Download App

नोटबंदी से हारी कुश्ती

8/11 की नोटबंदी से आम आदमी परेशान है. उद्योगधंधे चौपट हैं, कारोबार ठप हैं, किसान परेशान है और अब इस का असर खेलों पर भी पड़ने लगा है. पेशेवर कुश्ती लीग यानी पीडब्लूएल का दूसरा सत्र 15 दिसंबर से शुरू होने वाला था लेकिन अब यह लीग 2 जनवरी से 19 जनवरी तक चलेगी. कुश्ती से कमाई करने वाले कारोबारियों को यह एहसास हो गया है कि लोग 100-100 रुपए के लिए परेशान हैं, ऐसे में भला इस माहौल में कुश्ती से कमाई कैसे होगी.

मनोरंजन, फिल्म इंडस्ट्री और पर्यटन उद्योग पर पड़ी नोटबंदी की मार का रोना कुछ लोगों ने रोया पर खेलों पर पड़ी मार पर खामोशी न केवल दुखद है बल्कि हैरान कर देने वाली है क्योंकि प्रो कुश्ती लीग अपने पहले ही दौर में खासी सराही व पसंद की गई थी. यह साल कुश्ती के लिए उपलब्धियों भरा रहा था. इसी वर्ष रियो ओलिंपिक में महिला पहलवान साक्षी मलिक ने पदक जीत कर भारत की लाज बचाई थी.

भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण सिंह सहित कुश्ती लीग से जुड़ी तमाम एजेंसियां और प्रायोजक 15दिसंबर को ले कर खासे उत्साहित थे क्योंकि इस में भाग लेने वाली टीमों में इजाफा हुआ था और आयोजनों की संख्या भी 5 से बढ़ा कर 8 कर दी गई थी लेकिन अब पिछले साल की तरह 6 टीमें ही हिस्सा लेंगी. इतना ही नहीं लीग में इस दफा कई अंतर्राष्ट्रीय पहलवानों की पहलवानी देखने के लिए कुश्ती प्रेमियों को थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा पर कई ऐसे कुश्तीप्रेमी भी होंगे जो टिकट खरीद कर पहलवानी को सामने से देखना चाह रहे होंगे पर अब इस नोटबंदी से उन्होंने अपना इरादा भी बदल दिया होगा.

वैसे भी लोगों में कुश्ती करने और उस से ज्यादा उत्साह कुश्ती देखने का शौक रहा है लेकिन अब तो इस की लोकप्रियता से बड़ी प्रोफैशनल मार्केट तैयार हो गई है, इसलिए  पिछले वर्ष लीग से कोई 3 करोड़ दर्शक जुड़े थे जिन की संख्या इस लीग से दोगुनी हो जाने की उम्मीद थी पर नोटबंदी के फैसले ने सारे उत्साह और तैयारियों पर वक्तीतौर पर पानी तो फेर ही दिया.

फिर भी 30 फीसदी कालाधन बाहर नहीं आएगा

सरकार ने कालेधन को बाहर निकालने तथा फर्जी या नकली नोटों के प्रचलन को बंद करने के लिए 8नवंबर को 500 तथा 1,000 रुपए के नोट प्रचलन से बाहर कर दिए तो देशभर में नकदी की भारी किल्लत हो गई. लोग बैंकों में नोट बदलने के लिए घंटों कतारों में रहने लगे लेकिन अपनी परेशानी की परवाह किए बिना वे यही कह रहे हैं कि अच्छा है, अब कालाधन बाहर निकल आएगा.

लोगों की इस सोच के प्रतिकूल सरकारी क्षेत्र के सब से बड़े बैंक स्टेट बैंक औफ इंडिया यानी एसबीआई के एक शोध से स्पष्ट हुआ है कि नोटबंदी के बावजूद 25 से 30 फीसदी काला पैसा बाहर नहीं आएगा. इस की वजह है कि लोग आयकर विभाग के डर से सारा पैसा बैंक खातों में जमा नहीं करेंगे.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मार्च, 2016 तक 500 और 1,000 रुपए के नोटों की वैल्यू कुल करेंसी की 24.4 फीसदी थी लेकिन प्रचलन में ये दोनों नोट कुल नोटों के 86.4 फीसदी के स्तर पर थे. मतलब कि सारा कारोबार बड़े नोटों में हो रहा था. मार्च, 2016 तक 500 और 1,000 के 14 हजार 180 अरब रुपए मूल्य की मुद्रा बाजार में थी. उस के बाद सरकार ने लोगों से कालाधन उजागर करने को कहा और30 सितंबर तक उस की आखिरी तिथि तय की. उस अवधि में 65 हजार 250 करोड़ रुपए का कालाधन बाहर निकला जिस में से 30 हजार करोड़ रुपए कर के रूप में सरकार को मिले.

लेकिन एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1978 में जब इसी तरह से नोट बंद कर के कालाधन वापसी का आकलन हुआ या तो पता चला था कि 25 प्रतिशत कालाधन वापस नहीं लौटा. शोध में कहा गया है कि इस बार भी काला धन 25 से 30 फीसदी तक बाहर नहीं आ सकेगा. सरकार ने बैंकों पर सख्ती से लोगों के नोटबंदी के दौरान जमा किए गए पैसे का हिसाब रखने को कहा है ताकि जिस भी खाताधारक का विवरण मांगा जाए वह तत्काल उपलब्ध कराया जा सके. मतलब साफ है कि सरकार नहीं मानेगी और कालाधन हर हाल में लोगों को बाहर करना ही होगा.

कैसे रुकेगा खिलाड़ियों का यौन शोषण

ब्रिटेन के 4 फुटबौल खिलाड़ियों ने अपने कोच बेरी बेनेल पर रेप का आरोप लगाया है. खिलाड़ियों का कहना है कि ऐसा तब हुआ जब उन्होंने अपने फुटबौल कैरियर की शुरुआत की थी. ये खिलाड़ी हैं स्टीव वौल्टर्स, एंडी वुडवर्ड, पौल स्टुअर्ट और डेविड व्हाइट. इन खिलाड़ियों का आरोप है कि बेनेल कमजोर खिलाड़ियों का चुनाव करते थे और उन का यौनशोषण करते थे.

यह कतई हैरानी की बात नहीं है क्योंकि देश हो या विदेश, अपनी पोजीशन का दुरुपयोग कर शोषण करने की मानसिकता के लोग हर जगह मिल जाएंगे. इस तरह के लोग अपने ओहदे का फायदा उठाते हैं और यह भूल जाते हैं कि उस खिलाड़ी का क्या होगा जो अभी अपनी कैरियर की शुरुआत करने वाला है. क्या वह खिलाड़ी कभी बेहतर परफौर्मेंस दे पाएगा. उस के दिमाग में खेल से ज्यादा यही सब बातें घूमती रहेंगी. आज भी ऐसे कई खिलाड़ी होंगे जिन का यौनशोषण किया जा रहा होगा और वे अपने कैरियर को बचाने के लिए कुछ नहीं बोल पा रहे होंगे.

हाल ही में भारतीय महिला फुटबौल टीम की पूर्व कप्तान सोना चौधरी ने अपनी किताब ‘गेम इन गेम’ में लिखा है कि टीम के कोच व सचिव महिला फुटबौल खिलाड़ियों को कई चीजों के लिए समझौता करने पर मजबूर करते थे. लड़कियों को मानसिक रूप से प्रताडि़त किया जाता है. सोना चौधरी ने यह भी खुलासा किया कि भारतीय महिला फुटबौल टीम की खिलाड़ी रेप के डर से संबंध बना लेती थीं.

हरियाणा की रहने वाली सोना चौधरी ने तो इस तरह के खुलासे कर साहसिक कदम उठाया जरूर है पर यह कदम यदि उसी समय उठाया गया होता तो शायद इस का असर महकमे में ज्यादा होता. पर ऐसा कम ही होता है क्योंकि उस समय हो सकता है कि खिलाड़ियों को अपने कैरियर की ज्यादा चिंता रहती होगी. इस तरह की बातें आप अपने मातापिता से नहीं कर सकते. ऐसे में भला कौन खिलाड़ी अपना कैरियर चौपट करना चाहेगा. इसलिए बेहतरी इसी में है कि चुप रहो. यही सोच कर खिलाड़ी चुप बैठ जाते हैं.

पर सवाल उठता है कि इस तरह के शोषण को आखिर रोकेगा कौन? जिन को खिलाड़ियों को तराशने का जिम्मा दिया जाता है वही लोग इस मानसिकता से हट नहीं पाते हैं और जहां उन्हें खेल के प्रति समर्पण दिखाना चाहिए वहां वह यौनशोषण करने में अपनी पावर दिखाने लगते हैं.

जनता का धन

एक सरकार के मौलिक और मुख्य कर्तव्यों में नागरिकों की संपत्ति की रक्षा करना भी है. आम नागरिक अपनी रक्षा खुद नहीं कर पाता, इसलिए वह राजाओं और सरकारों की शरण में जाता रहा है ताकि टैक्स के बदले उस के परिवार की सुरक्षा हो, उस की संपत्ति को कोई लूटे नहीं, उसे शांति से रहने दिया जाए.

8 नवंबर, 2016 को एक भाषण से नरेंद्र मोदी ने देश की 120 करोड़ जनता की संपत्ति लूट ली. लोगों की जेबों में या अलमारियों में रखे 500 और 1,000 रुपए के नोट खुलेआम लूट लिए गए. वे कागज के टुकड़े रह गए. उस के बाद भिखारियों की तरह देश बैंकों के आगे जा खड़ा हुआ और इन कागज के टुकड़ों के बदले दो वक्त की रोटी के लायक पैसे लेने में लग गया. लंबी लाइनों में उस ने सर्दीगरमी सही, बारिश सही, और अंत में अपने हाथ में लिए, हिटलरी सर्टिफिकेट की तरह जारी, पहचानपत्र को दे कर भीख में अपने पैसे का छोटा सा हिस्सा पाया.

ऐसा लग रहा था मानो सड़क पर लूटा जा रहा व्यक्ति लुटेरे से कह रहा हो, अच्छा भाई, पूरा पर्स रख लो पर 20 रुपए तो दे दो ताकि बस से घर पहुंच सकूं. सरकार इस कदम को चाहे जितना अनिवार्य कहती रहे, है यह लूट ही. जो पैसा सरकार को, जनता जब मांगें तब देना था, उसे देने से उस ने इनकार कर दिया और एक जबान से उसे सरकार का पैसा मान लिया गया. लगता है इस देश का संविधान अब प्रधानमंत्री की जबान बन गई है जो जब चाहें अपनी मरजी का आदेश जारी कर सकते हैं. कल को प्रधानमंत्री अभिव्यक्ति की आजादी छीन सकते हैं, बराबरी का हक छीन सकते हैं, गिरफ्तारी से बचने के कानून का हक छीन सकते हैं अगर उन के पास कोई बहाना हो. इंदिरा गांधी अपने शासनकाल में ऐसा कर चुकी हैं.

साफ है कि इस देश की जनता के खून में लोकतंत्र के गुण अभी हैं ही नहीं. धर्म, जाति, पाखंड, भाषा, क्षेत्र, अशिक्षा, गरीबी, बीमारी से ग्रस्त देश की जनता को अपने जीने से ही इतनी फुरसत नहीं कि वह लोकतांत्रिक अधिकारों की सोच सके. उसे फर्क नहीं पड़ता कि शासक हिंदू है, पठान है, मुगल है, सिख है, मराठा है, अंगरेज है या उस के वोट से चुना कांग्रेसी, समाजवादी, कम्यूनिस्ट या भाजपाई है.

यहां की जनता को बस 4 रोटियां मिलें, न मिलें तो 2 ही काफी हैं. उसे देश की राजनीति, भ्रष्टाचार, मनमानी, जबरन वसूली, न्यायशाला में अन्याय की चिंता नहीं है. वह अपने हकों को न जानती है, न जानना चाहती है और न ही उन के न होने के कारण होने वाले नुकसान को वह पहचानती है. उसे लगता है  जो मिल जाए वही उस के भाग्य में है.

अगर पश्चिमी देशों ने उन्नति की है तो इसलिए कि वहां समय समय पर जनक्रांतियां हुई हैं. चीन में तियानमेन स्क्वायर पर बैठे युवाओं को कुचल दिया गया पर बाद में सरकार संभल गई. फ्रांस में क्रांतियों के कई दौर हुए. इंगलैंड में जनाक्रोश सड़कों पर सैकड़ों बार उतरा. अमेरिका में अश्वेत बराक ओबामा राष्ट्रपति इसलिए बन पाए कि मार्टिन लूथर किंग ‘वी कैन डू इट’ मार्च निकाला.

संवैधानिक हकों को छोड़ना देश की जनता की सब से बड़ी भूल होगी. अपनी संपत्ति के छीन लिए जाने और उस के छोटे हिस्से को पाने के लिए लाइनों में लगना व गिड़गिड़ाना अपने अधिकारों को संविधान की किताबों को जलाने से पैदा हुई आग में भाषणी घी डालना है.

नोटबंदी से पेटीएम के कारोबार को लगे पंख

नोटबंदी यानी सरकार के 500 तथा 1,000 रुपए के नोटों को प्रचलन से बाहर करने के निर्णय के तत्काल बाद औनलाइन भुगतान कंपनी पेटीएम, मोबीक्विक आदि के अचानक अखबारों में बड़ेबड़े विज्ञापन देखने को मिले. कई लोग समझ ही नहीं पाए कि इन का इस्तेमाल किस तरह करना है. मजबूरी थी तो बड़ी संख्या में लोगों ने मोबाइल रिचार्ज कराने, बिजली के बिल के भुगतान आदि के लिए पेटीएम का इस्तेमाल भी सीख लिया. एकाएक पेटीएम के जरिए भुगतान कराने वालों की संख्या करोड़ों में पहुंच गई.

कंपनी ने भुगतान में मिलने वाले औफर घटा दिए. पेटीएम की लोकप्रियता बढ़ती गई और चाय की दुकानों पर भी लोग पेटीएम बारकोड लगा कर चाय बेचने लगे. बस, हवाईजहाज, सिनेमा आदि के टिकट बेचने के साथ ही कंपनी ने लोगों की सुविधा के लिए भी सामान्य कारोबारियों को भी बारकोड दिए.

जल्द ही कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शेखर शर्मा ने घोषणा की कि व्यापारियों के यहां लोग अपना डैबिट कार्ड या क्रैडिट कार्ड स्वाइप करा कर सामान खरीद सकते  हैं. पेटीएम की इस पहल से खरीदारों की सुविधा बढ़ गई और पेटीएम का कारोबार भी बढ़ गया. शेखर शर्मा का कहना है कि कार्ड से भुगतान पर महज 1.2 प्रतिशत चार्ज लिया जाएगा. उन का कहना है कि प्राथमिकता पैसा कमाने की नहीं बल्कि मार्च तक 50 लाख कारोबारियों को अपने इस प्लेटफौर्म से जोड़ने की है.

कारोबारियों के लिए मोबाइल पर एक बटन का इस्तेमाल करने को कहा गया है, जिस के जरिए खरीदार के बैंक खाते का पैसा कारोबारी के खाते में जमा हो सकेगा. नोटबंदी के बाद पेटीएम महत्त्वपूर्ण बटुआ बन चुका है और उस का उपयोग तेज रफ्तार से बढ़ा है. हर हाथ में मोबाइल होने के कारण मोबाइल की महज एक ‘की’दबा कर भुगतान की सुविधा देने की व्यवस्था से पेटीएम के कारोबार को पंख लग गए हैं.

नंदनवन जंगल सफारी : रोमांच व मनोरंजन का नया ठौर

प्रकृति की गोद में बसा हुआ छत्तीसगढ़ प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है. देश का हृदय स्थल होने के कारण छत्तीसगढ़ अनेक ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक दर्शनीय स्थलों, वन्यजीवन और आदिवासी मिश्रित पारंपरिक समृद्ध संस्कृति से लबरेज है. हाल ही में  प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर एवं उन्नति की ओर अग्रसर छत्तीसगढ़ के नया रायपुर के दक्षिणी छोर पर खंडवा गांव के नजदीक ‘नंदनवन जंगल सफारी’ को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया. एशिया के सब से बड़े मानव निर्मित जंगल सफारी में वे सभी वन्यजीव हैं, जिन्हें देखने के लिए लोग अकसर चिडि़याघर जाया करते हैं. जंगल सफारी में ‘बाघ सफारी’ (टाइगर सफारी), भालुओं की ‘बीयर सफारी’  और ‘लायन सफारी’ का रोमांचकारी अनुभव लिया जा सकता है. नया रायपुर में करीब 800 एकड़़ के क्षेत्र में 200 करोड़ रुपए की लागत से यह मानव निर्मित जंगल सफारी बनी है. इस में वन्यजीवों को प्राकृतिक वातावरण मुहैया कराया गया है.

नया रायपुर के दक्षिणी छोर पर खंडवा गांव के नजदीक लगभग 203 हैक्टेयर के विशाल क्षेत्रफल में बना यह जंगल सफारी एशिया महाद्वीप का सब से बड़ा मानव निर्मित जंगल सफारी होगा, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्राकृतिक मनोरंजन स्थल के साथसाथ राज्य में वन्यप्राणी अनुसंधान के रूप में भी विकसित किया जाएगा. इस सफारी में बहुमूल्य वन संपदा के लिए प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ के वन्यजीवन का प्रतिरूप देखने को मिलेगा.

 इस जंगल सफारी में शेर, बाघ समेत सांभर, चीतल, कोटरी, नीलगाय, काला हिरण जैसे वन्यजीवों को निर्भय हो कर अपने इलाके में विचरण करते देखने का आनंद लिया जा सकता है. इस के लिए बंद गाडि़यों की पर्याप्त व्यवस्था है. इस जंगल सफारी के विशाल हरेभरे प्राकृतिक पर्यावरण में पर्यटकों और पर्यावरण प्रेमियों को एक अद्भुत वातावरण मिलेगा. जंगल सफारी के बनने से राज्य में न केवल पर्यावरण संरक्षण और सुरम्य वातावरण का निर्माण होगा, बल्कि वन पशुओं के साथ नजदीकी का एहसास भी होगा.

सफारी भ्रमण के लिए जंगल सफारी 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहेगा. टिकट जंगल सफारी में स्थित काउंटर से प्रात: 9 बजे से लिया जा सकता है. टिकट काउंटर  से आगामी 10 दिनों तक का सफारी भ्रमण के लिए टिकट लिया जा सकेगा. पर्यटकों के लिए जंगल सफारी सोमवार को बंद रहेगा. जंगल सफारी भ्रमण के लिए एसी व नौन एसी वाहनों के भी इंतजाम किए गए हैं.           

कैसे जाएं

छत्तीसगढ़ देश के सभी प्रमुख नगरों से सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है. यह रेलमार्ग द्वारा विशाखापट्टनम, हावड़ा, इलाहाबाद व मुंबई से जुड़ा है. अगर आप हवाईजहाज से यात्रा करते हैं तो नागपुर, दिल्ली, मुंबई व भुवनेश्वर आदि से रायपुर के लिए उड़ानें सुलभ हैं.

कठघरे में अकेला युवावर्ग क्यों?

बच्चों का उच्छृंखल और मनमाना व्यवहार, उन के द्वारा मातापिता की अनदेखी करना और अपने कर्तव्य के प्रति कतराना, बुढ़ापे में मातापिता की देखभाल करने से बचने की कोशिश करना या उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ देने जैसी शिकायतें आजकल के युवावर्ग पर लगाई जाती हैं. व्हाट्सऐप व फेसबुक जैसी सोशल नैटवर्किंग प्लेटफौर्म पर युवावर्ग को ले कर अनेक प्रकार की निराशाजनक सामग्री रोज ही पढ़ने को मिलती रहती है, जिन्हें पढ़ कर मन युवावर्ग के प्रति कसैला हो उठता है.

पर क्या बच्चों को यों कठघरे में खड़ा करना उचित है? क्या इस के लिए अकेले बच्चे ही जिम्मेदार हैं? क्या बच्चों के बिगड़ते स्वभाव औैर गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के लिए हमारा समाज, बदलती परिस्थितियां और मातापिता भी जिम्मेदार नहीं हैं?

हमारी बदलती सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था और मातापिता की जीवनशैली और उन के पालनपोषण का तरीका ही एक पृष्ठभूमि तैयार कर रहा हैं. हम इस तथ्य पर विचार नहीं कर रहे हैं कि हम किस तरह की और कितनी गुणवत्तापूर्ण परवरिश कर रहे हैं अपने बच्चों की?

आज एकल परिवार में पल रहे बच्चों को भरेपूरे परिवार का वह संरक्षण और लाड़दुलार नहीं मिल रहा है जो संयुक्त परिवार में मिलता था. एकल परिवारों के प्रचलन ने बच्चों से दादादादी, ताऊताई, चाचाचाची व बूआफूफा सरीखे रिश्तों को छीन लिया है. जो शादीब्याह आज से कुछ वर्षों पूर्व तक पारिवारिक सौहार्द्र व मेलमिलाप और आपसी सांमजस्य बढ़ाने और मिलजुल कर रहने का अवसर बनते थे, रिश्तों को मजबूती प्रदान करते थे, वे लुप्तप्राय हो कर दिखावे और प्रतियोगिता का क्षेत्र बनते जा रहे हैं.

अभिभावक जन्म लेते ही बच्चों के सिर पर शिक्षा का चाबुक ले कर सवार होते जा रहे हैं, उस शिक्षा का जो हमारे बच्चों को न तो सुशिक्षित कर रही है और न ही सुसंस्कृत कर रही है. केवल अक्षरों के किताबी ज्ञान से परिचित करा रही है. नैतिकता के पाठ से तो आज की शिक्षा का दूरदूर तक कोई नाता नहीं रह गया.

जिस उम्र में बच्चों को अपनों की एक गोदी से दूसरी गोदी में घूमना चहिए, वही बच्चे आज आंखें मलते भारी बैग लाद कर बस स्टौप पर खड़े कर दिए जाते हैं. अब इस बात की ओर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है कि नंबर उन के बेटे के ज्यादा अच्छे आए हैं या पड़ोसी के बच्चे के. फर्राटेदार अंगरेजी बेटा बोल रहा है या पड़ोसी का. बेटे ने लड़खड़ाते दादाजी  को सहारा दिया या नहीं या चश्मा ढूंढ़ती दादी को चश्मा ढूंढ कर  दिया या मुझे देर हो रही है, कह कर निकल गया. इन सब नैतिक बातों पर तो हमारी नजर नहीं है.

पढ़ाएं जीवन का पाठ

कभी पिता औैर बच्चे दोनों को एकदूसरे के घर में होने का एहसास होता था. पर आज अधिकांश घरों में क्या होता है? औफिस से आ कर पिता क्या करते हैं? घर में घुसते ही बच्चों के साथ कुछ मीठे पल बिताने के बजाय टैलीविजन का रिमोट ढूंढ़ते हैं. अपनेअपने कमरों और अपनेअपने मोबाइल ओर लैपटौप में व्यस्त हो जाते हैं. बच्चों को इस बात की भनक तक नहीं लगती कि उन के पिता औफिस से घर आए हैं या नहीं.

मां के आंचल में विशाल पाठशाला और आरामगाह बसा होता है. मां ही बच्चे की पहली पाठशाला होती है. पर आज बच्चे मां की उस पाठशाला से वंचित होते जा रहे हैं. बच्चों की बाल्यावस्था कै्रच में या फिर बंद घर की खिड़की से मां का रास्ता देखते व्यतीत हो रही है. आज जब मां के पास बच्चे के लिए समय नहीं रह गया है तो समाज में युवावर्ग का भटकना तय है. बच्चों को मातापिता कै्रच में डाल कर उन का मासूम बचपन आहत कर रहे हैं और बाद में जब उन्हें वही बच्चे ‘ओल्डऐज होम’ भेजते हैं तो फिर किस बात का रोना?

अपनी सुविधा के लिए मातापिता स्वयं ही अपने बच्चों को रिश्तों में घुलनेमिलने का अवसर नहीं प्रदान करते हैं. जिन बच्चों को रिश्तों के बीच समय व्यतीत करने का अवसर कम मिलता है, वे रिश्ते निभाने की कला भी नहीं सिख पाते हैं और भविष्य में यह मातापिता के लिए मुश्किलें खड़ी करता है. हर समय अच्छे अंक, हौबी क्लासेस और कोचिंग क्लासेस की अंधी रेस में अपने बच्चों को दौड़ाने के बजाय उन में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की ज्योति जलाने की कोशिश करनी चाहिए. बच्चों को बड़ा आदमी बनाने के चक्कर में अच्छा आदमी बनाने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जबकि बच्चों को जीवन का पाठ पढ़ाना बहुत आवश्यक है. इस का ज्ञान विद्यालयों में नहीं दिया जाता.

बच्चों को यह बताना भी जरूरी है कि जितने महत्त्वपूर्ण आज हम एकदूसरे के लिए हैं, उतने ही महत्त्वपूर्ण जीवनपर्यंत रहेंगे. उन्हें सहीगलत का जो पाठ हम पढ़ा सकते हैं वह आज का इंटरनैट नहीं सिखा सकता. पहले बच्चे एक सवाल का जवाब पूछने मातापिता के पास जाते थे तो उन्हें उस सवाल के जवाब के साथ ही 10 अन्य सहीगलत बातों का ज्ञान दे दिया जाता था. पर आज बच्चे गूंगेबहरे की तरह हर सवाल का जवाब इंटरनैट पर ढूंढ़ लेते हैं. साथ में 10 गलत बातें सीख लेते हैं अलग.

बच्चों को संवेदनहीन बनाने और उन्हें रिश्तेनातों से दूर कर देने में आज के विद्यालय भी अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं. विद्यालय अपनी अच्छी छवि बनाने और मोटी कमाई की होड़ में किस विद्यालय का परिणाम 100 प्रतिशत गया, किस विद्यालय के सब से अधिक बच्चों ने 90 प्रतिशत से अधिक अंक पाए, किस विद्यालय के बच्चों का बड़ी संख्या में आईआईटी और पीएमटी में चयन हुआ, यह विद्यालयों की रेटिंग के मापदंड बन गए हैं इस का खामियाजा बच्चों और समाज को भुगतना पड़ रहा हैं.

गुणवत्तापूर्ण परवरिश

विद्यालय प्रशासन का एकमात्र उद्देश्य यह रह गया है कि उन के विद्यार्थी इतनी पढ़ाई करें कि परिणाम घोषित होने पर शहर में नंबर वन पर उन के विद्यालय का नाम आए. इस के लिए वे अपने विद्यार्थिंयों की क्षमता की अनदेखी कर उन्हें पढ़ने में झोंक रहे हैं. त्योहारों की छुट्टियां या तो रद्द कर देते है या अतिरिक्त कक्षा के बहाने खोज लेते हैं. शादीब्याह या किसी पारिवारिक आयोजन पर छुट्टी के लिए अवकाश पत्र दिए जाने पर उसे स्वीकार नहीं किया जाता है. छात्रों के जीवन से सुकून छीन कर बचपन से उन के मन में केवल प्रतियोगिता की भावना भरते जा रहे हैं.

जब बेटे की विदेश में नौकरी लगती है तब मातापिता बहुत गौरवान्वित महसूस करते हैं. बड़े गर्व के साथ लोगों को बताते हैं कि मेरा बेटा विदेश में हैं किंतु उस समय वे यह भूल जाते है कि विदेश में रचबस चुके उन के ये बच्चे  जरूरत पड़ने पर उन की सेवा के लिए हाजिर नहीं हो पाएंगे.  बच्चों के लिए अपनी बसीबसाई गृहस्थी और नौकरी छोड़ कर वापस आना इतना आसान नहीं होता. ऐसे में बच्चे मातापिता की देखभाल के लिए वहीं बैठे अन्य विकल्प तलाशना शुरू कर देते हैं. तब मातापिता के हाथ उन के उच्च शिक्षा प्राप्त उच्च पदासीन बेटों का संरक्षण नहीं आता, बल्कि सिर्फ पछतावा आता हैं.

युवा तो कल्पनाशील होते हैं. ऊंचे सपने देखना औैर ऊंची उड़ान भरना ही उन का स्वभाव होता है. पर मातापिता का जीवन तो अनुभवों पर आधारित होता है. उन्हें अपने बच्चों को सीख देनी चाहिए कि अपनी धरती अपना देश ही हमें सब कुछ देता है.

बच्चों की गुणवत्तापूर्ण परवरिश अत्यंत आवश्यक है. यदि बच्चे के जीवन में इस का अभाव रह जाता है तो उस का खामियाजा बुढ़ापे में मातापिता को ही भुगतना पड़ता है. यदि मातापिता अपने व्यवहार से अपने बच्चों के समक्ष आदर्श स्थापित करते हैं तो वे मूल्य अपनेआप ही बच्चों में स्थांनातरित हो जाते हैं. इसलिए यह आवश्यक  है कि जिन मूल्यों की तलाश हम अपने बच्चों में करना चाहते हैं वह अपने अंदर अवश्य रोपित करें. कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आज बच्चों ओर युवाओं के व्यवहार में परिवर्तन आया है तो उस के लिए हमारी बदली सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियां भी जिम्मेदार हैं. हमें चाहिए कि इन बातों के लिए युवाओं को दोषी ठहराने के बजाय पारिवारिक जीवन को खुशहाल रखने और सामाजिक असंतोष को कम करने के अपने कर्तव्यों को भी समझें.

नोटबंदी से शेयर बाजार अस्थिर हुआ

देश में नोटबंदी की घोषणा के बाद स्वाभाविक रूप से शेयर बाजार पर इस का विपरीत असर रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 8 नवंबर को अचानक की गई नोटबंदी की घोषणा का बौंबे स्टौक ऐक्सचेंज सूचकांक पर जबरदस्त असर रहा. सूचकांक झूले की तरह झूलता रहा और कई बार तो 600 अंक तक की भारी गिरावट पर बंद हुआ. रुपया भी इस दौरान रिकौर्ड स्तर तक गिरा और यह 69 रुपए प्रति डौलर के स्तर तक पहुंच गया. इन सब स्थितियों के बावजूद बाजार में अचानक कई बार तेजी देखी गई और 22नवंबर को सूचकांक लगातार हर दिन की गिरावट से तेजी पर बंद हुआ.

इस के अगले दिन भी बाजार में यही सिलसिला जारी रहा. हालांकि सूचकांक इस दौरान बढ़त पर ज्यादा देर तक टिक नहीं सका और गिरावट का रुख कर गया. फिर भी बाजार 26,000 अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर के आसपास ही बना रहा. वैश्विक बाजारों का भी इस दौरान रुझान अमेरिका में नए राष्ट्रपति के विरुद्ध कई जगह हुए प्रदर्शनों के कारण तथा उन की नीतियों को ले कर अटकलों की वजह से बाजार अस्थिर रहे. इस दौरान 30 शेयरों वाले नैशनल स्टौक एक्सचेंज  यानी निफ्टी में भी गिरावट का रुख रहा. बाजार पर टाटा समूह के अध्यक्ष साइरस पालोनजी मिस्त्री को हटाए जाने की घोषणा का भी प्रभाव रहा.

ग्वादर-चाहबार शतरंजी चालों के मोहरे

पाकिस्तान और भारत के बीच बंदरगाहों को ले कर शीतयुद्ध चल रहा है. पाकिस्तान ने भारत को घेरने की योजना के तहत चीन की मदद से ग्वादर बंदरगाह बनाया है. सामरिक तौर पर अहम माने जाने वाले पाकिस्तान के इस बंदरगाह पर पाकिस्तान और चीन दोनों युद्धपोतों के बेड़े  तैनात करेंगे. पिछले दिनों पाकिस्तान के आला अफसरों ने यह घोषणा की. ग्वादर को 3 हजार किलोमीटर लंबा गलियारा चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ता है. इस से चीनी नौसेना की अरब सागर तक पहुंच आसान हो जाएगी. इस की सुरक्षा के लिए चीन ने पाकिस्तानी नौसेना के साथ मिलकर रणनीति तैयार की है. विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक गलियारे से चीन और पाकिस्तान दोनों की सैन्य क्षमता में इजाफा होगा.

ग्वादर का जवाब भारत चाहबार के जरिए दे रहा है. 23 मई को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी के बीच तेहरान में चाहबार पोर्ट पर समझौता हुआ. भारत इस बंदरगाह में 50 करोड़ डौलर का निवेश करने जा रहा है. दक्षिण ईरान के चाहबार बंदरगाह के जरिए भारत पाकिस्तान को बाईपास कर मध्य एशिया तक पहुंच सकेगा. भारत के कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों से मजबूत संबंध हैं.

भारत की घेराबंदी

भारत व चीन  का युद्ध  खत्म हुए भले 55 साल हो गए मगर दोनों के बीच शीतयुद्ध अब भी जोरों पर है. चीन अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने के लिए भारत को घेरने की रणनीति को अंजाम दे रहा है. इस घेराबंदी के लिए चीन भारत के दोनों तरफ उत्तरदक्षिण धुरी पर 2 सामरिक कौरिडोर बना रहा है. एक है ट्रांस कराकोरम कौरिडोर जो पश्चिमी चीन से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक है. दूसरा है इरावाडडी कौरिडोर जो चीन के यूनान प्रांत से म्यांमार के सड़कमार्ग, नदीमार्ग और रेलमार्ग से होते हुए खाड़ी तक जाता है. म्यांमार में चीन ने क्याउक्यापु और थिलावा  ये 2 बंदरगाह बनाए हैं. तीसरा कौरिडोर बना है पूर्वीपश्चिमी धुरी पर. गोरमु से ल्हासा तक बनी रेल चीन की भारत के खिलाफ आक्रामक क्षमता बढ़ाएगी. चीन तिब्बत की रेल को भारतीय सीमा पर चुंबा घाटी तक ले जाना चाहता है, जहां सिक्किम, भूटान और तिब्बत की सीमाएं मिलती हैं. वह काठमांडू को भी रेलमार्ग के जरिए जोड़ना चाहता है. पूर्व-पश्चिम कौरिडोर के हिस्से के रूप में भारत चीन सीमा के समांतर सैनिक हवाईअड्डे बना रहा है. चीन हिंद महासागर में जो चौथा सामरिक कौरिडोर बना रहा है उसे अंतर्राष्ट्रीय जगत में बहुत खूबसूरत नाम से पुकारा जा रहा है, वह है — स्ंिट्रग औफ पर्ल्स यानी मणियों की माला. मगर यह माला भारत के लिए फंदा बन सकती है.

भारत की घेराबंदी की इस योजना के तहत पाकिस्तान का ग्वादर पिछले कुछ वर्षों में एक महत्त्वपूर्ण भू राजनैतिक केंद्र के रूप में उभरा है जो दक्षिण एशिया में आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक व्यवस्था को प्रभावित करता है. चीन द्वारा यहां एक सामरिक बंदरगाह स्थापित किया जा रहा है जिस के कारण इस क्षेत्र में चीन की भविष्य में होने वाली भूमिकाओं और उस के होने वाले प्रभावों को ले कर संबद्ध देशों में संदेह व्याप्त है. ग्वादर बलूचिस्तान में अरब सागर के किनारे मकरान तट पर स्थित एक बंदरगाह शहर है. पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के तटीय कसबे ग्वादर और इस के आसपास के इलाके को 1958 में पाकिस्तान सरकार ने ओमान से खरीदा था.

ग्वादर बंदरगाह का सफर

इस तटीय क्षेत्र के एक बड़े बंदरगाह बनने की बात उस समय शुरू हुई जब 1954 में एक अमेरिकी भूगर्भ सर्वेक्षण में ग्वादर को डीप सी पोर्ट के लिए एक बेहतरीन जगह बताया गया. तब से ग्वादर को बंदरगाह के रूप में विकसित करने की बातें तो होती रहीं लेकिन जमीन पर काम साल 2002 में शुरू हो पाया. उस समय पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ ने ग्वादर बंदरगाह के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया था और 24 करोड़ डौलर की लागत से यह परियोजना 2007 में पूरी हुई. सरकार ने इस नए बंदरगाह को चलाने का ठेका सिंगापुर की एक कंपनी को दिया. ग्वादर बंदरगाह पहली बार विवाद और संदेह के घेरे में तब आया जब 2013 में पाकिस्तान सरकार ने इस बंदरगाह को चलाने का ठेका सिंगापुर की कंपनी से ले कर एक चीनी कंपनी को दे दिया.

इस मामले की पारदर्शिता पर आज भी कई सवाल उठते हैं. यह वह दौर था जब पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर चीनी निवेश की बातें सामने आने लगीं. तभी नवाज शरीफ सरकार ने घोषणा की कि चीनी सरकार ने पाकिस्तान में अरबों डौलर के निवेश का इरादा जताया है. इस परियोजना को चीन-पाकिस्तान आर्थिक कौरिडोर का नाम दिया गया. उस के तहत चीन को ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने की योजना है. इस समझौते पर 2015 में हस्ताक्षर हुए और तब पता चला कि इस परियोजना में सड़कें, रेलवे और बिजली परियोजनाओं के अलावा कई विकास परियोजनाएं शामिल हैं. चूंकि यह रास्ता ग्वादर से शुरू होता है इसलिए ग्वादर और इस बंदरगाह का इस पूरी परियोजना में महत्त्वपूर्ण स्थान है.

ग्वादर में शुरू में यानी 2017 तक एक अरब डौलर का निवेश किया जाएगा जिस से यहां बंदरगाह का विस्तार करने के अलावा कई विकास परियोजनाएं शुरू की जा सकें. जहां सरकार ग्वादर के लिए सुझाई गई विकास परियोजनाओं पर गर्व व्यक्त करती है, वहीं बलूचिस्तान से जुड़े कुछ राजनीतिक दल और शख्सीयतें परियोजना पर आपत्ति जताते हैं. उन का मानना है कि बलूचिस्तान और ग्वादर की जनता को इस परियोजना में उन का जायज हक नहीं दिया जा रहा है.

चीन के स्वार्थ

ग्वादर को चीन ने पाकिस्तान से पट्टे पर ले लिया है और वह यहां एक सामरिक बंदरगाह विकसित कर रहा है. इस से उस का पहला उद्देश्य भारत को नौसैनिक अड्डों की एक श्रृंखला से घेरना पूरा होगा. दूसरा, चीन अपने पैट्रोलियम आयात के लिए ईरान समेत खाड़ी देशों पर निर्भर है जिस का परिवहन मार्ग होर्मुज की खाड़ी से होते हुए श्रीलंका के दक्षिण से गुजर कर मलक्का जलडमरू मध्य होते हुए चीन के पूर्वी तट पर स्थित शंघाई और तियानजिन बंदरगाह तक पहुंचता है. यह मार्ग अत्यधिक लंबा होने के साथ ही साथ सामरिक रूप से उपयुक्त नहीं कहा जा सकता. इसलिए पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को एक टर्मिनल के रूप में प्रयोग कर यहां से थलमार्ग से चीन के काश्गर तक आसानी से पहुंचा जा

सकता है. जहां एक ओर फारस की खाड़ी स्थित होर्मुज से बीजिंग पहुंचने के लिए 13 हजार किलोमीटर का फासला तय करना पड़ता है वहीं होर्मुज से ग्वादर होते हुए सड़कमार्ग से चीन के काश्गर की दूरी मात्र ढाई हजार किलोमीटर है. इस के बदले चीन पाकिस्तान को कुछ बड़ी रियायतें देने जा रहा है. 46 अरब डौलर की इस योजना में पाकिस्तान को प्राप्त होने वाले लाभों को आर्थिक आधारभूत संरचनाओं का विकास, सामरिक स्थिति में सुधार और सब से महत्त्वपूर्ण, पाकिस्तान में बिजली उत्पादन की दशा के सुधार में वर्गीकृत किया जा सकता है. इस योजना से पाकिस्तान और चीन दोनों को ही लाभ है, परंतु बलूचिस्तान को नहीं, और न ही विशिष्ट रूप से ग्वादर को.

चीन द्वारा किए जा रहे व्यापक हस्तक्षेप से बलूचिस्तान आशंकित है और ग्वादर भी. ग्वादर में पीने के पानी की कमी, सफाई के इंतजाम की कमी और अन्य आवश्यक सामान की किल्लत सदैव से रही है. ग्वादर के बहुसंख्य निवासियों के सामने उन के मछली पकड़ने के व्यवसाय के लिए खतरा पैदा हो गया, जिस से उन की रोजीरोटी खतरे में है. इस के अलावा यहां काम करने के लिए बाहरी मजदूरों को वरीयता दी जा रही है. ऐसे में बलूचिस्तान, खासकर ग्वादर के लोगों के लिए हालात बहुत भीषण हैं. इस के साथ ही यहां कौरिडोर और सामरिक महत्त्व के ठिकानों की सुरक्षा के नाम पर सुरक्षा बलों की दखलंदाजी बढ़ती जा रही है.

भारत का अंग

चीन और पाक विश्लेषकों के अनुसार, आर्थिक गलियारे में पूरे क्षेत्र में जबरदस्त व्यापार और आर्थिक गतिविधियां बढ़ने से पूरे इलाके को बदलने की ताकत है. इस परियोजना में ग्वादर बंदरगाह पर नया हवाईअड्डा बनाना, कराकोरम राजमार्ग को बेहतर करना और गिलगितबाल्टिस्तान इलाके के ऊबड़खाबड़ पहाड़ी क्षेत्र में से रेलमार्ग और पाइपलाइन गुजारना शामिल हैं. संवैधानिक और कानूनी रूप से यह क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग है. यह गलियारा चीन के सिंक्यांग प्रांत में काश्गर को बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ेगा.

शुरुआत से ही चीन ग्वादर को सिंक्यांग से जोड़ने में दिलचस्पी लेता रहा था. वह इस बंदरगाह को अपनी तेल आपूर्ति के दक्षिणपूर्व एशिया की खाडि़यों में फंसने की चिंता छोड़ कर सीधे अपने देश तक ले जाने के लिए इस्तेमाल कर सकता है.

चीन की तेल पर नजर

चीन की योजना है ग्वादर से गिलगित तक दोतरफा राजमार्ग विकसित कर के तेल और गैस की पाइपलाइनें तथा औप्टिकल फाइबर बिछाया जाए. पाकिस्तान और चीन के बीच तिब्बत से पटरी को बढ़ाते हुए एक रेलमार्ग बनाने की भी उस की योजना है. ग्वादर पर तेल शोधन कारखाना स्थापित करने की भी योजना लंबित है क्योंकि यह उस होर्मुज स्ट्रेट के मुहाने पर स्थित है जहां से दुनिया का 40 प्रतिशत तेल गुजरता है. चीन की मदद से बना यह बंदरगाह पाकिस्तान में चीन की सब से बड़ी ढांचागत परियोजना है.

ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान का सब से गहरा बंदरगाह है और भारीभरकम तेल पोतों को अपने किनारे तक ला सकता है. इस बंदरगाह की पूरी संभावनाओं का फायदा उठाने में एक बड़ी बाधा बलूचिस्तान विद्रोह है.

बलूच लोग ग्वादर को अपनी धरती को उपनिवेश बनाने की इसलामाबाद की चाल का एक औजार मानते हैं. उन को लगता है कि ग्वादर से जुड़े फैसले बलूचिस्तान के बाहर लिए जा रहे हैं. क्योंकि ग्वादर कराची से जुड़ा है, न की मुख्य बलूच भूमि से. इसलिए उन्हें इस इलाके में बड़ी तादाद में बाहरी लोगों के आ बसने का भी अंदेशा है, जो उन को अपनी ही परंपरागत धरती पर स्थायी रूप से अल्पसंख्यक बना देगा. यही कारण है कि वे ग्वादर से जुड़े कामों और कामगारों पर हमले बोलते रहे हैं. उन्होंने चीनी हितों पर भी खासतौर पर निशाना साधा है क्योंकि उन्हें लगता है कि चीन उन की धरती को उपनिवेश बनाने की इसलामाबाद की साजिश में मदद दे रहा है. यह बलूच विरोध ही है, जिस ने बंदरगाह को आर्थिक रूप से एक कारोबारी बंदरगाह बनने से रोका हुआ है. ग्वादर पर अब चीन का शिकंजा कसने से, यह बीजिंग को होर्मुज स्ट्रेट के नजदीक एक रणनीतिक चौकी उपलब्ध कराएगा.

ग्वादर में चीनियों की मौजूदगी खाड़ी में अमेरिका के पारदेशीय आधार के बेहद नजदीक होने से अमेरिका का सतर्क होना अवश्यंभावी ही है.

यह चीन को अरब सागर और हिंद महासागर में एक सामरिक आधार भी देता है और चीन को फारस की खाड़ी से होने वाले ऊर्जा के आवागमन पर नजर रखने की सुविधा भी दे सकता है. खाड़ी के रास्ते भारत के अधिकांश ऊर्जा आयात ग्वादर के बहुत पास से गुजरते हैं, इसलिए वहां मौजूद समुद्री सैन्य बल उस में बाधा डाल सकता है. आने वाले समय में यह बंदरगाह पाकिस्तान को जहां बेतहाशा फायदे पहुंचा सकता है, वहीं चीन को फारस की खाड़ी में एक अहम चौकी उपलब्ध करा सकता है. यही वजह है ग्वादर भारत के लिए एक सिरदर्द बनेगा. यही चीन और पाकिस्तान का मकसद है. मगर दूसरी तरफ अफगानिस्तान में भारत द्वारा बनाया जा रहा चाहबार बंदरगाह पाकिस्तान के लिए भी सिरदर्द बनता जा रहा है.

पाक के लिए सिरदर्द चाहबार

दक्षिण ईरान के चाहबार बंदरगाह के जरिए भारत पाकिस्तान को बाईपास कर मध्य एशिया तक पहुंच सकेगा. भारत के कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों से मजबूत संबंध हैं. भारत चाहता है कि मध्य एशिया से पाइपलाइन के जरिए तेल और गैस भारत तक आए. लेकिन पाइपलाइन शुल्क और उस की सुरक्षा को ले कर पाकिस्तान की ओर से भरोसेमंद आश्वासन नहीं मिला है. ऐसे में अगर पाइपलाइन पूरी नहीं हुई तो भी भारत चाहबार तक ईंधन ला सकता है. वहां से आगे जहाजों के जरिए ईंधन भारत पहुंच सकता है. पाकिस्तान को लगता है कि अगर मध्य एशिया से कोई भी चीज जमीन के जरिए भारत तक जाएगी तो उसे राजस्व मिलेगा. चाहबार समझौता इस लिहाज से भी पाकिस्तान को निराश कर रहा है. दूसरा कारण है अफगानिस्तान. काबुल को ले कर भारत और पाकिस्तान की प्रतिस्पर्धा किसी से छिपी नहीं है. चाहबार पोर्ट के जरिए भारत पाकिस्तान के ऊपर से उड़े बिना भारी साजोसामान अफगानी धरती पर पहुंचा सकता है, इसलामाबाद को यह बात भी चुभ रही है.      

आतंकवाद का आतंक

भजभज मंडली ने देशभर में पाकिस्तान के खिलाफ उड़ी में हुए हमले के बाद तूफान मचा रखा है और चीन को भी इस लपेटे में ले लिया है क्योंकि भारत के कहने पर चीन, पाकिस्तान को आतंकवाद का जन्मदाता व पोषक मानने को तैयार नहीं है और विश्व स्तर पर वह उसे आतंकवादी देश घोषित नहीं होने दे रहा है. 25 अक्तूबर को पाकिस्तान के एक पुलिस केंद्र पर केवल 3 आतंकवादियों के हमले, जिस में 60 प्रशिक्षणार्थी मारे गए, ने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान अगर आतंकवाद की शरणस्थली है तो उतना ही उस का शिकार भी.

पाकिस्तान के क्वेटा शहर में स्थित पुलिस ट्रेनिंग कालेज पर 3 आतंकवादियों ने घुस कर अंधाधुंध गोलियां चलाईं, फिर 2 ने बारूदभरी जैकेट से आत्मदाह किया व 1 को पुलिस ने मार गिराया. इराक व सीरिया के इसलामिक स्टेट संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. इस से साफ है कि पाकिस्तान सरकार व उस की सेना यदि आतंकवाद की फसल बोती है तो उस के जहरीले फल उसे भी खाने पड़ रहे हैं. वह आतंकवाद का जन्मदाता है और मौत का शिकार भी. उसे अपने ही बच्चों के कहर का फल भोगना पड़ रहा है. उस से पहले एक सैनिक स्कूल पर हमला हुआ था जिस में सैनिकों के 132 अबोध बच्चे मारे गए थे.

पाकिस्तान को ले कर भारत में जो हल्ला मचाया जा रहा है और सर्जिकल स्ट्राइक से बदला ले लिए जाने का जो दावा ठोका जा रहा है वह क्वेटा के हमले के बाद तो और, सिर्फ हल्ला ही दिख रहा है जिस में कोई बड़ा स्तर नहीं है. सर्जिकल स्ट्राइक कर के आतंकवाद को जड़ से नष्ट किया जा सकता है, यह अभी शेखचिल्लीपन ही कहा जाएगा.

आतंकवाद क्यों और कैसे पनपा, इसे छोड़ दें. यह किसी न किसी रूप में हमेशा रहा है और शासकों के खिलाफ हमेशा इस्तेमाल हुआ है जिस में निशाना नागरिक होते हैं ताकि शासक और उस के देश का मनोबल तोड़ा जा सके.

आमतौर पर शासक उस से नहीं, आतंकवाद से पैदा हुए लड़ाकू नेताओं से डरते हैं कि कहीं वे सैनिक विद्रोह न करा दें. पाकिस्तान हर समय भयभीत रहता है कि आतंकवाद से लड़ने की आड़ में वहां की नागरिक सरकार को कहीं पलट न दिया जाए.

भारत में पाकिस्तान के खिलाफ जो लहर पैदा की जा रही है वह बेमतलब की है और उस का उद्देश्य केवल अपनी कमियां छिपाना है. आतंकवाद से लड़ना आसान नहीं है, यह अमेरिका व चीन दोनों जानते हैं और दोनों पाकिस्तान का समर्थन कर रहे हैं. उन्हें एहसास है कि पाकिस्तान की मरजी के बिना वे आतंकवाद के खिलाफ थोड़ीबहुत लड़ाई भी न लड़ पाएंगे. हमारे यहां पाकिस्तान के खिलाफ जो माहौल बनाया जा रहा है वह घरेलू नीति के लिए चाहे ठीक हो पर वह आतंकवाद का मुकाबला नहीं कर सकता. इसी तरह चीनी लडि़यों और पटाखों का बहिष्कार किया जाना चीन को अपनी विदेश नीति बदलने को मजबूर नहीं कर सकता, यह बात सब को समझ लेनी चाहिए.     

– संपादक

अपने पिता की जीवनी को प्रेरणादायक मानते हैं विंदू

रूस्तमे हिंद दारा सिंह की सीमा सोनिक अलीमचंद लिखित जीवनी ‘‘दी दारा अका दारा सिंह’’ के बाजार में आने से दारा सिंह के बेटे व अभिनेता विंदू अति उत्साहित हैं. वह अपने पिता की जीवनी को प्रेरणादायक मानते हैं.

इस किताब के विमोचन के अवसर पर विंदू ने कहा-‘‘मैंने दो सपने देखे थे. एक अपने पिता दारा सिंह पर एक किताब बाजार में लाने और दूसरा कुश्ती पर फिल्म बनाने का. इसमें से मेरा एक सपना आज पूरा हो गया. सीमा सोनिक अलीमचंद ने मेरे पिता की जीवनी लिख दी, जो कि आज बाजार में आ गयी. अब मैं अपने दूसरे सपने को पूरा करने की दिशा में काम करना शुरू करने वाला हूं.’’

विंदू ने आगे कहा-‘‘पुरानी पीढ़ी के लोग मेरे पिता से बखूबी परिचित हैं. लेकिन आज जो 14-15 साल की पीढ़ी है, वह मेरे पिता से कम परिचित है. पर इस किताब के माध्यम से वह परिचित हो सकेंगे. मेरे पिता की जीवन हर किसी के लिए प्रेरणादायक है. जबकि मेरे पिता की शक्ति के ही कारण एक जुमला लोग अक्सर कहते हैं-‘तू खुद को दारा सिंह समझता है?’.

पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बच्चे इस तरह के संवाद आपस में एक दूसरे से कहते रहते हैं. अब उन्हें इस किताब से मेरे पिता के बारे में ज्यादा जानने व प्रेरणा लेने का अवसर मिलेगा. मेरे पिता की लोकप्रियता इतनी है कि जब भी मैं अपने पिता की कोई तस्वीर या उनकी कुश्ती का कोई वीडियो सोशल मीडिया में डालता हूं, लाखों लोग उसे पसंद करते हैं.’’

विंदू दारा सिंह ने बताया कि वह अपने पिता की जीवनी पर एक बायोपिक फिल्म बनाने की तैयारी में लगे हुए हैं. पर फिल्म में दारा सिंह का किरदार कौन निभाएगा, यह तय नहीं है. वैसे उन्होंने अक्षय कुमार से कहा है कि वह दारा सिंह की बायोपिक फिल्म में दारा सिंह का किरदार निभाएं.

विंदू कहते हैं-’‘देखिए, सीमा जी ने मेरे पिता की जीवनी को किताब के रूप में लोगों के सामने ला दिया. जबकि मैने अपने पिता की बायोपिक फिल्म की पटकथा फारुख मिर्जा के साथ बैठकर लिखी है. हमारी इस फिल्म के लिए निर्माता भी मिल गया है. बाकी की तैयारियां कर रहा हूं.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें