‘मित्रो, अगर हम सत्ता में आते हैं, तो हर साल 2 करोड़ रोजगार पैदा करेंगे. 4 करोड़ हाथों को हर साल काम मिलेगा. देश में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन कहीं कुशलता नहीं है, कहीं कनैक्शन नहीं है. हम 10 करोड़ नौजवानों को स्किल ट्रेनिंग दिला कर उन्हें महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन में बदल देंगे.’ साल 2014 में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी एक जगह नहीं, बल्कि सैकड़ों जनसभाओं में इसी तरह के भाषण दिए थे. उन के तकरीबन सभी भाषणों में नौजवान और उन के लिए रोजगार के सतरंगी सपने शामिल होते थे. ऐसा नहीं है कि इस सरकार ने चुनावों के दौरान किए गए किसी भी वादे को पूरा नहीं किया है, लेकिन जहां तक रोजगार के वादे का सवाल है, तो अपनी तमाम कोशिशों के बाद भी यह सरकार इस मोरचे पर जबरदस्त तरीके से नाकाम हुई है. यह पहला ऐसा मौका है, जब देश में बढ़ती बेरोजगारी ने नौजवानों या उन के मांबाप को ही नहीं, बल्कि अर्थशास्त्रियों और भविष्य की आर्थिक योजनाएं बनाने वाले नौकरशाहों तक को डरा दिया है.

बेरोजगारी अपनी हद पर है, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि यह महज इस सरकार की नाकामी का नतीजा है. इस की बुनियाद में भले ही तमाम वजहें हों, पर इस में कोई दोराय नहीं है कि फिलहाल रोजगार पैदा करने में बुरी तरह से नाकाम रहे हालात और योजनाओं का ठीकरा इस सरकार के सिर पर ही फूटेगा.

दरअसल, यह बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी का ही कौकटेली असर था कि पिछले लोकसभा चुनावों में आम मतदाताओं ने भाजपा को जबरदस्त बहुमत से संसद में पहुंचाया था. शायद इस के पीछे मंशा यह रही होगी कि अगर दूसरी पार्टियां समझौते की हालत में भाजपा को खुल कर काम न करने दें, तो भाजपा को इतनी सीटें मुहैया करा दी जाएं कि वह बिना किसी रुकावट के अपने किए गए वादों को पूरा कर सके. लेकिन कम से कम रोजगार के मोरचे पर तो ऐसा बिलकुल मुमकिन नहीं हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में हुए लोकसभा चुनावों के काफी पहले से ही देश के तमाम कालेजों, पढ़ाईलिखाई के दूसरे संस्थानों में जाजा कर छात्रों को जोरदार तरीके से रोजगार दिलाने वाले भविष्य के सपने दिखाए थे. नौजवानों को ही नहीं, बल्कि तमाम कारपोरेट माहिरों को भी अंदाजा था कि नरेंद्र मोदी की सरकार भले किसी और मोरचे पर आमूलचूल ढंग से बदलाव न कर पाए, लेकिन रोजगार के मोरचे पर वह जरूर अच्छे नतीजे देगी, ताकि नौजवानों के बीच अपनी शानदार इमेज बना सके.

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