ऊंची जाति वालों को बेवजह ही कोसा और बदनाम किया जाता है कि वे दलितों को मंदिरों में जाने और पूजा पाठ करने से रोकते हैं और इसके लिए जरूरत पड़े यानि दलित न माने तो उनके साथ मार पीट हिंसा और कभी कभी तो उनकी हत्या तक कर डालते हैं. सच तो यह है कि दलितों से ज्यादा ये सवर्ण चाहते हैं कि दलित भी पूजा पाठ व्रत उपवास सब करें पर शर्त इतनी है कि उनके साथ न करें क्योंकि दलित योनि में पैदा होना पिछले जन्मों के पापों की सजा है और दलित को बराबरी से बैठाना ऊंची जाति वालों के लिए मना है क्योंकि वे अगर दलितों से बराबरी का व्यवहार करेंगे जैसा कि दलित चाहते हैं तो उन्हें यह कैसे समझ आएगा कि वे किन कर्मों और पापों की सजा भुगतने धरती पर पैदा किए गए हैं.

इधर देश भर के खास तौर से गुजरात के दलितों की यह जिद फिर जोर पकड़ रही है कि अगर सवर्ण उन्हें साथ मे पूजा पाठ नहीं करने देंगे तो वे अलग से यह सब और दूसरे कर्म कांड करेंगे जिससे सवर्णों को सबक मिले, बस इसी जिद और बेवकूफी का फायदा सवर्ण सदियों से उठा रहे हैं. दरअसल में ऊंची जाति वाले चाहते यही हैं कि दलित पिछड़े पाप पुण्य, स्वर्ग नर्क, व्रत उपवास, मुक्ति मोक्ष जैसे मकडजाल में उलझे अपनी बदहाली से निजात पाने का रास्ता धर्म में ढूंढते छटपटाते रहें.

यह साजिश बहुत गहरी है जिसका मकसद दलितों को उनके दलितपने का एहसास कराने के साथ साथ उन्हें गरीबी के दलदल में भी धंसाये रखना है. इसी मकसद से दलितों की धार्मिक कमजोरियों का फायदा उठाते उन्हें जानबूझकर पूजा पाठ और मंदिरों से दुत्कार कर भगाया जाता है जिससे वे गुस्से में आकर अपने अलग मंदिर बनाकर अपने पुराने और नए पाप (जो उन्होंने किए ही नहीं) को धोने घंटे घड़ियाल बजाते भगवान से गुहार लगाते रहें कि हे प्रभु हमें भी ऊंची जाति वाला बना दें और इस पूजा पाठ और दान दक्षिणा के एवज में इस नहीं तो अगले जन्म में तो ऊंची जाति में पैदा कर ही देना जिससे हमें यह गरीबी और नर्क जैसी सामाजिक यंत्रणा से मुक्त रहें.

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