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बदल रही बहुयें

शादी और ससुराल के बाद भी महिलायंे अपने को किसी से पीछे नहीं मानती. पहले समझा जाता था कि शादी के बाद करियर और शौक खत्म हो जाता है. बडे शहरों में तो पति, परिवार और सुसराल के साथ महिलायें अपने करियर और शौक को पूरा कर ही रही थी. अब छोटे शहरों में भी अपने परिवार का ध्यान रखते हुये महिलायें अपने शौक को पूरा करने का समय निकाल लेती है .इन सबके अपना फ्रेंड सर्किल होता है.जहां यह लडकियांे की तरह अपने शौक पूरा करते डांस और मस्ती करती है. 20 से 30 महिलाओं के ऐसे आयोजन शहरों में बहुत तेजी से होने लगे है.लखनऊ के बंकर क्लब में डिजलिंग डिवास पार्टी का आयोजन ग्रेविटी इवेंट द्वारा किया गया.इसमें लखनऊ की तमाम खूबसूरत महिलाओं ने हिस्सा लिया.इवेंट आयोजक लक्ष्मी मेहरोत्रा कोरियोग्राफर भी है. डिजलिंग डिवास पार्टी की सहआयोजक अमृता पुंडीर ब्यूटी कांटेस्ट विनर रही है.वह बहुमुखी प्रतिभा की धनी है.पार्टी में शामिल हुई महिलाओे ने रैंपवाक सहित और कई तरह के हुनर दिखाये. ब्यूटीफुल स्माइल, स्टार औफ पार्टी और मिसेज टेन आॅन टेन जैसे टाइटिल जीतने के लिये सभी ने पूरी तैयारी की थी.

डिजलिंग डिवास की गेस्ट औफ आॅनर शिवली अरोरा थी. इवेंट की खूबसूरत एंकरिंग मलिका ने की थी. डांस के लिये डीजे नम्बर से सबको थिरकने पर रोमी ने मजबूर किया. बंकर क्लब नाम के हिसाब से ही डेकोरेट किया गया है. इसका श्रेय सचिन मेहरोत्रा को जाता है. डांस और मस्ती भरे शो का हिस्सा बनी ज्यादातर महिलायें शादीशुदा थी. जो अपने परिवार और बच्चों को अच्छी तरह से ख्याल रखने के साथ ही साथ खुद की जिदंगी भी हंसीखुशी से जीती है. डांसमस्ती करती यह महिलायें किसी फिल्मस्टार से कम नहीं दिख रही थी. इनमें शामिल हुई महिलायें घर के साथ अपने खुद के या फिर परिवार के बिजनेस को भी संभालती है.शहर में अपनी मेहनत और लगन से अपनी खुद की पहचान बनाई है.पार्टी की शान बनी इन महिलाओं में सलोनी केसरवानी, एकता सिंह, डाक्टर रितु चुघ, स्वाति भाटिया, स्वीटी चावला, अनुराधा शर्मा, यशा गुलाटी, रूचि सिह, डाक्टर बीना सिंह, सीमा सिंह, अनुष्का सिंह, और शुभी वालिया प्रमुख थी.

इस तरह की पार्टियों के आयोजन शहरों में तेजी से बढ गये है.अब घरों में रहने, कामकाज करने और नौकरी पेशा महिलायें भी कुछ समय अपने लिये निकालना चाहती है.यह केवल किटी जैसी पार्टियों में टाइम पास नहीं करना चाहती.जो सोंच अपनी जिदंगी के प्रति होती है इसको पाने के लिये यह आयोजन होते है.जहां यह पूरी तैयारी के साथ पार्टी को भी इंज्वाय करती है.इस तरह के गेट टू गेदर से इनके आपस में संबंध भी मजबूत होते है जो इनके सामाजिक जीवन के साथ में ही बिजनेस रिलेशन को भी मजबूत करते है.जो लोग महिला सशक्तीकरण की बात करते है उनके लिये यह उदाहरण है यह आपस मंे ही मिलजुल कर महिला सशक्तीकरण की मिसाल बनती है.सबसे अचछी बात कि यह सबकुछ परिवार के साथ और उनकी मदद से करती है.इससे महिला सशक्तीकरण के साथ परिवार संस्था भी मजबूत होती है.यह अपनी खुशियों के लिये किसी पर निर्भर नहीं रहती खुद ही आत्मनिर्भर बनती है.
                            
 

कब रिलीज होगी शाहरुख खान की फिल्म‘‘रईस’’

गुजरात के डाॅन पर बनी फिल्म ‘‘रईस’’के लिए शाहरुख खान ने काफी मेहनत की है. इस फिल्म से उन्हे काफी उम्मीदे हैं. मगर असहिष्णुता पर शाहरुख खान द्वारा दिया गया बयान उनके लिए गले की हड्डी बन गया है. इस बयान की वजह से उनके कई प्रशंसक उनसे नाराज हो गए. जिसका खामियाजा उन्हे फिल्म ‘‘दिलवाले’’ में भुगतना पड़ा. अपनी गलती का अहसास कर शाहरुख खान ने अपनी गलती सुधारने की काफी कोषिश की और फिल्म ‘‘फैन’’ के रिलीज से पहले शाहरुख खान ने अपनी कंपनी के पी आर विभाग से जुड़े एक शख्स को बाहर का रास्ता दिखाने के अलावा कुछ टीवी चैनलों पर देशभक्त होने और उनके बयानां को गलत ढंग से पेश किए जाने का राग भी अलापा. मगर ‘फैन’बुरी तरह से असफल रही.

शाहरुख खान के लिए अफसोस की बात तो यह है कि ‘फैन’ने बाक्स आफिस पर ‘दिलवाले’ से भी कम बिजनेस किया. वास्तव में शाहरुख खान को अभी तक इस बात का अहसास नहीं हो पा रहा है कि वह अपनी हरकतों से गलत संदेश लोगों तक पहुॅचा रहे हं. फिल्म ‘‘फैन’’ से उन्होने अपने प्रशंसकों को संदेश दिया है कि वह सुपर स्टार अपनी मेहनत, किस्मत व अपनी सनक की वजह से बने हैं न कि ‘फैन्स’ यानी कि प्रशंसकों की वजह से. वह अपने प्रशंसकों को पंच सेकंड का समय भी नहीं देना चाहते. इस संदेश ने शाहरुख खान की छबि धूमिल की है. सूत्रों की माने तो इसी वजह से वितरकों ने फिल्म ‘रईस’के निर्माताओं तक यह संदेश भेज दिया कि ‘रईस’ केा अभी रिलीज करना घाटे का सौदा होगा.

जिसके बाद अब फिल्म ‘रईस’के निर्माता रितेष सिद्धवानी और फरहान अख्तर ने कहा है कि वह ‘रईस’ को 26 जनवरी 2017 में रिलीज करेंगे. मगर रितेष सिद्धवानी के नजदीकी सूत्रों की माने तो रितेष ने अपनी फिल्म ‘‘रईस’’ को ठंडे डिब्बे में बंद कर दिया है और जब उन्हे समय अनुकूल नजर आएगा, तभी वह इसके रिलीज के बारे में सोचेंगे. उधर शाहरुख खान ने अपनी ईमेज को सुधरने की कसरत करनी षुरू कर दी है. अब वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों की प्रशसा करते हुए नजर आने लगे हैं. मगर उनके सामने अपने प्रशंसकों का दिल जीतना एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है. सूत्रो की माने तो रितेष सिद्धवानी किसी भी सूरत में  ‘रईस’ को रितिक रोषन की फिल्म ‘‘काबिल’’और अजय देवगन की फिल्म ‘‘बादशाहो’’ के सामने 26 जनवरी 2017 को रिलीज करने का रिस्क नहीं उठाना चाहते हैं. वह शाहरुख खान के प्रति दर्शकों के नजरिए के बदलने का इंतजार करना चाहते हैं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि फिल्म ‘‘रईस’’ कब रिलीज होती है और बाक्स आफिस पर उसका क्या हश्र होता है.
 

प्यार किया कोई चोरी नहीं की

अभिनेता ब्रूस विलिस (बाएं) ने 60 की उम्र में तो प्लेबौय पत्रिका के मालिक ह्यूग हेफनर ने (दाएं) 86 वर्ष की उम्र में शादी कर बता दिया कि प्यार में उम्र की सीमाएं माने नहीं रखतीं. ब्रिटिश ऐक्ट्रैस जोआन कौलिंस को अपना प्यार खुद से उम्र में 32 साल छोटे परसी गिबसन में नजर आया तो उन्होंने परसी को अपना जीवनसाथी बनाने में देर नहीं की.  टीवी व फिल्मों की लोकप्रिय अभिनेत्री सुहासिनी मुले ने 60 साल की उम्र में औनलाइन माध्यम से अपना जीवनसाथी चुना

मातापिता की बात मान कर, अच्छे बच्चों की तरह उन की इच्छा का अनुसरण करते हुए शादी के बंधन में न बंध कर, ‘मुगल ए आजम’ फिल्म का गीत ‘जब प्यार किया तो डरना क्या…’ प्रेम का एक विद्रोही रूप सामने लाता है. ऐसा रूप जो किसी की नहीं सुनता. न परिवार की न समाज की. किसी की परवा किए बगैर वह, वह कर गुजरना चाहता है जो वह खुद चाहता है.

पर क्या ऐसा प्यार सिर्फ जवानी का जोश होता है? जी नहीं, इसी विषय पर जरा दूसरा गाना याद कीजिए – ‘न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन…’ हो सकता है ‘केवल मन’ थोड़ा फिल्मी अंदाज हो किंतु उम्र की सीमा को तोड़ कर प्यार और शादी के कई उदाहरण हैं.

हौलीवुड के अभिनेता ब्रूस विलिस ने 60 वर्ष की आुय में 35 वर्षीया मौडल एमा हेमिंग से विवाह किया. इंगलैंड की अभिनेत्री जोआन कौलिंस ने 81 वर्ष की उम्र में अपने से 32 वर्ष छोटे निर्माता परसी गिबसन से शादी की थी. विख्यात पत्रिका ‘प्लेबौय’ के मालिक ह्यूग हेफनर तब 86 वर्ष के थे जब उन्होंने अपने से 60 वर्ष कम, 26 वर्षीया हैरिस से शादी की. अमेरिकी अखबार जगत के बेताज बादशाह, रूपर्ट मर्डोक ने भी 84 वर्ष की उम्र में अपने चौथे विवाह की तैयारी में मौडल जेरी हाल, 59, को करीब 1 लाख पौंड की सगाई की अंगूठी भेंट की.

सिर्फ विदेशों में ही नहीं, भारत में भी ऐसी रीति चलन में है. अभिनेता कबीर बेदी 16 जनवरी को अपने 70वें जन्मदिन पर अपने से 29 वर्ष छोटी 42 साला महिला परवीन दुसांज से शादी करने की खबरों को ले कर सुर्खियों में रहे. कबीर बेदी की यह चौथी शादी है. परवीन और कबीर पिछले 10 वर्षों से साथ रह रहे थे. परवीन उन की पत्नी की हर भूमिका पहले से निभा रही हैं तो फिर अब शादी क्यों? हो सकता है कि कबीर ने परवीन के आगे के जीवन की सुरक्षा हेतु शादी का निर्णय लिया हो या फिर वे दोनों अपने प्यार को आखिरी अंजाम तक पहुंचाना चाहते हों.

मराठी सिनेमा की मशहूर अदाकारा सुहासिनी मुले ने सारे तर्कों को ताक पर रख कर 60 वर्ष की आयु में शादी की, वह भी औनलाइन खोज के जरिए. सुहासिनी जो करीब 20 वर्षों से अकेली रहती आई हैं, ने शादी की उम्मीद ही छोड़ दी थी. लेकिन फिर उन्हें 65 वर्षीय अतुल गुर्तु औनलाइन मिले. अतुल द्वारा पहली पत्नी के अंतिम समय में की गई सेवा की बात ने सुहासिनी को आकर्षित किया. उन के इस निर्णय से सारा परिवार अचंभित था.

आम आदमी का क्या?

सैलिब्रिटीज के तो किस्से खूब हैं. वे जब चाहें तब शादी करते रहते हैं. सवाल है कि आम घरों में, आम आदमी के लिए बड़ी उम्र में विवाह करना क्या संभव है? जी, बिलकुल है. समाज बदल रहा है. अंगरेजी की एक कहावत है- ‘इट्स वन लाइफ.’ आखिर सब को एक जीवन मिलता है. यदि समय पर विवाह न हुआ, या जीवनसाथी की आकस्मिक मृत्यु हो गई तो ऐसे में दूसरे को अपना बाकी जीवन अकेले क्यों काटना पड़े? जब जागो, तभी सवेरा.

समय का पहिया थोड़ा पीछे मोडें़ तो हम पाते हैं कि जीवनसाथी के गुजर जाने या तलाक हो जाने पर, बाकी की उम्र अकेले ही गुजारनी पड़ती थी. बढ़ती उम्र में बिना किसी साथी के चुपचाप सी जिंदगी. अपनी बात कहने को कोई नहीं, सिर्फ एक खामोश अकेलापन. उस उम्र में घर वालों की देखरेख करो, प्रतीक्षारत रहो. लेकिन आज के समय में बढ़ती उम्र में भी अपनी जिंदगी जीने की चाह को ले कर खुलापन आया है. बढ़ती उम्र में भी शादियां हो रही हैं.

सार्थक पहल

मुंबई के कुमार देशपांडे ने अपनी सास की मृत्यु के बाद, अकेले रह गए अपने ससुर की पीड़ा पहचानी. और न केवल देशपांडे ने अपने ससुर की, एक साथी ढूंढ़ने में मदद की, बल्कि इस अनुभव से सीख लेते हुए, आज वे बुजुर्गों के लिए हैदराबाद, कोल्हापुर इत्यादि जगहों पर ‘‘कुमार देशपांडे फांउडेशन’ के नाम से मैरिज ब्यूरो भी चलाते हैं. वे कहते हैं, ‘‘युवाओं को यह समझना होगा कि बुजुर्गों को किसी के साथ की ज्यादा आवश्यकता है. समाज बदल रहा है किंतु धीरेधीरे.’’ ठीक ऐसे ही नाथुभाई पटेल भी एक संस्था चलाते हैं- ‘बिना मूल्य अमूल्य सेवा’. यह संस्था बुजुर्गों के लिए शादी के मेले लगवाती है. उन के अनुसार, ‘‘हो सकता है कि ऐसे मेलों में निश्चित समायावधि में जीवनसाथी न मिल पाए किंतु जागरूकता की वजह से ऐसे मेलों में भागीदारी में वृद्धि हुई है. कुछ लोग बिना संकोच के सामने आते हैं तो कुछ समाज की हिचकिचाहट की वजह से गुपचुप तरीके से शादी करते हैं.’’

जहां चाह, वहां राह

जीवन बीमा निगम के सेवानिवृत्त अध्यक्ष पुणे के जयंत जोशी ने बेंगलुरु की लीना से 2005 में शादी की थी. जयंत की बहू तथा लीना का बेटा सारी तैयारियों में आगे थे. जयंत कहते हैं, ‘‘74 वर्ष की उम्र में मैं अपने लिए दुलहन खोज रहा था. पत्नी के देहांत के 11 वर्ष बाद मैं ने दूसरे विवाह के बारे में सोचा. यह उसी की इच्छा थी कि मैं अकेला न रहूं.’’

आखिर अकेले रह गए बुजुर्गों को पुनर्विवाह की सोच क्यों डराती है? इस पर जयंत कहते हैं, ‘‘बहुत से बुजुर्ग ऐसा सोचते हैं कि दूसरी शादी करना उन के पहले साथी के साथ बेवफाई होगी. लेकिन मृत्यु एक संयोग है और बढ़ती उम्र में साथ की चाह एक जरूरत है.’’ जयंत और लीना अपने बच्चों के आसपास ही रहना चाहते हैं. शोभा की पहली शादी केवल 4 दिन चल पाई. उस के बाद भी ससुराल वालों की प्रताड़ना जारी रही. भाई ने कई सालों तक साथ दिया पर मातापिता की मृत्यु और बढ़ती उम्र के साथ शोभा को लगने लगा कि एक जीवनसाथी की आवश्यकता है. आखिरकार 2012 में एक विवाह मेले में उन की मुलाकात सुभाष लिमकर से हुई. डेढ़ माह की अवधि के बाद दोनों एकदूसरे से शादी करने को राजी थे. परिवारों की सहमति से दोनों की शादी हुई. शादी के समय सुधा की आयु 51 वर्ष थी और सुभाष की 61 वर्ष. सुभाष की पैंशन पर आज दोनों का गुजारा आराम से होता है.

मुंबई के रमेश ककड़े ने एक सड़क दुर्घटना में अपनी पत्नी को खो दिया. उस के बाद 10 वर्ष तक वे अकेले रहे. एक दिन अखबार में अपनी बेटी हेतु वैवाहिक विज्ञापन देखते हुए उन की नजर एक ऐसी संस्था पर गई जो बुजुर्गों की शादियां करवाती थी. उन के परिवार से कोई भी उन के अकेलेपन को न समझता था और न ही उसे दूर करने के बारे में सोचता था. तो रमेश ने स्वयं ही अपने लिए बीड़ा उठाया. उन्होंने अपनी दूर की एक रिश्तेदार, जिस के पति को गुजरे 25 साल बीत चुके थे, के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा. शादी के समय रमेश की उम्र 67 वर्ष थी और पुष्पा की 63 वर्ष.

रमेश कहते हैं, ‘‘मैं इस बात को ले कर बहुत परेशान होता था कि लोग क्या कहेंगे.’’ लेकिन उस संस्था के लोगों से बातचीत कर के उन का निर्णय और भी दृढ़ हुआ. बेटी और बहन के साथ देने पर वे आगे बढ़े.

कुछ बाधाएं भी

सभी औलादें अकेले रह गए पिता या माता के विवाह के बारे में ऐसा सोचें और पुनर्विवाह में साथ दें, यह जरूरी नहीं. कोल्हापुर के भालचंद्र निकरगे ने 65 वर्ष की आयु में मुंबई की 56 वर्षीया सुवर्णा से विवाह किया. सुवर्णा के पूरे परिवार ने उन दोनों के इस निर्णय में उन का साथ दिया किंतु निकरगे के बच्चों को यह स्वीकार नहीं था. निकरगे कहते हैं, ‘‘हालांकि वे सभी शादीशुदा हैं, आर्थिक रूप से समर्थ हैं, मुझ से दूर मुंबई में रहते हैं. यदि वे भी मेरे इस निर्णय में मेरा साथ देते तो मैं अपनी नई जिंदगी में और खुश होता.’’

अपनी जिंदगी के इस नए अध्याय से प्रसन्न निकरगे अब कोल्हापुर में बुजुर्गों के लिए शादी के सिलसिले में मुलाकातें करवाते हैं. वे बताते हैं, ‘‘बच्चों के सपोर्ट से आजकल कई बुजुर्ग मैरिज ब्यूरो में अपना खाता खुलवा रहे हैं.’’

पुणे की ‘अथश्री स्कीम’ हाउसिंग सोसाइटी एक ऐसा उदाहरण है जो खासतौर पर बुजुर्गों के लिए बनाई गई है और जहां कई नए शादीशुदा जोड़े रहते हैं, जिन्हें उन के बच्चों ने इस नए जीवन के लिए प्रेरित किया.

जीवन की सांध्यबेला में बुजुर्गों को एक बोझ न मान कर, उन्हें नीरस जीवन जीने की राय न दे कर, आज की युवा पीढ़ी इस बात का पूरा समर्थन कर रही है कि उन के मातापिता को अकेले जीवन नहीं काटना चाहिए, बल्कि एक साथी के साथ खुश रहते हुए जीवन बसर करना चाहिए.

फिर कालाधन

पनामा, दक्षिणी अमेरिका का देश जो अपनी नहर के कारण जाना जाता है जिस से अंध व प्रशांत महासागरों को जोड़ा गया है ताकि अमेरिका व कनाडा के जहाजों को अपने पूर्वी तटों से पश्चिमी तटों पर जाने में कम समय लगे, अब लगता है कि अमीरों को उन के छिपे हुए पैसों को इधर से उधर ले जाने के लिए भी नहरमार्ग मुहैया कराता है. विश्वभर के कई समाचारपत्रों, चैनलों व अन्य मीडिया कंपनियों ने एक मिलेजुले प्रयास में पनामा की कानूनी सलाह देने वाली कंपनी मोसैक फोंसेका के 1.5 करोड़ दस्तावेजों से 3.5 लाख गुप्त कंपनियों का पता किया है और इंटरनैशनल कंसोर्टियम औफ इन्वैस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स के बैनर तले एक ही दिन उन का परदाफाश किया है.

कितने ही देशों की राजधानियों, नामी व्यक्तियों और बड़ी कंपनियों के दफ्तरों में जलजला सा आ गया है. चूंकि ये गुप्त खाते थे, इसलिए पक्का है कि इन में जो पैसा गया वह साफसुथरा, टैक्स अदा किया हुआ, जमा नहीं किया गया था. भारत के 500 नाम इस सूची में हैं. इस से साफ है कि भारतीय अमीरों की कमी नहीं, चाहे देश में गरीब यहां 2 रोटी के लिए मुहताज हों. यहां के अमीरों के पास इतना पैसा है कि वे विदेशों में ऐसे खातों में रखते हैं जहां सिर्फ सुरक्षा मिलती है, ब्याज नहीं मिलता. भारत के कौनकौन से नाम पनामा की इस ला फर्म में दर्ज थे, यह बेकार की बात है. इस तरह की बीसियों कंपनियां दुनिया के देशों में काम कर रही हैं और किस ने, कहां पैसा सुरक्षित रख रखा है, कहा नहीं जा सकता.

इन लोगों की कमाई वैध थी या अवैध, इन्होंने कर दिया था या नहीं, ये बेईमान व लुटेरे हैं या शरीफ कमाऊ, क्या ये डरे हुए थे कि ये अपने देश में सुरक्षित नहीं हैं, और कितना पैसा ये वहां जमा कर रहे हैं, ये सब किसी को कभी पता न चलेगा? बड़े अमीरों या बड़े रसूखदारों के बारे में जब भी जांच की जाती है, हजार अड़चनें डाली जाती हैं, रातोंरात दस्तावेज गायब कर दिए जाते हैं. पनामा की कंपनी से चोरी किए गए दस्तावेजों को सच मानना बहुत कठिन है, खासतौर पर आपराधिक मामला बनाने के लिए. यह खुलासा भिड़ों के छत्तों के फूटने की तरह है. कुछ को काटेंगी ये भिड़ें. कुछ दिनों झनझनाहट होगी, फिर सबकुछ सामान्य हो जाएगा. आखिर देश चलने हैं या नहीं. जब देश में लेनदेन होगा, रिश्वतें ली जाएंगी, टैक्स बचाया जाएगा तो यह सब भी तो होगा ही.

क्या करीब आ रहे हैं विराट-अनुष्का??

यूं तो कहने के लिए अनुष्का शर्मा और विराट कोहली का ब्रेकअप हो गया है और दोनों एक दूसरे के बारे में कोई भी बात करने से बच रहे हैं लेकिन लगता है विराट अनुष्का का पीछा नहीं छोड़ना चाहते.

कुछ ही दिन पहले विराट और अनुष्का डिनर डेट कर के होटल से बाहर आते देखे गए थे. माना  जा रहा था कि दोनों अपने रिश्ते को एक और मौका देना चाहते हैं. अब विराट ने जो किया है, उससे शक और बढ़ गया है.

आपको याद होगा कि विराट ने ब्रेकअप के वक्त अनुष्का को हर सोशल मीडिया से अनफॉलो कर दिया था. विराट की इन्हीं हरकतों से पता चला था कि दोनों के बीच रिश्ता टूट गया है. लेकिन अब विराट ने अनुष्का के जन्मदिन पर उन्हें एक खास तोहफा दे डाला है.

विराट ने अनुष्का को फिर से ट्विटर और इंस्टाग्राम पर फॉलो करना शुरू कर दिया है. भले ही विराट ने कोई कीमती तोहफा न दिया हो लेकिन विराट का ऐसा कदम उठाना ही अपने आप में खास है.

यानी कह सकते हैं कि विराट अनुष्का से दूर नहीं रह पा रहे हैं. तभी तो हर जगह से उन्हें देखते रहना चाहते हैं. क्या पता तलाक और ब्रेकअप के इस मौसम में एक बिछड़ा हुआ जोड़ा फिर से साथ आ जाए.

कांग्रेस की गलती दोहरा रहे मोदी

मोदी विरोध की जो गलती कांग्रेस ने दोहराई अब वही गलती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे है. नरेन्द्र मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे उस समय कांग्रेस ने उनको निशाने पर ले लिया. कांग्रेस भाजपा के कटट्रवाद और गुजरात दंगों को लेकर बेहद मुखर हो गई. कांग्रेस को लगा कि नरेद्र मोदी की आलोचना के सहारे वह भाजपा को हाशिये पर लाने में सफल हो जायेगी. इस अभियान में कांग्रेस ने भाजपा के नेताओं में केवल नरेंद्र मोदी को ही निशाने पर लिया.2002 के गुजरात दंगों के बाद कांग्रेस की केन्द्र में 10 साल सरकार रही.इस बीच कांग्रेस केवल नरेद्र मोदी के विरोध को ही प्रमुखता से उठाती रही.केन्द्र सरकार के रूप में कांग्रेस के मोदी विरोध की राजनीति ने ही नरेन्द्र मोदी को गुजरात से निकालकर देश के बाहर मजबूत हालत में खडा कर दिया.2014 के लोकसभा चुनावों के समय कांग्रेस को उम्मीद थी कि भाजपा में नेतृत्व के मसले पर नरेद्र मोदी का विरोध होगा जिसका लाभ कांग्रेस को मिलेगा.सही मायनों में नरेंद्र मोदी कांग्रेस विरोध के रथ पर सवार होकर चुनावी वैतरणि पार कर गये.

जिस तरह से कांग्रेस ने मोदी का विरोध किया था उसके जवाब में मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत अभियान शुरू किया.केन्द्र में सरकार बनाने के बाद नरेद्र मोदी कांग्रेस विरोध की राजनीति में इतना डूब गये कि बाकी मुददे वह भूलते जा रहे है.असल में जिस तरह से कांग्रेस विरोध में मोदी देश के प्रधानमंत्री बने उसी तरह से मोदी के विरोध से काग्रेस की सत्ता में वापसी हो सकती है.दरअसल भारतीय मतदाता बहुत ही संवेदनशील होता है.वह हमेशा उसको पसंद करती है जो दूसरों के द्वारा परेशान किया जाता है.भारत में ‘सहानुभूति वोट’ मिलने के तमाम उदाहरण मिलते है.मोदी ही नहीं उनके समर्थक भी कांग्रेस और कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी के किसी विरोध को छोडना नहीं चाहते है.कांग्रेस विरोध को अगर ऐसे ही हवा मिलती रही तो कांग्रेस कमजोर के बजाय मजबूत होगी.

‘अगस्ता वेस्टलैंड’ डील के मामले में केन्द्र सरकार को कांग्रेस के खिलाफ पुख्ता सबूत एकत्र करना चाहिये.जिस तरह से बफोर्स मसले में हुआ उससे सीख लेकर मोदी सरकार को कदम उठाना चाहिये.कई बार बडे नामों को आरोपी बनाने की जल्दबाजी में लडाई कमजोर हो जाती है.कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी मानते है कि कांग्रेस और राहुल गांधी को निशाना बनाने से पार्टी का लाभ होगा. भाजपा सासंद किरीट सोमैया और राज्यसभा सांसद सुब्रामणमय स्वामी जिस तरह से कांग्रेस और गांधी परिवार को निशाने पर लेते है उससे कांग्रेस को अपने बचाव का रास्ता मिल जायेगी.मोदी सरकार को लगता है कि वह जनता से किये गये वादों को पूरा नहीं कर पा रही है ऐसे में अगर वह कांग्रेस विरोध की राजनीति को लेकर काम करेगी तो एक वर्ग खुश हो सकता है.यह हो सकता है कि कांग्रेस के विरोधी इससे खुश रहे पर जनता में कांग्रेस का विरोध ‘सहानुभूति वोट’ में बदल सकता है.मोदी सरकार को 2 साल का समय पूरा हो रहा है.इस कार्यकाल में देश में मोदी की चमक फीकी पडी है.भाजपा का बेस वोटर भी खुश नहीं है.ऐसे में सिर्फ कांग्रेस विरोध से मोदी की नैया पार नहीं लगेगी.

नेता लायेंगे सिंहस्थ में रौनक

उज्जैन मे चल रहे सिंहस्थ कुम्भ मेले मे उम्मीद के मुताबिक भीड़ न उमड़ने से मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान खासे दुखी और खफा हैं. 22 अप्रेल को पहले शाही स्नान में न के बराबर श्रद्धालु आए और जो आए वे खासे परेशान हुये तो सरकार की जमकर छीछ्लेदारी हुई. इस पर प्रचार प्रसार में करोड़ों रुप्ये फूँक चुकी सरकार की कलई खुली और आरोप भी लगा  कि न्योता तो बड़े ज़ोर शोर से दे दिया लेकिन डुबकी लगाने के लिए चिलचिलाती धूप में लोग घाटों तक पहुँचने में घंटों भटकते रहे पर राह दिखाने बाले कर्मचारियों को ही रास्ता नहीं मालूम था. शिवराज सिंह ने जमकर खिंचाई अधिकारियों की कि तब कहीं जाकर हालात थोड़े सुधरे फिर भी भीड़ नहीं बढ़ रही तो गिनाने वालों ने वजहें गिनाना शुरू कर दीं कि गर्मी बहुत है, किसान खेती किसानी मे व्यस्त है और उज्जैन देश के सभी रेल मार्गों से सीधे नहीं जुड़ा है लेकिन असल वजह किसी ने बताने की हिम्मत नहीं जुटाई कि लोगों का मोह ऐसे मेले ठेलों से भंग हो चला है.

बहरहाल शिवराज सिंह की भीड़ बाली परेशानी जिसे वे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुके हैं अब हल होती दिख रही है क्योंकि अब कुम्भ की रौनक बढ़ाने एक एक कर नामी नेता पहुँचने वाले हैं जिससे सियासी पारा भी चढ़ेगा और ग्राहकों को तरस रहे साधू संतों की भी दुकानें चमकेंगी. शुरुआत कांग्रेसी दिग्गज कमलनाथ से होगी जो सिंहस्थ आकर तमाम छोटे बड़े धर्म गुरुओं से मिलेंगे. इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने लाव लश्कर सहित आएंगे. लेकिन मेगा शो भाजपा अध्क्क्ष अमित शाह पेश करेंगे जिसमे वे दलित साधू संतो से मिलेंगे, दलितों के साथ समरसता डुबकी लगायेंगे और दलितों के संग ही एक पंगत मे बैठकर भोज करेंगे.

भाजपा के इस विशेष आमंत्रण पर देश भर के दलित धर्म गुरु उज्जैन पहुँच रहे हैं. कांग्रेस इस समरसता स्नान का विरोध कर रही है. लेकिन वह बेअसर साबित हो रहा है क्योकि दलित यह सोच कर ही रोमांचित हैं कि पहली बार कुम्भ में उनकी अलग से विशेष पूछ परख हो रही है यानि असली सिंहस्थ अब शुरू होगा जिसमे नेताओं का रोल अखाड़ों और संतों से कहीं ज्यादा अहम हो गया है. दलित कार्ड खेल रही भाजपा उत्साहित है कि इसी बहाने भीड़ तो दिखेगी और सरकार की लाज बच जाएगी पी एम ओ से भी कम भीड़ और बदइंतजामी के बाबत नाराजी जताई जा चुकी है. ऐसे में ये नेता वरदान साबित होंगे.  जिनका मकसद सियासी मोक्ष हासिल करना है नहीं तो जागरूक होते मध्यम वर्ग ने इस तमाशे से तौबा कर ली है कि जाओ भी परेशान भी होओ और लुटो भी. अब देखना दिलचस्प होगा कि ये नेता कितना सन्नाटा सिंहस्थ का तोड़ पाते हैं उम्मीद के मुताबिक नहीं टूटा तो संभव है आदि राजनेता पीएम नरेंद्र मोदी को लाने मनाया जाए.

ऋतिक की ‘काबिल’ का फर्स्ट लुक जारी

ऋतिक रोशन की अपकमिंग फिल्म ‘काबिल’ का फर्स्ट लुक सामने आ चुका है. फिल्म का पहला टीजर ऋतिक ने खुद अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया है. 40 सेकेंड के इस टीजर में सिर्फ उनकी आंखों की झलक दिखती है. फिल्म में ऋतिक एक ब्लाइंड पर्सन का किरदार निभा रहे हैं.

उनके पिता राकेश रोशन की इस फिल्म को संजय गुप्ता डायरेक्ट कर रहे हैं. फिल्म में यामी गौतम ऋतिक के अपोजिट लीड रोल में नजर आएंगी. यामी ने भी अपने पेज पर ये टीजर शेयर किया है. ‘काबिल’ अगले साल 26 जनवरी को रिलीज होगी.

फिल्म के फर्स्ट लुक को दर्शकों से जबरदस्त रिस्पाँस मिल रहा है.

IPL 9: गंभीर और कोहली पर लगा जुर्माना

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के 9वें सीजन में कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) और रॉयल चैलेंजर्स बंगलुरु (आरसीबी) के बीच खेले गए मैच के बाद दोनों टीम के कप्तान, गौतम गंभीर और विराट कोहली पर जुर्माना लगाया गया है.

कोहली पर धीमे ओवररेट के लिए तो गंभीर पर अनुशासनहीनता के लिए यह जुर्माना लगाया गया. गंभीर पर आईपीएल में आरसीबी पर मिली जीत के दौरान एक कुर्सी को लात मारने के लिए मैच फीस का 15 फीसदी जुर्माना लगाया गया है जबकि कोहली को धीमे ओवररेट के लिए 24 लाख रुपये जुर्माना भरना पड़ा.

कोहली अभी तक 36 लाख रुपये जुर्माना भर चुके हैं. उन्हें धीमे ओवररेट के एक अन्य अपराध के लिए भी 12 लाख रुपये जुर्माना भरना पड़ा था. आईपीएल की प्रेस रिलीज के मुताबिक, 'कोलकाता नाइट राइडर्स के गौतम गंभीर को आरसीबी के खिलाफ चिन्नास्वामी स्टेडियम पर मैच के दौरान आईपीएल की आचार संहिता का उल्लंघन करने के कारण मैच फीस का 15 फीसदी जुर्माना भरना पड़ेगा.'

जब सूर्यकुमार यादव ने चौका लगाकर केकेआर को जीत दिलाई तब गंभीर को डगआउट में आक्रामक अंदाज में एक कुर्सी पर लात मारते देखा गया था. कोहली के बारे में कहा गया, 'कोहली को धीमी ओवरगति के कारण जुर्माना भरना होगा. यह इस सीजन में उनका दूसरा अपराध है. कोहली पर 24 लाख रुपये और टीम के बाकी सदस्यों पर 6-6 लाख या मैच फीस का 25 प्रतिशत जुर्माना लगाया गया है.'

टेस्ट रैंकिंग में भारत दूसरे तो पहले नम्बर पर कौन…

ऑस्ट्रेलिया ने आईसीसी टेस्ट टीम रैंकिंग में हुए सालाना अपडेट में भारत पर छह अंक की बढ़त बना ली है जिसमें 2012-13 के परिणाम को गणना में शामिल नहीं किया गया है जबकि 2014-15 सीरीज से परिणामों के अंक 50 प्रतिशत कर दिए गए हैं.

आईसीसी के अनुसार भारत अब तीसरे स्थान पर काबिज पाकिस्तान से महज एक अंक से आगे है. पाकिस्तान को सालाना अपडेट का फायदा हुआ है क्योंकि साउथ अफ्रीका से 2012-13 में मिली हार के परिणाम को नहीं देखा गया जबकि 2014-15 में श्रीलंका से मिली 0-2 की हार से उसे सिर्फ 50 फीसदी ही फर्क पड़ा.

सालाना टेस्ट अपडेट से साउथ अफ्रीका 17 अंक गंवाकर तीसरे स्थान से खिसककर छठे स्थान पर पहुंच गया है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि साउथ अफ्रीका की इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यू जीलैंड और पाकिस्तान पर 2012-13 में मिली जीत के परिणाम को रैंकिंग गणना से बाहर कर दिया गया है.

सालाना अपडेट से वेस्ट इंडीज पर भी असर पड़ा है जिसने अपना आठवां स्थान तो बरकरार रखा है लेकिन उसके अंक 76 से घटकर 65 अंक हो गये हैं. ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि उसकी न्यू जीलैंड, बांग्लादेश और जिम्बाब्वे पर 2012-13 में मिली जीत को गणना से बाहर कर दिया गया है.

वेस्ट इंडीज और नौंवीं रैंकिंग पर काबिज बांग्लादेश के बीच में अंतर 29 अंक से घटकर महज आठ अंक हो गया है.

श्रीलंका और पाकिस्तान इन गर्मियों में क्रमश: तीन और चार टेस्ट के लिये इंग्लैंड का दौरा कर रहे हैं, ऑस्ट्रेलिया भी जुलाई में तीन टेस्ट के लिये श्रीलंका का दौरा करेगा और साउथ अफ्रीका अगस्त में दो टेस्ट के लिये न्यू जीलैंड की मेजबानी कर रहा है तो इन श्रृंखलाओं के परिणाम आईसीसी टेस्ट टीम रैंकिंग पर बड़ा असर डालेंगे.

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