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इस मामले में मर्दों ने औरतों को पीछे छोड़ा

आमतौर पर माना जाता है कि महिलाएं शॉपिंग पर ज्यादा खर्च करती हैं, लेकिन ऑनलाइन फैशन पोर्टल्स की मानें तो अब यह ट्रेंड बदल रहा है. फैशन पोर्टल्स के मुताबिक, पुरुष ऑनलाइन फैशन प्रॉडक्ट्स पर महिलाओं से ज्यादा नहीं तो उनके बराबर जरूर खर्च कर रहे हैं.

देश के बड़े ऑनलाइन फैशन पोर्टल्स- मिंट्रा, जबॉन्ग, एबॉफ सहित दूसरी कंपनियों ने पाया है कि पुरुष उनके पोर्टल पर महिलाओं के मुकाबले ज्यादा महंगी चीजें खरीदते हैं. फैशन पोर्टल मिंट्रा की हेड (कन्जयूमर रिसर्च और इनसाइट्स) प्रियंका भार्गव का कहना है कि ऑनलाइन शॉपिंग की दुनिया में (खासतौर पर अपैरल सेगमेंट में) महिलाओं के मुकाबले पुरुषों का योगदान ज्यादा है और यह कंपनी की आमदनी में भी साफ नजर आता है.

आदित्य बिड़ला के फैशन पोर्टल एबॉफ की बात करें तो पुरुष खरीदार के एवरेज ऑर्डर की वैल्यू महिलाओं के मुकाबले 20 पर्सेंट ज्यादा है. यहां तक कि वॉल्यूम के लिहाज से भी एबॉफ के लिए महिलाओं और पुरुषों के आंकड़े लगभग बराबर हैं.

एबॉफ की सेल्स में विमिंज वेअर की हिस्सेदारी 45 पर्सेंट और मेंस वेअर की 55 पर्सेंट है. जबॉन्ग की आमदनी में मेंस और विमिंज वेअर का योगदान बराबर है. महिलाएं वेस्टर्न वेअर, फुटवेअर, होम या ब्यूटी जैसी अलग-अलग कैटिगरी के तमाम प्रॉडक्ट चेक करती हैं और पुरुषों के मुकाबले ज्यादा बार शॉपिंग करती हैं.

हालांकि, कुछ ऑनलाइन रिटेलर्स का कहना है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का रिटर्न रेट ज्यादा है. उदाहरण के तौर पर फ्लिपकार्ट की फैशन कैटिगरी में महिला और पुरुष की बराबर हिस्सेदारी है लेकिन रिटर्न रेट महिलाओं का ज्यादा है. कंपनी का कहना है कि विमेंस कैटेगरी में स्टैंडर्डाइजेशन की कमी रहने के कारण ऐसा होता है.

आमतौर पर पुरुष शॉपिंग से दूर भागते हैं, ऐसे में ई-कॉमर्स उनके लिए वरदान साबित हुआ है. ऑनलाइन फैशन पोर्टल का कहना है कि शॉपिंग से दूर भागने वाले पुरुष भी आसानी से ऑनलाइन शॉपिंग कर लेते हैं. इसकी दूसरी वजह यह है कि अब पुरुषों में भी फैशन के प्रति जागरूकता बढ़ गई है और वे ट्रेंड के मुताबिक शॉपिंग करते हैं.

आज बैंकों पर लगा रहेगा ताला

यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के आह्वान पर 29 जुलाई को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया है. बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा इसकी तैयारी पूरी कर ली गयी है. हड़ताल के दौरान बैंकों में ताला तो लटका ही रहेगा, साथ में एटीएम भी बंद रहेंगे. यूनियन की ओर से विभिन्न जगहों पर  बैंक शाखाओं के सामने प्रदर्शन किया जायेगा. बैंक और एटीएम बंद रहने की स्थिति में लगभग 150 करोड़ रुपये तक का कारोबार प्रभावित होने की संभावना है.  यूनियन के अधिकारियों ने हड़ताल को सफल बनाने का आह्वान किया है. भारत सरकार द्वारा आर्थिक सुधार एवं बैंकिंग सुधार के नाम पर बैंककर्मी के हित के खिलाफत वाले निर्णय के विरोध में यह बंद है.

हड़ताल में शामिल रहेंगे ये बैंक

बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ  बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक, कैनरा बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, ओरिएंटल  बैंक ऑफ कॉमर्स, यूको बैंक, देना बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सिंडिकेट बैंक,  पंजाब एंड सिंध बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, यूनियन बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ  इंडिया, इंडियन बैंक, विजया बैंक, साउथ इंडियन बैंक, कर्नाटक बैंक, विदेशी  बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक एवं को-ऑपरेटिव आदि बैंक शामिल हैं.

हरभजन-गीता के घर आई नन्ही परी

क्रिकेटर हरभजन सिंह की पत्नी गीता बसरा ने लंदन में बेटी को जन्म दिया. इस जोड़ी के करीबी सूत्रों ने यह जानकारी दी.यह उनका पहला बच्चा है. हरभजन और अभिनेत्री गीता ने अभी तक इस खबर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

दोनों ने पिछले साल 29 अक्तूबर को शादी की थी. यह शादी हरभजन के जन्म स्थल जालंधर में की संपन्न हुई थी.जून के शुरू में 32 वर्षीय गीता के लिये ‘बेबी शॉवर’ का आयोजन किया गया था.

गीता का परिवार ब्रिटेन में रहता है, उन्होंने इमरान हाशमी के साथ 2006 में ‘दिल दिया है’ से बॉलीवुड में पदार्पण किया था. इससे पहले उनकी अंतिम फिल्म ‘सेकेंड हैंड हस्बैंड’ थी, जिसमें पंजाबी अभिनेता-गायक गिप्पी ग्रेवाल भी थे.

टीम इंडिया की इस स्टार जोड़ी को दुनियाभर के क्रिकेटर्स और ऍक्टर से शुभकामनाएं मिल रही हैं. आइये एक नज़र डालें किस दिग्गज ने हरभजन-गीता की खुशी पर क्या कहा.

विराट कोहली

कप्तान कोहली ने 'विराट को बधाई संदेश देते हुए कहा, 'बहुत खुशी का मौका है, आप दोनों को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं.' इसके साथ ही विराट ने कहा, 'मुबारक हरभजन पाजी, रब हमेशा महर बख्खे, तुम्हें और भाभी को और खुशियां मिलें.'

विरेंद्र सहवाग

सहवाग ने कहा, 'माता-पिता बनने पर ढेर सारी शुभकामनाएं हरभजन और गीता बसरा. भज्जी मैदान पर तो बाप पहले ही था अब पापा भी बन गया.'

अनिल कुंबले

कुंबले ने भी ट्वीट कर शुभकामनाएं देते हुए कहा, 'परिवार में नए मेहमान के आने पर ढेर सारी शुभकामनाएं गीता औप भज्जी, बच्चे को मेरी तेरी से स्वस्थ और खुशहाल जीवन के लिए शुभकामनाएं.'

शिखर धवन

शिखर धवन ने भी ट्वीट करके दी बधाई, 'भाभी और पाजी आपको नन्ही परी के आने की ढेर सारी शुभकामनाएं, उम्मीद करता हूं मां और बच्ची दोनों स्वस्थ हैं. रब राखा'

विवेक ओबरॉय

इस कड़ी में बॉलीवुड सेलीब्रिटी विवेक ओबरॉय ने ट्वीट कर कहा, 'माता-पिता बनने पर ढेर सारी शुभकामनाएं. बेटियां बहुत खास होती हैं, नन्ही परी के लिए दुआएं.'

सोनाली बेंद्रे

सोनाली बेंद्रे ने बधाई संदेश देते हुए लिखा कि 'मैं उम्मीद करती हूं ये तुम्हारे जीवन की बेहतरीन पारी होगी.'

हिंसक हो रहे गौ रक्षक

दलितों और अल्पसंख्यकों के मुकाबले गाय नाम के पशु को हिन्दू धर्म के पेरोकर और गौ रक्षक ज्यादा  मुनाफेदार और अहम मानते हैं कि उनको प्रताड़ित करने के अलावा मौका मिलने पर उनकी हत्या करने तक में नहीं हिचकिचाते. इसकी ताजा और शर्मनाक मिसाल 27 जुलाई को मध्य प्रदेश के मंदसौर रेल्वे स्टेशन पर बेहद हिंसक और अमानवीय तरीके से देखने में आई .

एक वायरल हुए विडियो में साफ साफ देखा गया कि कथित गौ रक्षक दो मुस्लिम महिलाओं की निर्ममता पूर्वक धुनाई कर रहे हैं और मौजूदा भीड़ और मुसाफिरों की हिफाजत की ज़िम्मेदारी लेने बाले पुलिस कर्मी बजाय उनके बचाव के तमाशवीनों की तरह हिन्दू धर्म में वर्णित यत्र नारी पूज्यन्ते तत्र ……का तमाशा इन औरतों की `पूजा `होते देख रहे हैं . इस कांड पर देशव्यापी हल्ला मचा और बसपा प्रमुख मायावती ने राज्यसभा में सरकार को आड़े हाथों लेते केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकबी को लगभग लताड़ लगते हुये कहा कि श्रीमान नकबी , मैं आप से पूछना चाहती हूं ,आपके समुदाय की महिलाओं पर हमला किया जा रहा है . सदन में आपको जबाब देना चाहिए . गौ संरक्षण के नाम पर मुस्लिम महिलाओं पर हमला किया जा रहा है . यह शर्मनाक और अस्वीकार्य है भाजपा नारा लगाती है कि महिलाओं के सम्मान में भाजपा मैदान में , वहीं उसके शासित राज्य में महिलाओं की पिटाई की जा रही है .

इस पर खिसियाए नकबी का जबाब यह था कि हमारा मानना है कि देश कानून और संविधान से चलता है डंडे से नहीं राज्य सरकार ने इस बारे में कार्रवाई की है. लेकिन देश धर्म और हिन्दुत्व की आड़ मे कैसे डंडे और लात घूंसों के अलावा औरतों को गालियां देने से चल रहा है यह मंदसौर की घटना से एक बार फिर उजागर हो चुका था. इधर मध्य प्रदेश विधानसभा परिसर में पत्रकारों के सवालों का जबाब देते हुये गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह ने माना कि इन महिलाओं के पास से गौ मांस नहीं मिला है लेकिन वे अवैध रूप से रेलगाड़ी में मांस का परिवहन कर रहीं थीं.

उन्हें सजा महज शक की बिना पर हिन्दू वादियों ने वैसे ही दी जैसे पिछले साल उत्तर प्रदेश के विसाहड़ा में बीफ यानि गौ मांस खाने की अफवाह भर से अखलाक नाम के एक मुसलमान को दी थी हिंदुवादियों ने अखलाक को पीट पीट कर मार डाला था. बाद में इस हादसे पर हुई देशव्यापी प्रतिक्रिया ने सरकार को हिलाकर रख दिया था. देश भर के बुद्धिजीवियों, कलाकारों, लेखकों और वैज्ञानिकों ने विरोध जताते हुए थोक में सम्मान और पुरस्कार लौटाए थे. तब देश 2 हिस्सों में बंटा नजर आने लगा था .

तीसरे चर्चित मामले में गुजरात के ऊना में गौ रक्षकों ने 10 दिन पहले चार दलितों को आधा नंगा कर उनकी पिटाई की थी और दहशत फैलाने की गरज से पिटाई का यह विडियो वायरल भी किया था. इस कांड की गूंज भी सड़कों और संसद में सुनाई दी थी दलित समुदाय ने भी विरोध करते हुए मरी गायों को सरकारी दफ्तरों के सामने डाला और उनकी खाल उतारने से तौबा कर ली थी. अखलाक के मसले पर तब सरकार ने साफ कहा थी कि यह राज्य सरकार की जबाबदेही है पर मंदसौर और ऊना की वारदातों पर सरकार यह जवाब दोहरा नहीं पा रही है.

गुजरात के ऊना में गौ रक्षकों की पिटाई से आहत और व्यथित दलित समुदाय के कुछ एक हजार लोग बौद्ध धर्म अपनाने जा रहे हैं तो इससे पोल उन हिंदुवादियों की खुल रही है जो गाय का दूध तो पीते हैं पर उसके मर जाने के बाद, बाद की जिम्मेदारियां दलित समुदाय के सर छोड़ देते हैं मानो यह उनकी ड्यूटि हो और अगर वे ऐसा न करें तो उन्हें सरेआम बेइज्जत किया जाता है. मोदी और भाजपा शासित राज्य सरकारों का दलित प्रेम कितना बड़ा छलावा, धोखा और मनुवाद की पुनर्स्थापना की कोशिश है यह ये हिंदुवादी गाय की आड़ मे उजागर कर रहे हैं.

इनका मकसद दलितों और मुसलमानों को दबाये रखना है. गौ माता तो इसका नए तरीके से पुराना बहाना है. अगर ये वाकई गाय को माता और उसमे देवताओं का वास होना मानते हैं तो क्यों उसे मरने के बाद दलितों के जिम्मे छोड़ देते हैं? गाय का विधिवत अंतिम संस्कार और अस्थि विसर्जन खुद क्यों नहीं करते?

देश भर की सड़कों पर भूखी प्यासी आवारा घूमती गायों में इन्हे मां और देवता नजर नहीं आते उल्टे हिन्दू ही इन्हें नुकसान करने पर ज्यादा पीटते हैं. कोई गौ माता को घर में बैठाकर हल्वा पूरी खिलाकर पुण्य नहीं बटोरता. हां पंडो को गौदान करने में सभी अव्वल रहते हैं क्योंकि इससे मोक्ष और मुक्ति की बात धर्म ग्रन्थों में कही गई गई है. गायों के नाम पर जगह जगह गौ शालाएं खुल रहीं हैं जिन्हें चलाने के लिए अरबों का दान मिलता है. सरकार भी आर्थिक मदद देती है. मुफ्त की इस कमाई को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए थोड़ी सी हिंसा और 2-4 हत्याएं करना इन गौ रक्षकों के लिए घाटे का सौदा नहीं, जो गाय के असल गुनहगार हैं.

दोषी हुए नरसिंह तो लग सकता है 4 साल तक का बैन

डोपिंग के दोषी पहलवान नरसिंह यादव की दिल्ली के नाडा में सुनवाई पूरी हो गई है. नाडा ने फैसला फिलहाल सुरक्षित रख लिया है. उम्मीद जताई जा रही है कि अब फैसला शनिवार या फिर सोमवार को आएगा. बताया जा रहा कि अगर नाडा ने नरसिंह की दलीलें नहीं मानीं और उन्हें दोषी माना तो उन पर 2 से 4 साल तक का बैन लग सकता है.

राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (नाडा) नरसिंह के मामले की सुनवाई की. नाडा के फैसले के साथ यह तय हो जाएगा कि नरसिंह रियो जाएंगे या नहीं. नरसिंह डोपिंग मामले में आए नए मोड़ को देखते हुए नाडा ने सुनवाई के दौरान कोई फैसला नहीं सुनाया.

तीन घंटे तक चली सुनवाई में नरसिंह के वकील ने दलील दिया कि खिलाड़ी हालात का पीड़ित है. उन्होंने साथ ही नरसिंह पर रियो ओलंपिक 2016 में जाने पर प्रतिबंध न लगाने की अपील भी की है.

नाडा ने फैसला सुरक्षित रखा, दोषी साबित हुए तो नरसिंह पर लग सकता है 4 साल तक का बैन! डोपिंग के दोषी पहलवान नरसिंह यादव की दिल्ली के नाडा में सुनवाई पूरी हो गई है. नाडा ने फैसला फिलहाल सुरक्षित रख लिया है. उम्मीद जताई जा रही है कि अब फैसला शनिवार या फिर सोमवार को आएगा.

नरसिंह के अगले महीने से शुरू होने वाले रियो ओलंपिक-2016 में जाने पर तब से काले बादल मंडरा रहे हैं जब से उनका डोप परीक्षण का परिणाम सकारात्मक पाया गया है. नरसिंह के डोप टेस्ट में फेल होने के बाद उन पर अस्थाई प्रतिबंध लगा दिया गया है.

नरसिंह को तब और बड़ा झटका लगा जब पांच जुलाई को एकत्रित उनके दूसरे नमूने का डोप टेस्ट भी सकारात्मक आया. इसी बीच 'यूनाइटेड विश्व रेसलिंग' के दबाव में भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) ने प्रावीण राणा को रियो में नरसिंह का प्रतिस्थापन खिलाड़ी घोषित कर दिया, ताकि ओलंपिक की 74 किलोग्राम भारवर्ग में भारत का कोटा बचा रहे.

डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह ने कहा कि राणा का नाम 25 जुलाई को भेजा जा चुका था जो प्रतिस्थापन खिलाड़ी का नाम भेजने की अंतिम तारीख थी. ब्रजभूषण ने बताया है कि हालांकि नरसिंह की जगह प्रवीण राणा के नाम की घोषणा की गई है, लेकिन अगर वह निर्दोष साबित होते हैं तो मैं ओलंपिक कोटा सुनिश्चित करने के लिए एक और लड़ाई लड़ने को तैयार हूं.

उन्होंने कहा है कि राणा का नाम ओलंपिक कोटा बचाए रखने के लिए भेजा गया था, जिसे 26 जुलाई को मंजूर कर लिया गया है. अगर हम राणा का नाम नहीं भेजते तो हम ओलंपिक कोटा खो देते. उन्होंने साथ ही कहा कि नरसिंह के रियो जाने की संभावना पूरी तरह खत्म नहीं हुई है.

उन्होंने कहा है कि उनका रियो जाने का रास्ता पूरी तरह बंद नहीं हुआ है. अब यह नरसिंह पर है कि वह अपने आप को निर्दोष साबित कर पाते हैं या नहीं. अगर वह ऐसा कर पाते हैं तो वह ओलंपिक जाएंगे.

ब्रजभूषण ने केंद्रीय युवा मामले एवं खेल मंत्री विजय गोयल (स्वतंत्र प्रभार) के उस दावे को खारिज किया है कि अगर कोई खिलाड़ी डोपिंग रोधी समिति द्वारा निलंबित कर दिया जाता है तो उसका प्रतिस्थापन नहीं भेजा जा सकता. गोयल ने कहा था कि मैं नहीं समझता अगर खिलाड़ी डोप टेस्ट में फेल हो जाता है तो उसका प्रतिस्थापन भेजा जा सकता है.

गोयल ने कहा है कि अगर खिलाड़ी काफी बीमार है तो ऐसे हालात में संबंधित एजेंसी स्थानापन्न खिलाड़ी भेज सकती हैं. मंत्री के बयान पर ब्रज भूषण ने कहा है कि मंत्री नियमों से अनजान हैं. वह जानकारी के अभाव में ऐसा कह रहे हैं. राणा का नाम पहले ही मंजूर कर लिया गया है.

डोप टेस्ट में फेल होने के बाद नरसिंह ने कहा था कि उनके खिलाफ साजिश की गई है और उन्होंने इस संबंध में पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करा दी है. हालांकि वह साजिश में शामिल व्यक्ति का नाम लेने से बचते दिखे.

पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद नरसिंह ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मैंने हमेशा कहा है कि मेरे खिलाफ साजिश की गई है. अगर मैं निर्दोष साबित हुआ तो मैं रियो जाऊंगा. मैंने उस शख्स की पहचान कर ली है जिसने मेरे खाने में मिलावट की. मैंने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी है.

उन्होंने कहा है कि मेरा मानना है कि इसमें कुछ अधिकारी भी शामिल हैं क्योंकि मुझे सीसीटीवी की फुटेज भी नहीं दी जा रही है. ब्रजभूषण ने नरसिंह के आरोपों का समर्थन किया है और कहा है कि खिलाड़ी को ओलंपिक में हिस्सा न लेने के उद्देश्य से साजिश की गई है और इसका खुलासा होना चाहिए ताकि आने वाले समय में ऐसा न हो.

उन्होंने कहा है कि सोनीपत स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के बाबर्ची ने नरसिंह के खाने में मिलावट करने वाले की पहचान कर ली है और उसका नाम जितेश बताया है. दो अन्य लोगों की भी पहचान की गई है. ब्रजभूषण ने कहा कि दोनों जूनियर पहलवानों में से एक ने नरसिंह के खाने में मिलावट की बात भी स्वीकार कर ली है.

उत्तर प्रदेश के गोंडा से सांसद ब्रजभूषण ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की है. उन्होंने कहा है कि इस मामले की सीबीआई जांच की जानी चाहिए क्योंकि यह युवा देश के भविष्य का मामला है. वाराणसी के नजदीक नरिसंह के पैतृक गांव अजगरा में हजारों लोगों ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांगे को लेकर प्रदर्शन किया.

नरिसंह के पिता पंचम यादव और मां भूलना देवी ने कहा है कि उनका बेटा निर्दोष है. उन्होंने कहा कि नरसिंह चाय तक नहीं पिता स्टेरॉयड की बात बहुत दूर की है. नरसिंह के परिवार ने कहा है कि अगर उनके बेटे को न्याय नहीं मिला तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी कार्यालय के बाहर प्रदर्शन करेंगे. इस बीच रियो ओलंपिक के लिए नरसिंह के स्थानापन्न खिलाड़ी राणा जॉर्जिया के लिए रवाना हो चुके हैं जहां वह भारतीय कुश्ती टीम के साथ अभ्यास करेंगे.

‘हजार चौरासी की मां’ का जाना

1084 की मां नहीं रहीं. लंबी बीमारी के बाद पद्मश्री, पद्मविभूषण, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, बंग विभूषण से सम्मानित बांग्ला की प्रख्यात साहित्यकार महाश्वेता देवी का निधन हो गया. वृद्धावस्था जनित बीमारी से पीड़ित महाश्वेता देवी महीनों अस्पताल में भर्ती थी. इसी साल 15 जनवरी को अस्पताल में ही उन्होंने अपना 90 वां जन्मदिन भी मनाया था. इसके बाद 22 मई को फेफड़े और मूत्राशय में संक्रमण की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती किया गया.

पहले से ही वे हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज की मरीज थी. इस बीच उनकी किडनी ने भी जवाब दे दिया. लंबे समय तक वे आईसीयू में रहीं. लेकिन एक-एक करके उनके सभी अंग-प्रत्यंगों ने काम करना बंद कर दिया और फिर 27 जुलाई को दिल का दौरा पड़ा. इस आखिरी झटके को वे बर्दाश्त नहीं कर पायीं और 28 जुलाई की रात वे लंबी नींद सो गयीं. महाश्वेता देवी के निधन की खबर सुनकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपना दिल्ली दौरा समाप्त कर कोलकाता लौट आयीं.   

सार्क साहित्य सम्मान, ज्ञानपीठ, पद्म विभूषण, मैगसासे अवार्ड से सम्मानित 90 साल की महाश्वेता देवी को सांस की तकलीफ, फेफड़े में संक्रमण की शिकायत लेकर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अचानक जन्मदिन का केक लेकर वेलव्यू अस्पताल पहुंची थीं. महाश्वेता देवी को केक खिलाकर उन्होंने जन्मदिन की बधाइयां दीं थीं.

मूलतया वामपंथी विचारधारा की मानी जाने वाली महाश्वेता देवी ने प. बंगाल समेत बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड में शबर, लोधा, संथाल, उरांव, मुंडा जैसे आदिवा‍सी जाति और जनजाति समेत दलित समुदाय के बीच रह कर बहुत सारे काम किए. वे दो साल पहले तक उनके लिए काम करती रहीं. वे ममता बनर्जी के भूमि अधिग्रहण आंदोलन से भी जुड़ी थीं. राज्य में वाम शासन के खिलाफ ममता के जमीन अधिग्रहण आंदोलन को सफल बनाने में उनकी बड़ी भूमिका रही.

1926 में बांग्लादेश के ढाका में पैदा हुई महाश्वेता देवी के पिता मनीश घटक उन दिनों के जानेमाने कवि और लेखक थे. मां धारित्री देवी भी लेखिका और समाजसेवी थीं. महाश्वेता देवी के छोटे काका ऋत्विक घटक अपने जमाने के पहुंचे हुए फिल्म निर्देशक थे. बहरहाल, महाश्वेता देवी की शुरूआती पढ़ाई-लिखाई ढाका में हुई. लेकिन आजादी से पहले देश के बंटवारे के बदा महाश्वेता देवी का परिवार पश्चिम बंगाल में आकर बस गया. यहां आकर महाश्वेता देवी ने शांति निकेतन से अंग्रेजी से ग्रैजुएशन किया. फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से एमए किया.

कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने आदिवासी जाति-जनजाति विशेष रूप से संथाल और शबरों के लिए काम करना शुरू कर दिया था. महाश्वेता देवी को क्मयुनिस्ट लेखक के रूप में जाना जाता था. वाममोर्चा सरकार के आखिरी दिनों में उनकी किसान-विरोधी उद्योगनीति की सबसे बड़ी आलोचक बन गयी थीं. नंदीग्राम-सिंगूर में किसानों की जमीन जबरन अधिग्रहण के खिलाफ वे सड़क पर उतरीं. चायबागानों में मजदूरों की आत्महत्या की घटनाओं पर उनका चिर-परिचित जुझारू तेवर सामने आया था.

महाश्वेता देवी का विवाह 1947 में उस समय के जानेमाने नाट्यकार-पटकथाकार बिजन भट्टाचार्य से हुआ. छोटे-से दांपत्य जीवन में उन्होंने 1948 में एक बेटे नवारुण भट्टाचार्य को जन्म दिया, जो आगे चल कर बांग्ला के प्रख्यात साहित्यकार हुए. बहरहाल, उनके दांपत्य जीवन में दरार आया और 14 साल के नवारुण को पति के पास छोड़ कर मानसिक सुकून की तलाश में वे अलग हो गयीं. इसके बाद तो उन्होंने अपने रचनाधर्म और आदिवासियों के विकास में खुद को पूरी तरह से झोंक दिया. इस दौरान वे कॉलेज में लेक्चरर बनी और ‘वर्तिका’ नामक पत्रिका प्रकाशित करने में जुटी रहीं. यह पत्रिका आदिवा‍सी समाज के आईने के रूप में बौद्धिक समाज के बीच प्रशंसित रही.

उधर बेटे नवारुण को बीजन भट्टाचार्य ने ही पाल-पोस कर बड़ा किया. बेटे का घर बसाया. उन्हें छोड़ कर चले जाने के बाद महाश्वेता देवी की मुलाकात किन्हीं खास मौके पर ही या कभी-कभार ही होती थी. पहले वे अक्सर बेटे को पत्र लिखा करती थीं. बाद में वह भी कम होता चला गया. पत्रनुमा एक नाजुक धागे से मां-बेटे का जो रिश्ता जुड़ा हुआ था, वह भी एक दिन टूट गया. नवारुण महाश्वेता देवी के पत्र का जवाब नहीं दिया करते थे. जाहिर है बेटे के साथ रिश्ते की खाई बढ़ती चली गयी.

31 जुलाई 2014 को नवारुण भट्टाचार्य का भी देहांत हो गया. तबसे महाश्वेता देवी को बचपन में ही अपने बेटे को छोड़ कर चले जाने का मलाल खा रहा था. एक अनौपचारिक साक्षात्कार के दौरान महाश्वेता देवी ने बताया था कि 1970 में प. बंगाल में शुरू हुए नक्सल आंदोलन के दौरान लिखे गए उपन्यास ‘हजार चौरासी की मां’ में व्रती चटर्जी के चरित्र को उन्होंने नवारुण भट्टाचार्य के व्यक्तित्व से संवारा है. उन्होंने यह भी बताया था कि उनके पति बीजन भट्टाचार्य ने उनके काम में कभी अड़चन नहीं डाला, बल्कि बेहद आजादी दी थी. बढ़ावा भी दिया करते थे. उन्होंने यह भी बताया कि उनके पति के साथ कभी दांपत्य कलह नहीं हुआ. एक अंडरस्टैडिंग थी उनके रिश्ते में. लेकिन कुछ ऐसा महाश्वेता देवी के अंदर कुलबुला रहा था, वे पारिवारिक जीवन में बंध कर रहना नहीं चाहती थीं. अकेले रह कर साहित्य-समाज के लिए कुछ करना चाहती थीं. 

एक बार जो घर से उन्होंने कदम बाहर निकाला तो बीजन और नवारुण भट्टाचार्य के साथ कभी रहना नहीं हुआ. हालांकि बेटे की पढ़ाई-लिखाई में मां के रूप में उन्होंने पिता की ही तरह अपने दायित्व का निर्वाह किया. लेकिन बेटे को पालने-पोसने का सवाल है तो बीजन भट्टाचार्य ने एक मां की तरह बेटे को पाला. अपने पति को महाश्वेता देवी ने खुद यह श्रेय दिया है. हालांकि अपने एकांत जीवन के आखिरी छोर पर महाश्वेता देवी ने यह भी माना कि पति के साथ उनका रिश्ता जो टूटा, उसके लिए जिम्मेवार एक गलतफहमी थी. हाल के कुछ दिनों अक्सर वे कहा करती थीं कि अपने जीवन में उन्होंने अकेले रहने का जो फैसला किया, काश, उनके पति उन्हें रोक लेते. बड़े होने के बाद बेटे ने भी कभी उनके फैसला के खिलाफ एक लफ्ज नहीं कहा. इस बात का मलाल भी उनके जीवन का हिस्सा बनकर रह गया था.

नवारुण भट्टाचार्य के देहांत के बाद महाश्वेता देवी ने अपने दिल का हाल खोलते हुए कहा था कि वे अपने बेटे को जानना चाहती हैं. उसके जीवन को समझना चाहती हैं. बेटे को समझने का उनके पास एकमात्र जरिया रह गया था, बेटे की रचनाएं. अपने बेटे की किताबों को वे ढूंढ़ कर पढ़ा करती थी. महाश्वेता देवी की नजर में नवारुण एक सुलझे हुए साहित्कार थे. फिर भी मां का दिल नवारुण को अपने बेटे के रूप में पाने के लिए तड़पता रहा. एक बार तो उन्होंने यहां तक कह डाला था कि एक ऐसा समय भी आया था जब वे नवारुण का हाथ पकड़ कर अपने पास ले आना चाहती थी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. मां का दिल तड़पता ही रह गया.

वे कहा करती थी कि एक साहित्यकार और समाजसेवी महाश्वेता देवी को लोग जानते हैं, लेकिन एक मां के रूप में महाश्वेता देवी को कम ही लोग जानते हैं. 14 साल के बेटे को छोड़ आने के अपने फैसले के लिए महाश्वेता देवी का दिल बार-बार हाहाकार कर उठता था. न जाने कितनी ही बार इस मां ने मन ही मन अपने बेटे से माफी मांगी. हां, एक सांत्वना उनके मन में यह जरूर थी कि नवारुण उनका अपना जना बेटा है, इस रिश्ते की कभी कोई अनदेखी नहीं कर सकता है.

कथाकार-उपन्यासकार महाश्वेता देवी केवल एक साहित्यिक नाम नहीं है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक चेतना, मानवाधिकार आंदोलन से लेकर गणनाट्य साहित्यिक आंदोलन से जुड़ी शखिसयत के रूप में महाश्वेतादेवी को सब जानते हैं. लेकिन मां महाश्वेता देवी से रुबरु होना हर किसी के लिए एक अलग अनुभव होगा.

सपा से रिश्तेदारी निभायेगें लालू

चुनाव की जंग में अपने और पराये का भेद खत्म हो जाता है. बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी के चुनाव न लड़ने की घोषणा की है.

लालू प्रसाद यादव ने इसका कारण मुलायम परिवार के साथ अपनी रिश्तेदारी को माना है. लालू यादव ने अपनी बेटी राजलक्ष्मी की शादी मुलायम परिवार में की है.

राजलक्ष्मी के पति तेज प्रताप सांसद है. बिहार विधानसभा चुनाव के समय बने महागठबंधन में मुलायम की पार्टी समाजवादी पार्टी भी सदस्य थी. चुनाव के पहले सपा बिहार के महागठबंधन से बाहर हो गई थी. अब उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव है.

बिहार महागठबंधन के प्रमुख सदस्य जनता दल युनाइटेड ने उत्तर प्रदेश में चुनावी संग्राम छेड़ दिया है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 4 बार उत्तर प्रदेश का दौरा कर चुके हैं. वह समाजवादी पार्टी की आलोचना भी वह कर चुके है.

नीतीश की जदयू के मुकाबले लालू की राजद ने उत्तर प्रदेश के चुनाव संग्राम से दूर रखने का फैसला किया है. राजद और सपा का रिश्ता बहुत अचछा था. कुछ साल पहले दोनो के रिश्तों में खटास आ गई थी.

लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के सहयोग में थे तो मुलायम कांग्रेस के विरोध में थे. अब लालू प्रसाद यादव की बेटी की शादी मुलायम परिवार में हुई तो दोनो परिवारों के बीच संबंध मधुर हो गये.

अब नये माहौल में लालू उत्तर प्रदेश में मुलायम परिवार के साथ रिश्तेदारी के साथ राजनीतिक समझौता भी जारी रखना चाहते है. राजनीति में दो सबंधी अलग अलग पार्टियों से चुनाव लड़ते रहे हैं. इसके कई उदाहरण मौजूद हैं. लालू प्रसाद यादव ने नई शुरूआत की है.वह राजनीति को रिश्तेदारी से उपर नहीं मानेगे.

लालू यादव के लिये इस फैसले का दूसरा कारण भी है. उनकी पार्टी राजद का उत्तर प्रदेश में बहुत जनाधार नहीं है. राजद हर चुनाव में कभी अकेले तो कभी गठबंधन के साथ चुनाव लड़ती रही है. इसके बाद भी उसे उत्तर प्रदेश में कभी कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है. ऐसे में उत्तर प्रदेश में चुनाव न लडने का फैसला कोई चैकाने वाला नहीं है.

उत्तर प्रदेश और बिहार में मुलायम और लालू को अपनाअपना मजबूत गढ़ है. ऐसे में आपस में लड़ने से किसी का कोई भला नहीं होने वाला. साथ रह कर दोनो मजबूत आधार बना सकते हैं.

लालू-मुलायम की दोस्ती का उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों पर भले ही कोई असर न पड़े पर लोकसभा चुनावों में यह दोस्ती गुल खिला सकती है. रिश्तेदारी का मजबूत बंधन राजनीतिक दोस्ती को नई ताकत देगी.

‘शुद्धि’ और ‘पद्मावती’ की राह पर ‘ठग’

करण जोहर ने कुछ वर्ष पहले फिल्म ‘शुद्धि’ के निर्माण की घोषणा की थी. जिस दिन इस फिल्म की घोषणा हुई थी, उस दिन से इस फिल्म के साथ कलाकारों के जुड़ने और निकलने की कहानियां आनी शुरू हो गयी थी. अंत में ‘शुद्धि’ हमेशा के लिए बंद कर दी गयी.

पिछले आठ माह से यही हाल संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ का भी है. लगभग हर दूसरे दिन इस फिल्म से कलाकार के जुड़ने और निकलने की खबरें आती रहती है.

अब इसी राह पर ‘यशराज फिल्मस’ की फिल्म ‘ठग’ भी चल रही है. जब से ‘यशराज फिल्मस’ ने फिल्म ‘ठग’ के निर्माण की घोषणा की है. तब से इस फिल्म में अभिनय करने वाले कलाकारों के नाम तय ही नहीं हो पा रहा है.

अब तक इस एक्शन प्रधान फिल्म से दीपिका पादुकोण, अमिताभ बच्चन सहित कई कलाकार अपना दामन छुड़ा चुके हैं. सूत्रों के अनुसार अब तक रितिक रौशन इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभा रहे थे.

पहले ‘मोहनजोदाड़ो’ में व्यस्तता और फिर अपनी होम प्रोडक्शन फिल्म ‘काबिल’ में व्यस्तता के चलते रितिक की तरफ से शूटिंग में असमर्थता व्यक्त किए जाने की वजह से ‘यशराज फिल्मस’ इस फिल्म की शूटिंग की तारीखें आगे बढ़ाता रहा. मगर अब रितिक रौशन ने खुद को इस फिल्म से अलग करने का फैसला कर लिया है.

सूत्रों की माने तो रितिक रौशन ने ‘यशराज फिल्मस’ को संदेश भेजा है कि वह एक्शन प्रधान फिल्म ‘मोहनजोदाड़ो’ के रिलीज के बाद उसका बॉक्स आफिस पर हाल देखने के बाद निर्णय लेंगे कि वह ‘ठग’ में अभिनय करेंगे या नहीं.

इस संदेश के बाद ‘यशराज फिल्मस’ ने मान लिया है कि रितिक रौशन ने फिल्म ‘ठग’ छोड़ दी है. सूत्रों की माने तो अब रितिक रौशन के किरदार को निभाने के लिए ‘यशराज फिल्मस’ ने आमीर खान से बात की है.

आमीर खान ने इस फिल्म के लिए जनवरी 2017 के बाद शूटिंग करने के लिए हामी भर दी है. मगर ‘यशराज फिल्मस’ के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार फिल्म ‘ठग’ को लेकर ‘यशराज फिल्मस’ के अंदर अभी भी संशय की स्थिति बनी हुई है.

VIDEO: जब पति से मिला धोखा, पत्नी ने ऐसे लिया बदला

आज भी भारतीय महिलायें पति को भगवान का दरजा देती हैं, उन्हें परमेश्वर मानती हैं. अगर पति अत्याचार भी करे तो उसे चुपचाप सहन करती है.

पर इस विडियो में आपको एक औरत का अलग ही रूप देखने को मिलेगा. पति से मिले धोखे के बाद जब मां-बाप ने भी उसे सहारा नहीं दिया तो वह चुपचाप नहीं बैठी रही, उसने उठाया ये कदम.

पर क्या उसका ये कदम सही था ? विडियो देख के खुद अंदाजा लगा सकते हैं आप.

विडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें – www.sarita.in/web-exclusive/wife-revenge-to-husband

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