पनामा, दक्षिणी अमेरिका का देश जो अपनी नहर के कारण जाना जाता है जिस से अंध व प्रशांत महासागरों को जोड़ा गया है ताकि अमेरिका व कनाडा के जहाजों को अपने पूर्वी तटों से पश्चिमी तटों पर जाने में कम समय लगे, अब लगता है कि अमीरों को उन के छिपे हुए पैसों को इधर से उधर ले जाने के लिए भी नहरमार्ग मुहैया कराता है. विश्वभर के कई समाचारपत्रों, चैनलों व अन्य मीडिया कंपनियों ने एक मिलेजुले प्रयास में पनामा की कानूनी सलाह देने वाली कंपनी मोसैक फोंसेका के 1.5 करोड़ दस्तावेजों से 3.5 लाख गुप्त कंपनियों का पता किया है और इंटरनैशनल कंसोर्टियम औफ इन्वैस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स के बैनर तले एक ही दिन उन का परदाफाश किया है.
कितने ही देशों की राजधानियों, नामी व्यक्तियों और बड़ी कंपनियों के दफ्तरों में जलजला सा आ गया है. चूंकि ये गुप्त खाते थे, इसलिए पक्का है कि इन में जो पैसा गया वह साफसुथरा, टैक्स अदा किया हुआ, जमा नहीं किया गया था. भारत के 500 नाम इस सूची में हैं. इस से साफ है कि भारतीय अमीरों की कमी नहीं, चाहे देश में गरीब यहां 2 रोटी के लिए मुहताज हों. यहां के अमीरों के पास इतना पैसा है कि वे विदेशों में ऐसे खातों में रखते हैं जहां सिर्फ सुरक्षा मिलती है, ब्याज नहीं मिलता. भारत के कौनकौन से नाम पनामा की इस ला फर्म में दर्ज थे, यह बेकार की बात है. इस तरह की बीसियों कंपनियां दुनिया के देशों में काम कर रही हैं और किस ने, कहां पैसा सुरक्षित रख रखा है, कहा नहीं जा सकता.
इन लोगों की कमाई वैध थी या अवैध, इन्होंने कर दिया था या नहीं, ये बेईमान व लुटेरे हैं या शरीफ कमाऊ, क्या ये डरे हुए थे कि ये अपने देश में सुरक्षित नहीं हैं, और कितना पैसा ये वहां जमा कर रहे हैं, ये सब किसी को कभी पता न चलेगा? बड़े अमीरों या बड़े रसूखदारों के बारे में जब भी जांच की जाती है, हजार अड़चनें डाली जाती हैं, रातोंरात दस्तावेज गायब कर दिए जाते हैं. पनामा की कंपनी से चोरी किए गए दस्तावेजों को सच मानना बहुत कठिन है, खासतौर पर आपराधिक मामला बनाने के लिए. यह खुलासा भिड़ों के छत्तों के फूटने की तरह है. कुछ को काटेंगी ये भिड़ें. कुछ दिनों झनझनाहट होगी, फिर सबकुछ सामान्य हो जाएगा. आखिर देश चलने हैं या नहीं. जब देश में लेनदेन होगा, रिश्वतें ली जाएंगी, टैक्स बचाया जाएगा तो यह सब भी तो होगा ही.