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हनीमून के बदलते ट्रैंड

हनीमून का मतलब सब जानते हैं, किंतु आज इस का मतलब बदलने लगा है. कल तक हनीमून की पहुंच शिमला, कुल्लूमनाली, ऊंटी आदि जगहों तक ही सीमित थी. लेकिन अब इस की पहुंच देश की सीमाएं लांघ चुकी है. हनीमून का मतलब अब किसी शांत जगह पर कुछ दिन एक होटल के कमरे में बिताना नहीं रह गया है. आज नवदंपती कुछ नया चाहते हैं. भारत में दक्षिण अफ्रीका टूरिज्म के कंट्री हैड, हनेली बताते हैं कि आजकल नवदंपती पुरानी जगहों के बजाय दूरदराज की नईनई जगहों पर जा कर कुछ नया अनुभव करना चाहते हैं.

यही नहीं, अब हनीमून की अवधि भी 5-6 दिनों से बढ़ कर 10-12 दिनों तक पहुंचने लगी है. हौलीडे तो जीवन में कई आएंगे, किंतु हनीमून एक बार ही आता है, इसलिए आज के नवविवाहित जोड़े इस का भरपूर आनंद उठाना चाहते हैं. थौमस कुक ट्रैवल एजेंसी के लीजर ट्रैवल आउटबाउंड के सी.ओ.ओ. माधव पाइ कहते हैं कि नवदंपती द्वीपों में हनीमून मनाने में ज्यादा रुचि रखते हैं. मौरीशस, मालद्वीप, बाली, फिजी, कंबोडिया में काफी लोग हनीमून मनाना पसंद करते हैं. इसीलिए कई ट्रैवल कंपनियों ने नई जगहों के लिए टूअर आरंभ किए हैं. मेक माई ट्रिप डौट कौम के सी.ओ.ओ. केमूर जोशी ने बताया कि उन की कंपनी ने आकर्षक जगहों, जैसे लद्दाख, मालद्वीप, अंडमान निकोबार इत्यादि के लिए ऐसे हौलीडे पैकेज बनाए हैं, जिन में चार्टर प्लेन तक की सुविधा मौजूद है.

आज हनीमून के कई प्रकार उभर आए हैं, जैसे :

ऐडवैंचरस हनीमून : ऐडवैंचर स्पोर्ट्स सिर्फ युगलों को ही नहीं, अपितु नवदंपतियों को भी लुभा रहे हैं. स्कूबा डाइविंग, अंडरवाटर फोटोग्राफी, रिवर राफ्टिंग, कैंपिंग, स्नोरकलिंग आदि हनीमून मनाने वालों को आकर्षित कर रहे हैं. कूओनी इंडिया ट्रैवल एजेंसी के आउटबाउंड डिवीजन की सी.ओ.ओ. कश्मीरा कमसारियत ने बताया कि उन की कंपनी हनीमूनर्स को नायाब अनुभव करवाती है, जैसे मौरीशस में पनडुब्बी में अंडरवाटर क्रूज, आस्ट्रेलिया में हौट एअरबैलून में घूमना, रैड सी में स्नोरकलिंग इत्यादि. इसी तरह जो हनीमूनर्स दक्षिण अफ्रीका जाते हैं वे केवल दर्शनीय स्थल देख कर ही नहीं लौट आते हैं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका में वाइन रूट, स्पा व बुश मसाज का भी पूरापूरा आनंद उठाते हैं.

ग्लैंपिंग हनीमून : जिन जोड़ों को आकाश तले तारों की छांव का शौक है, किंतु अपने हनीमून के मूड को बरकरार रखने के लिए वे सुविधा तथा आराम भी चाहते हैं, उन के लिए है ग्लैंपिंग. ये वे टैंट हैं, जिन में पूरी सुखसुविधाएं भी हैं और साथ ही कैंपिंग का रोमांच भी. फिर चाहे जंगल हो या नदी का किनारा, भरपूर मजा लीजिए कैंपिंग का और वह भी पूरे शौक के साथ.

ईको हनीमून : आस्ट्रेलिया में बसी प्रेरणा मल्होत्रा बताती हैं कि यह अभी विदेशों में ही लोकप्रिय है. वे दंपती, जिन्हें प्रकृति से प्यार है और उस की फिक्र भी, वे ऐसे हनीमून में प्रकृति की देखभाल में समय बिताते हैं, आसपास के गांवों, कसबों के लोगों की मदद करते हैं और अपने जीवन की मधुर शुरुआत करते हैं.

हम जीने के लिए खाते हैं या खाने के लिए जीते हैं? यदि आप का उत्तर दूसरे वाला है, तो आप के लिए है- फूडी हनीमून. इस पर जाइए और अपने हमसफर के साथ तरहतरह के भोजन, तरहतरह के पेयपदार्थों और नएनए मिष्ठान्नों के स्वाद चखिए.

सपनोें की कीमत

यदि आधुनिक दंपती निराले सपने देखते हैं, तो उन्हें पूरा करने की कीमत भी वे देने को तैयार हैं. आज का युवावर्ग अपनी पहली पीढ़ी की अपेक्षा कहीं अधिक कमा रहा है और कमाई के साथसाथ वह जिंदगी का भी भरपूर लुत्फ उठाने की न सिर्फ चाह रखता है, बल्कि हिम्मत भी. ज्यादा कमाई और बदलते नजरिए की वजह से अब भारतीय अपनी शादी को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.

फिर हनीमून पैकेजों ने इसे और भी आसान बना दिया है. आजकल अधिकतर पैकेजों में यात्रा, होटल, खानापीना, घूमनाफिरना आदि सब शामिल होता है. एक बार पैसा दीजिए और फिर आराम से आनंद उठाइए.

सुनहरी यादें

एक प्रतिष्ठित मार्केटिंग कंपनी में कार्यरत पल्लवी व आनंद ने अपने कमरे में हनीमून पर स्नोरकलिंग करते हुए अपनी तसवीर लगा रखी है. वे मानते हैं कि बैंकौक में बिताए वे पल उन की जिंदगी को मीठी शुरुआत दे गए. आखिर हनीमून का उद्देश्य यही तो होता है. तभी तो आजकल युवा नईनई जगह जाना पसंद कर रहे हैं, जहां अलग भाषा हो, नया खानेपीने को मिले, नई संस्कृति हो और अनूठा अनुभव रहे. यात्रा डौट कौम की सहसंस्थापक सबीना चोपड़ा कहती हैं कि आजकल के हनीमूनर्स को अपनी पसंदानुसार हनीमून पैकेज चाहिए न कि दूसरों की देखादेखी वाला ताकि उन का हर पल मस्ती से भरा हो. तभी तो स्कींइग, महंगी गाडि़यों को स्वयं ड्राइव करना, क्रूज, हैलीकौप्टर की सैर इन्हें लुभाती है. आयरलैंड, स्विट्जरलैंड व ग्रीस के महल और विला भी इन की पसंद में आते हैं. कनाडा, लंदन, थाईलैंड के अलावा माल्टा, पुर्तगाल और टर्की के प्रति भी जोड़ों का आकर्षण है. स्पा और मसाज पार्लर भी हनीमूनर्स को लुभा रहे हैं.

शेयर्ड मेट्रीमोनियल होम- आशियाने को तरसती बहुएं

शादी के बाद लड़की ढेर सारे सपने लिए अपने ससुराल पहुंचती है, पर अपने ही घर में रहने के लिए उसे बहुत कुछ सहना पड़ता है.

दिल्ली के शाहदरा इलाके में वसुधा अरोड़ा अपने पति नितिन अरोड़ा के साथ अपने सासससुर के घर रहती हैं. परिवार में सासससुर, अरोड़ा दम्पति और एक देवर को मिलाकर कुल 5 लोग रहते हैं. शादी के कुछ महीने तक तो सब ठीक चला लेकिन फिर सास और बहू में वही तकरारें होने लगीं जो अकसर हर घर में होती हैं. चूंकि घर ससुर की संपति थी इसलिए झगड़े में हमेशा सास का पलड़ा ही भारी रहता था. हालांकि कई बार सास की गलती होती तो कई बार बहू की वजह से विवाद होता. जब बात बढ़ती तो सासससुर की यही धमकी होती कि घर मेरे पति का है, ज्यादा जबान लड़ाई तो दोनों को बाहर कर दूंगी.

दिल्ली जैसे शहर में एक नौकरी पेशा आदमी के लिए किराए पर घर लेना आसान नहीं है. वो भी तब जब उसकी 2-2 बेटियाँ हों. इसलिए नितिन और वसुधा अपनी गलती न होने पर भी सिर्फ इसलिए खामोश रह जाते कि उन्हें कभी भी घर से निकाला जा सकता है. एक बार झगडा इतना बढ़ा कि नौबत मारपीट तक आ गई. देवर ने भाभी और भाई पर हाथ उठा दिया. मामला पुलिस तक पहुंचा. पुलिस ने भी सासससुर का पक्ष लिया और नितिन-वसुधा  से कहा कि पिता चाहे तो अपनी औलाद को कभी भी अपनी प्रोपर्टी से अलग कर सकता है. इसलिए या तो किराए का घर खोज लो या फिर चुपचाप रहो.

रोजरोज की कलह का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ रहा था लेकिन वसुधा जाती भी तो कहां. वसुधा और नितिन की तरह देश में न जाने कितनी बहुए हैं जो ब्याह कर अपने पति के साथ सासससुर के घर पहुंच जाती हैं लेकिन जिसे वह अपना आशियाना समझती हैं वो उसके पति का न होकर सास ससुर की संपत्ति निकलती है जो उनसे कभी भी छीनी जा सकती है.

पिछले साल दिल्ली की एक अदालत ने भी एक महिला को अपने सास-ससुर के मकान में रहने के अधिकार से वंचित कर दिया था. दरअसल मजिस्ट्रेट अदालत का आदेश निरस्त करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने महिला के ससुर की और से दायर अपील स्वीकार करते हुए कहा था कि बहू मकान में आवास के अधिकार का दावा करने की तभी हकदार है जब यह संपत्ति उसके पति की हो या उसमें उसका हिस्सा हो. सब जानते हैं कि अधिकतर मामलों में सास ससुर अपने मरने तक अपनी जायदाद अपने ही नाम रखते हैं. ऐसे में अपने घर से विदा होकर पति के आसरे आई महिला भला कहां रहे, यह सवाल दिन ब दिन बड़ा होता जा रहा है.

हालांकि इस मामले में राहत देने वाली ख़बर यह है कि हाल में दिल्ली की एक अदालत ने एक व्यक्ति के माता-पिता व् अन्य परिजनों को उसकी पत्नी को साझा वैवाहिक घर यानी शेयर्ड मेट्रीमोनियल होम से निकालने पर रोक लगा दी है. अदालत ने दायर अपील को खारिज करते हुए कहा है कि महिला अपने वैवाहिक घर में एक कमरे  में शांति से रहने की हकदार है. अडिशनल सेशन जज राकेश कुमार ने कहा कि शिकायतकर्ता महिला अपने पति के साथ वैवाहिक घर में एक कमरे की हकदार है और सही प्रक्रिया का पालन किये बिना उसे घर से बेदखल नहीं किया जा सकता है. सेशन जज ने अपील खारिज करते हुए कहा कि मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (महिला कोर्ट ) का 9 मई 2013 को सुनाया गया आदेश बिलकुल ठीक है और इसमें किसी दखल की जरूरत नहीं है. गौरतलब है कि महिला के सास ससुर ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर अपील में कहा कि मकान उनकी खुद की खरीदी संपति है और इस पर उनके बहू बेटे का कोई अधिकार नहीं है.

दरअसल घर के झगड़ों में अकसर सासबहू में किसी एक की  गलती होती है. कई बार सास पर बहू अत्याचार करती है तो कई दफा सास ने बहू को प्रताड़ित किया होता है. लेकिन कानूनी पेच ऐसे है कि बहू को पति के साथ सासससुर का घर छोड़ना पड़ता है जो कि सरासर गलत है. जब सास ससुर अपने बेटे के लिए बहू चुनकर घर लाते हैं तो वह उनकी जिम्मेदारी हो जाती है. घरगृहस्थी की बीच राह में मामूली कहासुनी के चलते उसे बच्चों और पति के साथ दर-दर के लिए ठोकरें खाने के लिए छोड़ देना अतार्किक है. होना तो यह चाहिए कि अगर सासबहू में नहीं बनती तो दोनों परिवार शान्तिपूर्व मकान का हिस्सा कर अलग-अलग रहे.

अदालतों और कानून के सरंक्षकों को भी यह सोचना चाहिए कि ऐसा कानून बने जिससे यह सुनिश्चित हो जाए कि किसी भी महिला का शादी के बाद भविष्य सुरक्षित रहे.

 

                                                                 

जीवन रंग बिरंगा

दंग करती देह. सर्कस महज हंसनेगुदगुदाने की कला नहीं है, बल्कि इस में बदन का बेजोड़ बैलैंस भी अहम रोल अदा करता है. हंगरी देश की राजधानी बुडापेस्ट में जब ‘11वां इंटरनैशनल सर्कस फैस्टिवल’ हुआ, तो वहां आए इन माहिर कलाकारों ने अपनी मजबूत और लचकदार देह से ऐसे हैरतअंगेज कारनामे दिखाए कि दर्शकों ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं. कुछ शानदार नजारे आप के लिए भी.

बढि़या जीवन जीने की शैली

मानव को वातावरण और मानवीय रिश्तों से तालमेल बिठाना पड़ता है. जो ऐसा करने में सफल होता है उस के लिए सैल्फ ऐक्चुलाइजेशन बहुत आसान हो जाता है. मशहूर मनोवैज्ञानिक मैस्लो के अनुसार, मनुष्य की 5 आवश्यकताएं होती हैं. पहली आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान की होती है. दूसरी आवश्यकता है सुरक्षा की. तीसरी आवश्यकता है प्यार पाने की. चौथी आवश्यकता सम्मान मिलने की होती है. पांचवी आवश्यकता सैल्फ ऐक्चुलाइजेशन. इस का अर्थ ऐसी जरूरत से है जो जीवन के मकसद से संबंधित है यानी जो आप बनना चाहते हैं वैसे बन सकें. यह जीवन का मिशन या यों समझिए कि यह ऊंचे स्तर का उद्देश्य होता है जिस के लिए आप पूरे जनून के साथ उसे प्राप्त करने के लिए लग जाते हैं.

सैल्फ ऐक्चुलाइज्ड व्यक्ति के लक्षणों और गुणों को इस तरह बयां किया जा सकता है :

  1. वह जीवन की वास्तविकता का ज्ञान रखता है और सूझबूझ के साथ जीवन की जटिल समस्याओं का हल ढूंढ़ निकालता है. संघर्ष का मुकाबला डट कर करता है.
  2. खुद को और संपर्क में आने वाले लोगों को, वे जैसे हैं, स्वीकार करता है, सहयोग करता है.
  3. अपनी सोच और क्रियाकलापों को संयोजित व नियंत्रित रखता है. उस की सकारात्मक सोच ऐसा करने में उस की मदद करती है.
  4. समस्याओं पर ध्यान केंद्रित कर, उन का समाधान विवेक और व्यावहारिकता के साथ निकालता है.
  5. वह काम से काम रखता है. अपनी निजता में किसी को दखल नहीं देने देता है.
  6. पूर्ण स्वतंत्रता से कार्य करता है, अपने माहौल को अपने अनुकूल बनाने की कला में माहिर होता है.
  7. अपने अनुभव और दूसरों के अनुभव से सीखते हुए लगातार अपनी कार्यशैली में सुधार ला कर अपने काम में निपुणता लाने का प्रयास करता है. इस प्रकार वह अपनी सफलता निश्चित करता है.
  8. वह अपने आत्मसम्मान को ध्यान में रखते हुए हालात से अनावश्यक समझौता नहीं करता. लोगों के साथ अच्छा व्यवहार बनाए रखता है ताकि उन का सहयोग अपने काम के लिए हासिल कर सके.
  9. लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाना उसे रुचिकर लगता है.
  10. तानाशाह न हो कर वह लोकतांत्रिक रवैया बनाए रखता है, लोगों के साथ मिलजुल कर आगे बढ़ता है.
  11. ऐसे लोग रचनात्मक होते हैं. रचनात्मक होने के कारण उन का जीवन नएनए अनुभवों से भरा होता है. वे लकीर के फकीर नहीं होते. परंपरा का निर्वाह करते हुए नित नवीन तरीकों से अपने काम की गुणवत्ता बनाए रखते हैं.

सैल्फ ऐक्चुलाइजेशन के जीतेजागते उदाहरण हैं सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, सचिन तेंदुलकर आदि. इतिहास में इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि जो महान शख्सीयतें जीवन में उपलब्धियों को हासिल कर पाईं उन में ऊपर लिखे हुए लक्षणों और गुणों का बढि़या समन्वय था. उन शख्सीयतों में स्वामी विवेकानंद, जौन एफ कैनेडी, अब्राहम लिंकन, शेक्सपियर, तुलसीदास, को शामिल किया जा सकता है.

समन्वय की भूमिका

‘रहस्य से परे’ पुस्तक में प्रसिद्ध लेखक ब्रैंडा बार्नवी के कुछ विचार उल्लेखनीय हैं-

  1. ‘‘केवल आप को यही जानना है कि आप कहां पहुंचना चाहते हैं. समाधान स्वयं ही तत्परता से सामने आएंगे.
  2. ‘‘हम यह जानते हैं कि हम क्या हैं. पर यह नहीं जानते कि क्या हो सकते हैं.
  3. ‘‘पर्याप्त मानसिक प्रयत्नों के बाद मनुष्य क्या पा सकता है, इस की कोई सीमा नहीं होती है.’’

जीवन में समन्वय लाने के निम्न उपाय हैं :

कार्य का विभाजन : जहां कई व्यक्ति, कई साधन, अनेक प्रक्रियाएं एकसाथ मिल कर काम करते हैं वहां उन की पारस्परिक समझ होती है. परिवार और औफिस के लोग एकदूसरे के काम में बाधा नहीं डालते हैं. काम की जिम्मेदारी आपस में बांट लेते हैं. यही है सामंजस्य जो जीवन को स्थिरता प्रदान करता है.

क्षमतानुसार काम : कार्य को क्षमता के आधार पर करें. किसी में लैक्चर देने की क्षमता होती है, किसी में कोचिंग की क्षमता होती है, कोई अच्छे मित्र बना सकता है, कोई अच्छा गा सकता है. क्षमता के आधार पर कार्य करने में सफलता जरूर हासिल होती है.

दूसरों की अपेक्षा का ध्यान : मुझे किसी वस्तु की जरूरत है तो मेरे साथ रहने वाले की भी तो कोई जरूरत होगी. ऐसे में अगर हम दूसरे की जरूरत का ध्यान रखेंगे, उस की सुविधा का ध्यान रखेंगे, तो वह हमारा परममित्र बन जाएगा. यह संसार एक जौइंट प्रोजैक्ट है, दूसरों की उपेक्षा कर के जीवन जीना आसान नहीं होता है. सारे रिश्तेनाते, क्रिया और प्रतिक्रिया के खेल हैं. जैसी क्रिया होती है वैसी ही प्रतिक्रिया निश्चित है. जब आप दूसरों से मुसकरा कर मिलते हैं तो ऐसा कभी हो ही नहीं सकता है कि वह आप से मुसकरा कर न मिले. दूसरों को उत्साहित करने के अच्छे परिणाम होना स्वाभाविक हैं.

मैं एक बार बस से यात्रा कर रहा था. मैं ने देखा, 2 महिलाएं, जो विदेश से आई थीं, को कोल्डडिं्रक लेने में दिक्कत आ रही थी क्योंकि वे हिंदी नहीं जानती थीं. मैं ने अंगरेजी में उन से बात कर के कोल्डडिं्रक बेचने वाले लड़के से बात की. और वह कोल्डडिं्रक उन्हें मिल गई. जब मैं चंडीगढ़ पहुंचा तो बस से उतरने से पहले उन्होंने अपने हैंडबैग से कुछ चौकलेट दिए और कहा, ‘‘ये आप की पत्नी और बच्चों के लिए हैं. सफर में सहायता करने के लिए आप का बहुतबहुत धन्यवाद.’’

अनाग्रह न होने देना : सामंजस्य के लिए जरूरी है स्वार्थ के होते हुए भी दूसरे की अपेक्षा पर खरा उतरना. जब आप किसी के काम नहीं आते हैं, आप का उस के साथ रिश्ता मजबूत और दूरगामी नहीं होता है. यह पतिपत्नी के रिश्ते पर भी लागू होता है. एकदूसरे की सुविधा और भावनाओं का ध्यान रखते हुए वैवाहिक जीवन में आनंद और पारस्परिक सौहार्द बनाने में पतिपत्नी सफल होते हैं और इस बात का सकारात्मक असर उन के पूरे परिवार पर पड़ता है.

समझौता करना जिंदगी का हिस्सा है. जब आप दूसरों से अपेक्षा रखते हैं कि वह आप का सम्मान करे, आप की बात माने तो ऐसा ही नजरिया आप को भी अपनाना होगा. एक विचारक ने कहा है, ‘‘यदि आप गोल गड्ढे में गिर जाएं तो खुद को गेंद बना लें और यदि चौकोर गड्ढे में गिर जाएं तो खुद को डब्बा बना लें. अडि़यल मनोवृत्ति वाला किसी के साथ सामंजस्य नहीं बिठा सकता.’’

नेपोलियन हिल का कथन है, ‘‘आत्मनियंत्रण से व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थिति को भी अपने अनुकूल बना लेता है.’’ जिंदगी एक सफर है और सफर में उतारचढ़ाव आते रहते हैं. मानव वही है जो आगे बढ़े, संस्कारों से अपनी जिंदगी को इज्जत के साथ जिए और वही मानव सही माने में जिंदगी को जीता है.

जस को तस

‘‘धन्य हो पंडितजी, आप के समधीजी भी हमारे जजमान हैं. उन के पूरे कुल खानदान के बारे में हम जानते हैं,’’ चुलबुल नाई की बात सुन पंडित दीनानाथ शुक्ल ठगे से रह गए. कहावत है कि ‘एक दिन घूरे के भी दिन फिरते हैं’, फिर भला पंडित दीनानाथ शुक्ल के दिन क्यों न फिरते. आखिर एक दिन उन की मनोकामना का सूरज अनायास ही चमक उठा. लेकिन चुलबुल नाई ने राज की जो परतें उखाड़ीं उस से दीनानाथ शुक्ल की सारी खुशी काफूर हो गई.

कोयला उद्योग की इस नगरी में कोयला की दलाली में हाथ काले नहीं होते, बल्कि सुनहले हो जाते हैं. यह यथार्थ यत्रतत्रसर्वत्र दृष्टिगोचर होता हैं. ऐसे ही सुनहले हाथों वाले पंडित दीनानाथ शुक्ल के चंद वर्षों में ही समृद्ध बन जाने का इतिहास जहां जनचर्चाओं का विषय रहता है वहीं दीनानाथ से पंडित दीनानाथ शुक्ल बनने की उन की कहानी भी कहींकहीं कुछ बुजुर्गों द्वारा आपस में कहीसुनी जाती है और वह भी दबी जबान व दबे कान से. दरअसल, पंडित दीनानाथ शुक्ल सिर्फ समृद्ध ही नहीं हैं, बल्कि प्रभावशाली भी हैं. क्षेत्र एवं प्रदेश की बड़ी से बड़ी राजनीतिक हस्तियों तक उन की पहुंच है. ऐसी स्थिति में भला किस की मजाल कि उन से पंगा ले कर अपनी खाट खड़ी करवाए.

इन सब के बावजूद, क्षेत्र का कट्टर ब्राह्मण समाज उन से सामाजिक संबंध बनाने में एक दूरी रख कर ही चलता है. कट्टर बुजुर्ग ब्राह्मण परस्पर चर्चा करते हुए कभीकभी बड़बड़ा कर कह ही उठते हैं, ‘ससुर कहीं के, न कुलगोत्र का पता न रिश्तेदारी का, न जाने कइसे ये दीनानथवा बन बइठा पंडित दीनानाथ शुकुल.’ जबकि पंडित दीनानाथ शुक्ल बराबर इस प्रयास में रहते कि वे और उन का परिवार इस क्षेत्र के अधिक से अधिक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवारों एवं ब्राह्मण समाज में घुलमिल जाए.

पंडित दीनानाथ शुक्ल इस क्षेत्र के हैं नहीं. काफी अरसे पहले जब इस क्षेत्र में कोयला उद्योग ने अपना पैर जमाना शुरू किया था तभी पंडित दीनानाथ शुक्ल इस क्षेत्र से काफी दूर के किसी गांव से आ कर कोयला लोडिंग में प्रयुक्त होने वाली झिब्बी यानी बांस की बनी बड़ी टोकरी की सप्लाई किया करते थे. समय के साथ तेजी से चलते हुए कोयला उद्योग में प्रयुक्त होने वाली ऐसी सभी सामग्रियों, जिन की खरीद कोल उद्योग द्वारा टैंडर के माध्यम से की जाती थी, की वे सप्लाई करने लग गए.

उच्च अधिकारियों को हर तरह से खुश करने की कला उन्हें खूब आती थी जिस के फलस्वरुप वे कोयला उद्योग में बतौर प्रतिष्ठित गवर्मैंट सप्लायर छा गए. फिर कुछ समय बाद जब उन्हें कोल ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय के माध्यम से कोयले की दलाली का राज पता चला तो बस फिर क्या था, कोयले की दलाली करतेकरते उन के दिन सुनहले और रातें रुपहली हो गईं. धनसंपत्ति, समृद्धि, आनबानशान सबकुछ उन्होंने येनकेनप्रकारेण अर्जित कर ली. अब, उन का एकमात्र अरमान यह था कि किसी तरह उन के इकलौते पुत्र का विवाह उच्चकुल के ब्राह्मण परिवार की कन्या से हो जाए. उन का पुत्र उच्चशिक्षा प्राप्त कर उन के राजनीतिक प्रभाव के फलस्वरूप अच्छी सरकारी नौकरी कर रहा था. उन्हें अपनी इस अभिलाषा की शीघ्र पूर्ति की आशा भी थी. लेकिन जब भी उन के पुत्र के किसी उच्चकुल के ब्राह्मण परिवार में रिश्ते की बात चलती तो उच्चकुल के कट्टर ब्राह्मण परिवार से बातचीत के दौरान वे अपने कुलगोत्र, अपनी ब्राह्मण परिवारों की रिश्तेदारी के बाबत संतोषप्रद जवाब न दे पाते और बात बनतेबनते रह जाती.

दरअसल, काफी अरसे पहले इस कोयला उद्योग क्षेत्र से काफी दूर एक छोटे से गांव में उन के पिता रामसुजान रहते थे तथा उन का पुश्तैनी व्यवसाय बांस से बनने वाली सामग्रियों के कुटीर उद्योग से जुड़ा हुआ था. उसी बांस के कर्मगत उद्योग से ही उन का जातिनाम भी उस ग्राम में संबोधित किया जाता था. उसी जातिनाम को वे कई पुश्तों से स्वीकार भी रहे थे. लेकिन उन के पुत्र दीनानाथ ने अपने इस पुश्तैनी व्यवसाय के स्वरूप में जहां बदलाव किया वहीं वे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को भी संवारने में लग गए. अध्ययन के दौरान ही उन्होंने अपने संबोधित किए जाने वाले जातिनाम को ‘वंश फोर शुक्ला’ रख लिया था तथा अपने इस जातिनाम के इतिहास की एक कथा भी गढ़ ली कि उन के ब्राह्मण पूर्वज, बांस फोड़ कर पैदा हुए थे. सो, उन के वंशज ‘वंश फोर शुक्ला’ संबोधित किए जाते हैं. स्कूल एवं कालेज में भी उन्होंने अपना यही जातिनाम लिखवाया था. जब वे अपने पुश्तैनी ग्राम से निकल कर इस कोयला उद्योग क्षेत्र में आए तो ‘वंश फोर शुक्ला’ जातिनाम से ही कुछ समय तक व्यवसाय करते रहे. लेकिन कुछ समय बाद उन्हें अपने जातिनाम में ‘वंश फोर’ शब्द उन के प्रतिष्ठित ब्राह्मण साबित होने में बाधक प्रतीत हुआ तो उन्होंने अपने जातिनाम से ‘वंश फोर’ शब्द हटा कर अपना जातिनाम सिर्फ ‘शुक्ला’ कर लिया तथा अपने नाम के आगे पंडित जोड़ लिया. अब, उन का यही अरमान था कि किसी भांति उन के पुत्र का विवाह किसी खानदानी उच्चकुल के ब्राह्मण परिवार में हो जाए और उन का वंश वृक्ष, वर्ण व्यवस्था के मस्तक समझे जाने वाले ‘ब्राह्मण वर्ण’ की भूमि पर स्थापित हो जाए. इसी प्रयास में वे निरंतर लगे रहते और अपने परिचितों से अपने पुत्र के लिए उच्चकुल के ब्राह्मण परिवार के रिश्ते की बाबत बात करते रहते.

कहावत है कि ‘एक दिन घूरे के भी दिन फिरते हैं,’ फिर भला पंडित दीनानाथ शुक्ल के दिन क्यों न फिरते. आखिर एक दिन उन की मनोकामना का सूरज अनायास ही उस समय चमक उठा जब उन के ही कोयला उद्योग क्षेत्र के ब्राह्मण समाज में अत्यंत प्रतिष्ठित माने जाने वाले पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी ने उन के पुत्र हेतु अपनी पुत्री के रिश्ते की बात उन से की. अंधा क्या चाहे, दो आंखें. पंडित दीनानाथ शुक्ल तो अच्छे प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में पुत्र का विवाह करना ही चाहते थे. ऐसी स्थिति में पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी, जोकि अन्य किसी जिले से आ कर इस कोयला उद्योग क्षेत्र में बतौर ‘सिविल कौंट्रैक्टर’ का कार्य कर रहे थे तथा हर मामले में उन से बीस थे, का यह रिश्ते का प्रस्ताव उन्हें अनमोल खजाना अनायास मिल जाने जैसा सुखद लगा. सब से बड़ी बात तो यह थी कि पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी क्षेत्र के ब्राह्मण समाज में अत्यंत प्रतिष्ठित स्थान पर थे.

पंडित दीनानाथ शुक्ल ने पलभर की भी देर न की और पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी के इस प्रस्ताव पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी. बस, फिर क्या था. पंडित दीनानाथ शुक्ल के पुत्र का विवाह ऐसे ठाटबाट से हुआ कि क्षेत्र के ब्राह्मण समाज ने दांतों तले उंगली दबा ली. कल तक उन के कुलगोत्र, नातेरिश्तेदारी को शक की निगाहों से देखने वाले कट्टर ब्राह्मण समाज ने भी सब शंका दूर कर उन्हें बेहिचक श्रेष्ठ ब्राह्मण स्वीकार लिया. इस रिश्ते के बाद से ही ब्राह्मण समाज में वे शान से सिर उठा कर चलने लगे. लेकिन कभीकभी उन्हें यह विचित्र बात लगती कि पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी की पुत्री की शादी में उन का कोई भी रिश्तेदार न आया था. पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी ने इस का कारण यह बतलाया था कि उन के सब रिश्तेदार अन्य प्रांत के ग्रामीण अंचलों में इस उद्योग क्षेत्र से इतनी दूर रहते हैं कि उन का आना संभव न था.

समय की गति के साथ अतीत धुंधलाता चला गया. वर्तमान में पंडित दीनानाथ शुक्ल एवं पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी दोनों ही क्षेत्र के ब्राह्मण समाज के गौरव हैं. पूरे ब्राह्मण समाज में उन का नाम सम्मान से लिया जाता है क्योंकि हर सामाजिक कार्य में वे तनमनधन से सहयोग करते हैं. उन के धन के सहयोग का प्रतिशत सर्वाधिक रहता है.

सबकुछ बढि़या चल रहा था लेकिन अचानक एक दिन न जाने कहां से पूछतेपाछते पंडित दीनानाथ शुक्ल के पुश्तैनी ग्राम में रहने वाला  चुलबुल नाई उन के पास आ पहुंचा. ग्रामों में शादी के रिश्ते नाई एवं ब्राह्मण ही तलाशा एवं तय किया करते हैं, सो समाज में उन का महत्त्वपूर्ण स्थान रहता है. चुलबुल नाई के सिर्फ उन के ग्राम ही नहीं, बल्कि आसपास के 2-3 जिलों में भी जजमान थे. चुलबुल अपने नाम के अनुरूप काफी चुलबुला तो था ही, साथ ही उसे बातों की अपच की बीमारी भी थी. कोई भी बात उस के कानों में पहुंचती तो जब तक वह उस बात को दोचार लोगों को बतला न देता, उस के पेट में मरोड़ उठती रहतीं.

पंडित दीनानाथ का माथा उसे देख कर ठनका, कुछ अनहोनी न हो जाए, मानसम्मान, प्रतिष्ठा में कोई आंच न आ जाए की शंका से उन का दिल लरजा. वे स्थिति को संभालते हुए कुछ बोलना ही चाह रहे थे कि चुलबुल नाई चुलबुलाते हुए बोला, ‘‘वाह दीनानाथजी, वाह…आप के तो यहां बड़े ठाट हैं. आप तो एकदम से यहां ब्राह्मण बन गए, शुकुलजी. वाह, क्या चोला बदला है.’’ दीनानाथ शुक्ल ने जेब से 100-100 रुपए के 2 करारे नोट निकाल कर उस की जेब में रखते हुए बोले, ‘‘अरे, चुप कर, चुप कर. खबरदार, जो यह बात किसी से कही. रख यह इनाम और जब भी मेरे लायक कोई काम हो, तो बतलाना.’’

चुलबुल हाथ जोड़ कर चापलूसी से बोला, ‘‘अरे नहीं पंडितजी, हम काहे किसी से कुछ कहेंगे. आप तो हमारे मालिक हैं. आप का सब राज हमारे सीने में दफन.’’ फिर 100-100 रुपए के नोट उन्हें दिखाते हुए बोला, ‘‘लेकिन मालिक, ये तो 2 ही हैं, 3 और दीजिए तब तो बात बने. अरे, आप ने बेटवा का काज भी तो किसी बड़े ब्राह्मण खानदान में किया है, उस का भी तो नजराना बनता है न, मालिक.’’ दीनानाथ ने मनमसोस कर 300 रुपए और चुलबुल को यह कहते हुए दिए कि खबरदार, जो यह बात किसी से कही, वरना खाल में भूसा भरवा कर टांग दूंगा. जवाब में खीसें निपोरते हुए चुलबुल बोला, ‘‘आप निश्ंिचत रहिए, यह चुलबुल का वचन है. लेकिन यह तो बतलाइए कि बेटे को आप ने किस ब्राह्मण परिवार में ब्याहा है?’’ जवाब में जब दीनानाथ ने पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी का नाम बतलाया तो चुलबुल कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘अरे, पंडितजी, आप के समधी पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी फलां जिले के फलां गांव वाले हैं क्या?’’ दीनानाथ शुक्ल के सहमति व्यक्त करने पर वह कुछ व्यंग्यात्मक स्वर में बोला, ‘‘धन्य हो पंडितजी, धन्य हो. आप के समधीजी भी हमारे जजमान हैं. उन के पूरे कुल खानदान के बारे में हम जानते हैं. बस, यह समझ लीजिए कि जइसे आप वंश फोर शुक्ला हैं न, बस वइसे ही पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी भी चर्मफाड़ चतुर्वेदी हैं. समझे न?’’  चुलबुल तो उन्हें प्रणाम कर वहां से चला गया लेकिन पंडित दीनानाथ यह जान कर हतप्रभ रह गए.

दूसरे दिन दीनानाथ रोष से कांपते हुए पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी के बंगले के अंदर प्रवेश कर रहे थे, तभी उन्हें पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी चुलबुल के कंधे पर हाथ रख कर बाहर निकलते हुए दिखाई पड़े. चुलबुल अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में था, शायद यहां से उसे और भी तगड़ा इनामनजराना मिला था. एकाएक दोनों पंडितों को आमनेसामने देख कर चुलबुल मुसकराते हुए लगभग दंडवत कर दोनों ही पंडितों को पायलागी कह कर प्रस्थान कर गया. जबकि दोनों ही तथाकथित पंडित ‘भई गति सांपछछूंदर केरी ना उगलत बने ना लीलत’ वाली हालत में एकदूसरे के सामने एक पल को खड़े रह गए. फिर दूसरे ही पल पंडित दीनानाथ शुक्ल व्यंग्य से पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी से बोले, ‘‘चर्मफाड़ चतुर्वेदीजी, प्रणाम.’’

जवाब में पंडित चंद्रकिशोर चतुर्वेदी उपहास से हंसते हुए बोले, ‘‘प्रणाम, वंश फोर शुकुलजी, प्रणाम.’’ फिर दोनों ही एकदूसरे से विमुख हो कर अपनेअपने घर की ओर बढ़ गए. किसी की भी इज्जत की चादर उघाड़ने से दूसरे को भी तो नंगा होना ही पड़ता, इसलिए दोनों को ही एकदूसरे को ढके रहने में ही समझदारी दिख रही थी.

महाकुम्भ में क्या होगा

सूफी दार्शनिक तन से ज्यादा मन की शुद्धि पर ज़ोर देते थे तो तय है कि वे सारे फ़सादों की जड़ उन विचारो , सिद्धांतों और मान्यताओं को मानते थे जो धर्म ग्रंथो से आईं इधर उज्जैन के सिंहस्थ कुम्भ में आम श्रद्धालु क्षिप्रा में डुबकी लगाकर पाप धोते मोक्ष के वहीखाते में अपना नाम दर्ज कर रहे हैं लेकिन इस धार्मिक आयोजन के नायक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इतने से संतुष्ट नहीं हैं लिहाजा उन्होने 12 से 14 मई तक उज्जैन के नजदीक ही निनोरा कस्बे में एक विशाल अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ के आयोजन की भी घोषणा कर डाली है जिसका शुभारंभ आर आर एस प्रमुख मोहन भागवत और समापन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे । इस विचार महाकुंभ का मसौदा स्पष्ट नहीं है न ही उन मनीषियों के नाम अभी सरकार बता रही जो इस वैचारिक वेतरणी मे डुबकी लगाएंगे पर इतना तय है कि इसमे कोई लेफ्ट समर्थक तो दूर की बात है कोई गैर हिंदुवादी विचार धारा का चेहरा नहीं होगा क्योकि उसे इसी आधार पर विद्वान या मनीषी नहीं माना जा सकता । यानि इस आयोजन में हिन्दुत्व थोपने के षड्यंत्र से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन यह बात राष्ट्रवाद की आड़ मे किए जाने की संभावना ज्यादा है छुट पुट चर्चा आयोजन को आरोपों से बचाने इधर उधर की हो सकती है । जो निष्कर्ष निकलेंगे उन्हे प्रकाशित किया जाएगा पुस्तक का नाम होगा अमृत संदेश  ।

अमृत हर कोई जानता है बगेर मंथन के नहीं निकलता इसलिए मौजूदा दौर के देवता ही आपस मे रस्साकसी करेंगे जिसका अघोषित अजेंडा यह होगा कि कैसे अधिकतम शांति से हिन्दुत्व थोपा जा सकता है और इसकी राह में बाधाएँ कैसी और कौन हैं । विचार विमर्श करना अच्छी बात है इससे ज्ञान चक्षु खुलते हैं लेकिन एक ही विचारधारा के लोग जब मिल बैठ कर सब कुछ तय करेंगे तो उसमे मंथन कहाँ रह जाएगा । कुछ वैज्ञानिक, समाज शास्त्री और अन्य क्षेत्रो के विद्वान भी इस विचार महाकुंभ मे खासतौर से बुलाये जा रहे हैं जिनका काम सहमति देना ज्यादा होगा स्वतंत्र विचार रखना कम होगा । मुमकिन है चर्चा का फोकस दलितों पर रखा जाए क्योकि 11 मई को भाजपा दलितों को अलग से स्नान करवा रही है जिस पर विवाद शुरू हो गए हैं कि कुम्भ का राजनैतिकीकरण किया जा रहा है । शिवराज इस आयोजन के इवैंट मेनेजर मात्र हैं नहीं तो इसके पीछे दिमाग तो आर एस  एस का ही है जो सब कुछ अनुकूल होते हुये भी संतुष्ट नहीं है यह असंतुष्टि दरअसल में क्या है यह जरूर विचार महाकुंभ से उजागर होगा ।

हवस के दरिंदों की करतूत

उत्तर प्रदेश का जाट बहुल जिला बागपत जिस रोंगटे खड़े कर देने वाली वारदात से रूबरू हुआ, उसे वहां के बाशिंदे शायद ही कभी भुला सकें. कई धरनेप्रदर्शनों के बाद पुलिस के शिकंजे में गुनाहगार आ गए थे, लेकिन जो हकीकत खुल कर सामने आई, उस ने सभी को चौंका दिया.

10वीं जमात में पढ़ने वाली छात्रा साक्षी चौहान अपने पिता ईश्वर सिंह की हत्या के बाद अमीनगर सराय कसबे के नजदीक खिंदौड़ा गांव में अपने ननिहाल में रह कर पढ़ाई कर रही थी. 31 दिंसबर को वह स्कूल गई, लेकिन इस के बाद उस का कहीं पता नहीं चला, तो परिवार वालों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. आखिरकार 10 जनवरी को साक्षी की लाश नजदीक के गांव पूठड़ में ईंख के खेत में पड़ी मिली. वारदात वाली जगह पर हत्या का कोई निशान नहीं था. साक्षी स्कूली कपड़ों में थी. ऐसा लगता था कि उस की लाश को वहां ला कर फेंक दिया गया था. साक्षी चौहान का अपहरण भले ही कई दिन पहले किया गया था, लेकिन उस की हत्या लाश मिलने से 24 घंटे पहले ही की गई थी. इस से  लोगों का गुस्सा और भी भड़क गया और पुलिस पर साक्षी चौहान की बरामदगी में तेजी न बरतने का आरोप लगाया. पोस्टमार्टम के दौरान साक्षी के शरीर पर नोचे जाने और अंदरूनी हिस्सों पर चोटों के निशान पाए गए. चंद रोज की जांचपड़ताल में पुलिस ने इस मामले में 4 नौजवानों को गिरफ्तार कर लिया.

पकड़े गए आरोपियों में सैड़भर गांव के बिट्टू, मोनू, सौरभ व अन्नु शामिल थे. इन सभी की उम्र 20 से 24 साल के बीच थी. स्कूल जाते समय वे साक्षी को मोटरसाइकिल पर बैठा कर बिट्टू के घर ले गए. इस के बाद चारों आरोपियों ने उसे बंधक बना कर दरिंदगी की थी.

यह सिलसिला 10 दिनों तक चला. वे साक्षी को नशीली चीज देते थे, ताकि वह बेहोश रहे. उन्हें डर था कि अगर साक्षी को छोड़ दिया गया, तो वे सभी फंस जाएंगे. पकड़े जाने के डर से उन्होंने गला दबा कर उस की बेरहमी से हत्या कर दी और मारुति कार में उस की लाश रख कर ईंख के खेत में फेंक गए.उन चारों के सिर पर हवस का फुतूर सवार था. वे अकसर आनेजाने वाली छात्राओं पर फब्तियां कसते थे और उन्हें अपना शिकार बनाने का घिनौना ख्वाब देखते थे.इस तरह के मामलों में लड़कियां अकसर ऊंची जाति के लोगों की हैवानियत और हवस का शिकार होती हैं. हरियाणा के सोनीपत में कुछ दबंगों ने एक दलित लड़की को खेत में खींच कर उस के साथ गैंगरेप किया. बाद में पीडि़ता ने मौत को गले लगा लिया. देहात के इलाकों में दलित बेचारे बेसहारा होते हैं. बैकवर्ड क्लासों में  दबंगों का बोलबाला होता है. लिहाजा, पुलिस भी ऐसे मामलों में लचीला बरताव करती है. होहल्ला होने पर कुरसी बचाने तक की सख्ती दिखाई जाती है. कितने मामले ऐसे भी होते हैं, जब दबंगों के डर से पीडि़त परिवार पुलिस तक पहुंचने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते.

पिछले साल हरदोई जिले में एक दलित लड़की के साथ हैवानियत की गई. मौत का मामला उछलने के बाद पुलिस हरकत में आई. दबंगों की इस दरिंदगी का शिकार साक्षी चौहान कोई अकेली शिकार नहीं थी. उत्तर प्रदेश के ही सहारनपुर जनपद में भी एक दहलाने वाली वारदात हुई. लेबर कालोनी की रहने वाली 11 साल की दलित लड़की तान्या 5 जनवरी को लापता हो गई. 2 दिन बाद तान्या की लाश पुलिस को झाडि़यों में मिली. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे और उस के साथ रेप किया गया था. इस मामले में 3 नौजवानों को गिरफ्तार किया गया. दरअसल, अंबेडकर कालोनी के रहने वाले इंद्रजीत, धर्मवीर और शिवकुमार शराब की लत के शिकार थे. उन तीनों ने खेतों में बनी एक झोंपड़ी को शराब का अड्डा बनाया हुआ था. वे अकसर वहां बैठ कर शराब पीते थे और सैक्स से जुड़ी बातें करते थे. धीरेधीरे वे यह सोचने लगे कि किसी को अपना शिकार बनाया जाए. एक शाम उन तीनों ने जम कर शराब पी और तान्या को मोटरसाइकिल से अगवा कर लिया.

इंद्रजीत तान्या को पहले से जानता था. वह चाट खिलाने के बहाने उसे अपने साथ ले गया. झोंपड़ी में ले जा कर तीनों ने बारीबारी से उसे अपना शिकार बनाया. तान्या चीखीचिल्लाई, तो उन्होंने गला दबा कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश को पुआल में छिपा दिया. अगले दिन उन्होंने तान्या की लाश को तकरीबन 2 सौ मीटर दूर झाडि़यों में फेंक दिया. आरोपियों तक पहुंचने में ट्रैकर कुत्ते ने अहम भूमिका निभाई. लाश पर मिले फूस और गीली मिट्टी के सहारे ही कुत्ता झोंपड़ी तक पहुंच पाया. बकौल एसएसपी आरपी सिंह, ‘‘आरोपियों पर पाक्सो ऐक्ट के तहत कार्यवाही की गई है. फौरैंसिक जांच के सुबूतों से भी आरोपियों को सजा दिलाई जाएगी.’’ बरेली में 29 जनवरी को घुमंतू जाति की एक दलित लड़की के साथ सारी हदों को लांघ दिया गया. नवाबगंज इलाके के गांव आनंदापुर में महावट जाति की बस्ती है. हेमराज की बेटी आशा अपनी मां के साथ खेत में चारा लेने गई थी. आशा को चारा ले कर घर भेज दिया गया, पर घर में चारा रख कर वह दोबारा खेत पर जा रही थी, तो लापता हो गई.

खोजबीन के बाद महेंद्रपाल नामक आदमी के खेत में आशा की बिना कपड़ों की लाश मिली. गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई थी और अंग में लकड़ी ठूंस दी गई थी. उस के शरीर को भी नोचा गया था. मौके पर उसे घसीटे जाने के निशान भी थे. पुलिस ने इस मामले में गांव के बिगड़ैल नौजवान की तलाश की, तो एक नौजवान मुरारी गंगवार का नाम सामने आया. पुलिस ने उसे उठा कर सख्ती से पूछताछ की, तो मामला खुल गया.

मुरारी और उस का दोस्त उमाकांत शराब पी कर खेतों की तरफ निकले थे. उन की नजर लड़की पर पड़ी, तो सिर पर हैवानियत सवार हो गई. वे दोनों उसे खेत में खींच कर ले गए. उस का मुंह दबा कर पहले उमाकांत ने उस के साथ बलात्कार किया और फिर मुरारी ने. उन दोनों ने उस के नाजुक अंगों पर हमला भी किया. उन के बीच काफी खींचतान हुई. लड़की मुरारी को पहचानती थी, इसलिए गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई. मुरारी पहले भी गांव के एक बच्चे और पशुओं के साथ गलत काम करने की कोशिश कर चुका था, जिस के बाद उस की पिटाई हुई थी. जबरन सैक्स और हत्या के मामले समाज और कानून दोनों को ही दहलाने का काम करते हैं. हवस के ऐसे अपराधी हर जगह हैं, जो कब किस को अपना शिकार बना लें, कोई नहीं जानता.

इस तरह के मामलों में सामने आता है कि ऐसे नौजवान किसी लड़की को भोगने के बाद 2 वजह से हत्या करते हैं. पहली, अपने पहचाने जाने के डर से. दूसरी, चीखनेचिल्लाने और पकड़े जाने के डर से. इस तरह के नौजवान समाज और कानून के लिए खतरा बन जाते हैं.डाक्टर आरवी सिंह कहते हैं कि ऐसा करने वाले सैक्सुअल डिसऔर्डर बीमारी का शिकार होते हैं. विरोध करने पर उन में गुस्सा पैदा हो जाता है. वे अपनी कुंठा को मनमुताबिक शांत करना चाहते हैं. ऐसे लोग सैडेस्टिक टैंडैंसी से भी पीडि़त होते हैं. ऐसे शख्स को किसी का खून बहता देख कर खुशी होती है. यह एक तरह की दिमागी बीमारी है.

आखिरकार पाक क्रिकेट टीम को मिल ही गया कोच

पाकिस्तान के कोच को लेकर लंबे समय से खोज चल रही थी. कई पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटरों सहित पूर्व ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर स्टुअर्ट ने भी पाकिस्तान का कोच बनने से मना कर दिया था. पीसीबी के अध्यक्ष शहरयार खान ने कहा था कि उन्हें पीसीबी का कोच ढूंढने में मुश्किल हो रही है.

पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर अब्दुल कादिर ने यहां तक कहा था कि पीसीबी को किसी घरेलू खिलाड़ी को ही टीम का कोच बना देना चाहिए. उन्होंने यह भी सलाह दी थी कि अगर किसी विदेशी को ही कोच बनाना है तो सर विवियन रिचर्ड्स इसके लिए बेहतरीन विकल्प हो सकते हैं.

लेकिन आखिरकार पाकिस्तान क्रिकेट टीम को उसका नया कोच मिल ही गया. दक्षिण अफ्रीका के मिकी आर्थर पाकिस्तान क्रिकेट टीम के नए कोच नियुक्त कर दिए गए हैं. 47 साल के मिकी आर्थर, वकार यूनुस के बाद पाकिस्तान टीम की कमान अपने हाथों में लेंगे.

मिकी आर्थर इससे पहले दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों के कोच रह चुके हैं. पाकिस्तान सुपर लीग में वे कराची किंग्स के भी कोच रह चुके हैं. मिकी आर्थर ने एक उम्दा फर्स्ट क्लास क्रिकेटर के तौर पर भी नाम कमाया है. उन्होंने 110 फर्स्ट क्लास मैचों में 33.45 के औसत और 13 शतकीय पारियों के साथ 6657 रन बनाए.

पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने बयान में कहा, 'बोर्ड के गवर्नर्स की पिछली बैठक में इस मसले पर व्यापक विचार विमर्श किया गया. फिर पीसीबी अध्यक्ष और बोर्ड के गवर्नरों के बीच आगे टेलीफोन पर बातचीत के बाद मिकी आर्थर से संपर्क किया गया. और उन्होंने पाकिस्तान की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच का पद स्वीकार कर लिया.'

पीसीबी ने वकार के इस्तीफा देने के बाद पद के संभावित उम्मीदवारों से आवेदन मंगवाए थे. पीसीबी को सिफारिशें करने के एक पैनल गठित किया गया था जिसमें वसीम अकरम, रमीज राजा और फैसल मिर्जा शामिल थे. पहले आस्ट्रेलिया के स्टुअर्ट लॉ को इस पद की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने तुरंत टीम से जुड़ने में असमर्थता जताई. इंग्लैंड के पीटर मूर्स ने भी पीसीबी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था.

दक्षिण अफ्रीका को नंबर वन बनाया

मिकी ने साउथ अफ्रीका के लिए 110 प्रथम श्रेणी मैच खेले हैं. वे दक्षिण अफ्रीका के भी कोच रहे हैं. उनकी कोचिंग में अफ्रीका ने नए-नए मुकाम हासिल किए. क्रिकेट के फॉर्मेट में टीम नंबर वन बनी.

ऑस्ट्रेलिया को भी दी कोचिंग

इनकी कोचिंग में साउथ अफ्रीका ने लगातार 13 वनडे मैच जीते, जो कि ऑस्ट्रेलिया के रिकॉर्ड की बराबरी है. मिकी 2005 से 2010 तक दक्षिण अफ्रीका के कोच रहे. वह 2011 से 2013 तक आस्ट्रेलिया के भी कोच रहे हैं. वे 2008 से 2010 तक आईसीसी की क्रिकेट कमिटी में रहे हैं.

इस महीने में टीम से जुड़ जाएंगे

उम्मीद की जा रही है कि मिकी आर्थर इस महीने के आखिर तक पीसीबी से जुड़ जाएंगे. आर्थर पाकिस्तान सुपर लीग में कराची किंग्स टीम को कोचिंग दे रहे थे.

भारतीय प्रशंसकों में सब्र की कमी: कोहली

विराट कोहली इस वक्त भारत के सबसे चमकते क्रिकेट सितारा है लेकिन उनको भारतीय फैंस से एक बड़ी शिकायत है. कोहली का मानना है कि भारत के प्रशंसकों में सब्र की कमी है और एक नाकामी आपकी महीनों की कामयाबी पर पानी फेर सकती है. इतना ही नहीं कोहली को अपने प्रशंसकों से यह भी शिकायत है कि लोग अक्सर खिलाड़ियों को उनके प्रदर्शन से ज्यादा मैदान के बाहर उनके बर्ताव या रहन-सहन से आंकते हैं.

निजी जिंदगी से आकलन

कोहली ने कहा कि 'जब मैं टीम इंडिया में आया तो मेरे टैटू से लोग मुझे आंकने लगे और मेरी आक्रमकता को लोग गलत तरह से देखने लगे. लेकिन पिछले पांच-आठ सालों में काफी कुछ बदल गया है.' इतना ही नहीं, कोहली को फैंस की इस बात से भी शिकायत है कि लोग उनकी निजी जिंदगी से उन्हें आंकते हैं जो ठीक नहीं है. मैदान पर प्रदर्शन ही खिलाड़ी को मापने का इकलौता पैमाना होना चाहिए.

फिक्सिंग रोकना आसान नहीं

इससे पहले विराट ने क्रिकेट में फिक्सिंग को लेकर भी अपनी राह रखी थी. विराट ने कहा था 'चाहे आप कितने भी कड़े कदम उठा लें, चाहे कितना भी मजबूत सुरक्षा सिस्टम बना लें, लेकिन अगर क्रिकेट में मैच फिक्सिंग या स्पॉट फिक्सिंग को रोकना है, तो इसके लिए एक खिलाड़ी को खुद ही सही फैसले लेने होंगे.'

मोदी के व्यक्तित्व से प्रभावित

भारतीय टीम की रन मशीन के नाम से मशहूर विराट कोहली नरेंद्र मोदी के काफी बड़े फैन नजर आते हैं. विराट कोहली ने कहा कि जब भी वो पीएम मोदी के बारे में सोचते हैं तो उनके दिमाग में सबसे पहली चीज उनका आत्मविश्वास आता है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी का आत्मविश्वास युवा पीढ़ी के लिए काफी अच्छा है.

आक्रामकता अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित करती है

अपनी आक्रामकता के लिए जाने जाने वाले विराट का मानना है कि आक्रामता को सही दिशा में इस्तेमाल किया जा सकता है. सभी खिलाड़ियों में आक्रामकता होनी चाहिए. जो काबिलियत आपके पास है, उसमें आपको गर्व होना चाहिए. आक्रामकता मुझे अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करती है.

अब किसने दी शाहिद को सन्यास लेने की सलाह

पाकिस्‍तान क्रिकेट टीम के महान ऑलराउंडर शाहिद अफरीदी अपने आक्रामक क्रिकेट के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं. अफरीदी के नाम क्रिकेट में कई बड़े रिकार्ड हैं. कई सालों तक उनके नाम सबसे तेज वनडे शतक का रिकार्ड रहा.

अफरीदी का बल्‍ला अगर चल जाता है तो वो किसी भी गेंदबाज की लाइन लेंथ को बिगाड़ देता है. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि विश्व क्रिकेट में अफरीदी के समान दूसरा कोई भी ऑलराउंडर नहीं हुआ है.

लेकिन हर खिलाड़ी का अपना एक समय होता है. एक समय के बाद कई महान खिलाडियों को अपने फॉर्म को लेकर जुझते हुए हम सबने जरूर देखा है. अब बारी अफरीदी की है. इन दिनों अफरीदी के सितारे गर्दिश पर हैं. वो अगर सोना को छूने की कोशिश करते हैं तो राख में बदल जाता है. कहने का मतलब है कि अफरीदी का फॉर्म इन दिनों काफी खराब चल रहा है.

अफरीदी इन दिनों केवल एक बल्‍लेबाज के रूप में ही नहीं, एक गेंदबाज के रूप में ही नहीं, एक ऑलराउंडर के रूप में ही नहीं, बल्कि एक कप्‍तान के रूप में भी असफल हो चुके हैं. मौजूदा आईसीसी टी-20 विश्व कप में पाकिस्‍तान क्रिकेट टीम की अगुआई करते हुए शाहिद अफरीदी को काफी फजीहत का सामना करना पड़ा.

टीम की शर्मनाक हार के बाद उन्‍हें न केवल टीम से हटाया गया, बल्कि उन्‍हें कप्‍तानी से भी हाथ धोना पड़ा. टीम की शर्मना‍क हार के लिए उन्‍हें देश के क्रिकेट प्रेमियों से माफी भी मांगनी पड़ी.

अंतरराष्‍ट्रीय टेस्‍ट क्रिकेट और वनडे क्रिकेट से संन्‍यास ले चुके अफरीदी पर अब टी-20 क्रिकेट से भी संन्‍यास ले लेने का दबाव बढ़ता जा रहा है. टी-20 विश्व कप में भारत के हाथों शर्मनाक हार के बाद अफरीदी पर चारों ओर से हमला किया जा रहा है.

पाकिस्‍तान क्रिकेट टीम के कई पूर्व क्रिकेटरों ने तो उन्‍हें साफ तौर पर सलाह दे डाली है कि अब उनकी उम्र हो चुकी है, उन्‍हें क्रिकेट से संन्‍यास ले लेना चाहिए.

पूर्व लेग स्पिनर अब्दुल कादिर ने पाकिस्तान के आक्रामक हरफनमौला शाहिद अफरीदी को सलाह दी है कि वह क्रिकेट को अलविदा कह दें जबकि उमर अकमल को लताड़ते हुए कहा है कि वह अपनी गलतियों की वजह से टीम से बाहर हुए हैं.

अपने बेबाक बयानों के लिये मशहूर कादिर ने लाहौर में एक कार्यक्रम में कहा कि अफरीदी की उम्र हो गई है और अब वह शीर्ष स्तर पर क्रिकेट खेलने के लिये फिट नहीं है. उन्होंने कहा ,‘‘ मुझे नहीं लगता कि अब वह पहले की तरह खेल पाता है. उसे क्रिकेट को अलविदा कह देना चाहिये.'

इतनी फजीहत के बाद भी अफरीदी अपने फैसले को लेकर अड़े हुए हैं. अफरीदी को लगता है कि वो अब भी अपने देश के लिए क्रिकेट खेल सकते हैं. लेकिन इंग्‍लैंड दौरे के लिए उन्‍हें टीम में शामिल नहीं करके पाकिस्‍तान क्रिकेट बोर्ड ने साफ कर दिया है कि अब उनके लिए टीम में वापसी करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

हालांकि इंग्‍लैंड दौरे पर अफरीदी को न चुने जाने पर बोर्ड ने साफ किया है कि उन्‍हें आराम दिया गया है. लेकिन लगातार क्रिकेट से सन्‍यास का दबाव और टीम से बाहर किये जाने के बाद क्रिकेट जगत में चर्चा होने लगी है कि कहीं अब बूम-बूम अफरीदी के लिए हमेशा के लिए तो नहीं पाकिस्‍तान क्रिकेट का द्वार बंद हो चुका है.

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