आयुर्वेदिक दवाओं में खासतौर से इस्तेमाल होने वाली सफेद मूसली की कीमतों में 3 साल बाद सुधार होने से राजस्थान में इस की खेती करने वाले किसानों ने फिर से इस जड़ीबूटी की खेती करना शुरू कर दिया है. राज्य के राजसमंद, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ व बारां जिलों में कुछ किसान सफेद मूसली की खेती करते हैं. इस की सब से ज्यादा खेती राजसमंद जिले की भीम व देवगढ़ तहसीलों में अरावली की पहाडि़यों पर बसे छोटेछोटे गांवों में की जाती है. यहां कम से कम 50 से 60 किसान सफेद मूसली की खेती करते हैं. यहां होने वाली यह जड़ीबूटी अच्छी मानी जाती है.

राजसमंद जिले के मूसली की खेती करने वाले किसान हजारी सिंह चौहान बताते हैं कि साल 2011 में यहां के किसानों को इस जड़ीबूटी की खेती से अच्छी आमदनी हुई थी और करीब 1200 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से थोक व्यापारियों को किसानों ने अपनी फसल बेची थी. उन्होंने बताया कि इस के बाद इस की कीमतें गिर गईं और किसानों को 600 से 800 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से अपनी पैदावार को बेचना पड़ा. सफेद मूसली के दाम घट कर करीब आधे हो जाने से किसानों को काफी झटका लगा था. एक किसान पूर्ण सिंह ने तो साल 2013 में करीब 1 क्विंटल सफेद मूसली का भंडारण कर के उसे अच्छे भाव के इंतजार में रोके रखा था, लेकिन आखिर में उन्हें साल 2014 में 600 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से उसे बेचना पड़ा था.

राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि जगहों पर सफेद मूसली की खेती करने वाले किसानों को इस फसल के दाम कम मिलने पर उन्होंने इस जड़ीबूटी की खेती करना लगभग छोड़ ही दिया था और साल 2015 में देश भर में इस का रकबा सिकुड़ कर लगभग आधा हो गया था. इस की खेती करने वाले हर किसान ने पहले की तुलना में जमीन के आधे हिस्से पर ही इस की खेती की. लेकिन साल 2015 के अक्तूबरनवंबर में इस की फसल तैयार होने पर इस के दाम ऊंचाई छूने लगे. जिन किसानों ने थोड़ा धैर्य रखा, उन्हें 1300 से 1500 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से आमदनी हुई.

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