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कामयाबी की डगर से फिसलते शाहरुख खान

एक लंबे अर्से से बॉलीवुड पर अपनी धाक जमाये बैठे किंग खान यानि अभिनेता शाहरुख खान ने अपने कैरियर की शुरुआत टीवी से की थी. उन्हें कभी पता नहीं था कि अपने करियर के इस मुकाम पर एक दिन वे बॉलीवुड के बादशाह कहलायेंगे. दिल्ली से निकले शाहरुख खान ने मुंबई आकर जब जो अभिनय मिला करते गए, फिर चाहे वह रोमांस, कॉमेडी, एक्शन, थ्रिलर या कुछ भी हो, उन्होंने हर चरित्र को एक दूसरे से अलग बनाने के लिए खूब मेहनत की. वे पूरे दिन में तीन से चार घंटे सोते हैं और अपनी हर कमिटमेंट को पूरी करते हैं. उन्होंने केवल फिल्मों में ही नहीं, बल्कि छोटे पर्दे पर भी कई शो को होस्ट किया है, वे विज्ञापनों में भी काफी प्रसिद्ध माने जाते हैं.

शाहरुख खान जितनी मोहब्बत अपनी फिल्मों से करते हैं, उतनी ही मोहब्बत वे अपने परिवार से भी करते हैं. अपनी कामयाबी में वे अपने पूरे परिवार का हाथ मानते हैं. जिन्होंने हमेशा उन्हें सुकून की जिंदगी दी. उनकी पत्नी गौरी ने हमेशा उनके साथ हर परिस्थिति में सहयोग दिया है. वे एक अच्छे पिता भी जाने जाते हैं, जो समय मिलते ही अपने तीनों बच्चों आर्यन, सुहाना और अबराम के साथ समय बिताते हैं. पॉपुलरिटी के साथ-साथ शाहरुख खान कई बार अपने व्यवहार के लिए विवादों में भी घिरे, पर उन्होंने अपने गलत व्यवहार के लिए माफ़ी भी मांगी. अभी वे शांत स्वभाव के हैं और वैसा ही रहना चाहते हैं. इस समय वे एक्शन फिल्म ‘रईस’ के प्रमोशन पर हैं, जिसमें उन्होंने फिर से एक अलग अवतार का रूप धारण किया है. जिसमें उन्हें काफी चोटें आई, पर उन्होंने काम पूरा किया. काफी इंतज़ार के बाद उनसे मिलना हुआ, पेश है बातचीत के कुछ अंश.

प्र. पहले की एक्शन फिल्म से ‘रईस’ कितनी अलग है?

ये थोड़ी अलग तरह की एक्शन फिल्म है. ये टिपिकल एक्शन फिल्म नहीं है. जिसमें विलेन होता है, जो हीरो को  परेशान करता है और हीरो बदला लेने चला जाता है, ऐसे कुछ भी सिक्वेंस नहीं हैं. यह एक ऐसे शख्स की कहानी है, जो किसी भी हालत में सफलता को हासिल करता है. इसमें एक्शन विलेन वाले नहीं हैं. थोड़ी रीयलिस्टिक एक्शन है. निर्देशक राहुल ढोलकिया खुद एक रीयलिस्टिक फिल्म बनाते हैं और वैसी ही कोशिश उन्होंने इस फिल्म को बनाने में की है. जैसे कि अगर फाइट हुई है, तो हीरो को भी लगा है ऐसा नहीं है कि आज लड़ाई हुई और कल हीरो गाना गा रहा है. एक्शन के पांच सीक्वेंस इसमें है, जिसे बहुत बेहतरीन तरीके से शूट किया गया है.

प्र. फिल्म को स्वीकार करने की खास वजह क्या है?

ये एक अलग फिल्म एक जर्नलिस्ट द्वारा काफी रिसर्च के बाद लिखी गयी है. लोगों को इसके ट्रेलर अच्छे भी लग रहे हैं, क्योंकि सारी बातें रियल लाइफ से उठाई गयी हैं. चरित्र की डिग्निटी को बनाकर रखने की कोशिश इस फिल्म में की गयी है. मसलन, वह व्यक्ति जानता है कि वह गलत काम कर रहा है. लेकिन वह इसे स्वीकारता भी है, भागता नहीं है.

प्र. इसमें माहिरा खान को लेने की वजह क्या रही?

हमें फिल्म में एक अलग तरह की चरित्र चाहिए थी. जिसने मेरे साथ पहले काम न किया हो. काफी ऑडिशन हुआ और निर्देशक ने एक नए चेहरे को लाने की कोशिश की और माहिरा मिली. जो सुंदर होने के साथ-साथ साइलेंट स्ट्रेंथ का भी काम करें. रियल लाइफ में ऐसा अधिकतर सभी परिवार के मां, बहन या पत्नी में होता है. जो किसी भी परिवेश को आसानी से हैंडल कर लेते हैं. इसमें अधिकतर नए कलाकारों को लेने की कोशिश की गयी है. ताकि मेरा अभिनय भी अलग हो.

प्र. अभिनय के इस मंजिल पर आप साथी कलाकारों का कितना सहयोग अपने अभिनय में मानते हैं?

नवाज़ुद्दीन एक थिएटर आर्टिस्ट हैं और बहुत उम्दा अभिनय करते हैं और ये सही है कि अगर आपके साथी कलाकार अच्छा काम करते हैं तो आपको भी काम करने में मजा आता है.

प्र. फिल्म के कौन से भाग में काम करना आपके लिए कठिन था?

एक्शन सीन्स में मुझे चोट लग गयी थी, इसलिए दो एक्शन सीन्स बाद में हुए थे. वो कठिन थे, जो एक जो छत पर पीछा करते हुए था. उसमें मैंने डुप्लीकेट का सहयोग लिया है. मुझसे वह दृश्य नहीं हो पा रहा था, क्योंकि मैं पूरी तरह ठीक नहीं हो पाया था.

प्र. आप महिला निर्देशक या पुरुष निर्देशक किसके साथ काम करने में अधिक अच्छा महसूस करते हैं?

महिला निर्देशक के साथ काम करना हमेशा बेहतर होता है. अभी तो इंडस्ट्री में महिला निर्देशक कम हैं और अधिक होनी चाहिए, क्योंकि मुझे महिला निर्देशक के साथ किसी बात की चर्चा करना पसंद है, वे किसी भी बात को अलग नजरिये से देख सकती हैं. विषय चाहे कुछ भी हो, उनकी सोच हमेशा पुरुषों से अलग होती है. पुरुषों की सोच मेरे अंदर है, ऐसे में अगर महिला की सोच भी साथ मिले तो चीजे बेहतर बनती हैं. फिल्म ‘डिअर जिंदगी’ के समय सेट पर सारी औरते थी, जिसमें गौरी शिंदे, आलिया भट्ट प्रमुख थी. निर्देशक फरहा खान की ‘सेन्स ऑफ़ ह्यूमर’ भी एक पुरुष निर्देशक से काफी अच्छी है. निर्देशक जोया अख्तर के साथ भी समय मिलने पर बात करता हूं. लेकिन मैं एक महिला निर्देशक के साथ एक्शन फिल्म करना चाहता हूं.

प्र. कामयाबी के इस मुकाम में जहां आपकी कुछ फिल्में हिट तो कुछ फ्लॉप भी रही. ऐसे में आप अपने आपको कहां पाते हैं? क्या जीवन में अभी भी कुछ मलाल रह गया है?

एक कलाकार के रूप में मैं हमेशा अपने काम से असंतुष्ट रहता हूं. अगर मैं कहूं कि यहां तक पहुंचना मेरा उद्देश्य था, तो वह मेरा कभी नहीं था, क्योंकि ‘गोल’ अंत होता है. ‘माइलस्टोन’ अगर बन जाये, तो अच्छी बात है. मैं ऐसा सोचता भी नहीं हूं कि मेरी फिल्म सफल हो रही है या नहीं. फ्राइडे ख़त्म होने के बाद में आगे निकल जाता हूं. मैं 15 से 20 घंटे रोज़ काम करता हूं. हर दिन सुबह मेरे लिए एक्साइटिंग कुछ होना चाहिए और वह होने के लिए कुछ नया होना चाहिए. अगर मैं सिर्फ पैसे को सोचकर फिल्मों में काम करूं तो वह भी एक दिन पुराना हो जाता है. जॉब हो जाती है. मैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे क्रिएटिव होने का अवसर मिला. मैं अपनी क्रिएटिविटी को खोना नहीं चाहता, क्योंकि वह करते-करते मेरी जिंदगी अच्छी गुजर रही है. हालांकि मेरी ‘ऐज’ और ‘स्टेज’ दोनों ही अलग है, उसके अंदर कुछ नया करने की कोशिश हमेशा करता रहता हूं. अभी मैं निर्देशक इम्तियाज़ के साथ ‘द रिंग’ एक लव स्टोरी कर रहा हूं, पर उसके लव स्टोरी कहने का अंदाज़ नया है.

प्र. क्या जीवन के इस मोड़ पर किसी बात से डर लगता है?

पिता बनने के बाद यही चिंता सबसे अधिक रहती है कि मेरे बच्चों का स्वस्थ्य ठीक रहे, वे अच्छी तरह पढ़-लिखकर स्थापित हो जायें. जब आप एक मुकाम तक पहुंच जाते हैं तो आपको बहुत धीरज रखना पड़ता है, क्योंकि तब आपकी लाइफ, आपकी अपनी नहीं रह जाती. पब्लिक की हो जाती है, ऐसे में मैं उनसे लड़ नहीं सकता. अगर लड़ भी लिया तो बाद में समझ में आती है कि ऐसी जिंदगी मैंने खुद चुनी है. इसलिए मैं कुछ भी गलत न कहूं, ऐसा सोचता हूं. अगर लोग मुझे आकर जन्मदिन की बधाइयां देते हैं तो मुझे अच्छा लगता है. लेकिन उसमें ऐसे भी कुछ लोग होंगे जो मुझे बुरा भी कहते होंगे. उसे स्वीकारना पड़ता है. जब जिंदगी इतना देती है, तो आप किसी भी बात को जो आपको अच्छा न भी लगे, छोड़ देना ही बेहतर होता है.

प्र. इतना काम करने के बावजूद अपने स्वास्थ्य का ख्याल कैसे रखते हैं?

मैं खाना बेसिक खाता हूं, अभी में 51 वर्ष का हो चुका हूं. मैं पकवान, मीठा नहीं खाता. चावल और रोटी कम खाता हूं. दाल, बीन्स, स्प्राउट्स ये सब अच्छा लगता है. थोड़ी वर्क आउट भी करता हूं ताकि पसीना निकले. अभी सब चोट की वजह से बंद है. समय मिलने पर बच्चों के साथ खेलता हूं. मैंने अपने बच्चों और पत्नी सभी को सलाह दी है कि बेसिक खाने के साथ थोड़ी व्यायाम अवश्य करें.

मजबूत प्रधानमंत्री कौन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के ऐलान के बाद 16  नवंबर को शुरू हुआ लोकसभा का शीतकालीन सत्र विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गया. यानि हर दिन जनता से टैक्स में वसूला गया करोड़ों रुपया व्यर्थ में खर्च होता रहा. कुल मिला कर 114 घंटे चले इस सत्र में महज 20.8 घंटे काम हो पाया. नरेंद्र मोदी इस सत्र में केवल 3 दिन मौजूद रहे, लेकिन बोले आखिरी दिन यानी 16 दिसंबर को.

उन्होंने अपने अंतिम दिन के भाषण में यह कह कर खुद को इंदिरा गांधी से भी मजबूत और दृढ़ इच्छाशक्ति वाला प्रधानमंत्री बताने की कोशिश की कि 1971 में इंदिरा गांधी को नोटबंदी की सलाह दी गई थी. इस के जवाब में उन्होंने कहा था कि क्या कांग्रेस को चुनाव नहीं लड़ना? उन के लिए देश नहीं, पार्टी बड़ी है.

नरेंद्र मोदी शायद यह कहना चाहते थे कि उन के लिए देश बड़ा है, पार्टी नहीं. इसलिए उन्होंने 5 राज्यों पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के चुनावों से पहले नोटबंदी का फैसला ले कर अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय दिया है. यानी उन के लिए पार्टी से बड़ा देश है और उन का नोट बंदी का फैसला देश हित में है. इस से पार्टी को नुकसान होता है तो हो. लेकिन इस बात को भाजपाई और देश ही नहीं पूरी दुनिया जानती है कि स्वर्गीय इंदिरा गांधी में जो दृढ़ इच्छाशक्ति थी, वह नरेंद्र मोदी तो क्या, किसी भी नेता में नहीं हो सकती. इसी दृढ़ इच्छाशक्ति की वजह से उन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का धूल चटा कर उसे दो हिस्सों में बांट दिया था. इसी इच्छाशक्ति की बदौलत उन्होंने 1975 में इमरजेंसी लगाई और इसी इच्छाशक्ति से उन्होंने आपरेशन ब्लूस्टार जैसा कड़ा फैसला लिया, भले ही उन्हें काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी और जान भी देनी पड़ी.

जीत के बाद भी क्यों नाखुश हैं कोहली!

कटक वनडे मैच में इंग्लैंड को 15 रनों से हराकर अपनी कप्तानी में पहली ही सीरीज जीतने वाले नए कप्तान विराट कोहली ने जीत पर खुशी तो जताई, लेकिन सलामी बल्लेबाजी और गेंदबाजी में कमी की ओर भी इशारा किया. साथ ही वह शीर्ष क्रम के प्रदर्शन से नाखुश दिखे.

भारत ने दूसरे वनडे में इंग्लैंड के सामने जीत के लिए 382 रनों का विशाल लक्ष्य रखा था, लेकिन इंग्लैंड ने दमदार प्रदर्शन करते हुए लक्ष्य के काफी करीब तक पहुंचे लेकिन मैच गवां बैठा.

बतौर कोहली, 'दो खिलाड़ी अश्विन और जडेजा ने इससे पहले टेस्ट श्रृंखला में दमदार प्रदर्शन किया था, आज भी उन्होंने आगे आकर मोर्चा संभाला और अगर सही समय पर वे हमें विकेट न दिलाते तो मुझे नहीं पता कि मैच का क्या हश्र होता. मैं सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि हमने अपनी क्षमता का 75 फीसदी ही दिया.'

दरअसल टॉस हारकर बल्लेबाजी करने उतरी भारतीय टीम 25 के स्कोर तक तीन अहम विकेट गंवा चुकी थी. लेकिन इसके बाद युवराज सिंह (150) और पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी (134) ने तूफानी साझेदारी करते हुए टीम को बड़े स्कोर तक पहुंचाया.

कोहली ने युवराज सिंह और महेंद्र सिंह धोनी की शतकीय पारियों की तारीफ की. लेकिन वह शीर्ष क्रम के प्रदर्शन से नाखुश दिखे और उन्होंने कहा कि चैंपियन्स ट्रॉफी से पहले बेहतर संयोजन तैयार करने के लिए इंग्लैंड के खिलाफ तीसरा वनडे महत्वपूर्ण होगा.

कोहली ने कहा कि, 'हम यह सोच रहे थे कि अगर हम अच्छी शुरुआत करते तो हमारा स्कोर और क्या होता? भारत के दो शानदार बल्लेबाज खड़े थे और उन्होंने बेहतरीन पारी खेली. 25 रन पर तीन विकेट से 381 तक का स्कोर अद्भुत है. हमें पता था कि किसी न किसी समय हम विकेट हासिल कर लेंगे, लेकिन यहां गेंदबाजी करना बेहद कठिन काम था.

इस मैच में यूं तो महेंद्र सिंह धोनी की खूब चर्चा हो रही है, लेकिन युवराज सिंह की इस दमदार पारी के मायने ही कुछ अलग हैं. यह ऐसे क्रिकेटर की कहानी है जिन्होंने 2011 वर्ल्ड कप में अपने 'भगवान' (सचिन तेंदुलकर) का सपना पूरा करने में जी-जान लगा दिया और 'मैन ऑफ द टूर्नामेंट' भी बनें.

खुद को किया साबित

टीम इंडिया से बाहुर हुए तो पांच रणजी मैचों में 672 रन ठोक डाले. इस बीच हेजल कीच से सात फेरे लिए तो टीम इंडिया में आने का दरवाजा भी खुल गया.

वापसी के बाद दूसरे ही मैच में जब टीम इंडिया 25 रन पर तीन विकेट खोकर संघर्ष कर रही थी तो धमाकेदार पारी खेल एक बार खुद को साबित कर दिया. युवराज ने 150 रनों की पारी में 127 गेंदों का सामना किया. इस पारी में युवराज ने 21 चौके और तीन छक्के जड़े.

युवी की इस पारी की बदौलत भारत ने 50 ओवर में छह विकेट खोकर 381 रन बनाए. साथ ही युवराज ने साबित कर दिया कि जून में होने वाली आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में टीम इंडिया की तैयारी पूरे शबाब पर है.

युवी पर कोहली का भरोसा

वैसे टी-20 टीम में वापसी के बाद युवराज को खास मौके नहीं मिले. एशिया कप और टी-20 वर्ल्ड कप में मिले मौके वैसे नहीं थे, जिसमें युवराज खुद को साबित कर सके.

इसी बीच विराट कोहली को जब वनडे और टी-20 टीम की कप्तानी मिली तो उन्होंने चयनकर्ताओं से साफ-साफ कहा, 'हमलोग मिडिल ऑर्डर में अकेले महेंद्र सिंह धोनी पर बोझ नहीं डाल सकते हैं.' मतलब साफ था कि हमें युवराज सिंह चाहिए.

यही वजह रही कि एक बार टीम इंडिया में युवराज सिंह ने कमबैक किया और फिर आगे की कहानी सबको पता है. पिछले छह साल में युवराज का यह पहला शतक है. 2011 के वर्ल्ड कप में युवराज ने वेस्ट इंडीज के खिलाफ 113 रनों की पारी खेली थी.

ये रिकॉर्ड भी युवी के नाम

इसी मैच में महेंद्र सिंह धोनी एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 200 छक्के जड़ने वाले दुनिया के पांचवें बल्लेबाज बने, जबकि युवराज सिंह ने इंग्लैंड के खिलाफ सर्वाधिक रन बनाने का सचिन तेंदुलकर का रिकॉर्ड अपने नाम किया.

धोनी ने 134 रन की पारी खेली और इस दौरान छह छक्के लगाए. अपना 285वां मैच खेल रहे धोनी के नाम पर अब 203 छक्के दर्ज हो गए हैं. वह यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय और दुनिया के पांचवें बल्लेबाज हैं.

करियर का सर्वोच्च स्कोर

युवराज ने 150 रन बनाए जो उनके करियर का सर्वोच्च स्कोर है. वह इंग्लैंड के खिलाफ 150 रन की संख्या तक पहुंचने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज हैं. अपनी इस पारी के दौरान युवराज ने इंग्लैंड के खिलाफ वनडे में अपने कुल रनों की संख्या 1478 रन पर पहुंचाई, जो नया रिकॉर्ड है.

युवराज ने तेंदुलकर (1455 रन) के रिकॉर्ड को तोड़ा. इनके बाद धोनी (1400 रन) का नंबर आता है. युवराज ने इंग्लैंड के खिलाफ चौथा शतक लगाकर विराट कोहली के तीन शतकों के रिकॉर्ड को भी तोड़ा.

उलटी पड़ी प्रधानमंत्री जनधन योजना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री जनधन योजना शुरू की  थी, जिस के तहत देश के सभी प्राइवेट और सरकारी बैंकों को जीरो बैलेंस पर गरीब कमजोर लोगों के खाते खोलने का आदेश दिया गया. इस आदेश का पालन हुआ और जो बैंक 25 या 10 हजार रुपए से कम में खाता नहीं खोलते थे,उन्होंने भी जीरो बैलेंस पर खाते खोले, शहरों में भी, ग्रामीण क्षेत्रों में भी.

परिणामस्वरूप 1 जून, 2016 तक देश भर में 22 करोड़ जनधन खाते खुल गए. 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी से पहले तक इन में से अधिकांश खाते खाली पड़े थे लेकिन नोटबंदी होते ही इन खातों में पैसों की बहार आ गई.

आलम यह रहा कि गरीबों के इन खातों में 25 नवंबर, 2016 तक 64,250 करोड़ रुपए की रकम जमा हो गई थी. 

इन खातों के कई खातेदार तो करोड़पति बन गए हैं, लेकिन सिर्फ खाते में. क्योंकि यह रकम उन की अपनी नहीं है. उन्हें मिलेगा भी कुछ नहीं, क्योंकि उन के खातों में या तो बैंक की गलती से रकम आई या फिर दूसरों की हेराफेरी से.

बहरहाल, सरकार भले ही अपनी इस महत्त्वाकांक्षी योजना को ले कर अपनी पीठ थपथपाए, सब से ज्यादा काला धन इन्हीं खातों की बदौलत सफेद हुआ है, वह भी उस स्थिति में जबकि इन खातों की एक साल के ट्रांजैक्शन की लिमिट डेढ़ लाख रखी गई थी. अब ये ही खाते भाजपा सरकार के गले की फांस बन गए हैं.

दरअसल, काले धन के कुबेरों और कालाधन रखने वाले रसूखदार लोगों को यही खाते और इन के खातेदार सौफ्ट टारगेट लगे, इसलिए उन्होंने जनधन खाते वाले गरीब खाताधारकों को कमीशन की घुट्टी पिला कर उन के खातों के माध्यम से अपना काला धन सफेद करा लिया. शुरुआती दौर में जब पुराने नोटों के बदले नए नोट दिए जा रहे थे, तब भी गरीब कमजोरों का ही सहारा लिया गया.

जैसे तैसे नोटबंदी का कारवां आगे बढ़ा. कुल मिला कर स्थिति यह रही कि 1000 और 500 रुपए के पुराने नोटों के रूप में इन खातों में करीब 75 हजार करोड़ रुपए जमा हो गए. यह देख कर सरकार के भी होश उड़ गए कि गरीब और कमजोर लोगों के इन खातों में अचानक इतनी बड़ी रकम कहां से आ गई. यह करिश्मा नोटबंदी के बाद केवल 14 दिनों में ही शुरू हो गया था.

इन खातों में गड़बड़ी की आशंका के तहत सरकार ने मोटी रकम वाले खातों की रकम की जांच का फैसला कर लिया. साथ ही लोगों को अगाह भी कर दिया कि दूसरों की रकम अपने खातों में न जमा कराएं. वरना इनकम टैक्स की जांच में फंस जाएंगे.

हालांकि प्रधानमंत्री ने अपने एक भाषण में कहा कि जिन्होंने अपने जनधन खातों में दूसरों की रकम जमा कराई है, उन्हें वापस न लौटाए.

लेकिन प्रधानमंत्री की यह घोषणा इसलिए मायने नहीं रखती क्योंकि जनधन खाताधारकों ने थोडे़ से लालच में जिन लोगों की रकम जमा कराई है, वे दबंग और रसूख वाले हैं. वे अपना पैसा वापस लेने का माद्दा रखते हैं. अलबत्ता, इस मामले में कुछ खाता धारक जरूर कानूनी पचड़ों में फंस जाएंगे.    

17 संदेश जीवन को बेहतर बनाने के

जिंदगी में हम कई दफा उतने खुश नहीं रह पाते जितना रह सकते हैं. दरअसल, हम जीवन को उस के बेहतरीन रूप में नहीं स्वीकारते. कहीं न कहीं हम स्वयं ही इस के लिए जिम्मेदार होते हैं. यदि हम कुछ बातों का ध्यान रखें तो यकीनन हमारी जिंदगी पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत और मकसदपूर्ण  बन सकती है. जानिए, कुछ ऐसी ही बातें:

बच्चों से 17 साला की सी बातें करें

तुलसी हैल्थकेयर के डायरैक्टर, डा. गौरव गुप्ता कहते हैं कि जब आप के बच्चे 17-18 साल के हो जाएं तब उन के साथ मां की तरह नहीं, बल्कि एक बड़ी बहन की तरह व्यवहार करें. ऐसा करने से उम्र का अंतर खत्म हो जाएगा. उन के मन में आप के लिए सम्मान तो हो लेकिन वे बिना किसी झिझक के अपने दिल की बात आप से साझा कर सकें.

यह उम्र बड़ी नाजुक होती है. बच्चे युवावस्था की दहलीज पर कदम रख रहे होते हैं. उन में जोश तो भरपूर होता है, लेकिन जीवन की समझ उतनी नहीं होती. कई बार इस उम्र के बच्चे कुछ ऐसा कदम उठा लेते हैं, जिस के परिणाम गंभीर होते हैं. ऐसे में बहुत सावधानी की जरूरत है.

बच्चों पर अपनी बातें थोपें नहीं, बल्कि उन का नजरिया समझने की कोशिश करें. उन्हें आप के साथ व सुरक्षा की जरूरत है पर विकसित होने के लिए उन्हें पूरा स्पेस भी दें. 17-18 साल की उम्र के बच्चों की अपनी एक समझ विकसित

हो जाती हैं. उन्हें उन के तरीके से सोचने और काम करने दें, लेकिन उन्हें अच्छेबुरे का अंतर जरूर समझाएं.

17 साला मानसिकता जरूरी

डा. अतुल कहते हैं कि बड़े होने पर सामान्यतया हम जिंदगी के बनेबनाए नियम फौलो करने लगते हैं. इस से हमारी रचनात्मकता कहीं गुम हो जाती है. हमें सदैव यह याद रखना चाहिए कि हम सभी के अंदर एक बच्चा है, जो अपनी मनमानी करना चाहता है, नएनए तरीकों से हर तरह के काम करना चाहता है. आप किसी भी उम्र में हों, यही मानसिकता बनाए रखें. तभी आप के अंदर पहले जैसी ऊर्जा व उत्साह कायम रहेगा और आप एक बेहतर जिंदगी जी सकेंगे.

दिमाग व मन को रखें चुस्त

आप 25 के हों या 55 के, दिमाग और मन स्वस्थ रखना जरूरी है. दिमाग को चुस्त रखने के लिए नियमित रूप से मैंटल ऐक्सरसाइज करते रहें. समयसमय पर दिमाग को चैलेंज करें. नए शब्द, नई बातें सीखें. नया सीखने की ललक कायम रखें. कभीकभी काम से ब्रेक ले कर परिवार व दोस्तों के साथ कहीं घूमने निकल जाएं. खानपान पर ध्यान दें. सकारात्मक सोच रखें. मुसकराने की आदत डालें व सोशल बनें. फिजिकल ऐक्टीविटीज भी भरपूर करें.

17 घंटों का बेहतर प्रयोग करें

हम सामान्यतया दिन के 24 घंटों में से 7 घंटे सोने में गुजारते हैं. बचे हुए 17 घंटों को बेहतर उपयोग करने के लिए जरूरी है छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना. मसलन:

– व्हाट्सऐप, फेसबुक, ईमेल वगैरह चैक करने का काम दोपहर में लंच टाइम में करें ताकि सुबह के वक्त जब आप की ऐनर्जी सब से अधिक होती है, जरूरी काम निबटा लें.

– कम समय में बेहतर काम करना चाहते हैं, तो घर या औफिस अपने काम की जगह को साफसुथरा व व्यस्थित रखें. इस से न सिर्फ जरूरी चीजें, फाइल्स, कागजात वगैरह ढूंढ़ने में समय की बरबादी नहीं होती वरन काम करने में मन भी लगता है.

– काम के साथसाथ शरीर को आराम भी दें. 90 मिनट काम के बाद 10 मिनट का ब्रेक आप को रिफ्रैश करने के लिए जरूरी है.

– हमेशा सभी के लिए उपलब्ध न रहें. न कहना भी सीखें. दुनिया की भीड़ से अलग किसी एकांत जगह पर कभीकभी सिर्फ अपने साथ रहें. मोबाइल, कंप्यूटर वगैरह बंद कर आत्मचिंतन करें, रचनात्मक काम करें.

– तनाव न लें. जितना समय हम दूसरों के साथ वादविवाद या काम बिगड़ने के तनाव में गुजारते हैं, उस से कम समय में हम बिगड़े काम और बिगड़े रिश्तों को सुधार सकते हैं.

औफिस में 17 साला जोश से करें काम

कहा जाता है कि 17 की उम्र का जोश कुछ अलग ही होता है, गलत नहीं है. यही वह उम्र है जिस में व्यक्ति अपनी प्राथमिकताओं को समझने लगता है और उन्हें पूरा करने की भरपूर कोशिश करता है. इस उम्र में वह अपने साधनों व लक्ष्यों को ले कर काफी उत्साहित रहता है. पर उम्र बढ़ने के साथसाथ व्यक्ति थोड़ा आलसी हो जाता है. वह बेमन से काम करने लगता है. यह उचित नहीं, इनसान को अपने अंदर 17 साला जोश और कुछ कर दिखाने का जज्बा सदैव कायम रखना चाहिए. तभी वह किसी भी उम्र में उपलब्धियों का आसमान छू सकेगा.

बजाय पुरानी पत्नी के 17 साला प्रेमिका बनें

उम्र बढ़ने के साथसाथ महिलाएं भौतिक सुखसुविधाएं  जुटाने व घरगृहस्थी के कामों में उलझ जाती हैं. घर व बच्चों की जिम्मेदारियों के बीच अपनी चाहत और जीवनसाथी के प्रति अपने प्रेम को प्रकट नहीं कर पातीं, पर यह रवैया सही नहीं. पतिपत्नी के रिश्ते में ताजगी बनाए रखना भी जरूरी होता है. अपनी फिटनैस पर ध्यान दें. शारीरिक व मानसिक रूप से फिट रहें. जिम जौइन करें. अपने लुक के साथ पहले की तरह ही नएनए ऐक्सपैरिमैंट करें. ट्रैंडी कपड़े और फुटवियर खरीदें. ऐसी किताबें पढ़ें, जो आप को प्रेरित करें. पति के साथ बीचबीच में चुहलबाजियां और रिश्तों की गरमाहट बनाए रखें.

खुश रहने की वजह ढूंढें

खुश रहना एक भावनात्मक और मानसिक प्रक्रिया है, जो आप की जिंदगी को खुशहाल बनाने में बहुत अहम भूमिका निभाती है.

खुश रहने का मतलब यह नहीं कि आप की जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा है. इस का मतलब यह है कि आप अपनी परेशानियों को भूल कर भी खुशीखुशी जी सकते हैं. इस से आप को परेशानियों से लड़ने की शक्ति मिलती है. खुश रहने से इनसान को अपने आसपास की हर चीज अच्छी लगने लगती है, जिस से उस के मन के नकारात्मक खयाल दूर भागने लगते हैं और वह एक बेहतर जिंदगी जी सकता है.

खुश रहने के कारण ढूंढ़ें.

बड़ी खुशियां ही नहीं, छोटीछोटी खुशियां भी महसूस करें.

 

खुश रहें, सोचें कि आप के पास किसी चीज की कमी नहीं. हाथपैर सहीसलामत हैं, दोस्त नातेरिश्तेदार हैं, घर है, पैसा है, बच्चे हैं,

 

कामधंधा है, तो फिर क्यों न अपने पास जो चीजें हैं, उन्हीं में खुश रहें.

 

दोस्तों के साथ करें 17 साला मस्ती

 

क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डा. अतुल कहते हैं, ‘‘जैसेजैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमारी जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगती हैं. कम उम्र में जिस तरह से हम खुल कर दोस्तों से अपने मन की बात कहते थे, घूमतेफिरते, हंसीमजाक करते थे, उस से हमें नई ऊर्जा मिलती थी. मगर समय के साथ सब छूटता चला जाता है.’’

 

पुराने दास्तों के साथ उसी बेफिक्री के साथ मिल कर देखिए. यह एक थेरैपी की तरह आप को नई ऊर्जा और फ्रैश फीलिंग से भर देगा और आप का जिंदगी को देखने का नजरिया बदल जाएगा.

 

पति को 17 साला ढांचे में रखें

 

पति की सेहत, रूटीन, पहनावे व खानपान का ध्यान आप को ही रखना है. प्रयास करें कि उन्हें पौष्टिक भोजन दें. शुगर/कोलैस्ट्रौल बढ़ाने वाली चीजों से परहेज कराएं. सही समय पर सारे काम करने को प्रेरित करें. उन के लिए ऐसे सलीकेदार पहनावे चुनें, जिस से वे स्मार्ट व सौम्य दिखें. ऐक्सरसाइज व अधिक से अधिक पैदल चलने के लिए प्रेरित करें.

 

17 की तर्कशीलता जरूरी

 

इस संदर्भ में क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डा. अतुल कहते हैं, ‘‘कम उम्र में हम किसी भी बात को सहजता से नहीं स्वीकारते. हम इस पर गहराई से विचार करते हैं कि क्या सही है और क्या गलत. सामाजिक बंधनों व रीतिरिवाजों को तोड़ कर वही करते हैं, जो हमें सही लगता है. किसी भी बात को तर्क की कसौटी पर जांचते हैं.

 

‘‘मगर उम्र बढ़ने के साथसाथ हम बातों को जैसा है, वैसा ही मानने लगते हैं. कम उम्र में हमें अधिक अनुभव नहीं होता पर उम्र बढ़ने के साथसाथ अनुभव और ज्ञान बढ़ते जाते हैं. ऐसे में हमें बैलेंस रखना होगा. अनुभव के साथ हम तर्क का प्रयोग भी करें, तो पुरातनपंथी सोच से किनारा करते हुए अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं.’’

 

17 तरीकों से परिवार में आएं खुशियां

 

– औफिस से घर लौटते वक्त कभीकभी खानेपीने की चीजें या बच्चों के लिए खिलौने वगैरह ले लें.

 

– जीवनसाथी को बीचबीच में सरप्राइज गिफ्ट देते रहें.

 

– परिवार के साथ कभी अचानक घूमने जाने का प्रोग्राम बनाएं.

 

– परिवारिक झगड़े का समाधान प्रेमपूर्वक करें.

 

– हर सदस्य को परिवार में उस के स्थान और उपयोगिता का एहसास कराएं.

 

– छुट्टियों का वक्त मोबाइल/इंटरनैट/दोस्तों के साथ बिताने के बजाय परिवार के साथ बिताएं.

 

– परिवार में सभी को एकदूसरे की इज्जत करने का पाठ पढ़ाएं.

 

– कभीकभी घर में खाना बनाने के बजाय खाना और्डर करें और घर में ही पार्टी का माहौल बनाएं.

 

– घर के हर सदस्य के जन्मदिन या अन्य खास मौकों को यादगार बनाएं.

 

– घर पहली पाठशाला है. बच्चों को ईमानदारी और संस्कार की अहमियत सिखाएं.

 

– घर के बुजुर्गों का सम्मान करें.

 

– टीवी देखने का समय निर्धारित कर दें.

 

– घर में अुनशासन रखें.

 

– रिश्तेदारों के यहां सीमित आनाजाना रखें.

 

– लड़केलड़की में भेद न करें.

 

– कोई समस्या आने पर घर के सभी सदस्यों से शेयर करें और उन की राय लें.

 

– घर में सभी को बचत करने की आदत डालें.

 

रिश्तों में करें निवेश

 

जिंदगी में हम नहीं जानते, कब कौन हमारे काम आ जाए. इसलिए बिना लाभहानि की परवाह किए, जितना हो सके, दूसरों के साथ रिश्ते को प्रगाढ़ करें. महीने में एक बार ही सही, पर अपने रिश्तेदारों को याद जरूर करें. दास्तों के काम आएं और अनजानों की भी मदद करें.

 

सीखें हर पल कुछ नया

 

सीखने की कोई उम्र नहीं होती, जिंदगी में जब मौका मिले, कुछ नया सीखने से गुरेज नहीं करना चाहिए. आज के समय के युवाओं की तरह समय के साथ नईनई तकनीकों से दोस्ती कीजिए और देखिए, कैसे आप को छोटेबड़े कामों के लिए अपने बच्चों/पति का मुंह नहीं देखना पड़ेगा.

 

डा. अतुल कहते हैं कि हालफिलहाल नोटबंदी की स्थिति में सभी के लिए जरूरी हो गया है कि वह कैशलैस ट्रांजैक्शन के तरीके सीखे. यह आज के समय की मांग है. पर आज यदि इस से जुड़ी जानकारियां और बारीकियां समझने का प्रयास यह सोच कर नहीं करेंगी कि इस उम्र में इन लफड़ों व झंझटों में कौन पडे़, तो यह आप की गलत सोच है. आप इसे अपनाएंगी, तो आप की ही जिंदगी आसान हो जाएगी.

 

जब बच्चे 17 के होने लगे

 

प्राइमस सुपर स्पैशियालिटी हौस्पिटल के डा. संजू गंभीर कहते हैं कि यह बहुत जरूरी है कि जब आज के बच्चे 17 के होने लगें, तब आप उन से अच्छे से जुडे़ रहें क्योंकि यही उम्र होती है, जब बच्चे सही और गलत के बीच फर्क नहीं कर पाते. ऐसे में यदि किसी बड़े का साथ हो तो बहुत अच्छा होता है.

 

खुद के साथ समय बिताएं

 

कभीकभी किसी ऐसी जगह जा कर बैठें, जहां कोई आप को डिस्टर्ब न कर सके. अपने मोबाइल/कंप्यूटर वगैरह बंद कर दें और फिर शांत मन से आगे का प्लान सोचें.   

 

17 बातें जो जीवनसाथी से कभी न कहें

 

– आप की ड्रैसिंग सैंस अच्छी नहीं.

 

– तुम से नहीं होगा, छोड़ो मैं कर लूंगी.

 

– तुम मेरी थोड़ी भी केयर नहीं करते.

 

– देखो न मैं मोटी हो गई हूं.

 

– मुझे तुम से शादी करनी ही नहीं चाहिए थी.

 

– मुझे तुम्हारे दोस्त अच्छेनहीं लगते.

 

– नौकरी कब बदलोगे.

 

– व्हाट इज रौंग विद यू.

 

– रुको, मैं बताती हूं, यह काम कैसे करना है.

 

– डोंट टच मी, दूर रहो.

 

– काश, तुम थोड़ा ज्यादा कमा रहे होते.

 

– मेरा ऐक्स मेरे लिए हमेशा मेरी पसंद की साड़ी लाता था. मेरी चौइस की बहुत परवाह थी उसे.

 

– तुम बिलकुल अपने पिता जैसे जिद्दी हो.

 

– यदि तुम सचमुच मुझ से प्यार करते, तो ऐसा नहीं करते.

 

– मेरी मां ने पहले ही वार्निंग दी थी कि तुम से निभ नहीं सकती.

 

– तुम्हारी मां कितना बोलती हैं.

 

– तुम्हारी बहनों ने मेरी जान खा ली है.

 

17 चीजें जिन से दूर रहें

 

इन 17 चीजों को घर और मन से दूर रखना जरूरी है:

 

1. ईर्ष्या

 

2. क्रोध

 

3. पछतावा

 

4. नकारात्मक सोच

 

5. टालने की प्रवृत्ति

 

6. चिंता

 

7. चुगलखोर दोस्त

 

8. बुराइयां निकालने वाले लोग

 

9. हतोत्साहित करने वाले लोग/रिश्तेदार

 

10. अंधविश्वासी सोच

 

11. झूठा दंभ

 

12. कृतघ्नपूर्ण व्यवहार

 

13. हारने का खौफ

 

14. अनिश्चय की स्थिति

 

15. गलत सोच वाले व्यक्ति का साथ

 

16. फुजूलखर्ची

 

17. प्रतिकार की भावना

 

विंटर वैडिंग के लिए ब्राइडल ड्रैसेज

शादीब्याह की तैयारी में दुलहन की ड्रैस भी अहम स्थान रखती है. लेटैस्ट फैशन, बढि़या डिजाइन, बजट, कलर सभी चीजों को ध्यान रख कर अपने लिए ब्राइडल वियर चुनती हैं. हर साल की तरह इस साल भी दुलहनों के लिए ब्राइडल वियर में नया क्या है, इस बारे में बता रही हैं फैशन डिजाइनर अनुभूति जैन.

लहंगाचोली: यह स्टाइल विंटर्स के लिए बिलकुल नया और इन है. दुलहन के लिए यह बहुत कंफर्टेबल भी है. यह आउटफिट स्पैशली उन दुलहनों के लिए है,

जो ठंड के मौसम में गरम रहना चाहती हैं. इस में ब्लाउज के साथ यह लौंग या शौर्ट जैकेट होती है. इस जैकेट के किनारों पर लहंगे जैसी ही बहुत सुंदर ऐंब्रौयडरी हकी होती है, जो इसे और भी रौयल बनाती है.

लहंगा विद टेल: इस लहंगे में लहंगे का घेर पीछे से बहुत ज्यादा होता है. वह पीछे से जमीन को टच करता होता है. इसे पीछे से किसी को पकड़ कर चलना पड़ता है और यही चीज दुलहन की चाल में नजाकत और एक अदा लाती है.

जैकेट लहंगा: यह बहुत कुछ शरारे जैसा होता है और इस में लहंगे के ऊपर एक हैवी जैकेट होती है जोकि पूरे लहंगे को हैवी लुक देती है. यह जैकेट लहंगे के कलर की या फिर कंट्रास्ट भी हो सकती है.

नैट का लहंगा: यदि आप के पसंदीदा रंगों में से पिंक एक है, तो आप के लिए नैट का लहंगा जिस पर महीन हस्त कारीगरी से डिजाइन बनाए  गए हों बेहद खूबसूरत लगेगा. इस के साथ फुल बाजू की कोटी अच्छी लगेगी. इस पर गोल्डन तार से काम किया जाता है, जो लहंगे को सोने जैसी चमक देता है.

लहंगा विद मिरर ऐंड क्रिस्टल: इस पूरे लहंगे पर मिरर और क्रिस्टल का काम होता है, जिस से इस की चमक कई गुना बढ़ जाती है. इस दिन दुलहन सब से अलग दिखना चाहती है. अत: इस काम का लहंगा भी लिया जा सकता है.

लौंग स्लीव्स लहंगा: विंटर की दुलहन के लिए यह अच्छा औप्शन है. इस में नैट या फिर सिल्क की स्लीव्स हो सकती हैं. डैस्टिनेशन वैडिंग के लिए भी यह परफैक्ट है. इस लहंगे में ऐंब्रौयडरी नीचे की तरफ होती है वही काम स्लीव्स पर भी होता है.

वैल्वेट का लहंगा: वैल्वेट का लहंगा एक बार फिर इन है. इस पर पैच वर्क होता है, जो कि अधिकतर गोल्डन कलर में किया जाता है. मैरून रंग के लहंगे पर गोल्डन कलर का पैच वर्क खूब फबता है.

रिसैप्शन के लिए: अगर आप को अपनी शादी के बाद रिसैप्शन में ग्लैमर और लीक से हट कर कुछ चाहिए तो आप गोलडन कलर की साड़ी पहनें. इस कलर की साड़ी के साथ सुविधा यह होती है कि इस में आप ज्वैलरी के साथ ऐक्सपैरीमैंट कर सकती हैं. इस के अलावा रौयल और कंटैंपररी लुक के लिए रा सिल्क, जरदोजी में नीले रंग की साड़ी इस मौके पर अच्छी रहेगी. अपने लुक को और भी बोल्ड और ब्राइट बनाने के लिए इस में पीला या लाल रंग भी जोड़ें या फिर अलग से चुन्नी. इन कलर की साड़ी के साथ मिक्स ऐंड मैच कर सकती हैं. गोटापट्टी वर्क की प्योर शिफौन साड़ी वैसे तो हलकी होती है, लेकिन अपने हैवी गोटापट्टी के काम की वजह से इस फंक्शन के लिए खूब हैवी लगेगी. इस के अलावा बनारसी सिल्क साड़ी भी दुलहन पर खूब फबती है, क्योंकि इस का लुक सब से हट कर होता है.

दुलहन नए रंग भी ट्राई करें. जब बात शादी की आती है तो दुलहन अकसर एक ही रंग पहनती है और वह है रैड. लेकिन बदलते समय के साथ दुलहन के लहंगे का कलर भी बदलने लगा है. अब दुलहनें ऐक्सपैरीमैंट करने से घबराती नहीं हैं वे अलगअलग रंगों के साथ प्रयोग कर रही हैं. वे पेस्टल से ले कर न्योन तक हर रंग के लहंगे ट्राई कर रही हैं. लेकिन आप फिर पारंपरिक रैड मैरून रंग से किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहतीं और वही पहनना चाहती हैं, तो उस में दुपट्टा या चोली अलग रंग की ले कर एक नया कलर कौंबिनेशन फ्यूजन के जरीए बना सकती है. बबलगम पिंक, स्काई ब्लू, लाइट ग्रीन, लीफ ग्रीन, औरेंज, रैड, पंपकिन औरेंज, गोल्डन आदि कलर ट्राई कर सकती हैं.

ई-वालेट पर साइबर हमले का डर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक नोटबंदी का जो फैसला देश पर थोपा, उस से आम आदमी पर क्या फर्क पड़ा, उस ने क्या क्या झेला किसी से छुपा नहीं है. दुख की बात तो यह है कि करीब सवा सौ लोगों की मौत और इतनी परेशानियां झेलने के बाद भी यह अभियान पूरी तरह सफल नहीं हो पाया. अलबत्ता नरेंद्र मोदी की हठधर्मिता जरूर पूरी हो गई.

बात यहीं तक सीमित होती तब भी  ठीक था, लेकिन भगवा ब्रिगेड के कंधों पर खड़े नरेंद्र मोदी ने अब नई जिद पकड़ ली है, देश को कैशलेस बनाने की, जो इतना आसान नहीं है. आश्चर्य की बात तो यह है कि बिना संपूर्ण संसाधनों के नरेंद्र मोदी देश को उस रास्ते पर ले जाना चाहते हैं, जिस में खतरे ही खतरे हैं. जबकि यह तभी संभव हो सकता है, जब पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा सरकार आईटी कंपनियों और बैंक के उच्चाधिकारियों के साथ बैठ कर रणनीति तैयार करे.

इस वक्त देश में कुल जमा 2.05 लाख एटीएम मशीनें हैं और 14.5 लाख पीओएस (पौइंट औफ सेल) मशीनें. जबकि डेबिट कार्डों की संख्या 69.17 करोड़ है और क्रेडिट कार्ड धारक 2.5 करोड़ हैं. अनुपात के हिसाब से एटीएम और पीओएस दोनों ही कम हैं. इस मामले में देहात क्षेत्रों और कस्बों की स्थिति तो और भी गंभीर है.

कैशलेस ट्रांजैक्शन के लिए डेबिट और क्रेडिट कार्डों के बाद नंबर आता है इंटरनेट और इंटरनेट युक्त मोबाइल यूजर्स का. ई-बैंकिंग की बात करें तो 132 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में 33 करोड़ इंटरनेट यूजर्स और 1.02 अरब मोबाइल यूजर्स हैं. इतनी बड़ी संख्या में मोबाइल यूजर्स होने के बावजूद केवल 33 प्रतिशत यूजर्स ही मोबाइल में इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. इन में भी बैंकिंग करने वाले कम ही हैं. ऐसे में इंटरनेट बैंकिंग कैसे संभव है?

आंकड़ों पर ध्यान दें तो पिछले 5 सालों में 3 गुना साइबर अपराध बढ़े हैं. गुजरे 3 साल में 96 हजार से ज्यादा वेबसाइटें हैक की गई हैं. इन में 63 प्रतिशत कंपनियों की साइटों को हैक कर के हैकरों ने भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाया. 4 मई, 2016 को सरकार ने लोकसभा में बताया था कि 2016 की पहली तिमाही में 8,056 वेबसाइट्स हैक की गईं, यानी हर दिन करीब 90 वेबसाइट्स. बताते चलें कि साइबर क्रिमिनल्स की सब से ज्यादा नजर वित्तीय सेवा और बीमा क्षेत्र पर रहती है.

इस समय सुरक्षा एजेंसियां 32.14 लाख से अधिक डेबिट और क्रेडिट कार्डों से संबंधित बैंकिंग सुरक्षा में लगाई गई सेंध की जांच कर रही हैं. इन में से कुछ कार्डों में साइबर मालवेयर हमले से तो कुछ में हैकिंग से सेंध लगाई गई. इस में एटीएम का क्लोन बनने के लिए कार्डधारक से कोई जानकारी लेने की जरूरत नहीं होती. नेशनल पेमेंट कारपोरेशन औफ इंडिया के अनुसार चोरी के डेबिट कार्ड डेटा से क्लोन बना कर 19बैंकों एसबीआई, एचडीएफसी, एक्सिस और यस बैंक के 641 ग्राहकों को लगभग 1.3 करोड़ रुपए का चूना लगाया गया.

परेशानी की बात यह है कि साइबर अपराधियों ने इस काम को अमेरिका, ब्राजील, तुर्की, चीन,पाकिस्तान, बांग्लादेश, अल्जीरिया और संयुक्त अरब अमीरात में बैठ कर अंजाम दिया, जहां कुछ नहीं किया जा सकता. कहीं दूर देश में बैठा व्यक्ति डाटा चुरा कर आप के कार्ड का क्लोन बना लें और आप का खाता साफ कर दे तो आप क्या कर सकते हैं? रिपोर्ट लिखाई भी तो पुलिस क्या कर लेगी?

मोदी सरकार नकद लेनदेन से इसलिए भी बचना चाहती है, क्योंकि हर साल नोट छापने और उसे मार्केट तक पहुंचाने में 21 हजार करोड़ रुपए का खर्चा आता है. जुलाई 2015 से जून 2016 तक रिजर्व बैंक ने 21.2 अरब नोटों की सप्लाई की, जिन्हें तैयार करने में 3,421 करोड़ रुपया खर्च आया. 2000 और 500 के नए नोटों की छपाई और ट्रांसपोर्ट पर भी 15,000 करोड़ खर्च होने का अनुमान है. जाहिर है, ई-बैंकिंग से यह खर्चा भी कम होगा और सरकार को हर ट्रांजैक्शन पर टैक्स भी मिलेगा. इस सब से आम आदमी भले ही घाटे में रहे पर मोबाइल पर नेट की सुविधा देने वाली पेटीएम, पे-पल, ई-कैश, एम पैसा, गूगल वालेट,मोबीक्विक और फ्रीचार्ज जैसी कंपनियों को मोटा मुनाफा होगा.

आप को लाभ यही होगा कि पैसे के लिए बैंक के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे. हां, साइबर अपराधियों का खतरा जरूर बना रहेगा. कहने का अभिप्राय यह है कि ई-वालेट पूरी तरह सुरक्षित नहीं है. यह तभी सुरक्षित हो सकता है जब सरकार साइबर अपराधियों को रोकने के लिए पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर के साइबर विशेषज्ञों की टीमों की नियुक्ति करे. 

जीवन में गंभीरता भी जरूरी

देश की समस्याओं का अब एक बड़ा कारण लोगों का भावनाओं में बह जाना और समस्याओं को मजाक में उड़ा देना है. एक तरफ धार्मिक धुआंधार प्रचार और दूसरी तरफ मोबाइल की चुहलबाजी ने मानसिकता को कुंद कर दिया है और लोगों का सोचविचार इतना कम हो गया है कि नोटबंदी जैसे मामले पर भी सोशल मीडिया में मजाक ज्यादा चले, इस प्रहार की मार का दर्द कम उजागर हुआ. जीवन एक संघर्ष है. न फसल मजाक से पैदा होती है, न मकान हंसी और चुटकुलों से बनते हैं, न ही बच्चे प्रवचनों से पैदा होते हैं और न भाषणों से बड़े होते हैं. जीवन में गंभीरता की जरूरत होती है और जिस समाज ने यह गंभीरता खो दी, मूर्खता में या दंभ में वह मरेगा ही. पंजाब एक समय देश का सब से उन्नत राज्य था पर दंभ, धर्म, शराब, नशे और मजाक ने उसे आज इस तरह गर्त में डाल दिया कि ‘उड़ता पंजाब’ जैसी फिल्म बन सके.

आप जीवन में कितनी गंभीर हैं, क्या पूछा खुद से? कितना समय मोबाइलों पर चुटकुले फौरवर्ड करने या किट्टी पार्टियों में निरर्थक तंबोलों में खर्च करती हैं या कितना समय समस्याओं को जानने और पहचानने की कला को विकसित करने में लगाती हैं? हमारे यहां पढ़ीलिखी, शिक्षित अध्यापिकाएं भी न विचारकों की बातें करती हैं न किताबें पढ़ती हैं और न कुछ लिखती हैं. उन का समय शौपिंग में, टीवी या रिपीट होती फिल्में देखने में, फोन पर गप्पें मारने या कान में इयरफोन ठूंस कर पुराने गाने बारबार सुनने में व्यर्थ हो रहा है.

जब कोई समस्या आती है तो हाथपैर फूल जाते हैं, क्योंकि जिस से सलाह मांगो वह मुंह छिपा लेता है. किसी को कुछ समझ हो तो बताए न? समझ तो तब आएगी जब दूसरों की, देश की, समाज की, विश्व की, भूगोल की, पर्यावरण की समस्या पर ध्यान दिया हो. गंभीर चर्चाएं करने वालों को अमेरिका जैसे देश में भी ‘नर्ड’ कह कर अपमानित किया जाता है. यह समाज मूर्खों का समूह बन रहा है, जिस में क्रिकेटरों और फिल्मी सितारों के जीवन के हर पल की चिंता है पर अपनी आने वाली आफत की नहीं. गंभीर जने को यहां एकाकीपन की कैद में डाला जा रहा है. उसे किसी भी ग्र्रुप में ऐरोगैंट एजुकेटेड कह कर अलगथलग कर दिया जाता है. बहाव के विरुद्ध सोचने वाले को अजूबा मान लिया जाता है. उसे बदलने का संकल्प करें ताकि जीवन सुधरे.

हिंदी को कम न आंकें

‘हिंदी की राह आसान नहीं.’ इस जुमले में उतना ही दम है जितना हिंदी भाषी छात्रों की पीड़ा में और यह पीड़ा तब और गहरी हो जाती है जब हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले विद्यार्थियों को इन कैंपस या आउट कैंपस में बहनजी या भाईजी कह कर बुलाया जाता है. हिंदी के प्रति लोगों का यह रवैया कुछ अजीब नहीं लगता है. वैश्विक स्तर पर अंगरेजी का तेजी से विकास हुआ है और इस की स्पष्ट झलक हमारे देश में भी देखी जा सकती है. जनसंपर्क की भाषा के रूप में अंगरेजी ने अपनी स्थिति मजबूत की है. पढ़ाई हो या नौकरी, हर जगह अंगरेजी माध्यम के लोगों को हाथोंहाथ लिया जाता है. जो इस भाषा की रेस में पिछड़ जाते हैं वे जिंदगी की दौड़ में भी पीछे रह जाते हैं. ऐसी स्थितियों को हम ने खुद पैदा किया है. अंगरेजी अब हमारी जरूरत बन गई है.

इन सब से उलट अगर हिंदी भाषा और माध्यम की बात की जाए तो जाहिर है इस माध्यम से पढ़ने वाले छात्रों के पास नौकरी या मोटी सैलरी पाने का ज्यादा स्कोप नहीं होता. काफी मशक्कत के बाद नौकरी मिल जाती है तो उस में भी उम्मीदवारों की लंबी लिस्ट होती है और मोटी तनख्वाह पाने की हसरत अधूरी रह जाती है. ऐसे छात्रों को एकसाथ कई मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं. एक रिजैक्शन का और दूसरा फेलियर होने का ठीकरा उन के सिर फोड़ा जाता है. चाहे मुश्किलें कितनी भी गहरी क्यों न हों रात तो निकल ही जाती है. ऐसा बिलकुल नहीं कि हिंदी माध्यम से पढ़ने वालों को खाली हाथ बैठना पड़ता है, अगर थोड़ी कोशिश की जाए तो इस में भी अच्छा कैरियर बन सकता है.

एक समय था जब हिंदी को आउट औफ डिमांड माना जाता था. अब इस के पेशेगत स्कोप और बढ़ती लोकप्रियता ने इसे विश्व की टौप चार्ट बस्टर्ड लैंग्वेज की लिस्ट में शामिल किया है. अब यह ग्लोबल लैंग्वेज बन चुकी है. विदेशी छात्रों का हिंदी भाषा के प्रति बढ़ता रुझान यह साबित करता है कि हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है. जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय में पौपुलर होते हिंदी कोर्सेज ने इस के लिए ग्लोबल भविष्य के दरवाजे खोल दिए हैं. हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय ने विदेशी छात्रों के लिए हिंदी से जुड़े कई शौर्ट टर्म औैर फुल टाइम कोर्सेज की शुरुआत की है, जो एक अच्छा संकेत है. विदेशी ही क्यों, अब तो अपने देश के छात्रों के पास भी हिंदी से संबंधित नौकरियों के भरपूर अवसर हैं. हिंदी कौल सैंटर से ले कर हिंदी अनुवादक, हिंदी अधिकारी, स्टैनो, टाइपिस्ट, आदि की जौब खुले दिल से हिंदी भाषी छात्रों का इंतजार कर रही है.

हिंदी माध्यम से पढ़े युवाओं से उन के नौकरी प्राप्त करने संबंधी अनुभव पूछे गए तो उन्होंने कुछ इस प्रकार अपने विचार बांटे : रक्षा मंत्रालय के अपौइंटमैंट डिविजन में बतौर पीए कार्यरत कमलेश दत्त कहती हैं, ‘‘हमारी युवापीढ़ी हिंदी को अपनाने से इसलिए कतराती है, क्योंकि उन्हें इस में अपने भविष्य की संभावनाएं शायद कम नजर आती हैं, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है. सरकारी और गैरसरकारी संस्थानों में अनगिनत ऐसे पद हैं, जो सिर्फ हिंदी भाषियों के लिए आरक्षित हैं. हां, यह जरूर है कि इन पदों को भरने की आवश्यक कार्यवाही या साक्षात्कार आदि में अभी भी अंगरेजी की प्रधानता बनी हुई है.

‘‘हिंदी की छवि को कम न आंक कर अगर हम इस के प्रचारप्रसार और अनिवार्यता पर ध्यान दें तो इस में अच्छी संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं. मैं भी हिंदी माध्यम से पढ़ी हूं पर आज एक अच्छे पद पर कार्यरत हूं औैर अपने काम से संतुष्ट भी. मुझे कभी यह मलाल नहीं रहा कि मैं हिंदी माध्यम से पढ़ कर आई हूं बल्कि मुझे गर्व है कि मैं ने इसी माध्यम के बल पर अच्छी नौकरी पाई.’’ रक्षा मंत्रालय में हिंदी अनुभाग में बतौर जूनियर हिंदी ट्रांसलेटर कार्यरत मनोज कुमार साव कहते हैं, ‘‘कौन कहता है कि हिंदी का कोई स्कोप नहीं है. आज इसी भाषा ने मुझे रोजीरोटी दी है. परिस्थितिवश मुझे इस माध्यम को चुनना पड़ा था और जब बात इसी क्षेत्र में कैरियर बनाने की आई तो घर वालों की खासी नाराजगी झेलनी पड़ी.

‘‘सब ने कहा, जूते घिस जाएंगे पर नौकरी नहीं मिलेगी. आज मैं इस पद पर हूं. समाज और परिवार में अच्छाखासा सम्मान है. परिवार वालों को मुझ पर फख्र है. हां, थोड़ा वक्त जरूर लगता है पर संघर्ष से पीछे नहीं हटना चाहिए. हिंदी अब कहीं से भी किसी भाषा से बिलकुल कम नहीं. जैसे फ्रैंच, जरमन, स्पेनिश का स्कोप बढ़ा है, हिंदी का भी उतना ही बढ़ा है. मुझे इस भाषा से प्यार है और मैं इस का सम्मान करता हूं.’’

हिंदी माध्यम के छात्र कुछ ऐसे संवारें जिंदगी

दोभाषिए, कनिष्ठ व वरिष्ठ हिंदी अनुवादक :  इस के लिए कर्मचारी चयन आयोग द्वारा प्रत्येक वर्ष अनुवादकों की रिक्तियां निकाली जाती हैं. इस के अतिरिक्त सरकारी अधीनस्थ कार्यालयों और पीएसयू में भी अच्छे अवसर हैं.

स्टैनो व टाइपिस्ट : विभिन्न अधीनस्थ सरकारी संस्थानों, मंत्रालयों, पीएसयू, प्राइवेट सैक्टर बैकों, उपक्रमों आदि में इन पदों की रिक्तियां आती रहती हैं.

हिंदी पत्रकारिता :  यह सब से डिमांडिंग व स्कोपफुल औप्शन है, हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए. इस में जौब के बेहतर अवसर हैं.

रेडियो, टीवी आदि में समाचारवाचक :  इस क्षेत्र में हिंदी माध्यम के छात्र न केवल लोकप्रियता की ऊंचाइयां छू सकते हैं बल्कि अच्छा वेतन भी पा सकते हैं.

स्कूल यूनिवर्सिटी में हिंदी शिक्षक :  इस रूप में काम कर हिंदी माध्यम को और ज्यादा सशक्त और प्रचारितप्रसारित किया जा सकता है. इस पेशे में सम्मान के साथसाथ पैसा भी है.

फ्रीलांस राइटर या कंटैंट राइटिंग : इसे कर के शोहरत के साथसाथ धन भी अर्जित किया जा सकता है.

विदेशी दूतावास में हिंदी जनसंपर्क अधिकारी व बैंकों में हिंदी अधिकारी : इन पदों पर नियुक्ति पा कर भविष्य संवारा जा सकता है.

हिंदी कोर्स कराने वाले कुछ प्रसिद्ध संस्थान

केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा :  यह संस्थान देशविदेश के छात्रों को हिंदी भाषा से संबंधित विभिन्न डिप्लोमा, सर्टिफिकेट, डिग्री कोर्स करवाता है. यह संस्थान केंद्र द्वारा मान्यताप्राप्त व वित्त पोषित है. केंद्रीय हिंदी निदेशालय :  सरकारी मान्यताप्राप्त इस शिक्षण संस्थान की स्थापना विशेष रूप से गैरहिंदी भाषी लोगों को पत्राचार के माध्यम से हिंदी का प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु की गई है. यह एनआरआई और विदेशों में बसे हिंदी सीखने के इच्छुक भारतीयों को हिंदी से जुड़े विभिन्न कोर्स की सुविधा देता है, जिस में भिन्न डिप्लोमा आधारित कोर्सेज जैसे प्रबोध, प्रवीण व प्राज्ञ की उपाधि दी जाती है.

केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल : यह केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा का स्वायत्त संगठन है. संस्थान मुख्यतया हिंदी के अखिल भारतीय शिक्षणप्रशिक्षण अनुसंधान और अंतरराष्ट्रीय प्रचारप्रसार के लिए कार्य, योजनाओं का संचालन करता है.

केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान/हिंदी शिक्षण योजना

संवैधानिक प्रावधान के तहत 1974 में केंद्र सरकार और उस से जुड़े मंत्रालयों/उपक्रमों/अधीनस्थ कार्यालयों के कर्मचारियों/अधिकारियों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से इस संस्थान की स्थापना की गई थी. आज यह संस्थान हिंदी से जुड़े विभिन्न कोर्सेज के लिए जानामाना संस्थान है. इस में अधिकारियों के लिए हिंदी से जुड़े वर्कशौप का भी आयोजन किया जाता है.

मोबाइल पर भी थोड़ा तरस खाइए

एक सर्वे के मुताबिक, एशियाई पर्यटक सब से ज्यादा अपने स्मार्ट फोन से चिपके रहते हैं. आप चाहे अपना टूथब्रश व पेस्ट भूल जाएं, पर मोबाइल नहीं भूल सकते. पर्यटकों के मुताबिक स्मार्ट फोन ब्रश, पेस्ट, ड्राइविंग लाइसैंस जैसी जरूरतों से कहीं आगे है. ऐक्सपीडिया और ऐजेंसिया 2 ऐसी ऐजेंसी हैं, जो यह देखती हैं कि मोबाइल का सफर में कितना इस्तेमाल होता है. इन ऐजेंसियों ने खोज निकाला है कि एशियाई लोगों के लिए मोबाइल फोन अब सब से बड़ी जरूरत है.

एक बार एक लिफ्ट में एक आदमी ने एक महिला, जिस का रंग उड़ा हुआ था और सांसें उखड़ रही थीं, से पूछा, ‘‘आप को दमा की तकलीफ तो नहीं है? या आप का लिफ्ट में दम तो नहीं घुट रहा?’’

औरत ने जवाब दिया, ‘‘मेरा दम घुट रहा है, क्योंकि मेरे मोबाइल पर नैटवर्क का सिगनल नहीं आ रहा.’’

श्मशान भी अछूता नहीं

अब कोई सरकारी फरमान तो नहीं निकाल सकते कि आप अपना मोबाइल कक्षाओं, श्मशानघाट व मीटिंग आदि में न इस्तेमाल करें, क्योंकि लोगों को खुद इतनी जिम्मेदारी दिखानी चाहिए कि कहां मोबाइल पर बात करनी है कहां नहीं. अब ऐसे तो नहीं हो सकता कि मलिंगा रनअप करते विराट कोहली की तरफ तूफानी बौल फैंकने लगे तो कोहली उसे हाथ दिखा कर रोक दे और यह कहे कि 1 मिनट भाईसाहब, मुझे एक ऐड कंपनी से काल आया है. 2 मिनट बात कर लूं फिर आप की बाल खेलूंगा.

सब से बड़ी हैरानी और गुस्सा तब आता है जब श्मशान घाट पर 1 मिनट आंसू बहाते लोग नजर आते हैं और दूसरे पल ही एक साधारण मसले पर बात करने के लिए फोन पर बात करने लगते हैं. कई बार तो ऊंची आवाज में पूरे दृश्य का भी वर्र्णन हो जाता है, ‘‘हां जी, मैं यहां संस्कार पर आया हूं. बस अभी फारिग हो कर तुम्हारे पास आता हूं. फिर शाम की पार्टी का प्लान कर लेते हैं.’’

ऐसे ही एक मौके पर जब चिता जलने की तैयारी कर रहे थे, तो किसी का फोन बजा और पूरी जोश के साथ रिंगटोन, मौजा ही मौजा… बज पड़ी.

पंडितजी को गुस्सा आया, ‘‘बंद करो फोन. यह कोई टाइम है.’’

रिश्तेदारों ने समझाया, ‘‘पंडितजी, यह तो सही गाना है. यह तो मर गए पर हम सब के लिए अपनी जायदाद छोड़ गए.’’

खुद के लिए मुसीबत

चाहे आप हम से हमारी नींद छीन लें, खाना छीन लें, टीवी बंद कर दें, पर मोबाइल के बगैर 1 मिनट मानो ऐसा लगता है कि हमें वक्त की सुनामी ने उछाल कर कहीं दे मारा हो. एक मिनट के लिए भी अगर हमारी गाड़ी रैड लाइट पर रुकती है, तो हम सब से पहले एक भूखे शेर की तरह मोबाइल की तरफ झपटते हैं कि कहीं पिछले 40 सैकंड में हम को किसी ने मैसेज तो नहीं किया? और अगर कहीं गाड़ी चलाते वक्त फोन काल आ जाए तो फिर रामदेव को पीछे छोड़ते हुए, हम ऐसे योगा के आसन करते हैं कि वाहवाही हो जाती है. देखिए न, सड़क पर आंखें, एक हाथ स्टेयरिंग पर, दूसरे हाथ में मोबाइल और स्टेयरिंग वाला हाथ गियर भी बदलता हुआ, इतना भीषण योगा आसन करने के बाद भी योग गुरु को लगता है कि हम योगा को गंभीरता से नहीं लेते हैं. सब से चिंता वाली बात है कि हम सैल्फी खींचतेखींचते मौत के मुंह में छलांग लगाने में दुनिया में अव्वल नंबर पर हैं. हमें कितना अच्छा लगता है कि हम चलती गाड़ी के ट्रैक पर भी फोटो खींच लेते हैं. ऊंची पहाडि़यों के ऊपर भी यह क्रेज जारी रहता है. पता तो तब चलता है जब हम अपने देश की नन्ही जानों को गवां के बिलखते रह जाते हैं.

मोबाइल को भी आराम दीजिए

इसलिए दोस्तो, आराम दीजिए अपनेआप को भी और अपने मोबाइल को भी. जो मोबाइल आप के दोस्तों से मिलाती है, दुनिया भर की जानकारी देता है, आप का हर पल साथ देता है, उस मोबाइल को सम्मान दीजिए, आराम दीजिए.

एक आदमी अपनी गाड़ी में बैठ रहा था. ड्राइवर से उस ने पूछा, ‘‘मोबाइल का चार्जर रख लिया? जी जनाब, लैपटौप का चार्जर रखा? जी जनाब, कैमरे का चार्जर रख लिया? जी जनाब. चलो गाड़ी चलाओ. थोड़ी दूर जाने पर उस आदमी ने कहा, ड्राइवर, जरूरी समान रख लिया पर पता नहीं फिर भी क्यों लग रहा है कि मैं कोई चीज भूल रहा हूं? ड्राइवर ने बिना आंखें झपकाते हुए कहा, ‘‘सर बुरा न मानें शायद आप मैडम को घर भूल आए.               

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