1084 की मां नहीं रहीं. लंबी बीमारी के बाद पद्मश्री, पद्मविभूषण, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, बंग विभूषण से सम्मानित बांग्ला की प्रख्यात साहित्यकार महाश्वेता देवी का निधन हो गया. वृद्धावस्था जनित बीमारी से पीड़ित महाश्वेता देवी महीनों अस्पताल में भर्ती थी. इसी साल 15 जनवरी को अस्पताल में ही उन्होंने अपना 90 वां जन्मदिन भी मनाया था. इसके बाद 22 मई को फेफड़े और मूत्राशय में संक्रमण की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती किया गया.
पहले से ही वे हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज की मरीज थी. इस बीच उनकी किडनी ने भी जवाब दे दिया. लंबे समय तक वे आईसीयू में रहीं. लेकिन एक-एक करके उनके सभी अंग-प्रत्यंगों ने काम करना बंद कर दिया और फिर 27 जुलाई को दिल का दौरा पड़ा. इस आखिरी झटके को वे बर्दाश्त नहीं कर पायीं और 28 जुलाई की रात वे लंबी नींद सो गयीं. महाश्वेता देवी के निधन की खबर सुनकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपना दिल्ली दौरा समाप्त कर कोलकाता लौट आयीं.
सार्क साहित्य सम्मान, ज्ञानपीठ, पद्म विभूषण, मैगसासे अवार्ड से सम्मानित 90 साल की महाश्वेता देवी को सांस की तकलीफ, फेफड़े में संक्रमण की शिकायत लेकर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अचानक जन्मदिन का केक लेकर वेलव्यू अस्पताल पहुंची थीं. महाश्वेता देवी को केक खिलाकर उन्होंने जन्मदिन की बधाइयां दीं थीं.
मूलतया वामपंथी विचारधारा की मानी जाने वाली महाश्वेता देवी ने प. बंगाल समेत बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड में शबर, लोधा, संथाल, उरांव, मुंडा जैसे आदिवासी जाति और जनजाति समेत दलित समुदाय के बीच रह कर बहुत सारे काम किए. वे दो साल पहले तक उनके लिए काम करती रहीं. वे ममता बनर्जी के भूमि अधिग्रहण आंदोलन से भी जुड़ी थीं. राज्य में वाम शासन के खिलाफ ममता के जमीन अधिग्रहण आंदोलन को सफल बनाने में उनकी बड़ी भूमिका रही.