (20 रुपए प्रति कैंडी की दर से बिकने वाली) 10 कैंडी बन जाती हैं. गांवों में बेचने के लिए छोटे आकार की काटन कैंडी बनाई जाती हैं. इन को लुभावना बनाने के लिए हाथ से चिडि़या या फूल का आकार दिया जाता है. अच्छे किस्म की काटन कैंडी बनाने के लिए 80 रुपए में कैंडी शुगर का 1 पैकेट आता है. इस में अलग से रंग नहीं मिलाना पड़ता है. साधारण चीनी के मुकाबले इस से बनी काटन कैंडी सेहत के लिए ज्यादा मुफीद होती है. यह साधारण चीनी के मुकाबले ज्यादा मुलायम और स्वाद वाली होती है. इस में डाला गया रंग भी अच्छी किस्म का होता है.

बढ़ रहा आकर्षण

मेला छोटा हो या बड़ा, बिना काटन कैंडी के वह पूरा नहीं होता है. मेले ही नहीं अब तो मौल्स में भी काटन कैंडी की तमाम दुकानें लगने लगी हैं. शादी जैसे तमाम मौकों पर भी काटन कैंडी बेचने वाले को बुलाया जाता है. बच्चे ही नहीं बड़े भी अब इसे खाने से खुद को रोक नहीं पाते हैं. अगलअलग आकार की होने के कारण काटन कैंडी बच्चों को खूब लुभाती है. मेलों में बच्चे इसे बुढि़या के बाल और चीनी की चिडि़या के नाम से जानते थे. मौल्स में आ कर यह काटन कैंडी के नाम से मशहूर हो गई है.कम लागत में काटन कैंडी बनाने के रोजगार को चलाया जा सकता है. इसे बनाने के लिए बहुत कारीगरी सीखने की जरूरत भी नहीं होती है. बच्चों को पसंद होने के कारण इसे बेचना आसान होता है. बहुत गरमी और बरसात में इस का धंधा कम हो जाता  है. जाड़ों की कुनकुनी धूप में बच्चों को काटन कैंडी खूब पसंद आती है. इसे बेचने का धंधा अच्छा है. गांवों और आसपास के बाजारों में इसे खूब खरीदाबेचा जाता है. ज्यादा फायदे के चक्कर में कुछ लोग खराब किस्म के रंग इस्तेमाल करते?हैं. इस से बच्चों का स्वास्थ्य खराब हो सकता है.

बुढि़या के बाल पसंद करने वाली स्वाति अवस्थी कहती हैं, ‘अब शादी की पार्टी में भी काटन कैंडी रखी जाने लगी है. यह बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करती है. अब महिलाएं भी इसे पसंद करने लगी हैं. यह एक तरह की मजेदार मिठाई हो गई है. बड़ेबड़े शहरों के मौल्स में यह धड़ल्ले से बिकने लगी है.’

कुछ कहती हैं तसवीरें

जांबाज खिलाड़ी : रोजमर्रा की मारामारी में इनसान इस कदर पिस कर रह जाता है कि उसे रिचार्ज होने के लिए खेलतमाशों का सहारा लेना पड़ता है. हंटिंग फेस्टिवल एक ऐसा ही आयोजन है, जिस में जानवर दिल जीत लेते हैं.

अंधविश्वास का मारा किसान बेचारा

एक तरफ हमारा देश विज्ञान के क्षेत्र में नईनई खोजें कर रहा?है, जिस से जीवन को आसान किया जा सके, वहीं दूसरी तरफ हमारे देश के बहुत से किसान आज भी जादूटोनों और तंत्रमंत्रों से ही बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.बस्ती जिले के किसान कैलाश ने अपने खेतों में धान की बोआई की ही थी कि हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई. उस ने तुरंत अपनी पत्नी से कहा कि बीज डालते ही बारिश होने लगी है. तुम जल्दी से काना बांध दो, जिस से बारिश बंद हो जाए. उस की पत्नी फौरन एक सफेद कपड़े को ले कर गांठ बांधने लगी और गांव के कुछ काने लोगों के नाम बोलने लगी.

एक बार थरौली गांव का राम कुमार अपनी मां की बीमारी की वजह से समय पर अपने गेहूं की फसल की मड़ाई नहीं कर पाया और बारिश होने से उस की सारी फसल बरबाद हो गई. तब गांव के कुछ धर्म के ठेकेदारों ने यह कहना शुरू कर दिया कि रामकुमार ने धान की फसल कटने के बाद कालीजी व शंकर भगवान को चढ़ावा नहीं चढ़ाया इसलिए भगवान ने नाराज हो कर उस की फसल खराब कर दी.

इस तरह के तमाम उदाहरण हमारे आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद हैं.

वसूली का तरीका : इस तरह की गलतफहमियां फैला कर के और भगवान व ग्राम देवता का डर दिखा कर ये धर्म के?ठेकेदार फसल कटने के बाद किसान के घर में अनाज जाने से पहले देवीदेवताओं के नाम पर अपना हिस्सा वसूलते हैं.

किसान श्रीधर शुक्ल ने बताया कि उन के यहां कोई भी फसल होती है, तो वे सब से पहले गोसाई बाबा और पंडितजी को बुला कर उन की खलिहानी (हिस्सा) उन को निकाल कर दे देते हैं और उस के बाद ही अनाज को घर के अंदर ले जाते हैं. जब भी उन के छप्पर पर कोई लौकी या कद्दू फलता है, तो भी वे पहले फल को भगवान को चढ़ा कर पंडितजी या गोसाई बाबा को दान देते?हैं, जिस से भगवान की कृपा उन पर बनी रहे और उन की फसल अगले साल और अच्छी हो. यह अजीबोगरीब हाल किसी खास इलाके का नहीं है, बल्कि पूरे हिंदुस्तान का?है.

डराने के हैं और भी तरीके : कोई किसान बाबाओं व पंडितों को हिस्सा नहीं देता तो ये लोग बारिश न होने पर गांव के मनचले लड़कों से कह कर उस किसान के ऊपर गोबरी (सड़ा हुआ गोबर) फिंकवा देते हैं. कहा जाता है कि जिस इनसान के ऊपर गोबरी फेंकी जाती है, वह जितना चिल्लाएगा बारिश उतनी ही अच्छी होगी. अपने फायदे के लिए ये धर्म के ठेकेदार भोलेभाले गरीब किसानों को इस तरह के तमाम हथकंडे अपना कर परेशान करते?हैं.

इस बारे में समाजसेवी डा. संजय द्विवेदी का कहना है कि आज भी गांवों में लोगों का पढ़ालिखा न होना एक बड़ी समस्या है, जिस का फायदा उठा कर धर्म के ठेकेदार अपना उल्लू सीधा करते हैं. वैसे अब लोग थोड़े जागरूक होने लगे?हैं. कुछ पढ़ेलिखे लोग धर्म के ठेकेदारों के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं.

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