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दलितों का कौन सा भला करेगा अंबेडकर गरबा

ऊंची जाति वालों को बेवजह ही कोसा और बदनाम किया जाता है कि वे दलितों को मंदिरों में जाने और पूजा पाठ करने से रोकते हैं और इसके लिए जरूरत पड़े यानि दलित न माने तो उनके साथ मार पीट हिंसा और कभी कभी तो उनकी हत्या तक कर डालते हैं. सच तो यह है कि दलितों से ज्यादा ये सवर्ण चाहते हैं कि दलित भी पूजा पाठ व्रत उपवास सब करें पर शर्त इतनी है कि उनके साथ न करें क्योंकि दलित योनि में पैदा होना पिछले जन्मों के पापों की सजा है और दलित को बराबरी से बैठाना ऊंची जाति वालों के लिए मना है क्योंकि वे अगर दलितों से बराबरी का व्यवहार करेंगे जैसा कि दलित चाहते हैं तो उन्हें यह कैसे समझ आएगा कि वे किन कर्मों और पापों की सजा भुगतने धरती पर पैदा किए गए हैं.

इधर देश भर के खास तौर से गुजरात के दलितों की यह जिद फिर जोर पकड़ रही है कि अगर सवर्ण उन्हें साथ मे पूजा पाठ नहीं करने देंगे तो वे अलग से यह सब और दूसरे कर्म कांड करेंगे जिससे सवर्णों को सबक मिले, बस इसी जिद और बेवकूफी का फायदा सवर्ण सदियों से उठा रहे हैं. दरअसल में ऊंची जाति वाले चाहते यही हैं कि दलित पिछड़े पाप पुण्य, स्वर्ग नर्क, व्रत उपवास, मुक्ति मोक्ष जैसे मकडजाल में उलझे अपनी बदहाली से निजात पाने का रास्ता धर्म में ढूंढते छटपटाते रहें.

यह साजिश बहुत गहरी है जिसका मकसद दलितों को उनके दलितपने का एहसास कराने के साथ साथ उन्हें गरीबी के दलदल में भी धंसाये रखना है. इसी मकसद से दलितों की धार्मिक कमजोरियों का फायदा उठाते उन्हें जानबूझकर पूजा पाठ और मंदिरों से दुत्कार कर भगाया जाता है जिससे वे गुस्से में आकर अपने अलग मंदिर बनाकर अपने पुराने और नए पाप (जो उन्होंने किए ही नहीं) को धोने घंटे घड़ियाल बजाते भगवान से गुहार लगाते रहें कि हे प्रभु हमें भी ऊंची जाति वाला बना दें और इस पूजा पाठ और दान दक्षिणा के एवज में इस नहीं तो अगले जन्म में तो ऊंची जाति में पैदा कर ही देना जिससे हमें यह गरीबी और नर्क जैसी सामाजिक यंत्रणा से मुक्त रहें.

नया शिगूफा – अंबेडकर गरबा

गुजरात का गरबा दुनिया भर में मशहूर है जो नवरात्रि के दिनों में देवी को खुश करने के लिए किया जाता है. अब यह दीगर बात है कि इस गरबे की आड़ में लोग देवी की पूजा कम अपनी माशूकाओं को रिझाने में ज्यादा लगे रहते हैं. कुछ साल पहले तक दलितों को गरबा से दूर रखा जाता था हां पैसे वाले दलितों पर कोई रोकटोक नहीं थी क्योंकि वे महंगा पास खरीद सकते हैं और पंडालों और झांकियों में चंदा और चढ़ावा भी दे सकते हैं. अहमदाबाद में इस साल एक दिलचस्प गरबा हुआ जिसे नाम दिया गया अंबेडकर गरबा.

इस धूमधड़ाके वाले अंबेडकर ब्रांड गरबा की खूबी या खामी कुछ भी कह लें यह थी कि इसमें 100 दलित परिवारों ने ही शिरकत की और अंबेडकर पर बनाई गई संतोषी माता नाम की हिन्दू देवी की आरती कि पेरोडी पर खूब थिरके. जय जय संतोषी माता… की जगह जय जय अंबेडकर साहब… आरती बजाई गई जिसमें दलित समुदाय के लड़के लड़कियों ने जमकर डांडिया लहराते नाच किया.

अंबेडकर गरबा के आयोजक कनू सुमसेरा मंगलभाई की इन दलीलों में तो दम था कि दलित समाज के लोगों को लगता था कि देवी देवता उन्हें बर्बाद कर देंगे उन्हें पूजने से तो बेहतर है कि हम अंबेडकर की पूजा करें. लेकिन इस अलग आयोजन का एक सच या वजह यह भी है कि नवरात्रि के दिनों में ही सवर्णों के एक पांडाल में गरबा देखने गए एक दलित नौजबान को पीट पीट कर मार डाला गया था. इस हादसे के साथ साथ मंगल भाई ने गुजरात में रोज रोज हो रहे दलित अत्याचारों का जिक्र करते तूल पकड़ते मूंछ वाले चर्चित मामले का भी जिक्र किया. इस शर्मनाक मामले में एक दलित नौजबान पर महज इसलिए हमला किया गया था कि वह मूंछ रखे घूम रहा था. इससे गुस्साए रसूखदारों ने उसकी तबियत से ठुकाई कर दी थी.

गांधीनगर इलाके में दलित अत्याचार की यह तीसरी लगातार घटना थी जिसका विरोध सानंद के  दलितों ने अनूठे तरीके से व्हाट्सएप पर करते हुए अपनी अपनी डीपी पर मूंछों की फोटो लगाते हुए ‘मैं दलित’ लिखा था. इस विरोध पर भी सब का ध्यान गया था. ध्यान अंबेडकर गरबा पर भी गया लेकिन अफसोस उस वक्त हुआ जब सभी ने इस जलसे की भी तारीफ की.

हासिल क्या

शायद ही कनू सुमसेरा मंगल भाई या उनकी पीठ थपथपा रहे लोग बता पाएं कि अंबेडकर गरबा से दलितों को क्या हासिल हुआ और कौन सा सबक ऊंची जाति वालों को मिला. क्या सवर्णों ने अपना जुर्म मंजूर कर दलितों से माफी मांग ली या दलितों के पांडाल में आकर उन्हें भईया कहते गले से लगा लिया. क्या ऊंची जाति वालों ने दलितों के पैरों में गिरकर अपनी गलती सुधारने का भरोसा दिलाया.

ऐसा कुछ नहीं हुआ है तो सहज समझा जा सकता है कि किसी ने कोई सबक नहीं सीखा है और न ही हिन्दू धर्म अंबेडकर गरबा से किसी खतरे में पड़ गया है. हुआ सिर्फ इतना है कि सवर्णों ने चैन की सांस ली है कि आइंदा ये अछूत उनके साथ गरबा खेलने या देखने की भूल नहीं करेंगे. दलितों के अलग अंबेडकर ब्रांड गरबा खेलने से साबित यही हुआ है कि उनके साथ भेदभाव जारी रहेगा जब भी वे अपनी मूंछों पर ताव देंगे तब उन्हें मारा जाएगा वे मरी गाय की खाल उतारने का अपना पुश्तैनी काम करेंगे तब उन्हें गौ माता की हत्या के जुर्म में पीट पीट कर मार डाला जाएगा.

एक बड़ी साजिश जिसे भगवावादी जानबुझ कर हवा दे रहे हैं वह यह है कि दलित अंबेडकर के हिन्दू धर्म विरोधी उसूलों और एतराज को भूल जाएं जिनमें खास और अहम यह है कि धार्मिक किताबें जला दो क्योंकि ये ही वर्ण व्यवस्था छुआछूत और जातिगत भेदभाव की वजह हैं. इन और ऐसी कई अहम बातों, तालीम और अंबेडकर की नसीहतों को भूल कर दलित अपने पूजा पाठ यज्ञ हवन अलग करें यही समाज के 15-20 फीसदी लोग चाहते हैं. दलित अंबेडकर के नाम पर करें या फुले, पैरियार या बुद्ध के नाम पर गरबा करें इससे उनकी बदहाली नहीं सुधरने वाली उल्टे नए तरीके के ऐसे धरम करम से और बिगड़ेगी और वे अपनी गैरत इज्जत और सामाजिक बराबरी के लिए हाथ में डांडिया लेकर नशेलों की तरह नाचते ही रह जाएंगे. इससे उनकी झोपड़ियां किसी चमत्कार के चलते पक्के मकानों में तब्दील नहीं हो जाने वाली. बदहाली सिर्फ तालीम से सुधरेगी जिस पर अंबेडकर खासा जोर देते थे.

दरिंदगी की इस उपलब्धि पर भी बोलिये ‘महाराज’

एक तरफ अपनी सरकार के 6 माह पूरे होने पर उत्तर प्रदेश में योगी सरकार जश्न मना रही है. हर मंत्री अपने अपने विभागों के कायाकल्प का गुणगान करने में मगन है. दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ में एक लड़की से गैंगरेप होता है. वह आरोपियों की जानकारी पुलिस को न दे सके इसके लिये गोली मार दी जाती है. मरने से बच गई युवती जब अपना दर्द बयान करती है तो पुलिस मामले को हल्का करने के लिये घटना में निजी दुश्मनी की वजह को ले आती है.

किसी भी सभ्य समाज पर इससे ‘बदनुमा दाग‘ क्या लग सकता है? हो सकता है कि प्रदेश में पहले भी ऐसी घटनाये घटती रही हों. यह कौन बतायेगा कि इस तरह की घटनाओं से समाज को कब मुक्ति मिलेगी? अस्पताल में अपना इलाज करा रही लड़की अपने चेहरे को देख कर अवसाद ग्रस्त हो जाती है. उसे लगता है कि पुलिस में भर्ती होकर समाज की सेवा करने का सपना अब पूरा नहीं होगा. वह परीक्षा देकर पास नहीं हो पायेगी. समाज की उपलब्धि पर कौन जवाब देगा?

मलिहाबाद में रहने वाली 19 साल की इस लड़की के दर्द को अनुभव कीजिये. तब आपको अहसास होगा अपनी नाकामी का. रात 8 बजे अपने घर से मात्र 100 मीटर दूरी से उसको 3 युवक जबरन उठा ले जाते हैं. यह लोग लड़की को झाडियों में ले जाते हैं. उसको बुरी तरह से मारपीट कर पहले पूरी तरह से बेदम कर देते हैं. इसके बाद उसको नशे का इंजेक्शन लगा देते हैं. नशे की हालत में बेहोश लड़की से बारीबारी से 3 युवक रेप करते हैं. नशा टूटने पर यह लड़की उन लोगों के नाम पुलिस को बता देगी इससे बचने के लिये इसे गोली मार दी जाती है. लड़की के चेहरे पर 21 छर्रे लगते हैं. गोली की आवाज सुनकर गांव के लोग आते हैं, लड़की को मेडिकल कालेज लाया जाता है. जब लड़की बेहोशी से बाहर आती है तो वह अपना दर्द बयान करती है.

गांव के लोगों को जहां लड़की मिलती है, उससे 50 मीटर दूर खून के धब्बे, लड़की की चप्पल और उसका दुपट्टा मिलता है. पुलिस ने आरोपियों को पकड़ लिया पर अब वह इस पूरी घटना को निजी दुश्मनी से जोड़ रही है. इससे वह यह साबित करना चाहती है कि अपराध बदले की भावना से किया गया है. बाकी प्रदेश में ऐसी कोई कानून व्यवस्था खराब नहीं है. हर घटना में ऐसा होता है.

वाराणसी में बीएचयू में जब लड़कियों ने छेड़छाड़ की परेशानी पर आवाज उठाई तो उसको राजनीतिक रंग देकर बात को मुख्य परेशानी से अलग कर दिया गया. जिसके कारण वहां हालात जस के तस हैं. निजी दुश्मनी में क्या कोई इतना घंमडी हो सकता है कि उस परिवार की लड़की के साथ ऐसा कदम उठा सके? अगर ऐसा साहस कोई कर सकता है तो केवल इसलिये क्योंकि उसकी आंखों के कानून का डर नहीं रह गया है.

मलिहाबाद में में सांसद और विधायक दोनों ही भाजपा से हैं. इत्तेफाक से दोनों पति पत्नी भी हैं. ऐसे में मलिहाबाद किसी जंगल का हिस्सा नहीं माना जा सकता. अस्पताल के बेड पर पड़ी लड़की अपने पिता से पूछती है ‘पापा मैं ठीक तो हो जांउगी ना’. बेटी का दर्द पिता कैसे सहन कर सकता है. क्या यही वह रास्ता है जिसके जरीये हम ‘औरत के सम्मान’ और ‘बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ’ की बात करते हैं. सरकार भी जनता के पिता के समान होती है. दरिदंगी की  शिकार बेटी का अभागा पिता तो उसकी बात का जवाब नहीं दे सकता. आज जनता के पिता के रूप में ही अपनी बेटी समझ उसकी बात का जवाब दे दीजिये ‘महाराज’.

शाहरुख खान की कंपनी के कैंटीन पर चला बीएमसी का बुल्डोजर

बौलीवुड के बादशाह शाहरुख खान की कंपनी रेड चिली के कैंटीन पर बीएमसी ने बुल्डोजर चलाया. कहा जा रहा है कि गोरेगांव पश्चिम के डीएलएच मैक्स इमारत में प्रोडक्शन हाउस का औफिस है, जिसके उपरी माले पर अवैध रूप से कैंटीन बनाया गया था. ये कैंटीन 2,000 वर्ग फीट में फैला हुआ था.

बीएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया कि इस कैंटीन का निर्माण बगैर बीएमसी की अनुमति के किया गया था. स्थानीय वार्ड अधिकारी के पास इस अवैध निर्माण की खबर आई थी, जिसके बाद इसे लेकर तहकीकात की गई. खबर के सच पाए जाने के बाद उप निगमायुक्त की देखरेख में उपरी मंजिल ढहाने का काम किया गया.

वहीं शाहरुख की कंपनी ने बयान जारी करते हुए कहा है कि रेड चिलीज वीएफएक्स इस इमारत में बतौर किरायदार शुरू की गई है, इस पर रेड चिली का मालिकाना अधिकार नहीं है. वहीं चौथी मंजिल पर कैंटीन नहीं बनाया गया था, उस जगह का इस्तेमाल कर्मचारी अपने घर से लाया हुआ खाना खाने के लिए किया करते थे.

हेमा मालिनी के घर हुई चोरी, इतने रुपयों का हुआ नुकसान

बौलीवुड की ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी को लेकर एक बड़ी खबर आ रही है. खबर है कि हेमा मालिनी के गोदाम में चोरी हो गई है, जिसमें उनका बहुत सारा कीमती सामान चला गया है. हेमा मालिनी इस गोदाम का इस्तेमाल अपने कौस्ट्यूम, प्रौप्स, आर्टिफिशयल ज्वैलरी, शूट और डांस में काम आनेवाली चीजें रखने के लिए किया करती थीं.

कहा जा रहा है कि इस सामान की कीमत करीब 90 हजार थी. हेमा मालिनी के मैनेजर के अनुसार उन्होंने सुबह वहां काम करनेवाले नौकर को फोन किया था. जब नौकर ने फोन नहीं उठाया तो वे खुद गोदाम पहुंचे. वहां जाकर उन्हें पता चला कि गोदाम से कई मूर्तियां, गहने और अन्य सामान इत्यादि गायब है. इसके बाद उन्होंने जुहू पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई है.

पुलिस ने मामला दर्ज करते हुए तहकीकात शुरू कर दी है. इस चोरी का शक गोदाम में साफ-सफाई करनेवाले कर्मचारी पर है. इससे पहले भी हेमा मालिनी के गुडगांव स्थित घर से 50 लाख रुपयों की चोरी हो चुकी है.

मेरी उम्र 22 वर्ष है. सर्दियों में मेरी पूरी त्वचा रूखी हो जाती है. त्वचा पर कोई ग्लो नहीं रहता. मुझे क्या करना चाहिए.

सवाल
मेरी उम्र 22 वर्ष है. मेरी समस्या यह है कि सर्दियों में मेरी पूरी त्वचा रूखी व बेजान हो जाती है. त्वचा पर कोई ग्लो नहीं रहता. मुझे क्या करना चाहिए ताकि त्वचा की नमी बरकरार रहे?

जवाब
त्वचा की ड्राईनैस को खत्म करने के लिए खूब पानी पीएं, क्योंकि पानी की कमी से भी त्वचा रूखीसूखी व बेजान सी हो जाती है. इस के अतिरिक्त त्वचा पर नहाने के बाद और रात को सोने से पहले मौइश्चराइजर लगाएं. त्वचा को ठंडी हवाओं से बचाएं. बाहर निकलने से पहले स्कार्फ से चेहरे को ढक लें. अगर त्वचा अधिक रूखी है, तो गुलाबजल में ग्लिसरीन मिला कर त्वचा पर लगाएं. इस से चेहरे को नमी मिलने के साथसाथ चेहरे की टोनिंग भी होगी.

करेंगे ये काम तो इस दीवाली नहीं होगी पैसों की कमी

त्योहारों का सीजन शुरू हो चुका है और ऐसे में शौपिंग करना तो बनता है, इस सीजन में यदि आपके पास पैसों की कुछ कमी है और आप लोन लेना चाहते हैं तो स्टेट बैंक औफ इंडिया (एसबीआई) आपके लिए एक औफर लेकर आया है. एसबीआई फेस्टिवल लोन प्रोग्राम नाम से एक औफर पेश कर रहा है जो त्योहार से जुड़े आपके किसी भी खर्चे के लिए लोन देगा. बैंक के मुताबिक वह त्योहार से जुड़े आपके सभी खर्चों के लिए लोन देगा. आगे जानिए कि कैसे आप यह फेस्ट‍िव लोन ले सकते हैं.

5000 से 50000 तक का लोन

एसबीआई फेस्टिव लोन के तहत आपको 5 हजार रुपये से लेकर 50 हजार रुपये तक लोन मिलेगा. इस लोन को आपको 12 महीनों की ईएमआई के जरिये लौटाना होगा.

पैसे चुकाने में नहीं लगेगा कोई चार्ज

सबसे अच्छी बात यह है कि अगर आप लोन की पूरी रकम समय से पहले चुकाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको किसी भी तरह का चार्ज नहीं भरना होगा. इस लोन पर बैंक प्रीपेमेंट चार्ज नहीं वसूलेगा.

आपकी सैलरी तय करेगी आपके लोन की अमाउंट

आपको कितना लोन मिलेगा. बैंक इसे आपकी सैलरी के आधार पर तय करेगा. आपको आपकी कुल मासिक आय का 4 गुना ज्यादा लोन के तौर पर मिल सकेगा.

जरूरी दस्तावेज

इस लोन के लिए अगर आप एप्लाई करते हैं, तो आपको सिर्फ जरूरी दस्तावेज मुहैया कराने होंगे. लोन की प्रोसेसिंग के लिए आपको सिर्फ 100 रुपये की फीस देनी होगी. इसके अलावा आप से किसी भी तरह की एडमिनिस्ट्रेटिव फीस नहीं ली जाएगी.

अगर आप नौकरीपेशा करते हैं, तो आपको लोने लेने के लिए एक पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ, सैलरी स्लिप और फार्म 16 जमा करना होगा.

अगर आप स्वरोजगार करते हैं, तो आपको इस्टैब्ल‍िशमेंट सर्टिफिकेट या लीज डीड और टेलिफोन बिल समेत आईटी रिटर्न की जानकारी भी देनी होगी.

यहां मिलेगी अधिक जानकारी

एसबीआई फे‍स्ट‍िव लोन लेने के लिए आप एसबीआई की वेबसाइट पर जा सकते हैं. इसके बारे में अधिक जानकारी भी आपको यहां मिल जाएगी.

मैं 23 साल की हूं. अपने प्रेमी के साथ हमबिस्तरी कर चुकी हूं. क्या मेरे होने वाले पति को इस का पता चल जाएगा.

सवाल
मैं 23 साल की हूं. मैं अपने प्रेमी के साथ हमबिस्तरी कर चुकी हूं. 6 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. क्या मेरे होने वाले पति को इस बात का पता चल जाएगा?

जवाब
आप बेफिक्र रहें. पति को इस बारे में नहीं बताएंगी, तो उन्हें कभी पता नहीं चलेगा, क्योंकि अंग की नाजुक झिल्ली अकसर शादी से पहले खेलकूद के दौरान या साइकिल चलाते वक्त अपनेआप फट जाती है.

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शादी से पहले मंगेतर के साथ सोना मना है क्योंकि..

शादी एक ऐसा समय है जब लड़का-लड़की एक साथ एक बंधन में बंधकर पूरा जीवन साथ में बिताने का वादा करते हैं. शादी को पुरूष आमतौर पर शारीरिक तौर पर अधिक देखते हैं. शादी का मतलब अधिकतर पुरूषों के लिए सेक्स संबध बनाना ही होता है लेकिन वे ये बात भूल जाते हैं कि शारीरिक संबंध से अधिक महत्वपूर्ण आत्मिक संबंध होता है.

यदि महिला और पुरूष आत्मिक रूप से एक-दूसरे से संतुष्ट‍ है तो फिर शारीरिक संबंधों में भी कोई दिक्कत नहीं होती. शादी से पहले यानी सगाई के बाद लड़के और लड़की को एकसाथ खूब समय बिताने को मिलता है लेकिन इसका ये अर्थ नहीं कि वे शादी से पहले फिजीकल रिलेशन बना ले या फिर प्री मैरिटल सेक्सू करें. शादी से पहले संयम बरतना जरूरी है. आइए जानें शादी और संयम के बारे में कुछ और दिलचस्प बातों को.

सगाई और शादी के बीच में संयम के बारे में कुछ और दिलचस्प बातें 

– सगाई के बाद लड़के और लड़की को आपस में एक-दूसरे से मिलना चाहिए और एक-दूसरे को जानना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही उन्हें संयम बरतना भी जरूरी है.

– यदि शादी से पहले फिजीकल रिलेशन बनाने के लिए लड़का-लड़की में से कोई भी पहल करता है तो दूसरे को मना करना चाहिए नहीं तो इससे इंप्रेशन अच्छा नहीं पड़ता.

– दोनों को समझना चाहिए कि प्री मैरिटल सेक्स से पहले उन्हें आपस में एक-दूसरे को जानने-सूझने का मौका मिला है जिससे वे पहले एक-दूसरे की पसंद-नापसंद इत्यादि के बारे में जान पाएं.

– ये जरूरी है कि मिलने वाले समय को लड़के व लड़की को समझदारी से बिताना चाहिए न कि फिजूल की चीजों में खर्च करना चाहिए.

– शादी से पहले संयम बरतने से न सिर्फ दोनों के रिश्तों में मजबूती आती है बल्कि दोनों का एक-दूसरे पर विश्वास भी बना रहता है. इसके साथ ही संबंधों में अंतरंगता का महत्व भी बरकरार रहता है.

– प्रीमैरिटल सेक्स में हालांकि कोई बुराई नहीं लेकिन दोनों के रिश्ते पर शादी के बाद मनमुटाव का ये कारण बन सकता है.

– रिश्तों में खुलापन जरूरी है. चाहे तो शादी से पहले आप चीजों को डिस्कस कर सकते हैं. एक-दूसरे के साथ समय व्यतीत कर सकते हैं. एक-दूसरे के साथ घूम-फिर सकते हैं लेकिन इसके लिए जरूरी नहीं कि फिजीकल रिलेशन ही बनाया जाए.

– शादी से पहले फिजीकल रिलेशन से रिश्तों में अवसाद पैदा होने की संभावना बनी रहती है क्योंकि इसके बाद हर समय मन में एक डर और बैचेनी रहने लगती है. इसीलिए इन सबसे बचना जरूरी है.

– सेक्ससुअल रिलेशंस आपके रिश्ते में करीबी ला भी सकते हैं और दूरी बढ़ा भी सकते हैं इसीलिए कोई भी कदम उठाने से पहले सोच-समझ कर विचार करना आवश्यक है.

शादी से पहले संयम बरतने में कोई नुकसान नहीं है बल्कि रिश्तों की मजबूती के लिए यह अच्छा है.

कम होने वाले हैं घरों के दाम, इन शहरों में ले सकते हैं सस्ते मकान

देश के आठ प्रमुख शहरों में जुलाई सितंबर तिमाही में घरों की बिक्री में 35 प्रतिशत गिरावट आई है. एक अनुसंधान कंपनी की रिपोर्ट में कहा गया है कि संपत्ति बाजार में मांग सुस्त बनी हुई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 की तीसरी तिमाही में आठ शहरों में 22,699 आवासीय इकाइयां बिकीं. इससे पिछली तिमाही में यह आंकड़ा 34,809 इकाई रहा था. इन आठ शहरों में गुड़गांव, नोएडा, मुंबई, कोलकाता, पुणे, हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई शामिल हैं. माना जा रहा है कि इससे दाम भी गिरे हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘प्रमुख शहरों में आवासीय इकाइयों की मांग 35 प्रतिशत घटकर 22,699 इकाई रह गई, जो पिछली तिमाही में 34,809 इकाई रही थी. नई परियोजनाओं में कमी की वजह से यह स्थिति बनी.’’ इसमें कहा गया है कि मौजूदा तिमाही से मांग के रफ्तार पकड़ने की उम्मीद है.

सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में 2017 की पहली छमाही में घरों की बिक्री 26 फीसदी गिरी है. नाइट फ्रैंक इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी के बाद भी घरों की डिमांड सुस्त बनी हुई है. पिछले 18 महीनों में कीमतों में 20 फीसदी करेक्शन हुआ है, लेकिन घरों की डिमांड इसके बावजूद नहीं बढ़ी है. दिल्ली-एनसीआर के प्रौपर्टी मार्केट में अनसोल्ड घरों का स्टौक 1.8 लाख यूनिट्स पर बना हुआ है. यह देश में सबसे ज्यादा है. इसे बेचने में डिवेलपर्स को साढ़े चार साल तक का वक्त लग सकता है.

नाइट फ्रैंक इंडिया ने कहा है कि 2017 की पहली छमाही में 17,188 यूनिट्स की बिक्री हुई, जबकि एक साल पहले की इसी अवधि में 23,092 यूनिट्स की बिक्री हुई थी. इस तरह से इसमें 26 फीसदी की गिरावट दिखाई देती है. इससे पहले के छह महीनों के मुकाबले घरों की बिक्री में 2 फीसदी की मामूली बढ़त दिखाई दी है. नोटबंदी के बाद सबसे कम छमाही सेल्स का सामना इंडस्ट्री को करना पड़ा.

नाइट फ्रैंक इंडिया के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर गुलाम जिया ने बताया, ‘एनसीआर मार्केट लगातार गिरावट का शिकार हो रहा है. एनसीआर हाउसिंग मार्केट एक बुरे दौर से गुजर रहा है.’

हिजाब हो बेहिजाब : आजादी की हत्या की है ये निशानी

यूरोपव पश्चिमी देशों में इसलामी बुरके को बैन करने की मांग जोर पकड़ रही है. यह सही है. धार्मिक स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि धर्म अपने अंधभक्तों को अलग किस्म की पोशाकें पहनने को मजबूर करे.

हमारे देश में बुरके पर प्रतिबंध की मांग नहीं उठ रही, क्योंकि इसलाम की तरह हिंदू धर्म भी परदे में गहरा विश्वास रखता है. कट्टर हिंदुओं को तो यह भी बुरा लगता है कि आजकल लड़कियों ने चुन्नी भी छोड़ दी और जींस व टौप में खुलेआम घूम रही हैं.

बदन दिखाना जरूरी नहीं है. बदन की सुरक्षा करना हरेक का फर्ज है. आदमी भी केवल लंगोट पहने नहीं घूमते. वे फैशन या धर्म के लिए नहीं, व्यावहारिकता के लिए कमीजपैंट पहनते हैं. लड़कियां भी, चाहे फैशन की दीवानी हों, न शरीर दिखाना चाहती हैं न बोल्ड अदाएं दिखाना चाहती हैं. वे तो बंधन नहीं चाहतीं जो धर्म उन पर थोपता है, जिन की जरूरत नहीं.

मुसलिम औरतें अकसर धर्म के आदेश को अपनी निजी पसंद कहने लगती हैं. यह गलत है. यह छलावा है. यह खुद को धोखा देना है और दूसरों को बहकाना है. यह अंधविश्वास के कीचड़ में डूब जाने का कदम है कि कीचड़ की ठंडक से उन्हें असीम सुख मिल रहा है.

बहुत गरीब ही सादगी का गुणगान करते हैं. वे जबरन अपने को बहलाते हैं. हिजाब या बुरका कोई लड़की मन से नहीं पहनती. जैसे हर सफल युवा अपनी सफलता दिखाना चाहता है, वैसे ही हर लड़की अपना सौंदर्य व व्यक्तित्व लोगों को दिखाना चाहती है. 17-18 साल की लड़की पर बुरके या परदे को लादना उस की आजादी में खलल है.

बुरका व परदा धार्मिक अत्याचार का नतीजा है. यह पुरुषों की साजिश है कि कहीं उन की औरतों को देख कर कोई उन्हें उठा न ले जाए. पर यह समस्या औरतों की नहीं, आदमियों की है. अच्छी चीज को ढक दिया जाएगा तो वह सड़ जाएगी, उस पर जाले लग जाएंगे. यही लड़कियों के साथ होता है जो अपने बदन का पूरा उपयोग अपनी बदन ढकने वाली पोशाकों के कारण नहीं कर पातीं. उन्हें इन बंधनों से आजादी मिलनी ही चाहिए.

फैशन के नाम पर अगर बदन दिखाया जाता है तो कपड़े भी तो दिखाए जाते हैं. फिल्मी फैस्टिवलों में ऐक्ट्रैस मीटरों लंबे गाउन पहनती हैं जिन्हें संभालने के लिए 2-2, 3-3 सहायिकाएं चाहिए होती हैं. यह न मूर्खता है न बंदिश. यह आजादी है. बुरका या हिजाब पहनना इस आजादी की हत्या की निशानी है. धर्म और धार्मिक समाज इस तरह हावी हो जाता है कि लड़कियां न केवल इसे पहनती हैं बल्कि इन की हमउम्र न पहनें तो ये हल्ला मचाती भी हैं. उन्हें रोकने के लिए सरकारी कानून का होना जरूरी है

संदूक में लाश : हत्या की आंखों देखी कहानी एक पुलिसकर्मी की जुबानी

बात तब की है जब मैं पंजाब के एक जिले का एसपी था. मेरे इलाके में जो गांव आते थे, उन में एक गांव सादतपुर था. एक दिन इसी गांव का नंबरदार थाने आया. उस के साथ एक जवान लड़का था, जो कपड़ों से खातेपीते घर का लग रहा था. नंबरदार से पता चला कि उस लड़के का नाम सांवल है और वह एक संपन्न जमींदार है.  नंबरदार ने बताया था कि सांवल की घरवाली गुलबहार उर्फ गुल्लो ्लल से लापता है.

मैं ने थोड़ा नाराज हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी घरवाली कल से लापता है और तुम रिपोर्ट लिखवाने आज आ रहे हो.’’

‘‘इज्जत की बात है आगा जी,’’ सांवल ने कहा, ‘‘पहले हम ने उसे अपनी रिश्तेदारियों में ढूंढा, उस के घर भी पता किया. उस के बारे में कुछ बताने के बजाय उस के मांबाप ने उलटा हमारे ऊपर ही आरोप लगा दिया कि हम ने उसे जानबूझ कर गायब किया है. जब वह कहीं नहीं मिली तो रिपोर्ट लिखाने आ गया.’’

‘‘शादी को कितने दिन हुए हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘3 महीने हुए हैं जी.’’ सांवल ने बताया.

‘‘किसी से दुश्मनी तो नहीं है?’’

‘‘नहीं जी, गांव में किसी की क्या मजाल जो हमारी तरफ नजर उठा कर देख ले.’’ सांवल ने अकड़ कर कहा.

‘‘फिर भी किसी पर कोई शक.’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी, मुझे शक है कि शादी से पहले उस के किसी से अवैध संबंध थे. लगता है, उसी के साथ भाग गई है?’’

‘‘घर से कोई रकम, गहने आदि गायब हैं क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘घर में जितने भी गहने और महंगे कपड़े थे, वे सब गायब हैं. उस के पैरों में सोने की वजनी झांझर भी थी, जो मैं ने पहनाई थी, उन्हें भी ले गई.’’

मैं ने गुल्लो की गुमशुदगी दर्ज कर उन्हें वापस भेज दिया. इश्तहार वगैरह दे कर मैं इस केस के बारे में सोचने  लगा. मुझे यह केस प्रेमप्रसंग का लग रहा था.

एक सिपाही को बहलोलपुर भेज कर मैं ने गुल्लो के मातापिता को बुलवा लिया. वे दोनों काफी घबराए हुए थे. मैं ने उन्हें तसल्ली दी. गुल्लो की मां का नाम सरदारा और बाप का नाम करमू जाट था.

मैं ने उन से गुल्लो के गायब होने के बारे में पूछा तो गुल्लो की मां ने कहा, ‘‘हमारी बेटी को खुद सांवल ने गायब कराया है. गुल्लो जबान की तेज थी. हो सकता है किसी बात पर कोई झगड़ा हुआ हो और सांवल ने उसे मार दिया हो.’’

मैं ने उन्हें यह कह कर जाने दिया कि अगर उन की जरूरत हुई तो उन्हें फिर बुलाऊंगा. मैं ने मुखबिरों को लगा दिया. 2 दिनों बाद एक मुखबिर बहलोलपुर से आया. उस के साथ 30-32 साल की एक औरत थी. मुखबिर ने बताया कि यह औरत गुल्लो के मातापिता के घर साफसफाई का काम करती है.

उस औरत ने बताया कि गुल्लो के शम्स से नाजायज संबंध थे. वह औरत दोनों को अपने घर चोरीछिपे मिलवाती थी. इस के बदले में गुल्लो उसे अच्छे पैसे देती थी. वह औरत जाते समय हाथ जोड़ कर बोली कि उस ने जो कुछ बताया है, उस में उस का नाम नहीं आना चाहिए. मैं ने उसे तसल्ली दे कर भेज दिया.

उस के जाने के बाद मैं ने मुखबिर से पूछा, ‘‘शम्स कहां है, उसे साथ क्यों नहीं ले आए.’’

‘‘वह गांव में नहीं है साहब, वह उसी दिन से गायब है, जिस दिन से गुल्लो गायब हुई है. उस के घर वालों को भी उस का पता नहीं है.’’ मुखबिर ने बताया.

यह सुन कर मेरा संदेह यकीन में बदल गया. इस का मतलब गुल्लो अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी. मैं ने मुखबिर से कहा कि वह गांव में ही रहे. 2 दिन गुजर गए, कहीं से कोई सूचना नहीं आई. तीसरे दिन जो सूचना आई, वह अद्भुत थी. दोपहर को पड़ोस के गांव दतवाल से वहां का नंबरदार सारू आया. उस के साथ 2 जवान लड़के भी थे. वे थाने के माहौल से काफी डरे हुए लग रहे थे. उन के हाथों में लोहे का एक संदूक था. उस संदूक में ताला नहीं लगा था. नंबरदार ने संदूक नीचे रखवा दिया.

मैं ने नंबरदार से पूछा, ‘‘ये दोनों कौन हैं और इस संदूक में क्या है?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘ये दोनों मेरे भाई हैं. बड़े का नाम रोशन और छोटे का नाम जैन है. ये दोनों दतवाल गांव में रहते हैं. कल जब ये घर पर नहीं थे तो सुबह के वक्त इन के घर एक आदमी और 2 औरतें आईं. उस समय घर में इन की मां और रोशन की पत्नी हुस्ना थी. औरतों ने पीने के लिए पानी मांगा तो रोशन की मां ने गांव के रिवाज के मुताबिक उन्हें लस्सी दी. उन लोगों के पास लोहे का एक संदूक था, जो उन्होंने घर के बाहर रख दिया था.

औरतों ने बताया था कि वे शादी का सामान खरीदने दतवाल की बाजार आई हैं. जब तक वे बाजार से लौटें, तब तक उन की संदूक वे घर में रख लें. उन औरतों ने अपना नाम और गांव नहीं बताया था. संदूक रख कर वे औरतें उस आदमी के साथ चली गईं.

शाम तक दोनों औरतें नहीं आईं. रोशन और जैन शाम को घर आए तो उन की मां ने संदूक वाली बात बताई. रोशन ने तुरंत बैठक में रखा संदूक देखा. उसे उस में से दुर्गंध आती लगी. उस ने जैसे ही संदूक खोला, दुर्गंध का भभका उस की नाक में समा गया. संदूक में एक औरत की मुड़ीतुड़ी लाश रखी थी.

लाश देखते ही घर वालों के हाथपांव फूल गए. हुस्ना और मां तो थरथर कांपने लगीं. जैसेतैसे रात गुजारी, सवेरा होते ही नंबरदार को बुलाया तो वह दोनों भाइयों और संदूक ले कर थाने गया था.

मैं ने संदूक खुलवाया, उस में 22-23 साल की एक सुंदर लड़की की लाश थी. मैं ने लाश बाहर निकलवाई. मुझे लाश पर एक चीज दिखाई दी, जिस ने मुझे चौंका दिया. वह चीज थी सोने की झांझर. मुझे तुरंत सांवल की वह बात याद आ गई, जो उस ने कही थी कि गुल्लो सोने की झांझर पहने थी.

इस से मुझे लगा कि कहीं यह सांवल की पत्नी गुल्लो की लाश तो नहीं है. मृतका का गला किसी धारदार हथियार से रेता हुआ लग रहा था. उस के सीने पर भी किसी तेज धारदार हथियार का घाव था.

मैं ने रोशन से पूछा कि उस की मां और पत्नी उन औरतों को पहचान लेंगी. रोशन ने कहा, ‘‘साहब, मेरी मां ने बताया था कि जो औरतें आई थीं, उन में से एक के माथे पर काला मस्सा था. लेकिन वह कहां की रहने वाली थीं, यह वह नहीं पूछ पाई थी.’’

मैं ने लाश के फोटो वगैरह खिंचवा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. रोशन और जैन पर मुझे शक हो रहा था, इसलिए उन्हें मैं ने हवालात में डाल दिया था. यही नहीं, पूछताछ के लिए रोशन की मां और पत्नी हुस्ना को भी बुलवा लिया था. साथ ही एक सिपाही को सांवल को बुलाने के लिए भेज दिया था.

पर वह घर पर नहीं मिला. तब सिपाही ने उस के घर वालों से सख्त लहजे में कहा था कि वह सांवल को थाने में पेश कर दें, नहीं तो सभी के खिलाफ काररवाई की जाएगी. एक सिपाही को बहलोलपुर सांवल की ससुराल भेज दिया था, ताकि लाश की शिनाख्त हो सके.

करीब 2 घंटे बाद गुल्लो की मां और पिता करमू जाट भी थाने आ गए. करमू जाट एक जमींदार था. मैं ने दोनों को मृतका के फोटो और कपड़े दिखाए तो वे चीखचीख कर रोने लगे. इस से मैं समझ गया कि मरने वाली युवती इन की बेटी गुल्लो ही थी. मां रोरो कर यही कह रही थी कि सांवल ने ही उस की बेटी को मारा है.

पोस्टमार्टम होने के बाद लाश मृतका के मांबाप के हवाले कर दी थी, ताकि वे उस का अंतिम संस्कार कर सकें. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया था कि मृतका गुल्लो गर्भवती थी.

जो युवक थाने में संदूक लाए थे, मुझे उन पर तो शक था ही, इस के अलावा मुझे गुल्लो का पति सांवल भी संदिग्ध लग रहा था. इस के अलावा गुल्लो की मां, जो रोतेरोते सांवल पर आरोप लगा रही थी, उस पर भी मैं ने गौर किया. अभी मुझे ऐसा कोई क्लू नहीं दिख रहा था, जिस से केस के खुलने की उम्मीद हो.

मैं इस केस की गुत्थी को जितनी जल्दी सुलझाना चाहता था, उतनी ही यह उलझती जा रही थी. मैं ने हवालात में बंद रोशन और उस के भाई जैन को निकलवा कर उन से ताबड़तोड़ सवाल किए. लेकिन उन से कुछ भी हासिल नहीं हो सका. इस से यही लगा कि इस हत्या में शायद इन का हाथ नहीं है.

अब मैं ने गुल्लो के पति सांवल और उस के प्रेमी शम्स के बारे में विचार किया. दोनों ही लापता थे. मैं ने एक एएसआई को सांवल को गिरफ्तार करने को कहा, साथ ही उस की हवेली की तलाशी लेने को भी कहा. उस का गायब होना मुझे शक में डाल रहा था.

गुल्लो के प्रेमी शम्स की भी कोई सूचना नहीं थी. अब मुझे शक हो रहा था कि कहीं गुल्लो के घर वालों ने शम्स और गुल्लो को एक साथ देख लिया हो, उस के बाद दोनों की हत्या कर दी हो. शम्स की लाश और कहीं डाल दी हो.

सांवल को गिरफ्तार करने जो एएसआई गया था, वह खाली हाथ वापस आ गया. उस ने कहा कि उस की हवेली की तलाशी में कुछ नहीं मिला. उस का इस तरह गायब होना शक को मजबूत कर रहा था. अब मुझे पक्का यकीन हो गया था कि हत्या उसी ने की है.

सांवल ने यह भी बताया था कि उस की पत्नी के शादी से पहले किसी बहलोलपुर के ही युवक से संबंध थे और वह उसी के साथ भाग गई है. मुझे लग रहा था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सांवल ने गुल्लो और शम्स को मिलते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया हो.

देहात में ऐसे अपराध की सजा मौत से कम नहीं होती. गुल्लो के मांबाप से ज्यादा मुझे सांवल पर ही शक हो रहा था. अब सांवल से पूछताछ करनी जरूरी थी.

संयोग से अगले दिन सांवल खुद ही थाने आ गया. उस के साथ नंबरदार भी था. मैं ने डांट कर सांवल से पूछा, ‘‘तुम कहां थे?’’

‘‘मैं डर गया था हुजूर,’’ उस ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘मैं तो पहले से ही परेशान इंसान हूं. मेरे साथ बहलोलपुर वालों ने धोखा किया है. मेरी शादी ऐसी लड़की से कर दी, जिस का दिल पहले ही से कहीं और लगा था. उस का तो अपनी गंदी हरकतों के कारण अंत हो गया, लेकिन मेरे लिए मुसीबत खड़ी कर गई. साहब, मैं ने सुना है कि उस की मां थाने आ कर मेरे ऊपर इलजाम लगा रही थी?’’

कुछ कहने के बजाय मैं ने हवालात में बंद रोशन और जैन को बाहर निकलवा कर पूछा, ‘‘क्या यही वह आदमी है, जो तुम्हारे घर संदूक छोड़ कर गया था.’’

‘‘साहब, हम उस समय घर पर नहीं थे, मां और मेरी पत्नी ने देखा था.’’ रोशन ने कहा, ‘‘आप उन्हें ही बुला कर पहचान करा लें.’’

मैं ने तुरंत एक सिपाही को दतवाल गांव रोशन की मां और घर वाली को लाने भेज दिया. आधे घंटे में वह उन दोनों औरतों को ले कर आ गया. मेरी नजर सांवल पर थी, वह काफी परेशान लग रहा था. उन दोनों औरतों को देख कर वह गरदन घुमाने लगा.

मैं ने उन दोनों औरतों से कहा, ‘‘इस आदमी को ध्यान से देखो और बताओ कि यह उन 2 औरतों के साथ था, जो संदूक के साथ तुम्हारे यहां आई थीं.’’

‘‘हम ने उन के साथ वाले आदमी को नहीं देखा था. हम ने केवल औरतों को ही देखा था.’’ रोशन की मां ने कहा.

औरतों की बात सुन कर सांवल के चेहरे की चमक लौट आई. तभी रोशन की पत्नी ने कहा, ‘‘अगर वे औरतें मेरे सामने आ जाएं तो मैं उन्हें पहचान लूंगी, एक के चेहरे पर मस्सा था.’’

सांवल बेचैनी से इधरउधर देखने लगा. उस की हर हरकत पर मेरी नजर थी. मैं उन औरतों को ले कर सादतपुर स्थित सांवल की हवेली पर पहुंचा. सांवल ने हवेली में कहलवा दिया कि पुलिस वाले आए हैं. वह आदमी अंदर गया और कुछ ही देर में वापस आ गया.

‘‘मेरे घर की सभी औरतें हवेली में मौजूद हैं, आप जा कर देख लें.’’ सांवल ने कहा.

मैं ने उन दोनों औरतों को हवेली के अंदर ले कर कहा, ‘‘इन औरतों को पहचान कर बताओ कि इन में वे औरतें हैं या नहीं?’’

दोनों ने देख कर कहा कि इन में वे नहीं हैं. मेरी सारी उम्मीद पर पानी फिर गया. इस बात से मैं बहुत हताशा हुआ. हत्या की एक पेचीदा गुत्थी सुलझतेसुलझते रह गई. नंबरदार भी वहां था, वह मुझे अपने मेहमान खाने में ले गया और वहां मुझे लस्सी दी. मैं तकिए से सिर लगा कर लेट गया.

कमरे का दरवाजा आधा खुला था. मुझे ऐसा लगा कि वहां से कोई गुजरा है. कुछ देर बाद फिर वह उधर से गुजरा. अब मेरी पुलिस वाली अनुभवशक्ति जाग गई. मैं ने दरवाजे की ओर नजरें गड़ा दीं. कुछ ही देर में तीसरी बार फिर कोई वहां से गुजरा.

इस बार मैं ने देख लिया. पता चला कि वह कोई आदमी है और सफेद कपड़े पहने है. मैं बिजली की तरह तेजी से उठा और दरवाजे के बाहर जा कर देखा. वह एक आदमी था, जिस के चेहरे पर दाढ़ी थी. मैं ने उसे अंदर बुलाया और उस से पूछा कि वह इस कमरे के बाहर बारबार क्यों चक्कर लगा रहा है?

उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम रहमत है साहब, मैं एक जमींदार हूं और आप से एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘बताओ क्या बात है?’’

‘‘साहब, अगर आप मेरा नाम गुप्त रखें तो मैं आप को एक खास बात बताना चाहता हूं.’’ उस आदमी ने कहा.

मैं ने उसे पूरा यकीन दिलाया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, सांवल ने आप को धोखा दिया है. उस ने अपनी मां को हवेली की पिछली दीवार से बाहर उतार दिया था. सांवल का इस गांव में बड़ा दबदबा है, इसलिए उस के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं है.’’

मैं ने उस आदमी को धन्यवाद दे कर भेज दिया. उस ने मेरी बहुत बड़ी मुश्किल आसान कर दी थी. गांव में अकसर आपस में दुश्मनियां होती हैं, रहमत ने भी अपनी कोई दुश्मनी सांवल से निकाली थी. बहरहाल, जो भी रहा हो, उस ने मेरा काम आसान कर दिया.

अब मुझे सांवल की मक्कारी पर बड़ा गुस्सा आ रहा था. मैं ने उसे कमरे में बुलवा लिया और गुस्से से पूछा, ‘‘क्या तुम ने अपने घर की सारी औरतों को पहचान के लिए पेश कर दिया था?’’

‘‘जी सरकार, सभी थीं. क्या आप  को कोई शक है?’’ उस ने कहा.

मैं ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ उस के बाएं गाल पर मारा. थप्पड़ खा कर वह नीचे गिर पड़ा. उसे उठने का मौका दिए बगैर मैं अपना बूट उस के हाथों पर रख कर खड़ा हो गया. वह दर्द से छटपटाने लगा. मैं ने कहा, ‘‘तेरी मां कहां मर गई, उसे अभी हाजिर कर.’’

मेरा सवाल सुन कर वह भौचक्का रह गया. उस ने कहा, ‘‘मेरी बहन बीमार है, उसे देखने गई है.’’

‘‘अपनी मां को पेश कर दे, वरना ठीक नहीं होगा.’’ मैं ने अपना बूट उस के हाथ से हटा कर कहा.

उस ने खड़े हो कर कहा, ‘‘हुजूर, आप मेरी बात सुन लें, मेरी मां को मत बुलाएं. आप जैसा चाहेंगे, मैं आप को खुश कर दूंगा.’’

उस की बात सुन कर मैं खुश हो गया. मैं ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारा नजराना ले लूंगा, लेकिन पहले तुम अपनी मां को पेश करो. उस के बाद लेनदेन की बात करेंगे.’’

मेरी बात सुन कर वह खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘वह घर में बैठी है, किसी को भेज कर बुलवा लें.’’

मैं ने सिपाही को भेजने के बजाय नंबरदार की नौकरानी को भेज कर उसे बुलवा लिया. कुछ ही देर में एक अधेड़ उम्र की भारीभरकम औरत नौकरानी के साथ मेरे कमरे में आ गई. कमरे में मुझे देख कर उस का रंग उड़ गया. मैं ने सब से पहले जो चीज नोट की, वह उस के माथे पर काला मस्सा. उसी समय मैं ने रोशन की मां और पत्नी को कमरे में बुलवा लिया.

जैसे ही उन की नजर सांवल की मां पर पड़ी, वे चौंक पड़ीं, ‘‘यही है वह मक्कार बुढि़या.’’ हुस्ना ने कहा, ‘‘यही वह संदूक हमारे घर पर रख गई थी. इस के कारण ही मेरे पति और देवर को हवालात में रहना पड़ा.’’

मामला खुल गया था. मैं ने सांवल तथा उस की मां को गिरफ्तार कर लिया और रोशन एवं उस के भाई जैन को छोड़ दिया. इस के बाद सांवल से पूछताछ करने पर जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

सादतपुर वाले और बहलोलपुर वाले बालिके कहलाते थे. ये एक ही बिरादरी से आते थे. बालिके एक कबीला था, जो आपस में शादीब्याह कर लेता था. सांवल की शादी बहलोलपुर के करमू जाट की बेटी गुलबहार उर्फ गुल्लो से हुई थी.

गुल्लो बहुत सुंदर थी, लेकिन शादी के बाद वह चुप और खोईखोई सी रहती थी. पहले तो किसी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब काफी समय हो गया तो गांव की औरतों ने तरहतरह की बातें करनी शुरू कर दीं, जिस से सांवल के दिल में शक के बिच्छू ने पंजे गाड़ दिए.

उसे शक हुआ कि उस की पत्नी उसे नहीं चाहती, बल्कि किसी और को चाहती है. गुल्लो कभीकभी शाम के समय बिना बताए घर से निकल जाती थी. सांवल की मां ने उस से कहा कि वह अपनी पत्नी को संभाले, उस के लच्छन ठीक नहीं लगते.

एक बार रात के समय सांवल अपने फार्म के पश्चिमी छोर पर पहुंचा तो उसे पेड़ों के झुंड में 2 साए दिखाई दिए. उन के आकार से लग रहा था कि उन में एक औरत और एक मर्द है. सांवल को शक हुआ तो दबे पांव पास जा कर उस ने ललकारा तो उस आदमी ने सांवल पर लाठी से वार कर दिया.

सांवल ने वार बचा कर बरछी से उस पर वार कर दिया, जो उस के पैर में उचटती सी लगी. वह आदमी मुकाबला करने के बजाय खेतों में घुस कर गायब हो गया. सांवल ने पास जा कर उस औरत को देखा तो वह कोई और नहीं, उस की पत्नी गुल्लो थी. वह थरथर कांप रही थी. वहीं एक छोटा सा संदूक पड़ा था. उस में कीमती कपड़े और गहने थे.

गुल्लो उस आदमी के साथ भाग रही थी. सांवल उसे पकड़ कर घर ले आया और काठकबाड़ वाले कमरे में बंद कर दिया. उस ने यह बात अपनी मां को बताई तो दोनों ने आपस में तय किया कि उसे खत्म कर दिया जाए.

सांवल फरसा ले कर कबाड़ के कमरे में पहुंचा, जहां गुल्लो बैठी थी. पति के हाथ में फरसा देख कर वह डर गई. वह हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगी. लेकिन सांवल पर तो खून सवार था, उस ने फरसा उठाया और उस की गरदन काट दी. वह छटपटाने लगी, इस के बाद बरछी उस के सीने में उतार दी, जिस से वह तड़प कर मर गई.

अब लाश को ठिकाने लगाने की बात आई. मांबेटे की समझ नहीं आ रहा कि लाश को कहां छिपाएं. अंत में सांवल ने लाश को एक संदूक में डाला और बैलगाड़ी में रख कर मां और भावज के साथ दतवाल पहुंचा.

सांवल ने सोचा था कि संदूक कहीं रख कर निकल आएंगे. एक घर के बाहर 2 औरतें बैठी हुई दिखाई दीं तो उस ने बैलगाड़ी वहीं रोक दी. वे रोशन की मां और पत्नी थीं. फिर बहाने से संदूक रख कर वह मां और भावज के साथ वापस आ गया.

सांवल से पूछताछ के बाद उस की निशादेही पर उस की हवेली से फरसा और बरछी बरामद कर ली गई. जहां गुल्लो की हत्या की गई थी, वहां की जमीन पर उस के खून के निशान थे, उस मिट्टी को खुरच कर सीलबंद कर दिया गया.

इस के बाद मैं ने सांवल की मां के बयान लिए तो उस ने सांवल के बयान की पुष्टि कर दी. मैं ने उस की बड़ी बहू को भी बुलवाया, जो उस के साथ संदूक छिपाने गई थी. उस ने बताया कि इस हत्या से उस का कोई लेनादेना नहीं है.

मैं ने उसे वादामाफ गवाह बनने को कहा तो वह खुशी से तैयार हो गई. इस के बाद एक रोचक बात यह हुई कि मुकदमा तैयार कर के जब मैं चार्जशीट अदालत में पेश करने की तैयारी कर रहा था, तभी एक दिन सवेरेसवेरे एक जवान आदमी मेरे पास आया. उस ने अपना नाम बताया तो मैं चौंका. वह गुल्लो का प्रेमी शम्स था. उस ने बताया कि वह और गुल्लो एकदूसरे से प्रेम करते थे, लेकिन बिरादरी अलग होने से उन की शादी नहीं हो सकी थी.

गुल्लो की शादी सांवल से हो गई थी. शादी के बाद हंसनेखेलने वाली गुल्लो को चुप्पी लग गई. शम्स उस से मिलने कभीकभी सादतपुर जाता था. गुल्लो उस से मिलती थी तो रोरो कर कहती थी कि वह उसे यहां से ले चले.

गुल्लो की हालत शम्स से देखी नहीं जा सकी और दोनों ने भागने का फैसला कर लिया. लेकिन जब वे भाग रहे थे तो पकडे़ गए. उस ने बताया कि वह इसलिए गायब हो गया था कि उस की टांग में बरछी लगी थी. सांवल उसे पहचान लेता तो उस की हत्या कर देता.

अब उसे पता चला है कि गुल्लो की हत्या कर दी गई है तो वह सांवल के खिलाफ बयान देने आया है. मैं ने उस का बयान लिया. बयान देते समय उस की आंखों में आंसू थे, लेकिन मुझे उस से कोई हमदर्दी नहीं थी, क्योंकि वह बुजदिल प्रेमी था. वह अपनी प्रेमिका को छोड़ कर भाग गया था और अब घडि़याली आंसू बहा रहा था.

मैं ने केस बहुत मजबूत बनाया था. अदालत ने सांवल को आजीवन कारावास और उस की मां को 7 साल की सजा सुनाई थी.

प्रस्तुति : एस. एम. खान

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