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किसने किया नरगिस के प्रपोजल को रिजेक्ट?

नरगिस फखरी काफी दिनों से अपनी नई फिल्मों के प्रमोशन और इवेंट्स में नहीं दिख रही हैं. सूत्रों ने बताया कि वे सभी काम छोड़कर अपने घर न्यू यॉर्क लौट गई हैं.

इमरान हाशमी के साथ फिल्म ‘अजहर’ के प्रमोशन में नरगिस यह कहकर नहीं आ रही थीं कि उन्हें चोट लगी है. लेकिन नरगिस के एक करीबी दोस्त ने बताया, ‘नरगिस को नर्वस ब्रेकडाउन हुआ है और इस वजह से वह देश छोड़ अपने घर न्यू यॉर्क चली गई हैं. इस दौरान नरगिस की मानसिक स्थिति इतनी ठीक नहीं थी कि वे काम पर ध्यान लगा सकें. वे हर हाल में इस देश से निकलना चाहती थीं. यही वजह है कि दो दिन पहले रात की फ्लाइट से वे न्यू यॉर्क रवाना हो गईं.'

नरगिस की अचानक रवानगी और नर्वस ब्रेकडाउन के पीछे उदय चोपड़ा को वजह बताया जा रहा है. उनसे जुड़े सूत्र ने बताया, ‘नरगिस जल्द ही उदय के साथ अपनी शादी की तारीख का खुलासा करने वाली थीं. लेकिन उदय ने कदम पीछे हटा लिए. नरगिस को इससे गहरा सदमा लगा है. एक वक्त ऐसा था जब नरगिस से शादी करने के लिए उदय उतावले थे.’

उदय ने नरगिस को शादी के लिए प्रपोज भी किया था, लेकिन उस समय नरगिस अपने करिअर पर ध्यान देना चाहती थीं. आज बात इसके उलट है. इसी बात पर नरगिस की काफी बड़ी लड़ाई उदय से हुई, जिस वजह से उनका नर्वस ब्रेकडाउन हुआ और वह यूएसए निकल गईं.

नरगिस के इस तरह से जाने की वजह से उनकी फिल्म के प्रोड्यूसर्स को धक्का लगा है. उनकी फिल्म नरगिस की वजह से बीच में अटक गई हैं. हालांकि नरगिस ने सभी प्रोड्यूसर्स से कहा है कि उन्हें काम पर लौटने के लिए एक-दो महीने लगेंगे.

 

बसपा की ‘फ्रेंडलिस्ट’ में कांग्रेस ‘न्यू फ्रेंड’

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों को लेकर सभी दलों ने अपने स्तर पर तैयारी शुरू कर चुके है.ऊपरी तौर पर सभी दल आत्मविश्वास से भरे दिख रहे है.सभी ऐसा दिखा रहे है जैसे उनकी ही सरकार बनने जा रही है.जैसेजैसे चुनाव आगे बढेगा हालात और हकीकत सामने आते जायेगे.सही मायनों में असल गणित चुनाव नतीजों के बाद ही सामने आयेगा.प्रदेश के राजनीतिक हालात मिलेजुले जनादेश की तरफ इशारा कर रहे है.जिसमें 3 प्रमुख दल समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी सबसे बडे खिलाडी के रूप में उभरेगे.कांग्रेस सहित कई छोटे दल भी इस हैसियत में होगे कि सरकार बनाने में उनकी भूमिका उपयोगी होगी.बहुमत का गणित 2 दलो के चुनाव बाद गठबंधन से ही हल होगा.ऐसे में आकलन इस बात का हो रहा है कि चुनाव बाद बनने वाले गठबंधन किनकिन दलां के बीच होगा.

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के बीच गठबंधन होने की संभावना दूरदूर तक दिखाई नहीं पड रही है.बसपा-भाजपा का गंठबंधन कई बार पहले बन चुका है.दोनो दलो ने मिलकर पहले सरकार बनाई भी है.हाल के कुछ सालों में बसपा-भाजपा के बीच की दूरियां बढी है.ऐसे में इस बार बसपा-भाजपा गठबंधन की उम्मीद कम दिखाई दे रही है.उत्तराखंड में जिस तरह से बसपा ने भाजपा के विरोध में वोट दिया उसका एक मकसद यह संदेश देना भी था कि उत्तर प्रदेश में बसपा-भाजपा के बीच गठबंधन नहीं होगा. उत्तराखंड का एक संदेश यह भी था कि जरूरत पडने पर बसपा कांग्रेस के प्रति नरम रूख रख रही है.अगर दोनो दल के गठजोड से सरकार बनने के हालात बने तो चुनाव बाद दोनो तालमेल कर सकते है.चुनाव पहले तो इन दलों का आपस में कोई गठजोड नहीं होगा.

ऐसे में बसपा की फ्रेंडलिस्ट में सबसे करीबी दोस्त कांग्रेस हो सकती है.इसके लिये जरूरी है कि कांग्रेस खुद में इतनी सीट ले आये कि दो दल मिलकर सरकार बना सके.कांग्रेस के पक्ष में एक अच्छी बात यह है कि वह कई दलों को मिलाकर एक बडा गठबंधन बनाने की योजना में है.इसमें राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल युनाइटेड और लोकदल सहित कुछ और दलो के शामिल होने की उम्मीद है.ऐसे में कांग्रेस गठबंधन एक बडी पार्टी के रूप में उभर सकता है.चुनाव पूर्व का अनुमान बताता है कि सफलता की जो उम्मीद भाजपा को थी अब वह दिखाई नहीं दे रही है.समाजवादी पार्टी को जिस नुकसान की उम्मीद थी वह कम होती दिख रही है.ऐसे में किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं दिख रहा.बिना आपस में मिले कोई दल सरकार बनाने में सफल नहीं होगी.ऐसे में जिन दलों में दोस्ती दिख रही है.उनमे कांग्रेस और बसपा सबसे उपर है.बसपा नेता मायावती और कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के बीच बेहतर तालमेल भी है.बसपा ने कांग्रेस की यूपीए सरकार को हमेशा मदद दी. राजनीतिक वोटबैंक के लिहाज से दोनो दल करीब है.बसपा में जब कांशीराम थे तब कांग्रेस बसपा का गठबंधन हो भी चुका है.ऐसे में दोनो दलों के बीच दोस्ती पुरानी है.नये समीकरण से इसको मजबूत बनाने की जरूरत रह गई है.

न संघ चलेगा न शराब : नीतीश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इलाके बनारस में घुस कर बिहार के मुख्यमंत्रा और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने संघमुक्त भारत और शराबमुक्त समाज का हुंकार भर कर मोदी को खुली चुनौती दे डाली. नीतीश ने भाजपा शसित राज्यों को तो शराबमुक्त बनाने की दलील दी पर बिहार में अपने साथी कांग्रेस शसित राज्यों में शराबबंदी को लेकर अपने मुंह बंद रखा. 12 मई को नीतीश ने उत्तर प्रदेश में अपने सियासी मुहिम की शुरुआत कर अपनी पार्टी जदयू की जड़ें जमाने की पुरजोर कोशिश की. बनारस एयरपोर्ट के पास पिंडारा इंटर कौलेज मैदान  में जदयू के कार्यकर्त्ता सम्मेलन कर नीतीश ने 2019 तक दिल्ली पहुंचने का बिगुल फूंक दिया है. नीतीश को पता है कि उत्तर प्रदेश से होकर ही दिल्ली की कुर्सी तक पहुंचा जा सकता है. नरेंद्र मोदी के साथ नीतीश की सियासी कडुवाहट जगजाहिर है और बिहार के बाद अब दिल्ली में मोदी को हराने के लिए नीतीश कोई भी कोर-कसर छोड़ना नहीं चाह रहे हैं. बिहार से सैंकड़ों बसों में भी कर लोगों को बनारस पहुंचाया गया है.

उत्तर प्रदेश में नीतीश को भाजपा के साथ साथ बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस से भी निबटना है. उनके महागठबंध्न में बड़े दलों के शमिल होने की गुंजाइश नहीं बनी ऐसे में अजीत सिंह जैसे छोटे-छोटे इलाकाई दलों के साथ मिलकर प्रधनमंत्रा की कुर्सी तक पहुंचने का उनका बड़ा सपना शयद ही कामयाब हो सके. इसके बाद भी नीतीश बनारस में कार्यकर्त्ता सम्मेलन नीतीश ने सभी दलों को अपनी ताकत दिखाने की कवायद की है.

बनारस की सभा में नीतीश कुमार ने यह दिखा दिया कि वह अब पूरी तरह से जदयू के ‘बिग बौस’ बन गए हैं. पांचवीं बार मुख्यमंत्रा बन कर उन्होंने बिहार में तो अपना खूंटा गाड़ ही लिया है अब जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन कर वह दिल्ली फतह करने की मुहिम में लग गए हैं. जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर बनारस में उनकी पहली सभा हुई. नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्रा में नीतीश ने पूरा जोर भाजपा की ध्ज्जियां उड़ाने में ही लगाई. अपने 45 मिनट के भाषण में वह केवल भाजपा पर ही निशना साध्ते रहे और अपनी पार्टी और महगठबंध्न की आगे की योजना पर कुछ नहीं कहा. भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी करार देते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांटने में लगी हुई है पर समाज के अंमित पायदान पर खड़े लोगों तक तरक्की की धरा पहुंचाने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं है. केंद्र की भाजपा सरकार को आर्थिक मोर्चे पर पूरी तरह से नाकाम बताते हुए उन्होंने कहा कि अपनी नाकामी को छुपाने के लिए भाजपा घर वापसी, लव जिहाद, देशभक्ति जैसे नारे उछाल कर जनता को बरगला रही है.

…और अपनों ने नीतीश पर निशना साध
बनारस की सभा में जब नीतीश भाजपा और नरेंद्र मोदी पर निशना साध्ने में लगे थे तो उसी समय पटना में उनके सहयोगी दल राजद के सीनियर लीडर रघुवंश प्रसाद सिंह नीतीश पर निशना साध् रहे थे. रघुवंश ने कहा कि अपने स्वार्थ के लिए नीतीश सहयोगी दलों की अनदेखी कर रहे हैं. उन्होंने नीतीश से तल्ख सवाल पूछा कि आखिर उन्हें प्रधनमंत्रा का उम्मीदवार किसने बना दिया? किस हैसियत से वह मिशन-2019 की बात कर रहे हैं. अकेले घूम कर नीतीश सेकुलर ताकतों को कमजोर और सांप्रदायिक ताकतों को कमजोर कर रहे हैं. दूसरे राज्य में सभा करने से पहले नीतीश को सहयोगी दलों से बात करनी चाहिए, उन्हें भरोसे में लेना चाहिए. इतना ही नहीं नीतीश पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि पहले तो 10 सालों तक नीतीश ने खूब शराब बिकवाई और अब कूद-कूद कर उसे बंद कराने में लगे हैं. नरेंद्र मोदी की सरकार देश में जो बीमारी फैला रही है उसे ठीक करना अकेले नीतीश के वश की बात नहीं है. ‘हम’ सबसे बड़े है, यह भावना ठीक नहीं है.
 

डिअर डैडः भावना रहित बचकानी फिल्म

पिता पुत्र के रिश्तों पर आधारित तनुज भरमार की फिल्म‘‘डिअर डैड’’कमजोर पटकथा, पिता पुत्र के रिष्तों को भी सही ढंग से परिभाषित न कर पाने वाली, भावना रहित और अति धमी गति वाली फिल्म है. फिल्म का एक भी पात्र उभरकर नहीं आता. फिल्म‘‘डिअर डैड’’की कहानी के केंद्र में दिल्ली में रह रहे नितिन (अरविंद स्वामी)और उनका 14 साल का बेटा शिवम् ( हिमांशु शर्मा) है. नितिन की एक बेटी विधि भी है. पर खुद नितिन ‘गे’है. नितिन के गूंगे पिता व बूढ़ी मॉं हिल स्टेशन मनाली के पास रहते हैं. नितिन ने अपनी पत्नी को तलाक देने का निर्णय कर लिया है. इस बात की जानकारी अपने बेटे शिवम् को देने के मकसद से ही नितिन अपने बेटे को उसके मसूरी के होस्टल में खुद छोड़ने जाने का निर्णय लेता है. सड़क रास्ते से जाते समय वह बेटे शिवम् को सच बता देना चाहता है. वह दो तीन बार प्रयास करता है,पर बता नहीं पाता है. इस बीच रास्ते में एक टीवी रियालिटी शो का सेलेब्रिटी आदित्य (अमन उप्पल  )मिलता है. रास्ते में नितिन अपने माता पिता से भी मिलने जाता है. दादा दादी से मिलकर शिवम् खुश है. वहीं पर अपने गूंगे पिता को नितिन बताता है कि व पूरी जिंदगी जिस सच को उनसे नही कह पाया,वह सच आज वह उन्हे बता देना चाहता है कि वह ‘गे’ है . यह बात शिवम् सुन लेता है. और शिवम् को अपने पिता नितिन से घृणा हो जाती है.

रास्तें में नितिन , शिवम् से कहता है कि वह इसी सच को बताने के लिए उसके साथ आता है और वह यह भी बता देता है कि नितिन व शिवम् की मां अलग हो रहे हैं. इससे शिवम् का गुस्सा बढ़ जाता है. वह दोस्तो के साथ जाना चाहता है पर रास्ते में पहाड़ी के गिरने से रास्ता बंद हो जाता है. सभी को एक होटल में रूकना पड़ता है. जहां वह अपने दोस्त को अपने पिता की बात बताता है और कहता है कि व चाहता है कि उसका पूरा परिवार एक साथ रहे. तब उसका दोस्त उसे सलाह देता है कि वह बंगाली बाबा की दवा अपने पिता को दे,तो उसके पिता ठीक हो जाएगें. बंगाली बाबा की दवा से नितिन के पेट का दर्द शुरू हो जाता है. उधर आदित्य, शिवम् को समझाता है कि उसके पिता उसके लिए कितना परेशन रहते है. आदित्य, शिवम्म से कहता है कि ‘जिंदगी में वह सिच्युएशन मत आने देना कि जब तुम्हे अपने पिता की जरुरत हो,तो वह तुम्हारे आस पास भी न हो.’’

उसके बाद शिवम् अपने दोस्तों के साथ मसूरी के होस्टल चला जाता है. नितिन वहीं से अकेले दिल्ली लौट आता है. नितिन का अपनी पत्नी से तलाक हो जाता है. शिवम् को गणित में अच्छे नंबर मिलने पर ट्रॉफी दी जाती है, तो वहां पर नितिन व शिवम् की मां अपने नए पति के साथ पहुॅचती है. शिवम् मां की बजाय पिता नितिन के साथ समय बिताता है . फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि पिता पुत्र के रिष्ते को सही ढंग से स्थापित ही नहीं किया गया. दोनो के बीच बेकार की बकवास दिखायी गयी है. फिल्म का एक भी पात्र सही ढंग से उभर नहीं पाया. एक भी पात्र दर्षक के मन में जिज्ञासा या अपने लिए सहानुभूति भी नहीं बटोरता.

‘गे’को मुद्दे का भी फिल्मकार सही परिपेक्ष्य में नहीं पेश कर पाया. पिता के गे होने का सच जानने के बाद शिवम् के अंदर जिस तरह का गुस्सा आना चाहिए था, वह भी नहीं आ पाया. यहां तक कि नितिन के पात्र में परिवार के बिखरने व बेटे के दूर होते जाने का जो दुःख व तकलीफ सही ढंग से नहीं उभरती. यहां तक कि कैमरामैन मुकेश भी पूरी तरह से असफल रहे. वह अपने कैमरे में प्राकृतिक सौंदर्य को भी कैद नहीं कर पाएं. फिल्म बहुत ही ज्यादा धीमी गति से बढ़ती है. मनोरंजन के नाम पर शून्य है.फिल्म की पटकथा व निर्देशन काफी कमजोर है. फिल्म में आदित्य के किरदार को जबरन ठॅूंसा गया है. कहानी में उसकी कहीं कोई आवष्यकता नजर नहीं आती. फिल्म‘‘रोजा’’से चर्चा में आए अरविंद स्वामी ने पूरे सोलह साल बाद अभिनय में वापसी की है,तो उनसे काफी उम्मीदे थी, मगर वह निराश ही करते हैं. शिवम् के किरदार में हिमांशू शर्मा के लिए करने को बहुत कुछ था, मगर वह भी असफल रहे. इसमें पटकथा व निर्देशन की कमी ज्यादा नजर आती है. फिल्म ‘‘डिअर डैड’’से दर्षक के हिस्से कुछ नही आना है.रत्नाकर एम और शान व्यास निर्मित तथा तनुज भरमार लिखित व निर्देषित फिल्म‘‘डिअर डैड’’के कैमरामैन मुकेश जी,संगीतकार उज्ज्वल कष्यप व राधव-अर्जुन तथा कलाकार हैं-अरविंद स्वामी,हिमांषु शर्मा,एकावल खन्ना,अमन उप्पल और भाविका भसीन.

अजहरः फिल्म की बजाय प्रभावहीन सीरियल व प्रभावहीन डॉक्यूमेंटरी

 ‘‘ब्लू’’ जैसी असफल फिल्म के निर्देशक टोनी डिसूजा से बहुत ज्यादा उम्मीद करना सही भी नहीं था. टोनी डिसूजा निर्देषित फिल्म ‘‘अजहर’’कहीं से भी एक फीचर फिल्म नहीं बल्कि एक घटिया टीवी सीरियल या घटिया डॉक्यूमेंटरी फिल्म ज्यादा लगती है. फिल्म के निर्देका टोनी डिसूजा का दावा है कि उनकी फिल्म ‘अजहर’ मशहूर क्रिकेटर मो.अजहरुद्दीन की बायोपिक फिल्म नही है, बल्कि उनकी जिंदगी पर आधारित नाटकीय फिल्म है. तो फिल्म को नाटकीय बनाने के चक्कर में टोनी डिसूजा ने पूरी फिल्म व इसके पात्र व तमाम दृष्यों को ही अविष्वसनीय बना दिया है. फिल्म की कहानी नब्बे के दशक की है. मो.अजहरूद्दीन ने 2002 के बाद क्र्रिकेट नहीं खेला. लेकिन क्रिकेट मैच के मैदान पर या अजहर के पहनावे में मैचो ’बनियाइन, डॉ.आथ्रो, गितांजली ज्वेलर्स के विज्ञापन दिखाए गए है. यह सारे वह प्रोडक्ट है,जिनकी पैदाइश 2002 के बाद की है. यानी कि निर्माता ने ‘इन फिल्म मेंकिंग एड’इकट्ठा करके अपनी फिल्म की लागत वसूल कर ली, पर वह यह भूल गए कि उनकी फिल्म की कहानी का काल क्या है. फिल्म देखकर दर्शक किसी अच्छी समझ के साथ सिनेमा घर से बाहर नही निकलता.

फिल्म की कहानी क्रिकेटर मो.अजहरूद्दीन पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगने के बाद अजहरुद्दीन की जबानी शुरू होती है. बीच बीच में अदालती प्रक्रिया भी चलती रहती है. यह कहानी है हैदराबाद के मो.अजहरुद्दीन(इमरान हाषमी)की. जिनके नाना (कुलभूषण खरबंदा) को अजहर के बचपन में ही देश के लिए सौ क्रिकेट मैच खेलने की क्षमता नजर आ जाती है. अपने नाना के सपनो को पूरा करने के लिए मो.अजहरुद्दीन मुंबई पहुॅच जाते हैं. करियर के शुरूआती तीन मैचों में लगातार शतक बनाकर वह शोहरत बटोरते हैं और उन्हे वरिष्ठ खिलाड़ियो की अवहेलना कर भारतीय क्रिकेट टीम का कैप्टन बना दिया जाता है. वह कई मैच जीतते हैं. इसी बीच वह नौरीन(प्राची देसाई)से शदी भी कर लेते हैं. जब वह सफल भारतीय क्रिकेट कैप्टन के रूप में शोहरत बटोर रहे थे, तभी लंदन में अजहर की नजर बौलीवुड स्टार संगीता बिजलानी (नरगिस फाखरी )पर पड़ती है और अजहर, संगीता को अपना दिल दे बैठते है. अपनी पत्नी नौरीन से इस सच को बयां करने की बजाय एक क्रिकेट मैच जीतने पर ट्रॉफी लेते समय अजहर खुलेआम ऐलान कर देते हैं कि इस ट्रॉफी हकदार उनके दिल के करीब रहने वाली संगीता बिजलानी है. बहरहाल,जब उन पर आरोप लगता है कि उन्होने बुकी एम के शर्मा(राजेश शर्मा)से मैच फिक्सिंग के लिए एक करोड़ रूपए लिए है,तो उन्हे क्रिकेट खेलने से मना कर दिया जाता है. तब अजहर अदालत पहुॅचते हैं. अजहर के दोस्त व वकील रेड्डी (कुणाल कपूर)लड़ते है. जबकि क्रिकेट एसोसिएशन की तरफ से मीरा (लारा दत्ता)केस लड़ती हैं. 12 साल तक मुकदमा चलता है.अंत में अदालत उन्हे मैच फिक्सिंग के इल्जाम  से बरी कर देती है.

फिल्म में अजहर के किरदार में इमरान हाषमी कहीं से भी फिट नहीं बैठते. पूरी फिल्म में उनके चेहरे पर सही भाव नही आए. अजहर की जिंदगी में जो उतार चढ़ाव रहे हैं या उन्होने जिस तरह से दो दो शदियां की, उसे लेकर भी अजहर की भावनाएं दर्शकों के दिलो तक नहीं पहुॅच पाती. फिल्म के पटकथा लेखक व संवाद लेखक रजत अरोड़ा बहुत बुरी तरह से असफल रहे हैं. कई जगह पर पटकथा के स्तर पर कन्फ्यूजन नजर आता है. संवाद भी स्तरीय नही है. संवाद लेखक के तौर पर अजहर के मुँह से ‘देश’ के साथ साथ बार ‘कौम’की बात करके वह क्या कहना चाहते हैं, यह तो वही जाने. पूरी फिल्म देखकर यही लगता है कि लेखक व निर्देशक का सारा ध्यान सिर्फ मो.अजहरुद्दीन को सही इंसान दिखाने पर ही केंद्रित रहा,जिसके चलते फिल्म की ऐसी की तैसी हो गयी.
फिल्म निर्देशक का दायित्व होता है कि वह फिल्म की कहानी व पटकथा के मद्दे नजर सभी पात्रों के लिए उपयुक्त कलाकारों का चयन करे,पर इस कसौटी पर वह असफल रहे है. अजहर ही नही किसी भी पात्र के लिए वह कलाकारो का सही चुनाव नहीं कर पाए. अजहर के किरदार में इमरान हाषमी ,कपिल देव के किरदार में वरूण वडोला, रवि शस्त्री के किरदार में गौतम गुलाटी भी अपने किरदारां के साथ न्याय करने में असफल रहे हैं. प्राची देसाई एक अच्छी अदाकारा है. इसमें कोई दो राय नहीं. नरगिस फाखरी भी संगीता बिजलानी के किरदार में नहीं जम पायी.व कील रेड्डी के किरदार में कुणाल रॉय कपूर प्रभाव डालने में अफसल रहे हैं. फिल्म के अदालती दृष्य भी बहुत घटिया बने हैं. फिल्म में एक दो गाने ठीक बने हैं.
एकता कपूर की कंपनी ‘‘बालाजी मोशन पिक्चर्स’’और सोनी पिक्चर्स द्वारा निर्मित दो घंटे साढ़े ग्यारह मिनट की फिल्म‘‘अजहर’’के लेखक रजत अरोड़ा, निर्देशक टोनी डिसूजा,संगीतकार प्रीतम व अमाल तथा कलाकार हैं- इमरान हाशमी, प्राची देसाई,नरगिस फाखरी, लारा दत्ता,कुणाल रॉय कपूर,गौतम गुलाटी,वरूण वडोला आदि.

विधायक की बहन की हत्या अपनी ही सरकार को लाए कठघरे में

बिहार के भोजपुर जिले के बड़हरा के राजद विधायक सरोज यादव की बहन शैली देवी के साथ 9 अप्रैल, 2016 को कुछ अपराधियों ने बदसलूकी की और जब अपराधियों को पता चला कि वे एक विधायक की बहन हैं, तो अपनी पहचान छिपाने की नीयत से उन्होंने शैली देवी की हत्या कर डाली.

अपराधियों ने लोहे की छड़ से शैली देवी के सिर पर हमला कर दिया. जख्मी हालत में उन्हें अस्पताल में भरती किया गया, पर 12 अप्रैल, 2016 को उन की मौत हो गई. पुलिस जांच में यह बात भी सामने आई है कि बदसलूकी के दौरान आटोरिकशा से गिरने से शैली देवी के सिर पर गहरी चोट लगी थी, पर विधायक सरोज यादव इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. शैली देवी को 9 अप्रैल, 2016 को गंभीर हालत में आईसीयू में भरती कराया गया था. पटना मैडिकल कालेज अस्पताल के सुपरिंटैंडैंट डाक्टर लखींद्र प्रसाद ने बताया कि उन के दिमाग में गहरी चोट लगी थी, जिस से वे कोमा में चली गई थीं.

विधायक सरोज यादव के करीबी रिश्तेदार कहते हैं कि यह नीतीश कुमार का कैसा सुशासन है? जब सत्तारूढ़ दल के एक विधायक की बहन और परिवार ही महफूज नहीं हैं, तो आम आदमी की क्या बिसात? प्रशासन शैली देवी की जान तो वापस नहीं ला सकता, पर हत्यारों को फांसी के फंदे तक तो पहुंचा सकता है. गौरतलब है कि 9 अप्रैल, 2016 को विधायक सरोज यादव की 40 साला बहन शैली देवी दवा लेने अपने गांव टोला इंगलिशपुर से आटोरिकशा से चांदी बाजार गांव गई थीं. दवा लेने के बाद वे आरा लौटने के लिए आटोरिकशा में सवार हुईं. उन के साथ 4 और लोग भी उस में सवार हो गए.

आटोरिकशा को चांदी बाजार से जमीरा होते हुए आरा जाना था, लेकिन आटोरिकशा ड्राइवर ने जमीरा की तरफ नहीं जा कर आटोरिकशा को बहियारा की ओर मोड़ दिया. शैली देवी ने जब ड्राइवर से कहा कि वह गलत रास्ते पर जा रहा है, तो ड्राइवर उन से अंटशंट बोलने लगा और आटोरिकशा में सवार बाकी लोगों ने भी उन के साथ बदसलूकी करना शुरू कर दिया. उन के गहने भी छीन लिए. जब शैली देवी ने बदमाशों का विरोध किया और कहा कि उन का भाई विधायक है, तो अपराधियों के होश उड़ गए. इस के बाद अपराधियों ने उन के सिर पर लोहे की छड़ से हमला कर दिया. खून से लथपथ होने के बाद जब शैली देवी बेहोश हो गईं, तो उन्हें चलते आटोरिकशा से सड़क के किनारे फेंक दिया गया. इस के बाद सभी अपराधी वहां से फरार हो गए. सरोज यादव रोतेबिलखते कहते हैं कि उन की बहन की हत्या राजनीतिक वजह से की गई है. उन्होंने वारदात की हाई लैवल जांच कराने की मांग की है. विधायक ने पुलिस पर आरोप लगाया है कि नामजद लोगों को थाने से छोड़ दिया गया है. दरअसल, शैली देवी से बदसलूकी के मामले के बाद पुलिस मिथिलेश और संतोष को आटोरिकशा समेत पकड़ कर थाने लाने में कामयाब हो गई थी, पर कुछ देर की पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया गया था.

आटोरिकशा ड्राइवर का नाम मिथिलेश कुमार है और वह नरवीपुर गांव का रहने वाला है. उस के साथ संतोष कुमार की भी पहचान की गई है. पुलिस दोनों की खोज में लगी हुई है, पर वे फरार हैं. शैली देवी की मौत के बाद विधायक सरोज यादव ने अपना आपा खो दिया है. वे भूल गए हैं कि राज्य में उन की ही सरकार है. वे अपने समर्थकों के साथ सड़कों पर उतर आए. कोइलवर थाना क्षेत्र के कायमनगर गांव के नजदीक सड़क को पूरी तरह से ठप कर दिया गया. सैकड़ों लोग सड़क के बीचोंबीच बैठ गए. पुलिस और प्रशासन के खिलाफ जम कर नारेबाजी की गई. इस से आरापटना हाईवे पर तकरीबन 5 घंटे तक जाम लगा रहा. विधायक सरोज यादव के समर्थक आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे. राजद विधायक द्वारा सड़क जाम कर देने से पुलिस के हाथपैर फूल गए. कोइलवर थाने के थानेदार संजय कुमार दलबल के साथ मौके पर पहुंचे और जाम को हटाने की गुजारिश की.

विधायक सरोज यादव ने फिलहाल खुद और अपने समर्थकों पर तो काबू पा लिया है और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने हत्यारों को गिरफ्तार कराने का भरोसा दिलाया है, पर राजद के सूत्रों की मानें तो सरोज यादव अपनी बहन के हत्यारों को जेल पहुंचाए बगैर चैन से नहीं बैठने वाले हैं. इस से राजद और राज्य सरकार दोनों के लिए नई मुसीबत खड़ी हो सकती है.

थानेदार को पटक कर मारने की धमकी

पिछले साल 23 नवंबर को राजद विधायक सरोज यादव ने आरा के चरपोखरी थाने के थानेदार कुंवर गुप्ता को जान से मारने की धमकी दी थी. थानेदार का कुसूर इतना ही था कि उस ने पहली बार विधायक बने सरोज यादव की पैरवी सुनने से इनकार कर दिया था. सरोज यादव ने थानेदार को फोन किया, तो थानेदार ने उन्हें पुलिस के सीनियर अफसरों से बात करने की सलाह दी. इस से विधायक का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उन्होंने थानेदार को पटक कर जान से मारने की धमकी दे डाली. दरअसल, सरोज यादव चरपोखरी थाने के तहत बडीहा गांव में कुछ दिनों पहले हुई मुकेश यादव और संजय यादव की हत्या के मामले में आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार करने का निर्देश दे रहे थे.

थानेदार ने कहा कि उस मामले की जांच सीनियर अफसर कर रहे हैं, इसलिए इस सिलसिले में एसपी से बात की जाए तो सही रहेगा. यही सुन कर विधायक सरोज यादव भड़क गए थे.

क्रिकेट का शौक औरतों के लिए बुरा नहीं

इंडियन मौडल आरशी खान ने अपने कपड़े उतारे, वीडियो बनवाया और सप्रेम पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान शाहिद अफरीदी व भारतीय क्रिकेट टीम को अर्पित भी कर दिया पर चाहे वीडियो को खूब देखा गया, जीत न गोरों को मिली, न भूरों को, जीत मिली वैस्टइंडीज के अश्वेत खिलाडि़यों को, जिन्होंने इंगलैंड को आखिरी ओवर तक उम्मीद में रख कर आखिर की 4 बौलों से टी-20 विश्व कप जीत लिया. टी-20 वैसे खेल कम सर्कस ज्यादा है पर भारतपाकिस्तान और बंगलादेश में तो यह हिंदू व इसलाम धर्म के बाद का धर्म है. क्रिकेट के खिलाफ बोलने वाले क्रिकेटद्रोही ही नहीं देशद्रोही भी हैं और तीनों देश कोई भी सीरीज जीतने पर खिलाडि़यों को मालामाल भी करते हैं, उन्हें ऊंचे सम्मानों से भी  नवाजते हैं. एक सम्मान आरशी खान ने भी दिया पर दोनों टीमें हार गईं.

टी-20 से क्रिकेट रोमांचक हो गया है और 5 दिन चलने वाले उबाऊ टिपटिप की जगह यहां रनों की झड़ी ही अच्छी लगती है. भारत ने इस बार वैसे देश प्रेम की तरह की क्रिकेट में कप जीतना ही है का प्रचार कम किया था पर फिर भी मैदान दर्शकों से भरे थे और आंखें टीवी सैटों से चिपकी थीं. अब क्रिकेट दमखम का खेल होने लगा है और मंझोले से कद वाले भारतीयों की आस्टे्रलिया पर जीत काफी सुखद लगी थी पर फिर सेमीफाइनल में वैस्टइंडीज ने उस सुख की नली को बंद कर के ठंडी हवा बंद कर दी. अब यह खेल औरतों में भी पौपुलर होने लगा है और जिस शाम वैस्टइंडीज की पुरुष टीम जीती उसी दिन वैस्टइंडीज की महिला टीम भी जीती.

क्रिकेट का शौक औरतों के लिए बुरा नहीं है. इस में भागदौड़ कम है. फुटबौल हौकी की तरह पूरे मैदान का चक्कर नहीं है. इस में खिलाडि़यों की टक्कर भी नहीं होती. बौल से हाथपैर में मामूली ही चोट लगती है और इसीलिए इसे यहां गलीगली में अपनाया जाना चाहिए. अब तो लड़कियां हर जगह टीशर्ट और पैंट पहनने लगी हैं, इसलिए पोशाक का भी चक्कर नहीं. यह टी-20 खत्म हो गया हो तो क्या तंबोला की जगह इसे खेलने का प्लान बनाइए. मजा आएगा. बाहर की हवा मिलेगी. पार्क, गली, सड़क, मैदान जहां संभव हो वहां पैंट टौप पहनिए और बल्ला पकडि़ए. राजकमारी केट विंसलैट ने भारत में आ कर स्कर्ट में ही बल्ला घुमा डाला था.

ठंडा बस्ता

पहला पीरियड शुरू हो चुका था. सभी कक्षाओं के कक्षाध्यापक अपनीअपनी कक्षाओं में जा चुके थे. तभी एनसीसी कक्ष से बाहर आते विनय सर की नजर केशव पर पड़ी, जो पूरे 15 मिनट लेट था. विनय सर ने केशव को बुलाया और लेट आने पर दंड देते हुए कहा, ‘‘जाओ, पूरे ग्राउंड के 3 चक्कर लगा कर आओ. तुम पूरे 15 मिनट लेट हो.’’

केशव 10वीं कक्षा का छात्र था. वह बोला, ‘‘सर, मुझे माफ कर दीजिए. मैं हमेशा समय पर स्कूल आता हूं. आज ही लेट हो गया हूं. आगे से ध्यान रखूंगा.’’

विनय सर का अपना अलग मिजाज था. उन का स्वभाव और व्यवहार सारे शिक्षकों से अलग था. छात्र उन की आज्ञा का उल्लंघन करें यह उन्हें बरदाश्त नहीं था. इस से पहले भी विनय सर कई छात्रों को कठोर दंड दे चुके थे. उन छात्रों के अभिभावकों से झगड़ा होने पर विद्यालय के शिक्षकों ने विनय सर को समझाया भी था और कार्यवाही होने पर बचाया भी था. अपनी आदत के अनुसार विनय सर बोले, ‘‘तुम्हें ग्राउंड के 3 चक्कर तो लगाने ही पड़ेंगे?’’

केशव विनम्रता से बोला, ‘‘सर, आप कोई और सजा दे दें, मेरे पैर में चोट लगी है, जिस कारण मैं ग्राउंड के 3 चक्कर नहीं लगा सकता.’’ केशव के मुंह से इतना सुनना था कि विनय सर तमतमा उठे और उन्होंने 3-4 थप्पड़ केशव को जड़ दिए.

केशव थप्पड़ खाने के बाद अपने घर की तरफ दौड़ पड़ा. घर आ कर उस ने पूरी बात अपने मम्मीपापा को बताई. उस की मां बोलीं, ‘‘ऐसे कौन से सर हैं, जिन्होंने तुम्हें इतना मारा है? उन की इतनी हिम्मत.’’

केशव के पिताजी बोले, ‘‘मैं अभी देखता हूं तुम्हारे सर को. उन की इतनी हिम्मत कैसे हुई़.’’ वे केशव के साथ उस के विद्यालय की ओर चल पड़े.

केशव के चाचा भी उन के साथ हो लिए, ‘‘मैं मीडिया को खबर करता हूं. अपने दोस्त को भी बुलाता हूं.’’

यह सब घटनाक्रम मात्र आधे घंटे में घटित हो गया. मीडिया के लोग अपने कैमरों के साथ विद्यालय पहुंच गए. केशव अपने मातापिता, चाचा और पड़ोसियों को साथ ले कर स्कूल आ गया. ऐसा लग रहा था जैसे ये सभी इकट्ठा हो कर विनय सर की अक्ल ठिकाने लगाने, उन्हें सबक सिखाने आ गए हों. एकदो व्यक्तियों ने तो अतिउत्साह दिखाते हुए विनय सर का कौलर ही पकड़ लिया. प्रिंसिपल सर द्वारा बीचबचाव करने के कारण उन की ज्यादा हिम्मत नहीं हुई. बाद में वे विनय सर की शिकायत करने थाने भी पहुंचे. इधर विनय सर ने भी थाने में अपनी तरफ से रिपोर्ट लिखवा दी. मीडिया वालों ने तत्परता दिखाते हुए छात्र और उस की मां के स्टेटमैंट ले कर टीवी चैनल्स पर दिखाए. पूरे दिन विनय सर और छात्रपक्ष के लोग थाने के चक्कर लगाते हुए अपनाअपना पक्ष रखते रहे. थाना इंचार्ज सरल स्वभाव के समझदार व्यक्ति थे, बोले, ‘‘आप दोनों अपनाअपना पक्ष इतने दावों के साथ रख रहे हैं. पर इतना जान लें कि एफआईआर दर्र्ज होने पर दोनों को परेशानी होगी. आगे आप दोनों समझदार हैं, जैसा आप लोग कहेंगे हम वैसी कार्यवाही कर देंगे.’’

थाना इंचार्ज की बात सुन कर विनय सर के होश ठिकाने आ गए. वे समझ गए कि यदि एफआईआर दर्ज हुई तो वे सस्पैंड हो सकते हैं, तिस पर केस चलेगा सो अलग. दूसरी ओर केशव के चाचा, जो पहले बड़े उग्र हो रहे थे. थाना इंचार्ज की बातें सुन कर एकदम शांत हो गए. 5 मिनट में ही विनय सर और केशव के परिजनों के बीच समझौता हो गया.केशव और उस की मां कहने लगे, ‘‘सर की कोई गलती नहीं, उन्होंने मेरे बेटे को नहीं मारा.’’

उधर बेटे ने भी बयान दिया, ‘‘मुझे सर ने नहीं मारा.’’  फिर मामला सुलझ गया. पुलिस ने भी मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया.

पर्स है भानुमती का पिटारा नहीं

वैसे तो सदियों से पर्स का इस्तेमाल रुपएपैसे और जरूरत की वस्तुएं रखने के लिए किया जाता रहा है. परंतु वर्तमान में पर्स पर्स न रह कर झोला बन गया है, जिस में रुपएपैसे के अलावा मेकअप की चीजें, लिपस्टिक, कांपैक्ट, फाउंडेशन, परफ्यूम, झुमके, टौप्स, पाजेब, बैंगल्स, क्लिप, हेयर बैंड, बालों में उलझी कंघी, 2-4 गंदे रूमाल, एकाध इंगलिश नौवल के साथसाथ लंचबाक्स और पानी की बोतल मिल जाएगी.

कुछ महिलाओं के पर्स की स्थिति उस डस्टबिन जैसी होती है जिस में कूड़ा डाला तो जाता है पर निकाला नहीं जाता. कुछ के पर्स में टौफी, चौकलेट के साथ बर्गर, पैटीज और समोसे के अवशेष भी मिल जाते हैं, जिन की बदबू को पर्स में रखी परफ्यूम की खुशबू भी मिटा नहीं पाती.

पर्स में बिना ध्यान दिए अनावश्यक चीजें ठूंसते रहने के कारण उस का वजन बढ़ जाता है और भारी पर्स उठाने के कारण कई प्रकार की बीमारियों का खतरा भी पैदा हो जाता है. कैलिफोर्निया के डा. एडम हाल ने अपने एक अनुसंधान में पाया कि भारी पर्स की वजह से महिलाएं कंधे, गरदन व कमर के दर्द की शिकार हो सकती हैं. डा. एडम ने अपनी खोज में पाया कि स्पोंडिलाइटिस, रीढ़ की हड्डी में दर्द, हाथों की उंगलियों में दर्द, कलाई में दर्द आदि की शिकायत भारी पर्स लटकाने की वजह से हो सकती है.

डा. एडम का मानना है महिलाओं का शरीर नाजुक होता है. ऐसे में भारी पर्स अधिक समय तक कंधे पर लटकाए रहने से ढेर सारी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. भारी पर्स स्वास्थ्य ही नहीं, व्यक्तित्व को भी प्रभावित करता है. भारी पर्स चाल को बिगाड़ता है जोकि व्यक्तित्व का माइनस प्वाइंट है.

क्या रखें पर्स में

एक आदर्श पर्स में एक नोटबुक, ढेर सारे विजिटिंग कार्ड्स और छोटेछोटे कागज पर लिखे नंबर और पते के बजाय एक छोटी टेलीफोन डायरी, 2 साफ रूमाल, कुछ दवाएं, जो आप के लिए जरूरी हों, 1 लिपस्टिक, कंघी, 2 पेन और जरूरत भर के पैसे ही होने चाहिए. लंचबाक्स और पानी की बोतल पर्स में न ठूंसें.

कैसा पर्स लें

  1. पर्स न तो ज्यादा बड़ा हो, न ही छोटा.
  2. जिस उद्देश्य के लिए पर्स ले रही हैं, उस का ध्यान रखें.
  3. पर्स सस्ता, सुंदर व टिकाऊ हो.
  4. रैक्सीन के बजाय लेदर या जूट का पर्स लें.
  5. पर्स में जरूरत के मुताबिक ही पाकेट्स हों.

ध्यान देने योग्य बातें

  1. पर्स में फालतू व भारी सामान न रखें.
  2. समयसमय पर पर्स की सफाई करें और उस में रखा फालतू सामान निकाल दें.
  3. पर्स में पूरी डे्रसिंग टेबल ही न समेट लें. 1-2 जरूरत की चीजें ही रखें.
  4. पायल, झुमके, कंगन, चूडि़यां आदि उतार कर पर्स में न रखें.
  5. पानी की बोतल, लंचबाक्स, छतरी आदि पर्स में ठूंसने के बजाय अलग पोलीथिन या बैग में ले जाएं.
  6. पर्स को घरेलू सामान, सब्जी आदि ले जाने का झोला न बनाएं.
  7. पर्स में खाने की सामग्री मसलन टौफी, बिस्कुट, चौकलेट आदि न रखें. इस से पर्स में चींटियां आ सकती हैं.  

उत्तर प्रदेश की बसों में कडंक्टर बेचेगा पानी

उत्तर प्रदेश सरकार ने बस यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर बस में ही पीने की पानी वाली बोतल उपलब्ध कराने की योजना शुरू की है.इस योजना के पहले चरण में 20 क्षेत्रों की 200 किलोमीटर से अधिक दूरी वाली बसों में बस कंडक्टर को पानी की बोतल बेचने का काम दिया गया है.पानी को ठंडा रखने के लिये आइसबाक्स की व्यवस्था होगी.एक आइसबाक्स में 1 लीटर की 25 और आधा लीटर की 10 बोतले आयेगी. 1 लीटर पानी की बोतल 14 रूपये और आधा लीटर पानी की बोतल की कीमत 9 रूपये रखी गई है.इन बोतलों पर परिवहन नीर लिखा होगा.पानी की बोतलों के बेचने पर तय रकम कमीशन के रूप में कडंक्टर को मिलेगी.परिवहन राज्यमंत्री यासर शाह ने लखनऊ के कैसरबाग बस स्टेशन से इस सेवा की शुरूआत की.1500 बसों में शुरू की गई यह सेवा एक माह में ही 3000 बसों तक में पहुंच जायेगी.

उत्तर प्रदेश में बस सेवा यातायात का प्रमुख जरीया है.अभी भी ज्यादातर बसे खटारा है और समय पर नहीं चलती है.इससे यात्रियों को बहुत सारी असुविधाओं का सामना करना पडता है.बस यातायात दूसरे प्रदेशों के मुकाबले महंगा और असुविधा जनक है.इसमें सुधार की बहुत सारी गुजांइश है.प्रदेश सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है.परिवहन राज्यमंत्री यासर शाह ने बताया कि जल्द ही 1500 नई बसें यात्रियों की सुविधा के लिये उपलब्ध होगी.प्रदेश सरकार ने बढी संख्या में प्राइवेट बसों को अनुबंधित किया हुआ है.इसके साथ बोल्वों बसों को बढाने की योजना है.सरकार के इस कदम से जनता को राहत मिलेगी.एक शहर से दूसरे शहर के बीच रोज सफर करने वालों को लिये सरकार रैपिड  लाइन सेवा शुरू करेगी.यह बसे तय समय से चलेगी जिससे सफर करने वाले को राहत मिल सकेगी.

परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक आशीष गोयल ने कहा कि परिवहन नीर अच्छी क्वालिटी का होगा.जिससे सफर के दौरान पीने योग्य पानी मिल सकेगा.सफर के दौरान साफ पानी बहुत जरूरी होता है.पानी लेने के लिये बस के यात्रियों को बस से उतरने की जरूरत नहीं रहेगी.आशीश गोयल ने कहा कि रोडवेज के कर्मचारियों की मेहनत का ही नतीजा है कि ज्यादातर घाटे में रहने वाला विभाग अब लाभ में आ गया है.यात्रियों के लिये सफर को सुविधाजनक, आरामदायक और सुरक्षित बनाने के लिये और भी प्रयास किये जा रहे है.बस स्टेशनों की हालत सुधारी जा रही है.बस स्टेशनों पर वाईफाई और दूसरी यात्री सुविधाओं को बढाया जा रहा है.

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