Download App

पाकिस्तान की असली ताकत आखिर कहां है

जुलाई में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के हटने के बाद उनकी जगह वजीर-ए-आजम बने शाहिद खाकान अब्बासी से जो थोड़ी-बहुत उम्मीदें लगी थीं कि वह ताकतवर फौजी निजाम के ऊपर नागरिक सत्ता प्रतिष्ठान को कुछ अहमियत दिला पाएंगे, वे आशाएं आतंकवादियों द्वारा मासूम लोगों को मारे जाने और फौज द्वारा इस्लामी कट्टरपंथियों का इस्तेमाल कर हुकूमत को घेरने की घटना से खत्म हो गई हैं.

17 दिसंबर को बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी क्वेटा में एक चर्च में दो आत्मघाती दहशतगर्दो ने धमाका करके नौ लोगों को मार डाला, जबकि 35 लोग बुरी तरह जख्मी हुए. तीन साल पहले पेशावर में तालिबानी दहशतगर्दो ने आत्मघाती बमों के इस्तेमाल से आर्मी स्कूल के 132 मासूम बच्चों समेत 148 लोगों को मार डाला था, उसके बाद से ही पूरे पाकिस्तान में अवाम को निशाना बनाने के ये मुख्य हथियार बन गए हैं. लेकिन इन हमलों के मास्टरमाइंड को इंसाफ के कठघरे में घसीट लाने की बजाय पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियां इस्लामी चरमपंथियों को ही बढ़ावा दे रही हैं.

आतंकी सरगनाओं को कैद से आजाद करके वे ऐसे तत्वों का मनोबल बढ़ा रही हैं. पिछले महीने पाकिस्तानी फौज ने उस समय फिर यह दिखाया कि उसके देश में असली ताकत कहां पर है, जब इस्लामाबाद में इस्लामी कट्टरपंथी आंदोलनकारियों और सरकार के बीच इसने मध्यस्थ की भूमिका निभाई.

कट्टरपंथियों ने कानून मंत्री जाहिद हमीद पर नए सांसदों के शपथ-पत्र में तब्दीली करने संबंधी प्रस्ताव को ईशनिंदा बताते हुए उनके इस्तीफे की मांग की, जिसे कुछ वक्त तक अब्बासी हुकूमत ने नजरअंदाज किया, मगर फिर फौज प्रमुख जनरल बाजवा ने दखल देते हुए दोनों पक्षों में एक समझौता कराया, जिसके तहत न सिर्फ कानून मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा, बल्कि समझौते में बाजवा का शुक्रिया अदा किया गया कि ‘उन्होंने मुल्क को एक बड़ी मुसीबत से बचा लिया है.’

हकीकत में पाकिस्तान की बड़ी मुसीबत है उसकी फौज द्वारा कट्टरपंथियों का इस्तेमाल. जब तक यह स्थिति नहीं बदलती, आतंकवाद को काबू करने का उसका मनसूबा सपना ही रहेगा और उस पूरे क्षेत्र में अस्थिरता बनी रहेगी.

क्यों होते हैं बौस नाराज, जानिए आप भी इसके अहम कारण

कई बार आप वर्कप्लेस पर कुछ ऐसे काम करते हैं जो देखने में आप को भले ही गलत नहीं लगते, पर उन का आप की छवि पर बुरा असर पड़ता है जबकि जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि आप की छवि उस संस्थान, कंपनी या फर्म के बौस के सामने शानदार हो, जहां आप काम करते हैं. इसलिए इन आदतों को समय रहते सुधारना बहुत जरूरी है.

सामान की चोरी

अभिनव को उस की कंपनी ने कस्टमर सर्विस डैस्क इंचार्ज के पद से हटा दिया. दरअसल, अभिनव कस्टमर्स को गिफ्ट करने के लिए बनाए गए छोटेछोटे आइटम्स को डैस्क पर रखने और उन्हें दे कर कस्टमर्स को खुश करने के बजाय उन्हें अपने घर ले जाता था. उस की यह आदत ज्यादा दिन तक छिपी न रह सकी और इस कारण उसे जौब से हाथ धोना पड़ा.

अगर आप औफिस की चीजों को गलत या निजी काम के लिए इस्तेमाल करते हैं, तो इस से आप की छवि खराब होती है, आप की छवि एक चोर की सी बन जाती है.

औफिस की हर चीज का सदुपयोग करें. औफिस के सामान का इस्तेमाल बताए गए तरीके से ही करें.

society

काम को गंभीरता से न लेना

नीरज घड़ी देख कर औफिस में घुसता और घड़ी देख कर यानी औफिस टाइम पूरा होते ही सारे काम छोड़ कर घर भागता. कई बार बौस किसी अधूरे काम को देख कर उसे फोन लगाते तो वह टका सा जवाब दे देता कि मैं समय पर निकला हूं. इस पर बौस कुढ़ कर कहते कि काम तो पूरा कर के जाते. अंत में बौस ने उसे नौकरी से निकाल दिया.

बहुत सारे काम एक निश्चित समय में पूरे करने जरूरी होते हैं या फिर कई बार बौस औफिस के अंत में पूरे दिन के काम पर आप से डिस्कस करना चाहते हैं और आप नजर नहीं आते, तो उन का मूड खराब हो जाता है.

अगर आप समय के पाबंद बनना चाहते हैं तो आप को काम का भी पाबंद बनना होगा. औफिस का टाइम पूरा होते ही औफिस से निकलना चाहते हैं तो आप को चाहिए कि साथ के साथ जरूरी काम निबटाते रहें. इस के अलावा आप को बौस को भी बताना चाहिए कि आप औफिस से निकल रहे हैं.

बौस की बात न सुनना

विशालाक्षी को कंपनी बोर्ड की एक महत्त्वपूर्ण मीटिंग में बुलाया गया था, पर वह मीटिंग की चर्चा और बौस की बातों पर गौर करने के बजाय अपने मोबाइल पर ही लगी हुई थी. बौस की नजर विशालाक्षी पर पड़ी तो वे बुरी तरह नाराज हो गए

बौस की बातों को इग्नोर करेंगे तो आप को ही नुकसान होगा. इस से उन्हें लगेगा कि आप काम में रुचि नहीं लेते.

बौस कोई भी बात बोलें आप को हर काम बीच में छोड़ कर उन की बात सुननी चाहिए. अगर आप बौस की बातों पर ध्यान देते हैं, तो बौस आप से खुश रहेंगे और इस का फायदा आप को अवश्य मिलेगा. हो सकता है कि बौस आप की तरक्की कर दें और आप का वेतन भी बढ़ा दें.

जूनियर इंजीनियर मोनिका को एक काम के साथ दूसरा काम करने की आदत थी. एक बार उस ने फोन पर बात करतेकरते बौस को ऐसा ईमेल कर दिया, जिस में यारदोस्तों वाली भाषा का इस्तेमाल किया गया था. बौस ने न सिर्फ मोनिका को सब के सामने दुत्कारा बल्कि 7 दिन के लिए सस्पैंड भी कर दिया.

लापरवाही से काम करने पर हमेशा नुकसान ही उठाना पड़ता है. एकसाथ 2 काम करने पर आप किसी भी काम को सही तरह से नहीं कर पाते और दोनों काम बिगड़ जाते हैं.

इसलिए हमेशा एक बार में एक ही काम को अच्छी तरह, मन लगा कर पूरा करें. ऐसे में समय भले ही जरा ज्यादा लगेगा, पर गलती की आशंका नहीं रहेगी.

ये भी हैं नाराजगी के कारण

हर वक्त प्रौब्लम बताते हैं : यदि आप हमेशा बौस को बताते रहेंगे कि कौन सा कलीग समस्या पैदा कर रहा है, संसाधनों की कमी है, चुनौतियां ज्यादा हैं तो बौस आप से परेशान हो जाएंगे. बौस पर अपनी निर्भरता कम करें. दूसरों से सीखें कि किस तरह से समस्याओं को सुलझाया जा सकता है.

बहाने बनाते हैं : अगर किसी महत्त्वपूर्ण डैडलाइन या क्रिटिकल प्रोजैक्ट से पहले आप बौस को बताते हैं कि आप बीमार हैं तो बौस काफी निराश होते हैं. अगर आप के मैडिकल इश्यूज पूरी टीम से भी ज्यादा हैं तो यह आप के लिए खतरनाक है. बीमारी का बहाना न बनाएं. क्रिटिकल प्रोजैक्ट को किसी भी तरह से पूरा करें.

डिस्टर्ब करते हैं : क्या आप अपने बौस का जरूरत से ज्यादा समय लेते हैं? डिस्कशन और सलाह के लिए आप बारबार बौस को परेशान करते हैं तो इस आदत को बदलें. रूटीन अपडेट्स के लिए लिखित कम्युनिकेशन करें. यह न भूलें कि बौस बिजी इंसान हैं. ऐसे में उन्हें बारबार टोकना बुरा लगता है.

विश्वास करने योग्य नहीं : अगर आप का डाटा गलत है, होमवर्क पूरा नहीं है या डैडलाइन मिस करते हैं, तो बौस आप के आउटपुट पर शक करने लगेंगे. ऐसे में वे आप को महत्त्वपूर्ण टास्क नहीं सौपेंगे. बौस का विश्वास जीतने के लिए अपने काम का स्टैंडर्ड बढ़ाने की कोशिश करें.

बौस अगर आप को जरूरी कागज दें, तो उन्हें संभाल कर रखें. ऐसा न हो कि जरूरत पड़ने पर आप कागज खोजते रहें. अगर ऐसा हुआ तो बौस का आप पर से हमेशा के लिए भरोसा उठ जाएगा. बौस की दी गई जिम्मेदारी को सर्वोच्च प्राथमिकता दें. उन की बात को हलके में लेना भूल होगी. आप जितना ज्यादा व्यवस्थित रहेंगे, उतनी अच्छी छवि बनेगी.

सोशल नैटवर्किंग में लगे रहते हैं : अगर आप औफिस में लगातार फोन, फेसबुक या व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करते हैं तो बौस की नजर में आप की छवि खराब हो सकती है. बौस को ये सब आदतें समय और संसाधन खराब करने वाली लगती हैं. काम के दौरान टीम से जुड़े रहें. काम के बाद ही सोशल नैटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल करें.

इन बातों से खुश रहेंगे बौस

टाइम मैनेजमैंट का फन सीखें : औफिस में बौस की नजर में अपनी अच्छी छवि बनाए रखने के लिए आप को चाहिए कि हर काम समय पर पूरा करें. इस के लिए आप को टाइम को मैनेज करने के लिए ‘टू डू लिस्ट’ बनानी चाहिए. इस से आप न केवल आसानी से अपने कार्यों पर निगाह रख सकेंगे बल्कि तनाव से भी बचेंगे.

अंदाज पर्सनल नहीं प्रोफैशनल : वर्कप्लेस पर आप अपने प्रोफैशन के बारे में जितने ज्यादा अपडेट रहेंगे, काम में उतनी ही सफलता मिलेगी. अपडेट रहने का तात्पर्य है कि आप अपनी फील्ड में होने वाले बदलावों के प्रति कितने जागरूक हैं. आप को कलीग्स के साथ गौसिप करने से बचना चाहिए. अगर आप प्रोफैशनल व्यवहार करेंगे, तो आप की छवि काफी अच्छी बनेगी.

ईमानदार रहें : अगर आप नौकरी में तरक्की चाहते हैं तो आप को अपने बौस को अपने बारे में बताते समय ईमानदार रहना चाहिए. अगर बौस ने आप से किसी विषय पर सलाह मांगी है तो पूरी ईमानदारी के साथ उन्हें सही सलाह देनी चाहिए.

संवाद की शैली : बौस के साथ उसी शैली में बात करें जो बौस को प्रभावित कर सके. यह भी ध्यान रखें कि वह ईमेल ज्यादा पसंद करते हैं या आमनेसामने बैठ कर बात करना. इस से आप उन के साथ बेहतर तरीके से तालमेल बैठा पाएंगे.

सौम्य और मृदुभाषी बनें : वर्कप्लेस पर सौम्य और मृदुभाषी बनें. किसी की भी शिकायत न करें. किसी का मजाक बनाने से भी बचें. अगर आप आसपास के लोगों का सम्मान करेंगे तो आप की छवि में निखार आएगा. अपने विचार किसी पर थोपने से बचें. बौस को बारबार परेशान करने से बचें. बौस से मिलने से पहले समय लें. बौस का दिल जीतने के लिए कड़ी मेहनत के साथसाथ अच्छा व्यवहार भी जरूरी है.

पहनावे का ध्यान : औफिस गए तो नाइट क्लब वाले कपड़ों से दूर रहें. इस बात का ध्यान रखें कि बौस या कलीग्स आप की ड्रैस से असहज महसूस न करें. ड्रैस फौर्मल और साफसुथरी हो. खुद को व्यवस्थित रखें. औफिस काम करने की जगह है, वहां खुद को फैशन आइकन बनाने की कोशिश न करें. आप को पता होना चाहिए कि पहनावे के बारे में आप के औफिस की पौलिसी क्या है.

झूठी हां में हां मिलाते हैं : अगर आप बौस की हर बात में हां कहते हैं और बहुत कम काम पूरे करते हैं, तो इस से आप की छवि को नुकसान हो सकता है. आप को खुद की सीमाओं के बारे में भी पता होना चाहिए. ऐसा न हो कि जोशजोश में बौस से ढेर सारा काम ले लें और उसे पूरा  करने में ही पसीने निकल जाएं. कई बार बौस आप पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कर लेते हैं और आप उन की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते.

ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमैंट : एक बेहतर कैरियर है आपके इंतजार में

किसी भी क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य करने के लिए व्यक्ति का कार्यकुशल होने के साथसाथ उसे कार्यों का निबटारा करना व उन का प्रबंध भी आना चाहिए और इसी काम को आसान बनाता है, मानव संसाधन प्रबंधन. यह प्रबंधन हमें कार्यों को निबटाने व करने की विधि बताने के साथसाथ उन के प्रबंध की विधिवत जानकारी भी देता है. इस के बिना कोई भी कंपनी या संस्थान अपने कार्यों को आसानी से नहीं कर सकता.

क्या है मानव संसाधन प्रबंधन

इस प्रबंधन में संस्थान के कार्यों व प्रबंधों से संबंधित जानकारी दी जाती है. प्रशिक्षण प्राप्त कर व्यक्ति संस्थान की संपूर्ण व्यवस्था को देखता है. इस प्रबंधन के विशेषज्ञ व्यक्तियों को संबंधित संस्थान के मानव संसाधन विभाग की सारी जिम्मेदारियां संभालनी होती हैं. यह कर्मचारियों से संबंधित व्यवस्था की पूर्ण जिम्मेदारी लेता है. संस्थान में कर्मचारियों की नियुक्ति की जिम्मेदारी भी मानव संसाधन विभाग की होती है. यह विभाग संस्थान में होने वाले किसी भी प्रकार के फेरबदल के लिए जिम्मेदार होता है.

society

यह विभाग श्रम कानून से संबंधित जानकारी भी रखता है. संस्थान के मालिकों व कर्मचारियों में भी आपसी तालमेल बनाता है. इस के अलावा संगठन में काम करने वाले कर्मचारियों की कार्यक्षमता, कार्य करने की अवधि का निर्धारण करना, विभागीय तारतम्य बनाए रखना आदि की जिम्मेदारियां भी मानव संसाधन विभाग व इस के प्रबंधक की होती है.

पाठ्यक्रम जानें

मानव संसाधन प्रबंधन का पाठ्यक्रम स्नातक करने के बाद कई मान्यता प्राप्त संस्थानों में संचालित है. डिप्लोमा पाठ्यक्रम के अंतर्गत 3 तरह के पाठ्यक्रम होते हैं, पहला मानव संसाधन और संगठनात्मक विकास में डिप्लोमा, दूसरा, मानव संसाधन विकास में डिप्लोमा और तीसरा, मानव प्रबंधन में डिप्लोमा. यही पाठ्यक्रम स्नातकोत्तर स्तर पर भी संचालित होता है. इस के अलावा प्रशिक्षुओं का सेमिनार व अध्ययन के दौरान कार्यशालाओं में हिस्सा लेना बहुत जरूरी है.

योग्यता का पैमाना

ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमैंट के पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए व्यक्ति का स्नातक होना अनिवार्य है. किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक डिगरी के साथ किसी संस्थान में 3 वर्ष का सुपरवाइजरी कार्य करने का अनुभव भी आवश्यक है. किसी भी विषय में स्नातकोत्तर युवा मानव संसाधन प्रबंधन के पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं. इस के अलावा व्यक्ति को सामान्य ज्ञान की गहन जानकारी भी होनी चाहिए.

प्रवेश प्रक्रिया समझें

मानव संसाधन प्रबंधन के लिए अखिल भारतीय स्तर पर संयुक्त प्रवेश परीक्षा और प्रबंधन प्रवेश परीक्षा का आयोजन करता है. लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद चयनित छात्रों का मानसिक शक्ति प्रशिक्षण होता है. तब जा कर मैरिट के आधार पर अभ्यर्थी को प्रवेश मिलता है.

रोजगार के अवसर

रोजगार की दृष्टि से यह क्षेत्र काफी बड़ा है. प्रशिक्षण लेने के बाद इस में रोजगार के संपूर्ण अवसर हैं. राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी कंपनियों, व्यावसायिक संस्थानों, अस्पतालों, शिक्षण संस्थानों तथा गैर सरकारी संगठनों, सरकारी संगठनों आदि में ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमैंट विभाग होता है. इस विभाग में प्रशिक्षित कर्मियों की जरूरत होती है. मानव संसाधन प्रबंधन में जौब की अपार संभावनाएं दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं.

सैल्फी का जानलेवा जनून और जिंदगी की कम होती अहमियत

आज के दौर में सैल्फी युवाओं व किशोरों के लिए फैशन व जनून बन गई है. वे अपनी मनचाही तसवीरें खींचते हैं और सोशल नैटवर्किंग साइट्स के अलावा व्हाट्सऐप पर अपने दोस्तों से शेयर करते हैं. इस में उन की खुशियां, फैशन और भाव झलकते हैं. इस में कोई दो राय नहीं कि अपनी तसवीरें लेने का सब से बेहतरीन और आसान तरीका सैल्फी ही है.

यह सुनहरा पहलू है, लेकिन दूसरा चिंताजनक पहलू यह है कि भारत में सैल्फी से होने वाली मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है. स्थिति उन के लिए और भी खतरनाक है जो सैल्फी के लिए सारी हदों को लांघ जाते हैं. वे भूल जाते हैं कि जिंदगी की अहमियत एक सैल्फी से कहीं ज्यादा होती है.

खतरनाक सैल्फी लेने की होड़ में कब किस की सैल्फी आखिरी साबित हो जाए इस को कोई नहीं जानता. इस के खतरनाक रूप सामने आने के बाद युवाओं को खतरों से बचाने के लिए अब कानून का सहारा लेना पड़ रहा है. रेलवे ने पटरियों को ‘नो सैल्फी जोन’ घोषित कर दिया है. ऐसा करने वालों को जेल की हवा खाने के साथ जुर्माना भी भरना पड़ सकता है. यात्रियों को खतरों से आगाह भी किया जाएगा.

society

युवाओं के लिए बनी खतरा

जब वर्ष 2005 में सैल्फी शब्द सामने आया, तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वह इतना चर्चित हो जाएगा और खतरा भी बनेगा. शब्द की तेजी से हुई चर्चाओं का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2013 तक यह सब से ज्यादा चर्चित हो गया.

औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने सैल्फी को वर्ल्ड औफ द ईयर तक चुना. यह युवाओं के दिमाग पर छा गया. हर हाथ में मोबाइल और सैल्फी का फैशन पंख लगा कर चल रहा है. इस के लिए दीवानगी है. नेताओं और फिल्मों ने भी इस को बढ़ावा दिया. नौबत ऐसी आ गई कि रेलवे को ‘नो सैल्फी’ की गाइडलाइन जारी करनी पड़ गई. ऐसी नौबत आने के पीछे भी बड़े कारण रहे.

ट्रेन में सफर करते समय खतरनाक तरीके से व पटरी पर सैल्फी लेना युवाओं की मौत का सबब बन गया. पहले हुए कई गंभीर हादसों की कड़ी में ताजा कई हादसे भी जुड़ते गए. मुंबईहावड़ा ऐक्सप्रैस में बिलासपुर के निपनिया के पास बोगी के गेट से बाहर लटक कर रेलवे पुल और अपनी सैल्फी लेते एक युवक का संतुलन बिगड़ गया और वह नदी में जा गिरा.

इसी तरह दुर्ग में भी ऐसा ही हादसा हुआ. खारून पुल के पास सैल्फी लेता एक युवक पैर फिसलने से गिर गया. वह दरवाजे पर लटक कर सैल्फी ले रहा था.

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में तो चलती ट्रेन के आगे सैल्फी लेने की चाहत में एक किशोर ने अपनी जान गवां दी. गीता कालोनी का रहने वाला कार्तिक कक्कड़ 10वीं का छात्र था. वह पढ़ाईलिखाई, खेलकूद में अव्वल था. उसे सैल्फी लेने का बहुत शौक था. वह तरहतरह की सैल्फी दोस्तों तक पहुंचाता था. एक दिन सुबह कार्तिक अपने दोस्तों समीर, प्रत्यूष व रोहित के साथ लढ़ौरा रेलवे फाटक पर सैल्फी लेने पहुंच गया. उस की ख्वाहिश थी कि सैल्फी चलती ट्रेन के आगे ली जाए ताकि रियल लुक आ सके.

उसे हरिद्वारअजमेर ऐक्सप्रैस ट्रेन आती दिखी, तो वह ट्रैक पर आ गया और सैल्फी लेने लगा. ट्रेन की रफ्तार का उसे अनुमान नहीं था. ट्रेन चालक ने उसे हटाने के लिए कई बार हौर्न दिया, लेकिन वह नहीं हटा. आखिर कार्तिक ट्रेन की चपेट में आ गया. करीब सौ मीटर दूर जा कर चालक ने ट्रेन रोकी. अगले हिस्से में फंसे उस के शरीर के टुकड़ों को निकाला गया. मौके पर उस के शरीर के हिस्से, मोबाइल के टुकड़े, जूते बिखर चुके थे. इस खौफनाक मंजर ने हर किसी को दहला दिया. एक सैल्फी के लिए उसे जान से हाथ धोना पड़ा. इस से उस के परिवार को जो दर्द मिला उस की भरपाई शायद ही कभी हो सके.

इसी दिन मिर्जापुर जिले में भी 2 युवाओं को चलती ट्रेन से सैल्फी लेना भारी पड़ गया. दरअसल, विनोद व जितेंद्र नामक युवक दिल्लीगुवाहटी ब्रह्मपुत्र मेल के बराबर में पटरियों पर खड़े हो कर सैल्फी ले रहे थे. तभी दूसरी तरफ से सिंगरौलीवाराणसी इंटरसिटी ट्रेन आ गई और वे उस की चपेट में आ गए. दोनों की मौके पर ही मौत हो गई. इस हादसे का दर्शक बनने की कोशिश एक अधेड़ यात्री को भी भारी पड़ गई. ब्रह्मपुत्र मेल में सवार यह यात्री करीब सौ मीटर दूर ट्रेन पहुंचने पर दरवाजे पर खड़े हो कर नीचे झांकने लगा, तभी उस का पैर फिसल गया और ट्रेन की चपेट में आ कर उस ने जान गवां दी.

एक साल पहले सैल्फी के चक्कर में मथुरा में 3 युवकों याकूब, इकबाल व अफजल को अपनी जान गंवानी पड़ी. तीनों जानलेवा जोखिम उठा कर चलती ट्रेन के सामने सैल्फी लेने लगे. चालक के हौर्न देने पर भी वे नहीं हटे और ट्रेन की चपेट में आ गए. इन के अलावा और भी कई अफसोसजनक हादसे हुए.

ऐसे हादसों के मद्देनजर ही रेलवे ट्रैक व दरवाजों पर खड़े हो कर सैल्फी लेने पर रोक लगाने का फैसला किया गया. रेल अधिकारियों के साथ जीआरपी व आरपीएफ के अधिकारियों की कई दौर की बैठक हुईं. उत्तर रेलवे दिल्ली मंडल ने सैल्फी लेने को प्रतिबंधित कर दिया. रेलवे का मकसद हादसों को रोकने के साथ ही यात्रियों को जागरूक करना है.

society

असुरक्षित और जानलेवा जोखिम वाली सैल्फी के जनून में देश में मौतें बढ़ रही हैं. अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल दुनियाभर में सैल्फी से होने वाली मौतों में से 27 हादसे भारत में हुए. बढ़ते हादसों से मुंबई पुलिस ने शहर के 16 जगहों पर नो सैल्फी जोन बना दिए. हादसों के बाद यह निर्णय लिया गया. पुलिस अब खतरनाक सैल्फी लेने वालों पर नजर रखती है. इसी तरह गोआ में भी कुछ स्थानों पर सैल्फी लेने पर रोक लगानी पड़ी. कई बार युवा साहसिक सैल्फी के लिए जोखिम उठाते हैं. अमेरिकी मनोचिकित्सक एसोसिएशन ने तो जरूरत से ज्यादा सैल्फी की आदत को एक मानसिक बीमारी माना है.

ऐसे जनूनी किशोरों व युवाओं की कमी नहीं जो सैल्फी लेने का कोई मौका नहीं चूकते. एडवैंचर्स सैल्फी उन्हें वाहवाही लूटने का माध्यम भी लगती है. ऐसी सैल्फी सोशल साइट्स के जरिए वे दोस्तों को पहुंचा कर ज्यादा से ज्यादा प्रतिक्रिया चाहते हैं. अलग अंदाज की सैल्फी की होड़ है. नेता भी सैल्फी को युवाओं के साथ जुड़ने का माध्यम बनाने लगे हैं. फिल्मों ने भी इसे खूब बढ़ावा दिया. बजरंगी भाईजान फिल्म का गाना ‘चल बेटा सैल्फी लेले रे…’ सिर चढ़ कर बोला. अभिनेता, अभिनेत्रियों और नेताओं की सैल्फी आती रहती हैं जो चर्चा का केंद्र भी बनती हैं.

कानपुर शहर के गंगाबैराज पर सैल्फी लेने के चक्कर में 6 दोस्तों की, पैर फिसलने से एकसाथ जान चली गई. एक अन्य युवक उन्हें बचाने के चक्कर में डूब गया.

सैल्फी के चक्कर में होने वाले हादसों पर डा. फरीदा खान कहती हैं, ‘‘सैल्फी की वजह से होने वाली मौतें झकझोर कर देने वाली हैं. हादसों से युवाओं को सबक लेना चाहिए. देखादेखी वे क्रेजी न बनें. ऐसी जिज्ञासा से दूर ही रहें जिस से जान का खतरा हो. अभिभावकों को भी अपने बच्चों को जागरूक करना चाहिए. जब जिंदगी ही नहीं होगी तो सैल्फी कहां से आएगी.’’

बकौल उत्तर रेलवे के दिल्ली मंडल के पीआरओ अजय माइकल, ‘‘सैल्फी लेने वालों पर रोक लगाने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे. यात्रियों को खतरों के बारे में आगाह किया जाएगा. जांच अभियान चलाने वाले पुलिसकर्मियों को निर्देश दिए जाएंगे कि वे लोगों को समझाएं. न मानने की दशा में उन पर कार्यवाही करें. सैल्फी के संबंध में यात्रियों की शिकायत को भी गंभीरता से लिया जाएगा.’’

सैल्फी लेना चलन है, इस से बचा नहीं जा सकता, लेकिन उन खतरों से जरूर बचा जा सकता है जिन के जनक युवा खुद बन जाते हैं. अपनी सैल्फी को ज्यादा पौपुलर करने के चक्कर में जोखिम उठा कर जान से ही हाथ धोने पड़ जाएं, तो ऐसी सैल्फी को कौन पसंद करेगा. साधारण सी बात है कि जान से ज्यादा कीमत तो किसी सैल्फी की नहीं हो सकती. जरूरत सावधान रहने की है. ऐसे जनून में कतई न पड़ें जो जान पर भी भारी पड़ जाए

रिवौल्वर के साथ सैल्फी, गई जान

पंजाब के पठानकोट के 15 वर्षीय किशोर रमनदीप को अपनी सैल्फी लेने का शौक था. उस ने बेहद रोमांचक सैल्फी लेने की सोची. इस का विकल्प उसे अपने घर में ही नजर आ गया. एक दिन उस ने अपने पिता की घर में रखी 32 बोर की लाइसैंसी रिवौल्वर उठाई और कनपटी पर लगा दी. वह रिवौल्वर के साथ सैल्फी लेने लगा. इसी बीच लोडेड रिवौल्वर का ट्रिगर दब गया और गोली चल गई. गोली लगते ही वह नीचे गिर पड़ा. मातापिता घर पर नहीं थे. गोली चलने की आवाज सुन कर घर पहुंचे पड़ोसियों ने उसे गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचाया. गोली उस के सिर में घुसी थी. बाद में उसे लुधियाना के अस्पताल में रैफर किया गया, लेकिन उस की मौत हो गई. अलगअलग अंदाज की सैल्फी का जनून मौत का कारण भी बन जाता है.

फायदे हैलमैट पहनने के : मुसीबत में फंसने पर इज्जत भी बचाता है हैलमैट

अगर कोई आप से पूछे कि आप हैलमैट क्यों पहनते हैं? तो आप का सीधा सा जवाब होगा कि हादसे के समय सिर को बचाने के लिए हैलमैट पहनते हैं. मगर हैलमैट पहनने की केवल यही एक वजह नहीं है. इस की जानकारी मुझे अपने दोस्त गिरधारीजी से मिली.

एक दिन मैं यों ही गिरधारीजी के घर गया. वे घर पर नहीं थे. भाभीजी ने आदर से मुझे बैठाया. अभी हम चायपानी कर ही रहे थे, इतने में गिरधारीजी घर आ गए. स्कूटर बाहर खड़ा कर हैलमैट लगाए हुए ही वे अंदर चले आए. उन्होंने मुझे हैलमैट को उतार कर नमस्कार किया, यह सब मुझे बड़ा अटपटा लगा.

पूछने पर वे कहने लगे, ‘‘हैलमैट के बहुत फायदे हैं. जैसे अगर आप दफ्तर से देर से घर आए हैं. आप की बीवी खरीदारी पर जाने के लिए कब से आप का इंतजार करतेकरते थक गई है, तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर होगा ही. जैसे ही आप घर में दाखिल होंगे, बीवी की बेलनरूपी मिसाइल से केवल हैलमैट ही आप को बचा सकता है और कोई नहीं.

‘‘अगर दफ्तर जाने में देर हो जाए. घबराने की जरूरत नहीं है. आप आराम से हैलमैट लगाए हुए ही दफ्तर के अंदर जाएं. बौस पहले आप को देखेगा, फिर घड़ी को देख कर चीखेगा, मगर आप को हैलमैट के चलते कुछ सुनाई नहीं देगा.

‘‘फिर भी बौस का गुस्सा न उतरा हो, तो वह केबिन में बुलाएगा. फिर आप कहिएगा, ‘सर, हैलमैट पहने था, इसीलिए आप की बातें सुन न सका.’

‘‘अगर आप की बीवी दफ्तर जाते समय रोज कभी सब्जी, कभी राशन लाने को कहे, तो आप भी परेशान हो जाते होंगे. दिनभर दफ्तर के पकाऊ काम से थके होने के चलते खरीदारी करना बड़ा सिरदर्द होता है. इस दर्द का इलाज यह हैलमैट ही है.

‘‘बीवी जब टमाटर मंगाए, तो घर में आलू ले जाइए. मिर्च की जगह नीबू खरीदें. बीवी गुस्सा होगी. कहना कि हैलमैट पहने हुए था. सुनाई नहीं दिया होगा. दूसरे दिन से बीवी आप से सब्जी मंगाना बंद कर देगी.

‘‘अगर आप के दोस्त आप से उधार मांगने के लिए दफ्तर के बाहर खड़े हो कर आप को आवाज दें. आप देख कर भी उन्हें अनदेखा कर दें. जब कोई उलाहना दे, तो कहें कि दोस्त, हैलमैट पहने था. सुनाई नहीं दिया होगा. इस तरह हैलमैट आप के रुपयों को डूबने से बचा लेता है.

‘‘अगर आप बीवी के साथ सड़क पर घूम रहे हैं, तो अगलबगल ताकझांक करने पर बीवी का कंट्रोल होता है. इस का भी अचूक उपाय है. हैलमैट पहन कर आप मनचाही जगह ताकझांक करो, कोई आप को पकड़ नहीं पाएगा.’’

मैं गिरधारीजी की बातों से हैरान था. शायद इसीलिए कहा गया है, ‘हैलमैट में गुण बहुत हैं, सदा रखिए संग…’

विश्वविद्यालयों में छात्रों को भी मिले सोचने और समझने आजादी

खुद विश्वविद्यालयों की राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी  दूसरों की राजनीति को दबाने की भरसक कोशिश कर रही है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को पाकसाफ, शुद्ध, संस्कारी मान कर व उस के गुर्गों की गुंडई को नजरअंदाज कर के कितने ही विश्वविद्यालय प्रबंधक व चांसलर आज वामपंथियों, सधर्मियों, कांग्रेसियों, समाजवादियों की गतिविधियों को राष्ट्रद्रोह करार दे रहे हैं. ज्यादातर चांसलर व वाइस चांसलर अब घोषित तौर पर कट्टर हिंदू संस्कृति के समर्थक हैं.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में फरवरी 2016 में अफजल गुरु की फांसी पर विरोध प्रकट करने को हुई एक सभा में जेएनयू छात्र संघ के तब के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के भाषण देने पर विश्वविद्यालय की अनुशासन कमेटी ने उसे 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था और 10,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया था. 14 अन्य छात्रों को भी दंड दिया गया था.

अब उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय को आदेश दिया है कि वह मामले को फिर से सुने और इस निष्कासन को वापस ले. विश्वविद्यालय के अधिकारी अब जो भी फैसला लेंगे यह पक्का है कि उस में राजनीति तो चलेगी ही.

विश्वविद्यालय राजनीति के गढ़ हैं, यह पक्का है और आज से नहीं, आजादी की लड़ाई से ऐसा हो रहा है. अपनी ही नहीं, समाज और देश की भी सोच रहे पढ़ेलिखे गरम खून के युवा जब एकत्र होते हैं तो वे कुछ करना ही चाहते हैं. अपना कैरियर बनातेबनाते वे देश का उद्धार भी करना चाहते हैं और इस में कोई खराबी नहीं है. खराबी तब होती है जब एक जुझारू वर्ग दूसरे वर्गों को मारपीट कर दुरुस्त करना चाहे, अपनी बात को तर्क से नहीं, डंडे के जोर पर मनवाना चाहे.

संस्कृति के पोषक ही नहीं, वामपंथी, जातिपंथी और भाषापंथी भी इस के शिकार रहे हैं. कितने ही विश्वविद्यालयों में गुटबाजी, राजनीति के साथसाथ मारपीट और धौंस भी चलती है. यह कहींकहीं खराब हालत पैदा भी करती है पर फिर भी युवाओं को देश की बागडोर संभालने की ट्रेनिंग देती है.

विश्वविद्यालयों में केवल किताबी ज्ञान नहीं बांटा जा सकता. उन का भव्य भवनों में चलने, खुले मैदानों में होने की वजह ही यह है कि जिम्मेदारी संभालने से पहले छात्रों को हर सोच, हर वर्ग, हर उदारपंथी, हर कट्टरपंथी से मिलने और जूझने का मौका मिले. इन विश्वविद्यालयों को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, गवर्नरों, वाइस चांसलरों के माध्यम से आर्मी कैंप बनाने की कोशिश न की जाए, जहां सिर्फ हुक्म चलता है.

विश्वविद्यालय जिंदादिली की जगह हैं और उन्हें खुला छोड़ दें. कन्हैया कुमार को राहत दे कर उच्च न्यायालय ने सही किया है और आशा है कि विश्वविद्यालय के अफसर रंगीन चश्मा उतार कर ही कोई फैसला लेंगे.

प्रेम पर वार : भारतीय जनता पार्टी की लव जिहाद मुहिम के मायने

भारतीय जनता पार्टी की लव जिहाद मुहिम देश की एकता के लिए खतरा होने के साथ युवाओं के अपने फैसले खुद करने पर धार्मिक अंकुश भी है. बाहर वालों को यह हक कभी नहीं मिल सकता  कि वे किसी लड़के, किसी लड़की को एकदूसरे के प्रेम में डूबने व विवाह के बंधन में बंधने से रोकें सिर्फ इसलिए कि वे अलगअलग धर्मों के हैं.

केरल में भारतीय जनता पार्टी इसे चुनावी मुद्दा बना कर युवाओं के प्राकृतिक हक को छीन रही है. गली में, बस में, ट्रेन में, क्लास में या दफ्तर में जब कोई किसी को चाहने लगे तो वे एकदूसरे की कुंडली थोड़े ही मांगेंगे. हां, पंडे तो चाहेंगे ही कि कोई विवाह उन की मरजी और उन को दानदक्षिणा दिए बिना न हो. पर प्रेम तो शक्ल, व्यवहार और लगाव के कारण होता है, कुंडलियों के आधार पर नहीं.

आजकल भारतीय जनता पार्टी लव जिहाद का नारा मुसलिमों के लिए लगा रही है तो क्या पता, कल हिंदू सिख, हिंदू, बौद्ध और फिर दलित, पिछड़े, पिछड़े ब्राह्मण प्रेमों पर हाथ मारने लगें. वैलेंटाइन डे पर घूम रहे जोड़ों से धर्मरक्षक जब मारपीट करते हैं तो उन का अर्थ यही होता है कि बिना पंडों की मंजूरी के लड़कालड़की हाथ में हाथ डाले क्यों घूम रहे हैं.

गौरक्षकों से विवाहरक्षक बने ये धर्मरक्षक हर तरह के हक अपने हाथ में लेने लगे हैं. लखनऊ में एक देवी, जो खुद को भाजपा की छोटीमोटी नेता बताती हैं, ने भरे बाजार में एक लड़की पर थप्पड़ों की बौछार कर दी कि वह एक अनजान मुसलिम लड़के से क्यों बतिया रही थी और फिर टैलीविजन पर खुद का जम कर गुणगान कर रही थी कि उस ने महान काम किया है. मोहन भागवत ने एक तरह से इन रक्षकों को अभयदान दिया है. गाएं बचें या नहीं, युवाओं के हक जरूर खतरे में हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने केरल उच्च न्यायालय को सही फटकार लगाई है. वहां उच्च न्यायालय ने 24 साला युवती के विवाह की जांच के लिए एक वकील को नियुक्त कर डाला. लव जिहाद को कानूनी जामा पहनाने की कोशिश में कट्टरपंथियों का न्यायालयों का साथ मिलना बहुत ही दुखद है.

प्रेम विवाह देश की जरूरत हैं ताकि जाति और धर्म की खाइयां दूर हों और रीतिरिवाजों, दहेज, कन्याभू्रण हत्या जैसे मामले खत्म हों. 2017 में 1935 की हिटलरी वापस लाने के लिए की जा रही कोशिश युवाओं के मनमरजी के साथी चुनने के हक को छीनती है. यह हरगिज बरदाश्त नहीं होगा. सारी खुदाई एक तरफ, मनभायी सब तरफ का सिद्धांत अपनाना होगा.

जिंदगी न मिलेगी दोबारा : सपनों को पूरा करने की राह हम आप को दिखाते हैं

50 वर्षीय दीक्षा मिश्रा जब अपना काला कोट पहन कर नागपुर के सैशन कोर्ट में वकालत करती हैं तो लोग उन्हें देखते ही रह जाते हैं. उन्हें अपनी वकालत की डिग्री पूरी किए महज 3 वर्ष हुए हैं. उन्होंने बड़े ही कठिन हालात में अपने पढ़नेलिखने के सपने को पूरा किया.

पुराने दिनों की याद करते हुए दीक्षा कहती हैं, ‘‘मैं शुरू से ही पढ़नेलिखने की शौकीन रही हूं. बचपन से ही वकील बनना चाहती थी, परंतु मात्र 18 वर्ष की आयु में मृत्युशैया पर पड़े पिता की इच्छा का मान रखने के लिए परिवार के सदस्यों ने मेरा विवाह कर दिया और मेरा पढ़लिख कर वकील बनने का सपना 10 लोगों के संयुक्त परिवार की जिम्मेदारियों और बच्चों की परवरिश के तले दब कर रह गया. 5 वर्ष के अंदर ही 3 बेटियों की मां बन गई. 40 वर्ष की उम्र तक तो मैं नानी भी बन गई.

‘‘पति का अपना बिजनैस था. वे उस में व्यस्त रहते. बेटियों की शादी के बाद जीवन में कुछ ठहराव सा आ गया तो मन में अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा करने की इच्छा बलवती होने लगी.

‘‘एक दिन जब अपने मन की बात पति अक्षत को बताई तो वे भड़क गए कि क्या करोगी इस उम्र में पढ़ कर. आराम से घर में रहो जैसे और भाभियां रहती हैं. मांबाबूजी की सेवा करो. पर मेरे न मानने पर वे बोले कि जैसा तुम्हें ठीक लगे करो.

‘‘मगर परिवार के अन्य सदस्यों से अनुमति लेनी अभी बाकी थी. संयुक्त परिवार वाले हमारे घर में सभी की दकियानूसी सोच थी कि लड़की की शिक्षा सिर्फ उस के विवाह के लिए ही होती है. विवाहोपरांत एक महिला का जीवन सिर्फ घरपरिवार के लिए होता है. पर मैं ने हार नहीं मानी और एक दिन उचित अवसर देख कर अपने सासससुर से बोली कि पिताजी, मैं आगे पढ़ना चाहती हूं. यह सुनते ही सास तल्ख स्वर में बोलीं कि दादीनानी की उम्र में पढ़ाई की क्या जरूरत है? क्या करोगी पढ़ कर? ससुर भी असंतुष्ट से स्वर में बोले कि बहू, तुम्हारी बात मेरी तो समझ में नहीं आ रही. आखिर तुम चाहती क्या हो? किस बात की कमी है तुम्हें इस घर में जो आगे पढ़ाई करना चाहती हो? खैर, तुम्हारी मरजी.

‘‘परिवार का कोई भी सदस्य मेरे आगे पढ़ने के पक्ष में नहीं था पर मेरे मन में उथलपुथल जारी थी. अत: एक दिन नागपुर के लौ कालेज जा कर नियमित छात्रा के रूप में दाखिला ले लिया. घर में जब सब को पता चला तो थोड़ाबहुत विरोध करने के बाद मेरी प्रबल इच्छा को देखते हुए धीरेधीरे सब शांत हो गए.’’

लौ करने के बाद ऐडवोकेट दीक्षा पिछले 3 सालों से नागपुर कोर्ट में प्रैक्टिस कर रही हैं. दीक्षा की आपबीती सुन कर लगा कि यदि आप के मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा है तो संसार की कोई भी ताकत आप की प्रगति में बाधक नहीं बन सकती.

अपनी सफलता की कहानी बताते हुए दीक्षा कहती हैं, ‘‘मेरे पास रुपया, पैसा, पति और ससुराल का प्यार सब कुछ था. नहीं था तो बस मेरा खुद का वजूद. पढ़ाई अधूरी छूट जाने का बड़ा मलाल था. अब बड़े सुकून का एहसास होता है. आखिर जिंदगी एक बार ही तो मिली है और सब इसी में करना है.’’

आत्मबल बढ़ाएं

दीक्षा उन महिलाओं के लिए एक उदाहरण हैं जो जीवन में कुछ न कर पाने के लिए अपने पति, बच्चों और ससुराल के बाकी सदस्यों को दोष देती हैं. शादी के बाद ज्यादातर महिलाएं अपना समय परिवार की देखरेख में ही यह सोच कर गंवा देती हैं कि अब शादी हो गई है. क्या करना है अपना दिमाग खपा कर. मगर ऐसे पूर्वाग्रहों से बाहर आ कर अपने आत्मबल को जाग्रत कर खुद के लिए कुछ करने की जरूरत होती है.

25 वर्ष पूर्व शादी के बाद से ही रुचि हमेशा एक ही बात का रोना रोतीं कि वे भी कुछ करना चाहती हैं. पर अपने बारे में वे आज तक कुछ नहीं सोच पाईं. वहीं सीमा के घर के हालात ऐसे नहीं थे कि वे घर से बाहर जा कर काम कर सकें. बच्चे बड़े होने पर जैसे ही उन्हें समय मिलना शुरू हुआ उन्होंने अपने घर पर ही पापड़, बडि़यां, अचार आदि बनाना शुरू कर दिया. फिर छोटेछोटे पैकेट बना कर एक दुकान पर रखने शुरू कर दिए. जब माल बिकने लगा तो उन्होंने आवश्यकतानुसार उसे विस्तृत रूप दे दिया.

आज उन का अच्छाखासा बिजनैस है. शुरू में परिवार के लोगों को उन की सफलता पर संदेह था, परंतु जैसेजैसे उन्हें सफलता मिलती गई परिवार वाले साथ देते गए.

आमतौर पर घरों में रहने वाली महिलाएं घरेलू कार्यों को करने के बाद खाली समय को पड़ोसिनों के साथ व्यर्थ की बातों में व्यतीत करती हैं. यदि इस समय में वे कुछ उत्पादक कार्य करें तो हाथ में चार पैसे भी आएंगे और सोच भी उन्नत होगी.

मोना अग्रवाल इस का उदाहरण हैं. 2 बच्चों की मां मोना का ज्यादातर समय सहेलियों से गप्पें मारने में ही व्यतीत होता था. उन की एक सहेली ने जब अपना बुटीक खोला तो मोना को भी जौब औफर की. सहेली का मन रखने के लिए उन्होंने जौब कर ली.

वे कहती हैं, ‘‘रोज सहेलियों और पड़ोसिनों से व्यर्थ की पंचायत करने के बाद मैं नकारात्मक विचार मन में लिए घर आती थी, परंतु अब हाथ में कुछ रुपए और मानसिक सुकून के साथ घर आती हूं.’’

विश्वास के साथ कदम बढ़ाएं

अब अन्नू को ही ले लीजिए. एक प्रतिष्ठित बुटीक की मालकिन हैं. हमेशा भजनमंडली और पूजापाठ में अपनी समृद्धि तलाशती अन्नू के घर की खस्ता आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन की बहन ने उन्हें सिलाई सीखने की प्रेरणा दी. बहन की सलाह मान कर वे सिलाईकढ़ाई सीखने लगीं. आज अपने बुटीक के कारण वे पति के कंधे से कंधा मला कर परिवार में आर्थिक सहयोग दे रही हैं.

सदैव दूसरों को दोष दे कर अपनी नाकामी को छिपाने के बजाय जरूरत होती है अपने समय का सदुपयोग कर के कुछ नया सीखने, पढ़नेलिखने की. अपने समय को व्यर्थ की बातों, भजनकीर्तनों और प्रवचन में गंवाने के अपने समय को किसी उत्पादक कार्य में लगाएं ताकि आप को भी कुछ कर पाने का मानसिक सुकून का एहसास हो.

कई बार शुरू में परिवार का सहयोग कुछ महिलाओं को प्राप्त नहीं होता, परंतु जब आप किसी कार्य के लिए पूरे विश्वास के साथ कदम आगे बढ़ाती हैं, तो आप की लगन और मेहनत को देख कर परिवार के सदस्य आप के सहयोग के लिए स्वत: आगे आ जाते हैं. बस जरूरी होती है साहसपूर्वक कदम उठाने की और खुद पर भरोसा करने की.

दरअसल, ज्यादातर महिलाएं कुछ न कुछ अवश्य करना चाहती हैं, परंतु संकोच, आत्मविश्वास की कमी, दुनिया की परवाह, सफलता मिलेगी या नहीं सोच कर कदम आगे बढ़ाने से डरती हैं, जबकि जरूरत होती है संपूर्ण आत्मविश्वास के साथ कदम बढ़ाने की.

न करें संकोच : आप जो काम करना चाहती हैं उस के लिए संकोच कैसा? उम्र चाहे कोई भी हो आप की प्रगति में बाधक नहीं होनी चाहिए. अपने बेटे के साथ 12वीं कक्षा की परीक्षा देने वाली नीना कहती हैं, ‘‘इतने समय के बाद अधूरी शिक्षा पूरी करने का विचार आया तो संकोच तो हुआ पर जब कदम आगे बढ़ा दिए तो डरना कैसा? आज मैं पोस्ट ग्रैजुएट हूं और अपने निर्णय पर गर्व करती हूं.’’

असफलता से डरें नहीं : शुरू में किसी भी कार्य की सफलता का प्रतिशत बहुत कम होता है, परंतु जैसेजैसे हमारा अनुभव बढ़ता जाता है सफलता हमारे करीब आती जाती है. प्रतिभा ने जब लेखन कार्य शुरू किया था तो 10 में से 9 रचनाएं वापस आ जाती थीं परंतु आज वही प्रतिशत 10 में से 2 हो गया है. सफलता मिलेगी या नहीं यह सोच कर डरें नहीं, बल्कि पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें. असफलता से डरने की अपेक्षा आत्ममूल्यांकन कर के अपनी कमियों को तलाशें और उन्हें पूरा कर के आगे बढ़ती जाएं.

सकारात्मक रहें : अपने अंदर नकारात्मक विचारों को कतई पनपनें न दें. आप जो भी करना चाहती हैं या करना चाहती थीं, जितना भी समय मिलता है करें, परंतु यह न सोचें कि मैं नहीं कर पाऊंगी. अनुजा को शुरू से ही बच्चों को पढ़ाना बहुत पसंद था, परंतु शादी और उस के बाद बच्चों के कारण वे अपने बारे में सोच ही नहीं पाईं. जैसे ही उन की छोटी बेटी ने स्कूल में दाखिल लिया उन्होंने भी उसी स्कूल में जौब जौइन कर ली.

न करें लोगों की परवाह : मैं अमुक काम करूंगी तो लोग क्या कहेंगे. इस उम्र में पढ़ूंगी तो जमाना क्या कहेगा? यह सोचने के बजाय आप का जो मन करता है वह करें. लोगों का तो काम ही कहना होता है. आप चाहे अच्छा करें या बुरा उन्हें तो बातें बनानी ही हैं. इसलिए वह करें जिस से आप के मन को शांति मिले, आप का आत्मविश्वास बढ़े और जिस के माध्यम से आप कुछ आर्थिक अर्जन कर पाएं.

न करें अपेक्षा : विवाहोपरांत एक लड़की का संपूर्ण जीवन परिवर्तित हो जाता है. कई बार महिलाएं जब अपनी आगे की पढ़ाई शुरू करना चाहती हैं या कोई उत्पादक कार्य करना चाहती हैं, तो परिवार वाले मना तो नहीं करते, परंतु उतना उत्साह और सार्थक सहयोग भी नहीं करते, क्योंकि कई बार वे समझ ही नहीं पाते कि आप उन से किस प्रकार के सहयोग की अपेक्षा कर रही हैं. इसलिए परिवार के प्रत्येक सदस्य से सहयोग की अपेक्षा कर आप पूरे साहस के साथ कदम उठाएं.

आत्मविश्वास बनाए रखें : स्वयं को कभी कमजोर न समझें. खुद पर पूरा भरोसा रखें. मैं अमुक कार्य कर पाऊंगी या नहीं, जैसी बातों से ऊपर उठ कर जो भी करें पूर्ण विश्वास के साथ करें. यदि आप को ही स्वयं पर भरोसा नहीं होगा तो दूसरे कैसे भरोसा करेंगे. ध्यान रखें जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है. जो बीत गया सो बीत गया. जो आज तक नहीं किया उस की शुरुआत अब करने में क्या बुराई है. आप जो भी करना चाहती हैं उसे करने में देर न करें. जिंदगी बहुत छोटी है. अपनी सारी इच्छाएं और महत्त्वाकांक्षाएं पूरी करें.

वैवाहिक जीवन सुखी बनाने में ये 11 तरीके बड़े काम के हैं

क्या आप अपने रिलेशन को ले कर अकसर चिंतित रहते हैं? अगर हां तो इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है. आप की चिंता का कारण आप का स्वयं का ऐटिट्यूड अथवा आप दोनों की कैमिस्ट्री हो सकती है. ऐसे में कुछ बातों का ध्यान रख कर आप वैवाहिक जीवन को सुचारु रूप से चला सकते हैं:

कम्यूनिकेशन: अपनी भावनाएं, विचार, समस्याएं एकदूसरे को बताएं. वर्तमान और भविष्य के बारे में बात करें. दूसरे को बताएं कि आप दोनों के बारे में क्या प्लान करते हैं. बोलने के साथ सुनना भी जरूरी है. मौन भी अपनेआप में संवाद है. अपने हावभाव, स्पर्श में भी साथी के प्रति प्यार व आदर प्रदर्शित करें.

सारी उम्मीदें एक ही से न रखें: अगर आप अपने साथी से गैरवाजिब उम्मीदें रखेंगे तो आप का निराश होना लाजिम है. पार्टनर से उतनी ही उम्मीद रखें जितनी वह पूरी कर सके. बाकी उम्मीदें दूसरे पहलुओं में रखें. पार्टनर को स्पेस दें. उस की अच्छाइयोंबुराइयों को स्वीकारें.

बहस से न बचें : स्वस्थ रिश्ते के लिए बहस अच्छी भी रहती है. बातों को टालते रहने से तिल का ताड़ बन जाता है. मन में रखी उलझनों को बढ़ाएं नहीं, बोल डालें. आप का साथी जब आप से झगड़ रहा हो तो चुप्पी न साधें और न ही बुरी तरह से प्रतिक्रिया दें. ध्यान से सुनें और इत्मिनान से समझें. हाथापाई या गालीगलौच तो कतई न करें.

खराब व्यवहार को दें चुनौती : कभी भी साथी के खराब व्यवहार से आहत हो कर अपना स्वाभिमान न खोएं. कई बार हम साथी के व्यवहार से इतने हैरान हो जाते हैं कि अपनी पीड़ा बयां करने के बजाय स्वयं को अपराधी महसूस करने लगते हैं या मान लेते हैं. साथी आप को शारीरिक/मानसिक रूप से चोट पहुंचाता है तो भी आप उसे मना नहीं करते. यह गलत है. खराब व्यवहार न स्वीकारें. इस से रिश्ते में ऐसी दरार पड़ जाती है जो कभी नहीं पटती.

एकदूसरे को समय दें : एकदूसरे के साथ समय बिताने और क्वालिटी टाइम शेयर करने से प्यार बढ़ता है. साथी के साथ ट्रिप प्लान करें. घर पर भी फुरसत के क्षण बिताएं. इस समय को सिर्फ अच्छी बातें याद करने के लिए रखें, इस में मनमुटाव की बातें न करें. फिर देखें इस वक्त को जब भी आप याद करेंगे आप को अच्छा महसूस होगा.

विश्वास करें और इज्जत दें : क्या आप साथी की बहुत टांग खींचते हैं? क्या आप उस पर हमेशा शक करते हैं? यदि ऐसा हो तो रिश्ता कभी ठीक से नहीं चलेगा. एकदूसरे पर विश्वास करना सब से अधिक जरूरी है. एकदूसरे की इज्जत करना भी जरूरी है. विश्वास और इज्जत किसी भी रिश्ते की नींव है. अत: इन्हें मजबूत रखें.

टेकन फौर ग्रांटेड न लें : शादी हो जाने के बाद भी टेकन फौर ग्रांटेड न लें. साथी की पसंद ना पसंद पर खरे उतरते रहने का प्रयास करते रहें. उस के अनुसार खुद को ढालने की कोशिश करते रहें. जैसे पौधा अच्छी तरह सींचे जाने के बाद ही मजबूत पेड़ बनता है, सही देखभाल से ही वह पनपता है, वैसे ही वैवाहिक जीवन को 2 लोग मिल कर ही सफल बना सकते हैं.

यह टीम वर्क है: पतिपत्नी तभी खुशनुमा जीवन जी सकते हैं जब दोनों टीम की तरह काम करें. दोनों समझें कि एकदूसरे से जीतने के बजाय मिल कर जीतना जरूरी है. सुखी विवाह दोनों पक्षों की मेहनत का परिणाम होता है.

एकदूसरे का खयाल रखें: जीवन की प्रत्येक चीज से ऊपर यदि आप एकदूसरे को रखेंगे तो सुरक्षा की भावना पनपेगी. यह भावना रिश्तों को मजबूत बनाती है. हर पतिपत्नी को एकदूसरे से बेपनाह प्यार और इज्जत चाहिए होती है.

ध्यान से चुनिए दोस्त : आप के दोस्त आप के जीवन को बना या बिगाड़ सकते हैं. दोस्तों का प्रभाव आप के व्यक्तित्व व व्यवहार पर बहुत अधिक होता है. इसलिए ऐसे दोस्त चुनें जो अच्छे हों.

वाणी पर संयम : वैवाहिक जीवन में कई बार आप की वाणी आप के विवाह को खत्म कर देती है. अपने शब्दों का प्रयोग कटाक्ष, गालीगलौच या फबतियां कसने में न करें वरन इन से तारीफ करें, मीठा बोलें. आप का शादीशुदा जीवन अच्छा बीतेगा.

स्मार्ट लुक के लिए सिर्फ डिजाइनर ड्रैस ही काफी नहीं

मनचाही पोशाक पहन कर इठलाने, अदाएं दिखाने की चाह हर महिला की होती है. आखिर यही तो वह चीज है, जिस के साथ वह अपने सौंदर्य को और निखार दे सकती है, पुरुषों को आकर्षित कर सकती है और अपनी हमउम्र सखियों और पड़ोसिनों की ईर्ष्या की पात्र बन सकती है. महिला कुदरत का बनाया एक नायाब तोहफा है और उसे सुंदर रहने का पूरा अधिकार भी है. यही वजह है कि बाजार में लड़कों के कपड़ों की विविधता उतनी नहीं होती है जितनी लड़कियों की होती है.

बेशक महिलाओं को जो मन करे वह पहनना चाहिए, मगर इस बात का भी जरूर ध्यान रखना चाहिए कि कपड़े वही पहनने चाहिए जिन में खुद को सहज और आरामदेह महसूस कर सकें. बाजार की चकाचौंध और स्टाइलिश डिजाइनों के कपड़ों को देख कर लड़कियां और महिलाएं ऐसे खो जाती हैं कि उन्हें इस बात का ध्यान ही नहीं रहता है कि ये परिधान उन के शरीर पर सही लुक दे सकते हैं या नहीं, क्या इन्हें पहन कर वे वास्तव में स्मार्ट लग रही हैं या अपनी शारीरिक कमियों को ही उजागर कर रही हैं?

कभीकभी टीवी या अखबारों में हम मौडल या हीरोइन को ऐसे परिधान में देखते हैं कि उस से उस की खूबसूरती और बढ़ जाती है. वैसे मौडलों या हीरोइनों को भी कभीकभी सही परिधान का चयन न कर पाने की स्थिति में शर्मिंदा होना पड़ता है जैसेकि कुछ वर्ष पूर्व मशहूर अभिनेत्री मलाइका अरोड़ा की कैटवाक के वक्त स्ट्रैप टूट गई और सब के सामने टौपलैस हो गईं.

कैसे पाएं तारीफ

एक वीडियो कुछ दिनों पहले काफी वायरल हुआ था, जिस में एक सैलिब्रिटी अपनी तंग जिपी मिडी में इठला कर होस्ट को झुक कर दिखाती है कि उस की जिप पूरी खुल जाती है. इसी तरह एक शो में महानायक अमिताभ बच्चन के सामने एक महिला की ड्रैस फट जाती है और अमिताभ शर्म के कारण मुंह घुमा लेते हैं. ये सभी वाकेआ सही परिधान न चुनने के कारण ही होते हैं, जिन से बदनामी भी होती है और युवतियों या महिलाओं का मजाक भी बनता है. गौहर खान की एक तंग ड्रैस का बौटम रैंप पर फट गया था और फोटोग्राफरों को बढि़या मसाला मिल गया.

मीडिया पर्सनैलिटी से महिलाएं इतनी प्रभावित होती हैं कि कुछ भी कर के उन जैसा बनना चाहती हैं, मगर इस में सब से बड़ी गलती यह करती हैं कि वे केवल उन की ड्रैस देखती हैं, घंटों जिम में पसीना बहा कर, डाइटिंग कर और सर्जरी के बाद बनाई गई उन की खूबसूरत फिगर को नहीं देखतीं. वे अंधाधुंध पैसे खर्च कर के उन के जैसी पोशाक तो खरीद लाती हैं, मगर अपने शरीर के बेडौल उभारों को नहीं छिपा पातीं.

आप ने अकसर ऐसी युवतियों या महिलाओं को शादी या पार्टी में अवश्य देखा होगा जो महंगा स्लीवलैस गाउन तो पहन लेती हैं, मगर अंडरआर्म्स साफ करना भूल जाती हैं. ऐसे में उन की बगलों से झांकते बाल और आधी काली आधी सफेद बांहें उन के सौंदर्य की नहीं वरन फूहड़ता की निशानी छोड़ती हैं. कुछ महिलाएं शौर्ट ड्रैस पहनती हैं, मगर उन की मोटी जांघें, टखनों की कालिख और स्ट्रैच मार्क्स उन्हें उपहास का पात्र बना डालते हैं.

मैचिंग फुटवियर

आप ने अच्छे कपड़े तो पहन लिए, लेकिन उन से मिलतेजुलते फुटवियर पर ध्यान नहीं दिया तो सब धरा का धरा रह जाएगा. स्थान, समारोह व समय के अनुसार ही फुटवियर पहनना चाहिए. अगर आप कोई परंपरागत परिधान जैसे सूट, साड़ी या लहंगा पहन रही हैं, तो चमकदमक वाला फुटवियर पहन सकती हैं और अगर आप को औफिस जैसे माहौल में जाना है तो कतई चमकदमक या भड़कीले रंग का फुटवियर न पहनें. तब आप को हलके शालीन रंग का ऐसा फुटवियर पहनना चाहिए, जो आप की ड्रैस से मैच करता हो और देखने वालों की आंखों को भी न चुभे.

कपड़ों का चयन

कई बार मोटी औरतें साड़ी को नाभि से भी नीचे बांध लेती हैं और इस से उन के पेट पर उभरी गर्भावस्था की धारियां साफ दिखाई देती हैं, जो उन की खूबसूरत साड़ी और व्यक्तित्व को फीका ही करती हैं. कुछ महिलाएं महंगे कपड़े और चेहरे पर बढि़या मेकअप तो कर लेती हैं, मगर उन के नाखून अनशेप्ड और बिना नेलपैंट किए होते हैं.

इसी तरह किसीकिसी की ऊंची एडि़यों की सैंडलों से दरार पड़ी एड़ियां झांकती हैं.

भारी स्तनों वाली महिलाएं जब डीप नैक पहनती हैं, तो थोड़ा झुकते ही उन के स्तनों और ब्रा का सब को दीदार हो जाता है.

कुदरत ने सब के शरीर की बनावट व रंगरूप एकदूसरे से भिन्न बनाया है. अत: यह जरूरी नहीं है कि जो रंग दूसरों पर अच्छा लग रहा हो वह आप पर भी खिलेगा. कुछ रंग तो खासतौर पर ऐसे ही होते हैं जोकि सब पर अच्छे नहीं लगते हैं जैसे सूरजमुखी पीला, नारंगी, सुर्ख गुलाबी आदि. कोई भी नया रंग खरीदने से पहले पहन कर देख लें कि आप पर कैसा लग रहा है अन्यथा आप के पैसे भी बेकार हो जाएंगे और देखने वालों को अच्छा भी नहीं लगेगा.

कपड़ों की खरीदारी के वक्त सब से पहले तो इस बात पर ध्यान देना बेहद जरूरी होता है कि वे आप के शरीर की बनावट या आकार के हिसाब से हों, जो पहनने में आरामदायक होने के साथसाथ आप के व्यक्तित्व में भी चार चांद लगा सकें.

फिटिंग का रखें ध्यान

कपड़े खरीदते समय साइज पर न जाएं, बल्कि कपड़ों की फिटिंग पर ध्यान दें कि उन्हें पहनने के बाद आप कैसी दिख रही हैं. बौडी टाइप के अनुसार साइज लेने से यह जरूरी नहीं है कि वह आप पर जंचे. ऐसे कपड़े लें जो शरीर की कमियों को छिपाते हुए खूबसूरती को बढ़ावा देते हों. कपड़ों में आप को आराम भी महसूस होना चाहिए. कहीं ऐसा न हो कि फैशन के चक्कर में आप असहज महसूस करें.

घटिया मेकअप

दिन में हलका, रात में डार्क मेकअप करना चाहिए. दिन के इवेंट में न के बराबर और पार्टी में डार्क मेकअप चलता है. जब आप हर जगह एकजैसे कपड़े नहीं पहनती हैं, तो हर जगह एकजैसा मेकअप करने का क्या तुक बनता है? हर जगह सुर्ख रंग की लिपस्टिक लगाने से काम नहीं चलेगा. कुछ स्थानों में हलके रंग की लिपस्टिक का भी ज्यादा असर होगा. साथ ही बदलते मेकअप ट्रैंड से भी खुद को अपडेट रखें.

चमकते नाखून

अपने नाखूनों को हमेशा साफ रखें. उन्हें सही शेप दे कर नेलपैंट लगाएं. अकसर लोगों की नजर नाखूनों पर जाती है. अगर वे गंदे हों, टूटे हुए हों तो खुद भी अच्छा नहीं लगेगा. इसलिए खूबसूरती बढ़ाते समय नाखूनों को नजरअंदाज कतई न करें. यदि आप कामकाजी महिला हैं, तो हलके रंग की नेल पौलिश लगा कर रखें और तड़कभड़क वाले रंगों को छुट्टी के दिनों के लिए संजो कर रख लें.

सुंगधित रहें

कई महिलाओं को अधिक पसीना आता है खासकर अंडरआर्म्स में. अत: उन से दुर्गंध आने लगती है. लोग आप की दुर्गंध से दूर भागें, इस से बढि़या है कि आप अच्छे डियोड्रैंट का इस्तेमाल करें. उसे समयसमय पर बदलती रहें, क्योंकि जीवन के अलगअलग पड़ावों पर शरीर की दुर्गंध बढ़ती रहती है.

हेयरकलर

बाल महिलाओं का गहना हैं. अगर अपने बालों के साथ अच्छे प्रयोग करें, तो खूबसूरती में चार चांद लगाए जा सकते हैं, लेकिन इन प्रयोगों का प्रयास विपरीत हो जाए तो खूबसूरती बदसूरती में तबदील हो सकती है. इसलिए बालों में अच्छा कलर करना और अच्छा सा हेयरकट आप को नया लुक दे सकता है.

बालों से आप नएनए लुक भी अपना सकती हैं. हालांकि बालों को कलर कर उन की देखभाल करना थोड़ा महंगा सौदा है, इसलिए आप अपने बालों के कुछ भागों को हाईलाइट कर भी नया लुक प्राप्त कर सकती हैं.

यह बिलकुल सही है कि अच्छे कपड़े, मैचिंग फुटवियर व मेकअप से आप अच्छी दिखेंगी, लेकिन एक छोटी सी प्यारी सी मुसकान के बिना सब अधूरा है. इसलिए हमेशा किसी से भी मिलते या बात करते हुए एक छोटी सी मुसकराहट बरकरार रखें. लोगों से बात करते समय खुशमिजाज व चीयरफुल रहें ताकि वे आकर्षित हों. अगर आप इस के विपरीत मुंह बना कर या दुखी मन से रहेंगी तो लोग आप से दूर भागने लगेंगे.

स्मार्टनैस की परिभाषा तब तक अधूरी रहती है जब तक आप के कार्य, चालढाल में आत्मविश्वास की झलकी नहीं आएगी.

मनचाही पोशाक पहनना गलत नहीं है, बल्कि अपनी पसंद की पोशाक हमारे अपने मन और जीवन दोनों पर असर डालती है. पसंदीदा पोशाक पहनने पर हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है, जो हमारी सोच और काम पर सकारात्मक प्रभाव डालता है.

किसी भी पोशाक से ही यह पता लगाया जा सकता है कि उसे पहनने वाला कितना संवेदनशील, कितना प्राउडी या दब्बू है अथवा आत्मविश्वासी. इसलिए परिधान का चयन बहुत ही सावधानी के साथ अपनी फिगर को ध्यान में रख कर ही करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें