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मैं एक लड़की के साथ कई बार संबंध बना चुका हूं. कल मैंने उसे एक लड़के के साथ मस्ती करते हुए देखा. मैं क्या करूं.

सवाल
मैं बालिग हूं और जिस लड़की से प्रेम करता हूं वह भी बालिग है. हम हर हदें पार कर चुके हैं. मैं उसे बेइंतहा प्यार करता हूं लेकिन पिछले दिनों मैं ने उसे किसी अन्य युवक के साथ मस्ती करते हुए देखा. यह देख मेरा दिल अंदर से रो पड़ा. और जब मैं ने इस बारे में बात की तो उस ने साफ कहा कि मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ टाइमपास कर रही थी और अब कभी तुम मुझ से बात मत करना. इस बात से मैं बहुत परेशान हूं और आत्महत्या का विचार भी कई बार मन में आता है.

जवाब
प्रेम में धोखा खाया व्यक्ति अकसर आत्महत्या करने के बारे में ही सोचता है. लेकिन ऐसे व्यक्ति कायर होते हैं जो किसी लड़की, वह भी ऐसी जो सिर्फ अपना हित साध रही थी, के लिए अपना जीवन ही खत्म कर लें. इसलिए आप ऐसी गलती भूल कर भी न करें.

पछताने के बजाय यह सोचें कि आप की जिंदगी तबाह होने से बच गई,  वरना शादी होने के बाद आप के साथ क्या होता, यह तो आप भलीभांति समझ गए होंगे. उस की हर याद को मिटाते हुए नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करें और दोस्तों के साथ समय बिताएं.  आऊटिंग के लिए बाहर घूमने जाएं. अच्छीअच्छी पुस्तकें पढ़ें. इस से बुरी यादों से बाहर निकलने में आसानी होगी.

तो 2018 में चौदह बौलीवुड संतानें बौलीवुड इंडस्ट्री में अपनी किस्मत आजमाएंगी

अनमोल ठाकरिया

अभिनेत्री पूनम ढिल्लों और मशहूर फिल्म निर्माता अशोक ठाकरिया के 25 वर्षीय बेटे अनमोल ठाकरिया भी संजय लीला भंसाली प्रोडक्शन की फिल्म ‘‘ट्यूस्डे एंड फ्रायडे’’ से बौलीवुड में कदम रख रहे हैं. लंदन में पढ़ाई करके वापस लौटे अनमोल ठाकरिया ने शामक डावर से नृत्य का प्रशिक्षण हासिल किया है.

करण देओल

देओल परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य करण देओल भी अब बौलीवुड में कदम रख चुके हैं और उनकी पहली फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ 2018 में सिनेमाघरों में पहुंचेगी. जी हां! धर्मेद्र के पोते और सनी देओल के बेटे करण देओल ने भी बौलीवुड में अभिनेता के रूप में कदम रख दिया है. करण देओल की पहली फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ का निर्माण व निर्देशन उनके पिता सनी देओल ही कर रहे हैं. फिल्म की अस्सी प्रतिशत शूटिंग पूरी हो चुकी है.

करण कपाड़िया

अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया की बहन और अभिनेत्री व कास्ट्यूम डिजाइनिंग के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी स्व. सिंपल कपाड़िया के बेटे करण कपाड़िया भी बौलीवुड में बतौर अभिनेता कदम रख रहे हैं. करण कपाड़िया की एक्शन रोमांचक फिल्म का निर्देशन बेहजाद खंबाटा कर रहे हैं.

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करण कपाड़िया का हौसला आफजाई करने के लिए इस फिल्म में डिंपल कापिड़या व अक्षय कुमार कैमियो करते नजर आएंगे.

मालविका मोहनन

दक्षिण भारत के चर्चित कैमरामैन कु मोहनन की बेटी मालविका मोहनन ने यूं तो 2017 में ही मजीद मजीदी की फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड’’ में ईशान खट्टर की बहन का किरदार निभाकर बौलीवुड में कदम रखा था. यूं तो यह फिल्म नवंबर 2017 में गोवा में संपन्न इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में न सिर्फ प्रदर्शित हुई बल्कि पुरस्कृत भी हुई. मगर प्यार, जिंदगी और रिश्तों की बात करने वाली यह फिल्म 2017 में सिनेमाघरों में रिलीज नहीं हुई, अब यह फिल्म 2018 में सिनेमाघरों में पहुंचने वाली है.

रोहण मेहरा

अभिनेता स्व.विनोद मेहरा के बेटे रोहण मेहरा को निर्माता संजय लीला भंसाली अपने प्रोडक्शन की फिल्म ‘‘बाजार’’ से बौलीवुड में लौंच कर रहे हैं.

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गौरव चोपड़ा निर्देशित इस फिल्म में सैफ अली खान और राधिका आप्टे भी होंगी.

अभिमन्यू दसानी

फिल्म ‘‘मैने प्यार किया’’ फेम अदाकारा भाग्यश्री के बेटे अभिमन्यू दसानी कई फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम करने के बाद अब रानी स्क्रूवाला निर्मित व बासन बाला निर्देशित फिल्म ‘‘मर्द को दर्द नहीं होता’’ से बौलीवुड में कदम रख रहे हैं. इस फिल्म की शूटिंग शुरू हो चुकी है. इस फिल्म के लिए खास तौर पर अभिमन्यू दसानी ने टायकोंडो, मिक्स मार्शल आर्ट, चोई क्वांग डो की ट्रेनिंग हासिल की. इस फिल्म में उनकी हीरोईन होंगी मशहूर टीवी स्टार राधिका मदान. राधिका मदान की यह पहली बौलीवुड फिल्म होगी.

दलक्वेर सलमान

दक्षिण भारत व मलयालम फिल्मों के सुपर स्टार ममूटी के बेटे दलक्वेर सलमान अब इरफान खान के साथ रोड ट्रिप वाली फिल्म ‘‘कारवां’’ के साथ बौलीवुड में कदम रखने जा रहे हैं. आकाश खुराना निर्देशित इस फिल्म में कृति खरबंदा भी हैं.

शर्मिन सहगल

संजय लीला भंसाली अब अपनी भांजी और अपनी बहन व फिल्म निर्देशक बेला सहगल की बेटी शर्मिन सहगल को अनाम फिल्म से लांच कर रहे हैं. लौस एंजेल्स से अभिनय की ट्रेनिंग लेकर आयी शर्मिन सहगल ने अपने मामा संजय लीला भंसाली के साथ बतौर सहायक निर्देशक फिल्म ‘‘बाजीराव मस्तानी’’ की थी.

मीजान

मशहूर हास्य अभिनेता जावेद जाफरी के बेटे मीजान को भी संजय लीला भंसाली अपनी भांजी शर्मिन के ही साथ अनाम फिल्म से लांच कर रहे हैं.

उत्कर्ष शर्मा

‘‘गदर’’ फेम मशहूर फिल्म निर्देशक अनिल शर्मा अपने बेटे को बौलीवुड में लौंच करने के लिए साइंस फिक्शन के साथ प्रेम कहानी वाली फिल्म ‘‘जीनियस’’ का निर्माण व निर्देशन कर रहे हैं.

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उत्कर्ष शर्मा ने बाल कलाकार के रूप में फिल्म ‘गदर : एक प्रेम कथा’ में अभिनय किया था.

इशान खट्टर

अभिनेत्री नीलिमा अजीम व अभिनेता राजेश खट्टर के बेटे तथा अभिनेता शाहिद कपूर के सौतेले भाई इशान खट्टर बौलीवुड से जुड़ चुके हैं. ईरानी फिल्मकार मजीद मजीदी निर्देशित तथा मुंबई में फिल्मायी गयी फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड’’ में वह मालविका मोहनान और जी वी शारदा जैसे भारतीय कलाकारों के साथ अभिनय कर चुके हैं.

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यह फिल्म नवंबर 2017 में गोवा में संपन्न इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कृत हो चुकी है. यह फिल्म प्यार, जिंदगी और रिश्तों की बात करती है. अब ईशान खट्टर, श्रीदेवी की बेटी जान्हवी कपूर के साथ करण जोहर निर्मित फिल्म ‘‘धड़क’’ भी कर रहे हैं, जो कि 2016 की मराठी भाषा की बहु चर्चित और सफल प्रेम कहानी प्रधान फिल्म ‘‘सैराट’’ का हिंदी रीमेक है.

सारा अली खान

सैफ अली खान और अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान ने अंततः सुशांत सिंह राजपूत के साथ ‘कैराज इंटरटेनमेंट’ की फिल्म ‘‘केदारनाथ’’ से बौलीवुड में कदम रख रही हैं.

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अभिषेक कपूर उर्फ गट्टू निर्देशित इस फिल्म की आधी शूटिंग पूरी हो चुकी है. करीना कपूर और सोहा अली खान अभी से सारा अली खान के अभिनय की तारीफों के पुल बांधने लगी हैं.

जान्हवी कपूर

श्रीदेवी की बेटी जान्हवी कपूर की पहचान स्टाइलिश के रूप में पहले से बनी हुई है. अब वह ईशान खट्ट के संग करण जोहर निर्मित फिल्म ‘‘धड़क’’ से बौलीवुड में कदम रख रही हैं, जो कि 2016 की मराठी भाषा की बहु चर्चित और सफल प्रेम कहानी प्रधान फिल्म ‘‘सैराट’’ का हिंदी रीमेक हैं.

आयुष शर्मा

हिमाचल प्रदेश के चर्चित राजनीतिक परिवार से जुड़े आयुष शर्मा को लोग अब तक सलमान खान के बहनोई यानी कि सलमान खान की बहन अर्पिता खान के पति के रूप में ही पहचानते आए हैं.

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मगर 2018 में वह फिल्मी हीरो के रूप में पहचाने जाएंगे. फिलहाल वह अपनी फिल्म ‘‘लवयात्री’’ के लिए गुजरात में ट्रेनिंग हासिल कर रहे हैं. प्रेम कहानी वाली इस फिल्म का निर्माण स्वयं सलमान खान कर रहे हैं. अभिराज मीनावाला के निर्देशन में बनने वाली इस फिल्म के लेखक निरेन भट्ट हैं.

‘नवाबजादे’ में थिरकते नजर आएंगे श्रद्धा कपूर और वरुण धवन

गुरू रंधावा द्वारा स्वरबद्ध पंजाबी गीत ‘‘हाई रेटेड गबरू’’ को यूट्यूब पर 250 मिलियन दर्शक मिल चुके हैं. इसी बात से प्रेरित होकर फिल्म ‘‘नवाबजादे’’ का निर्माण कर रहे टीसीरीज के भूषण कुमार तथा रेमो डिसूजा ने इस गाने को नए सिरे से सफल फिल्म ‘‘एबीसीडी 2’’ की जोड़ी श्रद्धा कपूर और वरुण धवन पर फिल्माकर फिल्म का हिस्सा बनाने का निर्णय लिया. इससे श्रद्धा कपूर और वरुण धवन भी काफी खुश हुए.

उसके बाद रेमो डिसूजा ने खुद ही गाने ‘‘हाई रेटेड गबरू’’ को  नए ढंग और नई कदम ताल के साथ फिल्मांकन के लिए गाने की पुनःरचना की और खुद ही नृत्य निर्देशन कर इसे मुंबई के स्टूडियों में फिल्माया. मजेदार बात यह है कि इस गाने में जहां श्रद्धा कपूर और वरुण धवन की हौट जोड़ी नजर आएगी, वहीं इस गाने में उनका साथ ‘एबीसीडी 2’ के दूसरे कलाकारों यानी कि धर्मेश येलेंडे, राघव जुयाल और पुनीत पाठक ने भी हिस्सा लिया.

इस गाने की चर्चा चलने पर वरुण धवन ने कहा-‘‘यह गाना करके बड़ा मजा आया. इस गाने में धर्मेश, पुनीत व राघव के साथ नृत्य  करके हमें समझ में आया कि वह हमसे भी ज्यादा प्रतिभाशाली हैं. जब हमने सुना कि रेमो डिसूजा और भूषण कुमार जी इन कलाकारों के साथ यह फिल्म कर रहे हैं, तो हमें लगा कि हमें भी इसका हिस्सा बनना चाहिए. इसलिए जैसे ही हमारे सामने इस गाने को करने का आफर आया, मैं ने व श्रद्धा ने तुरंत हामी भर दी. मेरे लिए तो इसी बहाने श्रद्धा कपूर के साथ दूसरी बार परदे पर आने का मौका मिल रहा था. इसके अलावा यह गाना सफल है, तो सोने पे सुहागा वाली बात रही. अब शूटिंग करने के बाद के अनुभवों को बयां करने के लिए तो शब्द ही नहीं हैं.’’

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इस गाने का हिस्सा बनकर वरुण धवन से भी कहीं ज्यादा श्रद्धा कपूर उत्साहित हैं. वह कहती हैं-‘‘ऐसा कौन सा कलाकार है, जो रेमो डिसूजा, भूषण कुमार व वरुण धवन के साथ काम नहीं करना चाहेगा? इसके अलावा मैं तो ‘हाई रेटेड गबरू’ गाने की फैन बन चुकी हूं, इसलिए जैसे ही इस गाने का हिस्सा बनने का आफर मिला, मैंने लपक लिया. इसके लिए शूटिंग करना तो मजेदार रहा.’’

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जयेष प्रधान निर्देषित फिल्म ‘‘नवाबजादे’’ में धर्मेश येलेंडे, राघव जुयाल और पुनीत पाठक की मुख्य भूमिका है.

आखिर क्यों नर्वस हैं रिचा चड्ढा..?

रिचा चड्ढा के करियर में काफी कुछ उनकी सोच के विपरीत होता रहा है. फिल्म ‘‘मसान’’ के लिए ‘‘कान फिल्म फेस्टिवल” में अवार्ड और शोहरत बटोरने के बाद बड़े उत्साह के साथ उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता उमंग कुमार के संग फिल्म ‘‘सरबजीत’’ की थी, पर इस फिल्म में उनके साथ ऐसा कुछ हुआ कि अब वह मानती हैं कि ‘सरबजीत’ करना उनकी गलती थी.

तो अब एक बार फिर उनके साथ कुछ ऐसा होने वाला है, जो नहीं होना चाहिए था. वास्तव में रिचा चड्ढा को ‘‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’’ के साथ काम करना अच्छा लगता है, इसी के चलते उन्होंने ‘फुकरे रिटर्न’ के बाद ‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’ की फिल्म ‘‘थ्री स्टोरी’’ की. इससे पहले वह सुधीर मिश्रा के निर्देशन में फिल्म ‘‘दास देव’’ कर चुकी थी.

रिचा चड्ढा का मानना है कि हर कलाकार को कम से कम एक बार सुधीर मिश्रा के साथ जरूर काम करना चाहिए. मगर ‘दास देव’ का प्रदर्शन कई वजहों से पिछले दो वर्ष से रुका रहा और अब रिचा चड्ढा की यह दोनों फिल्में यानी कि ‘थ्री स्टोरी’ और ‘दास देव’ एक ही दिन 9 फरवरी 2018 को सिनेमा घरों में पहुंचने वाली हैं. इसी से रिचा चड्ढा काफी नर्वस हैं. रिचा के करियर में ऐसा पहली बार हो रहा होगा जब अनचाहे ही उनकी दो फिल्में एक ही दिन आपस में टकराने के लिए सिनेमाघरों में पहुंचने वाली हैं.

खुद रिचा चड्ढा कहती हैं-‘‘मैं एक साथ नर्वस और उत्साहित हूं. ऐसा बहुत कम होता है, जब किसी कलाकार की एक ही दिन दो फिल्में प्रदर्शित हों. कम से कम मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी दो फिल्में एक ही दिन सिनेमाघरों में पहुंचेगी. पर मेरे उत्साह की वजह यह है कि मैने इन दोनों फिल्मों के साथ न्याय किया है. दोनों ही फिल्मों की विषयवस्तु अलग अलग है और दोनों से मुझे काफी उम्मीदे हैं.’’

पर बौलीवुड से जुड़े लोगों की राय में अलग अलग विषय की दोनो फिल्में होने के बावजूद हर कलाकार को कोशिश करनी चाहिए कि उनकी फिल्में आपस में न टकराएं. आखिर दर्शक एक ही समय में एक ही कलाकार की दो दो फिल्में कैसे पसंद करेगा? रिचा चड्ढा के लिए भी एक साथ अपनी दोनों फिल्मों को प्रमोट करना आसान नहीं होगा. उन्हे चाहिए था कि वह कोशिश करती कि उनकी यह फिल्में अलग अलग समय पर व कुछ अंतराल के बाद प्रदर्शित होती.

इस पर रिचा चड्ढा कहती हैं- ‘‘देखिए, एक कलाकार की हैसियत से फिल्म कब सिनेमाघरों में पहुंचेगी, इसका निर्णय मैं नहीं कर सकती. फिल्म को प्रदर्शित करने का अंतिम निर्णय तो निर्माता का ही होता है.’’

मुंबई हादसे में 200 लोगों की जान बचाने वाले ये थे दो बहादुर गार्ड

मुंबई के कमला मिल कंपाउंड के टेरेस रेस्तरां 1 अबोव रेस्तरां, लंदन टैक्सी बार और मोजो पब में 28 दिसंबर रात 12 बजकर 10 मिनट पर जब आग लगी, तो दृश्य बड़ा भयावह था. बांस और प्लास्टिक के छप्पर होने की वजह से चारों तरफ आग की लपटें इतनी जल्दी फैली, कि लोगों को उससे निकलने का मौका ही नहीं मिला और उसमें 15 लोगों की जानें चली गयी, जिसमें 12 महिलाएं और 3 पुरुष हैं. कुछ लोग अभी भी जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं. इस हादसे में 20 से 25 साल की उम्र वाली महिलाएं ही अधिक थी, जो अपने दोस्त का जन्मदिन मनाने वहां आई थी. कुछ महिलाएं अधिक उम्र की भी थी.

किसे पता था कि ये दिन उनके जीवन का आखिरी दिन होगा, आखिर ऐसे हादसे होते क्यों है? इसके जिम्मेदार कौन है आदि कई सवाल हैं. अपनी पीठ थपथपाने वाली सरकार आखिर ऐसे रेस्तराओं को परमिशन कैसे देती है? हादसे होने के बाद कार्यवाही की जाती है, पहले क्यों नहीं? इसका जवाब किसी के पास नहीं है. हर बार ऐसे हादसे होने के बाद ही जांच समिति बैठाई जाती है, जांच के आदेश दिए जाते हैं, पर होता कुछ नहीं.

जब ये हादसा कमला मिल कंपाउंड में हुआ और सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे और रेस्तरां के मालिक और कर्मचारी नदारद थे. केवल दो चौकीदार महेश पांडुरंग साबले और सूरज गिरी ने अपनी जान हथेली पर रखकर 200 से 250 लोगों की जानें बचाई. केवल 20 से 25 मिनट में उन्होंने सबको नीचे उतारा. हालांकि इसे करते हुए उन्हें चोटें आई, पर उन दोनों ने इसकी परवाह नहीं की, उन्हें ऐसे बेबस लोगों की जान बचानी थी.

महेश कहते हैं कि गुरुवार की रात को जब आग लगी, तो मैं नीचे की फ्लोर पर था. अचानक लोगों की चीख पुकार सुनकर ऊपर चढ़ा तो देखा कि लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे हैं. तब तक दोनों लिफ्ट बंद हो गई थी. वहां अग्निशामक यंत्र भी नहीं था. मैंने पीछे की तरफ जाकर इमरजेंसी डोर हाथ से तोड़ दिया. फिर सभी लोग उस पतली सीढ़ी से नीचे उतरे, इसमें 10 से 12 लोग घायल थे. उन्हें किसी तरह मैं और सूरज एम्बुलेंस के नजदीक लाये. इतनी भगदड़ थी कि कोई गिर रहा था, तो किसी के कपड़े जल चुके थे, किसी के पांव में चप्पल नहीं थी, लोग बेतहाशा अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे थे.

Kamala Mills fire tragedy
महेश पांडुरंग साबले

25 वर्षीय महेश को ऐसा करते हुए एक बार भी अपने लिए डर नहीं लगा. दुःखी स्वर में वे कहते है कि मैं ‘बर्थ डे गर्ल’ खुशबू बंसल को भी बचा सकता था, जब तक मैं उसके सामने पहुंच पाता, मेरे सामने आग का एक बड़ा गोला ऊपर से उस पर गिरते हुए देखा, उसकी चीख अभी भी मेरे कानों में गूंज रही है. इसके अलावा मुझे पता नहीं चला था कि कुछ लोग वाशरूम में अटके हैं, नहीं तो मैं उधर पहुंचने की भी कोशिश करता. ये तब पता चला जब फायर ब्रिगेड के कर्मचारी ने आग बुझाने के बाद वाशरूम का दरवाजा खोला और देखा कि सारे लोग एक दूसरे पर मृत पड़े हुए थे. आज भी सबकी चीख और पुकार मुझे याद आती है.

वहीं काम करने वाला 21 वर्षीय गार्ड सूरज गिरी ने लोगों को बचाते हुए गैस सिलिंडरों को सुरक्षित स्थान पर ले गए, ताकि आग की लपटों को फैलने से बचाया जाये, आग से सिलिंडरों के फटने से और भी अधिक जान माल की क्षति हो सकती थी. वह कहता है कि जब में ऊपर चढ़ा, तो वहां से निकलने का कोई भी रास्ता लोगों को पता नहीं था. सीढ़ियां पूरी तरह से बंद थी, कहीं से भी बाहर निकलने का रास्ता नहीं था. आग की भनक लगते ही सारे होटल कर्मचारी भाग चुके थे. चारों तरफ धुंआ और आग भरी थी, जिसमें से लोगों की हा-हाकार सुनाई पड़ रही थी. अगर इस तरह के गलत काम करने वाले रेस्तराओं की सही जांच होती और सीढ़ियां होती, तो इतनी संख्या में जानें नहीं जाती.

Kamala Mills fire tragedy
सूरज गिरी

ये रेस्तरां एक पॉश एरिया में है, इसलिए यहां का खाना काफी महंगा है, लेकिन यहां के होटल मालिक सुरक्षा को ताक पर रखकर व्यवसाय कर रहे थे. इस बारे में मुंबई महानगरपालिका की जनसंपर्क अधिकारी विजय खबाले पाटिल का कहना है कि अभी तक फायर बिग्रेड की तरफ से रिपोर्ट नहीं आई है, लेकिन इतना सही है कि सुरक्षा के मानकों को सही तरह से पालन नहीं किया गया. वैसे तो हर साल अथॉरिटी ऑडिट करती है और कुछ गलत दिखाई देने पर रेस्टोरेंट मालिकों को निर्देश भी देती है, लेकिन उन्होंने कितना पालन किया है, उसकी जांच भी सही तरीके से होना जरूरी है. आगे वैसा ही किया जायेगा. इसके अलावा रेस्तरां चलाने वाले को वहां की प्लानिंग के बारे में जानकारी एंट्री पॉइंट पर पोस्टर के जरिये देने की जरुरत है और ग्राहक भी उसे देखकर ही अंदर जाएं.

फायर वुमन हर्शिनी कान्हेकर कहती हैं कि ऐसे सभी होटलों में अग्निशामक यंत्र रखने की जरुरत है, साथ ही यह भी जरुरत है कि साल में दो बार ऐसे होटल, रेस्तरां और बड़ी बिल्डिंगों की ऑडिट हो, ताकि कमियों को समय रहते ठीक किया जा सकें. इसके अलावा ऐसी किसी घटना में अधिकतर मौतें दम घुटने से होती है, इसलिए ऐसे में अगर व्यक्ति किसी कपड़े या रुमाल को गीला कर नाक और मुंह पर बांध ले, तो दम घुटने से बच सकता है.

बात कुछ भी हो लेकिन इतना सही है कि दो गार्ड ने जिस बहादुरी से इतने लोगों को बचाया, ये काबिले तारीफ है, नहीं तो मृतकों की संख्या और भी बढ़ सकती थी.

मरहम नहीं है महरम : सवाल यह कि हज पर जाएं ही क्यों मुस्लिम महिलाएं

तीन तलाक नाम की कुप्रथा को खत्म करने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वह वाहवाही और बधाई मिली जिसके कि वे वाकई हकदार थे, लेकिन उम्मीद से कम वक्त में उन्होंने यह ऐलान कर अपने ही किए पर पानी फेर लिया है कि 45 की उम्र पार कर चुकी मुस्लिम महिलाएं अब बगैर महरम के हज पर जा सकती हैं. मन की बात के साल 2017 के आखिरी एपिसोड में की गई यह घोषणा कैसे एक कुरीति को बढ़ावा देती हुई है, उससे पहले यह समझ लेना जरूरी है कि यह महरम आखिर है क्या और क्यों नरेंद्र मोदी के मन में इस तरह खटका कि वे इसे खत्म करने पर उतारू हो आए.

इस्लाम में निर्देश हैं कि महिलाएं बिना किसी पुरुष अभिभावक या संरक्षक के हज यात्रा नहीं कर सकतीं, यानि हज करने के लिए महरम जरूरी है, इस्लाम के ही मुताबिक महरम वह पुरुष होता है जिससे मुस्लिम महिला शादी नहीं कर सकती मसलन पिता, बेटा, सगा भाई और नाति यानि नवासा. अभी तक मुस्लिम महिलाएं इनमें से किसी एक के साथ होने पर ही हज यात्रा कर सकतीं थीं, अब बक़ौल नरेंद्र मोदी यह ज्यादती खत्म की जा रही है और 45 पार कर चुकीं 4 या उससे ज्यादा मुस्लिम महिलाएं इकट्ठी होकर हज पर जा सकती हैं. इस बाबत मोदी की पहल पर इन महिलाओं को लाटरी सिस्टम से मुक्त रखा जाएगा.

मोदी जी यह जानकर हैरान थे कि अगर कोई मुस्लिम महिला हज करना चाहे तो वह बिना महरम के नहीं जा सकती थी और यह भेदभाव आजादी के 70 साल बाद भी कायम है, लिहाजा उन्होंने इस रिवाज को ही हटा दिया.

तीन तलाक के नतीजों से उत्साहित नरेंद्र मोदी अब इस्लाम में सीधे दखल देने पर उतारू हो आये हैं या फिर उन्हें वाकई मुस्लिम बहनों की चिंता है, इस पर भले ही बहस की गुंजाइशें मौजूद हों, पर यह बिना किसी लिहाज के दो टूक कहा जा सकता है कि हज उसी तरह किसी मुस्लिम के भले की बात नहीं जिस तरह हिंदुओं की तीर्थ यात्रा, इन दोनों का ही मकसद अपने अपने अनुयायियों को दिमागी तौर पर गुलाम बनाए रखने की साजिश है. पाप, पुण्य, मोक्ष, स्वर्ग, नर्क वगैरह पर सभी धर्म गुरु और धर्म ग्रंथ एक हैं, क्योंकि इन्हीं से उनकी दुकानदारी चलती है.

बिना महरम हज की आजादी धार्मिक अंधविश्वासों के पैमाने पर देखें तो मुस्लिम महिलाओं को मजहब और उसके ठेकेदारों के चंगुल में फंसाये रखने का टोटका है, जिससे मुसलमान औरतों को लगे कि अब उनका नरेंद्र मोदी से बड़ा हमदर्द और रहनुमा कोई नहीं, लेकिन इस फैसले ने एहसास करा दिया है कि मोदी चाहते यह हैं कि मुसलमान खासतौर से औरतें कहीं कठमुल्लाओं की पकड़ से आजाद न हो जाएं, इसलिए उन्हें अब धर्म के नाम पर बहकाया जाये और औरतों की आजादी बहाली के नाम पर एक बार फिर वाहवाही लूटी जाये.

हज या तीर्थ यात्रा से किसका क्या और कैसे भला होता है इसकी कोई तार्किक व्याख्या मोदी या फिर कोई दूसरा उदारवादी कर पाये तो बात समझ आए, लेकिन मोदी खुद विकट के धर्मभीरु और अंधविश्वासी हैं, जो बिना मंदिर में जाये चुनाव प्रचार भी शुरू नहीं करते और यही काम या बेवकूफी राहुल गांधी करने लगें, तो पूरा भगवा खेमा हाय हाय करने लगता है. हालिया गुजरात विधानसभा चुनाव इसके गवाह हैं कि वहां धर्म के नाम पर कैसे कैसे ड्रामे हुये थे, जिनमे विकास वगैरह की बातें गुम होकर रह गईं थीं.

वाकई मोदी महिलाओं का भला चाहते हैं तो उन्हें हज और तीर्थ यात्रा दोनों पर रोक लगाने का ऐलान करने की हिम्मत दिखानी चाहिए थी, वजह है धर्म, जो औरत जाति का सबसे बड़ा दुश्मन है, जिसके तहत वे पांव की जूती और भोग्या भर हैं. महिलाएं आजादी के 70 साल बाद भी क्यों सशक्त नहीं हो पा रहीं, यह बात प्रधानमंत्री के मन में आए और वे इस पर चिंतन मनन कर पाएं तो फिर उन्हें यह भी सोचने मजबूर होना पड़ेगा कि कैसे कैसे बाबाओं ने उनके कार्यकाल में भी महिलाओं की इज्जत से आश्रमों में ही खिलवाड़ किया. मथुरा, वृन्दावन की तरह खुद उनके लोकसभा क्षेत्र बनारस में भी लाखों विधवाएं पेट भरने के लिए भीख मांगने के अलावा दूसरे ऐसे काम करने मजबूर हैं जिनसे उनमें कोई गैरत नहीं रह जाती.

और इस बदहाली की वजह धर्म और उसके स्त्री विरोधी मूलभूत सिद्धान्त नहीं तो और क्या है. जिस दिन देश के सवा सौ नहीं तो सवा करोड़ लोग भी इस सवाल के जबाब में सड़कों पर आ खड़े होंगे उस दिन किसी महरम की जरूरत किसी हिंदुस्तानी औरत को नहीं रह जाएगी. औरत कैसे और किसके साथ काबा काशी जाये यह कोई मुद्दा ही नहीं, मुद्दा यह है कि आजाद भारत में कैसे महिला दिल्ली और भोपाल की सड़कों पर आधी रात को तफरीह करने की अपनी ख़्वाहिश पूरी कर पायें, इस बाबत मंत्रालयों को निर्देश दिये जाएं.

धर्म स्थलों पर जाने प्रोत्साहन और सहूलियतें देने से औरतों का कोई भला नहीं होने वाला, उनका असली भला तो स्कूलों और यूनिवर्सिटियों में जाने से होगा, जाने कब किस प्रधानमंत्री के मन में यह बात आएगी. बात और मंशा चूंकि सियासी है, इसलिए किसी नेता को इस हकीकत पर अफसोस नहीं होता कि आजादी के 70 साल बाद भी एक फीसदी मुस्लिम लड़कियां भी कालेज का दरवाजा नहीं देख पातीं. बहुसंख्यक हिन्दू युवतियां भी उच्च शिक्षा से वंचित क्यों हैं, इस पर सभी खामोश रहते हैं, हां बात हज या तीर्थ की हो तो जो सरकारें खुद पुण्य कराने पानी की तरह पैसा बहाती हों, उनसे क्या खाकर महिलाओं के भले या हितों की उम्मीद की जाये.

सुनिधि चौहान को नये साल पर मिला बेशकीमती तोहफा

अपनी गायकी से लोगों के दिलों पर राज करनेवाली बौलीवुड की पौपुलर सिंगर सुनिधि चौहान के लिए नया साल सौगात लेकर आया है. उन्होंने एक जनवरी यानी नये साल के मौके पर मुंबई के सूर्या अस्पताल में शाम 5.20 बजे एक बेटे को जन्म दिया है.

सुनिधि की गायनोकोलोजिस्ट रंजना धानू के मुताबिक, “बेबी और मां दोनों स्वस्थ हैं. बता दें, सुनिधि पिछले पांच महीनों से लाइमलाइट से दूर थीं. सुनिधि आखिरी बार डब्लिन स्क्वैयर में एक शो के दौरान नजर आई थीं, उस वक्त वे प्रेगनेंसी के दूसरे ट्राइमेस्टर में थीं. इस लाइव परफौरमेंस में सुनिधि को देख औडियंस इतने प्रभावित हुए थे कि सभी ने उन्हें स्टैंडिंग ओवेशन दिया था.

 

 

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बता दें कि दो साल तक एकदूसरे को डेट करने के बाद सुनिधि और म्‍यूजिक कंपोजर हीतेश सोनिक ने 24 अप्रैल 2012 को एक दूसरे से शादी कर ली थी. दोनों की शादी मुंबई में एक छोटे से इवेंट के दौरान हुई थी. 14 अगस्‍त 2017 को अपने 34वें बर्थडे के मौके पर सुनिधि ने अपने प्रेग्‍नेंसी की खुशखबरी दी थी.

बता दें कि सुनिधि चौहान की हीतेश से दूसरी शादी है. इससे पहले उन्‍होंने मात्र 18 साल की उम्र में उनकी शादी कोरियेाग्राफर और निर्देशक बौबी खान से की थी. बताया जाता है कि उनके घरवाले इस शादी के लिए बिल्कुल राजी नहीं थे इसलिए दोनों ने गुपचुप तरी‍के से शादी की थी और इस शादी में सिर्फ क्‍लोज फ्रेंड्स ही शामिल हुए थे. हालांकि, यह रिश्ता ज्यादा समय तक टिक न सका और 2003 में इन्होंने तलाक ले लिया. बौबी से तलाक लेने के 10 साल बाद उन्होंने दोबारा शादी की.

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सुनिधि ने अपने करियर की शुरुआत 4 साल की छोटी सी उम्र में की थी. उन्होंने कई सिंगिंग रियलिटी शोज में हिस्सा लिया, हालांकि उनके हुनर को टीवी एंकर तब्बसुम ने पहचाना. उन्होंने सुनिधि के माता-पिता को मुंबई आने के लिए कहा. इसके बाद सुनिधि ने दूरदर्शन के रियलिटी शो ‘मेरी आवाज सुनो’ में हिस्सा लिया जिसके बाद शो की विनर रहीं.

सुनिधि ने ‘रुकी रुकी’, ‘डांस पे चांस’, ‘कमली’, शीला की जवानी’, ‘इश्क सूफियाना’, ‘बीड़ी जलाइ ले’, ‘देसी गर्ल’, ‘भागे रे मन’ जैसे कई चर्चित गाने गाये हैं. हिंदी गानों के साथ-साथ मराठी, कन्नड़, तेलुगू, तमिल, पंजाबी, बांग्ला, असमिया, नेपाली, उर्दू में भी गीत गा चुकी हैं. वह मशहूर पार्श्वगायिकाओं में शुमार हैं. सुनिधि जितना अच्छा गाती हैं, उतनी ही अच्छी दिखती हैं. वह फैशनिस्टा आइकौन भी हैं, उन्होंने साल 2013 में एशिया की ‘टौप 50 सेक्सिएस्ट लेडीज’ में भी अपनी जगह बनाई थी.

कौन सा होम लोन रहेगा आपके लिए बेहतर? यहां जानें

घर-जमीन की लगातार बढ़ती हुई कीमत की वजह से अब लोगों को घर या जमीन खरीदने के लिए होम लोन का सहारा लेना पड़ रहा है. अगर आपको भी घर खरीदने के लिए ऐसे ही किसी होम लोन की आवश्यकता है तो आपको अपने आर्थिक लक्ष्य के आधार पर एक सही लोन चुनना होगा. ग्राहकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बैंको और फाइनेंस कंपनियों ने अलग-अलग तरह के लोन देना शुरू किया है. तो आइए आज हम बाजार में मौजूद तरह-तरह के होम लोन पर एक नजर डालते हैं.

पहले से मंजूर किए गए होम लोन

कुछ होम लोन, बैंक द्वारा पहले से ही मंजूर किए गए होते हैं. इस तरह के लोन आपके कर्ज चुकाने के इतिहास, आपकी आमदनी और आपके क्रेडिट स्कोर के आधार पर दिए जाते हैं. लेकिन इस तरह के लोन, एक निर्धारित समय में ही दिए जाते हैं. इस लोन की प्रक्रिया में आम तौर पर 48 घंटे लगते हैं. पहले से मंजूर किए गए लोन आमतौर पर कम ब्याज पर मिलते हैं, लेकिन इसका लाभ उठाने के लिए कुछ फीस देनी पड़ती है.

निश्चित ब्याज दर वाले होम लोन

इस तरह के होम लोन में बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव का कोई असर नहीं पड़ता और लोन चुकाने की सम्पूर्ण अवधि के दौरान ब्याज दर एक समान ही रहता है. इस पर हर महीने निश्चित परिमाण में लोन की ईएमआई चुकाने से बजट को ठीक रखने और आगे की प्लानिंग करने में मदद मिलती है. इस तरह के लोन से आर्थिक सुरक्षा भी मिलती है. लेकिन इसमें एक खराबी है, निश्चित ब्याज दर पर मिलने वाले होम लोन का ब्याज दर, अनिश्चित या अस्थायी ब्याज दर वाले होम लोन की तुलना में आम तौर पर काफी अधिक होता है.

अस्थायी ब्याज दर वाले होम लोन

अस्थायी ब्याज दर वाले होम लोन बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव के कारण बदलते ब्याज दरों के अधीन होते हैं. इसमें दो चीजें शामिल होती हैं, मूल ब्याज दर और अस्थायी घटक.  मूल दर में परिवर्तन होने पर अस्थायी दर में परिवर्तन होता है. यदि आप बढ़ते मुद्रास्फीति परिदृश्य में होम लोन लेना चाहते हैं तो आपको अस्थायी ब्याज दर वाले होम लोन से दूर ही रहना चाहिए क्योंकि ब्याज दरों की अनिश्चितता, आपकी अन्य आर्थिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में बाधा बन सकती है.

संयुक्त होम लोन

यह एक ऐसा लोन है जिसे एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा अर्थात परिवार के किसी सदस्य के साथ मिलकर लिया जा सकता है. संयुक्त होम लोन में पति/पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन आदि शामिल हो सकते हैं. लोन का भुगतान दोनों के अकाउंट से होता है और लोन चुकाने में देरी होने या चूक हो जाने पर इसके लिए दोनों जिम्मेदार होते हैं. संयुक्त होम लोन देते समय, बैंक दोनों सदस्यों की आमदनी पर विचार करते हैं और लोन का टैक्स लाभ, लोन लेने वाले दोनों सदस्यों को मिलता है.

होम इम्प्रूवमेंट लोन

पर्सनल लोन की तुलना में कम प्रोसेसिंग फीस और कम ब्याज दर पर मिलने के कारण, होम इम्प्रूवमेंट लोन, घर की मरम्मत और रखरखाव करने के लिए पैसों की तंगी होने पर काफी मददगार साबित हो सकता है. इसलिए यदि आपको घर की मरम्मत कराने या उसका नवीकरण करने के लिए पैसों की जरूरत है तो आप होम इम्प्रूवमेंट लोन ले सकते हैं. एक साल तक समय पर लोन चुकाने वाला कोई भी व्यक्ति इस तरह का लोन ले सकता है, लेकिन इस लोन की रकम का इस्तेमाल सिर्फ घर की मरम्मत या नवीकरण के लिए ही करना होता है.

स्मार्टफोन खरीदने के बाद करना ना भूले ये काम

क्या आपने ने अभी अभी नया स्मार्टफोन खरीदा है. लेकिन अपने उसकी सिक्योरिटी के लिए कोई ऐप या कोई नया फीचर नहीं अपनाया है, तो हमारी ये खबर आपके बड़े काम आ सकती है. हम आपको कुछ ऐसे उपाय बताने जा रहे हैं जिसे हर किसी को नया फोन खरीदने के बाद अपनाना  चाहिए. तो आइये जाने कि फोन खरीदने के बाद  आपको कौन सा जरूरी काम करना है.

डिस्प्ले की सुरक्षा

अक्सर ऐसा होता है कि प्रीमियम स्मार्टफोन तक का डिस्प्ले टूट जाता है. अपने स्मार्टफोन की सुरक्षा के लिए उस पर अच्छी क्वालिटी का टेम्पर्ड ग्लास लगवाएं. सामान्य स्क्रीन गार्ड फोन की स्क्रीन को सिर्फ स्क्रैच आदि से बचाता है, लेकिन फोन गिर जाए तो उसकी स्क्रीन को टूटने से टेम्पर्ड ग्लास ही बचाता है.

स्मार्टफोन का बीमा कराएं

स्मार्टफोन का भी बीमा कराया जा सकता है. आजकल कई कंपनियां यूजर्स को स्मार्टफोन का बीमा औफर कर रही हैं. इसमें फिजिकल डैमेज, लिक्विड डैमेज और किसी मकैनिकल खराबी के लिए बीमा शामिल है. अगर कभी समार्टफोन में इस तरह की दिक्कतें आ जाएं तो इससे काफी फायदा होता है.

ऐपलौक (AppLock) करें इंस्टौल

आप कभी भी नहीं चाहेंगे कि कोई आपके निजी मेसेज, फोटो और दूसरे डेटा को देखें. इसके लिए आप ऐपलौक का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसे एंड्रौयड फोन के लिए गूगल प्लेस्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है. मोबाइल में मौजूद जिस भी ऐप, फोटो गैलरी आदि को आप चाहेंगे, इस ऐप की मदद से लॉक कर सकेंगे.

एंटी-मालवेयर सौफ्टवेयर का इस्तेमाल

यह जरूरी है कि आप अपने स्मार्टफोन की स्क्रीन की सुरक्षा की तरह ही उसके डेटा की सुरक्षा भी करें. नया फोन लेते ही सबसे पहले उसमें एंटी वायरस और डेटा सिक्योरिटी सौफ्टवेयर इंस्टौल करें जिससे मोबाइल के महत्वपूर्ण डेटा और दूसरे सौफ्टवेयरों से सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

बैक कवर का यूज

मोबाइल की सुरक्षा को लेकर कभी समझौता न करें. अपने स्मार्टफोन की बौडी को स्क्रैच, निशान और डेंट आदि से बचाने के लिए अच्छी क्वालिटी का बैक कवर खरीदें. आजकल बाजार में फैशनेबल और बढ़िया दिखने वाले कवर आसानी से उपलब्ध हैं. जरूरत के हिसाब से बैक कवर या फ्लिप वाले कवर चुन सकते हैं.

फोन चोरी होने पर पता लगाएं

स्मार्टफोन के चोरी होने या खोने पर काफी दिक्कत होती है. इस दिक्कत से बचने के लिए सुनिश्चित करें कि आपके एंड्रायड स्मार्टफोन पर एंड्रायड डिवाइस मैनेजर एक्टिवेट हो. इससे आपको स्मार्टफोन की लोकेशन पता लगाने में मदद मिलेगी.

इसके लिए अपने स्मार्टफोन की गूगल सेटिंग्स (Google Settings) में जाएं. स्क्रौल डाउन करें और आपको सिक्योरिटी (Security) का विकल्प नजर आएगा. इसे टैप करें और एंड्रायड डिवाइस मैनेजर (Android Device Manager) पर जाएं. रिमोटली लोकेट दिश डिवाइस (Remotely locate this device) और अलाव रिमोट लौक एंड इरेज औन और औफ (Allow remote lock and erase on or off) को टिक कर दें. इसमें यह भी ध्यान रखें की बात है कि लोकेशन (Location) की सेटिंग में जाकर एक्सेस टू माई लोकेशन (Access to my location) को भी औन करके रखना है. इसके अलावा फोन में गूगल साइन इन होना चाहिए.

 

चुनावों पर हावी धर्म : क्या धर्मजनित पार्टी ही है देश की प्राथमिकता

गुजरात और हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं के चुनाव जीत कर भारतीय जनता पार्टी ने साबित कर दिया है कि नोटबंदी और जीएसटी की चोटों के बावजूद देश को धर्मजनित पार्टी की ही प्राथमिकता है. 2014 में भारतीय जनता पार्टी को नरेंद्र मोदी ने भगवा झंडे पर लेकिन भगवा रंग के बगैर विकास व स्वच्छ सरकार बनाने के नाम पर जिताया था. पर 2017 के आतेआते इन दोनों वादों की कलई धुल गई और असल कट्टरवादी भाजपा सामने आ गई जिस में मंदिर, पूजापाठ, वर्णव्यवस्था, मुसलिम विरोध पहली जरूरतें हैं. जनता ने ऐसी ही पार्टी को सिर पर रखा हुआ है.

लोकतंत्र हो या राजतंत्र, आखिरकार शासकों को जनता की सहमति तो चाहिए ही होती है. जनता को नाराज कर के कोई भी शासक लंबे समय तक राज नहीं कर पाता. तानाशाह भी कुछ न कुछ ऐसा करते रहे हैं जिस से जनता को लगता रहे कि शासक असल में उसी का भला सोच रहा है.

गुजरात विधानसभा के चुनावों में राहुल गांधी ने जम कर नोटबंदी और जीएसटी पर तीर चलाए थे. अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल ने जातियों के साथ होने वाले भेदभाव व उन की आर्थिक दुर्दशा के सवाल उठाए थे. इन चारों को धर्म से लेनादेना न के बराबर था. पर इन की नहीं चली. भारतीय जनता पार्टी का धार्मिक तूफान सब को भगवाई रंग में भिगोता चला गया और वे चारों आज असहाय से खड़े हैं.

बस, आशा की किरण इस में है कि भगवाई भूकंप के गढ़ में 22 सालों बाद भारतीय जनता पार्टी को एक मजबूत टक्कर मिली है. इस से पहले कई विधानसभा और लोकसभा चुनावों में टोकनबाजी ही होती थी. कांग्रेस न के बराबर खड़ी होती थी, यह मान कर कि वह तो हारेगी ही. इस बार एकएक सीट के लिए भाजपा को लड़ना पड़ा है. जो 7 सीटों की बढ़त भाजपा को मिली है वह इतनी कम है कि चुनावी गिनती के समय कितनी ही सीटों पर ऐसा लगता था कि जनता ने कांग्रेस को ही वोट दिया है.

गुजरात का इलाका दशकों से कट्टर और कट्टर विरोधियों का गढ़ रहा है. एक तरफ यहां के ऊंची जातियों के लोग अपनेआप को धर्मश्रेष्ठ मनवाने की कोशिश करते हुए भक्ति रस में अपने को डुबोते रहे हैं तो दूसरी ओर वर्णव्यवस्था की बंदिशों को तोड़ने वाली कर्मठ जातियां धर्म के सहारे ही अपने वजूद को बचाने की कोशिश करती रही हैं. यहां के लोगों की अपनी जो भी समृद्धि है, उस के लिए वे कर्मठता को कम, पूजापाठ को ज्यादा श्रेय देते रहे हैं.

इसी को राजनीति में पहले रामधुन से भुनाया गया है और अब मंदिर वहीं बनाएंगे से. 2017 के चुनावों में राहुल गांधी समेत सभी नेताओं को राज्य के सभी मंदिरों में मत्थे टेकने पड़े. राज्य के बड़े कारखानों, व्यापारियों की मंडियों, बांधों, नहरों, बंदरगाहों की चर्चा कम रही. नरेंद्र मोदी ने खुद बुलेट ट्रेन की बात करनी बंद कर दी और राहुल गांधी कितने हिंदू हैं, इस पर चर्चा चलवा दी. यह गुजराती मानस के दिल को छूने वाली बात है जो दशकों से अपने से ऊंची जाति के पायदान पर खड़े होने के चक्कर में ज्यादा लगा रहता है बजाय सफल व्यापार को सरल बनवाने के.

यह व्यापारी वर्ग जम कर जीएसटी और नोटबंदी का विरोध कर रहा है पर वोट देते समय उसे फिर अपनी पहली प्राथमिकता नजर आ गई. नरेंद्र मोदी अपने राज्य में जीत गए, पर हां, 2012 के मुकाबले में 12 सीटों को हार कर, 2014 के लोकसभा चुनावों के आधार पर 65 विधानसभा क्षेत्रों में हार कर. पर जीत वे गए ही हैं और इसी के साथ जीएसटी व नोटबंदी भी जीत गई हैं.

इस जीतहार का अगले सालों पर असर पड़ेगा. राहुल गांधी अब टक्कर की पार्टी खड़ी कर सकेंगे. नरेंद्र मोदी को दूसरे राज्यों के चुनावों की खास तैयारी करनी होगी. अब विकास और स्वच्छ शासन की बातों का भरोसा कम रहेगा. चुनाव धर्म के नाम पर लड़े जाएंगे.

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