पीपल के पत्ते पर
मोरपंख की कलम से लिखे
प्रेमपत्र सी तुम
प्रेम की पहली पाती सी
सुकुमार रूमानियत में
डूबी लगती हो आज भी
अक्षरअक्षर तुम्हें पढ़ता
हरसिंगार के फूलों सा
झरता रहता हूं मैं
पढ़ता हूं तो रहस्यमयी सा
पाता हूं तुम्हें
नित नई सी लगती हो तुम
रोमांचित होता हूं उतना
जितना पहली बार
पढ़ते हुए हुआ था
तभी सहेज रखा है
धड़कनों के साथ सीने में
अधखुली चिट्ठी सा तुम्हें.
- विनीता राहुरिकर
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