तमाम तरह की सहूलियतें मिलने के बावजूद सरकारी प्राइमरी स्कूलों से ले कर बड़े स्कूलों के छात्र पढ़ाईलिखाई में पिछड़ रहे हैं और राज्य सरकारें यह ढिंढोरा पीट रही हैं कि उन के यहां साक्षरता दर बढ़ी है. सही माने में आज 7वीं 8वीं जमात के छात्रों को ठीक ढंग से जमा, घटा, गुणा, भाग के आसान सवाल भी हल करने नहीं आते हैं. अंगरेजी भाषा के बारे में तो उन का ग्राफ बहुत नीचे है. वे हिंदी भी नहीं लिख सकते हैं, न ही आसानी से पढ़ सकते हैं. क्या है इस की वजह? स्कूलों में तख्ती लिखने को खत्म कर देने के चलते आज ज्यादातर छात्रों की लिखाई पढ़ने में ही नहीं आ पाती है. ऐसे छात्रों की नोटबुक जांच करने में टीचरों को खूब पसीना बहाना पड़ता है.

सालों पहले तख्ती लिखने पर बहुत जोर दिया जाता था, ताकि बचपन से छात्रों की लिखाई सुंदर हो और उन को वर्णमाला की पहचान हो सके. तब होमवर्क के तौर पर उन को तख्ती लिखने के लिए बढ़ावा दिया जाता था. अगले दिन टीचर उन छात्रों की तख्तियों की जांच करते थे. कच्ची छुट्टी यानी स्कूल इंटरवल में छात्र उन तख्तियों को धोते थे और दोबारा तख्ती लिखते थे. अब यह बीते जमाने की बात हो गई है. अब तो पहली जमात का छात्र भी जैलपैन या बालपैन का इस्तेमाल करना अपनी शान समझता है. यही वजह है कि छात्रों की लिखाई अच्छी नहीं बन पाती है और इम्तिहान में उन के नंबर कम हो जाते हैं. कहते हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन होता है. यह कहावत तब कसौटी पर खरी उतरेगी, जब प्राइमरी स्कूलों के छात्रों को पढ़ाईलिखाई के साथसाथ खेलों के लिए भी वक्त दिया जाएगा.

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