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कहीं बच्चे इंटरनेट पर पॉर्न तो नहीं देख रहे?

पेरेंट्स होने के नाते आपका बच्चा इंटरनेट पर क्या देख रहा है इसकी जानकारी रखना आपका हक है. ये स्पाइंग नहीं है. अपने बच्चे को स्मार्टफोन देने से पहले इसमें एक सेटिंग करने से आप उसकी इंटरनेट एक्टिविटी पर नजर रख पाएंगे. अगर वो सर्च हिस्ट्री डिलीट भी कर देता है तो भी आपको उसके एक्टिविटी के बारे में पता चलता रहेगा. कहीं आपका बच्चा पॉर्न साइट्स तो नहीं देख रहा…?

– uknowkids.com पर पब्लिश एक रिपोर्ट के मुताबिक 8 से 16 साल की उम्र के बच्चे ऑनलाइन कम से कम एक बार पॉर्न देख चुके होते हैं.

– ऑनलाइन पॉर्न देखने के मामले में 12 से 17 साल के लड़कों की संख्या काफी ज्यादा है.

– इंटरनेट पर अडल्ट कंटेंट की भरमार है और इसे एक्सेस करने के लिए किसी भी तरह के वेरिफिकेशन की जरूरत नहीं पड़ती.

– इससे स्मार्टफोन और इंटरनेट पर अडल्ट कंटेंट एक्सेस करना बच्चों के लिए और भी आसान हो गया है.

– हालांकि बच्चे इतने स्मार्ट तो हैं ही कि वे सर्च हिस्ट्री डिलीट कर देते हैं. ऐसे में Cookies ही एक ऑप्शन बचता है जिससे आप पता लगा सकें कि आपका बच्चा इंटरनेट पर क्या देख रहा था.

एंड्रॉइड स्मार्टफोन में करें ये सेटिंग-

– क्रोम ब्राउजर में जाकर Settings में जाएं.

– इसमें स्क्रॉल करके नीचे जाएं और Site Setting ऑप्शन पर टैप करें.

– यहां अगर Cookies ऑप्शन ऑफ है तो इसे ऑन कर दें.

– इसके बाद सर्च हिस्ट्री डिलीट होने के बाद भी आपको ब्राउज की गई साइट्स के बारे में पता चल जाएगा.

क्या काम करते हैं Cookies-

Cookies यूजर द्वारा विजिट की गई साइट्स, एक्टिविटी और किसी वेबसाइट पर स्पेंड किए गए समय का इंफॉर्मेशन सेव रखती हैं.

इसके अलावा प्ले स्टोर पर कई ऐसे ऐप्स अवेलेबल हैं जिनसे आप किसी की इंटरनेट सर्च पर नजर रख सकते हैं.

सिस्टम में ऐसे चेक करें Cookies –

Chrome ब्राउजर है तो ये स्टेप्स फॉलो करें-

– Chrome ओपन करके लेफ्ट साइड में मेन्यू पर क्लिक करें.

– इसमें Settings ऑप्शन पर जाएं.

– Settings में जाने के बाद Show advanced settings पर क्लिक करें.

– इसमें Privacy ऑप्शन में Content Settings पर जाएं.

– अब All cookies and site data ऑप्शन पर क्लिक करें. 

Firefox यूज करते हैं तो ये करें-

– Firefor ओपन करने के बाद Tools पर क्लिक करें.

– इसमें Option पर क्लिक करें. इसके बाद Privacy पर जाएं.

– Remove individual cookies पर क्लिक करके आप ब्राउजिंग हिस्ट्री चेक कर सकते हैं. अगर आपका बच्चा कोई एडल्ट कंटेंट देख रहा है तो यहां से आपको उसके बारे में पता चल जाएगा.

विदेशी कंपनियों को निमंत्रण

देशी संस्कृति का रातदिन आलाप करने वाली सरकार ने बहुत से क्षेत्रों में शतप्रतिशत विदेशी पूंजी लगाने की इजाजत दे कर ठीक किया है या नहीं, यह कहना आसान नहीं. यह पक्का है कि देश में नई नौकरियां जरूरी हैं पर देश में उतनी पूंजी नहीं है कि नए कारखानों में पैसा लगाया जा सके. इसलिए अगर विदेशी लोग बाहर से पैसा ला कर लगाते हैं और उद्योग शुरू करते हैं तो नौकरियां मिलेंगी ही.

सवाल उठता है कि ये कंपनियां क्या बनाएंगी, क्या बेचेंगी और किसे बेचेंगी. देश की जनता के पास खर्च करने के लिए पैसे नहीं है तभी तो देश में पूंजी नहीं बन रही है और इसीलिए विदेशी आ रहे हैं. लेकिन ये विदेशी नौकरियां बांटने नहीं, मुनाफा कमाने आ रहे हैं और मुनाफे के लिए जो सामान बेचेंगे वह बिका तो उस जगह आजकल बिक रहा सामान, बिकना बंद हो जाएगा.

यानी होगा यह कि देशी कंपनियों का घटिया, पुरानी तकनीक पर आधारित तैयार माल बिकना बंद हो जाएगा और विदेशी कंपनियों का माल बिकेगा. इस से आर्थिक लाभ किसे होगा? या तो उन्हें जो बढि़या सामान चाहते हैं या उन्हें जो बनाते हैं. देशी कंपनियों के दरवाजे बंद हो जाएंगे, नौकरियां समाप्त हो जाएंगी.

विदेशी कंपनियों के पास इतना पैसा पड़ा है कि भारत के सारे उद्योगधंधे खरीद लें. अंबानी, टाटा, अदानी सरकारी संरक्षण के कारण टिके हैं. देशी कंपनियों के पास अपनी खोजों और तकनीक का अभाव है. उन के पास पुरानी मशीनें हैं, वे भी आयातित और आज भी घटिया काम कर रही हैं. अपनेअपने देशों में घटते बाजार को देख कर कितनी ही कंपनियां भारत में आना चाहती हैं और पैसा लगाना उन के लिए मुश्किल नहीं है, पर यह 1947 के पहले वाला हाल होगा जब हर अच्छे उद्योग अंगरेजों के थे. 1947 में भारत दुनिया का 7वां सब से बड़ा औद्योगिक देश था गुलामी के बावजूद. आज विश्व की तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था है तो विशाल जनसंख्या के कारण, अपनी कुशलता के कारण नहीं.

1947 के पहले जो राग स्वदेशी का लगा था वह इसीलिए लगा था कि मिलें अंगरेजों की थीं. इस में शक नहीं कि उन्हें प्रबंधन की कला आती थी और उन में कुछ नया करने की इच्छा भी थी. हम पुराने ढंग से जी रहे हैं और शायद इसीलिए भारतीय कंपनियों को विदेशों में जगह नहीं मिल रही. जबकि उन के आने के लिए भारत में लाल गलीचा बिछाया जा रहा है.

जिस भी क्षेत्र में विदेशी ब्रैंड आ जाते हैं, यह पक्का है कि उस क्षेत्र के देशी ब्रैंड गायब हो जाते हैं. भारतीय जनता पार्टी और उस से पहले कांगे्रस वही गलती कर रही हैं जो हिंदुस्तानी राजाओं ने की थी- विदेशियों को दावत देना. वैसे, अंगरेजों के शासन में भारत की जनता दुखी थी, यह कहना कठिन है. जो प्रबंधन उन्हें आता था, वह आज 69 साल बाद भी हम नहीं जानते. तभी तो विदेशियों को बुला रहे हैं.         

 

युवा आक्रोश

अमेरिका में रंगभेद विवाद अब फिर तूल पकड़ रहा है. पिछले कई सालों से गोरे पुलिस वाले काले युवाओं को, केवल शक पर, गोली मारते रहे हैं और अमेरिकी जेलें कालों से भरी पड़ी हैं. हर 3 अश्वेतों में से 1 अश्वेत जीवन में कभी न कभी जेल में रह आता है. ‘ब्लैक लाइव्ज मैटर’ आंदोलन तेजी से जोर पकड़ रहा है और लाखों गोरों का सहयोग मिलने के बावजूद गोरे पुलिस वाले हर काले युवा को गुंडा, हत्या का इरादा करने वाला मान रहे हैं.

पुलिस के प्रति बढ़ती घृणा अब गहरे प्रतिशोध की जगह लेने लगी है. एक पूर्व सैनिक ने अकेले डलास शहर में उस समय 5 गोरे पुलिस वालों को गोली मार डाली जब वहां ‘ब्लैक लाइव्ज मैटर’ प्रदर्शन हो रहा था. मिका जेवियर जौनसन पुलिस की गोलियों से मारा गया. पुलिस को शक है कि उस के साथ 3 और अश्वेत आतंकवादी थे जिन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है.

अमेरिका में डेढ़ सौ साल पहले हुए गृहयुद्ध में कालों को गुलामी से मुक्ति दिलाई गई थी पर सच यह है कि अमेरिकी समाज ने उसी तरह कालों के साथ व्यवहार किया जैसा हमारे यहां दलितों के साथ होता है. आज भी श्वेत पुलिस वाले हर अश्वेत युवा को पैदाइशी गुंडा मानते हैं और यदि न्याय की मांग करते हुए अश्वेत युवा ने कुछ कह दिया तो उसे गोली मारने से हिचकते नहीं हैं.

अमेरिका में अश्वेतों की आबादी 12.43 फीसदी है पर जेलों में बंद 35 फीसदी कैदी अश्वेत हैं. अमेरिका के 30-39 वर्ष की आयुवर्ग के 1 फीसदी श्वेत जेलों में हैं जबकि अश्वेत 6 फीसदी हैं. 2010 से 2012 के दौरान 1,217 अश्वेत पुलिस अफसरों द्वारा गोली से मारे गए थे. हर 20 लाख युवाओं और किशोरों में से 62 काले पुलिस की गोली के शिकार हुए जबकि हर 20 लाख गोरों में से केवल 3 गोरे ही पुलिस द्वारा मारे गए.

डलास में हुए हत्याकांड ने गोरे-कालों का भेद और ज्यादा गंभीर बना दिया है. वैसे ही दुनिया बारूद के ढेर पर बैठी है, जिहादियों ने जता दिया है कि लोकतांत्रिक अधिकारों से ज्यादा जोर की आवाज तो बंदूकों की होती है. जिस तरह से लाखों युवाओं ने पश्चिमी एशिया में तकनीकी आधुनिक सुविधाओं के बदले जान को जोखिम में डालने वाले जिहादी कैरियर को खुशीखुशी और अकारण अपनाया है उस से साफ है कि आज का युवा इस समाज से बुरी तरह खफा है.

भारत में कश्मीर में बुरहान वानी की सैनिकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद जो उफान आया है उस की हवा वही है जो पश्चिमी एशिया में है या अमेरिका में है. दुनिया की बुढ़ाती पीढ़ी आज की नई पीढ़ी का रोष नहीं समझ पा रही. उस पीढ़ी ने पैसे पर भी कब्जा कर रखा है और पावर पर भी. अब एक और युवा क्रांति की लपटें उठने लगीं हैं अलगअलग देशों में अलगअलग तरह से.

युवाओं को सही पाठ पढ़ाने वाला अब कोई नहीं बचा. जो समाजसेवा कर सकते थे, ऊंचे कैरियर के चक्कर में वे कंपनियों में जा बैठे हैं. पैसा, बड़े मकान, बड़ी गाडि़यां कुछ के जीवन के ऐसे अंग बन गए हैं कि घर के बाहर उग रही जहरीली घास उन्हें दिख ही नहीं रही, हिंसा का फैलता व्यापार उन्हें महसूस नहीं हो रहा. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से ले कर डलास तक बात एक ही है. युवाआक्रोश काबू से बाहर है.

नरेंद्र मोदी: सत्तर चूहे खाकर बिल्ली चली हज की ओर

भाजपा चुनावों के जरिये सत्ता पर एकाधिकार चाहती है. उसके दावे बड़े हैं. उसके इरादे पक्के हैं. उसने उन तकतों से तालमेल भी बैठा लिया है, जो सरकारें बनाती हैं और जिनके नाम से सरकारें बनायी जाती हैं, उस आम जनता के लिये उसके पास आकर्षक नारें हैं, जिसमें फंसाने का काम प्रचारतंत्र करता है. नायक के रूप में उसने नरेंद्र मोदी को खड़ा कर लिया है. सत्तर चूहे खाने के बाद जिसे हज की जरूरत भी नहीं पड़ी. बिल्ली को बाघ मान लिया गया. भाजपा की ये बड़ी सफलता है, जिसे कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार ने सजा कर प्लेट में दिया.

2014 में उसने लोकसभा चुनाव में बड़ी सफलता हासिल की. 2015 में बिहार के बाद 2016 में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में उसे बिहार में शिकस्त के बाद, पश्चिम बंगाल, पाण्डुचेरी, केरल और तमिलनाडू में भी करारी मात मिली, मगर असम के चुनाव में मिली सफलता को उसने अपनी सफलता और जन स्वीकृति का ऐसा जरिया बनाया, इतनी खुशियां बांटी कि देश की आम जनता, शायद धोखे में आ गयी है, और 2017 में होने वो उत्तर प्रदेश सहित अन्य चार राज्यों में चुनावों में सफलता की घोषणा वह अभी से करने लगी है. उसके हौसले बुलंद हैं. उसके दावे बड़े हैं. वह उत्तर प्रदेश को निशाने पर ले चुकी है, जहां सपा की सरकार है. बसपा की मजबूत स्थिति है और कांग्रेस भी है. वामदलों के साथ में खास कुछ नहीं है. बिहार चुनाव में भाजपा की हार के बाद जिस राजनीतिक विकल्प की बातें हुईं थी, वह अभी साफ नहीं है. कह सकते हैं, कि वह है.

लेकिन भाजपा कांग्रेस को समाप्त करने पर तुली हुई है. ‘कांग्रेस मुक्त भारत‘ उसका नारा है. वह मान कर चल रही है, कि यदि कांग्रेस नहीं है, तो राष्ट्रीय स्तर पर उसके लिये दलगत राजनीतिक चुनौती नहीं है.

भाजपा जिन छुपे और खुले हुए मुद्दों के तहत 2014 का लोकसभा चुनाव जीत चुकी है, उन्हीं मुद्दों के तहत ‘मिशन 2017‘ वह पूरा करना चाहती है. मिशन 2017 उसके लिये उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है, मगर यह उससे कहीं ज्यादा है, वह मान कर चल रही है, कि उत्तर प्रदेश में सरकार का मामला मतलब 2019 के आम चुनाव में जीत की गारंटी है. पंजाब का चुनाव भी, उसके इस मिशन का हिस्सा है. वह अपनी उपलब्धियों को गिनाने और बताने में इतनी मशगूल है कि वह जनसमस्याओं का समाधान करने के बजाये उसे भुलावा देने और भटकाने में लग गयी है. उसने हिन्दुत्व के घातक मुद्दे को चुनाव में रामनामी ओढ़ाना तय कर लिया है. विकास के साथ रामनामी भी अहम मुद्दा है.

12, 13 जून को इलाहाबाद में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक और सभायें हुईं. अमित शाह और तमाम मंत्री-संतरी, जिसे जो कहना चाहिये था, उन्होंने वही कहा. मीडिया को जैसे रिपोर्टिंग करनी चाहिये थी, उन्होंने वैसी ही रिपोर्टिंग की. भाजपा नमोवादी हो गयी. उत्तर प्रदेश 2017 का चुनाव मोदी के नाम पर लड़ना तय हो गया.

नरेंद्र मोदी को, पार्टी और सरकार के कंधों पर चढ़ा दिया गया. ‘हाथी-घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की.‘ चुनाव में माहिर हो गये भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बैठक में शामिल किसी भी मंत्री ने देश की वस्तु स्थिति के बारे में कुछ नहीं कहा. बढ़ती हुई महंगाई, भूखमरी, सूखे की स्थिति, तेजी से बढ़ती सामाजिक एवं आर्थिक असमानताओं के बारे में कुछ नहीं कहा. वो मोदी के दो साल की तस्वीरें चिपका कर एक-दूसरे को आईना की तरह दिखाते रहे. ऐसी तस्वीरें दिखाते रहे जिसमें मोदी का कद तो बढ़ता है, मगर देश और आवाम गायब होती जा रही है. मोदी चुनावी चेहरा बन गये हैं. सरकारी खर्च पर प्रचार कार्य जारी है.

भाजपा उत्तर प्रदेश में 2014 के आम चुनाव परिणाम की तरह 2017 में प्रदेश चुनाव परिणाम के सपने पाल रही है. वह सोच रही है, कि 2019 का ‘गेट पास‘ उसे मिल जायेगा. चुनाव वह अकेले ही लड़ने के मूड़ में दिख रही है. निशाने पर वैसे तो सपा और बसपा है, मगर समीकरण अभी बदलेगा. सभी शातिर दिमागों की तेजाबी होगी. नरेंद्र मोदी अपने को करामाती दिखाने में लगे रहे. संघ की फौज को तैयार किया जा रहा है. धर्म और जाति के गोटियों पर विकास का बर्क चढ़ाया जा रहा है. आने वाले कल में राम मंदिर के निर्माण और ‘देशद्रोही बनाम देशभक्ति‘ के मुद्दे को तरजीह मिलेगी.

भाजपा की सफलता इस बात पर निर्भर करती है, कि वह प्रदेश की आम जनता को बरगलाने में कितना सफल होती है. कमोबेश यही स्थिति अन्य राजनीतिक दलों के बारे में भी कही जा सकती है. सपा जो है उसे बचाने में लगी है. बसपा समीकरण मे संभावनायें तलाश सकती है, जिसके वोट बैंक में घुसपैठ हो रही है. कांग्रेस और तीसरा मोर्चा के माथे पर गहरी शिकन है.

रूस को लगा एक और झटका

डोपिंग को लेकर रूस अब एक और नई मुश्किल में फंस गया है. रूसी एथलीटों के रियो 2016 पैरालंपिक में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. रूस के लिए यह एक और करारा झटका है. इससे पहले ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में भाग लेने के लिए उसकी ट्रैक एंड फील्ड टीम और वेटलिफ्टरों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

यह फैसला विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा) की रूस की पैरालम्पिक टीम को खेलों से प्रतिबंधित करने की सलाह के बाद लिया गया है. पैरालम्पिक खेलों का आयोजन सात सितंबर से 18 सितंबर तक ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरियो में किया जाएगा.

अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (आइपीसी) ने मैकलारेन रिपोर्ट के आधार पर ये प्रतिबंध लगाया है. पिछले महीने प्रकाशित हुई इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि रूस में सरकार की मदद से डोपिंग हुई थी.

आइपीसी के अध्यक्ष सर फिलिप क्रेविन ने कहा, 'रूस में एंटी डोपिंग सिस्टम भ्रष्ट हो गया है और पूरी व्यवस्था चरमरा गई है. इसके चलते रूसी पैरालंपिक समिति को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित कर दिया गया है.' हालांकि मैकलारेन की रिपार्ट उजागर होने के बाद अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आइओसी) ने रियो ओलंपिक के लिए सभी रूसी एथलीटों पर प्रतिबंध नही लगाने का फैसला लिया था.

आइपीसी के इस फैसले को रूस जेनेवा स्थित कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फार स्पोर्ट (खेल पंचाट) में चुनौती देगा. रूस के खेल मंत्री विताली मुतको ने यह जानकारी दी.

ऐसे बनाएं स्मार्ट होम

सिंगल फैमिली के बढ़ते दौर में घर और बच्‍चों की देखभाल एक बड़ा इश्‍यू बनता जा रहा है. खासकर तब, जब पति-पत्‍नी दोनों ऑफिस गोइंग हों और बच्‍चे छोटे हों या साथ में बीमार बुजुर्ग हों. ऐसे समय में, यदि कोई आपको कहे कि आप ऑफिस में बैठकर ही अपने पूरे घर की देखभाल कर सकते हैं या बच्‍चों पर नजर रख सकते हैं. तो आपके लिए इससे बड़ी बात क्‍या हो सकती है. पर, मन में सवाल उठेगा कि ऐसा करने के लिए न जाने कितना पैसा खर्च करना पड़ेगा, परंतु ऐसा नहीं है. अब ऐसा करना दिनों दिन सस्‍ता होता जा रहा है. केवल 25 हजार रुपए से लेकर अधिकतम 5 लाख रुपए तक ऐसे डिवाइस या टैक्‍नोलॉजी इस समय मार्केट में उपलब्‍ध है, जिसे अपनाकर अपने घर को स्‍मार्ट होम्‍स में तब्‍दील कर सकते हैं. आइए जानते हैं, कौन सी हैं ये टैक्‍नोलॉजी और उनकी कीमत –

ऑफिस में देखें घर का हाल

आप अपने ऑफिस में बैठकर यह देख सकते हैं कि घर में आपके बच्‍चे क्‍या कर रहे हैं या घर में बीमार बुजुर्ग की स्थिति क्‍या है या कोई अजनबी तो आपके घर में नहीं घुस आया है. इसके लिए आपको अपने घर पर कैमरा लगवाना होगा, जो आपको घर के अंदर का हाल आपके ऑफिस कम्‍प्‍यूर या मोबाइल पर दिखा सकता है. इसके लिए कैमरा इंटरनेट कनेक्‍शन से जुड़ा हुआ होना चाहिए. साथ ही, इस समय ऐसे मोबाइल एप भी उपलब्‍ध हैं, जिसे आप अपने स्‍मार्ट फोन में एप डाउनलोड करके घर के सीन देख सकते हैं. बाजार में इस तरह के कैमरे और डिवाइस 50 हजार रुपए से लेकर 1 लाख रुपए तक उपलब्‍ध हैं.

अपने आप हो जाएगा एसी ऑन-ऑफ

जैसे जैसे घर में बिजली के उपकरण बढ़ते जा रहे हैं. बिजली का बिल भी बढ़ता जा रहा है, हालांकि इसके लिए हमारी लापरवाही भी काफी हद तक जिम्‍मेवार है. ऐसे में, यदि इले‍क्ट्रिकल आइटम जरूरत पड़ने पर ऑन हो जाए और जरूरत न होने पर बंद हो जाए तो बिजली के साथ साथ बिल की बचत की जा सकती है. स्‍मार्ट होम्‍स के लिए बाजार में कई ऐसे सेंसर्स उपलब्‍ध हैं, जो यह काम कर सकते हैं. जैसे कि – एसी को इस सेंसर से जोड़ दें और टाइमर पर टाइम सेट कर दें तो एक समय के बाद एसी ऑन-ऑफ या टेम्‍परेचर कम ज्‍यादा हो सकता है. इसके अलावा लाइटिंग, पंखें, गीजर के साथ कर्टन ( पर्दे) भी अपने आप कंट्रोल हो सकते हैं. इतना ही नहीं, इन्‍हें कीपेड से भी कंट्रोल किया जा सकता है. इस तरह के ऑटोमेशन की सर्विसेज 50 हजार रुपए तक में उपलब्‍ध है.

 25 हजार रुपए में बना सकते हैं होम को स्‍मार्ट

यह माना जाता है कि स्‍मार्ट होम यानी कि सेंसर, अलार्म, कैमरे युक्‍त घरों की कीमत काफी अधिक होती है. कई बिल्‍डर्स तो ये तीन चार सुविधाएं देकर अपने प्रोजेक्‍ट को लग्‍जरी होम्‍स बताकर बेच रहे हैं. लेकिन आप अपने पुराने घर को भी मात्र 20 से 25 हजार रुपए में स्‍मार्ट बना सकते हैं. रिपोर्ट्स बताती हैं कि अपने 2बीएचके के घर पर मोशन, डोर, गैस व इलेक्ट्रिसिटी सेंसर्स लगाना चाहते हैं तो 20 से 25 हजार रुपए का खर्च आएगा, लेकिन यदि आप इन सेंसर्स को वायरलैस हैंडल करना चाहते हैं तो यह खर्च बढ़कर 35 हजार रुपए हो जाएगा. 

सुन सकते हैं आवाज भी

घर में हो रही हरकतों को कैमरे में कैद करना तो आसान है, लेकिन वहां की आवाज सुनना आसान नहीं है. लेकिन ऐसे भी डिवाइस मौजूद हैं, जो आपको वीडियो के साथ साथ ऑडियो भी सुना सकते हैं. आप अपने स्‍मार्ट फोन में घर में होने वाली घटनाओं को देखने के साथ साथ आवाजों को भी सुन सकते हैं. इसे भी आपके मोबाइल से जोड़ा जा सकता है. आप अपने मोबाइल से लाइट्स, एसी, टीवी को कंट्रोल कर सकते हैं. जैसे कि – आप अपने मोबाइल पर देखते हैं कि आपके बच्‍चे बहुत देर से टीवी देख रहे हैं और आप चाहते हैं कि टीवी बंद हो जाए तो आप मोबाइल एप से टीवी बंद कर सकते हैं. यह सब सुविधाएं पाने के लिए आपको लगभग 2 लाख रुपए खर्च करने होंगे.

4 लाख में मिलेगा कंप्‍लीट स्‍मार्ट होम

अगर परचेज पावर अच्‍छी है तो आप लगभग 4 लाख रुपए में पूरे घर को स्‍मार्ट होम में बदल सकते हैं. जिसमें आपको मल्‍टी रूम आडि़यो-वीडियो इंटीग्रेशन, डोर लॉक-अनलॉक, एडवांस इंटीग्रेशन विद सेफ्टी एंड सिक्‍योरिटी सिस्‍टम ( जिसमें सीसीटीवी, फायर अलार्म, इनट्रयूशन) स्‍मार्ट फोन या कीपेड से कंट्रोल, एयरकंडीशन कंट्रोल जैसी सर्विसेज मिलेंगी.

रिटायर्ड कर्मचारियों के अच्छे दिन

केंद्र सरकार के रिटायर्ड एंप्लॉयीज अब पेंशन के रूप में कम-से-कम 9,000 रुपये पाएंगे. सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के बाद मौजूदा न्यूनतम पेंशन राशि में 157% की वृद्धि हुई है. पूर्व केंद्रीय कर्मियों को अब तक कम-से-कम 3,500 रुपये पेंशन मिल रही थी. कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय ने आयोग की सिफारिश पर रजामंदी की अधिसूचना जारी कर दी है. ग्रैच्यूटी की सीमा भी मौजूदा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दी गई है. दरअसल, आयोग ने ग्रैच्युटी की सीमा 25% बढ़ाने के साथ-साथ महंगाई भत्ता में भी 50 प्रतिशत की वृद्धि की सिफारिश की थी. सरकार ने इस प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी. गौरतलब है कि केंद्र सरकार कुल 58 लाख पूर्व कर्मचारियों को पेंशन दे रही है.

मंत्रालय द्वारा जारी ऑर्डर में कहा गया है कि पेंशन की राशि कम-से-कम 9,000 रुपये होगी और यह ज्यादा-से-ज्यादा 1,25,000 रुपये तक हो सकती है. यह केंद्र सरकार के कर्मियों को 1 जनवरी 2016 से मिलने वाले उच्चतम वेतन (2,50,000 रुपये) की आधी रकम है. ऑर्डर में कहा गया है कि रिटायरमेंट ग्रैच्यूटी और डेथ ग्रैच्यूटी की अधिकतम सीमा 20 रुपये होगी. ग्रैच्यूटी की मौजूदा अधिकतम सीमा में 25% की वृद्धि होगी जबकि महंगाई भत्ते में मूल वेतन के 50% तक का इजाफा हुआ है.

सिविल और डिफेंस फोर्सेज के कर्मियों के निकटतम रिश्तेदार को अनुग्रह राशि के रूप में एकमुश्त मुआवजे के भुगतान में भी अच्छी खासी वृद्धि की गई है. इसके तहत, ड्यूटी के दौरान दुर्घटना और आंतकवादियों, असामाजितक तत्वों द्वारा हिंसक वारदातों में मौत होने पर मौजूदा 10 लाख रुपये की जगह अब 25 लाख रुपये की अनुग्रह राशि दी जाएगी.

अगले महीने से पटरी पर दौड़ेगी ‘हमसफर’

'हमसफर' ट्रेन के पहले 21 कोच अगले महीने पटरी पर उतारे जाएंगे, जिसमें सीसीटीवी और अग्निसुरक्षा उपकरण लगे होंगे और बाहर मटमैले रंग की किनारी वाली आसमानी विनाइल शीट लगी होंगी.

ट्रेन में ब्रेल लिपि में लगे डिस्प्ले, जीपीएस-आधारित यात्री सूचना डिस्प्ले और घोषणा प्रणाली भी लगी है. भारत के मध्यम वर्ग के यात्रियों को ध्यान में रखकर चलाई जाने वाली हमसफर ट्रेन विशेष रूप से 3-टीयर एसी ट्रेन है जिसमें भोजन का विकल्प भी होगा.

रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह दो शहरों की दूरी रात में तय करेगी. कपूरथला के रेल कोच कारखाने में निर्मित 21 हमसफर कोच अगले महीने नई दिल्ली स्टेशन भेजे जाएंगे.

सूत्रों ने कहा कि ट्रेन के मार्गों को अंतिम रूप नहीं दिया है, लेकिन नई दिल्ली से लखनऊ के बीच इसे शुरू करने पर सक्रियता से विचार किया जा रहा है.

ट्रेन के डिब्बों को आकर्षक बनाने का प्रयास किया गया है. इसके बाहर विनाइल शीट लगाकर अत्याधुनिक स्वरूप प्रदान किया गया है. ट्रेन कोचों में साफ-सफाई को ध्यान में रखते हुए जैव-शौचालय और नए तरह से डिजाइन कचरापेटी बनाई गई हैं.

रियो ओलंपिक: जिम्नास्टिक के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं दीपा

52 वर्षों के बाद ओलंपिक खेलों की जिम्नास्टिक स्पर्धा में पहली भारतीय महिला एथलीट के तौर पर प्रवेश कर पहले ही इतिहास रच चुकीं दीपा कर्माकर ने रियो ओलंपिक के वॉल्ट के फाइनल में प्रवेश कर एक और इतिहास रच दिया. दीपा जिम्नास्टिक की सभी पांच क्वालिफिकेशन सबडिवीजन स्पर्धा के समापन के बाद वॉल्ट में आठवें स्थान पर रहीं, जो फाइनल में क्वालिफाई करने के लिए आखिरी स्थान था.

दीपा ने तीसरी सबडिवीजन क्वालिफाइंग स्पर्धा के वॉल्ट में 14.850 अंक हासिल किया. तीसरे सबडिवीजन की समाप्ति पर दीपा छठे स्थान पर थीं, लेकिन अमेरिका की सिमोन बाइल्स और कनाडा की शैलन ओल्सेन आखिरी के दो सबडिवीजन से फाइनल में प्रवेश करने में सफल रहीं.

सिमोन बाइल्स ने वॉल्ट में 16.050 अंक हासिल कर शीर्ष स्थान के साथ फाइनल में प्रवेश किया, जबकि दीपा सबसे निचले आठवें पायदान के साथ फाइनल में पहुंची हैं. इससे स्पष्ट है कि दीपा को फाइनल में पदक हासिल करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देना होगा.

कलात्मक जिम्नास्टिक स्पर्धा के क्वालिफिकेशन सबडिवीजन-3 में दीपा का ओवरऑल प्रदर्शन तो औसत रहा, लेकिन वॉल्ट में उन्होंने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए फाइनल में जगह बनाई है.

दीपा ने वॉल्ट में बेहद कठिन माने जाने वाले प्रोदुनोवा को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और रियो-2016 में ऐसा करने वाली वह एकमात्र जिम्नास्ट रहीं. हालांकि अमेरिका की सीमोन बाइल्स ने प्रोदुनोवा जैसा कठिन मार्ग न चुनने के बावजूद प्रदर्शित कर दिया है कि अन्य वॉल्ट कलाओं के जरिए भी अधिक अंक हासिल किए जा सकते हैं.

दीपा का ऑल अराउंड प्रदर्शन औसत रहा और उन्होंने 51.665 का स्कोर करते हुए 61 प्रतिभागियों में 51वां स्थान हासिल किया, जबकि ऑल अराउंड के फाइनल में 29वें स्थान तक की कुल 24 खिलाड़ियों ने फाइनल में प्रवेश किया है. दीपा अब 14 अगस्त को वॉल्ट स्पर्धा के फाइनल मुकाबले में पदक की दावेदारी पेश करेंगी.

लत यह गलत लग गई

आज के दौर में स्मार्टफोन स्टेटस सिंबल बन चुका है. स्कूल गोइंग स्टूडेंट से लेकर 70 वर्ष के व्यक्ति तक के पास इसे देख जा सकता है. लेकिन बिना इंटरनैट के स्मार्टफोन बिलकुल उस बेस्वाद भोजन की तरह है जिस में नमक नहीं होता. इसलिए स्मार्टफोन यूजर्स के फोन में हमेशा इंटरनैट पैक ऐक्टिव मिलता है. इंटरनैट होने से स्मार्ट फोन सिर्फ स्मार्ट फोन नहीं रह जाता बल्कि अलादीन का चिराग बन जाता है. इंटरनैट की मौजूदगी के चलते स्मार्ट फोन की 5 इंच की स्क्रीन पर दुनिया भर के काम किए जा सकते हैं. काम के अलावा स्मार्टफोन पर मौजूद कुछ ऐप्स यूजर्स  के अकेलेपन को दूर करने का काम करती हैं. ये ऐप्स उन्हें उन के उन चहेतों से जोड़ती हैं, जिन को न तो हर वक्त देखा जा सकता है और न ही सुना जा सकता है. इन में सब से अधिक प्रचलित हैं फेसबुक और व्हाट्सऐप.

अति है बुरी

ये ऐसी ऐप्स हैं, जो यूजर को पूरे दिन अपने में उलझाए रख सकती हैं. फोन में इन की मौजूदगी हर 10 मिनट में यूजर्स को अपने फोन पर उंगलियां फिराने पर मजबूर कर देती हैं. देखा जाए तो इस में कुछ भी बुरा नहीं. लोगों से जुड़ना, उन से बात करना बिलकुल बुरा काम नहीं है. लेकिन कहते हैं न, किसी भी चीज की अधिकता नुकसानदायक होती हैं. इसी तरह फेसबुक और व्हाट्सऐप का अधिक इस्तेमाल आप के जीवन से सुखशांती छीन सकता है. इतना ही नहीं आप को आपनों से दूर भी कर सकता है. ऐसे में भले ही आप इंटरनैट की दुनिया में लोगों से घिरे हुए हों लेकिन वास्तविक जीवन में आप तनहा रह जाएंगे. इन दोनों ही सोशल नेटवर्किंग साइट्स की लत का सब से अधिक बुरा प्रभाव मियांबीवी के रिश्ते पर भी पड़ता है. “ परिवार परामर्श केंद्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1 अगस्त, 2014 से 1 सितंबर, 2015 तक के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो सब से अधिक रिश्ते फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसी साट्स को ले कर टूटे हैं.”

वक्त होते हुए भी वक्त नहीं

वर्तमान समय में पतिपत्नी दोनों ही कामकाजी होते हैं. दिनभर तो साथ में वक्त गुजारने का मौका उन्हें मिलता नहीं है और जब शाम को घर पर वे साथ होते हैं, तो आपस में बातचीत करने से अधिक वक्त उन का फेसबुक पर दूसरों की तसवीरें लाइक करने और व्हाट्सऐप पर चैट करने में ही निकल जाता है. जब मोबाइल पर उंगलियां फिरातेफिराते थक जाती हैं, तो टीवी के रिमोट पर अटक जाती हैं. कुछ वक्त टीवी स्क्रीन पर आंखें जमाए रहने के बाद आंखें भी राहत की मांग करने लगती हैं. फिर क्या दोनों मियां बीवी एकदूसरे की तरफ पीठ घुमा कर सो जाते हैं. दूसरे दिन की शुरुआत भी रात में व्हाट्सऐप पर आई लोगों की चैट चैक करते हुए और फेसबुक पर लोगों के नए अपडेट्स देखते हुए शुरु होती है.

इस बाबत मनोचिकित्सक मिनाक्षी मनचंदा कहती हैं, "बड़ी हैरत की बात है, जहां वैज्ञानिक नई तकनीकों के आने से लोगों के वक्त को बचाने का दावा करते हैं, वहीं दूसरी तरफ पतिपत्नी द्वारा रिश्ते में एकदूसरे को वक्त न देने की शिकायतों ने इन दावों को झूठा साबित कर दिया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि लोग स्मार्टफोन, सोशल नेटवर्किंग साइट्स और इंटरनैट को उतनी परिपक्वता से इस्तेमाल नहीं करते  जितना की उन से उम्मीद की जाती है. "

एक समय था जब पूरा परिवार एकसाथ बैठ कर भोजन करता था. तब टीवी होते हुए भी भोजन के दौरान घर के बड़े उसे चलाने की अनुमति नहीं देते थे. ऐसा इसलिए था क्योंकि भोजन के दौरान परिवार के लोग अपनीअपनी बातों को घर के दूसरे सदस्यों के साथ शेयर करते थे. लेकिन अब वक्त बदल चुका है. भोजन करते वक्त यदि टीवी न चल रहा हो, तो खाना हलक के नीचे नहीं उतरता और यदि एक हाथ में मोबाइल पर फेसबुक न खुला हुआ हो तो खाने में स्वाद नहीं आता. जर्नल फिजीशियन, डाक्टर नरेश गुप्ता के अनुसार, "खाना खाते वक्त लोग अकसर लापरवाही करते हैं. खासतौर पर लोग खाने पर ध्यान देने के अतिरिक्त बाकी दूसरी सभी चीजों पर नजर रखते हैं. मगर भोजन करने के कुछ नियम हैं. सब से पहला और महत्वपूर्ण नियम तो यही है कि हर गस्से को अच्छी तरह चबा कर खाना चाहिए लेकिन लोग जल्दबाजी में गस्सा निगल लेते हैं. इससे उन्हें पेट संबंधी पेरशानियों का सामना करना पड़ता है. दूसरा नियम है कि खाना हमेशा ताजा और गरम खाना चाहिए. बाहरी हवा के संपर्क में अधिक समय तक रखा खाना ठंडा और दूषित हो जाता है. यह भी स्वास्थ के लिए अच्छा नहीं है." लेकिन शायद आज की पीढ़ी के लिए यह बात समझ पाना बेहद मुश्किल हो चुका है.

रिश्ते में संवाद की कमी तलाक की जड़

विचार करने वाली बात है कि जो पीढ़ी अपने स्वास्थ्य को सही रखने के लिए भोजन सही प्रकार से करने में लापरवाही कर सकती है,वे अपने रिश्ते की डोर को मजबूत बनाए रखने के प्रयासों में कितनी ढील बरतती होगी?

वैसे रिश्ते कमजोर तब ही पड़ते हैं जब उन में तालमेल की कमी होती है. यह तालमेल संवाद के जरीए सही बैठाया जा सकता है. मगर आज के नौजवानों में ईगो थोक के भाव भरा हुआ है. अपने साथी से किसी उलझी हुई बात को सुलझाने की जगह फेसबुक पर दिमाग खपाना उन्हें अधिक बेहतर लगता है. जबकि एक “कानूनी फर्म स्लाटर एंड गोरडोन के वकीलों के मुताबिक पतिपत्नी के रिश्ते को बिगाड़ने में फेसबुक का सब से बड़ा हाथ है.

अध्ययन के मुताबिक

1. 50% लोग शक के चलते अपने पार्टनर का फेसबुक अकाउंट चोरी से देखते हैं.

2. 25% पतिपत्नी यह मानते हैं कि फेसबुक ने उन की जिंदगी खराब कर दी है. इस के चलते हर हफ्ते उन में झगड़ा होता है.

3. 17% पतिपत्नी में इस लिए झगड़ा होता है क्योंकि उन्होंने अपने पार्टन को फेसबुक पर किसी व्यक्ति से गलत तरह के रिश्ते बनाए देख लिया होता है.

4. 58% लोगों शक के चलते अपने साथी से उन की लागइन डिटेल जान लेते हैं.

वैसे केवल भारत ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी सोशल मिडिया पर जरूरत से ज्यादा ऐक्टिव दंपति के रिश्ते टूटने की कगार पर पहुंच रहे हैं.  च्अमैरिकन एकैडमी औफ मैट्रीमोनियल लायर्स के एक सर्वे से पता चलता है कि यूएसए में 66% दंपति केवल फेसबुक से पार्टनर के अधिक जुड़ाव के चलते टूट रही हैं. आंकड़ों के हिसाब से पिछले कुछ वर्ष में ऐसे मामलों में 80% बढ़त भी हुई है.” दरअसल, इस के पीछे बड़ा कारण शक है और शक के बीज उसी रिश्ते में पड़ते हैं जहां आपसी संवाद कम होता है . अब यदि पति अपनी पत्नी से बात करने से ज्यादा रुचि व्हाट्सऐप पर मौजूद अपनी किसी महिला मित्र से बात करने में लेगा तो पत्नी का शक करना स्वाभाविक है. पतियों के मामले में भी यह बात उसी तरह लागू होती है. पत्नी का सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताना और गैरपुरुषों से ज्यादा चैट करना पति को कतई पसंद नहीं आता और यह स्वाभाविक बात है.

आजादी का गलत फायदा उठाते हैं यूजर्स

दिल्ली हाई कोर्ट में ऐडवोकेट अवधेश कुमार दूबे कहते हैं, "पति दफ्तर के काम में तो पत्नी घर गृहस्थी के काम में व्यस्त रहती है. आजकल तो महिलाएं भी कामकाजी होती हैं. यानी उन पर डबल जिम्मेदारी होती है. वैसे तकनीक ने सब कुछ आसान बना दिया है लेकिन समय की कमी अभी भी बरकरार है. उस पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स मियाबीवी में और भी अधिक कम्यूनिकेशन गैप को बढ़ा रही हैं. ऐसे में संबंधों की डोर का कमजोर पड़ना अचंभे की बात नहीं है. "

अवधेश एक केस के बारे में बताते हैं, "एक बार पति केवल इस लिए अपनी पत्नी से तलाक लेना चाहता था क्योंकि महिला ने अपनी कुछ ऐसी तसवीरों को फेसबुक पर अपलोड कर दिया था जो उस के पति को पसंद नहीं थीं. वहीं महिला पति पर आरोप लगा रही थी कि पति पूरे दिन फेसबुक और व्हाट्सऐप पर लगा रहता है. कुछ पूछो तो बस हां या न में जवाब देता है. अकेलेपन के कारण यह लत अब महिला को भी लग चुकी है. अपनी तसवीर फेसबुक पर अपलोड करने के पीछे महिला का इरादा बस इतना था कि लोग उस की तसवीर पर कमैंट्स करें और उसे दूसरे लोगों से अपनी बातों को शेयर करने का मौका मिले, जो मौका उस का उसे नहीं देता है. "

देखा जाए तो, यह व्यक्तिगत आजादी का युग है. महिला हो या पुरुष अपने लिए अलगअलग फैसले ले सकता है. लेकिन पतिपत्नी को एक दूसरे की गरिमा और जरूरतों को ध्यान में रखना होता है. इस बात को आज की जैनरेशन ज्यादा तवज्जो नहीं देती. आज की पीढ़ी के लोग अपने मनोरंजन और अकेलेपन को दूर करने का रास्ता तो खोज लेते हैं लेकिन रिश्ते को बेहतर बनाने के उपाय खोेज पाना उन के लिए बेहद मुश्किल होता है.

मनोचिकित्सक मिनाक्षी कहती हैं, "फेसबुक एक फेकवर्ल्ड है. यहां लोग दूसरों की जिंदगी में झांकने के लिए बैठे रहते हैं. ऐसे लोगों से अपनी निजि जिंदगी की बातों को शेयर करना मुसीबत मोल लेने जैसा है. खासतौर पर अपनी तसवीर सोच समझ कर शेयर करें."

वैसे आजकल सैल्फी का ट्रैंड है. इस ट्रैंड की आंधी में अंधे लोग अपनी तसवीर विचित्र चेहरे बना कर अपलोड तो कर देते हैं लेकिन फिर इन की खिल्ली भी उड़ती है. हो सकता है, आप के पार्टनर को यह पसंद न आए और वो आप को ऐसा करने से रोके. इस बात पर लड़ने की जगह एक बार उस की भावनाओं को समझे. आप का पार्टनर आप की आजादी नहीं छीन रहा बल्कि आप को एक ऐसा काम करने के लिए मना कर रहा है जो निरार्थक है और आप को हंसी का पात्र बना रहा है. डाक्टर मिनाक्षी इस बाबत कहती हैं, "मनोचिकित्सकों का मानना है कि 1 दिन में 8 से अधिक बार कोई व्यक्ति सैल्फी लेता है, तो वह सैल्फाइटिस डिसऔर्डर का शिकार होता है. इस के अतिरिक्त फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसी सोशल नेटवर्किंस साइट्स पतिपत्नी में ससपीशियसनैस को बढ़ा रही है जिस के चलते लोग डिजयूजनल डिसऔर्डर के शिकार हो रहे हैं. पतिपत्नी के रिश्ते के लिए दोनों ही बीमारियां खतरनाक साबित हो सकती हैं. इन दोनों के चलते पतिपत्नी का रिश्ता टूट भी सकता है."

फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स लोगों को आपस में जोड़ने और खाली वक्त में एक दूसरे का टाइम पास करने के लिए बनी हैं. इसे नए लोगों के बारे में जानकारी एकत्र की जा सकती है और इस में कुछ भी गलत नहीं है. मगर निजि जीवन में इन सोशलनेटवर्किंग साइट्स का दखल और संबंधों पर इस का हावी होना रिश्ते को बिखेर सकता है.

कुछ घटनायें:

जुलाई 2016- गाजियाबाद निवासी एक दंपति में फेसबुक के जरीए प्रेम विवाह हुआ. इंजीनियर पति और बैंक मैनेजर पत्नी अपनेअपने काम में व्यस्त रहते हैं. घर में कदम रखने के बाद भी दोनों के पास एकदूसरे के लिए समय नहीं होता. मगर अपने मोबाइल पर फेसबुक वाल औैर व्हाट्सऐप चैक करने का समय उन के पास भरपूर होता है. ऐसे में प्रेम विवाह में प्रेम खत्म हो जाता है और कुछ ही महीनों में विवाह भी नहीं बचता. दोनों ही अब तालाक लेना चहते हैं.

29 फरवरी 2016- लुधियाना निवासी एक व्यापारी ने इस बात को साबित करने के लिए कि उस की पत्नी उसे धोखा दे रही है, पत्नी के व्हाट्सऐप और फेसबुक की चैट डिटेल्स महिला पुलिस थाने को सौंप दी. इस के जवाब में महिला ने भी अपने पति की दूसरी महिलाओं से हुई चैट डिटेल्स की जानकारी पुलिस को दे दी.

30 अप्रैल 2013- बीकानेर की एक दंपति का प्रेम फेसबुक पर शुरु हुआ और फिर बात शादी तक पहुंच गई. शादी के 48 घंटे बाद ही दोनों को लगा कि उन के पास फेसबुक और व्हाट्सऐप पर बात करने का तो समय है मगर जब वे आमने सामने होते हैं तो एक दूसरे को बोर करते हैं. बस फिर क्या था 2 दिन में ही बात तलाक तक पहुंच गई.

18 मई 2012- एक महिला ने केवल इसलिए तलाक की अर्जी कोर्ट में दे दी क्योंकि उस के पति ने फेसबुक पर अपना स्टेटस शादी के बाद भी सिंगल ही रखा था. वहीं पति ने कहा कि वो अपना स्टेटस बदलना भूल गया था. कोर्ट ने दंपति को 6 महीने की काउंसिलिंग के निर्देश दिए हैं.

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