एक तरफ जहां फुटबौल यूरो कप में आश्चर्यजनक रूप से इतिहास रचते हुए पुर्तगाल के विजेता बनने से लाखोंकरोड़ों फुटबौल प्रेमियों में खुशी की लहर है तो वहीं दूसरी ओर लियोनेल मेसी के संन्यास और उन्हें टैक्स न चुकाने के एवज में सजा मिलने से मेसी के दीवानों में मायूसी है. वैसे 42 साल बाद पुर्तगाल ने फ्रांस को किसी मैच में हराया है. फुटबौल की लोकप्रियता इतनी है कि विश्वकप के दौरान लोग रातरातभर जाग कर देखते हैं. भारत में भी धीरेधीरे इस का क्रेज बढ़ रहा है और अब अंडर-17 टीम के फीफा विश्व कप की मेजबानी भी भारत को मिली है. जाहिर है इस से भारत में इस की लोकप्रियता बढ़ेगी.
हालांकि फीफा में भारत की टीम के न होने का मलाल हमेशा सालता है. इस के लिए भारत को काफी तैयारी करने की जरूरत है. इस गेम के लिए बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और बेहतर कोचिंग की आवश्यकता है. स्कूल व कालेजों में प्रतिभाओं को तलाशना होगा. उन्हें अच्छी ट्रेनिंग देनी होगी. कई युवाओं का मानना है कि फुटबौल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी लोकप्रिय है. इस में ग्लैमर है, इज्जत, नाम, पैसा सबकुछ है. ऐसे में युवाओं का रुझान इस तरफ होगा ही बशर्ते कि प्रशासनिक और सरकारी स्तर पर सकारात्मक पहल हो और सुविधाएं मुहैया कराई जाएं.
इस की लोकप्रियता को देखते हुए कई विदेशी फुटबौल क्लब भी भारत में ट्रेनिंग के गुर सिखाने के लिए अकादमियां खोल रहे हैं. बावजूद इस के, फुटबौल की जमीनी हकीकत कुछ और ही है. फीफा रैंकिंग में भारत 164वें स्थान पर है. यहां तक कि नेपाल व बंगलादेश भारत से आगे हैं. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम कहां हैं. यहां के युवा फुटबौल खेलना तो चाहते हैं पर विदेशी क्लबों में उन की रुचि ज्यादा है. पर विदेशी क्लबों में खेलना इतना आसान नहीं है. युवाओं को घरेलू फुटबौल में ही ज्यादा दिलचस्पी दिखानी होगी. यहां पंजाब और मुंबई में कुछ क्लब खुले भी लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उन्हें बंद करना पड़ा. घरेलू फुटबौल टूर्नामैंट को न तो तरजीह दी जाती है और न ही दर्शक देखने के लिए आते हैं. ऐसे में क्लबों की कमाई होगी कैसे? यहां के खिलाडि़यों को अंतर्राष्ट्रीय लैवल में अधिक मैच खेलने को नहीं मिलते. ऐसे में उन को अनुभव कैसे होगा?