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नोटबंदी, देहव्यापार और रविशंकर प्रसाद का बेतुका बयान

लोकतांत्रिक सरकारों के गलत फैसलों से ज्यादा नुकसानदेह बात होती है उनका अपने गलत फैसलों को सही साबित करने की झख और जिद पर अड़ जाना. नोटबंदी की सालगिरह या बरसी अपनी अपनी सहूलियत से कुछ भी कह लें, पर यही हुआ. मोदी सरकार के मंत्री देश भर में शहर शहर नोटबंदी के फायदे गिनाते रहे. रट्टू तोतों की तरह बोलते इन मंत्रियों में से एक नई बात कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भोपाल में यह कहते बताई कि नोटबंदी से देहव्यापार में भी कमी आई है.

न मौका था न मौसम था और न ही दस्तूर था फिर भी जोश के समुद्र में गोते लगा रहे रविशंकर जाड़ों की एक गुलाबी शाम में इस आदिम कारोबार का जिक्र कर ही बैठे तो यह बात नोटबंदी से भी ज्यादा बेतुकी और बेहूदी थी, जिसे लेकर कांग्रेस ने उन पर चढ़ाई करने का सुनहरा मौका गंवाया नहीं.

नोटबंदी के फायदों की इस अदभुत मिसाल पर कांग्रेस ने उनसे देहव्यापार का विवरण मांगते कहा कि रविशंकर प्रसाद बताएं कि देश भर में देहव्यापार कहां कहां रजिस्टर्ड यानि कानूनन मान्य है और नोटबंदी के पहले और बाद में उसके औसत आंकड़े क्या क्या हैं. इस सवाल पर रविशंकर उस पंडे जैसे बगलें झांकते नजर आए जो पूजा पाठ के दौरान संस्कृत में मंत्र तो पढ़ देता है पर पूछने पर उसका मतलब नहीं बता पाता.

गौरतलब है कि पिछले साल 8 नवंबर की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का तुगलकी फरमान जारी किया था. उन्होंने भ्रष्टाचार, कालेधन और आतंकवाद जैसी समस्याओं के काबू होने की बात करते सवा सौ करोड़ देशवासियों को नोट बदलने की लाइन में लगने मजबूर कर दिया था. उस वक्त कैसी अफरातफरी मची थी यह विपक्षियों ने अपने अपने तरीके से जगह जगह प्रदर्शन करते अपनी लोकतान्त्रिक जिम्मेदारी निभाई.

लेकिन देहव्यापार का जिक्र पहली बार हुआ, मानो यह कोई भीषण अपराध हो, हां धार्मिक कट्टरवादी जरूर देहव्यापार को घिनौना और समाज को पतन की तरफ ले जाने वाला पाप बताते रहते हैं, तो यह उनके धार्मिक पूर्वाग्रह और कुंठाए हैं. यह सच है कि नोटबंदी की बड़ी मार वेश्याओं, कालगर्ल्स और बार बालाओं पर भी पड़ी थी, लेकिन इससे यह धंधा कम नहीं हो गया था, बल्कि उनकी आमदनी कम हो गई थी. नोटबंदी के दौरान तमाम रोज्मर्राई जरूरी चीजों के भावों में उतार चढ़ाव आए थे और हैरतअंगेज तरीके से जिस्म के भाव गिरे थे, क्योंकि सवाल जिस्म का कम उससे पलने वाले पेटों का ज्यादा था, जिससे किसी रविशंकर को कोई सरोकार न तब था न आज है.

भोपाल की ही एक हाइप्रोफाइल कालगर्ल की मानें, तो इन मंत्री जी को कुछ बोलने से पहले यह देख लेना चाहिए था कि इसी भोपाल में मध्य प्रदेश में और पूरे देश में देहव्यापार पुलिस के संरक्षण में होता है, पकड़े तो वे चार पांच फीसदी लोग या लड़कियां जाती हैं जो हफ्ता या महीना वक्त पर नहीं पहुंचाती, यह कारोबार अरबों खरबों का है, जिसे अगर कानूनी जामा पहना दिया जाये तो सरकार की सारी दरिद्रता (गरीबी) दूर हो जाएगी. जो पैसा अभी घूस की शक्ल में पुलिस वाले, दलाल और दूसरे रसूखदार खा रहे हैं, वह टैक्स की शक्ल में सरकारी खजाने में पहुंचेगा तो आम लोगों के सर से भी दूसरे करों का भार कम होगा.

बात में दम इस लिहाज से भी है कि हर कोई मानता है कि देहव्यापार खत्म नहीं हो सकता और इसे कुछ बन्दिशों के साथ या शर्तों पर अपराध की श्रेणी से बाहर रखना कोई हर्ज की बात नहीं. यहां मकसद देहव्यापार की वकालत कम वेश्याओं को शोषण से मुक्त करने कराने की ज्यादा है, जिस पर रविशंकर जैसे मंत्रियों को बजाय नाकभों सिकोड़ने के या इसे जिल्लत ज़लालत वाला काम बताने के गंभीरतापूर्वक पहल करनी चाहिए.

जगजीत सिंह पर हंसने वाले लोग जब उनके लिये तालियां बजाने लगे

वैसे तो जगजीत सिंह के जीवन से जुड़ी ऐसी बहुत सी बातें है जो शायद की आप जानते होंगे. आज हम आपको जगजीत सिंह के उन दिनों के बारे में बता रहे हैं जब उनके स्टेज पर आने से पहले ही बौलीवुड के जाने माने फिल्म डायरेक्टर सुभाष घई को भी लगा था कि आज जगजीत सिंह बुरी तरह फ्लौप होने वाले हैं. विश्वास नहीं होता ना? चलिए आज हम बताते हैं आखिर क्या था पूरा मामला.

दरअसल ये वाकया उन दिनों का है जब जगजीत सिंह को अपने कौलेज की तरफ से स्टेट लेवल के कौलेज यूथ फेस्टिवल में भाग लेने के लिए बेंगलुरु भेजा गया था. जगजीत सिंह पर किताब लिखने वाली सत्या सरन ने ‘बीबीसी’ को दिए इंटरव्यू में उनके बारे में कई बातें बताई जो कम ही लोग जानते हैं.

सत्या सरन का कहना है कि सुभाष घई ने मुझे बताया था. रात 11 बजे जगजीत का नंबर आया. माइक पर जब उद्घोषक ने घोषणा की कि पंजाब यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट शास्त्रीय संगीत गाएगा तो वहां मौजूद लोग जोर से हंसने लगे. उनके लिए पंजाब तो भंगड़ा के लिए जाना जाता था.

सत्या सरन को सुभाष घई ने बताया कि जगजीत के स्टेज पर आने से पहले ही बहरा कर देने वाला शोर होने लगा था, लोग सीटी बजा रहे थे और सुभाष घई को लगा की आज जगजीत बुरी तरह फ्लौप होने वाले हैं.

लेकिन कान फाड़ शोर के बीच जगजीत सिंह ने आंखें बंद कर अलाप लेना शुरू किया और तीस सैकेंड बाद मानों उनका जादू चल गया. लोग शांत होकर उन्हें सुन रहे थे. जल्द ही लोग बीच-बीच में तालियां बजाने लगे. आखिर में जब जगजीत सिंह ने गाना खत्म किया तो लोगों ने पूरे जोश के साथ बहुत देर तक तालियां बजाईं. सुभाष घई ने सरन से कहा कि उस वक्त उनकी आंखों में आंसू आ गए थे. यहां जगजीत सिंह को पहला पुरुस्कार मिला था.

‘चिट्ठी ना कोई संदेश कहां तुम चले गए’, ‘होठों से छू लो तुम’, ‘कोई फरियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे’, ‘होश वालों को खबर क्या’ और ऐसी ना जानें कितनी गजलें जगजीत सिंह के नाम हैं जो आज भी उनके हमारे बीच होने का एहसास कराती है.

मशहूर गजल गायक जगजीत सिंह मखमली आवाज के जादूगर थे. जगजीत सिंह को ‘गजल का किंग’ के नाम से भी जाना जाता है.

सोशल मीडिया से कोहली कैसे करते हैं इतनी मोटी कमाई

भारतीय क्रिकेट टीम के कप्‍तान विराट कोहली ने न्‍यूजीलैंड के खिलाफ हाल ही में टी-20 सीरीज जीतकर अपने विजय अभियान को जारी रखा है. विराट ने अपने करियर में कई रिकौर्ड्स अपने नाम किए हैं. विराट सबसे तेज 9000 रन बनाने वाले बल्लेबाज के साथ-साथ वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक मारने वाले खिलाड़ी भी बन गए हैं.

विराट की फैन फौलोइंग भारत ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी काफी है. हर कोई कोहली को रन बनाते हुए देखने के लिए उत्सुक रहता है. क्रिकेट के मैदान के बाहर भी विराट अपनी स्टाइल और फैशन की वजह से सुर्खियों में बने रहते हैं.

भारत के दूसरे खिलाड़ियों के मुकाबले वो इस रेस में काफी आगे निकल चुके हैं. यही वजह है कि ज्यादातर कंपनियां उन्हें अपने ब्रांड के साथ जोड़ना चाहती है. फोर्ब्स मैगजीन की रिपोर्ट की माने तो विराट भारत के सबसे ज्यादा कमाई करने वाले क्रिकेटर हैं.

इतना ही नहीं क्रिकेट और ऐडवर्टाइजमेंट के अलावा विराट सोशल मीडिया के जरिए भी पैसे कमाते हैं. विराट की लोकप्रियता को देखते हुए कंपनियां उन्हें सोशल मीडिया पर प्रोडक्ट पोस्ट करने के लिए पैसे देती हैं.

विराट इंस्टाग्राम पर काफी एक्टिव रहते हैं. वह अपने फैंस के साथ अधिकतर चीजें इंस्टाग्राम पर ही शेयर करते हैं. हाल ही में तीसरे टी-20 से पहले विराट ने हार्दिक और धवन के साथ एक डांसिंग वीडियो को इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया था.

Good win and good knock by Shikhi D. ?? @shikhardofficial

A post shared by Virat Kohli (@virat.kohli) on

इंस्टाग्राम पर विराट के 1.65 करोड़ से ज्यादा फौलोअर्स हैं. ऐसे में अगर विराट किसी प्रोडक्ट को अपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हैं तो इसके लिए उन्हें 3.20 करोड़ रुपये दिए जाते हैं. न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज जीतने के बाद अब विराट का ध्यान श्री लंका के साथ होने वाले टेस्ट सीरीज पर है.

 

फेसबुक टैगिंग से पाना है छुटकारा तो ऐसे करें सेटिंग

फेसबुक सोशल मीडिया के प्रमुख प्लेटफौर्म में से एक माना जाता है. वर्तमान समय में दुनिया के अधिकांश लोग इस प्लेटफौर्म पर मौजूद हैं और वो रोजाना अपने दोस्तों के साथ न सिर्फ फोटो और पोस्ट साझा कर रहे हैं बल्कि कुछ खास फोटो में वो लोगों को टैग भी कर रहे हैं.

हालांकि कुछ लोग इस टैग्स से परेशान हो जाते हैं और उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं होता कि कोई भी उन्हें किसी फोटो या पोस्ट में टैग करे. अगर आप भी फेसबुक टैगिंग से परेशान रहते हैं तो यह खबर बेशक आपके काम की है. हम अपनी इस खबर में आपको बताएंगे कि आप फेसबुक की सेटिंग में कुछ बदलाव कर खुद को किसी भी पोस्ट या फोटो में टैग होने से बचा सकते हैं.

जानिए पूरा प्रोसेस

  • फेसबुक में खुद को टैग होने से रोकने के लिए सबसे पहले फेसबुक पर अपने अकाउंट से लौगिन करें.
  • अकाउंट से लौगिन करने के बाद अपनी प्रोफाइल में दायीं ओर दिए डाउन एरो पर क्लिक कर सेटिंग औप्शन को सेलेक्ट करें.
  • इसके बाद सेटिंग में आपको कई औप्शन दिखाई देंगे. जिनमें जनरल, सिक्योरिटी और लौगिन, प्राइवेसी और Timeline & Taging के अलावा कई विकल्प मौजूद होंगे. इन सभी विकल्पों में से आपको टाइमलाइन और टैगिंग औप्शन को सेलेक्ट करना होगा.
  • Timeline & Taging औप्शन पर क्लिक करते ही आपको तीन और विकल्प नजर आएंगे. अब आपको तीसरा विकल्प How can I manage tags people add and tagging suggestions? में जाना होगा.
  • अब इसमें दिए गए सबसे पहले औप्शन Review tags people add to your own posts before the tags appear on Facebook? पर क्लिक कर इसे औन कर दें.

इस प्रोसेस को पूरा करने के बाद जब भी आपका कोई दोस्त आपको किसी पोस्ट या फोटो में टैग करेगा, तो आपको नोटिफिकेशन मिल जाएगा. अब अगर आप चाहें तो उस पोस्ट को अपनी टाइमलाइन पर अलाऊ या डिलीट कर सकते हैं.

बड़ा सवाल : आदमी काजी तो औरतें क्यों नहीं?

बरसों से इस देश में पंडित, मुल्ला, पादरी, पुरोहित जैसे काम मर्द ही संभालते आए हैं. वैसे, अब बहुत से मंदिरों में औरतें पुजारी भी दिखती हैं. बहुत सी साध्वियां भी आप देख सकते हैं. साधुसंन्यासी औरतों ने अपना एक अलग अखाड़ा भी बना लिया है, जिस का नाम ‘परी अखाड़ा’ है.

आप को याद होगा इलाहाबाद कुंभ स्नान के दौरान इस अखाड़े को बाकायदा बनाया गया था और इस को बनाने में साध्वियों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा था, क्योंकि मर्द साधुसंन्यासी इस की सख्त खिलाफत कर रहे थे.

यहां काबिलेगौर बात यह है कि दुनियाभर की चमकधमक से वास्ता खत्म कर चुका संन्यासी समाज भी मर्दवादी सोच से अपना वास्ता खत्म नहीं कर पाया है. अभी हाल ही में कुछ मुसलिम औरतों ने काजी बनने की इच्छा जाहिर की. इस के लिए उन्होंने इसलाम की जरूरी जानकारी ली और वे काजी बन गईं. यह पहल मुंबई, जयपुर और कानपुर की कुछ औरतों ने की थी.

उन का इतना करना था कि जैसे मुसलिम समाज में हलचल मच गई. यह मुद्दा देश में चर्चा का विषय बन कर उभर आया. टैलीविजन चैनलों में बाकायदा इस पर चर्चा चलने लगी. अखबारों में लेख छपने लगे. देश में इस बहस में जो बातें औरतों के खिलाफ कही जा रही थीं, उन में से कुछ का जिक्र करना जरूरी है.

सब से पहले तो यह कि औरत को काजी बनने की इजाजत इसलाम धर्म में नहीं है. वे काजी नहीं बन सकतीं, क्योंकि ये कयामत के आसार हैं. दुनिया खत्म हो जाएगी. उन को माहवारी आती है, इसलिए वे काजी नहीं बन सकतीं.

शबरीमाला मंदिर हो या शनिशिंगणापुर या फिर हाजी अली की दरगाह हो, हर जगह औरतों की माहवारी अचानक सामने आ गई और उन्हें इन इबादतगाहों में दाखिल होने से मना कर दिया गया.

अचानक उभरी इस बहस के पीछे की सियासत को समझना भी मुश्किल नहीं है. यह मर्दवादी सोच की बौखलाहट भी है, जो औरत को काबू में करने के लिए तरहतरह के बहाने ढूंढ़ रही है.

अब यहां यह जानना भी जरूरी है कि आखिर काजी है क्या? ज्यादातर लोगों ने तो बस एक कहावत सुनी होगी कि मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी. इस के आगे कुछ नहीं.

काजी का मतलब है वह न्यायाधीश, जो मुसलिम समाज के इसलामिक कानून के आधार पर इंसाफ कर सके और धार्मिक रीतिरिवाजों, वैवाहिक परंपराओं का पालन व धार्मिक अनुष्ठानों को पूरा करा सके.

काजी के सवाल पर भारत में एक अधिनियम भी बना हुआ है, जिसे काजी अधिनियम या काजी ऐक्ट कहते हैं. साल 1864 का एक प्रस्ताव था, जिस के तहत शहर, कसबे या परगने में मुसलिम समुदाय की रीतियों, विवाह के अनुष्ठानों और दूसरे मौकों के अनुष्ठानों को कराने के लिए काजी का होना जरूरी है.

अंगरेज सरकार ने इस के लिए एक अधिनियम पास किया था, जो ‘काजी अधिनियम 1880’ कहलाया था. इस अधिनियम के तहत किसी स्थानीय क्षेत्र के लिए भी जहां मुसलिम समुदाय की तादाद यह इच्छा करती है कि एक या ज्यादा काजियों को उक्त क्षेत्र में रखा जाए, तो राज्य सरकार स्थानीय लोगों की सलाह पर ऐसा कर सकती है. ऐसी नियुक्तियां राज्य सरकारों द्वारा काफी लंबे समय तक की जाती रही हैं.

भारत के सभी मुसलिमों पर यह ऐक्ट तब तक लागू माना जाएगा, जब तक कि यह ऐक्ट खत्म नहीं कर दिया जाता है. अब यहां दूसरा सवाल यह उठता है कि उस काजी ऐक्ट 1880 को अगर गौर से देखें, तो पाएंगे कि कहीं भी उस ऐक्ट में यह नहीं लिखा है कि काजी के पद पर औरतें नहीं आ सकतीं और न ही औरत की माहवारी पर कुछ कहा गया है.

हम जिस ऐक्ट से गवर्न होते हैं, किसी बहस के लिए उसे ही आधार माना जाएगा और कोई न्यायिक वाद भी उसी के दायरे में निबटाया जाएगा, इसलिए किसी औरत के काजी बनने के खिलाफ जो भी बहस है, वह अधिनियम के खिलाफ है, जिसे भारत में स्वीकारा नहीं जा सकता.

दूसरी बात, हर साल लाखों की तादाद में औरतें हज करने मक्का जाती हैं. हज की गाइडलाइन में भी माहवारी के बारे में नहीं लिखा है और न ही वहां इस किस्म की कोई रुकावट है.

अगर इस मुद्दे के दूसरे पहलू पर गौर करें, तो देखेंगे कि आज के जमाने में काजी ऐक्ट पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुका है. यह उस जमाने की जरूरत थी, जब कानून और प्रशासनिक अमला इतना मजबूत नहीं था. हर शहर के कुछ समझदार लोग मिलबैठ कर किसी ईमानदार और पढ़ेलिखे आदमी को आलिम या फाजिल चुन लेते थे, जो शहर के तमाम धार्मिक और पारंपरिक रीतिरिवाजों से जुडे़ मामलों को समझता और पूरा कराता था. आज काजियों के पास कोई काम नहीं है, न ही कोई कानूनी पावर. सरकार ने भी साल 1982 के बाद से काजी की नियुक्ति बंद कर दी है.

इस सब के बावजूद अगर कोई औरत काजी, मौलवी, आलिम या फाजिल बनना चाहती है, जो उस के फायदे की बात भी नहीं है, फिर भी उसे किसी आधार पर रोका नहीं जा सकता है. भारत का संविधान भी इस की इजाजत नहीं देता है.

जैसे मर्दों को इन ओहदों से कुछ खास हासिल नहीं हुआ, उन की सोच का लैवल ऊंचा नहीं उठ सका, वैसे ही औरतों की सोच इन ओहदों से ऊंची तो नहीं उठ सकती, उन्हें कुछ नहीं मिलेगा. हां, काजी बन कर कम से कम समाज के हर क्षेत्र में वे अपनी मौजूदगी तो दर्ज करा पाएंगी.

पर मजहब को जानने और उस पर बोलने का एकाधिकार उलेमा अपने हाथ में ही रखना चाहते हैं. उन्हें इस बात का खतरा है कि औरतें अगर इस क्षेत्र में भी आ गईं, तो उन की बात सुनने वाला कोई नहीं रह जाएगा.

दुनिया बहुत आगे जा चुकी है. जिस सऊदी अरब को उलेमा अपने हर काम का रोल मौडल मान कर चलते हैं, वह भी बदल रहा है.

साल 2015 के नगरपरिषद के चुनाव में औरतों ने वहां भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. 978 महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरीं, उन में से कई जीत भी गईं. पहली महिला नेता बनने का खिताब मक्का प्रांत की सलमा बिन हिजाब अल ओतिबी को मिला.

यह नहीं पता कि भारत के उलेमा इस जीत को किस नजरिए से देखते हैं, लेकिन दुनिया के नक्शे पर सऊदी अरब के चुनाव को औरतों की आजादी का ‘फाइनल फ्रंटियर’ माना जा रहा है.

जब वहां इतना बड़ा बदलाव स्वीकार हो रहा है, तो हमारे देश में किसी औरत को काजी स्वीकार करने में इतनी तकलीफ क्यों?

पर्सनल ला बोर्ड नामक एक एनजीओ के जनरल सैक्रेटरी वली रहमानी बयान देते हैं कि देश में बढ़ती असहनशीलता के खिलाफ वे मुहिम चलाएंगे. यह बात अहम है. ऐसी मुहिम चलाने का उन्हें पूरा हक है, लेकिन उस के साथ ही मुसलिम औरतों की तरक्की के खिलाफ उन की और उन की कौम की बढ़ती असहनशीलता भी गाहेबगाहे देश के लोगों को देखने और सुनने को मिलती है. उम्मीद है, इस के बारे में भी वे जरूर सोचेंगे और उस के खिलाफ भी कोई न कोई मुहिम जरूर चलाएंगे. यह भी कौम की बड़ी खिदमत होगी.

इस से मुसलिम कौम और भारत देश दोनों का ही फायदा होगा और फिर यह दोहराना लाजिमी हो जाता है कि आदमी काजी बन सकते हैं, तो फिर औरतें क्यों नहीं?

बिहार : मौत का गड्ढा खोदते बालू माफिया

14 सितंबर, 2017 की सुबह के तकरीबन साढ़े 5 बजे 60 साल के पवन सिंह रोज की तरह गंगा नदी में नहाने के लिए घर से निकलने लगे. उन के 5 पोतेपोतियों ने भी साथ चलने की जिद की. पवन सिंह ने उन्हें जाने से मना किया, पर बच्चे अपनी जिद पर अड़े रहे.

आखिरकार पवन सिंह पोतेपोतियों को ले कर गंगा नदी के किनारे पहुंच गए. बच्चों ने अपनेअपने कपड़े उतारे और पानी में छलांग लगा दी. अपने इन मासूम बच्चों को पानी में अठखेलियां करते देख पवन सिंह खुश होते रहे.

4 बच्चे किनारे से कुछ आगे की ओर बढ़ने लगे, तो पवन सिंह जोर से चिल्लाए कि आगे मत जाओ. गहरा गड्ढा है.

पानी में मस्ती करते बच्चों तक उन की आवाज नहीं पहुंची. जब तक पवन सिंह उन्हें वापस लाने के लिए आगे बढ़ते, तब तक वे चारों बच्चे पानी में डूबने लगे. पवन सिंह उन्हें बचाने के लिए तेजी से आगे बढ़े. उन के साथ उन का एक पोता भी आगे लपका. पवन सिंह ने तैर कर चारों बच्चों को पकड़ लिया, पर कुछ पल में वे भी पानी में डूबने लगे. पांचों बच्चे उन से लिपट गए.

इसी बीच किनारे पर खड़ी कुछ औरतों ने 2 साडि़यां बांध कर उन की ओर फेंकीं. पवन सिंह ने साड़ी के एक किनारे को पकड़ लिया, पर गांठ खुल गई और वे अपने पांचों मासूम पोतेपोतियों समेत गंगा की गहराइयों में समा गए.

नदी के किनारे ही गहरे पानी में डूब कर जान गंवा चुके बच्चों की मां कंचन देवी और रूबी देवी का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. उन की चीखों से पूरे गांव वालों की आंखें नम हो गईं. गैरकानूनी तरीके से नदी के किनारे मिट्टी और बालू काटने वाले बालू माफिया ने दादा पवन सिंह समेत 5 मासूम पोतेपोतियों को लील लिया. इस तरह बिहार के पटना जिले के मोकामा ब्लौक के मरांची गांव में तीन भैया टोला के एक ही परिवार के 6 लोगों की जान चली गई.

सुबह के तकरीबन 6 बजे डहर घाट पर हुई इस दर्दनाक घटना के बाद गांव वालों ने बालू माफिया के खिलाफ कमर कस ली. वे नदी के किनारे से मिट्टी और बालू निकालने पर तुरंत पाबंदी लगाने की मांग को ले कर आंदोलन पर उतर आए. पर गंगा के किनारे ही कई लोगों की डूबने से हुई मौत के बाद भी चिमनी संचालक और बालू माफिया बाज नहीं आ रहे हैं और न ही प्रशासन  उन पर नकेल कसने को ले कर गंभीर है. इस हादसे में पवन सिंह के साथ निक्की कुमारी (11 साल), अनमोल शर्मा (10 साल), काजल कुमारी  (12 साल), निर्मला कुमारी  (9 साल) और मौला कुमारी  (7 साल) गंगा के पानी में डूब गए.

निक्की कुमारी और अनमोल पवन सिंह के बड़े बेटे निरंजन के बच्चे थे. काजल, निर्मला और मौला पवन सिंह के छोटे बेटे पंकज किशोर सिंह के बच्चे थे.

इस टोले के रहने वाले सुदामा सिंह बताते हैं कि पवन सिंह काफी अच्छे तैराक थे, लेकिन अपने पोतेपोतियों को डूबता देख शायद वे घबरा गए होंगे.

मौके पर मौजूद लोगों ने बताया कि पवन सिंह के शरीर से उन के पोतेपोतियों के लटकने की वजह से हो सकता है कि वे तैर नहीं पाए हों. बच्चे उन के कंधे और कमर पकड़ कर लटके हुए थे और ‘बाबाबाबा’ चिल्ला रहे थे. सभी बच्चों को बचाने की कोशिश में वे भी डूब गए.

गांव वालों ने बताया कि बालू और मिट्टी माफिया वाले गैरकानूनी तरीके से खुदाई करते हैं और नदी के किनारे ही 20-25 फुट तक खुदाई कर डालते हैं.

मरांची गांव में नदी के किनारे ईंट के 10 भट्ठे हैं, जो किनारे से ही मिट्टी खोद कर निकाल लेते हैं और कई जगहों पर मौत के गड्ढे बना कर छोड़ देते हैं.

अब इन 6 मौतों के बाद प्रशासन की आंखें खुली हैं और गैरकानूनी खुदाई करने वालों पर नकेल कसने का ऐलान किया है. डूब कर मरने वाले के परिवार को 4-4 लाख रुपए का चैक बांटने में फुरती दिखाई गई, पर यह मामला ठंडा होने के बाद सरकारी अफसर फिर से चादर तान कर सो जाएंगे.

मरांची गांव की सीमा से तकरीबन एक किलोमीटर दूर गंगा का किनारा है. नदी के किनारे 10 ईंटभट्ठे हैं. भट्ठा चलाने वाले कानून को ठेंगा दिखाते हुए बेरोकटोक नदी के किनारे से मिट्टी काटते रहते हैं. मरांची गांव ही नहीं, मोकामा समेत गंगा के किनारे समूचे राज्य में ईंटभट्ठे चलाने वालों की मनमानी चलती है. कुछ महीने पहले भी मोकामा के शिवनार गांव के तरवन्ना घाट पर एक आदमी की गहरे पानी में डूबने से मौत हो गई थी.

गांव वाले दबी जबान में कहते हैं कि बालू और मिट्टी काटने वाले सारे ठेकेदार अपराधी हैं. वे पुलिस को चढ़ावा चढ़ाते रहते हैं और नदी के किनारे बेरोकटोक मौत की खाई खोदते रहते हैं.

बालू और मिट्टी के कारोबारी नदी के किनारे की जमीन मालिकों से खुदाई करने के लिए करार करते हैं. 8 से 10 हजार रुपए प्रति कट्ठा (तकरीबन 350 वर्गफुट) की दर पर किसानों से बालूमिट्टी खरीदने का करार होता है. करार में 4 फुट गहरी बालू या मिट्टी काटने की बात लिखी जाती है, पर ठेकेदार 25 से 30 फुट गहराई तक खोद डालते हैं.

गड्ढे में किसी की डूबने से मौत होने के बाद प्रशासन गैरकानूनी खुदाई पर रोक लगाने का आदेश जारी कर देता है. नदी के किनारे से ईंटभट्ठों को हटाने का निर्देश दिया जाता है. सारे आदेश और निर्देश फाइलों से बाहर आज तक नहीं निकल सके हैं और लोग जान गंवाने को मजबूर हैं.

मरांची गांव के पप्पू सिंह कहते हैं कि हर साल बारिश से पहले चिमनी वाले नदी के किनारे गहरी खुदाई कर ढेर सारी मिट्टी जमा कर के रख लेते हैं. इस से घाट के किनारे 20-25 फुट गहरे गड्ढे हो जाते हैं. बारिश होने पर इन गड्ढों में पानी भर जाता है. गंगा में नहाने आने वाले गांव के लोग इस बात को जानते हैं और सावधान रहते हैं, पर अकसर गलतियां हो ही जाती हैं. बाहरी लोगों को नदी के किनारे बने गड्ढों का पता नहीं चल पाता है और नहाने के दौरान वे डूबने से मारे जाते हैं.

बुजुर्गों की हत्या : अपने ही बहा रहे हैं खून

60 साल की विधवा आशा देवी की हत्या करने से पहले हत्यारों ने उन के हाथपैर को बांध दिया था. खून से सनी उन की लाश पेट के बल बिछावन पर पड़ी हुई थी. उन के दोनों हाथ पीछे की ओर कर के रस्सी से बांध दिए गए थे.

लाश को देख कर लगता था कि कातिलों ने पहले उन के सिर पर किसी धारदार हथियार से वार किया था, उस के बाद चेहरे पर. जिस्म के अलगअलग हिस्सों पर चाकू से मारा गया था. उन की दोनों आंखों को भी फोड़ डाला गया था, उस के बाद कातिलों ने गला दबा कर उन्हें पूरी तरह शांत कर दिया था.

10 सितंबर, 2017 को आशा देवी की हत्या करने के बाद हत्यारे उन का मोबाइल फोन साथ ले भागे. उन्हीं के फोन से हत्यारों ने दोपहर के 1 बज कर 57 मिनट पर आशा देवी के मकान में किराए पर रहने वाले छात्र शुभम को फोन कर के बताया कि आंटी सीढि़यों से गिर गई हैं, घर जा कर देख आओ.

इस से पहले हत्यारों ने आशा देवी की छोटी बेटी नीता को फोन किया था, पर उस समय वह काल रिसीव नहीं कर सकी थी. उस के बाद छोटे दामाद अमित कुमार को फोन किया गया, पर वे भी काल रिसीव नहीं कर सके थे. फोन रिसीव करने के बाद शुभम ने पास में ही रहने वाले आशा देवी के देवर महेंद्र प्रसाद सिंह और उन की बीवी उमा देवी को मामले की जानकारी दी. सभी लोग आशा देवी के घर पहुंचे और पहली मंजिल पर गए.

वहां सीढि़यों पर आशा देवी नहीं मिलीं. उस के बाद सभी आशा देवी के कमरे में पहुंचे, तो देखा कि वे खून से लथपथ पेट के बल बिस्तर पर पड़ी हुई थीं.

बुजुर्ग औरत आशा देवी की हत्या के मामले में पुलिस ने पुरानी दाई समेत 3 रिश्तेदारों को हिरासत में लिया. पूछताछ के बाद दाई को छोड़ दिया गया. पटना के सिटी एसपी डाक्टर अमरकेश ने बताया कि पुलिस की जांच में पता चला है कि हत्यारों ने पटना जंक्शन के पास से आशा देवी की बेटी, दामाद और उन के यहां रहने वाले छात्र शुभम को फोन किया था. आखिरी काल लोकेशन पटना जंक्शन की थी, जिस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे बिहार से बाहर फरार हो चुके हैं.

आशा देवी के देवर के बयान पर पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया.

पुलिस को यकीन है कि किसी करीबी ने ही आशा देवी का कत्ल किया है. वे अपने घर के मेन गेट को हमेशा लौक रखती थीं और कोई अपना आता था, तभी गेट खोलती थीं. यह भी हो सकता है कि कोई परिचित ही हत्यारों को साथ ले कर आया हो.

आशा देवी ने अपनी जायदाद को दोनों बेटियों के नाम कर दिया था, इसी बात से गुस्साए किसी करीबी ने ही उन की हत्या कर दी हो. उन के कमरे में रखी अलमारी और बक्से खुले हुए थे, जिस से साफ होता है कि लूट के इरादे से आशा देवी की हत्या की गई थी.

आशा देवी के मकान के ग्राउंड फ्लोर पर शुभम, भानु प्रताप, अभिषेक और आशुतोष किराए पर रहते हैं. सभी बीए के छात्र हैं.

आशा देवी की बड़ी बेटी सुजाता और दामाद रितेश जयपुर में रहते हैं. रितेश बैंक में काम करते हैं. छोटी बेटी नीता अपने पति अमित कुमार के साथ बिहार के ही जमालपुर में रहती हैं. उन के पति रेलवे में इंजीनियर हैं.

आशा देवी ने अपने मकान को 2 हिस्सों में बांट कर दोनों बेटियों के नाम कर दिया था. पुलिस ने आशा देवी की बेटियों से पूछताछ की है. आशा देवी को हर महीने 15 हजार रुपए किराए से मिलते थे और पैंशन की रकम खाते में जमा हो रही थी. उन्होंने अपने सारे गहनों को बैंक के लौकर में जमा कर रखा था.

कुछ दिन पहले ही उन्होंने 2 लाख रुपए इन्वैस्ट किए थे. इस से पुलिस को शक है कि किसी नजदीकी जानकार ने ही आशा देवी का कत्ल किया है.

पटना के शास्त्रीनगर थाने के शिवपुरी महल्ले के ममता अपार्टमैंट्स के पास आशा देवी का मकान है. वे अपने मकान में अकेली रहती थीं. साल 2014 में आशा देवी के पति रामानंद सिंह की मौत हुई थी. वे शिक्षा विभाग में मुलाजिम थे और कुछ साल पहले ही रिटायर हुए थे.

दौलत और रुपयों की खातिर बुजुर्गों के बेटे, रिश्तेदार, दोस्त वगैरह ही उन का कत्ल करने लगे हैं, जिस से परिवार में भरोसा नाम की चीज खत्म होती जा रही है और अपराध का नया और घिनौना चेहरा सामने आने लगा है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को देख कर महसूस किया जा सकता है कि रिश्तेदारी और दोस्ती पर दौलत किस कदर भारी पड़ने लगी है.

पुलिस के एक आला अफसर कहते हैं कि ऐसे मामलों में परिवार के सदस्य बड़ी ही सफाई से और मौके का इंतजार कर हत्या को अंजाम देते हैं, जिस से पुलिस को जांचपड़ताल करने में काफी दिक्कतें आती हैं.

ऐसे ज्यादातर मामलों में हत्यारे या हत्या की साजिश रचने वाले ही शिकायत दर्ज कराते हैं. हत्या को अंजाम देने के बाद सुबूतों को पूरी तरह से मिटा कर ही वे थाने में एफआईआर दर्ज कराने पहुंचते हैं.

इतना ही नहीं, वे समयसमय पर पुलिस जांच के बारे में जानकारी भी लेते रहते हैं और पुलिस को गुमराह कर जांच को दिशा से भटकाने में कामयाब हो जाते हैं.

बिहार पुलिस हैडक्वार्टर से मिली रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013 से मई, 2016 के बीच पटना जिले में ही 992 हत्याएं हुईं, जिन में से 77 फीसदी मामलों में किसी न किसी तरह से परिवार के किसी सदस्य या पहचान वाले का ही हाथ था.

19 सितंबर, 2017 की सुबह पटना सिटी की पटनदेवी कौलोनी में 78 साल की दौलती देवी की उन के 55 साल के बेटे विजय के साथ पैसों को ले कर अनबन शुरू हुई और गुस्से में विजय ने अपनी मां को जोर से धक्का दे दिया. बूढ़ी दौलती देवी मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ीं और उन के मुंह से खून बहने लगा.

दौलती देवी के छोटे बेटे सुजय ने जख्मी पड़ी मां को उठाया और अस्पताल ले गया. जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि दौलती देवी की मौत हो चुकी है.crime story

मां की मौत होने के बाद गुस्साए सुजय ने घर पहुंच कर विजय पर ईंटपत्थरों और धारदार हथियारों से हमला कर दिया, जिस से मौके पर ही विजय की भी मौत हो गई.

इस दोहरे हत्याकांड के पीछे रुपए और जमीन का ही झगड़ा था. आसपास के लोगों ने बताया कि दौलती देवी और उन के बेटों के बीच अकसर रुपयों के लेनदेन को ले कर झगड़ा होता रहता था.

दौलती देवी के पति फकीरा महतो सरकारी मुलाजिम थे और रिटायर होने के कुछ दिन बाद ही उन की मौत हो गई थी. उन की पैंशन दौलती देवी को मिलती थी. पैंशन की रकम को ले कर हमेशा मांबेटों में झगड़ा होता था. इस के अलावा ढाई कट्ठा (3350 वर्गफुट) जमीन के कुछ हिस्से में घर बना हुआ था और अगले हिस्से में बने मोटर गैराज वाली जगह को किराए पर दे दिया गया था.

किराए का पैसा छोटे बेटे सुजय को मिलता था. विजय की निगाह पैंशन की रकम पर लगी रहती थी और इसी को ले कर वह झगड़ा करता रहता था. कुछ हजार रुपए के लिए विजय ने अपनी मां की जान ले ली और मांबेटे के रिश्ते को तारतार कर डाला.

जमीन के टुकड़े और कुछ रुपयों को हथियाने के चक्कर में पूरा परिवार तबाह हो गया. दौलती देवी और विजय की तो जान गई ही, सुजय की पूरी जिंदगी अब जेल की काल कोठरी में कट रही है.

विजय की बीवी किरण देवी और उस की 3 बेटियों के साथ सुजय की बीवी रानी की भी जिंदगी तबाह हो चुकी है.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट बताती है कि साल 2016 में देशभर में बुजुर्गों से जुड़े 18714 मामले अलगअलग पुलिस थानों में दर्ज किए गए और इन मामलों के तहत 19008 बुजुर्ग अपराध के शिकार हुए.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, बुजुर्गों से जुड़े अपराध के सब से ज्यादा 3981 मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए. मध्य प्रदेश में 3438, तमिलनाडु में 2121, आंध्र प्रदेश में 1852, राजस्थान में 1034 और दिल्ली में 1021 मामले पुलिस थानों में दर्ज किए गए.

बिहार में बुजुर्गों की हत्या, लूट और सताने के 496 मामले दर्ज किए गए. इन मामलों में 521 बुजुर्गों को अपराधियों ने निशाना बनाया. पटना के एसएसपी मनु महाराज कहते हैं कि जब पुलिस में हत्या की शिकायत दर्ज कराने वाला ही कातिल हो, तो पुलिस को जांचपड़ताल करने में काफी दिक्कतें आती हैं.

कई मामलों में यह भी देखा गया है कि बुजुर्ग की हत्या के बाद उन के परिवार वाले हत्या को खुदकुशी का भी रूप देने की कोशिश करते हैं, जिस से कानून की आंच से आसानी से बचा जा सके.

इस के साथ ही यह भी देखा गया है कि पेशेवर हत्यारा हत्या करने से पहले सौ बार सोचता है और काफी सोचसमझ कर काम करता है और ज्यादातर मामलों में वह बूढ़ों और बच्चों की हत्या नहीं करता है, पर परिचित या रिश्तेदार अपनी पहचान छिपाने के लिए बेरहमी से बूढ़ों और बच्चों की हत्या कर डालते हैं.

पटना सिविल कोर्ट के वकील अनिल कुमार सिंह कहते हैं कि घर के बुजुर्ग को परिवार पर बोझ मानने का चलन तेजी से बढ़ा है. बच्चे सोचने लगे हैं कि बूढ़े मांबाप उन के ऊपर बोझ की तरह हैं. उन की वजह से वे अपने बीवीबच्चे के साथ घर छोड़ कर घूमने नहीं जा सकते हैं.

इस के अलावा बेटे उसी दौलत को जल्दी पाने के चक्कर में अपनों का खून कर डालते हैं, जो दौलत कल आसानी से उन्हीं की होने वाली है. अपनों की जान लेने के बाद वे अपनों के साथ दौलत और अपने परिवार को भी खो देते हैं और बाकी जिंदगी जेल में काटते हैं.

पूर्णिया सिविल कोर्ट के वकील संजय कुमार सिन्हा बताते हैं कि साल 2012 में एक परिवार के तिहरे हत्याकांड में सौतेले बेटे ने रिश्तों का खून करते हुए एकसाथ 3 जिंदगी खत्म कर डाली थीं. विसिको के रिटायर्ड क्लर्क गोपाल शरण सिंह पटना के इंद्रपुरी महल्ले में डेढ़ कट्ठा (2000 वर्गफुट) जमीन पर बने मकान में रहते थे, जिस की कीमत उस समय तकरीबन 80 लाख रुपए थी.

इस के अलावा उन की कटिहार के राजपूताना इलाके में 55 कट्ठा जमीन  थी, जिस की कीमत भी करोड़ों रुपए की आंकी गई थी.

गोपाल शरण सिंह का बेटा देवेश चाहता था कि वे अपनी जायदाद का बंटवारा कर दें. वे बंटवारे को तैयार थे, पर देवेश की सौतेली मां अलीना इस के लिए तैयार नहीं थीं. वे चाहती थीं कि उन की बेटी सोनाली और पूर्णिमा की शादी के बाद ही जायदाद का बंटवारा हो. अलीना ने जमीन और मकान के सारे कागजात अपने कब्जे में कर रखे थे. इस मामले को ले कर घर में अकसर हंगामा होता रहता था. गोपाल शरण सिंह की पहली बीवी की मौत 20-22 साल पहले हो गई थी. उस के बाद उन्होंने अलीना से दूसरी शादी की थी.

गुस्से से भरे देवेश ने हैवानियत की हद पार कर हथौड़े से मार कर सौतेली मां और उन की 2 बेटियों की हत्या कर डाली. उस की शादी हो चुकी है और हाल ही में वह बाप बना था. जायदाद के लालच में उस ने 3 इनसानों और रिश्तों का कत्ल कर अपनी बीवीबच्चे की जिंदगी भी तबाह कर डाली.

मनोविज्ञानी अजय मिश्र कहते हैं कि दौलत को ले कर घरेलू झगड़ों के बढ़ते मामलों के बीच परिवार वालों को देखनासमझना होगा कि वे ऐसे झगड़ों को तूल न पकड़ने दें और न ही ऐसे मामलों को लटका कर रखें. ऐसे मसलों का जितना जल्दी निबटारा कर दिया जाए, परिवार और परिवार वालों के लिए उतना ही अच्छा रहता है.

बुजुर्ग ये सावधानियां बरतें

* छोटेमोटे घरेलू झगड़ों की कभी भी अनदेखी न करें और न ही उन्हें दबाने की कोशिश करें. परिवार के साथ मिलबैठ कर निबटारा कर लें.

* जब बातचीत से सुलह के सारे रास्ते बंद हो जाएं, तभी अदालत का दरवाजा खटखटाएं.

* अगर बुजुर्ग अकेले रहते हों, तो वे लोकल थाने में अपनी जानकारी दें.

* घर के किसी भी सदस्य से किसी भी तरह का खतरा होने या किसी के धमकी देने के मामले में बुजुर्ग खामोश न रहें. अपने किसी रिश्तेदार, दोस्त, वकील और पुलिस को वे इस के बारे में जरूर बताएं.

* दौलत का बंटवारा बच्चों के बीच कर दें और यह ताकीद कर दें कि उन के मरने के बाद ही सभी बच्चों को उन की दौलत पर बराबरी का हक मिलेगा.

* अपनी वसीयत समय रहते कर दें और बच्चों और परिवार के सभी लोगों को इस की जानकारी दें, ताकि कोई अंधेरे में न रहे. इस मामले में किसी सदस्य का कोई सवाल हो, तो उस का जवाब उसी समय दें, उसे टालें नहीं.

* कई ऐसे मामले देखने में आते हैं कि किसी बच्चे के प्रति मांबाप का ज्यादा झुकाव होता है, जिस से बाकी बच्चों में असुरक्षा की भावना घर कर जाती है कि कहीं पिता अपने लाड़ले बेटे या बेटी को सारी दौलत या दौलत का ज्यादा हिस्सा नहीं दे दें. मांबाप को चाहिए कि वे किसी बच्चे में ऐसी गलत भावना न आने दें.

* बच्चों को भी चाहिए कि वे मांबाप के प्रति जिम्मेदार बनें, ताकि किसी एक बच्चे की ओर उन का ज्यादा झुकाव न हो.

* बुजुर्ग नाराज हो कर अपने बच्चों को बारबार दौलत से बेदखल करने की धमकी न दें.

* किसी बेरोजगार बेटे को कोई धंधा शुरू करने के लिए रुपए दें, तो उसे यह हिदायत भी दें कि रुपए कर्ज के तौर पर दिए जा रहे हैं, जिसे धीरेधीरे वापस करना होगा. इस से बेटा धंधे में पूरा मन लगाएगा और बाकी बच्चों में भी किसी तरह की तरफदारी की भावना पैदा नहीं होगी.

किस काम की ऐसी रस्में : रस्मों की अहमियत जब रिश्ते पर हावी होने लगे

अमला और सुयश का विवाह धूमधाम से संपन्न हो गया. घर में बहुत ही हंसीखुशी का माहौल था. सुयश की मां माया और पति अमला सासबहू कम, मांबेटी ज्यादा लग रही थीं. सारे मेहमान चले गए तो माया ने कहा, ‘‘अमला, अब फ्री हुए हैं. आ जाओ, हिसाब कर लें.’’

अमला कुछ समझी नहीं. बोली, ‘‘कैसा हिसाब? मांजी, मैं समझी नहीं.’’

‘‘अरे, वह जो तुम्हें मुंहदिखाई में कैश मिला है. सब ले आओ.’’

अमला अपना पर्स ले आई. सारा कैश निकाल कर माया को पकड़ा दिया. अमला ने सोचा, देख रही होंगी कि किस ने क्या दिया है. फिर उसी को पकड़ा देंगी.

सारा कैश गिन कर माया ने अपने पर्स में रख लिया तो अमला के मुंह से निकल गया, ‘‘मांजी, इन्हें आप रखेंगी?’’

‘‘हां, और क्या? इतने सालों से सब को दे ही तो रही हूं. यह मेरा दिया हुआ ही तो वापस आया है.’’

‘‘पर यह तो बहू का होता है न.’’

‘‘नहीं अमला, इस पर सास का हक होता है, क्योंकि मैं ही तो दे रही हूं सालों से, न देती तो कौन दे कर जाता?’’

नईनवेली बहू अमला चुप रही, पर मन ही मन सास पर इतना गुस्सा आया कि कई रिश्तेदारों, परिचितों से इस बात की शिकायत कर दी. माया को पता चला तो अमला पर बहुत गुस्सा हुईं.

रिश्ते में दरार

मांबेटी जैसा प्यार धरा का धरा रह गया. शुरुआती दिनों में ही दिलों में ऐसी कटुता जन्मी कि रिश्ता फिर मधुर हो ही नहीं पाया. माया सब से कहती कि अमला को खुद ही ये पैसे ‘उन्हीं का हक है’ कह कर खुशीखुशी दे देने चाहिए थे. उधर अमला का कहना था कि यह उन की मुंहदिखाई का उपहार है, पैसे उसे ही मिलने चाहिए थे.

एक रस्म ने सासबहू के रिश्ते में उपजी मिठास को पल भर में खत्म कर दिया. 4 दिन में ही इस रिश्ते में जो प्यार व सम्मान दिखाई दे रहा था, पैसे की बात आई तो दरार पड़ गई. माया और अमला दोनों ही सासबहू के रिश्ते को प्यार व सम्मान से निभाने की तैयार कर रही थीं पर फिर ऐसी दरार उभरी जो कभी न भर पाई. आज 3 साल बाद भी माया और अमला को किसी के भी विवाह के समय यह बात याद आ जाती है तो आज भी बहस छिड़ जाती है.

बढ़ती हैं दूरियां

सुशीला ने अपनी बड़ी बहू नीता जो साधारण परिवार से आई थी और दहेज में भी कुछ खास नहीं लाई थी, उसे मुंहदिखाई में 100 पकड़ा दिए थे. छोटी बहू नताशा अमीर परिवार की लड़की थी जो अपने साथ बहुत कुछ लाई थी, उस की मुंहदिखाई में सुशीला ने उसे सोने का सैट दिया तो नीता को बहुत दुख हुआ.उस ने मुंह से तो कुछ नहीं कहा पर सास के इस भेदभाव ने उस का मन इतना आहत कर दिया कि वह उन से धीरेधीरे दूर होती चली गई. नताशा के समय मुंहदिखाई का पैसा भी सुशीला ने नहीं लिया जबकि नीता से 1-1 रुपया ले लिया था. यह बात सुशीला के बड़े बेटे रमेश ने भी नोट की तो उसे मां का यह भेदभाव अच्छा नहीं लगा. मन में दूरियां बढ़ती चली गईं.

ऐसी रस्मों से फायदा ही क्या जो किसी का मन दुखा दें. विवाह का अवसर घर में, जीवन में खुशियां लाता है पर कुछ रस्में घर के आपसी संबंधों में कटुता उत्पन्न करती हैं. हमारा समाज आडंबरों, रीतिरिवाजों से घिरा है और आजकल तो परिवार में गिनेचुने ही लोग होते हैं. उन में भी अगर ऐसी रस्मों के चलते कड़वाहट भर जाए तो ऐसी रस्में जीवन भर कचोटती हैं. कोई भी रिश्ता किसी रस्म के चंद पैसों से बढ़ कर नहीं है.

त्वचा की रंगत निखारने में बड़े काम आते हैं ये उबटन

मौसम में परिवर्तन, तेज हवा, धूल व प्रदूषण से त्वचा निरंतर प्रभावित होती है. ऐसे में उस की उचित देखभाल न की जाए तो असमय ही चेहरे की त्वचा झुर्रियों व झांइयों का शिकार होने लगती हैं.

अपनी त्वचा की प्रकृति के अनुसार घरेलू उबटनों का प्रयोग कर के उसे स्वस्थ सुंदर व चमकदार बनाया जा सकता है.

सौंदर्य विशेषज्ञा डाली कपूर कहती हैं कि उबटन से त्वचा कांतिमय बनती है. उस में गजब का निखार आ जाता है. तभी तो शादी के 1 माह पहले से दुलहन को रोज उबटन लगाया जाता है. बस इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि उबटन के लिए जिस सामग्री का इस्तेमाल कर रही हैं वह आप की त्वचा के अनुकूल हो, साथ ही जब उबटन को स्क्रब करें तो हलके हाथों से करें. ताकत के साथ उबटन को न छुड़़ाएं. ऐसा करने से त्वचा क्षतिग्रस्त हो सकती है. उस पर रैशेज पड़ सकते हैं. हलके हाथों से गोलाई में घुमाते हुए उबटन हटाएं.lifestyle

फायदे अनेक

उबटन के प्रयोग से त्वचा में नमी व चमक बनी रहती है. वह मृत त्वचा को हटा कर त्वचा को नई ताजगी प्रदान करता है. उबटन के प्रयोग से त्वचा का रक्तसंचार सुचारू बना रहता है, क्योंकि इस के उतारने में त्वचा की खुद ही मालिश हो जाती है. उबटन रंग को भी निखारता है. झुर्रियों, झांड़यों से त्वचा को छुटकारा दिलाता है.

ज्यादातर उबटनों में हलदी का प्रयोग किया जाता है. अत: त्वचा कई रोगों से बची रहती हैं. अनेक लाभ होने के बावजूद उबटन का प्रयोग सदैव अपनी त्वचा के अनुरूप ही करना चाहिए. जैसे सूखी त्वचा के लिए कभी खट्टे फल जैसे नीबू, संतरे का रस प्रयोग नहीं करना चाहिए.lifestyle

रंगत निखारने का उबटन

2 चम्मच मलाई, 1 चम्मच बेसन व चुटकी भर हलदी मिला कर पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाएं. 10-15 मिनट बाद चेहरा धो ले. रंगत निखरने लगेगी.

1 चम्मच उरद दाल को कच्चे दूध में भिगो दें. पीस कर पेस्ट बनाएं. फिर इस में थोड़ा सा गुलाबजल मिला कर चेहरे पर लगाएं. थोड़ी देर सूखने दें. फिर धीरेधीरे गोलाई में रगड़ते हुए उतार दें और चेहरे को धो लें. त्वचा चमक उठेगी.

2 चम्मच बेसन, 1 चम्मच सरसों का तेल व थोड़ा सा दूध मिला कर पेस्ट बना लें. पूरे शरीर पर इस उबटन को लगा लें. कुछ देर बाद हाथ से रगड़ कर छुड़ाएं और नहा लें. त्वचा मुलायम हो जाएगी.

मसूर की दाल को पीस कर पाउडर बना लें. फिर 2 चम्मच दाल के पाउडर में 1 अंडे की जरदी मिला कर पेस्ट बना लें. इस में 2 बूदें नीबू का रस व 1 बड़ा चम्मच कच्चा दूध मिला कर रोज चेहरे पर लगाएं. सूखने पर छुड़ा लें और चेहरे को ठंडे पानी से धो लें.

1 चम्मच दही, 1 बड़ा चम्मच बेसन, चुटकी भर हल्दी व 2-3 बूंदें नीबू का रस मिला कर गाढ़ा लेप तैयार करें. इसे हाथपांवों चेहरे व बाकी शरीर पर लगा कर 5-10 मिनट लगा रहने दें. फिर धीरेधीरे हाथ से छुड़ा कर नहा लें.

1 चम्मच मुलतानी मिट्टी पाउडर में थोड़ी सी मलाई व कुछ बूदें गुलाबजल की मिला कर पेस्ट बना लें. इसे चेहरे पर लगा कर सूखने दें. फिर ठंडे पानी से चेहरा धो लें.

1 चम्मच सरसों को दूध में मिला कर बारीक पीस लें, फिर चेहरे पर लगाएं. सरसों के उबटन से न केवल रंगत में निखार आएगा, त्वचा की चमक भी बनी रहेगी.

दही त्वचा की रंगत निखारता है. नीबू से तैलीयता कम होती हैं. इन दोनों को मिला कर बनाया गया उबटन त्वचा को निखारता है.

खरबूजे और सीताफल के बीजों को बराबर मात्रा में ले कर पीस लें. फिर दूध मिला कर चेहरे और गरदन पर लगाएं. फिर छुड़ा कर नहा लें. कुछ दिनों के प्रयोग से रंगत निखरने लगेगी.

1 ब्रैडस्लाइस को थोड़े से दूध में भिगो कर चेहरे पर लगाएं. 5-10 मिनट बाद रगड़ कर छुड़ा लें. ताजे पानी से चेहरा धो लें. मृत त्वचा हट कर नई त्वचा आ जाएगी.

1 चम्मच चने का आटा या बेसन, चुटकी भर हल्दी, 2-3 बूंदें नीबू का रस और थोड़ा सा कच्चा दूध मिला कर लेप बना लें. कुछ दिनों तक इस का प्रयोग चेहरे या पूरे शरीर पर करें. त्वचा निखर उठेगी.

रूखी त्वचा के लिए

1 बड़ा चम्मच चावल का आटा, 1 छोटा चम्मच शहद व 1 छोटा चम्मच अंडे की सफेदी को मिला कर लेप बना लें. इसे 5 मिनट चेहरा पर लगा कर रखें. फिर चेहरा धो लें.

1 बड़ा चम्मच जौ का आटा, 1 अंडे की जरदी,

1 छोटा चम्मच शहद व थोड़ा सा दूध मिला कर चेहरे पर लगाएं. 10-15 मिनट बाद चेहरा धो लें.

1 बड़ा चम्मच चंदन पाउडर में गुलाबजल मिला कर लेप बना लें. फिर चेहरे पर 15-20 मिनट लगा कर रखें. बाद में हलके हाथ से रगड़ कर छुड़ा कर चेहरे को धो कर साफ करें.

1 पके केले को मसल कर पेस्ट बना लें. इस में थोड़ा सा शहद व कुछ बूंदें नीबू का रस मिला कर चेहरे पर मलें. 5-6 मिनट बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. इस से चेहरे में निखार तो आता है, झुर्रियां भी नहीं रहती.

1 छोटा चम्मच बादाम का पाउडर, 1 छोटा चम्मच मलाई, 1 बड़ा चम्मच मसूर की दाल का पेस्ट, 1/4 छोटा चम्मच गुलाबजल व कुछ बूदें तेल की मिला कर पेस्ट बना लें. इसे चेहरे व बाकी पूरे शरीर पर लगाएं. कुछ देर बाद  छुड़ा कर नहा लें. त्वचा चमक उठेगी.

तैलीय त्वचा के लिए

1 बड़ा चम्मच जौ का आटा व 1 बड़ा चम्मच सेब का गूदा मिला कर पेस्ट बना लें. इसे चेहरे पर लगाएं. 10-15 मिनट बाद छुड़ा कर चेहरे को धो लें.

2 बड़े चम्मच संतरे के छिलकों के पाउडर में थोड़ा कच्चा दूध व गुलाबजल मिला कर गाढ़ा लेप तैयार करें. चेहरे पर लगाएं. थोड़ी देर लगा रहने दें. फिर चेहरा धो लें. त्वचा कांतिपूर्ण हो जाएगी.

1 बड़ा चम्मच दही व 1 छोटा चम्मच खीरे का रस मिला कर 10-15 मिनट चेहरे पर लगाएं. फिर ठंडे पानी से चेहरा धो लें.

1 बड़ा चम्मच चंदन पाउडर, 1 छोटा चम्मच नीम की पत्तियां, 1 बड़ा चम्मच गुलाब की पत्तियां, 1 छोटा चम्मच चोकर व चुटकी भर हलदी पाउडर को मिला पेस्ट बनाएं और चेहरे पर 10-12 मिनट लगाएं रखें. सूखने पर थपथपा कर छुड़ाएं और धो लें.

1 बड़ा चम्मच जौ का आटा, 1 बड़ा चम्मच चने का आटा, चुटकी भर हलदी, 4-5 बूंदें नीबू का रस व 1 बड़ा चम्मच गुलाबजल मिला कर लेप तैयार करें. इसे चेहरे या शरीर पर लगाएं. सूखने पर छुड़ा कर नहा लें.

दाग धब्बेदार त्वचा

2 बड़े चम्मच मलाई व कुछ बूंदे गुलाबजल में हलदी की ताजी गांठ पीस कर मिलाएं और चेहरे पर कुछ दिन तक रोज लगाएं. त्वचा बेदाग हो निखर उठेगी.

1 बड़ा चम्मच सूखी नीम की पत्तियां, 2 बड़े चम्मच जौ का आटा, 2 बड़े चम्मच चने का आटा, 2 बड़े चम्मच मुलतानी मिट्टी पाउडर, 1/2 चम्मच शहद व कुछ बूंदें नीबू का रस मिला कर लेप तैयार कर चेहरे पर लगाएं. कुछ दिन के प्रयोग से त्वचा साफसुथरी दिखने लगेगी. इस पेस्ट को बना कर 1 हफ्ते तक फ्रिज में रखा जा सकता है.

दूध में चुटकी भर हलदी, गेहूं का आटा व कुछ बूंदें तेल की डाल कर पेस्ट बना लें. इसे हाथपैरों व चेहरे पर मलें. फिर सूखने पर रगड़ कर छुड़ा लें. ऐसा रोज करें और अपनी रंगत में आए बदलाव को देखें.

‘पद्मावती’ विवाद पर संजय लीला भंसाली ने दी सफाई, पर वीडियो हुआ असरहीन

संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘‘पद्मावती’’ का विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. बल्कि यह विवाद दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है. उधर संजय लीला भंसाली ने अपनी पूरी टीम पर मीडिया से बात करने पर पाबंदी लगा रखी है. यहां तक कि खुद संजय लीला भंसाली भी मीडिया से बात नहीं करना चाहते. मगर तमाम विवादों को खत्म करने के लिए संजय लीला भंसाली ने एक वीडियो जारी किया है.

इस वीडियो में खुद संजय लीला भंसाली ने दावा किया है कि उनकी फिल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच कोई स्वप्न दृष्य नहीं है. पर अहम सवाल यह है कि यदि संजय लीला भंसाली सच बोल रहे हैं, तो फिर उन्हें मीडिया के सामने आकर खुलकर बात करने से परहेज क्यों है? क्या किसी ने उन्हें चुप रहने की सलाह दे रखी है? मजेदार बात यह है कि भंसाली की तरफ से हर दिन इस विवाद में घी डालने का ही काम किया जा रहा है. बुधवार को वीडियो जारी करने के साथ ही फिल्म ‘‘पद्मावती’’ का नया पोस्टर जारी किया गया है, जिसमें फिल्म के प्रदर्शन की तारीख 30 नवंबर लिखी हुई है, जबकि फिल्म एक दिसंबर को प्रदर्शित करने की बात की जा रही थी.

विवाद को भुनाने का प्रयास या..

सूत्रों के अनुसार बौलीवुड का एक तबका मान रहा है कि संजय लीला भंसाली अपनी फिल्म को विवादों में रखकर इसकी सफलता को सुनिश्चित करना चाहते हैं क्योंकि इस फिल्म का बजट डेढ़ सौ करोड़ से भी ज्यादा है. बौलीवुड के अंदरूनी सूत्र दावा कर रहे हैं कि ‘पद्मावती’ इतने बड़े बजट को बाक्स आफिस से नहीं इकट्ठा कर सकती.

पद्मावती के विरोध में आए पूर्व राजघराने

इधर बुधवार को ही ‘‘पद्मावती’’ के विरोध में राजस्थान के सभी पूर्व राज घराने भी एक साथ आ गए हैं. बुधवार को जयपुर के सिटी पैलेस में पूर्व राज परिवार की पद्मिनी देवी और भाजपा विधाक दिया कुमारी ने पत्रकारों से बात करते हुए साफ कर दिया कि वह इतिहास से छेड़छाड़ करने वाली फिल्म ‘‘पद्मावती’’ को राजस्थान में प्रदर्शित नहीं होने देंगी.

पद्मिनी देवी ने तो भंसाली पर आरोप लगाया है कि वह अपने वादे से मुकर गए हैं. उनके अनुसार भंसाली ने उनसे वादा किया था कि वह फिल्म बनने के बाद उन्हें दिखाएंगे, उसके बाद ही प्रदर्शन की योजना बनाएंगे. मगर संजय ने अब तक उन्हें फिल्म नहीं दिखायी तथा फिल्म का ट्रेलर व गाना आदि रिलीज कर दिया.

पूर्व राजघराने की सदस्य व भाजपा विधायक दिया कुमारी ने कहा है, ‘‘चित्तौड़ की महारानी पद्मावती और उनके साथ जौहर करने वाली सोलह हजार वीरांगनाओं के शौर्य व साहस से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ करना उनका अपमान है. हम बचपन से ही रानी पद्मावती के शौर्य व बलिदान की कहानियां सुनते हुए बड़े हुए हैं. जहां हजारों औरतों के साथ अस्मिता को बचाने के लिए जौहर किया था. ऐसे में कोई कैसे स्वप्न दृश्य के द्वारा प्रेम कथा को बयां कर सकता है.’’

राजस्थान में नहीं होगी प्रदर्शित

उधर राजस्थान के सबसे बड़े फिल्म वितरक राज बंसल ने फिल्म के वितरण अधिकार खरीदने से साफ मना कर दिया है. उनका कहना है कि जब तक संजय लीला भंसाली और राजपूत करणी सेना के बीच का मसला सुलझ नहीं जाता, तब तक वह फिल्म के वितरण के अधिकर नहीं लेंगे और राजस्थान के सिनेमाघरों में फिल्म को प्रदर्शित नहीं करेंगे.

कई राजनेता विरोध में

उमा भारती, गिरिराज किशोर व उज्जैन से भजपा सांसद चिंतामणी मालवीय भी ‘‘पद्मावती’’ के विरोध में आ गए हैं. उमा भारती ने बाकायदा फेसबुक पर एक खुला पत्र लिखा है.

गुजरात चुनाव के बाद क्रिसमस में आएगी ‘‘पद्मावती’’

उधर गुजरात भाजपा के कई नेताओं ने फिल्म को गुजरात चुनाव के बाद प्रदर्शित करने की मांग करते हुए चुनाव आयोग को पत्र लिखा है. अब संजय लीला भंसाली से जुड़े कुछ सूत्र कह रहे हैं कि हो सकता है कि यह फिल्म गुजरात में चुनाव संपन्न होने के बाद रिलीज की जाए.

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